Bihar Board Class 10 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 2 Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 10 Social Science History Solutions Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद
Bihar Board Class 10 History यूरोप में राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें।
प्रश्न 1.
इटली एवं जर्मनी वर्तमान में किस महादेश के अंतर्गत आते हैं ?
(क) उत्तरी अमेरिका
(ख) दक्षिणी अमेरिका
(ग) यूरोप
(घ) पश्चिमी एशिया
उत्तर-
(ग) यूरोप
प्रश्न 2.
फ्रांस में किस शासक वंश की पुनर्स्थापना वियना कांग्रेस द्वारा की गई थी?
(क) हैब्सवर्ग
(ख) आर्लिया वंश
(ग) बूर्वो वंश
(घ) जार शाही
उत्तर-
(ग) बूर्वो वंश
प्रश्न 3.
मेजनी का संबंध किस संगठन से था ?
(क) लाल सेना
(ख) कर्बोनरी
(ग) फिलिक हेटारिया
(घ) डायट
उत्तर-
(ख) कर्बोनरी
प्रश्न 4.
इटली एवं जर्मनी के एकीकरण के विरुद्ध निम्न में कौन था ?
(क) इंगलैंड
(ख) रूस
(ग) आस्ट्रिया
(घ) प्रशा
उत्तर-
(ग) आस्ट्रिया
प्रश्न 5.
‘काउंट काबूर’ को विक्टर इमैनुएल ने किस पद पर नियुक्त किया ?
(क) सेनापति
(ख) फ्रांस में राजदूत
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) गृहमंत्री
उत्तर-
(ग) प्रधानमंत्री
प्रश्न 6.
गैरीबाल्डी पेशे से क्या था ?
(क) सिपाही
(ख) किसान
(ग) जमींदार
(घ). नाविक
उत्तर-
(घ). नाविक
प्रश्न 7.
जर्मन राईन राज्य का निर्माण किसने किया था ?
(क) लुई 18वाँ
(ख) नेपोलियन बोनापार्ट
(ग) नेपोलियन III
(घ) बिस्मार्क
उत्तर-
(ख) नेपोलियन बोनापार्ट
प्रश्न 8.
“जालवेरिन” एक संस्था थी?
(क) क्रांतिकारियों की
(ख) व्यापारियों की
(ग) विद्वानों की
(घ) पादरी सामंतों का
उत्तर-
(ख) व्यापारियों की
प्रश्न 9.
“रक्त एवं लौह” की नीति का अवलम्बन किसने किया था?
(क) मेजनी
(ख) हिटलर
(ग) बिस्मार्क
(घ) विलियम I
उत्तर-
(ग) बिस्मार्क
प्रश्न 10.
फ्रैंकफर्ट की संधि कब हुई?
(क) 1864
(ख) 1866
(ग) 1870
(घ) 1871
उत्तर-
(घ) 1871
प्रश्न 11.
यूरोपवासियों के लिए किस देश का साहित्य एवं ज्ञान-विज्ञान प्रेरणास्रोत रहा?
(क) जर्मनी
(ख) यूनान
(ग) तुर्की
(घ) इंग्लैंड
उत्तर-
(ख) यूनान
प्रश्न 12.
1829 ई. की एड्रियानोपुल की संधि किस देश के साथ हुई ?
(क) तुर्की
(ख) यूनान
(ग) हंगरी
(घ) पोलैंड
उत्तर-
(क) तुर्की
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1.
1848 के फ्रांसीसो क्रांति के कारण क्या थे?
उत्तर-
- मध्यम वर्ग का शासन पर असीम प्रभाव
- समाजवाद का प्रसार
- गीजों नामक कट्टर एवं प्रतिक्रियावादी प्रधानमंत्री का विरोध
- लुई फिलिप की नीतियों का विरोध।
प्रश्न 2.
इटली, जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया की भूमिका क्या थी?
उत्तर-
आस्ट्रिया द्वारा इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किया जाने लगा जिसमें सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एलबर्ट की पराजय हो गयी। ऑस्ट्रिया के हस्ताक्षेप से इटली में जनवादी आन्दोलन को कुचल दिया गया और मेजनी की हार हुई। धीरे-धीरे इटली में जनजागरुकता और राष्ट्रीयता की भावना बढ़ने लगी। जर्मन राज्यों में बढ़ते हुए विद्रोह को आस्ट्रिया और प्रशा ने मिलकर दबाया।
प्रश्न 3.
यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ?
उत्तर-
नेपोलियन बोनापार्ट प्रथम ने जब इटली पर अधिकार किया तो उसने छोटे-छोटे राज्यों का अंत कर दिया। उसने रिगाओ, फेर्रारा, बोलोना तथा मोडेना को मिलाकर एक छोटे से गणराज्य की स्थापना कर दी थी। इसे “ट्रांसपार्निका गणतंत्र” कहा गया था। इससे वहाँ के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रादुर्भाव हुआ।
प्रश्न 4.
गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें!
उत्तर-
गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक और मेजनी के विचारों का समर्थक था परंतु बाद में काबूर के प्रभाव में आकर संवैधानिक राजतंत्र का पक्षधर बन गया। गैरीबाल्डी ने अपने कर्मचारियों तथा स्वयंसेवकों की सशस्त्र सेना बनायी जिसे ‘लाल कुर्ती’ के नाम से जाना जाता है। इसकी सहायता से 1860 ई. में नेपल्स के राजा को पराजित किया। इसके बाद सिसली पर विजय पायी। इन रियासतों की अधिकांश जनता बूर्वो राजवंश के निरंकुश शासन से तंग आकर गैरीबाल्डी का समर्थक बन गयी। गैरीबाल्डी ने यहाँ गणतंत्र की स्थापना की तथा विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ की सत्ता सम्भाली। बाद में उसने काबूर के परामर्श पर पोप पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने अपने सारे जीते हुए इलाकों को विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया। उसने विक्टर को संयुक्त इटली का राजा घोषित कर दिया और सार्डिनिया का नाम बदलकर इटली राज्य कर दिया।
प्रश्न 5.
विलियम के बगैर जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था, कैसे?
उत्तर-
जनवरी 1830 में विलियम प्रथम प्रशा का शासक बना। वह साहसी, व्यवहारकुशल और योग्य सैनिक था। सिंहासन पर बैठते ही उसने सैन्यशक्ति बढ़ानी शुरू कर दी और उसने जर्मन राष्ट्रों को एकता के सूत्र में बाँधने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर महान कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया। अतः विलियम प्रथम के बिना जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1.
इटली के एकीकरण में मेजनी काबुर और गैरीबाल्डी के योगदानों को बतायें।
उत्तर-
मेजनी काबूर का योगदान मेजनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। मेटरनिख युग के पतन के बाद भिन्न परिस्थिति में इटली में मेजिनी का प्रादुर्भाव हुआ। उसका योगदान निम्न है-
उसने “यंग इटली” नामक संस्था का गठन किया और युवा शक्ति में विश्वास करता था तथा कहा करता था कि “यदि समाज में क्रांति लानी है तो विद्रोह का नेतृत्व युवकों के हाथों में दे दो।” “यंग इटली” का एक मात्र उद्देश्य इटली को आस्ट्रिया के प्रभाव से मुक्त कर उसका एकीकरण करना था। उसने ‘जनता जनार्दन तथा इटली’ का नारा बुलंद किया। इससे युवाओं में एकता का सूत्रपात हुआ और दो वर्षों के भीतर “यंग इटली” के सदस्यों की संख्या साठ हजार तक पहुँच गयी। उग्रराष्ट्रवादी विचारों के कारण मेजिनी को निर्वासित होकर इंगलैंड जाना पड़ा। वहाँ से अपनी रचनाओं द्वारा इटली के स्वाधीनता संग्राम को प्रेरित करता रहा। इटली के एकीकरण में उसे पैगम्बर कहा गया है।
गैरीबाल्डो का योगदान-
काबूर का योगदान
गैरीबाल्डी को इटली का तलवार कहा जाता है, उसने “लाल कुर्ती” नामक नवयुवकों का एक संगठन कायम किया। इसकी सहायता से उसने 1860 ई. में नेपल्स के राजा को पराजित किया। बाद में सिसली और पोप को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद गैरीबाल्डी ने अपने सारे जीते हुए इलाकों को विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया और विक्टर को इटली का राजा घोषित कर दिया। पिडमौंट, सार्डिनिया का नाम बदलकर इटली राज्य कर दिया गया।
प्रश्न 2.
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-
1848 ई. को क्रांति के बाद यह स्पष्ट हो गया कि जर्मनी का एकीकरण क्रांतिकारियों के प्रत्यनों से नहीं होना था। उसका एकीकरण एक सैन्य शक्तिप्रधान साम्राज्य के रूप में शासकों द्वारा होना था और इस कार्य को पूरा किया बिस्मार्क ने।
जनवरी, 1830 में विलियम प्रथम प्रथा का शासक बना और उसने बिस्मार्क को चांसलर नियुक्त किया। बिस्मार्क प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था, पर आस्ट्रिया उसका विरोध कर रहा था। बिस्मार्क जर्मन एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्व को समझता था। अतः इसके लिए उसने ‘रक्त और लौह नीति’ का अवलम्बन किया। उसने अपने देश में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू कर दी! बिस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशा का सुदृढीकरण किया और इस कारण प्रशा, आस्ट्रिया से किसी मायने में कम नहीं रह गया। तब बिस्मार्क ने डेनमार्क, आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ युद्ध कर जर्मनी का एकीकरण करने में सफलता प्राप्त की।
प्रश्न 3.
राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर-
राष्ट्रवाद आधुनिक विश्व की राजनैतिक जागृति का प्रतिफल है। यह एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है। राष्ट्रवाद के उदय के कारण निम्न हैं
(i) यूरोप में पुनर्जागरण- पुनर्जागरण के कारण कला, साहित्य, विज्ञान इत्यादि पर गहरा प्रभाव पड़ा और लोगों के दृष्टि कोण में परिवर्तन हुए जिसने राष्ट्रवाद का बीजारोपण किया।
(ii) फ्रांस की राज्य क्रांति- इसने राजनीतिक को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया।
(iii) नेपोलियन का आक्रमण- नेपोलियन ने जर्मनी और इटली के राज्यों को भौगोलिक नाम की परिधि से बाहर कर उसको वास्तविक एवं राजनैतिक रूपरेखा प्रदान की। जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। दूसरी तरफ नेपोलियन की नीतियों के कारण फ्रांसीसी प्रभुता और आधिपत्य के विरुद्ध यूरोप में देशभक्तिपूर्ण विक्षोभ भी जगा।
नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँ आस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1814-15 में एकत्र हुई। जिनका उद्देश्य यूरोप में पुनः उसी व्यवस्था को स्थापित करना था, जिसे नेपोलियन के युद्धों.और विजयों ने अस्त-व्यस्त कर दिया था।
प्रश्न 4.
जुलाई 1830 की क्रांति का विवरण दें।
उत्तर-
चार्ल्स दशम् एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था, जिसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता तथा जनतंत्र भावनाओं को दबाने का कार्य किया। उसने अपने शासनकाल में संवैधानिक लोकतंत्र की राह में कई गतिरोध उत्पन्न किये। उसके द्वारा प्रतिक्रियावादी पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। पोलिग्नेक ने लूई 18वें द्वारा स्थापित समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्यवर्ग की स्थापना तथा उसे विशेषाधिकारों से विभूषित करने का प्रयास किया।
उसके इस कदम को उदारवादियों ने चुनौती तथा क्रांति के विरुद्ध षड्यंत्र समझा। प्रतिनिधि सदन एवं दूसरे उदारवादियों ने पोलिग्नेक के विरुद्ध गहरा असंतोष प्रकट किया। चार्ल्स दशमा ने इस विरोध की प्रतिक्रियास्वरूप-25 जुलाई 1830 ई. को चार अध्यादेशों के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई और फ्रांस में 28 जुलाई से गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गया। इसे ही जुलाई 1830 की क्रांति कहते हैं। इसके साथ ही चार्ल्स दशम फ्रांस की राजगद्दी को त्याग कर इंगलैंड चला गया और इस प्रकार फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया और आर्लेयेस वंश के लुई फिलिप को सत्ता राप्त हुई।
प्रश्न 5.
यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर-
यूनान तुर्की साम्राज्य के अधीन था। फलतः तुर्की शासन से स्वयं को अलग करने के लए आन्दोलन चलाये जाने लगे। यूनान सारे यूरोपवासियों के लिए प्रेरणा एवं सम्मान का पर्याय था, जिसकी स्वतंत्रता के लिए समस्त यूरोप के नागरिक अपनी सरकार की तटस्थता के बावजूद भी उद्यत थे। इंगलैंड का महान कवि लार्ड बायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति की लहर दौड़ने लगी। इधर रूस भी अपनी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा तथा धार्मिक एकता के कारण यूनान की स्वतंत्रता का पक्षधर था।
यूनान में स्थिति तब विस्फोटक बन गयी जब तुर्की शासकों द्वारा यूनानी स्वतंत्रता संग्राम में संलग्न लोगों को बुरी तरह कुचलना शुरू किया गया। 1821 ई. में अलेक्जेंडर चिप-सिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया। परन्तु वह मेटरनिख के दबाव में खुलकर सामने नहीं आ पा रहा था। परन्तु जब जार निकोलस आया तो उसने खुलकर यूनानियों का समर्थन किया। अप्रैल 1826 में ग्रेट ब्रिटेन और रूस में एक समझौता हुआ कि वे तुर्की-यूनान विवाद में मध्यस्थता करेंगे।
फ्रांस का राजा चार्ल्स दशम भी यूनानी स्वतंत्रता में दिलचस्पी लेने लगा। 1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंगलैंड, फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया। इस प्रकार तीनों देशों की सेना नावारिनो की खाड़ी में तुर्की के खिलाफ एकत्र हुई। युद्ध में तुर्की की सेना पराजित हुई और अंततः 1829 में एड्रियानोपल की संधि हुई। जिसके तहत तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्तता देने की बात हुई। परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया। उधर इंगलैंड तथा फ्रांस भी यूनान पर रूस के प्रभाव की अपेक्षा इसे स्वतंत्र देश बनाना बेहतर मानते थे। फलतः 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ओटो’ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।
Bihar Board Class 10 History यूरोप में राष्ट्रवाद Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘रक्त और तलवार’ की नीति किसने अपनाई ?
उत्तर-
बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए ‘रक्त और तलवार’ की नीति अपनाई।
प्रश्न 2.
अन्सर्ट रेनन ने राष्ट्रवाद को किस रूप में परिभाषित किया ?
उत्तर-
अन्सर्ट रेनन ने राष्ट्रवाद की नई व्याख्या की जिसके अनुसार राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है।
प्रश्न 3.
वियना कांग्रेस (सम्मेलन) में फ्रांस में किस राजवंश की पुनर्स्थापना की गई?
उत्तर-
वियना कांग्रेस 1815 द्वारा फ्रांस में बूबों राजवंश की पुनर्स्थापना की गई।
प्रश्न 4.
जर्मन राइन महासंघ की स्थापना किसने की?
उत्तर-
जर्मन राइन महासंघ की स्थापना नेपोलियन ने की।
प्रश्न 5.
चार्टिस्ट आंदोलन किस देश में हुआ?
उत्तर-
चार्टिस्ट आंदोलन इंगलैंड में हुआ था।
प्रश्न 6.
1830 की जुलाई क्रांति का फ्रांस पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
1830 ई. की जुलाई क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में निरंकुश राजशाही का स्थान सांविधानिक गणतंत्र ने ले लिया।
प्रश्न 7.
फ्रैंकफर्ट संसद की बैठक क्यों बुलाई गई ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर-
फ्रैंकफर्ट ससंद की बैठक का मुख्य उद्देश्य जर्मन राष्ट्र के निर्माण की योजना बनाना था। इसके अनुसार जर्मन राष्ट्र का प्रधान एक राजा को बनाना था जिसे संसद के नियंत्रण में काम करना था तथा जर्मनी का एकीकरण उसी के नेतृत्व में होना था। लेकिन जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ ने यह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो एसेंबली भंग हो गई, जर्मनी
का एकीकरण पूरा नहीं हो सका।
प्रश्न 8.
अन्सर्ट रेनन ने राष्ट्रवाद को किस रूप में परिभाषित किया ?
उत्तर-
फ्रांसीसी दार्शनिक अन्सर्ट रेनन ने राष्ट्रवाद की एक नई और व्यापक परिभाषा दी। उनके अनुसार राष्ट्र समान भाषा, नस्ल, धर्म या क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्रवाद के लिए अतीत में समान गौरव का होना, वर्तमान में एक समान इच्छा, संकल्प का होना, साथ मिलकर महान काम करना और आगे, ऐसे काम और करने की इच्छा एक जनसमूह होने की यह सब जरूरी शर्ते हैं। अतः, राष्ट्र एक बड़ी और व्यापक एकता है …….. उसका अस्तित्व रोज होनेवाला जनमत-संग्रह है ……….।
प्रश्न 9.
फ्रांसीसी क्रांति के बाद राष्ट्र का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति के बाद पुरातन युग का अंत हुआ और नए आधुनिक युग का आरंभ हुआ। फ्रांसीसी क्रांति के बाद राष्ट्र का निर्माण राष्ट्रवादी विचारों के आधार पर हुआ। निरंकुश राजतंत्र का अंत हुआ और प्रजातंत्र की स्थापना की गई। मानव एवं नागरिक अधिकारों की घोषण कर सामाजिक एवं आर्थिक समानता स्थापित की गई। स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के सिद्धांत पर राष्ट्र का निर्माण किया गया।
प्रश्न 10.
उदारवादी राष्ट्रवाद को किस रूप में देखते थे?
उत्तर-
उदारवादी राष्ट्रवाद को ‘आजाद’ के अर्थ में देखते थे। उदारवादी राष्ट्रवाद के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के समक्ष सभी की बराबरी, निरंकुश राजतंत्र के स्थान पर संविधान
और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना, निजी संपत्ति की सुरक्षा, प्रेस की आजादी, आर्थिक क्षेत्र में मुक्त व्यापार आदि राष्ट्रीय से संबंधित विचार के समर्थक थे।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने सामूहिक पहचान का भाव बढ़ाने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति आरंभ होने के साथ ही क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय और सामूहिक पहचा की भावना जगाने वाले कार्य किए। पितृभूमि और नागरिक जैसे शब्दों द्वारा फ्रांसीसियों में एक सामूहिक भावना और पहचान बढ़ाने का प्रयास किया गया। क्षेत्रीय भाषा के स्थान पर फ्रेंच भाषा को प्रोत्साहित किया गया।
प्रश्न 2.
यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के कारणों और परिणामों का उल्लेख करें?
उत्तर-
यूनान एक प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र था। इसका अतीत गौरवमय था। पुनर्जागरण काल में यूनानी सभ्यता-संस्कृति अनेक राष्ट्रों के लिए प्रेरणादायक बन गई। लेकिन 15वीं शताब्दी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया। इस साम्राज्य के अन्तर्गत विभिन्न भाषा, धर्म और नस्ल के निवासी थे। तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य के प्रति उनमें लगाव की भावना नहीं थी क्योंकि उन्हें तुर्की ने अपने साम्राज्य में आत्मसात करने का प्रयास नहीं किया।
यूनानी स्वतंत्रता आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे18वीं सदी के अंतिम चरण तक यूनान में राष्ट्रवादी भावना बलवती होने लगी। नेपोलियन के युद्धों और वियना काँग्रेस ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया। राष्ट्रवादी भावना के विकास में धर्म की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी। 18वीं शताब्दी के अंत में यूनान में बौद्धिक आन्दोलन भी हुआ। करेंइस नामक दार्शनिक ने यूनानियों में राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रचार किया। कान्सेटेण्टाइन रीगास नामक एक नेता ने गुप्त समाचारपत्रों का प्रकाशन कर यूनानियों में तुर्की से स्वतंत्र होने की भावना प्रज्जवलित की।
यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के निम्न परिणाम हुए यूनानियों ने लंबे और कठिन संघर्ष के बाद ऑटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई। यूनान के स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र का उदय हुआ। यद्यपि गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी परन्तु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उद्देश्य मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई। यूनानियों के विजय से 1830 के क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली। बोस्कन क्षेत्र के अन्य इसाई राज्यों में भी राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ करने की चाह बढ़ी।
प्रश्न 3.
जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने कौन-सी नीति अपनाई। इसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के प्रयासों का फल था। उसने अपनी कूटनीति और सैनिक शक्ति के सहारे जर्मनी का एकीकरण किया। वह प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। अतः, उसने प्रशा को सैनिक रूप से सशक्त करने का प्रयास किया। जर्मनी ‘ को एक सूत्र में बाँधने के लिए बिस्मार्क ने रक्त और तलवार की नीति अपनाई। उसका विचार था कि जर्मनी के एकीकरण में सफलता राजकुमारों द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है न कि लोगों द्वारा। बिस्मार्क के जर्मन एकीकरण का उद्देश्य तीन युद्धों द्वारा पूर्ण हुआ जो 1864 से 1870 के सात वर्ष के अल्प समय में लड़े गए। जर्मनी के एकीकरण में प्रशा के राजा विलियम प्रथम का बहुत हाथ रहा। बिस्मार्क के नीतियों के परिणामस्वरूप यूरोप के नक्शे पर एकीकृत जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ।
प्रश्न 4.
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने सामूहिक पहचान का भाव बढ़ाने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
यूरोप में राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के साथ फ्रांस में हुई। फ्रांसीसी क्रांति के प्रारंभ के साथ ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय और सामूहिक पहचान की भावना जगानेवाले अनेक कार्य किए
- पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों के द्वारा संयुक्त समुदाय के रूप में फ्रांसीसियों में एक सामूहिक भावना और पहचान बढ़ाने का प्रयास किया गया।
- एक नया संविधान बनाकर सभी नागरिकों को समान अधिकार देकर समानता की
स्थापना पर बल दिया गया। - एक नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा चुना गया जिसने पहले के राजध्वज की जगह ले ली।
- राष्ट्र के नाम पर एकजुटता के लिए राष्ट्रभक्ति गीत एवं राष्ट्रगान अपनाया गया।
- पुरानी संस्था स्टेट्स जेनरल का चुनाव सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा किया गया और उसका नाम बदलकर नेशनल एसेंबली कर दिया गया।
- पेरिस की फ्रेंच भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया गया।
- आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए। नाप-तौल के लिए एक तरह की व्यवस्था की गई।
प्रश्न 5.
नेपोलियन की राष्ट्रवाद के विकास में क्या भूमिका थी?
उत्तर-
नेपोलियन बोनापार्ट (1789-1821) ने अपने शासनकाल में राष्ट्रवास के प्रसार के लिए अनेक सुधार संबंधी कार्य किए
- नेपोलियन ने विशेषाधिकार तथा आर्थिक असामानता को दूर कर समानता की स्थापना की।
- करों में समानता स्थापित की गई।
- नेपोलियन ने 1804 में नेपोलियन संहिता लागू कर कानून के समक्ष सबको बराबरी का अधिकार दिया।
- देशभक्तों, विद्वानों और कलाकारों को सम्मानित करना प्रारंभ किया।
- नेपोलियन ने एक समान शुल्क, समान माप तौल प्रणाली और एक मुद्रा के द्वारा राष्ट्र को संगठित करने का प्रयास किया।
- नागरिकों की संपत्ति संबंधी अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की।
- यातायात और संचार व्यवस्था में सुधार लाने का प्रयास किया।
- सामंती व्यवस्था समाप्त कर किसानों को भू-दासत्व से मुक्ति दिलाया।
- नेपोलियन राष्ट्र निर्माण में शिक्षा को महत्वपूर्ण मानता था। अतः, शिक्षा प्रणाली की पुनर्व्यवस्था की। सेकेंडरी स्कूल तथा विश्वविद्यालयों से शिक्षित होने के कारण विद्यार्थियों में राष्ट्रप्रेम एवं देशभक्ति जैसे राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ।
- उसने कई धार्मिक सुधार किए। चर्च की संपत्ति को जब्त किया और उस पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया। उसने अनेक सुधारों द्वारा फ्रांस में राष्ट्रवादी भावना का विकास किया जिससे प्रेरणा लेकर यूरोप के अन्य देशों में राष्ट्रवादी भावना जागृत हुई।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यूरोपीय राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था?
उत्तर-
यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति की अहम भूमिका रही। कला, साहित्य और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया। इसके कई उदाहरण हमें फ्रांस, इटली, यूनान और जर्मनी में देखने को मिलते हैं। राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रसा कलाकारों, विचारकों, साहित्यकारों, कवियों, संगीतकारों आदि ने संस्कृति को आधार बनाउ किया। इसके निम्नलिखित उदाहरण यूरोप में देखने को मिलते हैं।
(i) फ्रेडरिक सारयू का कल्पनादर्श–फ्रांसीसी कलाकार फ्रेंडिक सारयू ने एक कल्पनादश की रचना अपने चित्रों के द्वारा की जिसमें आदर्श समाज की कल्पना की गई। इन चित्रों में विभिन्न राष्ट्रों की पहचान कपड़ों और प्रतीक चिह्नों द्वारा एक राष्ट्र राज्य के रूप में की गई। इस प्रकार 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीयता के विकास में सारयू की कल्पनादर्श ने प्रेरणा का काम किया। कलाकारों ने मानवीय रूप में राष्ट्र को प्रस्तुत किया। राष्ट्र की कल्पना नारी रूप में की। फ्रांस में मारीआन को एवं जर्मनी में जर्मेनिया को राष्ट्रवाद के प्रतीक रूप में नारी का चित्रांकन हुआ।
(ii) रूमानीवाद-रूमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन था जो एक विशिष्ट प्रकार के राष्ट्रवाद का प्रचार किया। आमतौर पर रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क और विज्ञान के महिमामंडन की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टि और रहस्यवादी भावनाओं पर अधिक बल दिया। उनका प्रयास था कि सामूहिक विरासत और संस्कृति को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
(iii) लोक परंपराएँ-जर्मनी के चिंतक योहान गॉटफ्रीड का मानना था कि सच्ची जर्मन संस्कृति आम लोगों में निहित थी। राष्ट्र की अभिव्यक्ति लोकगीतों, लोकनृत्यों और जनकाव्य से प्रकट होती थी इसलिए राष्ट्र निर्माण के लिए इनका संकलन आवश्यक था। निरक्षर लोगों में राष्ट्रीय भावना संगीत, लोककथा के द्वारा जीवित रखी गई। कैरोल कुर्पिस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया।
(iv) भाषा भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी कब्जे के बाद पोलिश भाषा को स्कूलों में बलपूर्वक हटाकर रूसी भाषा को जबरन लादा गया। 1831 के पोलिश विद्रोह को यद्यपि रूस ने कुचल दिया। परंतु राष्ट्रवाद के विरोध के लिए भाषा को एक हथियार बनाया। धार्मिक शिक्षा और चर्च में पोलिश भाशा का व्यवहार किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि पादरियों और विशपों को दंडित कर साइबेरिया भेज दिया गया। पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष
के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।
प्रश्न 2.
1848 में उदारवादी क्रांतिकारियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को बढ़ावा दिया?
उत्तर-
यूरोप में 1848 का वर्ष क्रांतियों का वर्ष था इस वर्ष फ्रांस, ऑस्ट्रिया, हंगरी, इटली, पोलैंड, जर्मनी आदि देशों में क्रांतियाँ हुई। इन क्रांतियों के होने में अनेक परिस्थितियों ने योगदान किया
- निरंकुश शासकों का निकम्मा शासन
- यूरोप की आर्थिक दशा शोचनीय
- राजनीतिक जीवन अस्थायी
- यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास
- सामाजिक विद्वेष
- राजनीतिक दलों द्वारा प्रजा में उत्तेजनात्मक भावना जागृत करना
1848 की क्रांति का यूरोपीय देशों की सरकार द्वारा दमन कर दिया गया और इसे आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हुई। परंतु इसे पूर्णरूप से असफल भी नहीं कहा जा सकता। इस क्रांति से यूरोप की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। उदारवादी क्रांतिकारियों की 1848 की क्रांति का अर्थ था राजतंत्र का अंत और गणतंत्र की स्थापना। इसके बाद उदारवादी क्रांतिकारियों ने निम्नलिखित विचारों को बढ़ावा दिया।
उदारवादियों ने जनता के असंतोष का फायदा उठाया और एक राष्ट्र के निर्माण की मांगों को आगे बढ़ाया। यह राष्ट्र-राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की स्वतंत्रता जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था। उदारवादी क्रांतिकारियों द्वारा सार्वजनिक मताधिकार पर आधारित जनप्रतिनिधि सीमाओं के निर्माण, भू-दास और बंधुआ मजदूरी की प्रथा समाप्त करने की मांग की गई। उदारवादी आंदोलन के अंदर महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करने की मांग बढ़ने लगी। उदारवादी मध्यमवर्ग के स्त्री-पुरुष ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड़ दिया। इसी समय समाजवादी (साम्यवादी) विचार का प्रचार उदारवादियों द्वारा की गई। 1848 में खाद्य सामग्री का अभाव तथा बेरोजगारी की बढ़ती हुई समस्या से आम जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। इस संकट के समाधान के लिए उदारवादी क्रांतिकारियों द्वारा धरना प्रदर्शन किया गया।
प्रश्न 3.
इटली के एकीकरण के विभिन्न चरणों को इंगित करें।
उत्तर-
इटली का एकीकरण चार चरणों में पूरा हुआ। आरंभिक चरण में इटली के एकीकरण के पैगंबर मेजिनी का महत्त्वपूर्ण योगदान था। विक्टर इमैनुएल के शासनकाल से इटली के एकीकरण का वास्तविक प्रयास आरम्भ हुआ। जिसमें कावूर और गैरीबाल्डी का महत्त्वपूर्ण योगदान था। इटली के एकीकरण के चार चरण निम्नलिखित हैं-
(i) ज्युसेपे मेसिनी के नेतृत्व में मेजिनी गणतंत्रात्मक दल का नेता था। उसने अपने निर्वासन काल में गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए ‘यंग इटली’ नामक और ‘यंग यूरोप’ की स्थापना की थी। यद्यपि इटली के एकीकरण के लिए 1831 तथा 1848 में दो क्रांतिकारी प्रयास किए गए थे, परंतु वे दोनों असफल रहे।
(ii) काउंट काबूर के नेतृत्व में काबूर 1858 में पीडमौंट का मंत्री प्रमुख था। उसका मुख्य लक्ष्य ऑस्ट्रिया से इटली के उद्धार को प्रभावित करना था। वह न तो क्रांतिकारी था और न ही गणतंत्रवादी परंतु उसे इटली का वास्तविक निर्माता माना जाता है। उसने फ्रांस के साथ एक चतुर कूटनीतिक गठबंधन कायम किया और इसके माध्यम से 1859 में ऑस्ट्रियाई सेवाओं को परास्त करने में सफलता प्राप्त की।
(iii) गैरीबाल्डी के नेतृत्व में- गैरीबाल्डी ‘लाल कुर्ती’ नामक क्रांतिकारी आंदोलन का नायक था। 1860 में उसने दक्षिणी इटली तथा दो सिसलियों की राजधानी में पदयात्रा की और स्थानीय कृषकों का समर्थन प्राप्त कर स्पेन के शासकों को हटाने में सफल हुआ।
(iv) विक्टर इमैनुएल द्वितीय 1861 में रोम और वेनेशिया को छोड़कर समस्त इटली की इतालवी संसद के प्रतिनिधि तूरिन में एकत्र हुए और उन्होंने इटली के राजा के रूप में विक्टर इमैनुएल द्वितीय को विधिवत रूप से स्वीकार किया। 1870 में विक्टर इमैनुएल ने रोम पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। 1875 में रोम को इटली की राजधानी बनाया गया।
प्रश्न 4.
जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
जर्मन का एकीकरण निम्न प्रकार हुआ-
(i) 1848 की फ्रैंकफर्ट संसद- प्रशा ने नरेश फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ के नेतृत्व में फ्रैंकफर्ट संसद ने जर्मनी के एकीकरण के लिए भरसक प्रयास किए परंतु वे असफल रहे। यद्यपि जर्मन लोगों में 1848 के पहले ही राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो चुकी थी। राष्ट्रीयता की भावना मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में बहुत अधिक है।
(ii) प्रशा के नेतृत्व में एकीकरण– राष्ट्र निर्माण की इस उदारवादी विचारधारा को राजशाही और फौजी ताकतों के विरुद्ध कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा जिन्हें प्रशा के बड़े भूस्वामियों (Junkers) ने भी समर्थन दिया था उसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। प्रशा का प्रधानमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क इस प्रक्रिया का जनक था जिसने प्रशा की सेना और नौकरशाही की मदद ली।
(iii) बिस्मार्क का योगदान बिस्मार्क प्रशा के उन महान सपूतों में से एक था जिसने सेना और नौकरशाही की मदद से जर्मनी के एकीकरण का उत्कृष्ट प्रयास किया। उसका मानना था कि जर्मनी के एकीकरण में सफलता राजकुमारों द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है न कि लोगों द्वारा। वह प्रशा के जर्मनी में विलय द्वारा नहीं बल्कि प्रशा का जर्मनी तक विस्तार के द्वारा इस उद्देश्य
को पूरा करना चाहता था।
(iv) तीन युद्ध – बिस्मार्क के जर्मन-एकीकरण का उद्देश्य सात वर्ष में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों द्वारा पूर्ण हुआ जो 1864 से 1870 के बीच लड़े गए।
(v) जर्मनी के एकीकरण की अंतिम प्रक्रिया- उपर्युक्त युद्धों का परिणाम प्रशा की जीत के रूप में आया जिससे एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई। 18 जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा काइजर विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट बनाया गया और नए जर्मन साम्राज्य की घोषणा की गई।
प्रश्न 5.
“ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास शेष यूरोप की तुलना में भिन्न था।” स्पष्ट करें। .
उत्तर-
ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी क्रांति का परिणाम नहीं था बल्कि शांतिपूर्वक संसद के माध्यम से हुआ। अतः, ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का इतिहास यूरोप के शेष देशों से भिन्न था। इसके कई कारण थे
(i) 18वीं शताब्दी के पहले ब्रिटेन राष्ट्र नहीं था। ब्रितानी द्वीपसमूह में रहनेवाले निवासी अंग्रेज, वेल्स, स्कॉटिश या आयरिश की मुख्य पहचान नृजातीय थी। इन सभी की अपनी-अपनी अलग सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थी।
(ii) ब्रिटिश राष्ट्र की राजनैतिक शक्ति और आर्थिक समृद्धि में जैसे-जैसे वृद्धि हुई वैसे-वैसे वह द्वीपसमूहों के अन्य राष्ट्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करते हुए वहाँ आंग्ल संस्कृति का विकास किया।
(iii) एक लंबे संघर्ष के बाद 1688 में रक्तहीन या गौरवपूर्ण क्रांति के माध्यम से समस्त शक्ति आंग्ल संसद के हाथों में आ गई। संसद के द्वारा ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण हुआ जिसका केंद्र इंगलैंड था।
(iv) स्कॉटलैंड और आयरलैंड पर प्रभाव स्थापित कर इंगलैंड ने स्कॉटलैंड के साथ 1707 के ऐक्ट ऑफ यूनियन द्वारा ‘यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन हुआ।
(v) ब्रितानी पहचान के विकास के लिए स्कॉटलैंड की खास संस्कृति एवं राजनीतिक संस्थाओं.को दबाया गया। उन्हें अपनी गोलिक भाषा बोलने और अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने से रोका गया। अनेकों स्कॉटिशों को अपना वतन छोड़ने को बाध्य किया गया।
Bihar Board Class 10 History यूरोप में राष्ट्रवाद Notes
- राष्ट्रवाद आधुनिक विश्व की राजनैतिक जागृति का प्रतिफल है। यह एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है।
- यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास में फ्रांस की राज्यक्रांति तत्पश्चातनेपोलियन के आक्रमणों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत क्रांति के पूर्व की व्यवस्था को स्थापित करने के लिएबर्वो राजवंश को पुनर्स्थापित किया गया तथा लुई 18वाँ फ्रांस का राजा बना।
- 28 जून 1830 ई. से फ्रांस में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। इसे ही जुलाई 1830 की फ्रांस क्रांति कहते हैं। परिणमतः चार्ल्स-X फ्रांस की राजगद्दी त्याग कर इंगलैंड पलायन कर गया और इस प्रकारबुर्बो वंश के शासन का अन्त हो गया।
- बूर्वो वंश के स्थान पर आर्लियस वंश को गद्दी सौंपी गयीलुई फिलिप उसका शासक बना।
- 1871 ई. तक इटली का एकीकरण मेजनी, काबूर, गैरी-बाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं एवं विक्टर इमैनुएल जैसे शासक के योगदानों के कारण पूर्ण हुआ।
- 1871 में ही जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के राजनैतिक मानचित्र में पाया जिसमेंजालवेरिन विस्मार्क की भूमिका मुख्य थी।
- राष्ट्रवाद की भावना का बीजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल से प्रारंभ हो चुका या परंतु उन्नत रूप में 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति से प्रकट हुई।
- नेपोलियन ने जर्मनी और इटली के राज्यों को भौगोलिक नाम की परिधि से बाहर कर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूपरेखा प्रदान की जिससेइटली और जर्मनी का एकीकरण हुआ।
- नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 में एकत्र हुई।
- वियना काँग्रेस (1815) का मुख्य उद्देश्य यूरोप में पुनः उसी व्यवस्था को स्थापित करना
था जिसेनेपोलियन ने समाप्त कर दिया था। - सन् 1815 ई. केवियना सम्मेलन की मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया जो घोर प्रतिक्रियावादी था।
- वियना सम्मेलन में शामिल हुए देशों में ब्रिटेन रूसप्रशा औरऑस्ट्रिया मुख्य थे।
- गणतंत्र एवं प्रजातंत्र जो फ्रांसीसी क्रांति की देन थी, उसका विरोध करना और पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना करना मेटरनिख व्यवस्था का उद्देश्य था।
- 1848 ई. की फ्रांसीसी क्रांति नेमेटरनिख युग का अंत कर दिया।
- विलियम प्रथम प्रशा का शासक था जिसने. विस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया।
- “रक्त और लौह की नीति” का अवलम्बन बिस्मार्क ने किया।
- ऑस्ट्रिया एवं प्रशा के बीच 1866 ई. में सेंडोवा का युद्ध’ हुआ।