Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 2 Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10 History प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें।

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी ने किस पत्र का संपादन किया?
(क) कामनबील
(ख) यंग इंडिया
(ग) बंगाली
(घ) बिहारी
उत्तर-
(ख) यंग इंडिया

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 2.
किस पत्र ने रातों-रात वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए अपनी भाषा बदल दी ?
(क) हरिजन
(ख) भारत मित्र
(ग) अमृतबाजर पत्रिका
(घ) हिन्दुस्तान रिव्यू
उत्तर-
(ग) अमृतबाजर पत्रिका

प्रश्न 3.
13वीं सदी में किसने ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप में पहुँचाए ?
(क) मार्कोपोलो
(ख) निकितिन
(ग) इत्सिंग
(घ) मेगास्थनीज
उत्तर-
(क) मार्कोपोलो

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 4.
गुटेनबर्ग का जन्म किस देश में हुआ था?
(क) अमेरिका
(ख) जर्मनी
(ग) जापान
(घ) इंगलैंड
उत्तर-
(ख) जर्मनी

प्रश्न 5.
गुटेनबर्ग ने सर्वप्रथम किस पुस्तक की छपाई की ?
(क) कुरान
(ख) गीता
(ग) हदीस
(घ) बाइबिल
उत्तर-
(घ) बाइबिल

प्रश्न 6.
इंगलैंड में मुद्रणकला को पहुँचाने वाला कौन था ?
(क) हैमिल्टन
(ख) कैक्सटन
(ग) एडिसन
(घ) स्मिथ
उत्तर
(ख) कैक्सटन

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 7.
किसने कहा “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम् देन है, सबसे बड़ा तोहफा”?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) मार्टिन लूथर
(ग) मुहम्मद पैगम्बर
(घ) ईसा मसीह
उत्तर-
(ख) मार्टिन लूथर

प्रश्न 8.
रूसो कहाँ का दार्शनिक था? ।
(क) फ्रांस
(ख) रूस
(ग) अमेरिका
(घ) इंगलैंड
उत्तर-
(क) फ्रांस

प्रश्न 9.
विश्व में सर्वप्रथम मुद्रण की शुरूआत कहाँ हई?
(क) भारत
(ख) जापान
(ग) चीन
(घ) अमेरिका
उत्तर-
(ग) चीन

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 10.
किस देश की सिविल सेवा परीक्षा ने मुद्रित पुस्तकों (सामग्रियों) की माँग बढ़ाई?
(क) मिस्र
(ख) भारत
(ग) चीन
(घ) जापान
उत्तर-
(ग) चीन

निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें:

प्रश्न 1.
1904-05 के रूस-जापान युद्ध में…………… की पराजय हुई।
उत्तर-
रूस

प्रश्न 2.
फिरोजशाह मेहता ने ……………का संपादन किया।
उत्तर-
बाम्बे कॉनिकल

प्रश्न 3.
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट……………ई. में पास किया गया।
उत्तर-
1878 ई,

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 4.
भारतीय समाचार पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में……………को विभूषित किया गया।
उत्तर-
चार्ल्स मेटकॉफ

प्रश्न 5.
अल-हिलाल का सम्पादन…………ने किया।
उत्तर-
मौलाना आजाद

सुमेलित करें:

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद - 1
उत्तर-
(i) (ग),
(ii) (क),
(iii) (घ),
(iv) (ङ),
(v) (ख)।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
निम्नांकित के बारे में 20 शब्दों में लिखो:
(क) छापाखाना
Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद - 2
उत्तर-
(क) छापाखाना-वह स्थान जहाँ मुद्रण यंत्र के उपयोग से छपाई कार्य किया जाता है। छापाखाना कहलाता है।
(ख) गटेनबर्ग जर्मनी के मेन्जनगर के कृषक-जमींदार व्यापारी परिवार में जन्मा व्यक्ति जिसने मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संघटित एवं एकत्रित किया।
(ग) बाइबिल- इसाइयों का पवित्र धर्म ग्रंथ जिसमें ईसा मसीह के बारे में वर्णन मिलता है। – (घ) रेशम मार्ग- समरकन्द-पर्शिया-सिरिया मार्ग को ही रेशम मार्ग कहा जाता है यह व्यापारिक मार्ग है।
(ङ) मराठा बाल गंगाधर तिलक के संपादन में 1881 में बंबई से अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित समाचारपत्र।
(च) यंग इंडिया महात्मा गाँधी द्वारा प्रकाशित एक पत्रिका जो राष्ट्रवादी विचारों से ओत-प्रोत था।
(छ) वर्नाक्यलर प्रेस एक्ट- 1878 में लार्ड लिटन द्वारा लाया गया प्रेस एक्ट जो भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं को प्रतिबंधित करता है।
(ज) सर सैय्यद अहमद- अलीगढ़ जर्नल नामक पत्र के सम्पादक जिसने राष्ट्रवादी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
(झ) प्रोटेस्टेन्टवाद मार्टिन लूथर द्वारा पोप के आधिपत्य का विरोध करने के लिए अपनाया गया मार्ग प्रोटेस्टेंटवाद कहलाता है।
(ञ) मार्टिन लथर- एक धर्म सुधारक जिसने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95वें स्थापनाएँ लिखीं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
गेटेनबर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे किया.?
उत्तर-
गेटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के एतिहासिक शोध को संघटित एवं एकत्रित किया। टाइपों के लिए पंच, मैट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारम्भ किया। उसने हैण्डप्रेस में लकड़ी के चौखट में दो समतल भाग प्लेट एवं बेड-एक के नीचे दूसरा समानान्तर रूप से रखा। कम्पोज किया हुआ टाइप मैटर बेड पर कस दिया एवं उसपर स्याही लगाकर एवं कागज रखकर पलेट्स द्वारा दबाकर मुद्रणकार्य को । विकसित किया।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 2.
छापाखाना यूरोप में कैसे पहँचा?
उत्तर-
पुनर्जागरण एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना लेने के बाद 1475 में सर विलियम कैक्स्टन मुद्रणकला को इंगलैंड में लाए तथा वेस्ट मिन्सटर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ। इस प्रकार छापाखाना यूरोप पहुंचा।

प्रश्न 3.
इन्क्वीजीशन से आप क्या समझते हैं। इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर-
ईश्वर एवं सृष्टि के बारे में रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के विपरीत विचार आने से कैथोलिक चर्च क्रुद्ध हो गया और तथाकथित धर्मविरोधी विचारों को दबाने के लिए शुरू किया गया आन्दोलन इन्क्वीजीशन कहलाता है।
इसकी सहायता से विरोधी विचारधारा के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया गया।

प्रश्न 4.
पाण्डुलिपि क्या है ? इसकी क्या उपयोगिता है?
उत्तर-
मुद्रण कला के आविष्कार के पूर्व हाथ द्वारा विभिन्न प्रकार के चित्रों का उपयोग कर ली गयी लिखाई को पाण्डुलिपि कहा जाता है। पुरानी बातों के संबंध में ज्ञानार्जन करने के लिए इसका उपयोग किया जाता था।

प्रश्न 5.
लार्ड लिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया। कैसे?
उत्तर-
लार्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट द्वारा भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे जनमानस उद्वेलित हो गया और इससे राष्ट्रीय आन्दोलन को बल मिला।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर-
मुद्रण क्रांति ने आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी। आम लोगों का जुड़ाव सूचना, ज्ञान, संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। फलतः लोक चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ।

मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गईं। किताबों की पहुंच आसान होने से पढ़ने की नई संस्कृति विकसित हुई। एक नया पाठक वर्ग और तैयार हुआ चूंकि साक्षर ही पुस्तक को पढ़ सकते थे। अतः साक्षरता बढ़ाने हेतु पुस्तकों को रोचक तस्वीरों, लोकगीत और लोक कथाओं से सजाया जाने लगा। पहले जो लोग सुनकर ज्ञानार्जन करते थे अब पढ़कर भी कर सकते थे। इससे उनके अंदर तार्किक शक्ति का विकास हुआ।

पठन-पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वारा खुला। स्थापित विचारों से असहमत होने वाले लोग भी अपने विचारों को फैला सकते थे।

मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश फैलने लगा। लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने के लिए नैतिक साहस का संचार होने लगा था। वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया। पुराने परंपरागत मूल्यों, संस्थाओं और वायदों पर आम लोगों के बीच मूल्यांकन शुरू हो गया। धर्म और आस्था को तार्किकता की कसौटी पर कसने से मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुए। इस तरह की नई सार्वजनिक दुनियाँ ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।

प्रश्न 2.
19वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें।
उत्तर-
भारत में समाचारपत्रों का उदय 19वीं सदी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। यह न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलाने वाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गया बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, प्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्रनिर्माण में | महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया। । भारतीयों द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचारपत्र 1816 में गंगाधर भटाचार्य का साप्ताहिक बंगाल गजट था। 1818 में ब्रिटिश व्यापारियों ने जैम्स सिल्क वर्धिम नामक पत्रकार की सेवा प्राप्त की।

इसने बड़ी योग्यता से कलकत्ता जर्नल का सम्पादन करके लार्ड हेस्टिंग्स तथा जॉन एडम्स को परेशानी तथा उलझन में डाल दिया। बकिंघम ने अपने पत्रकारिता के माध्यम से प्रेस को जनता का प्रतिनिधि बनाया। इसने प्रेस को आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने, जाँच-पड़ताल करके समाचार देने तथा नेतृत्व प्रदान करने की ओर प्रवृत किया। अनेक प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृति के समाचारपत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इन समाचारपत्रों के संस्थापक राजाराम मोहन राय थे। इन्होंने सामाजिक धार्मिक सुधार आन्दोलन को हथियार भी बनाया। अंग्रेजी में ब्राझिनिकल मैगजीन भी राममोहन राय ने निकाला। 1822 में बंबई से गुजराती भाषा में दैनिक बम्बई समाचार निकलने लगे। द्वारकानाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राममोहन राय के प्रयास से 1830 में बेंगदत की स्थापना हुई। 1831 में जामे जमशेद 1851 में गोफ्तर तथा अखबार सौदागर का प्रकाशन आरम्भ हुआ।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर
भारतीय प्रेस की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलानेवाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन मया बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उसकी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया।
  • इसके द्वारा न्यायिक निर्णयों में पक्षपात, धार्मिक हस्तक्षेप और प्रजातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार-आन्दोलन को बल मिला तथा भारतीय जनमत जागृत हुआ।
  • इसने न केवल राष्ट्रवादी आन्दोलन को एक नई दिशा दी अपितु भारत में शिक्षा को प्रोत्साहन, आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण तथा श्रम आन्दोलन को भी प्रोत्साहित करने का कार्य किया।
  • प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हर पक्ष चाहे वह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हो या सांस्कृतिक-सबको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया।
  • विदेशी सता से त्रस्त जनता.को सन्मार्ग दिखाने एवं साम्राज्यवाद के विरोध में निर्भीक . स्वर उठाने का कार्य प्रेस के माध्यम से ही किया गया।
  • नई शिक्षा नीति के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के समक्ष पहुँचाने का कार्य प्रेस ने ही किया। .
  • सामाजिक सुधार के क्षेत्र में, प्रेस ने सामाजिक रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, अंधविश्वास तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर लगातार आलोचनात्मक लेख प्रकाशित किए।
  • प्रेस भारत की विदेश नीति की भी खूब समीक्षा करती थी।
  • देश के राष्ट्रीय आन्दोलन को नई दिशा देने एवं राष्ट्रनिर्माण में भी प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर-
प्रेस ने न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलानेवाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गया ‘बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उसकी नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देशप्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया।
19वीं शता दी में प्रकाशित कई समाचारपत्रों ने राष्ट्रीय आन्दोलन की भावना को विकसित किया।

  • 1858 में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने बंगाली में साप्ताहिक पत्रिका ‘सोम प्रकाश’ का प्रकाशन किया जो राष्ट्रवादी विचारों से ओत-प्रोत था। इसने नीलहे किसानों के हितों का जोरदार समर्थन किया।
  • 1868 से मोतीलाल घोष के संपादन में ‘अमृत बाजार’ अंग्रेजी बंगला साप्ताहिक के रूप में बाजार में आने लगा। इसका भारतीय प्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए यह रातों-रात अंग्रेजी में प्रकाशित होने लगा जिसने राष्ट्रीयता की भावना को जगाने में मुख्य भूमिका अदा की। .
  •  भारतेंदु हरिश्चन्द्र के संपादन में 1867 से प्रकाशित ‘कविवचन सुधा’ की संपादकीय टिप्पणियाँ राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर होती थीं जो राष्ट्रवादी विचारों को सशक्त करने का काम कर रही थी।
    इन्हीं की मासिक पत्रिका हरिश्चन्द्र भी देशप्रेम और समाज सुधार से अनुप्राणित थी।
  • बाल गंगाधर तिलक के संपादन में 1881 में बंबई से अंग्रेजी भाषा में मराठा और मराठी में केसरी की शुरूआत हुई। दोनों पत्र उग्रराष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित थे। इनका जनमानस पर व्यापक प्रभाव था।
  • अरविन्द घोष और वारींद्र घोष ने युगांतर तथा वंदेमातरम के माध्यम से उग्र राष्ट्रवाद को फैलाने का काम किया।
  • महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया एवं हरिजन पत्रिका के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रचार किया। गांधी के सीधे एवं सरल लेख से आम जनता के साथ-साथ क्षेत्रीय पत्रकारिता को भी राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने के लिए प्रोत्साहन मिला।

समाचारपत्रों ने न केवल राष्ट्रवादी आन्दोलन को एक नई दिशा दी अपितु भारत में शिक्षा के प्रोत्साहन आर्थिक विकास एवं औद्योगीकरण तथा श्रम आन्दोलन को भी प्रोत्साहित करने का कार्य किया।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 5.
मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुंचा।
उत्तर-
हम जानते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है। अत: सूचना की आवश्यकता ने आविष्कार हेतु ज्ञान जगत को प्रेरित किया।
मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। 1041 ई. में एक चीनी व्यक्ति पि-शिंग ने मिट्टी के मुद्रा बनाए। इन अक्षर मुद्रों का संयोजन कर छपाई का कार्य किया जाता था। बाद में इस पद्धति ने ब्लाक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया। कोरियन लोगों ने कुछ समय पश्चात लकड़ी एवं धातु पर खोदकर टाइप बनाए। धातु के मूवेबुल टाइपों द्वारा प्रथम पुस्तक 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य कोरिया में छापी गई।

यद्यपि मूवेबल टाइपों द्वारा मुद्रण कला का आविष्कार तो पूरब में ही हुआ परन्तु इस कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ। लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होने वाली मुद्रण कला समरकन्द-पर्शिया मार्ग से व्यापारियों द्वारा यूरोप, सर्वप्रथम रोम में प्रविष्ट हुई। 13वीं सदी के अंतिम में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप पहुँचे। वहाँ इस कला का प्रयोग ताश खेलने एवं धार्मिक चित्र छापने के लिए किया गया। इसी बीच कागज बनाने की कला 11वीं शताब्दी में पूरब से यूरोप पहुँची तथा 1336 में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई। इसी काल में शिक्षा के प्रसार, व्यापार एवं मिशनरियों की बढ़ती गतिविधियों से सस्ती मुद्रित सामग्रियों की मांग तेजी से बढ़ी। इसी की पूर्ति के लिए तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की आवश्यकता थी जिसे (1430 के दशक में) स्ट्रेस बर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने अंततः कर दिखाया।

गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संघटित एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारम्भ किया।

गुटेनबर्ग ने आवश्यकतानुसार मुद्रण स्याही बनायी और हैण्डप्रेस ने प्रथम बार मुद्रण कार्य सम्पन्न किया। इसने लकड़ी के चौखट में दो समतल भाग-प्लेट एवं बेड-एक के नीचे दूसरा समानान्तर रूप से रखा। कम्पोज किया हुआ टाइप मैटर वेड पर कसा एवं उसपर स्याही लगाकर तथा कागज रखकर प्लेट्स द्वारा दबाकर मुद्रण कार्य किया। बाद में गुटेन बर्ग ने ही पुनः मुद्रा एवं हैण्ड प्रेस का विकास किया।
हालाँकि विवादों में घिरने के बावजूद मेंज में शुरू होकर पूर्णता को पहुंची मुद्रण कला का प्रसार शीघ्रता से यूरोपीय देशों एवं अन्य स्थानों में हुआ।

1475 ई. में सर विलयम कैक्सटनं मुद्रण कला को इंगलैंड में लाए तथा वेस्ट मिन्सटर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ। पुर्तगाल में इसकी शुरूआत 1544 ई. में हुई, तत्पश्चात् यह आधुनिक रूप में विश्व के अन्य देशों में पहुंची। 18वीं सदी के अंत तक प्रेस धातु के बनने लगे। 19वीं सदी के मध्य तक न्यूयार्क के रिचर्ड एम. हो ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को कारगर बना दिया। 20वीं सदी के अंत तक ऑफसेट प्रेस आ गया।

Bihar Board Class 10 History प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
छपाइ का आरंभ किस देश में हुआ ?
उत्तर-
चीन में।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 2.
छापाखाना का आविष्कार किस देश में
उत्तर-
जर्मनी में।

प्रश्न 3.
इटली में वुडलॉक छपाई की तकनीक कौन लाया ?
उत्तर-
मार्कोपोलो ने।

प्रश्न 4.
मार्टिन लूथन ने अपनी पिच्चानवें स्थापनाएँ किस चर्च के दरवाजे पर टाँग दी ?
उत्तर-
गुटेन वर्ग चर्च।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 5.
तिलक ने किस भाषा में मराठा का प्रकाशन किया ?
उत्तर-
अंग्रेजी भाषा में।

प्रश्न 6.
जापानी उकियो चित्रकला शैली की विषय वस्तु क्या थी?
उत्तर-
जापानी उकियो चित्रकला शैली की विषय वस्तु शहरी लोगों के जीवन पर आधारित थी।

प्रश्न 7.
इटली में वुड ब्लॉक छपाई की तकनीक कहाँ से और किसके द्वारा लाई गई?
उत्तर-
इटली में वुड ब्लॉक छपाई की तकनीक चीन से मार्कोपोलो द्वारा लाई गई।

प्रश्न 8.
किसने कहा था “किताबें भिनमिनाती मक्खियों की तरह हैं।
उत्तर-
कैथोलिक धर्म सुधारक इरैस्मस ने।

प्रश्न 9.
रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर प्रतिबंध क्यों लगाया?
उत्तर-
नए धार्मिक विचारों के प्रसार को रोकने के लिए रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तका विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 10.
मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए किस प्रकार अनुकूल परिस्थितियों बनाई ? किसी एक का उल्लेख करें?
उत्तर-
वाद-विवाद की संस्कृति-पुस्तकों और लेखों में वाद-विवाद की संस्कृति को जन्म दिया। नए विचारों के प्रसार के साथ ही तर्क की भावना का विकास हुआ। अब लोग पुरानी मान्यताओं की समीक्षा कर उनपर अपने विचार प्रकट करने लगे। इससे नई सोच उभरी। राजशाही चर्च और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। फलतः क्रांतिकारी विचारधारा का उदय हुआ। इस तरह मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाई।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
मार्टिन लूथर के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
मार्टिन लूथर (जर्मनी) एक महान धर्म सुधारक था। वह चर्च में व्याप्त बुराइयों का विरोधी था और इसमें सुधार लाना चाहता था। उसे धर्म सुधार आंदोलन का अग्रदूत कहा जाता है। 1517 में लूथर ने पंचानवें स्थापनाएँ लिखीं जिसमें उसने रोमन कैथोलिक चर्च में प्रचलित अनेक परम्पराओं एवं धार्मिक विधियों पर प्रहार किया। लूथर के लेखक के व्यापक प्रभाव से रोमन कैथोलिक चर्च में विभाजन हो गया। लूथर ने ईसाई धर्म की नई व्याख्या प्रस्तुत की। उसके समर्थक प्रोटेस्टैंक कहलाए। धीरे-धीरे प्रोटेस्टेंट संप्रदाय ईसाई धर्म का प्रमुख संप्रदाय बन गया।

प्रश्न 2.
इन्क्वीजीशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर-
रोमन चर्च धर्म विरोधी भावना को दबाने के लिए प्रयासरत थी क्योंकि पुस्तकें धार्मिक मान्यताओं एवं चर्च की सत्ता को चुनौती दे रही थी। पुस्तकें पढ़कर सामान्य जनता और बुद्धिजीवियों ने ईसाई धर्म और बाइबिल में दिए गए उपदेशों पर नए ढंग से चिंतन-मनन आरंभ कर दिया। धर्म विरोधी विचारों के प्रसार को रोकने के लिए रोमन चर्च ने इन्क्वीजीशन नामक संस्था का गठन किया। यह एक प्रकार का धार्मिक न्यायालय था। इसका काम धर्म विरोधियों की पहचान कर उन्हें दंडित करना था। इन्क्वीजीशन की जरूरत इसलिए पड़ी कि नए धार्मिक विचारों के प्रसार को रोकने के लिए चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विशेषताओं पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए जिससे वे धार्मिक स्वरूप को चुनौती देनेवाली सामग्री का प्रकाशन नहीं कर सकें। 1558 से चर्च प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची रखने लगा जिससे उसका पुनर्मुद्रण और वितरण नहीं हो सकें।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
गुटेनबर्ग के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जर्मनी का गुटेन्बर्ग ने 1450 ई. में छापाखाना का अधिकार किया। वह बहुत ही जिज्ञासु . प्रवृति का था। जैतून पैरने की मशीन को आधार बनाकर उसने प्रिटिंग प्रेस (हैंड प्रेस) का विकास किया। गुटेनबर्ग ने मुद्रण स्याही का भी इजाद किया। गुटेन्बर्ग ने जो छपाई मशीन विकसित की उसे मूवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन’ कहा गया। क्योंकि रोमन वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए गए तथा इन्हें घुमाने या ‘मूव’ करने की व्यवस्था की गयी। इस प्रक्रिया के द्वारा पुस्तकें तेजी से छापी जाने लगी। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मशीन में प्रति घंटे अढाई सौ पन्नों के एक ओर छपाई की जा सकती थी। गुटेनबर्ग प्रेस में जो पहली पुस्तक छपी वह ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल थी।

प्रश्न 4.
रोमन कैथोलिक चर्च ने 16 वीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची रखनी क्यों आरंभ की?
उत्तर-
मार्टिन लूथर के पिच्चानवें स्थापनाएं 11517) ने रोमन कैथोलिक चर्च में प्रचलित अनेक परंपराओं एवं धार्मिक विधियों पर प्रहार किया। लूथर के इस लेख का व्यापक प्रचार हुआ जिसके कारण रोमन कैथोलिक चर्च में विभाजन हो गया। लूथर ने ईसाई धर्म की नई व्याख्या प्रस्तुत की। उसके समर्थक प्रोटेस्टैंट कहलाए। दूसरी ओर रोमन कैथोलिक चर्च धर्म विरोधी भावना को दबाने के लिए प्रयासरत थी क्योंकि पुस्तकें धार्मिक मान्यताओं एवं चर्च की सत्ता को चुनौती दे रही थी। नए धार्मिक विचारों के प्रसार को रोकने के लिए चर्च ने ने प्रकाशकों और पुस्तक बिक्रेताओं पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए जिससे वे धार्मिक स्वरूप को चुनौती देनेवाली सामग्री का प्रकाशन नहीं कर सकें चर्च ने अनेक पुस्तकों को प्रतिबंधित भी कर दिया। 1558 से चर्च प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची रखने लगा जिससे उनका पुनर्मुद्रण और वितरण नहीं हो सके।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 5.
तकनीकी विकास का मुद्रण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
तकनीकी विकास का मुद्रण पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अब कम समय, कम श्रम तथा कम लागत में ज्यादा से ज्यादा छपाई होने लगी। 18वीं सदी के अंतिम चरण तक धातु के बने छापाखाने काम करने लगे। 19वीं 20वीं सदी में छापाखानों में और अधिक तकनीकी सुधार किए गए। 19वीं शताब्दी में न्यूयॉर्क निवासी एम. ए. हो ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया। इसके द्वारा प्रतिघंटा आठ हजार ताव छापे जाने लगे। इससे मुद्रण में तेजी-आई। इसी सदी के अंत तक ऑफसेट प्रेस भी व्यवहार में आया। इस छापाखाना द्वारा एक ही साथ छह रंगों में छपाई की जा सकती थी। 20वीं सदी के आरंभ से बिजली संचालित प्रेस व्यवहार में आया। इसने छपाई को और गति प्रदान की। प्रेस में अन्य तकनीकी बदलाव भी लाए गए, जैसे कागज लगाने की विधि में सुधार किया गया तथा प्लेट की गुणवत्ता बढ़ाई गई। साथ ही स्वचालित पेपर शील और रंगों के लिए फोटो विद्युतीय नियंत्रण का व्यवहार किया जाने लगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
स्वातंत्र्योत्तर भारत में प्रेस की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर-
वैश्विक स्तर पर मुद्रण अपने आदि काल से भारत में स्वाधीनता आंदोलन तक भिन्न-भिन्न परिस्थितियों से गुजरते हुए आज अपनी उपादेयता के कारण ऐसी स्थिति में पहुँच गया है जिससे ज्ञान जगत की हर गतिविधियाँ प्रभावित हो रही है। आज पत्रकारिता साहित्य, मनोरंजन ज्ञान-विज्ञान, प्रशासन, राजनीति आदि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है। – स्वातत्र्योत्तर भारत में पत्र-पत्रिकाओं का उद्देश्य भले ही व्यवसायिक रहा हो किन्तु इसने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अभिरूचि जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।

पत्र-पत्रिकाओं ने दिन-प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में नई और सहज शब्दावली का प्रयोग करते हुए भाषाशास्त्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रेस ने समाज में नवचेतना पैदा कर सामाजिक धार्मिक राजनीतिक एवं दैनिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया। प्रेस ने सदैव सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बालिकावधु, बालहत्या, शिशु विवाह जैसे मुद्दों को उठाकर समाज के कुप्रथाओं को दूर करने में मदद की तथा व्याप्त अंधविश्वास को दूर करने का प्रयास किया।

आज प्रेस समाज में रचनात्मकता का प्रतीक भी बनता जा रहा है। यह समाज की नित्यप्रति की उपलब्धियों, वैज्ञानिक अनुसंधानों, वैज्ञानिक उपकरणों एवं साधनों से परिचित कराता है। आज के आधुनिक दौर में प्रेस साहित्य और समाज की समृद्ध चेतना की धरोहर है। प्रेस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने हेतु सजग प्रहरी के रूप में हमारे सामने खडा है।

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में मुद्रण की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर-
फ्रांस की क्रांति में बौद्धिक कारणों का भी काफी महत्वपूर्ण योगदान था। फ्रांस के
लेखकों और दार्शनिकों ने अपने लेखों और पुस्तकों द्वारा लोगों में नई चेतना जगाकर क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। मुद्रण ने निम्नलिखित प्रकारों से फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी भूमिका निभाई

(i) ज्ञानोदय के दार्शनिकों के विचारों का प्रसार- पुस्तकों और लेखों ने ज्ञानोदय के चिंतकों के विचारों का प्रचार-प्रसार किया जिन्हें पढ़कर लोगों में नई चेतना जगी। फ्रांसीसी दार्शनिकों में रूढ़िगत सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्था की कटु आलोचना की। इन लोगों ने इस बात पर बल दिया कि अंधविश्वास और निरंकुशवाद के स्थान पर तर्क और विवेक पर आधृत व्यवस्था की स्थापना हो। चर्च और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार किया गया। वाल्टेयर और रूसो ऐसे महान दार्शनिक थे जिनके लेखन का जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ा।

(ii) वाद-विवाद की संस्कृति- पुस्तकों और लेखों ने वाद-विवाद की संस्कृति को जन्म दिया। अब लोग पुरानी मान्यताओं की समीक्षा कर उनपर अपने विचार प्रकट करने लगे। इससे नई सोच उभरी। राजशाही, चर्च और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। फलतः क्रांतिकारी विचारधारा का उदय हुआ।

(ii) राजशाही के विरुद्ध असंतोष- 1789 की क्रांति के पूर्व फ्रांस में बड़ी संख्या में ऐसा साहित्य प्रकाशित हो चुका था जिसमें तानाशाही राज व्यवस्था और इसके नैतिक पतन की कटु आलोचना की गयी थी। निरंकुशवाद और राजदरबार के नैतिक पतन का चित्रण भी इस साहित्य में किया गया। साथ ही सामाजिक व्यवस्था पर भी क्षोभ प्रकट किया गया। अनेक व्यंगात्मक चित्रों द्वारा यह दिखाया गया कि किस प्रकार आम जनता का जीवन कष्टों और अभावों से ग्रस्त था जकि राजा और उसके दरबारी विलासिता में लीन हैं। इससे जनता में राजतंत्र के विरुद्ध असंतोष बढ़ गया।

इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि को तैयार करने में मुद्रण सामग्री की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही जिससे प्रभावित होकर जनता क्रांति के लिए तत्पर हो गयी।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 3.
भारत मेंसामाजिक-धार्मिक सुधारों को पुस्तकों एवं पत्रिकाओं ने किस प्रकार बढ़ावा दिया?
उत्तर-
18वीं, 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया। 19वीं सदी में बंगाल में “भारतीय पुनर्जागरण” हुआ। इससे सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। परंपरावादी और नई विचारधारा रखनेवालों ने अपने-अपने विचारों का प्रचार करने के लिए पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लिया। राजा राममोहन राय ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए बंगाली भाषा में संवाद कौमुदी नामक पत्रिका का प्रकाशन 1821 में किया। उनके विचारों का खंडन करने के लिए रूढ़िवादियों ने समाचार चंद्रिका नामक पत्रिका प्रकाशित की।

राममोहन राय ने 1822 में फारसी भाषा में मिरातुल अखबार तथा अंग्रेजी में ब्रासृनिकल मैंगजीन भी प्रकाशित किया। उनके ये अखबार सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रभावशाली अस्त्र बन गए। 1822 में ही बंबई से गुजराती दैनिक समाचारपत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। द्वारकानाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राममोहन राय के प्रयासों से 1830 में बंगदत्त की स्थापना हुई।

1831 में जामे जमशेद, 1851 में रास्ते गोफ्तार तथा अखबारे सौदागर प्रकाशित किया गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी भारतीय समाचारपत्रों द्वारा सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक चेतना के विकास को शंका की दृष्टि से देखते थे। इसलिए 19वीं शताब्दी में भारतीय प्रेस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया। भारतीय समाचार पत्रों ने सामाजिक धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया। समाचारपत्रों ने न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों, धार्मिक मामले में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।

प्रश्न 4.
बदलते परिगेक्ष्य में भारतीय प्रेस की विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
19वीं शताब्दी से भारत में समाचार पत्रों के प्रकाशन में तेजी आई परंतु अबतक इसका प्रकाशन और वितरण सीमित स्तर पर होता रहा। इसका एक कारण यह था कि सामान्य जनता एवं समृद्ध कुलीन और सामंत वर्ग राजनीति में रूचि नहीं लेता था। इसी वर्ग के पास प्रेस चलाने के लिए धन और समय था परंतु यह वर्ग इस ओर उदासीन था। प्रेस चलाना घाटा का व्यवसाय माना जाता था। सरकार भी समाचार को कोई विशेष महत्व नहीं देती थी क्योंकि जनमत को प्रभावित करने में समाचार पत्रों की भूमिका नगण्य थी। इसके बावजूद भारतीय समाचिार पत्रों ने सामाजिक-धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया। समाचार पत्रों ने न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों, धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।

यद्यपि 1857 के विद्रोह के बाद भारतीय समाचार पत्रों की संख्या में वृद्धि हुई परंतु ये प्रजातीय आधार पर दो वर्गों एंग्लो इंडियन और भारतीय प्रेस में विभक्त हो गई। ऐंग्लो इंडियन प्रेस ने सरकार समर्थन रूख अपनाया। इसे सरकारी समर्थन और संरक्षण प्राप्त था। ऐंगलो-इंडियन प्रेस. को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। यह अंगरेजों के ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को बढ़ावा देता था तथा सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देनेवाले प्रयासों का विरोध करता था। इसका एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश राज के प्रति वफादारी की भावना का विकास करना था। इस समय अंग्रेजी भाषा और अंगरेजों द्वारा संपादित समाचार पत्रों में प्रमुख थे टाइम्स ऑफ इंडिया, स्टेट्स मैन, इंगलिशमैन, मद्रासमेल, फ्रेंड ऑफ इंडिया, पायनियर, सिविल एंड मिलिट्री गजट इत्यादि। इनमें इंगलिशमैन सबसे अधिक रूढ़िवादी और प्रतिक्रियावादी समाचार पत्र था। पायनि पर सरकार का समर्थक और भारतीयों का आलोचक था।

ऐंग्लों इंडियन समाचार पत्रों के विपरीत अंग्रेजी और देशी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों में अंगरेजी सरकारी नीतियों की आलोचना की गयी। भारतीय दृष्टिकोण को ज्वलंत प्रश्नों को रखा गया तथा भारतीयों में राष्ट्रीयता एवं एकता की भावना जागृत करने का प्रयास किया गया। ऐसे समाचार-पत्रों में प्रमुख थे हिन्दू पैट्रियट, अमृत बाजार पत्रिका इत्यादि। अनेक प्रबुद्ध भारतीयों ने 19वीं, 20वीं शताब्दियों में भारतीय प्रेस को अपने लेखों द्वारा प्रभावशाली एवं शक्तिशाली बनाया।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
औपनिवेशिक काल में प्रकाशन के विकास के साथ-साथ इसे नियंत्रित करने का भी प्रयास किया गया। ऐसा करने के पीछे दो कारण थे पहला, सरकार वैसी कोई पत्र-पत्रिका अथवा समाचार पत्र मुक्त रूप से प्रकाशित नहीं होने देना चाहती थी जिससे सरकारी व्यवस्था और नीतियों की आलोचना हो। तथा दूसरा, जब अंग्रेजी राज की स्थापना हुई उसी समय से भारतीय राष्ट्रवाद का विकास भी होने लगा। राष्ट्रवादी संदेश के प्रसार को रोकने के लिए प्रकाशन पर नियंत्रण लगाना सरकार के लिए आवश्यक था। अतः समय-समय पर सरकार विरोधी प्रकाशनों पर नियंत्रण लगाने का प्रयास किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी सुरक्षात्मक और राजनीतिक कारणों से प्रेस पर नियंत्रण लगाने के प्रयास किए गए। 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप सरकार का रूख प्रेस के प्रति पूर्णतः बदल गया। राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रसार को रोकने के लिए प्रेस को कुंठित करने के प्रयास किए गए। प्रेस को नियंत्रित करने के लिए पारित विभिन्न अधिनियम उल्लेखनीय हैं

  • 1799 का अधिनियम-फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव को भारत में फैलने से रोकने के लिए गवर्नर जनरल वेलेस्ली ने 1799 में एक अधिनियम पारित किया। इसके अनुसार समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दिया गया।
  • 1823 का लाइसेंस अधिनियम-इस अधिनियम द्वारा प्रेस स्थापित करने से पहले सरकारी अनुमति लेना आवश्यक बना दिया गया।
  • 1867 का पंजीकरण अधिनियम-इस अधिनियम द्वारा यह, आवश्यक बना दिया गया कि प्रत्येक पुस्तक, समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिका पर मुद्रक, प्रकाशक तथा मुद्रण के स्थान का नाम अनिवार्य रूप से दिया जाए। साथ ही प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति सरकार के पास जमा करना आवश्यक बना दिया गया।
  • बर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878)- लार्ड लिटन के शासनकाल में पारित प्रेस को प्रतिबंधित करनेवाला सबसे विवादास्पद अधिनियम यही था। इसका उद्देश्य देशी भाषा के समाचार पत्रों पर कठोर अंकुश लगाना था। अधिनियम के अनुसार भारतीय समाचार पत्र ऐसा कोई समाचार प्रकाशित नहीं कर सकती थी जो अंगरेजी सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट करता हो। भारतीय राष्ट्रवादियों ने इस अधिनियम का कड़ा विरोध किया।

सरकार ने प्रेस पर अंकुश लगाने के लिए समय-समय पर अन्य कानून भी बनाए। द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ होने पर भारत रक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके द्वारा युद्ध संबंधी समाचारों के प्रकाशन को नियंत्रित किया गया। ‘भारत छोड़ आंदोलन के दौरान सरकार ने समाचार पत्रों पर कठोर नियंत्रण स्थापित किया। 1942 में लगभग 90 समाचार पत्रों का प्रकाशन रोक दिया गया। इस प्रकार औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय प्रेस को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न अधिनियों के द्वारा काफी प्रयास किए।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेस की भूमिका एवं इसके प्रभावों की समीक्षा करें।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के उद्धव एवं विकास में प्रेस की प्रभावशाली भूमिका थी। इसने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिवावं अन्य मुद्दों को उठाकर उन्हें जनता के समक्ष लाकर उनमें राष्ट्रवादी भावना का विकास किये तथा लोगों में नई जागृति ला दी।

(i) राजनीतिक क्षेत्र में योगदान प्रेस में प्रकाशित लेखों और समाचार-पत्रों से भारतीय औपनिवेशिक शासन के वास्तविक स्वरूप से परिचित हुए। समाचार पत्रों ने उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के घिनौने मुखौटे का पर्दाफाश कर दिया तथा इनके विरूद्ध लोकमत को संगठित किया। जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का दायित्व समाचारपत्रों ने अपने ऊपर ले लिया। समाचार पत्रों ने देश में चलनेवाले विभिन्न आंदोलनों एवं राजनीतिक कार्यक्रमों से जनता को परिचित कराया। काँग्रेस के कार्यक्रम हो या उसके अधिवेशन, बंग-भंग आंदोलन अथवा असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह या भारत छोड़ो आंदोलन, समाचारों द्वारा ही लोगों को इनमें भाग लेने की प्रेरणा मिलती थी। काँग्रेस की भिक्षाटन नीति का प्रेस ने विरोध किया तथा स्वदेशी और बहिष्कार की भावना को बढ़ावा देकर राष्ट्रवाद का प्रसार किया। भारतीयों की नजर में महात्मा गांधी भी प्रेस के माध्यम से ही आए।

(ii) आर्थिक क्षेत्र में योगदान आर्थिक क्षेत्र में भी प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निबाही। इसने अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के आर्थिक शोषण की घोर निंदा की। धन-निष्कासन की नीति, आयात-निर्यात एवं औद्योमिक नीति की आलोचना समाचार पत्रों में प्रमुखता से की गई। अनेक समाचार पत्रों ने भारत की आर्थिक दुर्दशा के लिए सरकारी आर्थिक नीतियों को उत्तरदायी बताकर उनमें परिवर्तन की मांग की। समाचार-पत्रों ने आदिवासियों, किसानों के शोषण और उनके आंदोलनों को प्रमुखता से छापा। समाचार-पत्रों ने बहिष्कार और स्वदेशी की भावना को समर्थन दकर एक ओर राष्ट्रीयता की भावना को विकसित किया तो दूसरी ओर ब्रिटिश आर्थिक हितों पर कुठाराघात किया।

(iii) सामाजिक क्षेत्र में योगदान- सामाजिक सुधार आंदोलनों को भी समाचार पत्रों ने समर्थन दिया। इसने रूढ़िगत परंपरावादी समाज में सुधार लाने के लिए किए गए प्रयासों को अपना समर्थन दिया। इसने जाति प्रथा, छुआछुत की आलोचना की महत्वपूर्ण योगदान यह था कि इसने सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने तथा हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयासों की सराहना कर इसे प्रोत्साहित किया। इस प्रकार पाष्टीय आंदोलन में प्रेस ने अपनी सराहनीय . भूमिका निभाई।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 8 प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10 History प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद Notes

  • मुद्रण कला का आविष्कार 1041 में एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने किया था। .
  • धात के मवेबल टाइपों द्वारा प्रथम पुस्तक 13वीं सदी के पर्वार्ट में मध्य कोरिया में छापी गयी।
  • स्याही से लगे काठ के ब्लॉक पर कागज को रखकर छपाई की विधि को ब्लॉक प्रिटिग कहते हैं।
  • जर्मनी के गुटेन बर्ग ने सर्वप्रथम हैण्डप्रेस का विकास किया और 46 लाइ न में बाइबिल को 1448 में छापा।
  • मार्टिन लूथर ने कहा- “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है सबसे बड़ा तोहफा।
  • प्रिंटिंग प्रेस सबसे पहले भारत में पुर्तगाली धर्मप्रचारकों द्वारा 16वीं सदी में लाया गया।
  • प्रेस ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हर पक्ष-चाहे वह राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक हो या. सांस्कृतिक-सबको प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया।
  • भारतीय समाचार पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में चार्ल्स मेटकॉफ को विभूषित किया गया।
  • चीन की सिविल सेवा परीक्षा ने मुद्रित सामग्रियों की मांग बढ़ाई।
  • भारतीयों द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार-पत्र 1816 में गंगाधर भटाचार्य का साप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ था।
  • वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट 1878 से बचने के लिए अमृत बाजार पत्रिका ने अपनी भाषा बदल ली और अंग्रेजी में उसका प्रकाशन होने लगा।
  • मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इंडिपेंडेंस, शिव प्रसाद गुप्ता हिन्दी दैनिक आज, के. एम. पन्निकर ने 1922 में हिन्दुस्तान टाइम्स का संपादन प्रारंभ किया। बाद में हिन्दुस्तान टाइम्स का सम्पादन कार्य मदन मोहन मालवीय के हाथ में आया और अंततः 1927 में इस पत्र को जी. डी. बिड़ला ने अपने हाथों में ले लिया।
  • ग्यारहवीं शताब्दी में चीन से रेशम मार्ग द्वारा कागज यूरोप पहुँचा।
  • 1295 ई. में मार्कोपोलो नामक खोजी यात्री चीन से इटली वापस आया तो वह अपने साथ काठ की तख्ती (वुड ब्लॉक) पर छपाई की तकनीक लेता आया।
  • 1336 में कागज बनाने का पहला कारखाना जर्मनी में खोला गया।
  • छापाखाना का आविष्कार जर्मनी के गटेन्वर्ग ने 1450 में किया।
  • गेटेन्बर्ग छपाई मशीन को ‘मूवेबल टाइप प्रिटिंग मशीन’ कहा गया।
  • गुटेन्बर्ग प्रेस में जो पहली पुस्तक छपी वह ईसाई धर्मग्रंथ बाइबिल थी।
  • 1475 ई. में सर विलियम कैक्सटन मुद्रणकला को इंगलैंड में लाए तथा वेस्टमिन्सटर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ।.
  • मार्टिन लूथर को धर्म सुधार आंदोलन का अग्रदूत कहा जाता है।
  • मार्टिन लूथर ने 1517 में पिच्चानवें स्थापनाएं लिखी। लूथर ने बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट का जर्मन अनुवाद भी प्रकाशित करवाया।
  • धर्म-विरोधी विचारों के प्रसार को रोकने के लिए रोमन चर्च ने इक्बीजीशन नामक संस्था का गठन किया।
  • मार्टिन लूथर का कथन है, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा