Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 12 नियोजित विकास की राजनीति
→ लौह-अयस्क के अधिकांश भण्डार ओडिशा राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में हैं जिनका दोहन होना अभी शेष है।
→ इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ने से निवेश की दृष्टि से ओडिशा एक महत्त्वपूर्ण स्थान के रूप में उभरा है।
→ ओडिशा सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय इस्पात-निर्माताओं व राष्ट्रीय स्तर के इस्पात-निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। आदिवासियों को डर था कि यदि यहाँ उद्योग स्थापित हो गए तो उन्हें अपने घर से विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका छिन जाएगी।
→ विकास से जुड़े फैसलों में एक सामाजिक समूह के हितों को दूसरे सामाजिक समूह के हितों की तुलना में तौला जाता है। साथ ही वर्तमान पीढ़ी के हितों और आने वाली पीढ़ी के हितों को भी लाभ-हानि के तराजू पर तौलना पड़ता है।
→ स्वतन्त्रता के बाद देश में कई फैसले लिए गए। सभी फैसले परस्पर आर्थिक विकास के एक मॉडल या ‘विजन’ से जुड़े हुए थे।
→ भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक सामाजिक-न्याय ही है। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति तथा किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। सरकार को इस मसले पर महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना था।
→ स्वतन्त्रता से पूर्व ‘विकास’ की बात आते ही ‘विकास’ का पैमाना पश्चिमी देशों को मानते थे। विकास का अर्थ था-अधिक-से-अधिक आधुनिक होना तथा आधुनिक होने का अर्थ था–पश्चिमी औद्योगिक देशों के समान होना।
→ स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत के समक्ष विकास के दो मॉडल थे पहला उदारवादी पूँजीवादी मॉडल था। यूरोप के अधिकांश देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका में यही मॉडल अपनाया गया था। दूसरा समाजवादी मॉडल था जिसे सोवियत संघ ने अपनाया था। इन दोनों महाशक्तियों (सोवियत संघ व संयुक्त राज्य अमेरिका) के बीच ‘शीत युद्ध’ का दौर चल रहा था।
→ स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई थी कि गरीबी को समाप्त करने व सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण के कार्य का प्रमुख दायित्व सरकार का होगा।
→ अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के दशकों में सम्पूर्ण विश्व में जनसमर्थन प्राप्त हुआ था।
→ सन् 1944 में भारत में उद्योगपतियों का एक समूह एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया, जिसे ‘बॉम्बे प्लान’ के नाम से जाना जाता है। इस प्लान की मुख्य बात यह थी कि सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्रों में बड़े कदम उठाए।
→ सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं के विकल्प का चयन किया।
→ सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ तथा इसी वर्ष नवम्बर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज जारी किया गया।
→ पहली पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक बल कृषि-क्षेत्र पर दिया गया था।
→ योजनाकारों का मूलभूत लक्ष्य राष्ट्रीय आय के स्तर को ऊँचा करना था। यह तभी सम्भव था, जब लोगों की बचतें उनके खर्चों से अधिक हों।
→ दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956) में भारी उद्योग के विकास पर जोर दिया गया। पी० सी० महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक दल ने यह योजना तैयार की।
→ औद्योगीकरण पर दिए गए बल से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को नया आयाम मिला।
→ जे० सी० कुमारप्पा जैसे गांधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर बल दिया गया था।
→ चौधरी चरणसिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात अत्यन्त सुविचारित और सशक्त ढंग से उठाई थी।
→ कई लोगों का मत था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तीव्र किए बिना गरीबी से छुटकारा नहीं मिल सकता।
→ भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ कहा जाता है।
→ नियोजित विकास के इसी दौर में भारत के आगामी आर्थिक विकास की बुनियाद पड़ी। भारत के इतिहास की कुछ सबसे बड़ी विकास परियोजनाएँ इसी अवधि में प्रारम्भ हुईं; जैसे-भाखड़ा-नांगल परियोजना व हीराकुड परियोजना।
→ सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ भारी उद्योग; जैसे—इस्पात संयन्त्र, तेलशोधक कारखाने, विनिर्माण इकाइयाँ, रक्षा उत्पादन आदि इसी अवधि में प्रारम्भ हुए।
→ भारत में सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। सरकार ने उन क्षेत्रों पर ज्यादा संसाधन स्थापित करने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा उपलब्ध थीं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। यही उस घटना की शुरुआत थी जिसे ‘हरित क्रान्ति’ के नाम से जाना जाता है।
→ हरित क्रान्ति से देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में वृद्धि हुई।
→ सन् 1969 में 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
→ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में बढ़ते भ्रष्टाचार व अकुशलता तथा नौकरशाही द्वारा आर्थिक विकास में अधिक सकारात्मक भूमिका नहीं निभाने के कारण जनता का विश्वास टूट गया। फलस्वरूप देश के नीति-निर्माताओं ने सन् 1980 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया।
→ पंचवर्षीय योजनाओं का क्रम चलता रहा लेकिन 1961-66 की तीसरी पंचवर्षीय योजना के बाद अड़चनें आने लगीं। यही कारण है कि तीन वर्ष की अवधि का विराम आया, फिर एकवर्षीय योजनाएँ चलती रहीं, इसको ‘नियोजन अवकाश’ कहा गया।
→ वामपन्थ-‘वामपन्थ’ में मुख्यत: उन लोगों की तरफ संकेत किया जाता है जो गरीब और पिछड़े सामाजिक समूह को महत्त्व प्रदान करते हैं तथा इन वर्गों को लाभ पहुंचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।
→ दक्षिणपन्थ-‘दक्षिणपन्थी’ रुझान वाली विचारधारा से उन लोगों की ओर संकेत किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है।
→ विजन-विजन से तात्पर्य नजरिया या दृष्टिकोण से है।
→ विकास-विकास का अर्थ अधिकाधिक आधुनिक होना और आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों के समान होना।
→ नियोजन-नियोजन का अर्थ कम-से-कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने से है।
→ पूँजीवाद-पूँजीवाद शब्द से तात्पर्य उस आर्थिक प्रणाली से है जिसमें कारखानों एवं खेतों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है तथा वे संगृहीत पूँजी का उपयोग अपने लिए करते हैं।
→ उदारवाद-प्रशासकीय नियन्त्रणों को कम करके स्वतन्त्र व्यापार की नीतियों को अपनाना उदारवाद कहलाता है।
→ समाजवाद-समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सामाजिक स्वामित्व होता है।
→ समाजवादी प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण होता है।
→ औद्योगीकरण–औद्योगीकरण के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है।
→ शीतयुद्ध-दोनों महाशक्तियों (सोवियत संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका) के मध्य विचारधाराओं का युद्ध ‘शीतयुद्ध’ कहलाता है।
→ योजना आयोग-योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में भारत सरकार द्वारा की गई। यह एक सलाहकार की भूमिका निभाता है।
→ बॉम्बे प्लान-सन् 1944 में भारत में उद्योगपतियों का एक वर्ग बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में एकत्रित
हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था को चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है। इस प्लान की इच्छा थी कि सरकार औद्योगिक व अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए।
→ बजट-सरकारी आय-व्यय का वार्षिक वितरण बजट कहलाता है।
→ गैर-योजना व्यय-गैर-योजना व्यय में वार्षिक आधार पर दैनंदिनी मदों पर खर्च किया जाता है। यह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बजट का हिस्सा होता है।
→ योजना व्यय-केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट का दूसरा हिस्सा योजना व्यय का होता है। योजना में तय की गई प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे पाँच वर्ष की अवधि में खर्च किया जाता है।
→ केरल मॉडल केरल में विकास और नियोजन के लिए जो रास्ता चुना गया उसे ‘केरल मॉडल’ कहा जाता है। इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य वितरण तथा गरीबी उन्मूलन पर बल दिया जाता है।
→ हरित क्रान्ति-हरित क्रान्ति से आशय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि की नयी नीति अपनाने के कारण हुई। ‘हरित क्रान्ति’ में सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना प्रारम्भ किया।
→ मिश्रित अर्थव्यवस्था-इस अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी व समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुणों का समावेश होता है। भारत की अर्थव्यवस्था ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ है।
→ ऑपरेशन फ्लड-सन् 1970 में ऑपरेशन फ्लड के नाम से एक ग्रामीण विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ था। ऑपरेशन फ्लड में सहकारी दुग्ध उत्पादकों को उत्पादन और विपणन के एक राष्ट्रव्यापी तन्त्र को जोड़ा गया।
→ वर्गीज कुरियन–’मिल्कमैन ऑफ इण्डिया’ के नाम से प्रसिद्ध वर्गीज कुरियन ने ‘गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपणन परिसंघ’ के विकास में मुख्य भूमिका निभाई और अमूल की स्थापना की।
→ पी० सी० महालनोबिस–अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद्। इन्हें भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना का योजनाकार माना जाता है। ये तीव्र औद्योगीकरण एवं सार्वजनिक क्षेत्र की सक्रिय भूमिका के समर्थक थे।
→ जे० सी० कुमारप्पा-इन्होंने गांधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने की कोशिश की तथा योजना आयोग के सदस्य के रूप में योजना प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया।