Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Bihar Board Class 12 History विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया? .
उत्तर:
विद्रोही सिपाहियों द्वारा नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से आग्रह –

  1. विद्रोही सिपाही पुराने शासकों से सहयोग के लिए आंदोलन को और अधिक प्रखर बनाना चाहते थे।
  2. वे पुराने शासकों का नेतृत्व चाहते थे, क्योंकि उन्हें युद्ध करने और शासन करने का पर्याप्त अनुभव था। मेरठ आदि के सिपाहियों ने बहादुरशाह को नेतृत्व संभालने के लिए मजबूर कर दिया था।
  3. वे अपने विद्रोह की विधिक-मान्यता देना चाहते थे। जब बहादुरशाह ने नेतृत्व स्वीकार कर लिया तो उनका विद्रोह वैध हो गया।
  4. इसी प्रकार कानपुर में नाना साहिब, आरा में कुंवर सिंह, लखनऊ में बिरजिस कद्र आदि को शहर के लोगों और उनकी जनता ने नेतृत्व संभालने के लिए विवश किया जिसे उन्हें स्वीकार करना पड़ा।

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प्रश्न 2.
उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे?
उत्तर:
विद्रोहियों के योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम करने के साक्ष्य –

  1. अवध मिलिट्री पुलिस पर कैप्टेन हियर्से की सुरक्षा का उत्तरदायित्व था। यह दायित्व भारतीय सिपाहियों पर था। यहीं 41 वीं नेटिव इन्फेंट्री भी तैनात थी। इन्फेंट्री की दलील थी कि अवध मिलिट्री डियर्स की हत्या कर दे या उसे गिरफ्तार करके 41 वीं नेटिव इन्फेंट्री के हवाले कर दे परंतु मिलिट्री पुलिस ने दोनों दलीलें खारिज कर दी।
  2. विद्रोह के सुनियोजन विषय में एक इतिहासकार चार्ल्स बाल के लेख से पता चलता है। उसके अनुसार सिपाहियों की पंचायतें कानपुर सिपाही लाइन में जुटती थी। स्पष्ट है कि कुछ निश्चित फैसले अवश्य लिये जाते होंगे।
  3. सिपाही लाइनों में रहते थे और सभी की जीवन शैली एक जैसी थी। वे प्रायः एक से थे। ऐसे में कोई योजना बनाना उनके लिए आसान था।

प्रश्न 3.
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की भूमिका-अंग्रेजों ने भारत में लगभग धर्म-निरपेक्ष नीति को अपनाया तथा बलपूर्वक किसी का धर्म परिवर्तन कभी नहीं किया। अंग्रेज लोगों का उद्देश्य भारत में धर्म-प्रसार नहीं वरन् धन प्राप्ति था। परंतु व्यापारियों के साथ भारत आए धर्म-प्रचारकों ने ईसाई मत का प्रसार प्रारंभ कर दिया। इस मत के प्रसार के लिए सरकारी कोष से धन दिया जाता था तथा ईसाई बनने वाले व्यक्तियों को पद प्रदान करने में प्राथमिकता मिलती थी।

हिन्दू धर्म और इस्लाम के विरुद्ध खुल्लमखुल्ला अनेक बातों का प्रचार करते थे। वे धर्म के अवतारों तथा पैगम्बरों की निन्दा करते तथा उनको गालियाँ देते थे तथा सरकार उनको रोकने का प्रयास नहीं करती थी। इसलिए भारतीयों को इन धर्म-प्रचारकों से घृणा होने लगी थी। लार्ड विलियम बैंटिक ने एक नियम पास किया जिसके अनुसार ईसाई धर्म को अपनाने पर ही हिन्दू पिता की सम्पत्ति में पुत्र को भाग मिल सकता था।

इसके अतिरिक्त डलहौजी की गोद-निषेध नीति ने भी हिन्दू धर्मावलम्बियों को असन्तुष्ट किया क्योंकि गोद लेने की प्रथा धार्मिक थी। हिन्दू धर्म के अनुसार नि:संतान व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिल सकती अतः उसे किसी निकट संबंधी को गोद लेकर सन्तानहीनता के कलंक से मुक्त होना पड़ता था। किन्तु डलहौजी के निषेध करने पर हिन्दुओं में बहुत असंतोष फैला। एक नियम द्वारा कारागार में बन्दियों को अपना जलपान रखने से रोक दिया गया। इससे हिन्दुओं की शंका और बढ़ गई कि उनको ईसाई बनाया जा रहा है। शिक्षा पद्धति से भी भारतीय असंतुष्ट थे क्योंकि मिशन स्कूलों में बच्चे के मस्तिष्क में हिन्दू एवं मुस्लिम धर्म के विरुद्ध बातें भरकर उसे ईसाई धर्म की ओर आकर्षित किया जाता था।

ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रधान ने ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमन्स में यह विचार व्यक्त किया, “परमेश्वर ने भारत का विस्तृत साम्राज्य इंग्लैण्ड को इसलिए सौंपा है कि ईसा का झण्डा भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक सफलतापूर्वक लहराता रहे। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का पूर्ण प्रत्यन करना चाहिए कि समस्त भारतीयों को ईसाई बनाने के महान कार्य किसी प्रकार की बाधा उपस्थित न होने पाए।”

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प्रश्न 4.
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गये?
उत्तर:
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए अपनाये गए तरीके:

  1. विद्रोह के समय लोगों की जाति और धर्म का स्थान नहीं दिया गया। विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में जाति और धर्म का भेदभाव किये बिना समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया जाता था।
  2. अनेक घोषणायें मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की ओर से या उनके नाम पर जारी की गई थीं परंतु उनमें भी हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखा जाता था।
  3. इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों का लाभ-हानि बराबर था।
  4. अंग्रेजों के आगमन से पूर्व की हिन्दू-मुस्लिम एकता का पुनस्मरण कराया जाता था और मुगल साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न समुदायों के सह-अस्तित्व का गुणगान किया जाता था।
  5. बहादुरशाह के नाम से जारी की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए जनता से इस विद्रोह में शामिल होने के लिए अपील की जाती थी।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाये?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा विद्रोह को कुचलने के लिए उठाये गये कदम निम्नलिखित है –

  1. प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि अंग्रेजों ने इस विद्रोह का दमन बड़ी कठिनाई से किया। उन्होंने सैनिक टुकड़ियाँ लगाने से पूर्व उनकी सहायता के लिए कुछ कानून और मुकदमों की घोषणायें की।
  2. उन्होंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया। फौजी अफसरों को आदेश दिया गया कि विद्रोह में भाग लेने वालों पर मुकदमा चलाया जाए और सजा-ए-मौत दी जाए।
  3. विद्रोह के दमन के लिए ब्रिटेन से आई सेना को कलकत्ता और पंजाब में लगा दिया गया। जून 1857 से सितम्बर 1857 के बीच उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दोनों पक्षों की भारी हानि हुई।
  4. गंगा घाटी में विद्रोह का दमन धीमा रहा। सैनिक टुकड़ियाँ गाँव-गाँव में जाकर विद्रोह का दमन कर रहा था।
  5. सैन्य कार्यवाही के साथ अंग्रेजों ने ‘फूट डालो’ की नीति भी अपनाई।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
अवध में विद्रोह के व्यापक होने और किसान ताल्लुकदार और जमींदारों के उसमें शामिल होने के कारण –

  • 1856 ई. में अवध को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया गया। अवध के विलय से अनेक क्षेत्रों और रियासतों में असंतोष छा गया।
  • अवध के अधिग्रहण से नवाब की गद्दी समाप्ति के साथ ताल्लुकदार भी तबाह हो गये। उनकी सेना और सम्पत्ति दोनों खत्म हो गईं। एकमुश्त बंदोबस्त के अंतर्गत अनेक ताल्लुकदारों की जमीन छीन ली गई।
  • ताल्लुकदारों से सत्ता हस्तांतरण का परिणाम किसानों की दृष्टि से बुरा हुआ। हालांकि ताल्लुकदार किसानों से खूब राजस्व और अन्य मदों से धन वसूल करते थे। परंतु किसानों के हितैषी भी थे। वे गाहे-बगाहे विभिन्न स्थितियों में सहायता भी करते थे परंतु अब उनकी सारी आशायें समाप्त हो गयीं। इसके परिणामस्वरूप ताल्लुकदार और किसान अंग्रेजों से रुष्ट हो गये और उन्होंने नवाब की पत्नी बेगम हजरत के नेतृत्व में विद्रोह में साथ दिया।
  • किसान फौजी बैरकों में जाकर सिपाहियों से मिल गये। इस प्रकार किसान भी सिपाहियों के विद्रोही कृत्यों में शामिल होने लगे।

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प्रश्न 7.
विद्रोही क्या चाहते थे? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था?
उत्तर:
विद्रोहियों की इच्छाएँ और सामाजिक समूहों की दृष्टि में अंतर:
विद्रोही क्या चाहते थे, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। जो स्रोत उपलब्ध हैं उनसे अंग्रेजों की सोच का पता चलता है। विद्रोही प्रायः अनपढ़ थे इसलिए कुछ लिख भी नहीं सकते थे। केवल उनके द्वारा जारी कुछ घोषणाओं और इश्तहारों का ज्ञान होता है और उनसे विशेष जानकारी नहीं मिलती। उनकी मुख्य इच्छाएँ निम्नलिखित थी:

1. एकता की कल्पना:
1857 के विद्रोहियों में एकता के विचारों का दर्शन होता है। उनके द्वारा जारी घोषणाएँ जाति व धर्म से ऊपर होती थीं। अनेक घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की ओर से होती थी। देश में एकता स्थापित करने के लिए विद्रोह को हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए बराबर लाभ-हानि के रूप में पेश किया जा रहा था। हालांकि अंग्रेजों ने इसमें बाधा डालने की अनेक कोशिशें की थी।

2. उत्पीड़न का विरोध:
विद्रोही अंग्रेजों द्वारा पैदा की जाने वाली पीड़ाओं का विरोध करना चाहते थे। इसके लिए वे समय-समय पर अंग्रेजों की निन्दा करते थे। लोग इस बात से क्रुद्ध थे कि छोटे-बड़े जमीन मालिकों की जमीन छीन ली गयी है और विदेशी व्यापार ने दस्तकारों और बुनकरों को तबाह कर दिया है। विद्रोही चाहते थे कि उनका रोजगार, धर्म, सम्मान और उनकी अस्मिता बनी रहे।

3. वैकल्पिक सत्ता की तलाश:
विद्रोही चाहते थे कि अंग्रेजों के स्थान पर किसी भारतीय सत्ता का शासन हो जिससे उनके कष्ट कम हो सकें और उनकी बेइज्जती न हो। इसीलिए विद्रोह के प्रारम्भ में दिल्ली, लखनऊ और कानपुर जैसे स्थानों पर अंग्रेजी सत्ता के समाप्त होते ही वहाँ मुगल शासन की तर्ज पर शासन स्थापित किया गया और अनेक नियुक्तियाँ की गईं। वस्तुतः वे अब अंग्रेजों से छुटकारा पाना चाहते थे।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह से विश्लेषण करते हैं?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से प्राप्त जानकारी और इतिहासकारों द्वारा इनका विश्लेषण:
1857 के विद्रोह विषयक चित्र महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं और इतिहासकारों ने इनका निम्नवत विश्लेषण किया है –
1. अंग्रेजों द्वारा निर्मित कुछ चित्रों में अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेजी नायकों का गुणगान किया गया है। 1859 में टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ इसी श्रेणी का उदाहरण है। जब विद्रोही सेना ने लखनऊ पर घेरा डाल दिया तो लखनऊ के कमिश्नर हेनरी लारेंस ने ईसाइयों को एकत्र किया और अति सुरक्षित रेजीडेंसी में शरण ली। बाद में कॉलेन कैम्पबेल नामक कमांडर ने एक बड़ी सेना को लेकर रक्षक सेना को छुड़ाया।

2. बार्कर की ही एक अन्य पेंटिंग में कैम्पबेल के आगमन के क्षण को आनन्द मनाते हुए दिखाया गया है। कैनवस के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम और हेवलॉक हैं। चित्र के अगले भाग में पड़े शव और घायल इस घेराबंदी के दौरान हुई लड़ाई की गवाही देते हैं। जबकि मध्य भाग में घोड़ों की विजयी तस्वीरें हैं। इससे ज्ञात होता है कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियंत्रण बहाल हो चुका है। इस प्रकार के चित्रों से इंग्लैण्ड स्थित जनता में अपनी सरकार के प्रति भरोसा पैदा किया जाता था।

3. ब्रिटिश अखबारों में भारत में हिंसा के चित्र और खबरें खूब छापती थीं। जिनको देखकर और पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग कर रही थी।

4. निःसहाय औरतों और बच्चों के चित्र भी बनाये गये। जोजेफ लोएल पेंटल के ‘स्मृति चित्र’ (In memorium) में अंग्रेज औरतें और बच्चे एक घेरे में एक-दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं। वे लाचार और मासूम दिख रहे हैं।

5. कुछ अन्य रेखाचित्रों और पेंटिंग्स में औरतें उग्र रूप में दिखाई गयी हैं। इनमें वे विद्रोहियों के हमले से अपना बचाव करती हुई नजर आती हैं। उन्हें वीरता की मूर्मि के रूप में दर्शाया गया है।

6. कुछ चित्रों में ईसाईयत की रक्षा हेतु संघर्ष को दिखाया गया है। इसमें बाइबिल को भी दिखाया गया है।

7. इन चित्रों में बदले की भावना के उफान में अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों की निर्मम हत्या का प्रदर्शन है।

8. 1857 के विद्रोह को एक राष्ट्रवादी दृश्य के रूप में चित्रित किया गया। इस संग्राम में कला और साहित्य को बनाये रखा गया। कलाओं में झाँसी की रानी को घोड़े पर सवार एक हाथ में तलवार और दूसरे में घोड़े की रास थामे दिखाया गया है। वह साम्राज्यवादियों का सामना करने के लिए रणभूमि की ओर जा रही हैं।

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प्रश्न 9.
एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक में अनेक चित्र और लिखित पाठ दिए गए हैं। इनके आधार पर विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बार में बताया जा सकता है। यहाँ चित्रकार फेलिस बिएतो का एक चित्र लेते हैं। इसमें लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह द्वारा बनवाए गए रंग बाग (Pleasure Garden) के खण्डहरों में चार व्यक्ति दिखाये गए हैं। 1857 के विद्रोह में इसकी रक्षा के लिए 2000 से अधिक विद्रोही सिपाही तैनात थे।

उनको कैम्पबेल के नेतृत्व वाली सेना ने मार डाला। इसके अहाते में नरकंकाल पड़े हुए दिखाई देते हैं। विजेताओं का दृष्टिकोण का दृष्टिकोण ऐसे चित्रों को बनवा कर लोगों में आतंक पैदा करने का था। इस चित्र की भयावहता लोगों में दहशत उत्पन्न कर सकती है। पराजितों का दृष्टिकोण इससे अलग हो सकता है। उनकी दृष्टि से कैम्पबेल के प्रति क्रोधाग्नि धधक सकती है। वे कैम्पबेल को निर्दयी व्यक्ति कह सकते हैं। वे इस चित्रण को झूठा भी कह सकते हैं क्योंकि इतने विद्रोहियों की हत्या एक साथ संभव नहीं है। ”

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
भारत के मानचित्र पर कलकत्ता (कोलकाता), बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) को चिह्नित कीजिए जो 1857 में ब्रिटिश सत्ता के तीन मुख्य केंद्र थे। मानचित्र 1 और 2 को देखिए तथा उन इलाकों को चिह्नित कीजिए जहाँ विद्रोह सबसे व्यापक रहा। औपनिवेशिक शहरों से ये इलाके कितनी दूर या कितनी पास थे।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान img 1

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
1857 के विद्रोही नेताओं में से किसी एक की जीवनी पढ़ें। देखिए कि उसे लिखने के लिए जीवनीकार ने किन स्रोतों का उपयोग किया है। क्या उनमें सरकारी रिपोर्टों, अखबारी खबरों, क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियों, चित्रों और किसी अन्य चीज का इस्तेमाल किया गया है? क्या सभी स्रोत एक ही बात करते हैं या उनके बीच फर्क दिखाई देते हैं? अपने निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
1857 पर बनी कोई फिल्म देखिए और लिखिए कि उसमें विद्रोह किस तरह दर्शाया गया है। उसमें अंग्रेजों, विद्रोहियों और अंग्रेजों के भारतीय वफादारों को किस तरह दिखाया गया है? फिल्म किसानों, नगरवासियों, आदिवासियों, जमींदारों ताल्लुकदारों आदि के बारे में क्या कहती है? फिल्म किस तरह की प्रतिक्रिया को जन्म देना चाहती है?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1857 विद्रोह के दो सामान्य कारण बताइए।
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए भारत का खूब आर्थिक शोषण किया तथा विभिन्न तरीकों से भारत का धन इंग्लैण्ड पहुँचा दिया।
  2. ब्रिटिश सरकार के सभी प्रशासनिक क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार था। जनता के कल्याण की दिशा में अंग्रेज सरकार सर्वथा मौन और निष्करूण थी।

प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह की शुरूआत कब हुई? उसमें विद्रोहियों ने क्या किया?
उत्तर:

  1. विद्रोह का विस्फोट 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में हुआ।
  2. मेरठ में सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अपना विद्रोह घोषित कर दिया। उन्होंने हथियार और गोला-बारूद वाले शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया और गोरों के बंगलों, कार्यालय, जेल, अदालत तथा सरकारी खजाने को तहस-नहस कर दिया।

प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण बताइये।
उत्तर:

  1. निश्चित तिथि से पहले यह विद्रोह फूट पड़ने के कारण सम्पूर्ण भारत और यहाँ के सभी लोग इसमें एक साथ भाग नहीं ले सके और अंग्रेज सतर्क हो गये।
  2. भारतीय सैनिकों के पास हथियार आदि साधनों का अभाव था। इसके विपरीत अंग्रेजों के पास अच्छे हथियार, वायरलेस तथा बड़ी सेना थी।

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प्रश्न 4.
1857 का विद्रोह एक ‘जन विद्रोह’ जैसे था?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन, दुष्चरित्र तथा उनकी कूटनीतियों के कारण सभी भारतीय असन्तुष्ट थे।
  2. अंग्रेजों के आर्थिक शोषण से समूची भारतीय जनता तंग आ गयी थी। इन्होंने भारत के परम्परागत ढाँचे को नष्ट कर दिया था। किसान, दस्तकार, हस्तशिल्पी, जमींदार तथा देशी राजा सभी को निर्धनता की आग में झोंक दिया गया था।

प्रश्न 5.
1857 के विद्रोह में नाना साहब का क्या योगदान रहा है?
उत्तर:

  1. पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया और सिपाहियों की सहायता से अंग्रेजों को कानपुर से भगा दिया।
  2. विद्रोह में बहादुरशाह द्वितीय को भारत का बादशाह घोषित करने के बाद इस विद्रोह को मान्यता दी गई। इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला। वे स्वयं भी दिल्ली शासक के सूबेदार बने।

प्रश्न 6.
झाँसी की रानी क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:

  1. झाँसी की रानी अपने साहस और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रसिद्ध है। स्त्री होने के बावजूद उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध अद्वितीय साहस का परिचय दिया। उन्होंने झाँसी में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया।
  2. झाँसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाये जाने के पश्चात् झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिया और अनेक स्थानों पर अंग्रेजों को पराजित किया। इसके लिए वे अंतिम क्षण तक लड़ती रही।

प्रश्न 7.
1857 ई. की क्रांति के दो महत्त्वपूर्ण परिणाम बताइए।
उत्तर:

  1. इस विद्रोह के फलस्वरूप हिन्दू-मुसलमानों में एकता आ गयी। इस विद्रोह में दोनों ने मिलकर भाग लिया था।
  2. इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अंग्रेज भारतीयों से सशंकित हो गये। उन्होंने कालांतर में प्रशासन, सेना और नागरिक सेवा में भारी फेर-बदल किया।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के चार प्रमुख केंद्रों और उनके नेताओं के नाम बताइये।
उत्तर:

  1. दिल्ली: बहादुरशाह द्वितीय।
  2. झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई।
  3. जगदीशपुर (बिहार): कुंअर सिंह।
  4. लखनऊ: बेगम हजरत महल।
  5. कानपुर: नाना साहब और तात्या टोपे।

प्रश्न 9.
1857 के विद्रोह में बहादुरशाह द्वितीय की क्या भूमिका रही?
उत्तर:

  1. बहादुरशाह द्वितीय ने 1857 के विद्रोह का परोक्ष रूप से नेतृत्व किया और यह विद्रोह हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया।
  2. उन्होंने अन्य राजाओं को पत्र लिखे कि वे अंग्रेजों से युद्ध करने और उन्हें भारत से बाहर भगाने के लिए भारतीय राज्यों का एक महासंघ बनाएँ और एकजुट होकर युद्ध करें।

प्रश्न 10.
1857 के विद्रोह में कुंअर सिंह की क्या भूमिका रही?
उत्तर:

  1. बिहार के आरा जिले के जगदीशपुर में जन्मे जमींदार कुंअर सिंह ने 1857 के विद्रोह का बिहार में नेतृत्व किया और बुढ़ापे में भी युद्ध कौशल दिखाकर युवकों को प्रेरित किया।
  2. उन्होंने बिहार में तो अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये ही, नाना साहब के साथ अवध और मध्य भारत में भी अंग्रेजों से लोहा लिया।

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प्रश्न 11.
ज्योतिष की भविष्यवाणी ने 1857 के विद्रोह को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:

  1. किसी ज्योतिष ने भविष्यवाणी की कि भारत उनकी गुलामी (जून 1757) के 100 वर्षों के पश्चात् 23 जून 1857 को अंग्रेजों से आजाद हो जायेगा।
  2. इस भविष्यवाणी से विद्रोही उत्साहित हो गये और उन्होंने विद्रोह का कार्य तेज कर दिया।

प्रश्न 12.
शाहमल कौन थे?
उत्तर:

  1. शाहमल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना के ग्रामीण थे। वह एक जाट कुटुम्ब से संबंधित थे जो 84 गाँवों में फैला हुआ था।
  2. शाहमल ने 84 गाँव के मुखियाओं और काश्तकारों को संगठित किया और उनको अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार किया। इसके लिए उन्होंने गुप्तचरों का भी हैरतअंगेज नेटवर्क स्थापित कर लिया था।

प्रश्न 13.
तात्या टोपे कौन थे?
उत्तर:
तात्या टोपे नाना साहब के निष्ठावान सेवक और पक्के देशभक्त थे। उन्होंने गोरिल्ला सेना के बल पर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। कालपी में उन्होंने अंग्रेज जनरल बिड़हन को पराजित किया। कैम्पबेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से हारने के बाद भी ग्वालियर में तात्या टोपे में अंग्रेजों के विरुद्ध रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। रानी झाँसी की मृत्यु के पश्चात वे अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिये गये और उन्हें फांसी दे दी गई।

प्रश्न 14.
फिरंगी शब्द का प्रयोग क्यों किया गया?
उत्तर:

  1. यह फारसी का शब्द है जो संभवतः फ्रैंक (जिससे फ्रांस का नाम पड़ा है) निकला है।
  2. इस अपशब्द को उर्दू और हिन्दी में पश्चिम के लोगों (अंग्रेजों) का मजाक उड़ और कभी-कभी अपमान करने की दृष्टि बोला जाता है।

प्रश्न 15.
मई-जून 1857 में ब्रिटिश शासन की क्या स्थिति थी?
उत्तर:

  1. मई-जून 1857 में ब्रिटिश शासन विद्रोहियों के आगे झुकने के लिए विवश था।
  2. अंग्रेज अपनी जिंदगी और घर-बार बचाने में लगे हुए थे। एक ब्रिटिश अधिकारी ने लिखा-‘ब्रिटिश शासन ताश के किले की तरह बिखर गया है।’

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प्रश्न 16.
1857 के विद्रोह में साहूकार तथा धनवान लोग विद्रोहियों के क्रोध का शिकार क्यों बने?
उत्तर:

  1. 1857 के विद्रोह में प्रायः साहूकार और धनवान लोग अंग्रेजों के पिठू बन गये थे।
  2. ये लोग निर्धनों गरीब और किसानों का शोषण करते थे।

प्रश्न 17.
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूस थे। इन्हें प्रयोग करने से पहले चर्बी को दाँत से छीलना पड़ता था। कहा गया कि कारतूस में गाय और सूअर की चबीं का प्रयोग किया गया है। यह कार्य हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए आपत्तिजनक था। सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया और विद्रोह पर उतारू हो गये।

प्रश्न 18.
विद्रोह से संबंधित चित्रों में मिस ह्वीलर को किस रूप में पेश किया गया है?
उत्तर:

  1. विद्रोह से संबंधित चित्रों में मिस ह्वीलर मध्य में दृढ़तापूर्वक खड़ी दिखायी गयी है। वह अकेले ही विद्रोहियों को मौत की नींद सुलाते हुए अपनी इज्जत की रक्षा करती दिखाई गई है।
  2. ऐसे चित्रों को प्रदर्शित कर अंग्रेजों की हौसला अफजाई की जाती थी।

प्रश्न 19.
सहायक संधि की दो शर्ते बताइये।
उत्तर:

  1. अंग्रेज अपने सहयोगी की बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे।
  2. सहयोगी पक्ष के भूक्षेत्र में एक ब्रिटिश सैनिक दुकड़ी तैनात रहेगी। सहयोगी पक्ष (सहायक संधि मानने वाला राज्य) को इस टुकड़ी के रख-रखाव की व्यवस्था करनी होगी।

प्रश्न 20.
अवध के अधिग्रहण से ताल्लुकदारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. इसके कारण ताल्लुकदार तबाह हो गये। उनकी जागीरें और किले छीन लिये गये। कई पीढ़ियों से उनकी जमीन और सत्ता पर अपना कब्जा था।
  2. ताल्लुकदारों की सेना भी समाप्त कर दी गई। पहले इनके पास हथियारबंद सिपाही होते थे। उनके दुर्गों को ध्वस्त कर दिया गया।

प्रश्न 21.
“बंगाल आर्मी की पौधशाला” किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:

  1. अवध को “बंगाल आर्मी की पौधशाला” कहा गया है।
  2. बंगाल आर्मी के अधिकांश सिपाही अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों से भर्ती होकर आए थे। उनमें अधिकांश ब्राह्मण या ‘ऊँची जाति’ के थे।

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प्रश्न 22.
भारत में ब्रिटिश शासन का कारीगरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. इंग्लैण्ड निर्मित वस्तुओं के आयात से बुनकर, सूती वस्त्र निर्माता, बढ़ई, लोहार, मोची आदि बेरोजगार हो गये।
  2. इनकी स्थिति इतनी खराब हुई कि वे भिखारी की हालत में पहुँच गये।

प्रश्न 23.
1857 की क्रांति के दो सामाजिक कारण बताइए।
उत्तर:

  1. रूढ़िवादी भारतीयों को अंग्रेजों द्वारा सती प्रथा को समाप्त करने (1829) तथा विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने की नीति पर आपत्ति थी।
  2. भारतीयों को लगता था कि अंग्रेज पश्चिमी विज्ञान तथा पश्चिमी (अंग्रेजी) शिक्षा के माध्यम से भारत का पश्चिमीकरण कर रहे हैं।

प्रश्न 24.
मौलवी अहमदुल्ला शाह क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:

  1. इस्लाम के प्रचारक मौलवी अहमदुल्ला ने गाँव-गाँव अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद का प्रचार किया।
  2. चिनहट के प्रसिद्ध संघर्ष में उसने हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में लड़ने वाली सेना के दाँत खट्टे कर दिये । वह अपनी वीरता और सामाजिक सेवा के कारण लोकप्रिय रहे।

प्रश्न 25.
शाहमल का 1857 के विद्रोह में क्या योगदान था?
उत्तर:

  1. शाहमल ने उत्तर प्रदेश के एक गाँव चौरासीदस के काश्तकारों तथा मुखियाओं को संगठित किया।
  2. उसने एक अंग्रेज अधिकारी के बंगले पर अधिकार कर उसे न्याय भवन की संज्ञा दी तथा अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों को जुलाई 1857 तक विप्लव करने की प्रेरणा दी तथा विद्रोह का नेतृत्व किया।

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प्रश्न 26.
1857 के विद्रोह में अवध के ताल्लुकदार क्यों शामिल हुए?
उत्तर:

  1. लार्ड डलहौजी ने 1856 ई. में अवध राज्य का अधिग्रहण कर लिया था। इसे आजाद कराने के लिए ताल्लुकदारों ने विद्रोह में भाग लिया।
  2. ताल्लुकदार अंग्रेजों की कूटनीति से भयभीत थे। विद्रोह में भाग लेकर वे अपने भय को समाप्त करना चाहते थे।

प्रश्न 27.
हेनरी हार्डिंग का 1857 के गदर से क्या संबंध था?
उत्तर:

  1. हेनरी हार्डिंग ने सैनिक शस्त्रों के आधुनिकीकरण का प्रयास किया। उसने ही चर्बी वाले कारतूस जारी किये।
  2. उसने जिस रायल एनफील्ड राइफलों का इस्तेमाल शुरू किया, उनमें चर्बी कारतूसों का प्रयोग किया। इसके खिलाफ भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया।

प्रश्न 28.
मंगल पाण्डेय कौन था?
उत्तर:

  1. आधुनिक भारतीय इतिहास में मंगल पाण्डेय को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वह बैरक पुर (बंगाल) की 34वीं बटालियन का एक सामान्य सिपाही था।
  2. उसने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था?
उत्तर:
अनेक अंग्रेज इतिहासकारों का विचार है कि 1857 ई. की यह क्रांति केवल सैनिक विद्रोह ही थी। इनके अनुसार यह नए कारतूसों के जारी करने से ही आरम्भ हुआ। कुछ अन्धविश्वासी ब्राह्मण तथा मुसलमान सैनिकों ने अपने साथियों में यह समाचार फैला दिया कि कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी है और इससे भड़कर सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। सर जॉन लॉरेंस (Sir John Lawrence), सर जेम्स औटरम (Sir James Outram), प्रसिद्ध इतिहासकार पी. ई. राबर्ट्स (P.E. Roberts) आदि उपर्युक्त विचार से सहमत है। इन यूरोपीय लेखकों का मत है कि इस विद्रोह के पीछे प्रजा का कोई हाथ नहीं था और कुछ भारतीय शासक इस क्रांति में इसलिए मिल गए क्योंकि अपनी पेंशनें और गद्दियाँ छिन जाने के कारण वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे।

जन साधारण का सहयोग इन विद्रोही सैनिकों तथा शासकों को प्राप्त नहीं था। अपने मत के पक्ष में वे कई तर्क देते हैं –

  1. सर्वप्रथम उनका कहना है कि यह विद्रोह उत्तर के थोड़े से भाग में ही फैला और सारे देश की जनता ने इनमें भाग नहीं लिया। पंजाब और अनेक देशी रियासतें इससे बिल्कुल अलग रही और अंग्रेजों की वफादार बनी रहीं।
  2. दूसरे, बहादुरशाह, नाना साहब और झाँसी की रानी आदि शासकों के अतिरिक्त बाकी किसी भारतीय शासक ने इसमें भाग नहीं लिया।
  3. तीसरे, देश के किसान लोग तथा अन्य नागरिक बिल्कुल शांत रहे और उन्होंने अधिक संख्या में विद्रोहियों का साथ न दिया।
  4. चौथे, यह विद्रोह शहरों तक ही सीमित रहा। गाँवों को इससे कोई सरोकार नहीं था।
  5. पाँचवें, यह विद्रोह थोड़ी-सी. अंग्रेजी सेना ने ही दबा दिया था। इससे यह संकेत मिलता है कि सभी भारतीय इस विद्रोह के पीछे न थे और न ही कोई स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीयता की भावनाओं से प्रेरित होकर ही यह विद्रोह उठ खड़ा हुआ था।

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प्रश्न 2.
1857 का विद्रोह स्वतः था अथवा ध्यानपूर्वक बनाई गई योजना का परिणाम? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें। अथवा, 1857 का विद्रोह ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ के नाम से जाना जाता है। क्या यह एक योजनाबद्ध विद्रोह था?
उत्तर:
अधिकांश भारतीय इतिहासकार 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से पुकारते हैं। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि युद्ध अंग्रेजों की शोषण और आधिपत्य करने की नीतियों के विरुद्ध था। इस विचारधारा में वीर सावरकर और अशोक मेहता का नाम आता है। उनके अनुसार इस युद्ध में जितने लोगों ने भाग लिया वे सभी देशभक्त तथा राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रात थे। अनेक स्थानों पर भारतीयों ने अंग्रेजों की सहायता की।

उनको गद्दार कह कर उनका बहिष्कार किया गया। इस विद्रोह में भाग लेने वालों में न कोई हिन्दू धर्म का था और न कोई मुस्लिम धर्म का। सब भारतीय थे और सभी ने समान रूप से अपने विदेशी शत्रु से लड़ाई लड़ी। मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने राजपूतों को कहा कि अंग्रेजों को भगाकर कोई भी राजदूत राजा इस गद्दी का मालिक बन सकता है। छोटे-छोटे लोगों यथा-मल्लाहों ने भी नदी पार करने के लिए नाव न देकर अंग्रेजों का विरोध किया। सावरकर ने अपनी पुस्तक में यह सिद्ध करना चाहा है कि यह युद्ध स्वतत्रता संग्राम था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद व जवाहर लाल नेहरू ने इस युद्ध को देशभक्तों का देशद्रोहियों (विदेशी शत्रु) के खिलाफ लड़ा जाने वाला युद्ध कहा है।

यह युद्ध कोई आकस्मिक नहीं था। इसमें समाज के साधारण लोगों से लेकर सेना के देशभक्त सैनिकों का पूरा सहयोग और योगदान था। इस युद्ध को असमय का युद्ध तो कह सकते हैं, परंतु यह देश की स्वतंत्रता का पहला संग्राम था। यह अवश्य कह सकते हैं कि इस संग्राम को शुरू करने वाले असंगठित थे। नेतृत्व अलग-अलग था। लड़ने के स्थान और समय को भी पूर्व निश्चित नहीं किया गया था। यदि ऐसा होता तो इस संग्राम का परिणाम कुछ और ही होता।

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प्रश्न 3.
1857 ई. में भारतीय सिपाहियों के असंतोष के कारणों का वर्णन कीजिए। अथवा, 1857 ई. के महान विद्रोह के सैनिक कारण बताइए। अथवा, वे कौन से कारण थे जिनकी वजह से ब्रिटिश शासन के खिलाफ सैनिक विद्रोह भड़क उठा और वे उस विद्रोह के प्रमुख आधार बने।
उत्तर:
1857 ई. के महान विद्रोह के प्रमुख सैनिक कारण –

  • कंपनी के भारतीय सैनिकों को अंग्रेज सैनिक व अधिकारी हेय दृष्टि से देखते थे। उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। उनके लिए उन्नति के सभी मार्ग बंद थे।
  • कंपनी के सैनिकों को लड़ाई में जाने पर विदेशी भत्ते के रूप में अतिरिक्त भत्ता दिया जाता था। लड़ाई खत्म होने पर अनेक जीते हुए प्रदेशों को कंपनी के अधिकार क्षेत्र में मिला लिया जाता था और भारतीय सैनिकों को दिया जाने वाला अतिरिक्त भत्ता बंद कर दिया जाता था। इस प्रकार वेतन में अचानक कमी के कारण सैनिकों में असंतोष फैला।
  • लार्ड कैनिंग के काल में जो सर्वभारतीय नियम पास हुआ उससे भी सैनिकों के मन में रोष की भावना उत्पन्न हो गई क्योंकि बहुत से सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे।

प्रश्न 4.
1857 ई. के विद्रोह के सामान्य कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह के सामान्य कारण निम्नलिखित थे –

  • लार्ड डलहौजी की राज्य-अपहरण नीति के कारण अनेक भारतीय शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये।
  • अंग्रेजों ने भारत को इंग्लैण्ड के कारखानों के लिए कच्चा माल खरीदने और तैयार माल बेचने की मण्डी समझा था। उन्होंने भारतीय व्यापार तथा उद्योगों को नष्ट करने के पूरे प्रयत्न किए जिससे देश में गरीबी फैल गई। यही कारण था कि लोग ब्रिटिश शासक से घृणा करने लगे थे।
  • भारतीय सैनिकों में भी अंग्रेजों के प्रति असंतोष था। उन्हें अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन दिया जाता था। उनके साथ बुरा व्यवहार भी किया जाता था। वे इस अन्याय को अधिक देर तक सहन नहीं कर सकते थे।
  • 1856 ई. में सरकार ने सैनिकों से पुरानी बन्दूकें वापस लेकर उन्हें नई ‘एन्फील्ड राइफलें’ दी। इन राइफलों में गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग होता था। भारतीय सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इंकार कर दिया। धीरे-धीरे यह घटना इतना गंभीर रूप धारण कर गई कि इसने 1857 ई. की क्रांति का रूप ले लिया।

प्रश्न 5.
19 वीं शताब्दी के पूर्वाध में भारत में अंग्रेजी राज के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों का व्यवहार कैसा था? उनकी 1857 के विद्रोह के प्रति क्या धारणा बनी?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अंग्रेजी राज के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों का व्यवहार उदार, मित्रवत् तथा सहानुभूतिपूर्ण था। उन्हें ब्रिटिश सरकार की नैतिकता तथा सच्चाई में विश्वास था। वे मानते थे कि अंग्रेजों ने भारत में कानून का राज्य, कानून की समानता तथा राजनैतिक एकीकरण की स्थापना की है। अंग्रेजों ने भारतीयों का आधुनिक विचारों तथा शिक्षा पद्धति से परिचय कराया। वे भारत की प्रगति के लिए इसको अपने विशाल साम्राज्य का अंग बनाये रखना चाहते थे। 1857 के विद्रोह के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों की अच्छी धारणा नहीं बनी। उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलना भी पसंद नहीं किया। उन्होंने विद्रोहियों को किसी तरह का सहयोग भी नहीं दिया। यही कारण था कि विद्रोह विफल रहा। उनकी ऐसी धारणा विद्रोह के बाद धीरे-धीरे बदलने लगी और वे ब्रिटिश शासन को भारतीयों के लिए असहनीय तथा अन्यायपूर्ण मानने लगे।

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प्रश्न 6.
1857 के विद्रोह की घटना के लिए लार्ड डलहौजी कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह को भड़काने में डलहौजी की राज्य:
हड़पने की नीति विशेष उत्तरदायी रही। वह साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था। येन-केन-प्रकारेण ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। साम्राज्य विस्तार के लिए उसने भारतीय रियासतों के नि:संतान नरेशों को दत्तक पुत्र होने के अधिकार से बंचित कर दिया और उनके राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर दिया। सतारा, नागपुर, झाँसी, जौनपुर, सम्भलपुर आदि राज्य समाप्त कर दिए गये। अनेक शासकों पर कुशासन और अयोग्यता का आरोप लगाकर उनके राज्य हड़प लिए गए।

डलहौजी की इस नीति के कारण भारतीय शासकों में विद्रोह की भावना फैल गई और वे अंग्रेजों से लोहा लेने के कटिबद्ध हो गए। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने नाना साहब को दत्तक पुत्र के रूप में अपनाया था। पेशवा ने अपने जीवन का अंतिम भाग कानपुर ने निकट बिठूर में बिताया था। लार्ड डलहौजी ने राज्यापहरण नीति के अंतर्गत नाना साहब को पिता की उपाधि तथा वार्षिक पेंशन से वंचित कर दिया। इससे हिन्दुओं की भावनाओं को बहुत अधिक ठेस पहुंची।

इसी प्रकार अंग्रेजों ने झाँसी की रानी के साथ भी अनुचित व्यवहार किया। उनके पति द्वारा गोद लिये गए पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर किया गया और झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। इससे भारतीयों ने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने का संकल्प ले लिया तथा इनकी परिणति 1857 के विद्रोह में देखी गई।

प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिए कि पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों में किन कारणों से 1857 के विद्रोह के प्रति सहानुभूति नहीं थी? अथवा, पश्चिमी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने इस विद्रोह से अपने को अलग क्यों रखा? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
विद्रोह में शिक्षित भारतीयों की भूमिका:
आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया। उनकी यह गलत धारणा बनी थी कि ब्रिटिश शासन उनके आधुनिकीकरण में सहायक बनेगा। वे सोचते थे कि, अंग्रेजों का विद्रोह करने वाले देश की प्रगति में बाधक बन रहे हैं। कालान्तर में इन्हीं शिक्षित भारतीयों ने अपने अनुभव से सीखा कि विदेशी शासन देश को आधुनिक बनाने में सक्षम नहीं है। वह उसे दरिद्र बनाएगा तथा पिछड़ा हुए बनाए रखेगा। 1858 ई. के विद्रोह के पश्चात की घटनाएँ संकेत देती हैं कि शिक्षित भारतीय अति अज्ञानी और स्वार्थी थे। उन्हें अंग्रेजी शासन की वास्तविकता का ज्ञान केवल उस समय हुआ जब उनकी गर्दन भी मरोड़ी जाने लगी। इस सत्य का परिचय मिलते ही उन्होंने कालान्तर (20वीं शताब्दी की शुरूआत) में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक शक्तिशाली आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई:
1857 ई. के विद्रोह में मध्य भारत की सेना का नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया। उसने सेना का संगठन करके अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। उसका दमन करने के लिए मार्च 1858 ई. में ह्यू रोज झाँसी की ओर चला। रानी के नेतृत्व में उसकी सेना ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए। रानी के निमंत्रण पर तांत्या टोपे अपनी सेना लेकर उसकी मदद के लिए चल पड़ा परंतु मार्ग में ही सन ह्यू रोज ने उसे हरा दिया। अंग्रेजों ने निरंतर हमले किए परंतु वे झाँसी पर अधिकार करने में असफल रहे। अंग्रेजों ने कूटनीतिक चाल चली तथा कुछ सैनिकों को अपनी ओर मिला लिया । इन सैनिकों ने दक्षिण का द्वार खोल दिया।

अंग्रेजी सेना उस द्वार से झाँसी में घुस गई। शीघ्र ही दूसरा द्वार भी टूट गया तथा वहाँ से भी अंग्रेजी सेना अंदर आ गई। रानी ने अपने बच्चे को कमर से बाँधा तथा वह अंग्रेजी सेना को चीरती हुई झाँसी से बाहर निकल गई तथा तात्या टोपे के पास कालपी पहुँची। जब कालपी को अंग्रेजी ने जीत लिया तो लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर की ओर कूच किया। अंग्रेजों तथा उनके बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। उसकी बहादुरी देखकर अंग्रेज सेनापति भी दंग रह गया। रणभूमि में वीरता के साथ लड़ते हुए उसने अपने प्राण त्याग दिए।

प्रश्न 9.
1857 ई. के विद्रोह की असफलता में निहित कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. समय से पहले घटित होना:
विद्रोह की निर्धारित तिथि 31 मई 1857 थी लेकिन चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार करने पर दंडित किए जाने से सैनिकों ने इस विद्रोह को समय-पूर्व अंजाम दे दिया था।

2. एक नेता का अभाव:
पूरे विद्रोह का संचालन करने वाला एक नेता न था। सभी अपने-अपने क्षेत्र में नेतृत्व कर रहे थे। ऐसी स्थिति में आपसी ताल-मेल न बन पाया।

3. असंतुष्ट राजाओं का नेतृत्व:
जमींदार और देशी राजा अंग्रेजों से प्रसन्न न थे अतः मौका मिलते ही वे विद्रोह में शामिल हो गए। जनसाधारण उनके साथ न था क्योंकि अंग्रेजों की तरह जनसाधारण शोषण के प्रतीक दिखाई पड़ता था।

4. युद्ध सामग्री और रसद का अभाव:
अंग्रेजी सेना के पास बंदूकें और तोपें थीं परंतु भारतीय लोग लाठी, भाले, फरसे, कुल्हाड़ी आदि से लड़े। उनके पास खाने-पीने का सामान और अन्य कोई ऐसे साधन भी नहीं थे जिनसे वे हथियारों और अन्न की आपूर्ति सुनिश्चित कर पाते।

प्रश्न 10.
1857 के जन विद्रोह का प्रमुख केन्द्र दिल्ली क्यों बना?
उत्तर:
दिल्ली मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। यद्यपि मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था परंतु जनता के मन में विद्रोह के समय भी मुगल-साम्राज्य के प्रति सम्मान का भाव था। जब अंग्रेजों ने मुगल सम्राट का अपमान किया तो भारत की सम्पूर्ण जनता के कान खड़े हो गये। दिल्ली के इसी महत्त्व को ध्यान में रखकर विद्रोह की सारी योजना बहादुरशाह जफर (द्वितीय) के नेतृत्व में बनाई गई और यहीं से चपाती और कमल के फूल के माध्यम से विद्रोह का प्रचार समूचे देश में किया गया। विद्रोह का आरम्भ भी दिल्ली से 60 किमी. की दूरी पर मेरठ में हुआ।

दिल्ली में ही अधिकांश क्रांतिकारी एकत्र हुए थे और दिल्ली में ही अनेक अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला गया। दिल्ली के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही विद्रोहियों ने विजय के पश्चात् बूढ़े मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया। भौगोलिक दृष्टि से भी दिल्ली भारत का केन्द्र थी।

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प्रश्न 11.
सहायक संधि क्या थी?
उत्तर:
सहायक संधि:
सहायक संधि की प्रथा लॉर्ड वैलेजली ने चलाई थी। यह संधि कंपनी और देशी राज्यों के बीच होती थी। इस संधि को मानने वाले देशी राज्यों को कंपनी आन्तरिक तथा बाहरी संकट के समय सहायता का वचन देती थी। देशी राज्यों को इसके बदले में निम्नलिखित शर्तों का पालन करना पड़ता था –

  1. देशी राजा को अपने राज्य में स्थायी रूप से अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी। उसका सारा खर्च उसे ही सहन करना पड़ता था।
  2. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेज रेजीडैण्ट रखना पड़ता था।
  3. वह अपने राज्य में अंग्रेजों के सिवाय किसी भी यूरोपियन को नौकरी नहीं दे सकता था।
  4. वह कंपनी की आज्ञा के बिना किसी भी अन्य राज्य से युद्ध अथवा संधि नहीं कर सकता था।
  5. उसे आपसी झगड़ों को निपटाने के लिए अंग्रेजों को पंच मानना पड़ता था।

प्रश्न 12.
दक्षिण भारत में विद्रोह के कौन-कौन से प्रमुख नेता थे।
उत्तर:
दक्षिण भारत में विद्रोह के प्रमुख नेता –

  1. सतारा के रंगो बापूजी गुप्ते
  2. हैदराबाद के सोना जी पड़ित, रंगो पागे, मौलवी सैयद
  3. कर्नाटक के भीमराव मुण्डर्गी, छोटा सिंह
  4. कोल्हापुर के अण्णाजी फड़नवीस, तात्या मोहिते
  5. मद्रास के गुलाम गौस और सुल्तान बख्श, चिगलपेट के अन्तागिरी
  6. कोयम्बटूर के मुलबागल स्वामी
  7. केरल के विजय कुदारत कुंजी माया और मुल्लासली मोनजी सरकार

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प्रश्न 13.
अंग्रेजी नीति से अवध के ताल्लुकदार किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने ताल्लुकदारों के ऊपर अनेक प्रतिबंध लगा दिये और उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई।
  2. ताल्लुकदार की जमीन छीन ली गई जिससे उनकी शक्ति तथा सम्मान को भारी ठेस लगी।
  3. भूराजस्व की माँग लगभग दुगुनी कर दी गई जिससे ताल्लुकदारों में रोष फैल गया।
  4. 1856 की एकमुश्त बंदोबस्त के अधीन उन्हें उनकी जमीनों से बेदखल किया जाने लगा। कुछ ताल्लुकदारों के तो आधे से भी अधिक गाँव हाथ से जाते रहे।
  5. ताल्लुकदारों के दुर्ग ध्वस्त कर दिये गए और उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया।

प्रश्न 14.
सहायक संधि ने अंग्रेजी राज्य के प्रसार में किस प्रकार सहायता की?
उत्तर:
अंग्रेजी राज्य के प्रसार में सहायक संधि का योगदान –
1. सहायक संधि को सबसे पहले निजाम हैदराबाद ने स्वीकार किया क्योंकि वह मराठों से डरा हुआ था। निजाम ने बैलोरी तथा कड़ापाह के प्रदेश अंग्रेजों को दे दिए। उसने अंग्रेजी सेना के व्यय के लिए 24 लाख रुपये वार्षिक देना भी स्वीकार किया।

2. वैलेंजली ने सूरत तथा तंजोर के राजाओं को पेंशन देकर इन दोनों राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

3. 1891 ई. में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने उसके पुत्र अली हुसैन की पेंशन नियत कर दी और उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।

4. कुछ समय पश्चात् वैलेजली ने टीपू सुल्तान को परास्त करके मैसूर की राजगद्दी पर एक हिन्दू शासक को बिठा दिया। उसे भी अंग्रेजों की सहायक-संधि स्वीकार करनी पड़ी।

5. पेशवा बाजीराव द्वितीय ने भी मराठों के आपसी संघर्ष के कारण सहायक संधि स्वीकार कर ली। उसके ऐसा करते ही मराठा सरदारों तथा अंग्रेजों में युद्ध छिड़ गया। वैलेजली ने उन्हें पराजित कर दिया और उन पर सहायक-संधि लाद दी।

सच तो यह है कि वैलेजली की सहायक संधि से भारत में अंग्रेजी राज्य की सीमाएँ काफी विस्तृत हो गईं। इसके अतिरिक्त भारत में अंग्रेजों की स्थिति काफी दृढ़ हो गई। भारत में अंग्रेजी सत्ता की काया ही पलट गई। इस विषय में किसी ने ठीक ही कहा है वैलेजली के नेतृत्व के सात वर्षों में इतने क्रांतिकारी परिवर्तन हुए कि इस काल को ब्रिटिश सत्ता के विकास का एक युग स्वीकार किया गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1857 ई. की महान क्रांति या भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य कारण क्या थे? अथवा, भारत में 1857 के विद्रोह के कारण लिखिए। अथवा, उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके फलस्वरूप सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया। देश के अनेक भागों में इस विद्रोह ने लोकप्रिय रूप क्यों लिया? अथवा, भारत में 1857 के विद्रोह के मूल कारणों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
1. राजनीतिक कारण:

  • लार्ड वैलेजली और डलहौजी को विस्तारवादी नीतियों से भारतीय जनता का माथा ठनका कि अंग्रेज भारत को हड़पना चाहते हैं। झाँसी, कानपुर, जैतपुर, नागपुर तथा अवध जैसे राज्य अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के शिकार बने।
  • मुगल साम्राज्य को हड़पने और सम्राट को राजमहल से बाहर निकालने पर मुसलमान भड़क उठे।
  • झाँसी के प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने और हिन्दू नरेशों की पेंशन बंद करके उनकी उपाधियाँ छीनने से हिन्दू वर्ग अंग्रेजों से रुष्ट हो गया।
  • कई राज्यों का विलीनीकरण करके वहाँ की सेना भंग कर दी गई। केवल अवध में ही 1000 सैनिकों को पदमुक्त कर दिया गया। इस तरह बड़े पैमाने पर सैनिकों में रोष बढ़ गया। वे विद्रोह को भड़काने में सहायता देने लगे।

2. आर्थिक कारण:

  • एक ओर अंग्रेजों का व्यापार भारत में फैलता जा रहा था किन्तु दूसरी ओर भारतीय व्यापार और उद्योग धन्धे समाप्त होते जा रहे थे।
  • बंगाल और दक्षिण के जागीरदारों की जागीरें छीन ली गईं। इनामी भूमि पर भी कर लगा दिया गया।
  • शिक्षित भारतीयों को उच्च पद नहीं दिए जाते थे। इससे उनके आत्म सम्मान को भारी आघात लगता था।
  • भारत का धन और कच्चा माल इंग्लैण्ड के उद्योगों में खपता जा रहा था। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था टूटती जा रही थी। लोगों के उद्योग धन्धे समाप्त हो गए थे। उनकी कृषि पर निर्भरता बढ़ती जा रही थी।

3. सामाजिक और धार्मिक कारण:
(I) सामाजिक सुधार (Social Reforms):
बाल विवाह, सती प्रथा और पर्दा प्रथा पर रोक लगा दी गई। विधवाओं पर फिर से विवाह करवाने के लिए कानून बनाया गया। इससे कट्टर हिन्दुओं को लगा कि अंग्रेज भारतीय समाज की मूलभूत मान्यताओं को उखाड़ कर उनके धर्म पर आघात कर रहे हैं। वे अंग्रेजों के कट्टर शत्रु बन बैठे।

(II) पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार (Spreading of Western Education):
पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के कारण मुल्ला-मौलवियों तथा पंडितों की पाठशालाओं और मदरसों को गहरा आघात लगा। वे भी अंग्रेजों के शत्रु बन बैठे।

(III) ईसाई धर्म का प्रचार (Preaching of Christianity):
निम्न वर्ग के लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर वे धर्म परिवर्तन के लिए तैयार किया जाने लगा। इन प्रलोभनों में धन, नौकरियाँ, सामाजिक स्तर पर समानता का व्यवहार करने की गारंटी दी जाती थी। बैंटिक ने कानून में इस आशय का संशोधन कर दिया कि यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है, तो उसे अपनी पैतृक सम्पत्ति में अपने अन्य सहोदरों के बराबर हिस्सा मिलेगा। इससे हिंदू समाज में खलबली मच गई। हिंदुओं को प्रतीत होने लगा कि भारत में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अंग्रेजों ने पूरी तरह से कमर कस ली है। ऐसी स्थिति में उनका अंग्रेजों को अपना शत्रु समझना स्वाभाविक था। भारत में पहले ही जातिवाद और छुआछूत के कारण भीषण सामाजिक भिन्नता थी। उस पर ईसाई धर्म विष-बेल की तरह उन पर छाने लगा था।

4. सैनिक कारण:
(I) भारतीय सैनिक समझते थे कि कई युद्धों में अंग्रेजों की जीत का मुख्य कारण वही लोग थे। उन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर युद्ध लड़ें, परंतु बदले में उन्हें न पदोन्नति और न वेतन ही बढ़ाया गया। इसके विपरीत अंग्रेज सैनिकों के लिए दोनों ही द्वार खुले थे। इससे भारतीय सैनिक भड़क उठे।

(II) बंगाली सैनिकों में से अधिकांश ब्राह्मण और ठाकुर होने के कारण छुआछूत के प्रति संवेदनशील थे। अवध के ब्रिटिश साम्राज्य में विलीनीकरण के बाद अवध की सेना भंग कर दी गई। हजारों सैनिक बेकार हो गए। जनरल सर्विसेज इंग्लिशमेंट एक्ट (General Services Engishment Act) पास किया गया जिसके अनुसार भारतीय सैनिकों को विदेशों में भेजा जा सकता है। ब्राह्मण लोग समझते थे कि समुद्र पार करने का अर्थ धर्म गंवाना है। वे अंग्रेजों को हिन्दू धर्म का विरोधी समझने लगे।

(III) अफगान युद्ध और क्रीमिया युद्ध में अंग्रेजों की हार से भारतीयों के हौसले बुलंद हो गए थे। उन्हें समझ में आ गया कि अंग्रेजों को हराया जा सकता था।

5. तात्कालिक कारण:
सैनिकों को जो कारतूस दिए जाते थे उन्हें प्रयोग में लाने से पहले दाँतों से छीलता पड़ता था। उन कारतूसों पर एक प्रकार की चिकनाई लगी होती थी। सैनिकों को जब पता चला कि यह सुअर और गाय की चर्बी है तो हिन्दू और मुसलमान दोनों ही सम्प्रदायों के लोग भड़क उठे। उन्होंने इसको अंग्रजों की धर्मभ्रष्ट करने की एक गहरी चाल समझा। उसी कारण का उन्होंने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया।

जिन सिपाहियों ने चिकनाई युक्त कारतूसों को प्रयोग करने से मना किया, उन्हें मृत्यु दंड की सजा दे दी गई। इससे सैनिकों ने विद्रोह करने की ठान ली। पहले उनके धर्म फिर सम्मान पर तथा अब उनकी जान पर आघात होने लगा था। मई, 1857 ई. में मेरठ और दिल्ली में विद्रोह को आग भड़क उठी। समय की आवाज को पहचान कर कई भारतीय राजा भी विद्रोह में शामिल हो गए। इनमें मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय, नाना साहब, लक्ष्मीबाई तथा अवध की बेगम जीनत महल आदि प्रमुख थे।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह की प्रकृति का विश्लेषण कीजिए। अथवा, क्या 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था? अथवा, 1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम कहना कहाँ तक उचित है? अथवा, क्या 1857 के विद्रोह का स्वरूप लोकप्रिय था? अपने उत्तर की पुष्टि कारण बताते हुए कीजिए। अथवा, 1857 के विद्रोह में जन समभागिता की मात्रा निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
1857 के विद्रोह का स्वरूप:
1857 के विद्रोह के स्वरूप के बारे में विद्वानों के विभिन्न मत पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों की राय से यह एक सैनिक विद्रोह था। कुछ अन्य विद्वान इसको प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं। उनके अनुसार इसका उद्देश्य भारत में अंग्रेजी शासन को समाप्त करने का था। इनमें से दो मतों का विवेचन इस प्रकार है –

प्रथम मत-यह एक सैनिक विद्रोह था:
इस मत के समर्थक सर जॉन लारेन्स, सर जॉन सीले, जेम्स आउट्रम, थम्पसन पी. ई. राबर्टस् और गैरेट इत्यादि पाश्चात्य विद्वान हैं, वे इसको पूर्णतया एक सैनिक विद्रोह मानते हैं। सर जॉन लारेन्स के विचारानुसार, “यह सैनिक विद्रोह मात्र” था जिसका तात्कालीन कारण कुछ और न होकर केवल कारतूस वाली घटना थी। इसका संबंध किसी पिछली सुनियोजित योजना से नहीं था।” सर जोन लारेन्स के कथन पर सहमति प्रकट करते हुए पी. ई. राबर्टस लिखते हैं-“यह (1857 ई. का विद्रोह) एक विशुद्ध सैनिक विद्रोह था।” थम्पसन व गैरेट के शब्दों में, “विद्रोहियों के इस प्रयास को संगठित राष्ट्रीय आंदोलन बताना भारतीय साहस व योग्यता का उपहास करना है। उल्लेखनीय है कि इसे एक सैनिक टुकड़ी ने कुचल दिया था।” जो लोग उपर्युक्त मत से सहमत नहीं हैं, उनके अनुसार इसको सैनिक विद्रोह इसलिए नहीं कहा जा सकता कि –

1. इसमें सभी सैनिकों ने भाग नहीं लिया। उस समय की तीन प्रेसिडेन्सियों में से केवल एक प्रेसिडेन्सी के सिपाहियों ने अंग्रेजों का विरोध किया। 25 प्रतिशत से अधिक भारतीय सैनिकों ने किसी भी समय एक साथ भाग नहीं लिया।

2. इस विद्रोह में केवल सैनिकों ने नहीं, बल्कि देशी राजाओं, नवाबों व जमींदारों ने भी भाग लिया। इस विद्रोह में अनेक बेकार शिल्पकारों व अवध के सैनिकों ने भी भाग लिया।

3. जितने सैनिकों ने विद्रोह में भाग लिया उनका एक मात्र उद्देश्य अपने हितों अथवा स्वार्थों की रक्षा करना नहीं था। वे तो भारत को विदेशी सत्ता से छुटकारा दिलाना चाहते थे।

4. यदि यह केवल सैनिक विद्रोह था तो अंग्रेजी सरकार ने गैरसैनिक जनता पर क्यों जुल्म ढाये? अंग्रेजों ने न केवल विद्रोही सिपाहियों को कुचला बल्कि दिल्ली, अवध, मध्य भारत, उत्तर पश्चिमी प्रान्तों तथा आगरा के लोगों के विरुद्ध भी भीषण और बेरहम लड़ाई छेड़ी । उन्होंने अनेक गाँवों को जला दिया तथा ग्रामीण व शहरी जनता का कत्लेआम किया।

दूसरा मत-यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था:
अनेक भारतीय इतिहासकारों व विद्वानों ने इस विद्रोह को भारतीय जनता का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है। इस मत के प्रवर्तक विनायक दामोदर वीर सावरकर हैं। उन्होंने सर्वप्रथम 1909 ई. में अपने ‘भारत की स्वतंत्रता का युद्ध’ नामक ग्रंथ में 1857 ई. के विद्रोह को भारत के लोगों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा। उनके विचारों का समर्थन के. एम. पाणिक्कर, अशोक मेहता, जे. सी. विद्यालंकार व जवाहरलाल नेहरू ने भी किया है तथा इसे राष्ट्रीय क्रांति अथवा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना है। इन विद्वानों के अनुसार इस विद्रोह का उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ कर एक राष्ट्रीय शासक को सत्ता सौंपने का था।

इसका क्षेत्र बहुत व्यापक था और यह विद्रोह चर्बी के कारतूस वाली घटना से शीघ्र फैल गया तथा इनमें सैनिकों, कई जमींदारों, कई राजाओं के साथ-साथ साधारण वर्ग के अनेक लोगों ने भी भाग लिया था। डा. पाणिक्कर के शब्दों में, “क्रांति का उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर निकाल कर देश में एक राष्ट्रीय राज्य की स्थापना करने का था। इस दृष्टिकोण से यह गदर अथवा विप्लव न होकर एक राष्ट्रीय क्रांति थी”। कुछ इसी प्रकार के विचार पंडित नेहरू ने भी अपनी पुस्तक ‘Discovery of India’ में व्यक्त किए हैं। यह सैनिक क्रांति से कहीं अधिक था, यह जल्द ही फैल गया तथा इसने लोकप्रिय विद्रोह और भारतीय स्वाधीनता के संग्राम का रूप धारण कर लिया।

अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक “1857 ई. की महान क्रांति” में लिखा है-“1857 ई. का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह न होकर एक सामाजिक ज्वालामुखी था। इसमें दबी हुई शक्तियों ने अभिव्यक्ति प्राप्त की।” किन्तु कुछ विद्वान 1857 ई. के विद्रोह को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर जन क्रांति या प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नहीं मानते हैं –

  • यह विद्रोह कुछ ही प्रांतों एवं विशेषकर शहरों तक सीमित रहा।
  • इस विद्रोह में अवध को छोड़कर अन्य किसी भी प्रान्त की साधारण जनता ने भाग नहीं लिया था।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार इस । विद्रोह से पहले आधुनिक राष्ट्रीयता की भावना का भारत में पूर्णतया अभाव था। इस भावना के अभाव में हुए किसी भी विद्रोह को राष्ट्रीय क्रांति या स्वतंत्रता संग्राम कहना गलत है। यदि यह भावना अंग्रेजों में होती तो अंग्रेज इस विद्रोह को कदापि नहीं कुचल सकते थे।

निष्कर्ष:
संक्षेप में 1857 ई. के संगठन व स्वरूप के विषय में हम कह सकते हैं कि –

  • यह विद्रोह सुनियोजित था परंतु इसकी शुरूआत अकस्मात हो गई।
  • यह विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था क्योंकि इसमें सेना के अतिरिक्त जमींदारों, जागीरदारों, देशी राजाओं व अन्य लोगों ने भी भाग लिया।
  • यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था किन्तु इसके पीछे राष्ट्रीयता की भावना या शक्ति नहीं थी।
  • विद्रोह का क्षेत्र सम्पूर्ण भारत न होते हुए भी बहुत विस्तृत था।
  • यह राष्ट्रीय आंदोलन का पूर्वाभ्यास था।

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प्रश्न 3.
वे कौन से कारण थे जिनकी वजह से ब्रिटिश शासन के खिलाफ सिपाही विद्रोह भड़क उठा? वे इस विद्रोह के मुख्य आधार क्या थे? अथवा, उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके फलस्वरूप सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
उत्तर:
1. दुर्बल अंग्रेजी सेना व जीर्ण-शीर्ण हथियार:
ब्रिटिश सेना को प्रथम अफगान युद्ध (1838-42 ई.) पंजाब के दो युद्धों (1845 व 1849 ई.) एवं क्रीमिया के युद्ध (1854-56 ई.) में करारी हार झेलनी पड़ी। इसके अतिरिक्त अनेक योग्य सैनिक अधिकारियों को गैर सैनिक विभागों में नियुक्त कर देने के कारण अंग्रेज सेना की कमाण्ड बूढ़े व निकम्मे अधिकारियों के हाथ में रह गई। इससे भारतीय सैनिकों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहन मिला।

2. संख्या में असमानता:
सेना में भारतीयों की संख्या अंग्रेजों से कहीं बढ़कर थी। डलहौजी जब भारत से गया तो सेना में 2,38,000 देशी व 45,322 अंग्रेज सैनिक थे। सेना का वितरण भी दोषपूर्ण था। दिल्ली व इलाहाबाद के सम्पूर्ण सैनिक देशी थे। यहाँ तक कि इन सेनाओं के अधिकारी भी देशी थे। सैनिक संख्या की असमानता ने देशी सैनिकों को निडर बना दिया।

3. भारतीय सैनिकों से भेदभाव व उनमें असंतोष:
अनेक कारणों से भारतीय सैनिक – अंग्रेज सरकार से रुष्ट थे। एक भारतीय सैनिक को केवल 9 रुपये प्रति माह मिलते थे, परंतु एक मामूली से अंग्रेज सैनिक को कई गुना वेतन (अर्थात् 60 या 70 रु० प्रति माह) मिलता था । इतना वेतन भारतीय सैन्य अधिकारी को भी नहीं मिलता था दूसरी बात यह थी कि उनके लिए उन्नति के सारे मार्ग बंद थे।

4. विदेशी भत्ते बंद करना:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने शुरू में उन सभी सैनिकों को विदेशी भत्ते के रूप में अतिरिक्त भत्ता दिया जो किसी भी भारतीय राज्य या क्षेत्र में लड़ने जाते थे। धीरे-धीरे कंपनी का साम्राज्य बढ़ता गया तथा एक आदेश द्वारा उन सभी क्षेत्रों में भारतीय को विदेशी भत्ता दिया जाना बंद कर दिया गया जिन क्षेत्रों को कंपनी साम्राज्य में मिला लिया जाता था। इस तरह कुल वेतन में आई कमी ने भारतीय सैनिकों में ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अनुशासनहीनता व असंतोष को बढ़ावा दिया।

5. समुद्र पार करने का आदेश:
बहुत से भारतीय सैनिकों ने द्वितीय बर्मा युद्ध में लड़ने के लिए जाने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उन दिनों देश में समुद्र पार करना धर्म के विरुद्ध समझा जाता था। सरकार ने यह नियम बना दिया कि सरकार भारतीय सैनिकों को कभी भी देश के किसी भाग या समुद्र पार करने का आदेश दे सकती है। वे ऐसा करने से इंकार नहीं कर सकते थे। इससे भारतीय सैनिकों में बहुत असंतोष फैला।

6. चर्बी वाले कारतूस:
विद्रोह का तत्कालीन कारण चर्बी लगे कारतूस थे। इन कारतूसों को दांत से काटकर प्रयोग किया जाता था। यह अफवाह फैल गई कि इन कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी है। इससे हिन्दू व मुसलमान सैनिक भड़क उठे। सैनिकों को यह विश्वास हो गया कि अंग्रेजों ने जान-बूझकर उनका धर्म भ्रष्ट करने के लिए ही कारतूसों में चबी का प्रयोग किया है।

7. अवध का विलीनीकरण:
अंग्रेजों की बंगाल में तैनात सेना में अवध और पश्चिमी प्रान्त के सैनिक थे। 1856 ई. में अवध के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय से बंगाल में तैनात सेना कुद्ध हो गयी। इस विलीनीकरण से अवध के सैनिक बेकार हो गये और उनके रोष में और अधिक वृद्धि हुई।

8. सेना का वितरण:
सैनिक दृष्टि से सभी महत्त्वपूर्ण स्थान भारतीय सैनिकों के कब्जे में थे। इलाहाबाद, कानपुर और दिल्ली जैसे महत्त्वपूर्ण स्थान भारतीय सैनिकों के नियंत्रण में थे। इस भावना ने सैनिकों के मन में विद्रोह को जन्म दिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सहरी क्या है?
(अ) रमजान के दिनों का भोजन
(ब) रोजे के दिनों में सूरज उगने से पहले का भोजन
(स) अपवित्र भोजन
(द) नगरीय भोजन
उत्तर:
(ब) रोजे के दिनों में सूरज उगने से पहले का भोजन

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प्रश्न 2.
1857 का विद्रोह किसके द्वारा शुरू हुआ?
(अ) सिपाहियों द्वारा
(ब) दस्तकारों द्वारा
(स) ताल्लुकदारों द्वारा
(द) देशी राजाओं द्वारा
उत्तर:
(अ) सिपाहियों द्वारा

प्रश्न 3.
दत्तकता के आधार पर किस रियासत का विलय नहीं किया गया?
(अ) अवध
(ब) झाँसी
(स) सतारा
(द) दिल्ली
उत्तर:
(द) दिल्ली

प्रश्न 4.
विद्रोही किससे नाराज नहीं थे?
(अ) देशभक्तों से.
(ब) उत्पीड़कों से
(स) सूदखोरों से
(द) अंग्रेजों से
उत्तर:
(अ) देशभक्तों से.

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प्रश्न 5.
विद्रोह के दिनों में क्या नहीं था?
(अ) बाजारों में सब्जियों का अभाव था
(ब) सब्जियों सड़ी मिलती थी
(स) लोगों की आमदनी बढ़ गई थी
(द) चारों ओर गंदगी दिखाई दे रही थी
उत्तर:
(स) लोगों की आमदनी बढ़ गई थी

प्रश्न 6.
फांस्बां सिक्टन कौन था?
(अ) एक अंग्रेज जमींदार
(ब) बिजनौर का ताल्लुकदार
(स) बिजनौर का तहसीलदार
(द) देशी ईसाई पुलिस इंस्पैक्टर
उत्तर:
(द) देशी ईसाई पुलिस इंस्पैक्टर

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प्रश्न 7.
एक फकीर विद्रोह का प्रचार कहाँ कर रहा था?
(अ) दिल्ली.
(ब) मेरठ
(स) कानपुर
(द) लखनऊ
उत्तर:
(ब) मेरठ

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किससे विद्रोह प्रभावित नहीं हुआ?
(अ) अफवाह
(ब) गाय और सूअर की चर्बी वाली कारतूस
(स) ब्राह्मणों द्वारा पूजा
(द) भविष्यवाणी
उत्तर:
(स) ब्राह्मणों द्वारा पूजा

प्रश्न 9.
शिक्षा में सुधार किसके काल में शुरू हुआ?
(अ) लार्ड कार्नवालिस
(ब) लार्ड वैलेजली
(स) लार्ड विलियम बैंटिक
(द) लार्ड हार्डिंग
उत्तर:
(स) लार्ड विलियम बैंटिक

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में किस राज्य का अधिग्रहण नहीं किया गया?
(अ) काशी
(ब) अवध
(स) सतारा
(द) झाँसी
उत्तर:
(अ) काशी

प्रश्न 11.
“ये गिलास फल (Cherry) एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” किसने कहा था?
(अ) लार्ड कार्नवालिस
(ब) लार्ड वैलेजली
(स) लार्ड डलहौजी
(द) लाई बैंटिक
उत्तर:
(स) लार्ड डलहौजी

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित में किस स्थान पर विद्रोह नहीं हुआ था?
(अ) दिल्ली
(ब) लखनऊ
(स) झाँसी
(द) मद्रास (चेन्नई)
उत्तर:
(द) मद्रास (चेन्नई)