Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Bihar Board Class 12 History बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वूपर्ण रही होगी?
उत्तर:

  1. विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता का महत्त्व-() विशिष्ट परिवारों की पितृवंशिकता में पिता की मृत्यु के पश्चात् संसाधनों पर पुत्र का अधिकार हो जाता है और वह इच्छानुसार उनका उपभोग करता है।
  2. अधिकांश राजवंशों ने पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण किया। इसमें कभी-कभी परिवर्तन भी होता था। कभी-कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे भाई का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु-बांधव गद्दी पर अपना अधिकार जमा लेते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियों जैसे-प्रभावती गुप्त (चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री) सत्ता का उपयोग करती थीं।
  3. पितृवंशिकता की परम्परा प्राचीन काल से थी। ऋग्वेद जैसे कर्मकांडीय ग्रंथों में लिखे गए मंत्रों से भी यह बात स्पष्ट होती है।
  4. इस परम्परा के कारण उत्तराधिकार के लिए संघर्ष नहीं होता था जैसे-मुगल वंश में गद्दी के लिए अनेक संघर्ष हुए।

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प्रश्न 2.
क्या आरंभिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
शास्त्रों के अनुसार केवल क्षत्रिय ही राजा हो सकते थे परंतु अनेक बार ऐसा नहीं हुआ और राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्गों से हुई है। मौर्य वंश ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की परंतु उनकी उत्पत्ति के विषय में विवाद है। बाद के बौद्ध ग्रंथ उन्हें क्षत्रिय बताते हैं जबकि ब्राह्मणीय ग्रंथ उन्हें निम्न कुल का मानते हैं। मौर्यों के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व ब्राह्मण थे।

गुप्त राजवंश को लेकर भी विवाद है। मध्य एशिया से आने वाले शकों को म्लेच्छ, बर्बर अथवा अन्य देशीय कहा गया है। सातवाहन कुल का संबंध भी ब्राह्मणों से था। इस प्रकार कई राजवंश क्षत्रिय वर्ग से संबंधित नहीं थे। वस्तुतः राजनीतिक सत्ता का उपयोग ऐसा प्रत्येक व्यक्ति कर सकता था जो समर्थन और संसाधन जुटा सके।

प्रश्न 3.
द्रोण, हिडिम्बा और मातंग की कथाओं में धर्म के मानदण्डों की तुलना कीजिए व उनके अंतर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
द्रोण:
गुरु द्रोणाचार्य क्षत्रिय राजकुमारों को युद्ध विद्या सिखाते थे। जब निषाद वर्ग के एकलव्य ने उन्हें अपना गुरु बनाना चाहा तो उन्होंने इंकार कर दिया। वह उनकी मूर्ति स्थापित करके धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा और उनके शिष्यों से आगे निकल गया। द्रोण को यह असह्य था और उन्होंने एकलव्य की विद्या नष्ट करने के लिए उसके दायें हाथ का अंगूठा दान में मांग लिया। वस्तुतः एकलव्य ने धर्म के मानदण्डों का उल्लंघन करके धनुर्विद्या ग्रहण करने का प्रयास किया।

हिडिम्बा:
हिडिम्बा राक्षस पुत्री थी। वह द्वितीय पांडव एवं बलशाली भीम पर मोहित हो गयी। पांडवों के इंकार करने पर भी वह जिद्द पर अड़ी रही। अंत में भीम से उसकी शादी हो गयी। यह कार्य भी धर्म के मानदण्डों के प्रतिकूल था। एक क्षत्रिय राजकुमार अपने से निम्न जाति से विवाह नहीं कर सकता था।

मातंग:
चाण्डाल भी अपने को समाज का अंग समझते थे। इसकी पुष्टि मातंग की कथा से होती है। मातंग बोधिसत्व (पूर्व जन्म में बुद्ध) का नाम था। उन्होंने चाण्डाल के रूप में जन्म लिया। उनका विवाह व्यापारी पुत्री दिथ्य मांगलिक नामक कन्या से हुआ और मांडव्य नामक पुत्र का जन्म हुआ। एक बार भिखारी के रूप में मातंग ने मांडव्य से उसके दरवाजे पर भोजन माँगा परंतु उसने उसकी अपेक्षा की।

बाद में उसकी माँ दिथ्थ ने इसके लिए उनसे माफी माँगी। यहाँ भी हमें धर्म के मानदण्डों का उल्लंघन स्पष्ट नजर आता है। वस्तुतः ऐसे मानदण्ड खोखले थे और समाज में वेष भावना की सृष्टि करते थे।

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प्रश्न 4.
किन मायनों में सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी जो ‘पुरुषसूक्त’ पर आधारित था।
उत्तर:
बौद्धों ने समाज में फैली विषमताओं के संदर्भ में एक अलग अवधारणा प्रस्तुत की। इस धर्म के अनुयायियों ने समाज में फैले अंतर्विरोधों को दूर करने के सक्षम उपायों पर भी अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।

सुत्तपिटक नामक ग्रंथ के अनुसार यद्यपि मनुष्य और वनस्पति अविकसित थी परंतु सर्वत्र शांति का माहौल था। मनुष्य प्राकृति से उतना ही ग्रहण करते थे जितना एक समय भोजन की आवश्यकता होती है। आगे चलकर मनुष्य लालची हो गया और उसमें हिंसक भाव पनपने लगे। इस स्थिति पर नियंत्रण लगाने के लिए ही राजा का चयन किया जाने लगा।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित अवतरण महाभारत से है जिसमें पांडव युधिष्ठिर दूत संजय को संबोधित कर रहे हैं:
संजय धृतराष्ट्र गृह के सभी ब्राह्मणों और मुख्य पुरोहित को मेरा विनीत अभिवादन दीजिएगा। मैं गुरु द्रोण के सामने नतमस्तक होता हूँ ……. मैं कृपाचार्य के चरण स्पर्श करता हूँ ……. (आर) कुरुवंश के प्रधान भीष्म के। मैं वृद्ध राजा (धृतराष्ट्र) को नमन करता हूँ।

मैं उनके पुत्र दुर्योधन और उनके अनुजों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता हूँ तथा उनको शुभकामनाएँ देता हूँ ……. मैं उन सब युवा कुरु योद्धाओं का अभिनंदन करता हूँ जो हमारे भाई, पुत्र और पात्र हैं ……. सर्वोपरि मैं उन महामति विदुर को (जिनका जन्म दासी से हुआ है) नमस्कार करता हूँ जो हमारे पिता और माता के सदृश हैं ……. मैं उन सभी वृद्धा स्त्रियों को प्रणाम करता हूँ जो हमारी माताओं के रूप में जानी जाती हैं।

जो हमारी पलियाँ हैं उनसे यह कहिएगा कि, “मैं आशा करता हूँ कि वे सुरक्षित हैं” …… मेरी ओर से उन कुलवधुओं का जो उत्तम परिवारों में जन्मी हैं और बच्चों की माताएँ हैं, अभिनंदन कीजिएगा तथा हमारी पुत्रियों का आलिंगन कीजिएगा …….. सुंदर, सुंगधित, सुवेशित गणिकाओं को शुभकामनायें दीजिएगा। दासियों और उनकी संतानों तथा वृद्ध, विकलांग और असहाय जनों को भी मेरी ओर से नमस्कार कीजिएगा …….

इस सूची को बनाने के आधारों की पहचान कीजिए-उग्र, लिंग, भेद व बंधुत्व के सन्दर्भ में क्या कोई अन्य आधार भी हैं? प्रत्येक श्रेणी के लिए स्पष्ट कीजिए कि सूची में उन्हें एक विशेष स्थान पर क्यों रखा गया है?

उत्तर:

  1. उस: इस सूची में विभिन्न उम्र के लोग यथा-वृद्ध-वृद्धा, युवक-युवतियाँ, वर-वधुएँ, पुत्र-पुत्रियाँ शामिल हैं।
  2. लिंग: इस सूची में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों हैं जैसे-वृद्ध-वृद्धा, युवक-युवतियाँ, धर-वधुएँ, पुत्र-पुत्रियाँ आदि।
  3. भेद: इस सूची में विभिन्न प्रकार के रिश्ते और संबंध हैं। जैसे-पितामह (भीष्म), गुरु (द्रोण और कृपाचार्य), पिता (धृतराष्ट्र), माताएँ, पलियाँ, कुलवधुएँ, दास, बाप्तियाँ, गणिकायें।
  4. बंधुत्व: युधिष्ठिर के भाई तथा दुर्योधन के भाई। यहाँ अन्य आधार भी हो सकते हैं जैसे बांधव और सेवक आदि का व्यवहार आदि। रिश्तों के आधार पर इन्हें एक स्थान पर रख गया है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध इतिहासकार मौरिस विंटरविट्ज ने महाभारत के बारे में लिखा था कि: “चूँकि महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है ….. बहुत सारी और अनेक प्रकार की चीजें इसमें निहित हैं …… (वह) भारतीयों की आत्मा की अगाध गहराई को एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।” चर्चा कीजिए।
उत्तर:
महाभारत का महत्त्व:
1. सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व:
महाभारत सम्पूर्ण साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। इतिहासकार महाभारत की विषय-वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों-आख्यान तथा उपदेशात्मक में विभाजित करते हैं आख्यान में कहानियों का संग्रह है और उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार के मापदण्ड हैं।

लेकिन यह विभाजन स्पष्ट नहीं है। अधिकांश इतिहासकारों का विचार है कि महाभारत के वस्तुतः एक भाग में नाटकीय कथानक था जिसमें उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गये। आरम्भिक संस्कृत परम्परा में महाभारत को इतिहास की श्रेणी में रखा गया है। महाभारत का स्वरूप काव्यात्मक होने मात्र से इसको इतिहास न मानना एक भारी भूल हो जाएगी।

2. ऐतिहासिक ग्रंथ:
ऋषि वेदव्यास ने युद्ध आरम्भ होने से पहले ही इसका इतिहास लिखने का मन बना लिया था। युद्ध के दौरान वेदव्यास इसकी प्रत्येक प्रकार की विस्तृत जानकारी लिखते रहे।

यदि यह केवल एक उपन्यास होता तो वेदव्यास जैसे महान् विद्वान इस युद्ध की इतनी छोटी-छोटी तथा अनावश्यक घटना का वर्णन क्यों करते। महाभारत में अनेक राजवंशों और शासकों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें राजा, उसकी पत्नी, उसकी संतान और उसके संबंधियों का वर्णन भी है।

3. धर्म और अर्धम का प्रतिरूप:
महाभारत में कौरव-पाण्डवों का युद्ध केवल धर्म तथा अधर्म के युद्ध का रूपक मात्र है। युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं और दुर्योधन अधर्म का प्रतिरूप है। इस धर्म और अधर्म के युद्ध में कृष्ण ईश्वर स्वरूप हैं और धर्म का साथ देते हैं।

4. अन्य महत्त्व:
महाभारत तथा भागवत पुराण जैसे अन्य धार्मिक ग्रंथ उस समय के नक्षत्रों तथा उपग्रहों की स्थिति के बारे में एकदम सही जानकारी देते हैं।

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प्रश्न 7.
क्या यह संभव है कि महाभारत का एक ही रचयिता था? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
साहित्यिक परम्परा में वेदव्यास को महाभारत का रचयिता माना जाता है परंतु महाभारत के लेखक को लेकर विद्वानों में विवाद है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संभवतः मूल कथा के रचयिता भाट सारथी (सूत) युद्ध क्षेत्र में जाते थे और उनकी विजय और उपलब्धियों के विषय में कवितायें लिखते थे।

पाँचवीं शताब्दी सा०यु०पू० से ब्राह्मणों ने इस कथा परम्परा पर अपना अधिकार कर लिया और इसे लिखने लगे। लगभग 200 सा०यु०पू० से 200 सा०यु० के मध्य तक इस ग्रंथ के रचना काल का दूसरा चरण दिखाई देता है।

200-400 ई० के मध्य मनुस्मृति से मिलते-जुलते अनेक उपदेशात्मक प्रकरण महाभारत में जोड़े गये। शुरू में यह ग्रंथ 10,000 श्लोकों का था परंतु जोड़ते-जोड़ते एक लाख श्लोकों का हो गया। इससे ज्ञात होता है कि महाभारत का एक ही रचयिता नहीं था।

प्रश्न 8.
आरम्भिक समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों की विषमतायें कितनी महत्त्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
आरम्भिक समाज के स्त्री पुरुष के संबंधों की विषमताओं का महत्त्व –
1. प्राचीन भारत में स्त्री-पुरुष के संबंधों में विषमता रही है परंतु कहीं न कहीं उसका महत्त्व अवश्य है। उदाहरण के लिए-स्त्रियों को विवाह के पश्चात् अपने पिता का गोत्र छोड़कर अपने पति का गोत्र अपनाना पड़ता था क्योंकि उस समय पुरुषों का अधिक महत्त्व था।

2. आरम्भिक समाज में पुरुषों द्वारा स्त्री के अस्तित्त्व और सम्मान का ध्यान नहीं रखा जाता था। महाभारत की द्यूतक्रीड़ा में युधिष्ठिर स्वर्ण, हस्ति, रथ, दास, सेना, कोष, राज्य तथा अपनी प्रजा की संपत्ति, अनुजों और मए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) इतिहास, फिर स्वयं को दाँव पर लगाकर हार गये। इसके बाद उन्होंने पाण्डवों की सहपत्नी द्रोपदी को भी दाँव पर लगाया और उसे भी हार गये। क्या इससे स्त्री-पुरुष संबंध मधुर बन सकता है।

3. इस घटना पर द्रोपदी ने भरी सभा में प्रश्न उठाया कि क्या स्त्री को दाँव पर लगाना उचित है? इसे अनुचित नहीं माना गया क्योंकि पत्नी पर पति का नियंत्रण सदैव रहता है। आज की नारी इस नियंत्रण को स्वीकार नहीं कर सकती। युधिष्ठिर हारने के बाद दास बन गये थे। अतः एक दास किसी अन्य को दाँव पर लगाने का अधिकार नहीं रखता था।

4. आरम्भिक समाज में स्त्रियों को सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में समान दर्जा नहीं मिला था। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था तथा उनको पारिवारिक संपत्ति का कोई भाग नहीं दिया जाता था।

5. वैदिक काल में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। स्त्रियों को अपना वर चुनने का अधिकार था जो स्वयंवर प्रथा द्वारा होता था। उत्तर वैदिक काल में उनसे सारे अधिकार छीन लिए गए।

6. विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन की संज्ञा दी जाती थी। इस संपत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी। इस पर उसके पति का कोई अधिकार नहीं होता था किन्तु मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक संपत्ति रखने अथवा अपने बहुमूल्य धन का गुप्त संचय करने के अधिकार से भी वंचित करती थी।

7. उच्च वर्ग की महिलायें यथा-वाकाटक रानी प्रभावती गुप्त संसाधनों पर अपना नियंत्रण रखती थी। इस प्रकार स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक हैसियत की भिन्नता उनके नियंत्रण में भिन्नता की वजह से थी।

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प्रश्न 9.
उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था।
उत्तर:
1. परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं जिन्हें हम संबंधी कहते हैं। संबंधियों को ‘जाति समूह’ भी कहा जा सकता है। परिवार के संबंधों को स्वाभाविक और रक्त संबंध माना जाता है। कुछ समाजों में भाई-बहन (चचेरे, मौसेरे) से खून का रिश्ता स्वीकार किया जाता है परंतु अन्य समाज इसे स्वीकार नहीं करते हैं।

2. पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों का उत्तराधिकारी बनता है। राजवंश पितृवंशिकता व्यवस्था का अनुसरण करते हैं। पुत्र के न होने की दशा में एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था।

3. कभी-कभी बंधु-बांधव भी गद्दी के उत्तराधिकारी हो जाते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ भी उत्तराधिकारी बन जाती थी जैसे-चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त।

4. प्रतिष्ठित परिवार अपनी कन्याओं और स्त्रियों के जीवन पर विशेष ध्यान देते थे। आगे चलकर कन्यादान पिता का महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य मान लिया गया। नगरीकरण के साथ विचारों का आदान-प्रदान तेज हो गया। इसके फलस्वरूप आरम्भिक आस्था और विश्वासों को मान्यता मिलनी कम हो गयी तथा लोगों ने स्वयंवर प्रथा को अपना लिया।

5. धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र में विवाह के आठ प्रकार मान्य हैं। इनमें से प्रथम चार ‘उत्तम’ माने जाते थे और शेष को निंदित माना गया। सम्भवतः ये विवाह पद्धतियाँ उन लोगों में प्रचलित थीं जो ब्राह्मणीय नियमों को नहीं मानते थे।

6. ब्राह्मणीय नियमों के अनुसार स्त्रियों का गोत्र पति का गोत्र माना जाता था। सातवाहन वंश में इस प्रथा को नहीं माना गया और पत्नियों ने अपने पिता के गोत्र को जारी रखा।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
इस अध्याय के मानचित्र की अध्याय 2 के मानचित्र 1 से तुलना कीजिए। कुरु-पांचाल क्षेत्र के पास स्थित महाजनपदों और नगरों की सूची बनाइए।
उत्तर:

  1. इस अध्याय के मानचित्र में विभिन्न महाजनपदों और नगरों को खुला दिखाया है जबकि अध्याय 2 के मानचित्र में ऐसा नहीं है।
  2. कुरु-पंचाल क्षेत्र के पास स्थित महाजनपद-शूरसेन, मत्स्य, वत्स, चेदि और अवन्ति हैं।
  3. कुरु-पांचाल क्षेत्र के पास स्थित नगर विराट, मथुरा, कौशाम्बी, उज्जयिनी, इन्द्रप्रस्थ और अहिच्छत्र हैं।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
अन्य भाषाओं में महाभारत की पुनर्व्याख्या के बारे में जानिए। इस अध्याय में वर्णित महाभारत के किन्हीं दो प्रसंगों का इन भिन्न भाषा वाले ग्रंथों में किस तरह निरूपण हुआ है उनकी चर्चा कीजिए। जो भी समानता और विभिन्नता आप इन वृत्तान्त में देखते हैं उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
कल्पना कीजिए कि आप एक लेखक हैं और एकलव्य की कथा को अपने दृष्टिकोण से लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
इतिहासकार साहित्यिक परम्पराओं का अनुसरण क्यों करते हैं?
उत्तर:

  1. कुछ ग्रंथ सामाजिक व्यवहार के मानदण्ड निर्धारित करते थे।
  2. अन्य ग्रंथ समाज का चित्रण करते थे।
  3. ये ग्रंथ कभी-कभी समाज में विद्यमान विभिन्न रिवाजों पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करते थे।

प्रश्न 2.
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण कब और किसके नेतृत्व में शुरू हुआ?
उत्तर:
1919 में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वी० एस० सुकथांकर के नेतृत्व में।

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प्रश्न 3.
महाभारत को विशाल महाकाव्य क्यों कहते हैं?
उत्तर:

  1. महाभारत वर्तमान स्वरूप में एक लाख से अधिक श्लोकों का है और इसमें विभिन्न सामाजिक श्रेणियों और परिस्थितियों का लेखा-जोखा है।
  2. इस ग्रंथ की रचना लगभग सा०यु०पू० 500 से आगे 1000 वर्ष तक होती रही।

प्रश्न 4.
महाभारत के प्रेषण में अनेक प्रभेद क्यों सामने आते हैं?
उत्तर:

  1. प्रभावशाली परंपराओं और लचीले स्थानीय विचार और आचरण के बीच संवाद कायम करके सामाजिक इतिहास लेखन के कारण तथा।
  2. इन संवादों में द्वन्द्व और मतैक्य दोनों की समालोचना रहने के कारण।

प्रश्न 5.
अंतर्विवाह और बहिर्विवाह में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोत्र के भीतर होने वाले और गोत्र से बाहर या अन्य गोत्र के साथ स्थापित किए जाने वाल विवाह-संबंध।

प्रश्न 6.
वंश क्या है?
उत्तर:
किसी भी परिवार का पीढ़ी-दर-पीढ़ी विकास-क्रम।

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प्रश्न 7.
इतिहासकार परिवार और बंधुता संबंधी विचारों का विश्लेषण क्यों करते हैं?
उत्तर:
समाज की मूल इकाई परिवार होने से उनको धारणा का समय-विशेष में कार्यान्वयन समझने के लिए अथवा सामाजिक इतिहास लेखन के लिए।

प्रश्न 8.
पितृवंशिकता और मातृवंशिकता में क्या अंतर है?
उत्तर:
क्रमश: पिता के पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि और माता से जुड़ी हुई वंश परंपरा।

प्रश्न 9.
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में वर्गों की उत्पत्ति के क्या उल्लेख हैं?
उत्तर:

  1. जगत के सभी तत्त्व जिनमें चारों वर्ण शामिल हैं आदि मानव के शरीर से उपजे थे।
  2. ब्राह्मण उसका मुँह था, उसकी भुजाओं से क्षत्रिय बना, वैश्य उसकी जंधा थी। उसके पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 10.
द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा क्यों मांगा?
उत्तर:
अर्जुन की प्रतिष्ठा तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर को बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 11.
मंदसौर अभिलेख में वर्णित रेशम के बुनकरों की सामाजिक स्थिति क्या थी?
उत्तर:

  1. ये लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे लेकिन कालान्तर में यहाँ से मंदसौर चले गये।
  2. उन्होंने तत्कालीन लाट शासक के अत्याचारों से तंग आकर मंदसौर के जनप्रिय शासक की शरण पाने के लिए यह देशांतर किया था।

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प्रश्न 12.
बहुपत्नी प्रथा एवं बहुपति प्रथा में क्या अंतर है?
उत्तर:
क्रमशः एक पुरुष की अनेक पलियाँ होना और एक स्त्री के अनेक पति होना।

प्रश्न 13.
आचार-संहितायें क्यों तैयार की गई?
उत्तर:
विविध जन-समुदाय के साथ विचारों का आदान-प्रदान होने की दशा में अपनी-अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 14.
गोत्र क्या है? इसके क्या नियम थे?
उत्तर:

  1. ऋषियों की वंश-परंपरा।
  2. विवाह पश्चात् स्त्रियों के गोत्र की पहचान पति के गोत्र से होना और अन्तर्विवाह की मान्यता का न रहना। एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह संबंध नहीं रख सकते थे।

प्रश्न 15.
दो साक्ष्य बताइए जिसमें व्यक्ति का नाम माँ से शुरू होता था।
उत्तर:

  1. सातवाहन राजाओं के नाम यथा-गौतमीपुत्र शातकर्णी।
  2. बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित आचार्यों और शिष्यों को पीढ़ियों की सूची।

प्रश्न 16.
वर्ण व्यवस्था के नियमों का पालन करवाने के लिए ब्राह्मणों ने क्या नीतियाँ अपनायीं?
उत्तर:

  1. वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत प्रतिपादित किया।
  2. इस व्यवस्था के नियमों का अनुपालन कराने का शासकों को निर्देश।
  3. प्रतिष्ठा के जन्म पर आधारित होने की जन जागरूकता उत्पन्न करना।

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प्रश्न 17.
600 सा०यु०पू० से 600 सायु० के दौरान हुए आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों ने समकालीन समाज पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:

  1. शिल्प विशेषज्ञों के एक विशिष्ट सामाजिक समूह का उदय हुआ।
  2. सम्पत्ति के असमान वितरण से सामाजिक विषमताएँ बढ़ गयीं।
  3. वन क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय का विस्तार होने से वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन शैली में बदलाव आया।

प्रश्न 18.
महाभारत की मूल कथा का संबंध किससे है?
उत्तर:

  1. महाभारत की मूल का संबंध कौरव तथा पाण्डव नामक दो रक्त-संबंध परिवारों के बीच युद्ध से है।
  2. महाभारत के कुछ भाग विभिन्न सामाजिक समुदायों के आचार व्यवहार के मानदण्ड तय करते हैं क्योंकि इस ग्रंथ के मुख्य पात्र इन्हीं मानदण्डों का अनुसरण करते हुए दिखाई देते हैं।

प्रश्न 19.
मनुस्मृति क्या थी? इसका संकलन कब हुआ?
उत्तर:

  1. मनुस्मृति धर्मशास्त्रों तथा धर्मसूत्रों में सबसे बड़ा ग्रंथ था।
  2. इसका संकलन लगभग 200 सा०यु०पू० से 200 सा०यु० के बीच हुआ।

प्रश्न 20.
बाघ सदृश पति किसको और किसने कहा?
उत्तर:
नरभक्षी राक्षस की बहन हिडिम्बा ने पाडव भीम को।

प्रश्न 21.
मनुमृति में चाण्डालों के क्या कर्त्तव्य बताये ये हैं?
उत्तर:

  1. गाँव की सीमा से बाहर निवास करें।
  2. उच्छिष्ट बर्तनों का इस्तेमाल करें।
  3. मृतकों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनें।
  4. गाँव और नगरों का भ्रमण रात को न करें।

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प्रश्न 22.
आरंभिक समाज में पैतृक संपत्ति का बंटवारा किस प्रकार होता था?
उत्तर:
ज्येष्ठ पुत्र को विरासत का विशेष हिस्सा और अन्य पुत्रों में समान वितरण।

प्रश्न 23.
आरंभिक समाज में स्त्री और पुरुष किस प्रकार संपत्ति अर्जित कर सकते थे?
उत्तर:

  1. मनुस्मृति के अनुसार पुरुष सात प्रकार से धन अर्जित कर सकते थे। विरासत, खोज, खरीद, विजय, निवेश, कार्य तथा भेंट के द्वारा।
  2. स्त्रियों के लिए संपत्ति अर्जन के छः तरीके थे। वैवाहिक अग्नि के सामने तथा वधुगमन के समय मिली भेंट, स्नेह के प्रतीक के रूप में तथा भ्राता, माता और पिता द्वारा दिए गये उपहार आदि।

प्रश्न 24.
महाकाव्य काल में सांपत्तिक अधिकार के मुख्य आधार क्या हैं?
उत्तर:

  1. इसके मुख्य आधार-लिंग तथा वर्ण थे। लिंग के आधार पर पिता की सम्पत्ति पर केवल उसके पुत्रों का अधिकार होता था।
  2. वर्ण व्यवस्था में तीनों उच्च वर्गों की सेवा करके ही शूद्र धन अर्जित कर सकते थे जबकि अन्य वर्ण एक से अधिक कार्यों से धन अर्जित कर सकते थे।

प्रश्न 25.
वर्ण और जात में क्या अन्तर है?
उत्तर:

  1. चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के आपसी मेल से जातियों का जन्म हुआ।
  2. वर्गों का विभाजन कार्य के आधार पर किया गया जबकि जातियाँ जन्म पर आधारित थीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बीसवीं शताब्दी में किए गए महाभारत संकलन के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए। अथवा, महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने के लिए क्या-क्या कार्य किये गये?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी में किए गए महाभारत संकलन के विभिन्न सोपान –

  1. 1919 में प्रसिद्ध विद्वान वी० एस० सुकथांकर के नेतृत्व में एक अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी परियोजना की शुरूआत हुई। अनेक विद्वानों ने मिलकर महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण तैयार करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया।
  2. आरम्भ में देश के विभिन्न भागों से विभिन्न लिपियों में लिखी गई महाभारत की संस्कृत पांडुलिपियों को एकत्रित किया गया।
  3. पांडुलिपियों में पाए जाने वाले उन श्लोकों को चुना गया जो लगभग सभी पांडुलिपियों में पाये गये।
  4. उनका प्रकाशन 13,000 पृष्ठों में अनेक खंडों में किया गया।
  5. संस्कृत के पाठों में समानता ढूंढने का प्रयास किया गया।
  6. महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षेत्रीय प्रभेदों का विवरण भी रखा गया।

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प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय इतिहास में उपनिषदों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
उपनिषद्:
उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम रूप है, इसलिए इन्हें वेदान्त भी कहते हैं। उपनिषद् का अर्थ है-ब्रह्म-ज्ञान के सिद्धांत। इनमें आत्मा और परमात्मा के स्वरूप का परिचय कराया गया है। इनमें कर्म, माया और मोक्ष के सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

उपनिषदों में यज्ञों तथा कर्मकाण्ड की अपेक्षा जीवन की पवित्रता, सदाचार और अच्छे कर्मों पर बल दिया गया है। मुण्डकोपनिषद् में साफ लिखा है “यज्ञ रूपी नौकाएँ कमजोर हैं । संसार सागर से तरने के लिए इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता”।

उपनिषद् संख्या 108 में हैं लेकिन इनमें 11 उपनिषद् ही महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध हैं। उपनिषद् ज्ञान के सर्वोत्तम भण्डार हैं। ये इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि संसार की कई भाषाओं में इनके अनुवाद हो चुके हैं। जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने उपनिषदों की प्रशंसा करते हुए लिखा है – “उपनिषद् संसार के साहित्य में सदा महत्त्वपूर्ण स्थान रखेंगे तथा प्रत्येक काल और प्रत्येक जाति में वे मनुष्य-मात्र की मानसिक उन्नति के प्रतीक रहेंगे।”

प्रश्न 3.
पितृवंशिक व्यवस्था की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
पितृवंशिक व्यवस्था की विशेषतायें:

  1. महाभारत युद्ध के पश्चात् पितृवंशिक उत्तराधिकार की घोषणा की गई। यद्यपि पितृवंशिकता महाकाव्य की रचना से पूर्व भी थी। परंतु महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने इस आदर्श को सुदृढ़ किया।
  2. पितृवंशिकता में पुत्र पिता की मृत्यु के पश्चात् उनके संसाधनों का उत्तराधिकारी हो जाता था।
  3. अधिकांश राजवंश सा०यु०पू० छठी शताब्दी से पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे।
  4. कभी-कभी पुत्र के न होने पर भाई एक-दूसरे का उत्तराधिकारी बन जाता था। यही नहीं बंधु-बांधव भी गद्दी पर आसीन हो जाते थे। स्त्रियाँ गद्दी पर बैठ जाती थीं।
  5. राजवंशों में पितृवंशिकता के प्रति झुकाव ऋग्वैदिक काल से था।

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प्रश्न 4.
कौरव-पांडवों के मध्य युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
कौरव-पांडवों के मध्य युद्ध के कारण:

  1. धृतराष्ट्र कौरव और पांडु उनके छोटे भ्राता थे। धृतराष्ट्र के अंधे होने के कारण पांडु को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। अक्षम धृतराष्ट्र के अंतर्मन में द्वेष का प्रस्फुलन इसी घटना से हुआ।
  2. पांडु की असामयिक मृत्यु के पश्चात् धृतराष्ट्र राजा बने लेकिन वे दुर्योधन को युवराज पद दिलाने की उत्कंठा रखते थे।
  3. हस्तिनापुर के नागरिकों पांडवों के प्रति अधिक लगाव था क्योंकि वे कौरव राजकुमारों से अधिक योग्य और सदाचारी थे। यह देखकर कौरवों को ईर्ष्या होने लगी।
  4. कौरवों ने पांडवों के विरुद्ध अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचे जिससे पांडव दु:खी और व्यथित हो गये।
  5. अंततः कौरवों ने पांडवों को राज्य में हिस्सा देने से भी इंकार कर दिया।

प्रश्न 5.
सातवाहनों की वैवाहिक प्रथा में विविधता थी, विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सातवाहनों की वैवाहिक प्रथा:

  1. कुछ सातवाहन शासक बहुपत्नी प्रथा को मानने वाले थे जिसमें उनकी एक से अधिक पत्नियाँ होती थीं।
  2. सातवाहन शासकों से विवाह करने वाली रानियों के नाम गौतम तथा वशिष्ठ गोत्रों उद्भूत थे जो उनके पिता के गोत्र थे। इससे स्पष्ट होता है कि विवाह के बाद भी उन्होंने पिता के गोत्र को कायम रखा था। यह मनुस्मृति की नहीं बल्कि ब्राह्मणीय व्यवस्था थी।
  3. कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं। यह उदाहरण अंतर्विवाह ‘पद्धति अर्थात् बंधुओं के बीच विवाह संबंध मान्य रहने की स्थिति को दर्शाता है।
  4. इसमें बांधवों (ममेरे, चचेरे आदि भाई-बहन) के बीच विवाह संबंधों की वजह से एक सुसंगठित समुदाय बनने की पूर्वधारणा निहित थी।

प्रश्न 6.
उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मणों के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मणों का महत्त्व:

  1. यज्ञों के प्रसार के कारण ब्राह्मणों को महत्त्व बढ़ गया था। वे अपने और अपने यजमानों के लिए पूजा-पाठ और यज्ञ कराते थे।
  2. वे अपने राजाओं की विजय एवं सफलता के लिए भी अनुष्ठान करते थे।
  3. अपने सम्मान के लिए ब्राह्मणों को क्षत्रियों से युद्ध करना पड़ता था।
  4. ज्ञान, विद्वता और कर्मकाण्डों के बढ़ते हुए महत्त्व के कारण क्षत्रिय भी ब्राह्मणों को विशेष आदर देते थे। आगे चलकर इन्हें पृथ्वी का देवता (भूसुर) समझा जाने लगा था।
  5. वस्तुतः ब्राह्मणों ने अपनी स्थिति सर्वोच्च बनाने के लिए कालान्तर में क्षत्रियों से तालमेल स्थापित कर लिया। उन्होंने क्षत्रियों को शासन का अधिकार और स्वयं को उनका परामर्शदाता (पुरोहित) कहा।

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प्रश्न 7.
जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया तो गांधारी ने दुर्योधन से क्या विनती की?
उत्तर:
गांधारी की दुर्योधन से विनती:

  1. गांधारी ने दुर्योधन को युद्ध से हटने की सलाह दी।
  2. अपने पिता, माता और शुभेच्छुओं का सम्मान करते हुए शांति-संधि करने का सुझाव दिया।
  3. राज्य की रक्षा के लिए विवेकपूर्ण इन्द्रिय निग्रही बनने की सीख दी।
  4. एक अच्छे राजा का वर्चस्व स्थापित करने के लिए लालच और क्रोध को त्यागने की सलाह दी।
  5. अर्थ और धर्म की प्राप्ति के लिए युद्ध के परित्याग को ही एकमात्र साधन बताया।
  6. युद्ध में सफल होने की झूठी महत्त्वाकांक्षा को त्यागने के लिए बल दिया।

प्रश्न 8.
चारों वर्गों के लिए आदर्श जीविका से जुड़े नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चारों वर्षों के लिए आदर्श “जीविका के नियम:

  1. ब्राह्मण: ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, यज्ञ करना और करवाना था तथा उनका काम दान देना और लेना था।
  2. क्षत्रिय: क्षत्रियों का काम युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा-प्रदान करना न्याय करना, वेद-पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान-दक्षिणा देना था।
  3. वैश्य: क्षत्रियों के अंतिम तीन कार्य वैश्यों के लिए भी थे साथ ही उनसे कृषि, गौ पालन और व्यापार का कार्य भी अपेक्षित था।
  4. शूद्र: शूद्रों के लिए मात्र एक ही जीविका-तीनों वर्गों की सेवा थी।

प्रश्न 9.
प्राचीन भारत में सम्पत्ति की दृष्टि से स्त्री की स्थिति स्पष्ट करें। अथवा, प्राचीन काल में संपत्ति के अधिकार प्राप्त करने के कारण पुरुष और महिलाओं के मध्य सामाजिक भेद-भावों को तीक्ष्णता कैसे प्राप्त हुई?
उत्तर:
प्राचीन भारत में संपत्ति की दृष्टि से स्त्री की स्थिति –

  1. मनुस्मृति में पुत्रों को पैतृक संपत्ति का हकदार बताया गया है परंतु स्त्रियों की हिस्सेदारी का कोई उल्लेख नहीं है।
  2. विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था और इसे स्त्रीधन को संज्ञा दी जाती थी।
  3. स्त्रीधन को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी परंतु इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था।
  4. मनुस्मृति स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक संपत्ति रखे अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है।
  5. वाकाटक रानो प्रभावती गुप्त सम्पत्ति पर अधिकार रखती थी। वस्तुत: सम्पत्ति पर स्त्री का अधिकार उसकी माली हालत या सामाजिक प्रभाव पर निर्भर था।

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प्रश्न 10.
जाति-प्रथा से आप क्या समझते हैं? जाति-प्रथा के दोष बताइए।
उत्तर:
जाति-प्रथा का अर्थः शाम शास्त्री ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘जाति की उत्पत्ति’ में जाति-प्रथा की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “विवाह और भोजन जैसे कार्यों में कुछ लोगों के आपस में संगठित हो जाने को जाति-प्रथा कहते हैं।”

प्राचीन काल में सामाजिक विषयों के लिए हिन्दू समाज केवल चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में बँटा हुआ था। इन्हीं वर्गों को बाद में जातियाँ कहा जाने लगा। आरम्भ में जाति-पाँति का विचार केवल व्यवसायों को दृष्टि से ही किया जाता था और व्यक्ति एक जाति से दूसरी जाति में सुगमता से दाखिल हो जाता था परंतु धीरे-धीरे जाति-प्रथा जन्म से मानी जाने लगी और एक जाति से दूसरी जाति में जाना असम्भव हो गया। इस प्रकार चार मुख्य वर्ण बढ़ते-बढ़ते अब कोई 3,000 जातियों तक पहुँच चुके हैं।

जाति-प्रथा के दोष :

1. ईर्ष्या और द्वेष का कारण:
दिन-प्रतिदिन जातियों की संख्या बढ़ने और जाति-प्रथा दृढ़ होने का यह परिणाम हुआ कि भिन्न-भिन्न जातियों में परस्पर ईर्ष्या और द्वेष बढ़ने लगा। किसी विदेशी आक्रमणकारी का मुकाबला करने के लिए भी ये जातियाँ संगठित नहीं हुई। इस प्रकार देश आक्रमणकारियों से पद्दलित होने लगा।

2. व्यक्तिगत उन्नति में बाधक:
नीची जाति में उत्पन्न होने वाले विद्वान लोग किसी आदरणीय स्थान को प्राप्त न कर पाते थे। जाति-प्रथा वस्तुतः व्यक्तिगत उन्नति के मार्ग में बाधा सिद्ध हुई।

3. अन्तर्जातीय विवाह के मार्ग में बाधक:
जाति-प्रथा की कठोरता ने हिन्दुओं में विवाह के क्षेत्र को बहुत ही संकुचित कर रखा है। इसके परिणामस्वरूप कुछ लोग अविवाहित रह जाते हैं। वे किसी अन्य धर्म को अपना लेते हैं या अपने ही समाज में ब्यभिचार फैलाते हैं।

4. धार्मिक उन्नति में बाधक:
जाति प्रणाली में असमानता के कारण हिन्दू धर्म में आने वाली अन्य जातियों को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जा सका। इस प्रकार अन्य धर्मावलम्बी हिन्दू धर्म के साथ सामजस्य नहीं बना पाए।

5. अस्पृश्यता को जन्म देना:
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य आदि तीनों उच्च वर्ण के लोग शूद्रों को घृणा की दृष्टि से देखने लगे और उन्हें अछूत समझने लगे। उन्हें कुँओं से पानी भरने और मंदिरों में पूजा करने से भी रोक दिया। परिणाम यह हुआ कि शूद्र अन्य धर्म ग्रहण करने। लगे क्योंकि वहाँ उन्हें विभेद की दृष्टि से नहीं देखा जाता था।

प्रश्न 11.
वणिक कौन थे?
उत्तर:
वणिक:

  1. भारतीय अभिलेख और संस्कृत ग्रंथों में वणिक शब्द का प्रयोग व्यापारियों के लिए किया गया है।
  2. यद्यपि शास्त्रों में व्यापार को वैश्यों का कार्य बताया गया है परंतु कई साक्ष्य इसके विरुद्ध जाते हैं।
  3. शूद्रक के नाटक ‘मृच्छकटिकम् (चौथी शताब्दी ई.) में नायक चारुदत्त को ब्राह्मण वणिक बताया गया है।
  4. पाँचवीं शताब्दी सा०यु० के एक अभिलेख में उन दो भाइयों को क्षत्रिय वणिक कहा गया है जिन्होंने एक मंदिर निर्माण के लिए आर्थिक अनुदान दिया था।

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प्रश्न 12.
श्रेणियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
श्रेणियाँ (Guilds):

  1. एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुड़ी जातियों को कभी-कभी श्रेणियों से संगठित किया जाता था।
  2. कई ऐसे अभिलेख मिले हैं। जिनमें जातियों को श्रेणियों के नाम दिए गए। उदाहरण के लिए मंदसोर अभिलेख में एक जुलाहों की श्रेणी का वर्णन किया गया है जोकि गुजरात लाट (Lata) नगर में था।
  3. कई जातियाँ परिवार सहित एक स्थान को छोड़कर दूसरे ऐसे स्थान पर बसने लगी जहाँ उन्हें व्यवसाय के लिए अधिक सुविधायें प्राप्त हो सकती थीं।
  4. अभिलेखों से ज्ञात होता है कि किसी व्यक्ति को अपने शिल्प में निपुणता के आधार पर श्रेणी विशेष का सदस्य बनाया जाता था।
  5. कई बार भिन्न-भिन्न व्यवसाय के लोगों को भी एक ही श्रेणी का सदस्य बना लिया जाता था।
  6. श्रेणी के सदस्य अपना सारा धन एकत्र करके किसी कार्य में लगा सकते थे। कई श्रेणियों अपने ईष्टदेव सूर्य के मंदिर स्थापित करने के लिए दान भी देती थीं।

प्रश्न 13.
गोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? सातवाहन वंश में इसका उल्लंघन किस प्रकार किया गया।
उत्तर:
गोत्र की उत्पत्ति:

  1. 1000 सा०यु०पू० के पश्चात् ब्राह्मणों ने लोगों को गोत्रों में विभाजित किया। प्रत्येक गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर होता था। उस गोत्र के सदस्य उस ऋषि के वंशज माने जाते थे।
  2. गोत्रों के लिए दो महत्त्वपूर्ण नियम थे। प्रथम विवाह के पश्चात् स्त्रियों को उनके पिता के स्थान पर अपने पति के गोत्र को स्वीकार करना पड़ता था। द्वितीय-एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह संबंध नहीं रख सकते थे।
  3. सातवाहन वंश में गोत्र के नियमों का अपवाद मिलता है। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नामों के विश्लेषण से पता चलता है कि उनके नाम गौतम तथा वशिष्ठ गोत्रों से लिए गए थे जो उनके पिता के गोत्र थे।
  4. इससे ज्ञात होता है कि इन रानियों ने विवाह के बाद भी अपने पति-कुल के गोत्र को ग्रहण करने के बजाय अपने पिता के गोत्र को बनाये रखा।
  5. कुछ सातवाहन शासकों की रानियों ने पति के गोत्र को अपना लिया।

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प्रश्न 14.
“सांची और अन्य स्थानों की वास्तुकता को समझने के लिए बौद्ध धर्म ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक है।” उपर्युक्त कथन की सोदाहरण तर्कसंगत समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
वास्तुकला को समझने के लिए बौद्ध ग्रंथों के अध्ययन का महत्त्व:
सांची के स्तूप के तोरण द्वारा पर एक दृश्य अंकित है जिसमें फूस की झोपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य हैं। वस्तुतः वेसान्तर जातक में इससे सम्बन्धित कहानी दी गई है। इस कहानी में दानी राजकुमार अपना सबकुछ एक ब्राह्मण को सौंपकर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगल में चला जाता है। बौद्ध से ज्ञात होता है बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक चक्र था।

शालमंजिका की मूर्ति के बारे में बौद्ध ग्रंथों से ही जानकारी मिल पाती है। इससे पता चलता है जो लोग बौद्ध धर्म में आए उन्होंने इससे पहले दूसरे विश्वासों, प्रथाओं और धारणाओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया। सांची के तोरणद्वारों की मूर्तियों में पाए गए कई प्रतीक या चिह्न इन्हीं परम्पराओं से उत्कीर्ण किए गएं।

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प्रश्न 15.
भगवद्गीता के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भगवदगीता:
1. महाभारत का सर्वाधिक उपदेशात्मक अंश ‘भगवद्गीता’ है। इसका शाब्दिक अर्थ-भगवान का गीता या युद्ध भूमि में, कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है।

2. इसकी मूलभाषा संस्कृत है परंतु आज इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस ग्रंथ में कुल 18 अध्याय है।

3. सारथी के रूप में भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ रथ पर सवार थे। कौरवों और पांडवों की सेनायें युद्ध करने के लिए आमने-सामने खड़ी थी। अर्जुन ने कौरवों की सेना में अपने सगे-सम्बन्धियों को देखकर युद्ध करने से इंकार कर दिया ऐसे अवसर पर श्री कृष्ण ने अर्जुन को आसक्ति रहित होकर युद्ध करने का जो उपदेश दिया वही भगवद् गीता के नाम से प्रसिद्ध है।

4. यह ग्रंथ बताता है कि मनुष्य के अपने कर्म फल की चिंता किए बिना (निष्काम कर्म) करना चाहिए।

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प्रश्न 16.
साहित्यिक परम्पराओं का अध्ययन करते समय इतिहासकारों को कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साहित्यिक परम्पराओं का अध्ययन करते समय ध्यान देने योग्य बातें:

  1. ग्रंथों की भाषा पालि, प्राकृत, तमिल जैसी आम लोगों की भाषा अथवा संस्कृत जैसी पुरोहितों या किसी विशेष वर्ग की भाषा है।
  2. ग्रंथ के लेखक की समग्र जानकारी प्राप्त करना चाहिए। उसके दृष्टिकोण तथा विचारों को भलीभाँति समझने की आवश्यकता है।
  3. ग्रंथ के संभावित संकलन या रचनाकाल की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और उसकी रचना भूमि का विश्लेषण करना चाहिए।
  4. ग्रंथ की रचना का स्थान भी ज्ञात करना चाहिए।
  5. यह ध्यान रखा जाए कि ग्रंथ मंत्रों या कथा के रूप में हैं।
  6. ग्रंथ के प्रयोज्य विषय और व्यक्ति की समग्र जानकारी प्राप्त की जाए।

प्रश्न 17.
महाभारत प्राचीनकाल से सामाजिक मूल्यों के अध्ययन का एक अच्छा साधन हैं। उचित तर्क देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
महाभारत प्राचीनकाल के सामाजिक मूल्यों के अध्ययन का स्रोत:

  1. उस काल में पितूंवशिकता प्रणाली पर आधारित राजवंश थे। पैतृक सम्पत्ति पर पुत्रों का अधिकार होता था और पुत्र-जन्म को महत्त्व दिया जाता था, क्योंकि उन्हें ही वंश चलाने वाला माना जाता था।
  2. स्त्रियों का विशेष आदर नहीं था। उनका विवाह गोत्र से बाहर कर दिया जाता था। कन्यादान पिता का महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य माना जाता था।
  3. महाभारत स्वजनों के मध्य युद्ध का एक अद्भुत उदाहरण है परंतु इस युद्ध में सभी वर्गों के लोग लिप्त हो गये थे।
  4. यह ग्रंथ विभिन्न सामाजिक समूहों के आपसी संबंधों पर प्रकाश डालता है। उदाहरण के लिए-हिडिम्बा का भीम से विवाह।
  5. उच्च परिवारों में बहुपति प्रथा प्रचलित थी। उदाहरण के लिए-द्रोपदी के पाँच पति थे।
  6. स्त्रियाँ पुरुष की सम्पत्ति समझी जाती थी इसीलिए युधिष्ठर ने अंत में द्रोपदी को द्यूतक्रीड़ा के समय दाँव पर लगा दिया था।

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प्रश्न 18.
निषाद और इसके समान जातियों की भारतीय समाज में क्या स्थिति थी?
उत्तर:
निषाद और इसके समान जातियों की भारतीय समाज में स्थिति:

  1. निषाद और कुछ अन्य जातियाँ ब्राह्मणीय विचारों से अप्रभावित थीं।
  2. संस्कृत साहित्य में ऐसे समुदायों को प्रायः असभ्य और पशुवत बताया गया है।
  3. शिकार करके और कंदमूल एकत्र करके जीवन निर्वाह करने वाली जातियों को तुच्छ समझा जाता था। निषाद (शिकारी) वर्ग इसका उदाहरण है।
  4. यायावर पशुपालकों के समुदाय को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता था, क्योंकि उन्हें स्थायी कृषक समुदायों के साँचे में आसानी से नहीं ढाला जा सकता था।
  5. कभी-कभी इन लोगों को म्लेच्छ कहा जाता था परंतु उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था।

प्रश्न 19.
“प्राचीन काल में ब्राह्मणीय ग्रंथों के नियमों का सभी जगह पालन नहीं होता था।” पाँच प्रमाण देकर इसकी पुष्टि कीजिए।
उत्तर:

  1. ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार केवल क्षेत्रिय ही शासक हो सकते थे परंतु कई शासक परिवार ब्राह्मण या वैश्य भी थे। उदाहरणार्थ-पुष्यमित्र शुग।
  2. जाति से बाहर भी विवाह होते थे जबकि ब्राह्मणीय ग्रंथों में इसकी अनुमति नहीं थी।
  3. ब्राह्मणों को धनी दर्शाया जाता था परंतु सुदामा जैसे अति निर्धन ब्राह्मणों का उल्लेख भी है।
  4. स्त्रियों से अपेक्षा की जाती थी कि वे विवाह के पश्चात् अपने गोत्र का त्याग कर देंगी और अपने पति का गोत्र अपना लेंगी। परंतु सातवाहन रानियों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अपने पिता के गोत्र को बनाये रखा।
  5. कई ऐसे वर्ग थे जिनका पेशा वर्ण व्यवस्था से मेल नहीं खाता था; जैसे निषाद या घुम्मकड़ पशुपालक।

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प्रश्न 20.
सातवाहन कालीन वास्तुकला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सातवाहन कालीन वास्तुकला:
सातवाहन शासकों को गुफायें, विहार, चैत्य और स्तूप बनवाने का बड़ा शौक था। दक्षिण में अधिकाँश गुफाओं का निर्माण इसी काल में हुआ। उड़ीसा, नासिक, कार्ले, भुज आदि की गुफायें, विहार, चैत्य और स्तूप अपनी निर्माण-शैली और अलंकरण के कारण वास्तुकला के सुन्दर नमूने हैं।

चैत्य एक बड़ा हॉल होता था, जिसमें अनेक खम्भे होते थे। विहार में एक केन्द्रीय हॉल होता था जिसके सामने के बरामदे में द्वार से प्रवेश होता था। कार्ले का चैत्य बहुत प्रसिद्ध है।

यह 40 मीटर लम्बा, 15 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊँचा है। इसके दोनों ओर 15-15 खम्भों की पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक खम्भा वर्गाकार सीढ़ीदार कुर्सी पर स्थित है। प्रत्येक खम्भे के शिखर पर हाथी, घोड़े और सवार बनाये गए हैं। छतों पर भी सुन्दर चित्रकारी की गई है। भिक्षुओं के निवास हेतु विहार बनाए गए थे।

सबसे महत्त्वपूर्ण स्मारक स्तूप हैं। सबसे प्रसिद्ध स्तूप अमरावती और नागार्जुनकोंडा के हैं। स्तूप एक बड़ी इमारत होती थी जिसे बुद्ध के किसी अवशेष पर बनाया जाता था। अमरावती स्तूप का गुम्बद आधार के आर-पार 162 फुट है और इसकी ऊँचाई 100 फुट है। नागार्जुनकोंडा में स्तूपों के अतिरिक्त ईंटों के बने प्राचीन हिन्दू मंदिर भी हैं। इन दोनों स्तूपों में मूर्तियों की भरमार है।

इस काल में अनेक मूर्तियों का भी निर्माण किया गया। अधिकांश मूर्तियाँ महात्मा बुद्ध के जीवन की अनेक घटनाओं का चित्रण करती हैं। अमरावती के स्तूप में बुद्ध के चरण की पूजा का अनुपम दृश्य है। नागार्जुनकोंडा में महात्मा बुद्ध का उपदेश, शांति और गम्भीरता को प्रकट करता है।

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प्रश्न 21.
मातंग कौन था?
उत्तर:
मातंग:

  1. मातंग बोधिसत्व थे जिन्होंने एक चांडाल के घर जन्म लिया था। उनका विवाह एक व्यापारी की पुत्री दिथ्थ से हुआ था।
  2. उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम माडव्य कुमार था। मांडव्य बड़ा होने पर तीन वेदों का ज्ञाता बना।
  3. वह प्रतिदिन 16 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराता था।
  4. एक दिन जब उसका पिता (मातंग) फटे-पुराने कपड़ों में उसके द्वार पर आया। उसने भोजन माँगा लेकिन मांडव्य कुमार ने उसे पतित कहकर भोजन नहीं दिया।
  5. इस घटना का पता जब उसकी माँ दिथ्थ को चला तो मातंग से माफी मांगने के लिए वह स्वयं वहाँ आई और पत्नी धर्म का निर्वाह किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वैदिकोत्तर काल की वर्ण व्यवस्था का वर्णन करें। उस व्यवस्था में शद्रों का क्या स्थान था?
उत्तर:
वैदिकोत्तर काल की वर्ण व्यवस्था:
इस काल में जाति-प्रथा और दृढ़ हो गई। जन्म के आधार पर जातियाँ निश्चित होने लगीं। जैन और बौद्ध धर्म ने जाति-प्रथा का बड़ा विरोध किया परंतु तत्कालीन समाज में जाति-प्रथा प्रचलित थी। उस समय समाज चार वर्गों में बंटा हुआ थाः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। अब धर्मसूत्रों ने प्रत्येक वर्ण के कर्मों को निर्धारित कर दिया था।

दीवानी एवं फौजदारी कानून का आधार भी अब वर्ण-व्यवस्था ही बन गई थी। जो व्यक्ति जितने ऊँचे वर्ण से सम्बन्धित होता था। उससे उतने अधिक ऊँचे नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती थी। धीरे-धीरे शूद्रों पर अनेक निर्योग्यतायें थोप दी गई। इन्हें विभिन्न कानूनों तथा धार्मिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया और सबसे निचले स्थान पर फेक दिया गया।

परंतु धीरे-धीरे जैन और बौद्ध धर्म के प्रचार के कारण ब्राह्मणों का प्रभुत्व कम हुआ और क्षत्रियों को प्रधानता प्राप्त हुई। वैश्य लोग बड़े धनी होने लगे परंतु शूद्रों की दशा और भी शोचनीय होती गई। बौद्ध साहित्य में-चाण्डालों का भी उल्लेख है। नगर-सीमा से बाहर निवास करने वाले इन चाण्डालों के स्पर्श-मात्र से अन्य लोग डरते थे। समाज में दास भी थे । वे गृह-कार्य करते थे परंतु उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता था।

जैन और बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण ब्राह्मण धर्म की आश्रम-प्रणाली काफी शिथिल हो गई थी ! सन्यास और ताप के स्थान पर शुद्ध तथा पवित्र जीवन और आचरण पर अधिक बल दिया जाने लगा। इस काल में भी संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी।

यद्यपि समाज में स्त्रियों का सम्मान था, परंतु वैदिक काल की अपेक्षा उनकी दशा अब गिर चुकी थी। महात्मा बुद्ध ने भी संघ में स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध किया था। इतना अवश्य है कि स्त्रियों के साथ आदर का व्यवहार किया जाता था। उन्हें उचित शिक्षा देने का प्रबंध किया जाता था। समाज में पर्दा-प्रथा नहीं थी। स्त्रियों को धार्मिक और सामाजिक कार्यों में भाग लेने की स्वतंत्रता थी। वे मेलों और उत्सवों में शामिल होती थीं।

उत्तर-पश्चिमी भारत में सती-प्रथा प्रचलित हो चुकी थी। समाज में वेश्यायें भी होती थी। आम्रपाली इस युग की वैशाली की प्रसिद्ध वेश्या (नगरवधू) थी। साधारण व्यक्ति एक ही स्त्री से विवाह करते थे, परंतु राजपरिवारों और धनिकों में बहुविवाह प्रथा भी प्रचलित थी। बाल विवाह प्रथा नहीं थी। लड़के-लड़कियों के विवाह माता पिता द्वारा निश्चित किये जाते थे। राजकुमारियों के विवाह स्वयंवर प्रथा से होते थे।

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प्रश्न 2.
आरम्भिक समाज के आर्थिक एवं धार्मिक जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. आरम्भिक समाज का आर्थिक जीवन:

(I) कृषि:
लोग ग्रामों में रहते थे और उनका मुख्य धंधा खेती था। कपास, गेहूँ, चावल तथा सब्जियों की उपज अधिक होती थी। अधिक वर्षा और सूखा-ये किसान के दो सबसे बड़े शत्रु थे। खेती के ढंगों में अब थोड़ी-सी उन्नति हो चुकी थी और सिंचाई अब छोटे-छोटे नालों द्वारा भी की जाती थी। हल अब पहले से बड़ा और भारी बनाया जाने लगा। कई बार हल खींचने के लिए 12 बैल जोते जाते थे। खाद के लिए गोबर का प्रयोग भी होने लगा।

(II) पशुपालन:
खेती-बाड़ी के पश्चात् पशुपालन लोगों का दूसरा बड़ा धंधा था।

(III) व्यापार:
व्यापार लोगों का एक अन्य मुख्य व्यवसाय था। अब व्यापारियों कई संघों में संगठित हो गए। ये संघ व्यापारियों के हितों की हर प्रकार से रक्षा करने में सक्रिय रहते थे। कई नए सिक्के-निष्क, शतमान और कर्षमाण आदि प्रचलित हो चुके थे।

(IV) नगरों का उदय:
ऋग्वैदिक काल में लोग प्राय: छोटे-छोटे गाँवों में रहते थे और वहीं अनेक प्रकार के काम-धन्धे करके अपना निर्वाह करते थे। अब अयोध्या हस्तिनापुर, मथुरा तथा इन्द्रप्रस्थ जैसे कई नगरों की स्थापना हो चुकी थी।

2. धार्मिक जीवन (Religious Life):

(I) नए देवताओं का उदय:
ऋग्वैदिक काल के इन्द्र, वरुण, सूर्य, पृथ्वी तथा अग्नि जैसे प्राकृतिक देवताओं के स्थान पर अब ब्रह्मण, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, राम और कृष्ण जैसे नए देवताओं की पूजा आरंभ हो चुकी थी।

(II) धर्म में पेंचीदगी का समावेश:
अब धर्म वैदिक काल की भांति सरल नहीं रहा। उसमें दिन-प्रतिदिन नए-नए रीति-रिवाज और संस्कार प्रवेश करते जा रहे थे। बलिदान की ओर लोगों का झुकाव बहुत बढ़ गया था। इस प्रकार धर्म इतना पेंचीदा हो गया था कि जन-साधारण के लिए उसको समझ पाना बहुत कठिन हो रहा था।

(III) जादू टोने में विश्वास:
लोग अपने शत्रुओं को नष्ट करने तथा बीमारी को दूर करने के लिए जाद्-टोने का आश्रय लेने लगे थे।

(IV) मुक्ति, माया, पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत में विश्वास:
लोगों को यह ज्ञान हो चुका था कि संसार एक मायाजाल है, इसलिए इससे निकलकर उन्हें मुक्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए। अगला जन्म अच्छा मिलने के लिए सत्कर्म करने की जानकारी भी लोगों को हो चुकी थी।

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प्रश्न 3.
अस्पृश्य कौन लोग थे? इनके क्या कर्त्तव्य थे?
उत्तर:
अस्पृश्य लोग:
भारतीय समाज में ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को सामाजिक व्यवस्था से अलग रखा था। इन्हें ‘अस्पृश्य’ घोषित कर सामाजिक विषमता को और अधिक बढ़ावा दिया। ब्राह्मणों का यह निर्देश था कि अनुष्ठान संपन्न करने वाले लोग अस्पृश्यों के यहाँ भोजन न करें।

अनुष्ठान न करने वाले और शवों की अंत्येष्टि तथा मृत जानवरों को छूने वालों को ‘चाण्डाल’ कहा जाता था। उन्हें वर्ण व्यवस्था वाले समाज में सबसे निम्न कोटि में रखा जाता था। उच्च वर्ग के लोग चाण्डालों को स्पर्श करना तो दूर कि उन्हें देखना भी अशुभ समझते थे।

चांडालों के कर्तव्य:
मनुस्मृति में चांडालों के कर्तव्य निम्नवत् दिए गए हैं –

  • उन्हें गाँव से बाहर रहना पड़ेगा।
  • उन्हें जल्लाद के रूप में कार्य करना होगा।
  • उन्हें उन मुर्दो की अन्त्येष्टि करनी होगी जिनका कोई सगा-सम्बन्धी न हो।
  • वे उच्छिष्ट बर्तनों में भोजन करेंगे और मृत लोगों के वस्त्र तथा लोहे के आभूषण पहनेंगे।
  • वे गाँव और नगरों में रात को स्वछंदता से नहीं घूमेंगे।
  • रास्ते में चलते समय उन्हें डंडा बजाते हुए चलना होगा ताकि आवाज सुनकर लोग मार्ग छोड़ दें।

चांडालों का वर्णन अन्यत्र भी मिलता है। पाँचवीं शताब्दी के चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा है कि लोग चांडालों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं तथा जब कभी वे नगर में प्रवेश करते हैं तो लाठी को भूमि पर टकराते हुए आगे बढ़ते हैं ताकि लोगों को उनके आने का पता चल जाए। 7 वीं शताब्दी में भारत यात्रा करने वाले वेनसांग ने लिखा है कि जल्लाद तथा चमड़ा रंगने वालों को नगर के बाहर रहना पड़ता था।

ब्राह्मण ग्रंथों में भी चांडालों के जीवन की दुर्दशा का वर्णन है। पाली ग्रंथ मलेगा जातक के अनुसार पिछले जीवन में गौतम बुद्ध एक चाण्डाल के पुत्र मतंग थे। अनेक कठिनाइयों का सामना करने के पश्चात् उन्होंने एक व्यापारी की पुत्री दिथ्थ से विवाह किया। उनका एक पुत्र माण्डव कुमार था। जैसे ही वह बड़ा हुआ, उसने वेदों का अध्ययन किया तथा प्रतिदिन 16 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने लगा। इस पुत्र ने भी एक बार मतंग का अपमान किया था।

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प्रश्न 4.
महाभारत की ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर एक टिपण्णी लिखिए।
उत्तर:
महाभारत की ऐतिहासिक प्रामाणिकता:
महाभारत प्राचीन भारत का एक महाकाव्य और संस्कृत का प्रसिद्ध ग्रंथ है, परंतु इसकी ऐतिहासिकता को लेकर लोगों में विवाद है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह कृत्रिम महाकाव्य है और लेखन प्रणाली को नया रूप देने के लिए दो परिवारों की लड़ाई को कथा-वस्तु बनाया गया है।

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि महाभारत केवल एक उपन्यास है। इस उपन्यास को वेदव्यास ने लिखा है। कुछ लोगों का विचार है कि इतिहास में महाभारत जैसी कोई घटना नहीं हुई और यह केवल मिथ्या कहानी है। ऐसे तर्क रहने पर भी भारतीय परम्परा तथा महान् विद्वानों का दृढ़ विश्वास है कि महाभारत अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें का एक वृहत् इतिहास है।

तिथि:

  • प्रसिद्ध इतिहासकार पारजीटर ने परम्परागत इतिहास (Traditional History) के आधार पर महाभारत युद्ध की तिथि 950 सा०यु०पू० निर्धारित की है।
  • डॉ० नीरद राय ने अपने शोध ग्रंथ में कौशाम्बी के स्तरीकरण के आधार पर महाभारत की तिथि 1100 सा०यु०पू० बताई है।
  • पाँचवीं शताब्दी में प्राचीन भारत के एक महान् गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘आर्यभट्ट’ में खगोल शास्त्र के सिद्धांतों का आधार लेकर महाभारत का अध्ययन किया। महाभारत में वर्णित ग्रह स्थिति के अनुसार आर्यभट्ट ने इसकी अनुमानित तिथि 3100 सा०यु०पू० निर्धारित की है।

ऐतिहासिकता:
सौभाग्यवश कई वैदिक और पौराणिक रचनाएँ ज्योतिष के आधार पर यह प्रमाणित करती है कि महाभारत एक वास्तविक घटना है। डॉ० प्रशान्त गोखले का कहना है कि महाभारत केवल एक कहानी नहीं बल्कि प्राचीनकाल में घटित घटनाओं का विवरण है। इस सम्बन्ध में उन्होंने कई प्रमाण दिये हैं जो निम्नलिखित हैं:

1. ऋषि वेदव्यास ने इस युद्ध के आरंभ होने से पूर्व ही इतिहास लिखने का मन बना लिया था। युद्ध के दौरान उन्होंने इसकी प्रत्येक प्रकार की विस्तृत जानकारी लिपिबद्ध की। यदि यह केवल एक उपन्यास होता तो वेदव्यास जैसा महान् विद्वान इस युद्ध की इतनी छोटी-छोटी तथा अनावश्यक घटनाओं का वर्णन क्यों करता।

2. काव्यात्मक स्वरूप होने के कारण मात्र से महाभारत को इतिहास न मानना एक भारी भूल है। उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में सभी साहित्यिक रचनाएँ पद्य या काव्यात्मक ‘स्वरूप की थी।

3. महाभारत में कई स्थानों पर लिखा है कि इतिहास का एकमात्र अर्थ है-“यह ऐसा हुआ” प्राचीन काल की घटनाओं तथा कुछ समय पूर्व बीती घटनाओं को अलग-अलग करने के लिए आर्यों ने पुराण तथा इतिहास शब्दों का प्रयोग किया परंतु इन दोनों शब्दों का यह अर्थ है कि यह ऐतिहासिक घटनायें भिन्न-भिन्न समय पर घटित हुई।

4. उस काल में राजाओं की वंशावलियों की क्रमवार जानकारी लिखी जाती थी। एक चीनी यात्री के विवरण से इसकी पुष्टि होती है। महाभारत एक ऐसे युद्ध की गाथा है जो कि वास्तव में हुआ और इसमें राजाओं की वंशावलियों का पूर्ण वर्णन है।

5. भारत के अघपर्व तथा भीष्मपर्व खण्डों में लिखा है कि यह एक इतिहास है। यदि इसके लेखक की भावना एक उपन्यास या कविता लिखने की होती तो वह इसको महाकाव्य या कथा का नाम न देता।

6. महाभारत तथा भागवत् जैसे अन्य धार्मिक ग्रंथों में उस समय के नक्षत्रों तथा उपग्रहों की स्थिति के बारे में ठीक-ठीक जानकारी दी गयी है। एक उपन्यास में खगोलशास्त्र का प्रयोग करके नक्षत्रों की स्थिति की जानकारी कदापि नहीं दी जा सकती है।

7. महाभारत में बहुत से वंशों तथा उसके शासकों का वर्णन है । राजा भरत से लेकर राजा मांडु तक 50 से अधिक राजाओं के इतिहास का वर्णन है। इसके अतिरिक्त राजा, उसकी पत्नी, उसकी संतान, उसके संबंधियों आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन है। यदि यह केवल एक उपन्यास होता तो कहानी का निर्माण करने के लिए केवल 4-5 राजाओं का नाम देना पर्याप्त था तथा उसमें विस्तृत वृत्तांत देने की आवश्यकता न रहती।

8. महाभारत में द्वारिका का वर्णन है जिसके अवशेष समुद्र में मिले हैं। ऐसा माना जाता है कि द्वारिका नगर 2000-3000 सा०यु०पू० समुद्र में डूब गया था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में महाकाव्य कौन नहीं है?
(अ) महाभारत
(ब) रामायण
(स) मालविकाग्निनियम्
(द) हर्षचरितम्
उत्तर:
(द) हर्षचरितम्

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प्रश्न 2.
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण कितने वर्षों में तैयार हुआ?
(अ) 37
(ब) 36
(स) 35
(द) 34
उत्तर:
(अ) 37

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन परिवार से मेल नहीं खाता है?
(अ) परिवार एक समूह का हिस्सा होता है
(ब) संबंधी परिवार जुड़े होते हैं
(स) पारिवारिक रिश्ते कृत्रिम होते हैं
(द) पारिवारिक रिश्ते रक्त संबद्ध माने जाते हैं
उत्तर:
(स) पारिवारिक रिश्ते कृत्रिम होते हैं

प्रश्न 4.
गोत्र के अन्दर विवाह करना कौन-सा विवाह है?
(अ) अंतर्विवाह
(ब) बहिर्विवाह
(स) ब्रह्म विवाह
(द) राक्षस विवाह
उत्तर:
(अ) अंतर्विवाह

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प्रश्न 5.
क्या ब्राह्मणों का सार्वभौमिक प्रभाव था?
(अ) हाँ
(ब) नहीं
(स) हाँ, नहीं-दोनों
(द) उनकी कोई गणना नहीं थी
उत्तर:
(ब) नहीं

प्रश्न 6.
सातवाहन राजाओं और रानियों की आकृतियाँ कहाँ उत्कीर्ण हैं?
(अ) राजमहलों में
(ब) मंदिरों में
(स) गुफा की दीवारों पर
(द) स्तम्भ अभिलेखों पर
उत्तर:
(स) गुफा की दीवारों पर

प्रश्न 7.
माताओं के महत्त्व का ज्ञान कहाँ से होता है?
(अ) सातवाहन राजाओं की मूर्तियों से
(ब) सातवाहन राजाओं के गुफा चित्रों से
(स) सातवाहन शासकों के सिक्कों से
(द) सातवाहन अभिलेखों से
उत्तर:
(द) सातवाहन अभिलेखों से

प्रश्न 8.
द्रोण अद्वितीय तीरंदाज किसको बनाना चाहते थे?
(अ) अर्जुन को
(ब) एकलव्य को
(स) नकुल को
(द) सहदेव को
उत्तर:
(अ) अर्जुन को

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प्रश्न 9.
श्रेणी की क्या विशेषता थी?
(अ) सभी जातियाँ एक व्यवसाय से जुड़ी थी
(ब) सभी जातियाँ अलग-अलग व्यवसायों से जुड़ी थीं
(स) कुछ जातियों का समूह था
(द) कुछ लोगों का समूह था
उत्तर:
(अ) सभी जातियाँ एक व्यवसाय से जुड़ी थी

प्रश्न 10.
सातवीं शताब्दी में कौन-सा चीनी यात्री भारत आया था?
(अ) मेगस्थनीज
(ब) फाह्यान
(स) श्वैन-त्सांग
(द) अल्बेरुनी
उत्तर:
(स) श्वैन-त्सांग

प्रश्न 11.
समालोचनात्मक संस्करण में कितने पृष्ठ हैं?
(अ) 13000
(ब) 15000
(स) 16000
(द) 12000
उत्तर:
(अ) 13000

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प्रश्न 12.
मातृवंशिकता का क्या अर्थ है?
(अ) जहाँ वंश परम्परा पिता से जुड़ी होती है
(ब) जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है।
(स) जहाँ वंश परम्परा मौसी से जुड़ी होती है
(द) जहाँ वंश परम्परा दादी से जुड़ी होती है।
उत्तर:
(ब) जहाँ वंश परम्परा माँ से जुड़ी होती है।

प्रश्न 13.
प्रभावती गुप्त क्यों प्रसिद्ध थी?
(अ) वह एक युद्धप्रिय महिला थी
(ब) वह एक दानी महिला थी
(स) उसने सत्ता का उपभोग किया
(द) वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की पुत्री थी
उत्तर:
(स) उसने सत्ता का उपभोग किया

प्रश्न 14.
बहिर्विवाह से क्या तात्पर्य है?
(अ) यह अन्तर्जातीय विवाह था
(ब) इसमें एक वास्तविक विवाह और कई अन्य विवाह विलासिता के लिए किए जाते थे
(स) एक स्त्री के कई पति होते थे
(द) यह गोत्र से बाहर विवाह करने की पद्धति थी
उत्तर:
(द) यह गोत्र से बाहर विवाह करने की पद्धति थी

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प्रश्न 15.
निम्नलिखित में क्या सही है?
(अ) केवल क्षत्रिय राजा हो सकते थे
(ब) ऐसा आवश्यक नहीं था
(स) केवल ब्राह्मण राजा हो सकते थे
(द) निम्न कुल के राजा हो सकते थे
उत्तर:
(अ) केवल क्षत्रिय राजा हो सकते थे