Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2 Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही विकल्प चुनें।

प्रश्न 1.
निम्न को प्राथमिक क्षेत्र भी कहा जाता है
(क) सेवा क्षेत्र
(ख) कृषि क्षेत्र
(ग) औद्योगिक क्षेत्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) कृषि क्षेत्र

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प्रश्न 2.
इनमें कौन-से देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) भारत

प्रश्न 3.
भारत में योजना आयोग का गठन कब किया गया था?
(क) 15 मार्च, 1950
(ख) 15 सितम्बर, 1950
(ग) 15 अक्टूबर, 1951
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) 15 मार्च, 1950

प्रश्न 4.
जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है वह देश कहलाता है
(क) अविकसित
(ख) विकसित
(ग) अर्द्ध-विकसित
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) विकसित

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प्रश्न 5.
इनमें से किसे पिछड़ा राज्य कहा जाता है ?
(क) पंजाब
(ख) केरल
(ग) बिहार
(घ) दिल्ली
उत्तर-
(ग) बिहार

II. निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें:

प्रश्न 1.
भारत अंग्रेजी शासन का एक………..था।
उत्तर-
उपनिवेश

प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का किया।
उत्तर-
शोषण

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की है।
उत्तर-
प्रणाली

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प्रश्न 4.
द्वितीयक क्षेत्र को………….. क्षेत्र कहा जाता है।
उत्तर-
औद्योगिक

प्रश्न 5.
आर्थिक विकास आवश्यक रूप से…………… की प्रक्रिया है।
उत्तर-
परिवर्तन

प्रश्न 6.
भारत के आर्थिक विकास का श्रेय………..को दिया जा सकता है।
उत्तर-
नियोजन

प्रश्न 7.
आर्थिक विकास की माप करने के लिए”को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है।
उत्तर-
प्रतिव्यक्ति आय

प्रश्न 8.
साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति…………है।
उत्तर-
दयनीय

प्रश्न 9.
बिहार में…………ही जीवन का आधार है।
उत्तर
कृषि

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प्रश्न 10.
बिहार के विकास में ……………… एक बहुत बड़ा बाधक है।
उत्तर-
बाढ़

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढांचा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती हैं, जैसे-कृषि, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि दूसरी ओर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि
हेतु देश में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सकें।

प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर-
मिश्रित अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण होता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास होता है। यह अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवाद के बीच का रास्ता है।

प्रश्न 3.
सतत् विकास क्या है ?
उत्तर-
सतत् विकास का शाब्दिक अर्थ है-ऐसा विकास जो कि जारी रह सके, टिकाऊ बना रह सके। सतत् विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास को भी ध्या में रखा जाता है। बुण्डलैण्ड आयोग ने सतत् विकास के बारे में बताया है कि “विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएं, बिना भावी पीढ़ी की क्षमता, योग्यता से समझौता किये पूरी की जाती है।”

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प्रश्न 4.
आर्थिक नियोजन क्या है ?
उत्तर-
आर्थिक नियोजन का अर्थ एक समयबद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों का नियोजित समन्वर एवं उपयोग करना है। आर्थिक नियोजन को योजना आयोग ने इस प्रकार परिभाषित किया हैआर्थिक नियोज
का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रिया: में प्रयोग करना है।

प्रश्न 5.
मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) क्या है?
उत्तर-
मानव विकास रिपोर्ट (HDR) में विभिन्न देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनक स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय सम्मलित होती है।

प्रश्न 6.
आधातरिक संरचनाओं (Infrastructure) पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
आधारिक संरचना का मतलब उन सुविधाओं तथा सेवाओं से है जो देश के आर्थिक विकास के लिए सहायक होते हैं। सभी तत्व, जैसे -बिजली, परिवहन, संचार, बैंकिंग स्कूल कॉलेज, अस्पताल आदि देश के आर्थिक विकास के आधार हैं, उन्हें देश का आधारिक संरचन (आधारभूत ढाँचा) कहा जाता है। किसी देश के आर्थिक विकास में आधार संरचना का महत्वपूर स्थान होता है। जिस देश का आधारभूत ढाँचा जितना अधिक विकसित होगा, वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की संरचना (Structure of Economy) से क्या समझते हैं ? इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था की संरचना का मतलब विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इसके विभाजन से है। अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं जैसे कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार आदि। इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है-

  • प्राथमिक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र कहा जाता है। इसके अंतर्गत कृषि पशुपालन, मछली पालन, जंगलों से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसी व्यवस्था आती है।
  • द्वितीयक क्षेत्र-द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र कहा जाता है। इसके अन्तर्गत खनिज व्यवस्था, निर्माण कार्य; जनोपयोगी सेवाएँ, जैसे गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र-तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहा जाता है। इसके अन्तर्गत बैंक एवं बीमा, परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे सेवा क्षेत्र कहा जाता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अंतर बतावें।
उत्तर-
आर्थिक विकास के अर्थ को समझने के लिए विद्वानों द्वारा की गई परिभाषा को समझना आवश्यक है। आर्थिक विकास की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद है। इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकती है। परन्तु कुछ विद्वानों ने इसकी परिभाषा निम्न रूप में दी है-

प्रो. रोस्टोव (Rostoe) के अनुसार “आर्थिक विकास एक ओर श्रम-शान्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच का सम्बन्ध हैं।”

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प्रो. मेयर एवं बाल्डविन (Meier and Baldwin) में परिभाषा देते हुए कहा है कि “आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकालीन में किसी अर्थव्यवस्था का वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।”

अतः उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है। इससे अर्थव्यवस्था के ढाँचे में परिवर्तन होते हैं। इसके चलते प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बदलती है तथा आर्थिक विकास के निर्धारक निरन्तर बदलते , रहते हैं।

अन्तर आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में कोई अंतर नहीं माना जाता है। दोनों शब्दों को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन इधर अर्थशास्त्रियों द्वारा इन दोनों के बीच अन्तर किया जाने लगा है।

श्रीमती उर्शला हिक्स (Mr. Urshala Hicks) के अनुसार “वृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध में किया जाता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग अविकसित अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है।” डॉ. ब्राईट सिंह (Dr. Bright Singh) ने भी लिखा है कि Growth शब्द का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जा सकता है।

इसी तरह मैंड्डीसन (Maddison) नामक एक अर्थशास्त्री ने बताया है कि धनी देशों में आय का बहता हुआ स्तर ‘आर्थिक वृद्धि’ (Economic Growth) का सूचक होता है जबकि निर्धन देशों में आय का बढ़ता हआ स्तर “आर्थिक विकास” (Economic Development) का सूचक होता है।

वस्तव में उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि दोनों ही आर्थिक प्रगति के सूचक हैं और दोनों में स्पष्ट अन्तर दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक विकास की माप कुछ सूचकांकों के द्वारा करें।
उत्तर-
आर्थिक विकास की माप निम्नलिखित सूचकांकों द्वारा कर सकते हैं-
राष्ट्रीय आय (National income) राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। सामान्य तौर पर जिस देश की राष्ट्रीय आय अधिक होती है वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश की राष्ट्रीय आय कम होती है वह देश अविकसित कहलाता है।

प्रति व्यक्ति आय (Per capital income)- आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है। प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की औसत आय होती है। राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल
राष्ट्रीय आय आता है, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है। फार्मूले के रूप में प्रतिव्यक्ति आय
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प्रश्न 4.
बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ उपाय बतावें।
उत्तर-
बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं–
(i) कृषि पर निर्भरता बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर आधारित है। यहाँ की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर है। लेकिन हमारी कृषि की भी हालत ठीक नहीं है। हमारी कृषि काफी पिछड़ी हुई है। इसके चलते उपज कम होती है। (i) औद्योगिक पिछड़ापन-किसी भी देश या राज्य के लिए उद्योगों का विकास जरूरी होता है। लेकिन बिहार में औद्योगिक विकास कुछ दिखता ही नहीं है। यहाँ के सभी खानेज क्षेत्र एवं बड़े उद्योग तथा प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी संस्थाएं सभी झारखण्ड में चले गए। इस कारण बिहार में कार्यशील औद्योगिक इकाइयों की संख्या नगण्य ही रह गई है।

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(ii) बाढ़ तथा सूखे से क्षति बिहार में खास कर नेपाल में जल से बाढ़ आती है। हर साल कम या अधिक बाढ़ का आना बिहार में तय है। पिछले साल 2008 में कोशी बाढ़ का प्रलय हमारे सामने है। इससे कितने जानमाल की क्षति हुई। इस साल 2009 में भी नेपाल से आए जल से बागमती नदी में बाढ़ देखने को मिला। इसके आस-पास के इलाके सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी आदि जगहों में फसल की काफी बर्बादी हुई। . इसी तरह सूखे की मार दक्षिणी बिहार को झेलनी पड़ती है। इससे हमारे किसानों को अकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस तरह अपना बिहार बाढ़ तथा सूखा के चपेट में एक साथ रहता है।

(iv) आधारिक संरचना का अभाव किसी भी देश या राज्य के विकास के लिए आधारिक संरचना का होना जरूरी है। लेकिन बिहार इस मामले में पीछे है। राज्य में सड़क, बिजली एवं सिंचाई का अभाव है। साथ ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ भी कम हैं। इस वजह से भी बिहार में पिछड़ेपन की स्थिति कायम है।

(v) गरीबी-बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ गरीबी का भार काफी अधिक है। राज्य में प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है। इसके चलते भी बिहार पिछड़ा है।

(vi) खराब विधि व्यवस्था किसी भी देश या राज्य के लिए शांति तथा सुव्यवस्था जरूरी होती है। लेकिन बिहार में वर्षों तक कानून व्यवस्था कमजोर स्थिति में थी जिसके चलते नागरिक शांतिपूर्वक उद्योग नहीं चला पा रहे थे। इस तरह खराब विधि व्यवस्था भी बिहार के पिछड़ेपन का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया है।

(vii) तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या-बिहार में जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। इसके चलते विकास के लिए साधन कम हो जाते हैं। अधिकांश साधन जनसंख्या के कारण-पोषण में चला जाता है।

(viii) कुशल प्रशासन का अभाव- बिहार की प्रशासनिक स्थिति ऐसी हो गई है जिसमें पारदर्शिता का अभाव है। इसके कारण आए दिन भ्रष्टाचार के अनेक उदाहरण सामने आते हैं।

बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय- बिहार में पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं.

  • कृषि का तेजी से विकास-बिहार में कृषि ही जीवन का आधार है। अत: कृषि में नए यंत्रों का प्रयोग किया जाए। उत्तम खाद, उत्तम बीज का प्रयोग किया जाए ताकि उपज में वृद्धि लायी जा सके। इस तरह कृषि का तेजी से विकास कर बिहार का आर्थिक विकास किया जा सकता है।
  • आधारिक संरचना का विकास-बिहार में बिजली की काफी कमी है। अतः बिजली का उत्पादन बड़ाया जाए। सड़क-व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया आगे बढ़े।
  • उद्योगों का विकास-बिहार से झारखण्ड के अलग होने से यह राज्य लगभग उद्योग विहिन हो गया था। मुख्यतः चीनी मिलें बिहार के हिस्से में रह गई थीं जो अधिकतर बन्द पड़ी थी। लेकिन विगत कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों में तथा विदेशों से पूँजी निवेश लाने के अनवरत प्रयास किये जा रहे हैं ताकि वर्तमान में जर्जर अवस्था के उद्योगों का पुनर्विकास किया जा सके।
  • जनसंख्या पर नियंत्रण- राज्य में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए। परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया जाए। इसके लिए राज्य की जनता एवं खास करके महिलाओं में शिक्षा का प्रचार किया जाए।
  • बाढ़ पर नियंत्रण-बिहार के विकास में बाढ़ एक बहुत बड़ी बाधा है। फसल का बहुत बड़ा भाग बाढ़ के चलते बर्बाद हो जाता है। जानमाल की भी काफी क्षति होती है। बाढ़ नियंत्रण के लिए नेपाल सरकार से बात कर उचित कदम उठाने की जरूरत है।
    बिहार का एक हिस्सा सूखे की चपेट में रहता है। इसके लिए सिंचाई के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए। .
  • स्वच्छ तथा ईमानदार प्रशासन-बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ, कुशल एवं ईमानदार प्रशासन जरूरी है।
  • केंद्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण-बिहार के विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों के हस्तांतरण की जरूरत है। कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देकर उन्हें अधिक मात्रा में केन्द्रीय सहायता दी जाती है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के कारण जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, उत्तर-पूर्व के राज्यों को विशेष सहायता मिलती रही है।
  • गरीबी दूर करना-बिहार में गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव है। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन-बसर कर रहे हैं। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए। स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।
  • शांति व्यवस्था की स्थापना–बिहार में शांति का माहौल कायम कर व्यापारियों में विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
अपने गाँव या शहर के आर्थिक विकास के संदर्भ में एक परियोजना प्रस्तुत करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

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Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत की प्रतिव्यक्ति आय (2004 के आंकड़ों के अनुसार) कितनी है
(क) 22,000 रु. प्रतिवर्ष
(ख) 16,000 रु. प्रतिवर्ष
(ग) 28,000 रु. प्रतिवर्ष
(घ) 25,000 रु. प्रतिवर्ष
उत्तर-
(ग) 28,000 रु. प्रतिवर्ष

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य होता है।
(क) जीविकोपार्जन
(ख) मनोरंजन
(ग) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(क) जीविकोपार्जन

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प्रश्न 3.
सामान्यतः किसी देश के विकास का स्तर किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता
(क) प्रतिव्यक्ति आय
(ख) साक्षरता-दर
(ग) स्वास्थ्य की स्थिति
(घ) इनमें सभी.
उत्तर-
(घ) इनमें सभी.

प्रश्न 4.
भारत के पड़ोसी देशों में किस देश की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है?
(क) पाकिस्तान
(ख) बांग्लादेश
(ग) श्रीलंका
(घ) नेपाल
उत्तर-
(ग) श्रीलंका

प्रश्न 5.
मानव विकास की दृष्टि से भारत के पड़ोसी देशों में किस देश की स्थिति इससे बेहतर है?
(क) बांग्लादेश
(ख) नेपाल
(ग) म्यांमार
(घ) श्रीलंका
उत्तर-
(घ) श्रीलंका

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसने कहा था कि अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।
उत्तर-
ब्राइन ने।

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प्रश्न 2.
समावेशी विकास क्या है ?
उत्तर-
समाज के सभी वर्गों का सामूहिक विकास।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर-
जीवनयापन के लिए अपनाई गई आर्थिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
उत्पादन एवं आय में होनेवाले वृद्धि से।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय क्या है ?
उत्तर-
एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाले आय भी सम्मिलित होते हैं। ….

प्रश्न 6.
प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
देश की कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से क्या संबंध है ?
उत्तर-राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से आर्थिक विकास में उल्टा संबंध है। राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी और आर्थिक विकास की दर कम के हो जाएगी।

प्रश्न 8.
दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड क्या है?
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय।

प्रश्न 9.
आय के अतिरिक्त कुछ अन्य कारकों के उदाहरण दें जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
उत्पादन, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि।

प्रश्न 10.
जीवन की भौतिक गुणवत्ता के तीन प्रमुख सूचक क्या हैं ?
उत्तर-
जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है। कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इन कार्यों के संचालन के लिए सहायक संरचनाएँ जैसे—पूँजी, ढाँचा, सामाजिक और आर्थिक सहायक या आधार संरचना होती है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय क्या है? क्या यह दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए पर्याप्त है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है। राष्ट्रीय आयों से देशों के आर्थिक विकास के स्तर की तुलना करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि जनसंख्या असामान्य हो सकती है। इसलिए दो देशों के विकास के स्तर की तजुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है।

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प्रश्न 3.
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है ? इस मापदंड की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर-
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति आय का प्रयोग प्रमुख मापदंड के रूप में 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report2006) में किया है। 2004 में जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश तथा जिन देशों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले देशों की श्रेणी में रखा। परंतु प्रति व्यक्ति आप आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है।

प्रश्न 4.
औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? विश्व बैंक ने इस आधार पर विभिन्न देशों का किस प्रकार वर्गीकरण किया है ? ।
उत्तर-
देश की कुल जनसंख्या से राष्ट्रीय आय में भाग देने से जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय कहते हैं। विश्व बैंक इस आधार पर उच्च आय वाले देश (विकसित देश) और निम्न आय वाले देश (विकासशील देश) के रूप में देशों का वर्गीकरण करते हैं।

प्रश्न 5.
विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है ?
उत्तर-
विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने में प्रतिव्यक्ति आय को मापदंड के रूप में प्रयोग किया है। परंतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) विभिन्न देशों की तुलना या वर्गीकरण करने में मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) जो 1990 से प्रति वर्ष एकाशित कर रही है मापदंड के रूप में प्रयोग करती है। इसमें देशों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य-स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 6.
हम औसत शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं ? इसके प्रयोग की क्या सीमाएँ हैं ? विकास से जुड़े उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर- औसतच्या प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के विकास की जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। इसके द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। पर यह धारणा आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है। उदाहरण के लिए औसत आय से किसी देश के नागरिकों का आय का वितरण तथा जीवन-स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है। जो आर्थिक विकास के मापदंड है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक विकास एवं मौद्रिक विकास में क्या अंतर है ? वर्णन करें।
उत्तर-
आर्थिक विकास का अर्थ है देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशलतम प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। इस तरह आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है। – मौद्रिक विकास के अन्तर्गत मुद्रा के प्रादुर्भाव से आधुनिक मुद्रा के प्रचलन तक के काल को सम्मिलित करते हैं। मुद्रा के आगमन से पूर्व वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। इसके बाद सिक्कों तथा कागजी मुद्रा (पहली बार चीन में) में प्रचलन में आया। वर्तमान में प्लास्टिक मुद्रा जैसे ए.टी.एम. एवं क्रेडिट कार्ड का प्रचलन है।

प्रश्न 2.
विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें। किस आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास की कई अवधारणाएँ है तथा इनका क्रमिक विकास हुआ है। प्रारम्भ में आर्थिक विकास का अर्थ उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से लगाया जाता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार “आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक नहीं है। किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास राष्ट्रीय आय का वितरण, नागरिकों के सामान्य जीवन में सुधार एवं आर्थिक कल्याण पर निर्भर करता है।

विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाले वृद्धि के आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा है। विश्व बैंक के अनुसार 2004 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष वार्षिक आय या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध या विकसित देश तथा वे देश जिनकी प्रतिवर्ष वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले या विकासशीवल देश की संज्ञा दी। दो अर्थव्यवस्थाओं के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए तथा विकसित तथा अर्द्धविकसित देशों का वर्गीकरण करने के लिए भी राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय को संकेतक के रूप में प्रयोग करते हैं।

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प्रश्न 3.
विकास के लिए प्रयोग किए जानेवाले विभिन्न मापदंडों अथवा संकेतों का उल्लेख करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास को मापने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। परंतु, इनमें कुछ कमियाँ हैं। प्रतिव्यक्ति आय या औसत आय द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। प्रतिव्यक्ति आप आय के वितरण की असमानता छिपा देता है।

इस प्रकार प्रतिव्यक्ति आय की सीमितताओं के कारण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के । कुछ वैकल्पिक संकेतकों का विकास किया गया।
. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक (Physical Quality of life Index) मोरिस डी. मोरिस के अनुसार किसी देश के आर्थिक विकास को जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता के सूची के अनुसार मापा जा सकता है।

मानव विकास सूचकांक (Human DevelopmentIndex) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन०डी०पी०) के मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) के अनुसार विभिन्न देशों की विकास की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है। इस मानव विकास प्रतिवेदन में कई नए घटक जैसे नागरिकों का जीवन स्तर उनका स्वास्थ्य एवं कलयाण जैसे विषय जोड़े गए है।

प्रश्न 4.
विकास की धारणीयता क्यों आवश्यक है ? विकास का वर्तमान स्तर किन कारणों से धारणीय नहीं है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास को मापने के लिए किसी देश की आर्थिक विकास की धारणीयता को भी समझना आवश्यक है। विकसित देश विकास की प्रक्रिया में विकास का स्तर ऊंचा करने का या विकास के स्तर को भावी पीढ़ी के लिए बनाये रखने का प्रयास करेंगे। ठीक उसी प्रकार विकासशील देशों की स्थिति रहेगी। जो स्पष्ट रूप से वांछनीय है।

लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है। इसके कारण निम्नलिखित है।

  • आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरुपयोग।
  • पर्यावरण संबंधी समस्याएं।
  • जंगलों का नष्ट होना तथा
  • भूमिगत जल का अति उपयोग।

विकास की प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए ही धारणीयता विकास की अवधारणा का जन्म हुआ। निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि विकास की प्रक्रिया एक दीर्घकालीन एवं निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। अतएव हमें समय-समय पर अपने लक्ष्यों में परिवर्तन एवं : संशोधन करने की आवश्यकता है।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Notes

  • मानव सभ्यता का इतिहास विकास का इतिहास है।
  • अर्थव्यवस्था- एक देश या क्षेत्र-विशेष की व्यवस्था जिसके अंतर्गत समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन होता है।
  • आर्थिक क्रियाएँ-वे सभी कार्य, जिनमें हमें आय की प्राप्ति होती है जैसे किसान मजदूर, कारीगर का कार्य आदि।
  • अनार्थिक क्रियाएँ-वे क्रियाएँ जिनसे हमें आय की प्राप्ति नहीं होती है, जैसे-भावपूर्ण किया गया कार्य टीचर या मजदूर का।
  • स्वामित्व के आधार पर अर्थव्यवस्था– पूँजीवादी व्यवस्था, समाजवादी व्यवस्था, मिश्रित अर्थव्यवस्था।
  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी या निजी संस्था के हाथों में रहता है।
  • समाजवादी अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व, प्रबंध और संचालन सरकार के हाथों में होता है।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार एवं निजी दोनों के हाथों में होता है। विकास के आधार पर अर्थव्यवस्था
  • विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था।
  • भूमि, श्रम, पूँजी और संगठन उत्पादन के साधन कहलाते हैं।
  • किसी देश के प्राकृतिक तथा भौतिक साधन और उसके मानवीय प्रयत्न अर्थव्यवस्था की सृष्टि करते हैं।
  • मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित समस्त आर्थिक क्रियाओं एवं कार्यों का संपादन अर्थव्यवस्था में होता है।
  • अर्थव्यवस्था जीवनयापन के लिए अपनाई गई आर्थिक व्यवस्था है।
  • आर्थिक विकास का तात्पर्य उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से है।
  • आर्थिक क्रियाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र हैं- (i) प्राथमिक क्षेत्र (ii) द्वितीयक क्षेत्र और (iii) तृतीयक क्षेत्र।
  • प्राथमिक क्षेत्र के उदाहरण- कृषि, पशुपालन, वानिकी, मत्स्यग्रहण खनन आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्र के उदाहरण- विनिर्माण, निर्माण, विद्युत, गैस तथा जलापूर्ति इत्यादि।
  • तृतीयक क्षेत्र – परिवहन, संचार, भंडारण, व्यापार, बैकिंग बीमा, सार्वजनिक प्रशासन इत्यादि।
  • प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
  • द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
  • वर्तमान में आर्थिक प्रगति में सेवा क्षेत्र सबसे अधिक योगदान दे रहा है।
  • प्रचलित विचारधारा के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक
    विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
  • आर्थिक विकास एवं मौद्रिक विकास दोनों ही पारस्परिक सहयोगी क्रियाएँ हैं।
  • समावेशी विकास में समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर को ऊपर लाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • सतत विकास में वर्तमान पीढ़ी एवं भाती पीढ़ी दोनों के विकास का समान ख्याल रखा जाता है।
  • आधुनिक अर्थशास्त्रियों में आर्थिक विकास को जीवन की भौतिक गुणवत्ता तथा मानव विकास से जोड़ने का प्रयास किया है।
  • प्राकृतिक संसाधन, पूँजी निर्माण तकनीकी विकास, मानवीय संसाधन आदि विकास के आर्थिक कारक है।
  • आर्थिक विकास के गैर-आर्थिक कारकों में राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्था महत्वपूर्ण है।
  •  बिहार आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है।
  • बिहार में उर्वर भूमि एवं जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है तथा इसमें विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान हैं।