Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 7 साइकिल की सवारी Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

Bihar Board Class 7 Hindi साइकिल की सवारी Text Book Questions and Answers

पाठ से –

प्रश्न 1.
साइकिल चलाने के बारे में लेखक की क्या धारणा थी? – क्या यह धारणा सही थी? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
साइकिल चलाने के बारे में लेखक की धारणा थी कि हम सब कुछ कर सकते हैं, मगर साइकिल नहीं चला सकते हैं, क्योंकि ये विद्या हमारे प्रारब्ध में नहीं लिखी गई है।

यह लेखक की धारणा गलत थी क्योंकि साइकिल चलाना लेखक सीख सकते थे। हाँ, यह बात सत्य है कि उम्र पर विद्या सीखना आसान है लेकिन अधिक उम्र में कोई विद्या सीखना आसान नहीं तो मुश्किल भी नहीं। प्रयत्न और नियमित होकर अधिक उम्र में भी लेखक साइकिल सीख सकते थे। अगर दुर्घटना के बाद भी लेखक नियमित साइकिल की सवारी करते तो थोड़े ही दिनों में अच्छे चालक बन सकते थे।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

प्रश्न 2.
लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कौन-कौन-सी तैयारियाँ की?
उत्तर:
लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कपडे बनवाये । उस्ताद ठीक किए । साइकिल माँगकर लाया । जेबक के दो डब्बे खरीदकर लाये । इत्यादि ।

प्रश्न 3.
लेखक के झूठ का पोल कैसे खुल गई?
उत्तर:
लेखक ने जब झूठ बोलकर दुर्घटना का दोष तिवारी जी पर मढ़ने – लगे तो पोल खुल गई क्योंकि जिस ताँगा से लेखक दुर्घटनाग्रस्त हुए थे उस ताँगा पर उनकी पत्नी ही बैठी थी।

प्रश्न 4.
किसने किससे कहा –
(क) “कितने दिन में सिखा देगा।”
उत्तर:
लेखक ने तिवारी जी से कहा।

(ख) “नहीं सिखाया तो फीस लौटा देंगे।”
उत्तर:
उस्ताद ने लेखक से कहा।

(ग) “मुझे तो आशा नहीं कि आपसे यह बेल मत्थे चढ़ सके।”
उत्तर:
लेखक की पत्नी ने लेखक से कही।

(घ) “हम शहर के पास नहीं सीखेंगे। लारेंस बाग में जो मैदान है वहाँ सीखेंगे।”
उत्तर:
लेखक ने उस्ताद से कहा।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
बिल्ली के रास्ता काटने एवं बच्चे के छींकने पर लेखक का गुस्सा आया । क्या लेखक का गुस्सा करना उचित था। अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
बिल्ली के रास्ता काटने एवं बच्चे के छींकने पर लेखक को गुस्सा आना उचित नहीं था। हमारे विचार से बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से यात्रा में विच आता है। यह धारणा गलत है। मनुष्य यदि इंढ संकल्प हो तो रास्ते के सारे विघ्न बाधाएँ स्वयं समाप्त हो जाते हैं। विघ्न तो उसे रोकता है जिसे अपनी सफलता पर संदेह हो। लेखक को तो पूर्व से ही यह धारणा थी कि-हम साइकिल नहीं चला सकते हैं।

प्रश्न 2.
किसी काम को सम्पन्न करने में आपको किससे किस प्रकार की मदद की अपेक्षा रहती है?
उत्तर:
किसी काम को सम्पन्न करने में हमें अपने मित्रों से मदद की अपेक्षा रहती है। अपने भाइयों, बहनों और अन्य परिवार वालों के साथ-साथ समाज के हरेक व्यक्ति से मदद की अपेक्षा रहती है। माता-पिता बड़े-बुजुर्गों से निर्देशन की अपेक्षा । भाई-बहनों से श्रम बाँटने की अपेक्षा । मित्रों से सहयोग की अपेक्षा।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

व्याकरण –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग कीजिए –

(क) मैदान में डटे रहना।
उत्तर:
लेखक मैदान में डटे रहने का निर्णय लिया।

(ख) मैदान मार लेना।
उत्तर:
किसी भी विद्या को सीखने में नियमित ढंग से कार्य करने वाले मैदान मार लेते हैं।

(ग) हाथ-पाँव फूलना।
उत्तर:
लेखक के झूठ का पोल खुलते ही, लेखक के हाँथ-पाँव फूल गये।

(घ) दाँत पीसना
उत्तर:
लड़के के छींक सुनकर लेखक दाँत पीसकर रह गये ।

प्रश्न 2.
उदाहरण के अनुसार दो वाक्यों को एक वाक्य में बदलिए-

(क) श्रीमती जी ने बच्चे को सुलाया। हमारी तरफ देखा।
उत्तर:
श्रीमती जी ने बच्चे को सुलाकर हमारी तरफ देखा।

(ख) उसी समय मशीन मँगवाया। उन कपड़ों की मरम्मत शुरू कर दी।
उत्तर:
उसी समय मशीन मँगाकर उन कपड़ों की मरम्मत शुरू कर दी।

(ग) उस्ताद ने हमें तसल्ली दी। चले गये।
उत्तर:
उस्ताद ने हमें तसल्ली देकर चले गये।

(घ) साइकिल का हैण्डल पकड़ा। चलने लगे।
उत्तर:
साइकिल का हैण्डल पकड़कर चलने लगे।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
साइकिल में अनेक पार्ट-पुर्जे होते हैं । इन पार्ट-पुों के नाम की सूची बनाइए।
उत्तर:
साइकिल के पार्ट पुर्जी के नाम हैं –
हैण्डल, घंटी, ब्रेक, सीट, पैडिल, चक्का, टायर, ट्यूब, गोली, धुरी, ब्रेक सुल, साइकिल बॉडी इत्यादि ।

प्रश्न 2.
“हड़बड़ में गड़बड़” पर कोई किस्सा अपनी कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
“हड़बड़ में गड़बड़”।

“हड़बड़ में गड़बड़” हो जाता है। एक आदमी बड़ा ही सीधा-सादा भोला था। 50 वर्ष की उम्र में उसे साइकिल सीखने की धुन सवार हुई । भला क्यों न धुन सवार हो । उसके सभी मित्र साइकिल चलाना जानते थे। यहाँ तक उसके छोटे बच्चे जो मात्र 10 साल का था, साइकिल फरटि मार चलाता था। वह आदमी अपने मित्र से साइकिल सीखाने को कहता है। मित्र ने एक आदमी दिया जो 15 दिनों में साइकिल सीखाने की गारंटी देकर दो रुपये प्रतिदिन के हिसाब से अग्रिम फीस भी ले लिया।

दूसरे दिन उस्ताद के आत ही वह आदमी झटपट पैजामा और कमीज उल्टे पहनकर चल पड़ा। रास्ता में जो भी देखे उस आदमी को देखकर मुस्कुरा देता। आदमी को लगता था कि हमारे उमर को देखकर लोग हँस रहे हैं। वह गुस्सा में आ गया । दाँत पीसकर बेचारा रह गया । कर भी क्या सकता था। एक रहे तब तो डाँट दे । यहाँ तो जो नजर आये सब उस आदमी को देखकर हँस रहा था। अंततः वह आदमी साइकिल पटक उस्ताद से कहामैं साइकिल सीखने योग्य नहीं हूँ। यह कहकर घर लौट आया। पत्नी पूछीक्यों जी, शीघ्र साइकिल सीखकर आ गये ? वह आदमी कहा क्या सिखु लोग हमको देखकर हँस रहे थे कि इतने उम्र में साइकिल सीखने चला है। पत्नी को समझते देर नहीं लगी। वह बोल पड़ी-“हड़बड़ में गड़बड़” हुआ है। लोग आपको देख नहीं हँस रहे थे बल्कि आपने जो उल्टा पैजामा-कुर्ता पहन रखा है इसलिए मुस्कुरा रहे होंगे।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी

साइकिल की सवारी Summary in Hindi

सारांश – प्रस्तुत लेख हास्यपूर्ण संस्मरण लेख है। इस लेख के माध्यम से लेखक ने बताया है कि समय पर किया हुआ काम या ज्ञान ही अच्छा होता है। असमय पर काम करने या ज्ञान प्राप्त करने में बाधाएँ तो आती ही हैं, कार्य में सफलता मिलना भी मुश्किल हो जाता है।

लेखक साइकिल चलाना नहीं जानता है जबकि उसके पुत्र जानते हैं। छोटे-छोटे मूर्ख से मूर्ख लोगों को साइकिल चलाते देख लेखक को लगता है कि इस युग में हम ही एक ऐसे लोग हैं जिसको साइकिल चलाना नहीं आता । पुनः वह साइकिल की सवारी करना आसान मानकर साइकिल सीखने का निर्णय लेता है। तैयारी शुरू हुई फटे-पुराने कपड़े निकाले गये क्योंकि साइकिल सीखने के क्रम में एकाध बार लोग गिरते ही हैं। कपड़े फटेंगे, गंदे होंगे। पुराने कपड़े पहनकर ही काम चलाना ठीक है। पत्नी के द्वारा लेखक समझाये भी गये। लेकिन लेखक ने अपने सोच को पूरा करके दिखाने में ही अपनी सार्थकता समझी। बेचारी पति के जिद्द के सामने झुक गई और लेखक के फटे-पुराने कपड़े को ठीक कर दी।

पुनः इस विद्या को सीखाने के लिए उस्ताद खोजा गया। 20 रुपये अग्रिम लेकर उस्ताद साइकिल सिखाने को तैयार हुए। निर्णय हुआ कि लोगों की नजर से बचने के लिए शहर के बाहर लारेंस बाग के मैदान में सीखेंगे।

अब तो लेखक की नींद भी हराम हो गई यदि नींद में आवे तो स्वप्न के संसार में भ्रमण करने लगते ।

साइकिल मंगनी हुआ, चोट लगने पर लगाने के लिए जेबक भी खरीद लिए गये । इस प्रकार पूरी तैयारी के साथ जब लेखक घर से साइकिल सिखने के लिए उस्ताद के साथ निकलते हैं तो बिल्ली रास्ता काट दिया। एक लड़का छिंक भी दिया। लेखक दाँत पीस कर रह गये। गुस्सा तो आया लेकिन क्या करते । पुनः हरि का नाम लेकर आगे बढ़े तो लेखक को लगा कि सभी लोग मेरी तरफ देख-देख मुस्कुरा रहे हैं। गौर किया तो पता चला कि पाजामा और अचकन दोनों उन्होंने उल्टा पहन रखा है। इसी से लोग हंस रहे हैं। अब लेखक घर लौट जाना ही उचित समझकर उस्ताद से माफी मांगकर लौट गये। इस प्रकार पहला दिन मुफ्त में गया।

दूसरे दिन लेखक पुनः अपने उस्ताद के साथ निकल पड़े। रास्ते में उस्ताद ने कहा, जरा साइकिल पकड़े रहिए, हम थोड़ा लस्सी पी लेते हैं। जब उस्ताद लस्सी पी रहे थे तो लेखक पहले तो साइकिल को ऊपर-नीचे निहारा, पुनः थोड़ा आगे बढ़ाने का यत्न किया तो ऐसा लगा कि साइकिल लेखक के सीने पर चढ़ा जाता है अंतत: लेखक को साइकिल छोड़ना पड़ा। साइकिल लेखक के पाँव पर गिरा तथा पाँव साइकिल में फंस गया । उस्ताद दौड़े, अन्य लोगों की सहायता से लेखक उठे उनके पैर में अधिक चोट आ गई । लेखक लंगड़ाते हुए दूसरे दिन भी आधे रास्ते से लौट आये । साइकिल के कुछ पाट-पूर्जे भी टूट गये थे। पुन: साइकिल मिस्त्री के यहाँ भेजकर ठीक करवाया गया। आठ नौ दिनों में लेखक साइकिल चढ़ना सीख तो गये । लेकिन स्वयं नहीं चढ़ पाते । कोई पकड़ता तो चढ़कर चला पाते थे। इतने में ही लेखक पूरा आनंदित थे। थोड़े ही समय में साइकिल ट्रेनिंग सेंटर खोलकर तीन-चार सौ मासिक कमाने का स्वप्न देखने लगते हैं।

एक दिन उस्ताद ने लेखक को साइकिल पर चढ़ाकर कह दिया किअब तुम सीख गये। अब लेखक साइकिल चलाते हुए फूले नहीं समान रहे थे। लेकिन दशा यह थी कि सौ गज की दूरी पर ही आदमी को देख चिल्लाना शुरू कर देते, बगल-बगल । यदि कोई गाड़ी नजर आती तो दूर से ही देखकर प्राण छुटने लगते । गाड़ी निकल जाती थी तब लेखक को जान में जान आती। सहसा साइकिल पर सवार लेखक को तिवारी जी आते दिखाई पड़े। जोर से कहा, तिवारी जी ! बगल हो जाओ नहीं तो साइकिल चढ़ा दूंगा । तिवारी जी मुस्कुराते हुए कहा-जरा एक बात तो सुनते जाओ । लेखक ने एक बार हैण्डल देखा फिर तिवारी जी को फिर जवाब दिया, इस समय कोई बात सुन सकता है। देखते नहीं हो, साइकिल पर सवार हैं।

तिवारी जी लेखक से जरूरी बात सुन लेने के लिए उतरने के लिए कहते रह गये। लेकिन लेखक आगे बढ़ गये।

सामने तोता देख लेखक जोर से बाईं तरफ भाई, अभी नये चलाने वाले हैं, कहकर ताँगे वाले को तो बाएँ तरफ कर दिया। लेकिन घोड़ा एकाएक भड़क गया और लेखक की साइकिल ताँगे की बीचों-बीच घुस गयी । लेखक बेहोश हो जाते हैं। जब होश आया तो. अपने को घर में पाया। उनके शरीर पर कितनी ही पट्टियाँ बँधी थीं।

लेखक को होश में देखकर पत्नी बोली—क्यों ? अब क्या हाल है ? मैं कहती न थी, साइकिल चलाना न सीखो । उस समय किसी का सुनते ही न थे।

लेखक ने सोचकर तिवारी जी पर इलजाम लगाना चाहते हैं। पत्नी ने कहा, मुझे चकमा मत दो, उस ताँगे पर मैं ही बच्चों के साथ घूमने निकली थी कि सैर भी होगा और तुम्हें साइकिल चलाते भी देख लेंगे। लेखक उत्तर नहीं दे सके। बाद में उन्होंने कभी साइकिल को छुआ तक नहीं।