Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions गद्य Chapter 3 मंगर

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions गद्य Chapter 3 मंगर

Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions गद्य Chapter 3 मंगर

मंगर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगर कौन था?
उत्तर-
मंगर लेखक बेनीपुरी जी का स्वाभिमानी हलवाहा था।

प्रश्न 2.
मंगर का स्वभाव कैसा था?
उत्तर-
मंगर का स्वभाव रूखा और बेलौस था।

प्रश्न 3.
भकोलिया कौन थी?
उत्तर-
भकोलिया मंगर की पली थी।

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प्रश्न 4.
मंगर का कद्र सभी क्यों करते थे?
उत्तर-
मंगर मेहनती और ईमानदार था। उसकी मेहनत और ईमानदारी के कारण सभी उसका … कद्र करते थे।

प्रश्न 5.
लेखक अपने को टुअर क्यों कहा है?
उत्तर-
लेखक के माता-पिता बचपन में ही मर गए थे अतः लेखक अपने को टुअर कहा है।

प्रश्न 6.
मंगर किस वेश-भूषा में रहता था?
उत्तर-
मंगर हमेशा कमर से भगवा लपेटे रहता था।

प्रश्न 7.
मंगर बैल को क्या समझता था?
उत्तर-
मंगर बैल को महादेव समझता था।

प्रश्न 8.
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1902 ई. में

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प्रश्न 9.
रामवृक्ष बेनीपुरी ने अधिकांश साहित्य रचना कहाँ की थी?
उत्तर-
जेल की सलाखों के पीछे।।

प्रश्न 10.
बेनीपुरी ग्रंथावली कितने खण्डों में है?
उत्तर-
दस खण्ड।

प्रश्न 11.
तरुण भारत और किसान मित्र (साप्ताहिक) के संपादक कौन थे?
उत्तर-
रामवृक्ष बेनीपुरी।

प्रश्न 12.
बेनीपुरी की रचना कौन-सी है।
उत्तर-
गोदान।

प्रश्न 13.
“गेहूँ और गुलाब” और “चिता के फूल” किसकी रचना है?
उत्तर-
रामवृक्ष बेनीपुरी।।

मंगर लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगर के रूप-रंग का रेखाचित्र लिखिए।
उत्तर-
मंगर एक काला कलूटा शरीर, एक सम्पूर्ण सुविकसित मानव पुतले के समान था। लगातार मेहनत करने से उसकी मांसपेशियों में उभार पैदा हो गया था लेकिन पहलवानों की तरह नहीं।

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कपड़ों से मंगर को वहशत थी वह हमेशा कमर से भगवा ही लपेटे रहता था उसको बराबर धोतियाँ मिलती थीं लेकिन धोतियाँ हमेशा उसके सिर का ही सिंगार बनी रही। वह मुरेठे की तरह लपेटे रहता था। कुर्ता केवल कहीं संदेश लेकर जाते समय पहनता था। साधारणतः वह हमेशा नंग-धड़ग रहता था।

प्रश्न 2.
मंगर का स्वाभिमान किन कारणों से था? स्पष्ट करें।
उत्तर-
मंगर किसी की बात कभी बर्दाश्त नहीं करता था। एक बार मुसीबत काटने अपने बेटी के घर चला गया। दामाद की बेरूखी देखकर मंगर के स्वाभिमान को ठेस लगी वह वहाँ से भाग आया। वह अपने नेक स्वभाव के कारण लेखक के पिता जी का चहेता था और वह हमेशा उनसे अदब से बातें करता था लेकिन दूसरे किसी को वह अपने से बड़ा नहीं मानता था और बराबरी से बातें करता था। लेकिन किसी की मजाल नहीं थी कि उसको बदजुबान कहे। वह अपनी मेहनत और ईमानदारी के कारण सबके सिर आँखों पर बैठा था और सभी उसकी कदर करते थे।

प्रश्न 3. लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का मंगर के साथ कैसा संबंध था? लेखक की भावनाओं को लिखें।

उत्तर-लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के अनुसार, मंगर का स्वभाव रूखा और बेलौस था। वह किसी के साथ लल्लो-चप्पो नहीं करता और न लाई-लपटाई में रहता था। दो टूक बातें करता था। मंगर लेखक रामवृक्ष पर स्नेह की नजर रखता था। क्योंकि लेखक की माँ और पिता चल बसे थे। वह अपने परिवार में टुअर होकर रह गया था। वह अपने कंधा पर बैठा कर घुमाया करता था। कभी लेखक बचपन में ननिहाल जाते थे तो वह साथ जाता था। लेखक को घोड़ी पर बैठा कर ले जाता था और स्वयं पैदल चलता था। वह हमेशा लेखक के पिता के प्रेम की याद करता था और उनकी मृत्यु को अपनी फूटी तकदीर मानता था। क्योंकि उसको वह नौकर नहीं समझते थे।

प्रश्न 4.
मंगर की अर्धांगिनी-भकोलिया का परिचय प्रस्तुत करें।।
अथवा,
भकोलिया कौन थी? उसके चरित्र का रेखाचित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर-
भकोलिया मंगर की अर्धांगिनी और एक आदर्श जोड़ी थी। वह जमुनिया रंग की काली औरत थी। वह दो बच्चों की माँ बन कर स्त्रीत्व के गुण से वंचित हो गई थी। लेकिन वह अपने पति का बहुत आदर और सेवा करती थी। जब मंगर बूढ़ा हो गया और काम से बैठ मान गया था तो वह कुछ हाथ-पाँव चलाकर भोजन संग्रह कर लेती और दोनों प्राणियों का गुजर बसर चला रही थी।

वह मंगर की तरह, एक आदर्श चरित्र वाली स्त्री थी। वह किसी से मुँह नहीं लगाती थी और न किसी की हेठी बरदाश्त करती थी। यदि कभी किसी ने छेड़ने की भूल कर दी तो वह काली साँपिन के फन की तरह फुफकारती थी लेकिन दर्शन और विष का आरोप उसके माथे पर न था।

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प्रश्न 5.
‘मंगर के लिए ये बैल, बैल नहीं, साक्षात् महादेव थे’। कैसे?
उत्तर-
‘मंगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित एक मजदूर का शब्द-चित्र है-शब्दों से खींचा गया चित्र।

मंगर एक स्वाभिमानी कृषक मजदूर था। वह रूखा और बेलौस था। दो टूक बातें, चौ-टूक व्यवहार।

मालिक के घर उसे डेढ़ रोटी मिलती। आधी रोटी के दो टुकड़े कर दोनों बैलों को खिला देता। दोनों बैलों को शंकर मानता, महादेव मुँह ताके और वह खाए-यह कैसे होगा? मंगर मजदूर के लिए बैल, बैल नहीं, साक्षात् महादेव थे। पशुओं के प्रति दया भाव मंगर मजदूर की विशेषता थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित ‘मंगर’ पाठ का सारांश लिखें।
उत्तर-
कथा के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी गद्य साहित्य की विधा में सजीव ओजपूर्ण शैली के लेखक रहे हैं।

बेनीपुरी जी ने ‘मंगर’ शब्द-चित्र के माध्यम से परिश्रमी किन्तु अन्दर से सुन्दर, कृषक मजदूर मंगर की दारुण जीवन कथा को अत्यन्त मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की है। मंगर बाहर से भले ही काला-कलूटा हो लेकिन उसकी आत्मा की उज्वलता उसके चेहरे की कालिमा को अपूर्व आभा से आलोकित कर देती है। यह आभा उसी के चेहरे पर आ सकती है जो अपनी डेढ़ रोटियों में भी आधी रोटी के टुकड़े कर मालिक के ही दोनों बैलों को दे दे।

बेनीपुरी जी ने मंगर और उसकी पत्नी भकोलिया का चित्र इस तरह उपस्थित किया है कि अगर समाज में सभी उन दोनों से सबक लें तो मनुष्य स्वाभिमानी बन सकता है और वह शान से जीवन गुजार सकता है। जैसे-मंगर परिश्रमी है, किसी की गलत बात को बर्दाश्त नहीं करता है बैल को महादेव कहता है। भकोलिया भी उसका आदर करती है।

बेनीपुरी को मंगर से मुलाकात का अन्तिम पड़ाव बड़ा ही दर्दनाक है, एक आँख चली गई, लकवा मार गया। जीवन में कभी रोया नहीं शान से जिया आज मंगर रो रहा है लेखक को विस्मय हो रहा है जिसका सजीव चित्रण पाठक को भी रोमांचित कर देता है।

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प्रश्न 2.
रामवृक्ष बेनीपुरी के जीवन और व्यक्तित्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 ई. में हुआ। वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण 1920 में मैट्रिक से आगे पढ़ाई न कर पाए।।

एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में खादी का तिरंगा लेकर चलने वाले बेनीपुरी के साहित्य का अधिकांश भाग जेल की सलाखों के पीछे रचा गया। गद्य साहित्य की विविध विधाओं में अपनी सजीव ओजपूर्ण शैली के कारण इनकी गणना प्रथम श्रेणी के गद्यकारों में की जाती है।

संपादक के रूप में भी आपने तरुण भारत (साप्ताहिक), किसान मित्र (साप्ताहिक), बालक (मासिक), युवक (मासिक), लोकसंग्रह, कर्मवीर, योगी, जनता, हिमालय, नई धारा, चुन्नु-मुन्नू इत्यादि का संपादन किया। संपादकीय लेखों में आप मुक्त एवं निर्भीक विचार देते रहे।

आपकी प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाओं की संख्या साठ से अधिक है। बेनीपुरी ग्रंथावली को दस खण्डों में प्रकाशित करने का प्रयास जारी है और चार खण्ड प्रकाशित हो चुके है।। माटी की मूरतें, पतितों के देश में, लालतारा, चिता के फूल, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, अम्बपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, सिंहल विजय, शकुन्तला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव के देवता, नया समाज, विजेता इत्यादि आपकी उल्लेखनीय पुस्तकें हैं।

प्रश्न 3.
रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा प्रस्तुत “मंगर” हलवाहे का शब्द चित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा,
मंगर कौन था? उसके चरित्र की विशेषताओं से अपनी जानकारी का परिचय दीजिए।
उत्तर-
रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक परिश्रमी किन्तु स्वाभिमानी, बाहर से कुरूप किन्तु अन्दर से सुन्दर कृषक-मजदूर “मंगर” की दारुण जीवन कथा को अत्यन्त मार्मिक अभिव्यक्ति प्रदान की है। मंगर बाहर से भले ही काला-कलूटा हो लेकिन उसकी आत्मा की उज्वलता उसके चेहरे की कालिमा को अपूर्व आभा से आलोकित कर देती है। यह आभा उसी के चेहरे पर आ सकती है जो अपनी डेढ़ रोटियों में से भी आधी रोटी के टुकड़े पर मालिक के ही दोनों बैलों को दे देता है।

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मंगर एक स्वाभिमानी व्यक्ति था। वह किसी की सख्त बात कभी बर्दाश्त नहीं करता था और वह अपने से बड़ा किसी को मन से नहीं मानता था। मंगर को सभी लोग आदर करते थे। किसी को मजाल नहीं था कि मंगर को बदजुबान कहे। हलवाहों को मिलने वाली नित दिन की गालियों से मंगर बचा हुआ था। इसका खास कारण, मंगर का हट्टा-कट्ठा शरीर और उसका सख्त कमाऊपनं चरित्र था। उसकी ईमानदारी ने चार चाँद लगा दिए थे। वह प्रतिदिन पन्द्रह कट्ठा खेत जोत लेता था। दूसरे हलवाहे उसके काम की तुलना में हमेशा पीछे रहते थे।

वह अपने काम के कारण परिवार में आदर का पात्र बन गया था। कभी-कभी रूठ भी जाता था लेकिन अपने मालिक से कभी झगड़ा नहीं करता था। वह केवल अपने सिर दर्द का बहाना करके काम से दो चार दिन बैठ जाता था।।

उसकी अर्धांगिनी भकोलिया जब उसे यह सूचना देती कि, “मालिक खड़े हैं। जाओ मान जाओ” तो वह जोर से मालिक को सुनाने के लिए ऐसा कहता था-कह दे मेरा सिर दर्द कर रहा है। लेकिन कुछ नोंक-झोंक के. बाद, मंगर फिर अपना काम आरंभ कर देता।

उसको काम के बदले प्रतिदिन डेढ़ रोटी मिलती थी। वह आधी रोटी के दो टुकड़े करके दोनों बैलों को खिला देता था फिर आधी रोटी लौटा देता था। वह बैलों को दिल से प्यार करता था। वह उन्हें महादेव कहा करता था। वह कहता था कि “महादेव मुँह ताके और मै खाऊँ” मंगर हमेशा कमर में भगवा ही लपेटे रहता था। उसे धोतियाँ मिलती थी, लेकिन धोतियाँ हमेशा उसके सिर का ही सिंगार बनती थी। इस प्रकार वह हमेशा नंग धडंग रहता था।

मंगर के विचार बड़े अच्छे थे, वह कहा करता था “आज खाय और कल को झक्खे, ताको गोरख संग न रखे।”

उसको कोई संतान न थी जो बुढ़ापे में लाठी का सहारा बनती। मंगर के बुढ़ापे की मरुभूमि को सींची नहीं जा सकती थी।
उसकी अद्धांगिनी भकोलिया कुछ काम करके दोनों प्राणियों का गुजर चला रही थी।

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एक दिन उसे अधकपारी की दर्द उठी, भकोलिया उसकी चिल्लाहट से पसीज गई। दाल चीनी पीस कर बकरी के दूध में लेप बनाया और उसके ललाट पर चढाया। यह लेप घातक सिद्ध हुआ। जलन पैदा हो गई। जलन जख्म में बदल गई। इस घटना से उसकी एक आँख चली गई। वह अंधा हो गया। कुछ दिनों बाद मंगर को आधे शरीर पर फालिज मार गया। वह पड़े-पड़े ऊब गया था। एक दिन वह उठने और चलने का प्रयास कर रहा था कि पछाड़ खाकर गिर पड़ा और फिर कभी न उठ सका।

मंगर लेखक परिचय – रामवृक्ष बेनीपुरी (1902-1968)

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 ई. में मुजफ्फरपुर जिला के बेनीपुर गाँव में हुआ था।। बेनीपुरी जी स्वतंत्रता के उपासक थे। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े, फलतः उनकी उच्च शिक्षा बाधित हो गई। बेनीपुरी जी ने जेल की सलाखों के बीच ही अधिकांश साहित्यिक रचना की। वे एक सफल पत्रकार के रूप में भी कार्य किए। उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया जिनमें तरुण भारत, बालक आदि प्रमुख हैं।

बेनीपुरी जी ने अपनी रचनाओं में सामाजिक विषमता को उजागर किया है। उनकी रचनाओं में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति और प्रेम की भावना का मार्मिक चित्र परिलक्षित होता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं माटी की मूरतें, पतितों के देश में, लाल तारा, चिता के फूल, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, अम्बपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, सिंहल विजय, शकुन्तला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव के देवता, नया समाज, विजेता आदि उल्लेखनीय हैं।

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