Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions व्याकरण Grammar.
BSEB Bihar Board Class 7 Hindi व्याकरण Grammar
भाषा
भाषा मनुष्य के भावों और विचारों को प्रकट करने का साधन है । भाषा के द्वारा ही मनुष्य, जीव-जन्तु और पशु-पक्षी अपने मन के विचार प्रकट करते हैं । भाषा के द्वारा हम अपनी आवाज और संकेतों के दूसरे लोगों तक पहुँचाते है।
इस प्रकार अपनी बात दूसरों के सामने कहना और दूसरों की बात समझाना भाषा कहलाती है।
भाषा के प्रकार-भाषा तीन प्रकार की होती है –
(1) मौखिक भाषा
(2) लिखित भाषा और
(3) सांकेतिक भाषा ।
(1) मौखिक भाषा – बातचीत करने, बोलने या सुनने में हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं उसे मौखिक भाषा कहते हैं । इस भाषा में अपनी बात मुँह से बोलकर दूसरों के सामने प्रकट किए जाते हैं।
(2) लिखित भाषा – अपने विचारों और भावों को जब हम लिखकर दूसरे व्यक्ति के सामने प्रकट करते हैं तो वह उसे पढ़कर समझ लेता है कि क्या कहना चाहते हैं ? उसे लिखित भाषा कहा जाता है।
(3) सांकेतिक भाषा – इसमें हम केवल संकेतों या इशारों से ही अपना संदेश दूसरों तक पहुँचाते हैं । इसमें अंगुलियों, आँखों या अन्य संकेतों-साध नों का प्रयोग किया जाता है ।
वर्ण या अक्षर
वर्ण या अक्षर-भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण या अक्षर कहते हैं। इसे अलग-अलग नहीं कर सकते, जैसे- अ, च, न, इ, ऊ आदि छोटे अंश के अक्षर हैं। ये मनुष्य के मुख से निकलने वाली ध्वनियाँ हैं।
वर्णमाला-वर्णा या अक्षरों के समूह को वर्णमाला कहा जाता है। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण या अक्षर हैं।
ये वर्ण दो प्रकार के हैं –
(1) स्वर और (2) व्यंजन ।
(1) स्वर- जिन अक्षरों का उच्चारण किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना किया जाता है, उन्हें स्वर कहते हैं ।
ये स्वर निम्न प्रकार हैं –
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ तथा औ।
अनुस्वर (अ) तथा विसर्ग (अ:) को भी स्वरों के साथ ही पढ़ाया जाता है।
(2) व्यंजन-जिन वर्गों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में कुल 33 व्यंजन होते हैं।
जैसे – क, ख, ग, घ आदि ।
संयुक्त अक्षर- दो या दो से अधिक अक्षरों के मिले रूप को संयुक्ताक्षर कहते हैं ।
जैसे –
क्ष – क + ष + अ
त्र – त् + र + अ
ज्ञ – ज् + त्र + अ
मात्राएँ- किसी स्वर के व्यंजन से मिलने पर उसका रूप बदल जाता है, जिसे मात्रा कहा जाता है । जैसे –
अनुस्वर (.)-किसी अक्षर के ऊपर जो बिन्दु लगाया जाता है उसे अनुस्वर कहते हैं । अनुस्वार व्यंजन की मात्रा के पीछे लिखा जाता है ।
जैसे- क + – कं, न + – नं।
विसर्ग (:)- किसी अक्षर के सामने दो बिन्दु लगाकर विसर्ग लिखते । हैं । इसका प्रयोग मात्रा के बाद किया जाता है।
जैसे – ग + : = गः, न + : = नः ।
वाक्य-शब्दों का वह समूह जिसका पूरा-पूरा अर्थ समझ में आ जाये, उसे वाक्य कहते हैं । जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ। गीता गाना गा रही है ।
वाक्य के दो भाग होते हैं –
(क) उद्देश्य
(ख) विधेय
(क) जिसके विषय में कुछ कहा जाता है. उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ । इसमें ‘मैं’ के विषय में कहा गया है । गीता गाना गा रही है । इसें ‘गीता’ के विषय में कहा गया है । अतः ‘मैं’ और गीता उद्देश्य
(ख) विधेय- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं । जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ ‘मैं’ उद्देश्य के विषयमें कहा गया है बाजार जाता हैं। अत: ‘बाजार जाता हूँ’ विधेय है । इसी प्रकार ‘गाना गा रही है’ भी विधेध हैं।
संधि
प्रश्न 1.
संधि किस कहते हैं ?
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक वर्ण मिलते हैं, तो इससे पैदा होने वाला विकार को संधि कहते हैं । जैसे – जगत् + नाथ = जगन्नाथ, शिव + आलय = शिवालय, गिरि + ईश = गिरीश आदि ।
प्रश्न 2.
संधि के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
संधि के तीन भेद हैं-
(i) स्वर संधि
(ii) व्यंजन संधि
(iii) विसर्ग संधि ।
प्रश्न 3.
स्वर संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
दो या दो से अधिक स्वर वर्णों के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे – अन्न + अभाव = अन्नाभाव, महा + आशय = महाश्य, भोजन + आलय = भोजनालय ।
प्रश्न 4.
स्वर संधि के कितने भेद हैं ? उनके विषय में लिखें ।
उत्तर:
स्वर संधि के पाँच भेद हैं :
(i) दीर्घ संधि-जब ह्रस्व या दीर्घ वर्ण, ह्रस्व या दीर्घ वर्णों से मिलकर दीर्घ स्वर हो जाते हैं, उसे दीर्घ संधि कहते हैं । जैसे –
भोजन + आलय = भोजनालाय (अ + आ = आ)
अन्न + अभाव = अन्नाभाव (अ + आ = आ)
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र (इ + ई = ई)
विधु + उदय = विधूदय (उ + उ = ऊ) .
(ii) गुण संधि-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ, ई, उ, ऊ, ऋ आवे तो वे मिलकर क्रमशः ए, ओ और अर् हो जाते हैं । जैसे – नर + इन्द्र = नरेन्द्र, देव + ईश = देवेश, महा + ऋषि = महर्षि आदि ।
(iii) वृद्धि संधि-यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ आ’ के बाद ए, ऐ आवे तो – ‘ऐ’ और ‘ओ’ आवे तो ‘औ’ हो जाते हैं । जैसे-अनु + एकान्त = अनैकान्त, तथा + एव = तथैव, वन + औषधि = वनौषधि, सुन्दर + ओदन = सुन्दरौदन ।
(iv) यण संधि-इ, ई के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो ‘य’, उ, ऊ, के बाद भिन्न स्वर आवे तो ‘व्’ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आवे तो ‘र’ हो · जाता है.। जैसे-सखी + उवाच = सख्युवाच, दधि + आयन = दध्यानय, अनु + अय = अन्वय, अनु + एषण = अन्वेषण, पित + आदेश = पित्रादेश ।
(v) अयादि संधि-यदि ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई भिन्न स्वर हो, तो उसके स्थान पर क्रमशः ‘अय्’, ‘आय’, ‘आव्’ हो जाता है । जैसे-ने + अन = नयन । गै अक = गायक, भो + अन = भवन, भौ + उक = भावुक
प्रश्न 5.
व्यंजन संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन या स्वर वर्ण के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं । जैसे-दिक् + अन्त = दिगन्त, दिक् + गज = दिग्गज, जगत् + ईश = जगदीश, जगत् + नाथ = जगन्नाथ, सत् + आनन्द = सदानन्द, उत् + घाटन = उद्घाटन ।।
प्रश्न 6.
विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? सोदाहरण परिभाषा दें।
उत्तर:
विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं । जैसे-निः + चय – निश्चय, निः + पाप = निष्पाप ।
स्मरणीय
- अ + नि + आय = अन्याय
- अनु + अय = अन्वय
- अन्य + अन्य = अन्यान्य
- अतः + एव = अतएव
- अभि + इष्ट = अभीष्ट
- अति + आचार = अत्याचार
- आत्म + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
- अति + उत्तम = अत्युत्तम
- आवि: + कार = आविष्कार
- अति + अन्त = अत्यन्त
- आशीः + वाद = आशीर्वाद
- अधः + गति = अधोगति
- अप् + ज = अब्ज
- अभि + आगत = अभ्यागत
- अहम् + कार = अहंकार
- आदि + अन्त = आद्यन्त
- अभि + उदय = अभ्युदय
- उत् + नति = उन्नति
- अहः + निश = अहर्निश
- अनु + अय + इत = अन्वित
- अनु + एषण = अन्वेषण
- अन्तः + निहित = अन्तर्निहित
- अम्बु + ऊर्मि = अम्बूमि
- इति + आदि = इत्यादि
- उत् + हत = उद्धत
- उत् + विग्न = उद्विग्न
- उप + ईक्षा = उपक्षा
- उत् + छिन्न = उच्छिन्न
- उत् + नायक = उन्नायक
- उत् + मत्त = उन्मत
- उत् + भव = उद्भव
- उत् + लेख = उल्लेख
- उत् + मूलित = उन्मूलित
- उत् + हार = उद्धार
- महा + ईश्वर = महेश्वर
- उत् + डयन = उड्डयन
- किम् + नर = किन्नर
- तत् + लीन = तल्लीन
- तत् + आकार = तदाकार
- तेजः + राशि – तेजोराशि
- तत् + रूप = तद्रुप
- देव + ईश = देवेश
- दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
- दु: + धर्ष = दुर्धर्ष
- देव + ऋषि = देवर्षि
- देव + इन्द्र = देवेन्द्र
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- देव + आगम = देवागम
- नार + अयन = नारायण
- नि: + छल = निश्छल
- निः + आधार = निराधार
- निः + प्राण = निष्प्राण
- अप् + मय = अम्मय
- ईश्वर + इच्छा = ईश्वरेच्छा
- उत् + हृत = उद्धृत
- उत् + लंघन = उल्लंघन
- उत् + घाटन = उद्घाटन
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- ऊष् + म = ऊष्म
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
- उपरि + उक्त = उपर्युक्त
- उत् + शृंखल = उच्छंखल
- उत् + गम = उद्गम
- उद् + दाम = उद्दाम
- उत् + योग. = उद्योग
- कृत + अन्त = कृदन्त
- तथा + एव = तथैव
- तेजः + पुंज = तेजोपुंज
- तृष् + ना = तृष्णा
- तत् + टीका = तट्टीका
- दु: + शासन = दुश्शासन
- दिक् + गज = दिग्गज
- दाव + अनल = दावानल
- दु: + नीति = दुर्नीति
- दु: + जन = दुर्जन
- दु: + दिन = दुर्दिन
- दु: + कर = दुष्कर
- नमः + कार = नमस्कार
- नदी + ईश = नदीश
- निः + सन्देह = निस्संदेह
- निः + अर्थक = निरर्थक
- निः + मल = निर्मल
- निः + रव = नीरव
- नदी + अम्बु = नद्यम्बु
- नौ + इक = नाविक
- निः + उपाय = निरुपाय
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- पौ + अक = पावक
- प्रति + एक = प्रत्येक
- परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
- पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
- प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
- प्रति + अक्ष = प्रत्यक्ष
- प्र + उत्साहन = प्रोत्साहन
- प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
- प्रति + अय = प्रत्यय
- प्र + अंगण = प्रांगण
- पृष् + थ = पृष्ठ
- पयः + द स = पयोद
- पयः + पान = पयःपान
- भाग्य + उदय = भाग्योदय
- भो + उक = भावुक
शब्द
प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण-समुदाय को ‘शब्द’ कहते हैं।
प्रश्न 2.
‘अर्थ’ के अनुसार शब्दों के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
अर्थ के अनुसार शब्दों के दो भेद हैं
(i) सार्थक – जिन शब्दों का स्वयं कुछ अर्थ होता है, उसे सार्थक शब्द कहते हैं । जैसे-घर, लड़का, चित्र आदि ।
(ii) निरर्थक – जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता, उसे निरर्थक शब्द कहते हैं । जैसे-चप, लव, कट आदि
प्रश्न 3.
व्युत्पत्ति के अनुसार शब्दों के कौन-कौन से भेद हैं ?
उत्तर:
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद हैं ।
(i) तत्सम – संस्कृत के सीधे आए शब्दों को तत्सम कहते हैं । जैसे- रिक्त, जगत्, मध्य, छात्र ।
(ii) तद्भव – संस्कृत से रूपान्तरित होकर हिन्दी में आए शब्दों को तद्भव कहते हैं। जैसे-आग, हाथ, खेत आदि ।
(iii) देशज – देश के अन्दर बोल-चाल के कुछ शब्द हिन्दी में आ गए हैं । इन्हें देशज कहा जाता है जैसे- लोटा, पगडी, चिडिया, पेट आदि ।
(iv) विदेशज – कुछ विदेशी भाषा के शब्द हिन्दी में मिला लिये गए हैं, इन्हें विदेशज शब्द कहते हैं । जैसे-स्कूल, कुर्सी, तकिया, टेबुल, मशीन, बटन, किताब, बाग आदि ।
प्रश्न 4.
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के तीन भेद हैं।
(i) रूढ़ – जिन शब्दों के खंड़ों का अलग-अलग अर्थ नहीं होता, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं । जैसे-जल = ज + ल ।
(ii) यौगिक – जिन शब्दों के अलग-अलग खंडों का कुछ अर्थ हो, उसे यौगिक शब्द कहते हैं । जैसे-हिमालय, पाठशाला, देवदूत, विद्यालय आदि ।
(iii) योगरूढ़ – जो शब्द सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ बतावे, उसे योगरूढ़ कहते हैं । जैसे-लम्बोदर (गणेश), चक्रपाणि (विष्णु) चन्द्रशेखर (शिवजी) आदि ।
संज्ञा
प्रश्न 1.
संज्ञा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी प्राणी, वस्तु, स्थान और भाव को संज्ञा कहते हैं।
प्रश्न 2.
संज्ञा के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
संज्ञा के निम्नांकित पाँच भेद हैं।
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा-किसी विशेष प्राणी, स्थान या वस्तु के नाम -को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-राम, श्याम, हिमालय, पटना, पूर्णिया आदि ।
(ii) जातिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा से किसी जाति के सभी पदार्थों का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे- गाय, घोड़ा, फूल, आदमी औरत आदि ।
(iii) भाववाचक संज्ञा-जिस से किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण-धर्म और स्वभाव का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-बुढ़ापा, चतुराई, मिठास आदि ।
(iv) समूहवाचक संज्ञा-जिस शब्द से समूह या झुण्ड का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-सोना, वर्ग, भीड़, सभा आदि ।
(v) द्रव्यवाचक संज्ञा-जिन वस्तुओं को नापा-तौला जा सके, ऐसी वस्तु के नामों को द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-तेल, घी, पानी, सोना आदि ।
भाववाचक संज्ञा बनाना
(i) जातिवाचक संज्ञा से
(ii) सर्वनाम से
(iii) विशेषण से
(iv) क्रिया से
लिंग
प्रश्न 1
लिंग किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
संज्ञा, सर्वनाम या क्रिया के जिस रूप से व्यक्ति, वस्तु और भाव की जाति का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं । हिन्दी शब्द में संज्ञा-शब्द मूल रूप से दो जातियों के हुआ करते हैं- पुरुष-जाति और स्त्री-जाति ।
प्रश्न 2.
लिंग के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
लिंग के दो भेद हैं
1. पँल्लिग – जिस संज्ञा शब्द से पुरुष-जाति का बोध होता है. उसे पुंल्लिग कहते हैं । जैसे-घोड़ा, बैल, लड़का, छात्र, आदि ।
2. स्त्रीलिंग – जिस संज्ञा शब्द से ‘स्त्री-जाति’ का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं । जैसे-स्त्री, घोड़ी, गाय, लकड़ी, छात्रा, आदि।
जिन प्राणिवाचक शब्दों के जोड़े होते हैं, उनके लिंग आसानी से जाने जा सकते हैं । जैसे- लड़का-लड़की, पुरुष-स्त्री, घोड़ा-घोड़ी, कुत्ता-कुतिया ।
गरुड़, बाज, चीता और मच्छर आदि ऐसे शब्द हैं, जो सदा पुंल्लिग होते हैं। मक्खी, मैना, मछली आदि शब्द सदा स्त्रीलिंग होते हैं।
पुंल्लिग से स्त्रीलिंग बनाना
पुंल्लिग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए जो निह लगाये जाते हैं, उन्हें ‘स्त्री प्रत्यय’ कहा जाता है । ‘पुंल्लिग शब्दों में आई, इया, इनी, इन, त्री, आनी, आती, ‘स्त्री-प्रत्यय’ जोड़कर स्त्रीलिंग बनाये जाते हैं । जैसे –
वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय :
- अनाज (पृ.)-आजकल अनाज महँगा है।
- अफवाह (स्त्री.)-यह अफवाह जोरों से फैल रही है।
- अरहर (स्त्री.)-खेतों में अहरहर लगी थी।
- आँगन (पृ.)-मेरे घर का आँगन छोटा है।
- आँचल (पुं.)-माँ ने आँचल पसारा ।
- अमावस (स्त्री.)-पूनो के बाद फिर अमावस आई।
- अश्रु (पुं.)-उनके नयनों से अश्रु झरते रहे।
- आँख (स्त्री.)-उसकी आँखों में लगा काजल धुल गया।
- अभिमान (पृ.)-किसी भी बात का अभिमान न करें।
- आग (स्त्री.)-आग जलने लगी।
- आत्मा (स्त्री.)-उसकी आत्मा प्रसन्न थी।
- आदत (स्त्री.)-दूसरों को गाली बकने की आदत अच्छी नहीं।
- आयु (स्त्री.)-मेरी आयु 20 साल की है।
- आय (स्त्री.)-आपकी आय कितनी है ?
- आकाश (पुं.)-आकाश नीला था।
- आहट (स्त्री.)-पैरों की आहट सुनाई पड़ी।
- ओस (स्त्री.)-रात भर ओस गिरती रही।
- इज्जत (री.)-बड़ों की इज्जत करो।
- ईंट (स्त्री.)-नींव की ईंट हिल गई।
- उड़ान (स्त्री.)-मैं पक्षी की उड़ान देख रहा हूँ।
- उपाय (पुं.)-आखिर इसका उपाय क्या है ?
- उलझन (स्त्री.)-उलझन बढ़ती ही जा रही है।
- ऋतु (स्त्री.)-सुहानी ऋतु आ गई।
- कपूर (पृ.)-कपूर हवा में उड़ गया।
- कब्र (स्त्री.)-यह पीर साहब की कब्र है।
- कलम (स्त्री.)-मेरी कलम टूट गई है।
- कली (स्त्री.)-कली ही खिलकरं फूल बनती है।
- कसक (स्त्री.)-उसके दिल में एक कसक छुपी थी।
- कसम (स्त्री.)-मैं अपनी कसम खाता हूँ।
- कसर (स्त्री.)-अब इसमें किस बात की कसर है ?
- कमीज (स्त्री.)-मेरी कमीज फट गई है।
- किताब (स्त्री.)-उसकी किताब पुरानी है।
- किरण (स्त्री.)-सुनहली किरण छा गई है।
- कीमत (स्त्री.)-इस चीज की कीमत अधिक है।
- कुशल (स्त्री.)-अपनी कुशल कहें।
- केसर (पुं.)-केसर फुला गए थे।
- कोयल (स्त्री.)-डाली पर कोयल कूक उठी।
- कोशिश (स्त्री.)-हमारी कोशिश जारी है।
- खाट (स्त्री.)-खाट टूट गई।
- खटमल (पुं.)-उसकी बिछावन पर कई खटमल नजर आ रहे थे।
- खत (पृ.)-आपका खत मिला।
- खबर (स्त्री.)-आज की नई खबर क्या है ?
- खीर (स्त्री.)-आज खीर अच्छी बनी है।
- खेत (पृ.)-यह धान का खेत है।
- खोज (स्त्री.)-मेरी खोज पूरी हुई।
- गंध (स्त्री.)-गुलाब की गंध अच्छी है।
- ग्रन्थ (पृ.)-यह कौन-सा ग्रंथ है ?
- गरदन (स्त्री.)-उसकी गरदन लम्बी है।
- गिलास (पुं.)-शीशे का नया गिलास टूट गया ।
- गीत (पुं.)-उसका गीत पसन्द आया ।
- गेन्द (स्त्री.)-गेन्द नीचे गिर पड़ी।
- गोद (स्त्री.)-उसकी गोद भर गई।
- घास (स्त्री.)-यहाँ की घास मुलायम है।
- घी (पु.)-घी महँगा होता जा रहा है।
- घूस (स्त्री.)-दारोगा ने घूस ली थी।
- चना (पृ.)-इन दिनों चना महँगा है।
- चमक (स्त्री.)-कपड़े की चमक फीकी पड़ गई है।
- चर्चा (स्त्री.)-आपकी इन दिनों बड़ी चर्चा है।
- चाँदी (स्त्री.)-चाँदी महँगी हो गई है।
- चादर (स्त्री.)-चादर मैली हो गई।
- चाल (स्त्री.)-घोड़े की चाल अच्छी है।
- चित्र (पुं.)-यह बापू का चित्र है।
- चिमटा (पुं.)-साधु का चिमटा खो गया।
- चोज (स्त्री.)-मुझे हर तली चीज पसंद है।
- चील (स्त्री.)-चील आसमान में उड़ी रही है।
- चुनाव (पृ.)-चौदहवां आम चुनाव सम्पन्न हुआ।
- चैत (पृ.)-फिर चैत आ गया।
- चोंच (स्त्री.)-कौआ की चोंच टूट गई।
- चौकी (स्त्री.)-वहाँ चौकी डाल दी गई।
- छत (स्त्री.)-मकान की छत नीची है।
- छल (पृ.)-उसका छल छिपा न रह सका।
- जमघट (पुं.)-यहाँ अच्छा खासा जमघट लगा था।
- जय (स्त्री.)-महात्मा गाँधी की जय सभी बोलते हैं।
- जवानी (स्त्री.)-सबकी जिन्दगी में जवानी आती है।
- जहाज (पुं.)-जहाज चला जा रहा था।
- जाँच (स्त्री.)-उस मामले की जाँच हो रही है।
- जीभ (स्त्री.)-उसकी जीभ ऐंठ रही है।
- जीत (स्त्री.)-चुनाव में विरोधियों की जीत हुई।
- जी (पुं)-उसका जी खराब है।
- जान (स्त्री.)-हर व्यक्ति को अपनी जान प्यारी होती है।
- जेब (स्त्री.)-किसी ने मेरी जेब काट ली।
- जेल (पुं.)-बेउर जेल बहुत बड़ा है।
- जोंक (स्त्री.)-जोक उसके अंगूठे से चिपकी थी।
- जोश (पुं.)-अब उनका जोश ठंडा हो गया था।
- झील (स्त्री.)-आगे दूर तक नीली झील फैली थी।
- ढोल (पुं.)-दूर का ढोल सुहावना होता है।
- तकदीर (स्त्री.)-उसकी तकदीर ही खोटी है।
- तकिया (पृ.)-वह कोमल पंखों की तकिया है।
- तरंग (स्त्री.)-सरिता की एक तरंग उठी।
- तराजू (पु.)-बनिये का तराजू टूट गया।
- तलवार (स्त्री.)-वीर की तलवार चमक उठी।
- तलाक (पुं.)-उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया।
- तलाश (पृ.)-सुख की तलाश में सभी लगे हैं।
- ताला (पुं.)-मकान के दरवाजे पर लगाया गया ताला खुला था।
- ताज (पृ.)-उसके सर पर ताज रखा गया।
- तिथि (स्त्री.)-परसों कौन-सी तिथि थी ?
- तिल (पुं.)-अच्छा तिल बाजार में नहीं बिकता।
- तीतर (पुं.)-आहट पाकर तीतर उड़ गया।
- तौलिया (पुं)-मेरा नया तौलिया कहाँ है ?
- थकान (स्त्री.)-चलने से काफी थकान हो गई थी।
- दंपति (पृ.)-दम्पति अब सानन्द थे।
- दफ्तर (पुं.)-दफ्तर नौ बजे के बाद खुलता है।
- दरार (स्त्री.)-खेतों में दरार पड़ गई है।
- दवा (स्त्री.)-हर मर्ज की दवा नहीं होती।
- दही (पुं.)-अपने दही को कौन खट्टा कहता है।
- दहेज (पुं.)-उसे भारी दहेज मिला था।
- दाल (स्त्री.)-इस बार उसकी दाल नहीं गली।
- दीवार (स्त्री.)-दीवारें ढह गई थीं।
- दीमक (स्त्री.)-किताब में दीमक लग गई थी।
- दूकान (स्त्री.)-यह दूकान पुरानी है।
- दूब (स्त्री.)-हरी-भरी दूब प्यारी लगती है।
- देर (स्त्री.)-आपने आने में थोड़ी देर कर दी।
सर्वनाम
प्रश्न 1.
सर्वनाम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होनेवाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं । जैसे-मैं, हम, वह, वे आदि ।
प्रश्न 2.
सर्वनाम के भेदों के विषय में बतावें ।
उत्तर:
सर्वनाम के छः भेद हैं ।
1. पुरुषवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम पुरुषवाचक या स्त्रीवाचक संज्ञाओं के नाम के बदले आता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे- मैं, वह, तूं, तुम आदि ।
2. निश्चयवाचक सर्वनाम-जिससे निश्चित वस्तु, व्यक्ति, वस्तु या भाव का बोध हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-यह, वह, ये, वे, आप आदि ।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिससे निश्चित व्यक्ति, वस्तु या भाव का बोध न हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे–कोई, कुछ ।
4. संबंधवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से वाक्य में आए संज्ञा के संबंध स्थापित किया जाए, उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-जो, सो, आदि ।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम का प्रयोग ‘प्रश्न’ करने के लिए किया जाता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-कौन, क्या ।
6. निजवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से ‘स्वयं या निज’ का बोध हो, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-मैं स्वयं जाऊँगा।
विशेषण
प्रश्न 1.
विशेषण से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उसे विशेषण कहा जाता है । जैसे-लाल घोड़ा, काली कमीज, उजला पैंट । यहाँ लाल, काली, उजला विशेषण हैं।
प्रश्न 2.
प्रविशेषण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते हैं, उसे प्रविशेषण कहते हैं । जैसे–’बहुत तेज घोड़ा’ वाक्य में ‘तेज’ विशेषता है और ‘बहुत’ शब्द विशेषण की विशेषता बता रहा है, अतः यह प्रविशेषण है ।
प्रश्न 3.
विशेषण के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
विशेषण के चार भेद हैं । –
1. गुणवाचक विशेषण-जिस शब्द से संज्ञा के गुण, अवस्था और धर्म . का बोध हो, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-काली घोड़ी, लाल लगाम, सपाट चेहरा आदि ।
2. परिणामवाचक विशेषण-जिस शब्द से किसी वस्तु की नाप-तौल का बोध हो, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-कुछ किलो दाल, कुछ अनाज, तीन लिटर दूध आदि ।
3. संख्यावाचक विशेषण-जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-चार आदमी, आठ दिन, तीसरा लड़का आदि ।
4. सार्वनामिक विशेषण-जो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहले आकर ‘विशेषण’ का काम करते हैं, उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं । जैसे-यह लडका, वह स्कूल, वह फकीर आदि ।
कारक
कारक : संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों, खासकर क्रिया से अपना संबंध प्रकट करता है, कारक कहलाता है। जैसे –
राम ने रावन को मारा ।
इस वाक्य में दो संज्ञा शब्द (राम, रावण) और एक क्रिया शब्द (मारा) हैं। दोनों संज्ञा शब्दों का आपस में तो संबंध है ही, मुख्य रूप से उनका संबंध (मारा) क्रिया से है; जैसे –
जैसेरावण को किसने मारा ? – राम ने।
राम ने । राम ने किसको मारा ? – रावण को ।
यहाँ, मारने की क्रिया राम करता है, अत: राम ने = कर्ता कारक और मारने (क्रिया) का फल रावण पर पड़ता है, अतः रावण को = कर्म कारक ।
स्पष्ट है कि करनेवाला कर्त्ताकारक हुआ । इसका चिह्न ‘ने’ है. और जिस पर फल पड़ा, वह कर्मकारक हुआ । इसका चिह्न ‘को’ है।
कारक के भेद
हिन्दी में कारक के आठ भेद हैं, जो निम्नलिखित हैं –
यहाँ इस बात पर ध्यान दें-कारकों के साथ क्रमश: गणनावाले शब्द-प्रथमा, द्वितीया, आदि शब्द ही विभक्ति हैं, लेकिन सामान्य भाषा में ‘कारक चिह्नों’ को ‘विभक्ति’ के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ।
कारकों का अर्थ एवं प्रयोग
1. कर्ताकारक : जो कर्ता काम (क्रिया) करता है, उसे कर्ताकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘ने’ है; जैसे –
राम खाता है । (0-विभक्ति)
राम ने खाया । (ने-विभक्ति) ।
दोनों वाक्यों से स्पष्ट है कि खाने का काम (क्रिया) राम ही करता है, लेकिन पहले वाक्य में ‘ने’ चिह्न लुप्त है या छिपा हुआ है, परन्तु दूसरे वाक्य में कर्ता का ‘ने’ चिह्न स्पष्ट है।
कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग
(क) जब क्रिया सकर्मक हो, तो सामान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, संदिग्धभूत और हेतुहेतुमद्भूत कालों में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे –
सामान्यभूत – उसने रोटी खायी ।
आसन्नभूत – उसने रोटी खायी है।
पूर्णभूत – उसने रोटी खायी थी।
संदिग्धभूत – उसने रोटी खायी होगी ।
हेतुहेतुमद्भूत – उसने रोटी खायी होती, तो पेट भरा होता ।
(ख) प्रायः अकर्मक क्रिया में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है, लेकिन-नहाना, खाँसना, छींकना, थूकना, भंकना आदि अकर्मक क्रियाओं में, इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त कालों में होता है; जैसे –
राम ने नहाया ।
उसने छींका था ।
उसने खाँसा है।
मैंने थूका होगा ।
(ग) जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है, तो इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त कालों में होता है ।
उसने बच्चे का रुलाया ।
मैंने कुत्ते को जगाया था ।
माँ ने बच्चे को हँसाया है।
उसने बिल्ली को सुलाया होगा ।
‘ने’ चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ नहीं होता ‘ने’ चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्थाओं में न करें –
(क) वर्तमानकाल और भविष्यत्काल में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे –
वह खाता है।
वह खेलेगा ।
वह खा रहा है।
मैं लिखता रहूँगा।
(ख) पूर्वकालिक क्रिया में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है, जैसे –
वह पढ़कर खाया ।
वह नहाकर खाया ।
(ग) कुछ सकर्मक क्रियाओं-बोलना, बकना, भूलना, समझना आदि के भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे –
वह मुझसे बोली ।
वह मुझे भूला ।
श्याम गाली बका है।
वह नहीं समझा ।
2. कर्मकारक : कर्ता द्वारा संपादित क्रिया का प्रभाव जिस व्यक्ति या वस्तु पर पड़े, उसे कर्मकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘को’ है ।
सोहन आम. खाता है । (0-विभक्ति)
सोहन मोहन को पीटता है । (को-विभक्ति)
यहाँ खाना (क्रिया) का फल आम पर और पीटना (क्रिया) का फल मोहन पर पड़ता है, अतः ‘आम’ और ‘मोहन’ कर्मकारक हैं ।
‘आम’ के साथ ‘को’ चिह्न छिपा है और मोहन के साथ ‘को’ चिह्न स्पष्ट हैं ।
इस चिह का प्रयोग द्विकर्मक क्रिया रहने पर भी होता है; जैसे –
मोहन सोहन का हिन्दी पढ़ाता है। (सोहन, हिन्दी-दो कर्म)
वह सुरेश को तबला सिखाता है । (सुरेश, तबला-दो कर्म)
3. करणकारक-जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करे, उसे करणकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘से’ है; जैसे –
मैं कलम से लिखता हूँ। . (लिखने का साधन)
वह चाकू से काटता है। (काटने का साधन)
यहाँ, ‘कलम से’, ‘चाकू से’-करणकारक हैं, क्योंकि ये वस्तुएँ क्रिया संपादन में साधन के रूप में प्रयुक्त हैं।
4. संप्रदानकारक : जिसके लिए कोई क्रिया (काम) की जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘को’ और ‘के लिए’ है; जैसे –
मोहन ने सोहन को पुस्तक दी ।
‘मोहन ने सोहन के लिए पुस्तक खरीदी ।
यहाँ पर देने और खरीदने की क्रिया सोहन के लिए है । अतः ‘सोहन को’ एवं ‘सोहन के लिए’ संप्रदानकारक हैं।
5. अपादानकारक : अगर क्रिया के संपादन में कोई वस्तु अलग हो जाए, तो उसे अपादानकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘से’ है; जैसे
पेड़ से पत्ते गिरते हैं । (पेड़ से अलगाव)
छात्र कमरे से बाहर गया । (कमरे अलगाव)
यहाँ ‘पेड़ से’ और ‘कमरे से’ अपादानकारक हैं, क्योंकि गिरते समय पत्ते पेड़ से और जाते समय छात्र कमरे से अलग हो गये ।
6. संबंधकारक-जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का संबंध जान पड़े, उसे संबंधकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’ है; जैसे –
मोहन का घोड़ा दौड़ता है ।
मोहन के घोड़े दौड़ते हैं।
मोहन की घोड़ी दौड़ती है।
यहाँ मोहन (का, के, की) संबंधकारक हैं, क्योंकि ‘का घोड़ा’. ‘के घोड़े’ ‘की घोड़ी’ का संबंध मोहन से है । इसमें क्रिया से संबंध न होकर वस्तु या . व्यक्ति से रहता है।
7. अधिकरणकारक : जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो, उसे अधिकरणकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘में’, ‘पर’ है; जैसे –
शिक्षक वर्ग में पढ़ा रहे हैं।
महेश छत पर बैठा है ।
यहाँ ‘वर्ग में’ और ‘छत पर’ अधिकरणकारक हैं, क्योंकि इनसे पढ़ाने और बैठने की क्रिया के आधार का ज्ञान होता है। .
8. संबोधनकारक : जिस शब्द से किसी के पुकारने या संबोधन का .. बोध हो, उसे संबोधनकारक कहते हैं । इसका चिह्न है-हे, अरे, ए आदि; जैसे –
हे ईश्वर, मेरी सहायता करो ।
अरे दोस्त, जरा इधर आओ ।
यहाँ ‘हे ईश्वर’ और ‘अरे दोस्त’ संबोधनकारक हैं । कभी-कभी संबोध नकारक नहीं भा होता है, फिर भी उससे संबोधन व्यक्त होता हैं; जैसे-
मोहन, जरा इधर आओ ।
भगवन्, मुझे बचाओ ।
क्रिया
क्रिया-जिस शब्द से किसी काम के करने या होने का बोध हो, उसे – क्रिया कहते हैं; जैसे- .
खाना, पोना, हँसना, रोना, उठना, बैठना आदि ।
वाक्यों में इनका प्रयोग विभिन्न रूप में होता है; जैसे –
खाना-खाता, खाती, खाते, खाया, खायी, खाये, खाऊ आदि ।
उदाहरण:
उसने भात खाया । (खाया-क्रिया) ,
मैंने रोटी खायी । (खायी-क्रिया)
क्रिया के विभिन्न रूप कैसे बनते हैं; यह समझने के लिए धातु की जानकारी आवश्यक है।
धातु
धातु-क्रिया के मूल रूप का धातु कहते हैं: जैसे- आ. जा, खा, पी, पढ़, लिख, रो, हँस, उठ, बैठ, टहल, चहक आदि ।
इन्हीं मूल रूपों में-ना, नी, ने, ता, ती, ते. या, यी, ये, ॐ, गा, गी, गे आदि प्रत्यय लगने से क्रिया के विभि-रूप चनते हैं; जैसे –
ना (प्रत्यय)-आना, जाना, खाना, पोना, पढ़ना, लिखना आदि । ता (प्रत्यय)-आता, जाता, खाता, पीता, पढ़ता, लिखता, रोता आदि।
धातु के भेद
धातु के दो भेद है-
1. मूल धातु और
2. यौगिक धातु ।
मूल धातु-यह स्वतंत्र होता है, किसी दूसरे शब्द पर आश्रित नहीं होता; जैसे –
___ आ, जा, खा, ले, लिख, पढ़, दे, जग, उठ, बैट आदि ।
यौगिक धातु-सामान्य भाषा में इसे क्रिया कहते हैं । यह स्वतंत्र नहीं होता है । मूल धातुं में मूल धातु या मूल धातु में किसी अन्य प्रत्यय को जोड़ने से यौगिक धातु बनता है। जैसे –
बैठना, जाना, बैठ जाना, हँसना, देना, हँस देना, जगना, जगाना, जगवाना आदि ।
यौगिक धातु तीन प्रकार से बनता है –
1. मूल धातु एवं मूल धातु के संयोग से जो यौगिक धातु बनता है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । जैसे –
2. मूल धातु में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, वह अकर्मक या सकर्मक या प्रेरणार्थक क्रिया होती हैं । जैसे –
मूल धातु + प्रत्यय – यौगिक धातु
जग + ना = जगना (अकर्मक क्रिया) .
जग + आनाः = जगाना (सकर्मक क्रिया)
जग + वाना = जगवाना (प्रेरणार्थक क्रिया)
3. संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, उसे नाम-धातु कहते हैं । जैसे –
संज्ञा / विशेषण + प्रत्यय = यौगिक धातु
हाथ (संज्ञा) + इयाना – हथियाना नाम-धातु
गरम (विशेषण + आना – गरमाना
क्रिया के भेद
क्रिया के मुख्यत: दो भेद हैं-
(1) सकर्मक क्रिया (Transitive Verb) और
(2) अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)। सकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म हो या कर्म के रहने की संभावना हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे –
खाना, पीना, पढ़ना, लिखना, गाना, बजाना, मारना, पीटना आदि ।
उदाहरण: वह आम खाता है।
प्रश्न : वह क्या खाता है ?
उनर : वह आम खाता है ।
यहाँ कर्म (आम) है, या किसी-न-किसी कर्म के रहने की संभावना है, अतः ‘खाना’ सकर्मक क्रिया है ।
अकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म न हो या कर्म के रहने की संभावना न हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे –
आना, जाना, हँसना, रोना, सोना, जगना, चलना, टहलना आदि ।
उदाहरण:
वह रोता है।
प्रश्न : वह क्या रोता है?
ऐसा न तो प्रश्न होगा और न इसका कुछ उत्तर ।
यहाँ कर्म कुछ नहीं है और न किसी का रहने की संभावना है, अत: ‘रोना’ अकर्मक क्रिया है।
अपवाद : लेकिन कुछ अकर्मक क्रियाओं-रोना, हँसना, जगना, सोना, टहलना आदि में प्रत्यय जोड़कर सकर्मक बनाया जाता है; जैसे-
रुलाना, हंसाना, जगाना, सुलाना, टहलाना आदि ।
अकर्मक क्रिया + प्रत्यय = सकर्मक क्रिया
रो (ना) + लाना = रुलाना (वह बच्चे को रुलाता है ।
जग (ना) + आना = जगाना (वह बच्चे को जगाता है ।
प्रश्न : वह किसे रुलाता ? जगाता है ?
उत्तर:
वह बच्चे को रुलाता / जगाता है।
स्पष्ट है कि रुलाना, जगाना सकर्मक क्रिया है, क्योंकि इसके साथ कर्म
(बच्चा है या किसी-न-किसी कर्म के रहने की संभावना है।
वाच्य
वाच्य : कर्ता, कर्म या भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया के रूप परिवर्तन को वाच्य कहते हैं । दूसरे शब्दों में, वाक्य में किसकी प्रधानता है, अर्थात्-क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष; कर्ता के अनुसार होगा, या कर्म के अनुसार होगा, या स्वयं भाव के अनुसार; इसका बोध वाच्य है; जैसे –
राम रोटी खाता है । (कर्ता के अनुसार क्रिया)-कर्ता की प्रधानता । यहाँ कर्ता के अनुसार क्रिया का अर्थ है-राम (कर्ता) = खाता है (क्रिया)
राम-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
खाता है-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
राम ने रोटी खायी । (कर्म के अनुसार क्रिया)-कर्म की प्रधानता
यहाँ कर्म के अनुसार क्रिया का अर्थ है-रोट (कर्म) = खायी (क्रिया)
रोटी-स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
खायी-स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।
सीता से चला नहीं जाता । (भाव के अनुसार क्रिया)-भाव की प्रध निता ।
यहाँ भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया का अर्थ है –
चला (भाव या क्रिया) = जाता (क्रिया)
चला-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
जाता-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।
वाच्य के भेद
वाच्य के तीन भेद हैं-
1. कर्तृवाच्य
2. कर्मवाच्य और
3. भाववाच्य ।
कर्तृवाच्य – कर्ता के अनुसार यदि क्रिया में परिवर्तन हो, तो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं । जैसे –
यहाँ क्रियाएँ-खाता है, खाती है, खाते हैं; कर्ता के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ कर्ता की प्रधानता है, अत: यह कर्तृवाच्य हुआ ।
कर्मवाच्य : कर्म के अनुसार यदि क्रिया में परिवर्तन हो, तो उसे कर्मवाच्य कहते हैं । जैसे –
यहाँ क्रियाएँ-खायी, खाया, खाये; कर्म के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ कर्म की प्रधानता है, अत: यह कर्मवाच्य हुआ ।
भाववाच्य : भाव (क्रिया) के अनुसार यदि क्रिया आए, तो उसे भाववाच्य कहते हैं । जैसे –
यहाँ क्रियाएँ-जाता, जाता, जाता; भाव (क्रिया) के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ भाव (क्रिया) की प्रधानता है, अतः यह भाववाच्य हुआ ।
संक्षेप में याद रखें –
कर्ता के अनुसार क्रिया : कर्तृवाच्य
कर्म के अनुसार क्रिया : कर्मवाच्य
भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया : भाववाच्य
नोट : भातवाच्य में कर्म नहीं होता है । इसमें अकर्मक क्रिया का प्रयोग . होता है । यहाँ प्रयुक्त ‘चला’ शब्द अकर्मक क्रिया है ।
काल
काल-क्रिया के जिस रूप से समय का बोध हो, उसे काल कहते हैं; जैसे-
मैंने खाया था । (खाया था-भूत समय)
मैं खा रहा हूँ। (खा रहा हूँ-वर्तमान समय)
मैं कल खाऊँगा । (खाऊँगा-भविष्यत् समय)
यहाँ पर क्रिया के इन रूपों-खाया था, खा रहा हूँ और खाऊँगा से भूत, वर्तमान और भविष्यत् समय (काल) का बोध होता है।
अतः काल के तीन भेद हैं-
(1) वर्तमानकाल (Present Tense)
(2) भूतकाल (Past Tense) और
(3) भविष्यत्काल (Future Tense) ।
वर्तमानकाल
वर्तमानकाल : वर्तमान समय में होनेवाली क्रिया से वर्तमानकाल का बोध होता है; जैसे –
मैं खाता हूँ। सूरज पूरब में उगता है।
वह पढ़ रहा है। गीता खेल रही होगी।
वर्तमानकाल के मुख्यतः तीन भेद हैं-1. सामान्य वर्तमान 2. तात्कालिक वर्तमान और 3. संदिग्ध वर्तमान ।
सामान्य वर्तमान : इससे वर्तमान समय में किसी काम के करने की सामान्य आदत, स्वभाव या प्रकृति, अवस्था आदि का बोध होता है। जैसे –
कुत्ता मांस खाता है। (प्रकृति)
मैं रात में रोटी खाता हूँ। (आदत)
पिताजी हमेशा डाँटते हैं। (स्वभाव)
वह बहुत दुबला है। (अवस्था )
तात्कालिक वर्तमान : इससे वर्तमान में किसी कार्य के लगातार जारी रहने का बोध होता है; जैसे –
कुत्ता मांस खा रहा है । (खाने की क्रिया जारी है।)
पिताजी डाँट रहे हैं। (इसी क्षण, कहने के समय)
संदिग्ध वर्तमान : इससे वर्तमान समय में होनेवाली क्रिया में संदेह या अनुमान का बोध होता है; जैसे –
अमिता पढ़ रही होगी । (अनुमान)
माली फूल तोड़ता होगा । (संदेह या अनुमान)
भूतकाल
भूतकाल : बीते समय में घटित क्रिया से भूतकाल का बोध होता है; . जैसे –
मैंने देखा । वह लिखता था । राम पढ़ा होगा ।
मैंने देखा है। वह लिख रहा था । वह आता, तो मैं जाता ।
मैं देख चुका हूँ वह लिख चुका था ।
भूतकाल के छह भेद हैं-
1. सामान्य भूत
2. आसन्न भूत
3. पूर्ण भूत
4. अपूर्ण भूत
5. संदिग्ध भूत
6. हेतुहेतुमद् भूत ।
सामान्य भूत : इससे मात्र इस बात का बोध होता है कि बीते समय में कोई काम सामान्यतः समाप्त हुआ; जैसे –
मैंने पत्र लिखा । (बीते समय में)
वे पटना गये । (बीते समय में, कब गये पता नहीं)
आसन्न भूत : इससे बीते समय में क्रिया के तुरंत या कुछ देर पहले समाप्त होने का बोध होता है, जैसे –
मैं खा चुका हूँ। (कुछ देर पहले, पेट भरा हुआ है )
सीता रोयी है। (आँसू सूख चुके हैं, लेकिन चेहरा उदास है।)
पूर्ण भूत : इससे बीते समय में क्रिया की पूर्ण समाप्ति का बोध होता – है; जैसे –
वह गया था । (जाने का काम बहुत पहले पूरा हो चुका था ।)
राम खा चुका था । (पूर्णतः खा चुका था ।)
अपूर्ण भूत : इससे बीते समय में क्रिया की अपूर्णता का बोध होता है। जैसे –
मैं पढ़ता था ।
मैं पढ़ रहा था। पढ़ने का काम जारी था, पूरा नहीं , हुआ था !
संदिग्ध भूत : इससे बीते समय में किसी क्रिया के होने में संदेह का बोध होता है; जैसे –
पिताजी गये होंगे। (गये या नहीं, संदेह है ।)
हेतुहेतुमद् भूत : इससे इस बात का बोध होता है कि कोई क्रिया बीते समय में होनेवाली थी, लेकिन किसी कारणवश न हो सकी; जैसे –
राधा आती, तो मैं जाता । (न राधा आयी, न मैं गया ।)
श्याम मेहनत करता तो अवश्य सफल होता । (न मेहनत किया, न सफल हुआ ।)
भविष्यत्काल
भविष्यत्काल : इससे भविष्य में किसी क्रिया के होने का बोध होता है; जैसे –
तुम पढ़ोग – वे जा चुकेंगे ।
आप खेलते रहेंगे। शायद, वह कल आए ।
वह आए, तो मैं जाऊँ। तुम पढ़ोगे, तो पास करोगे ।
भविष्यत्काल के पाँच भेद हैं-
1. सामान्य भविष्यत्
2. संभाव्य भविष्यत्
3. ‘अपूर्ण भविष्यत्
4. पूर्ण भविष्यत्
5. हेतुहेतुमद् भविष्यत् ।
1. सामान्य भविष्यत् : इससे यह पता चलता है कि कोई काम सामान्यतः भविष्य में होगा; जैसे-
वह आएगा। तुम खेलोगे । मैं सफल होऊँगा ।
2. संभाव्य भविष्यत् : इससे भविष्य में होनेवाली क्रिया के होने की संभावना का बोध होता है; जैसे –
संभव है, कल सुरेश आए । (संभावना)
मोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए । (संभावना)
3. अपूर्ण भविष्यत् : इससे यह बोध होता है कि भविष्य में कोई काम जारी रहेगा; जैसे –
मैं लिखता रहूँगा – तुम खेलती रहोगी ।
4. पूर्ण भविष्यत् : इससे यह बोध होता है कि कोई काम भविष्य में पूर्णतः समाप्त हो जाएगा; जैसे-
मैं लिख चुकूँगा। वह पढ़ चुकेगा । वे जा चुकेंगे ।
5. हेतुहेतुमद भविष्यत् : यदि भविष्य में एक क्रिया का होना दुसरी क्रिया के होने पर निर्भर करे, तो उसे हेतुहेतुमद भविष्यत् कहते हैं, जैसे –
वह पढ़ेगा, तो पास करेगा। (पढ़ने पर निर्भर है, पास करना ।)
सीता आए, तो मैं जाऊँ । (आने पर निर्भर है, जाना ।)
क्रिया का रूप परिवर्तन
यहाँ ‘पढ़ना’ क्रिया को कर्तवाच्य के रूप में तीनों कालों में दिया गया है ।
सहचर शब्द
देश-विदेश, जन्म-मरण, जमा-खचन-उतार, चाल-चलन, गलत-सही,आनन-फानन, सही-सलामत, तड़क-भड़क, घर-द्वार, वेद-पुराण, रुपया-पैसा, गाड़ी-घोड़ा, आना-जाना, आदान-प्रदान, अंग-प्रत्यंग, आज-कल, अंधड़-तूफान, अस्त्र-शस्त्र, आहार-विहार, अमीर-गरीब. अल्लाह-ईश्वर, अपना-पराया, आय-व्यय, उलटा-सीधा, ऊंच-नीच, उत्थान-पतन, कटु-मधु, कहना-सुनना, खेल-कूद, खाना-पीना, खर-पात (खरपतवार), खरा-खोटा, खट्टा-मीठा, गप-शप, गलत-सही, गाली-गलौज, चमक-दमक, चढ़ाव-उतार, चाल-चलन, चिंतन-मनन, कीट-पतंग, जन्म-मरण, जमा-खर्च, जीना-मरना, झूठ-सच, ताम-झाम, देश-विदेश, दवा-दारू, धूप-छाँव, धूम-धाम, नष्ट-भ्रष्ट, नमक-तेल, नदी-नाला, बंधु-बांधव, भला-बुरा, भूख-प्यास, भाई-बंधु, बल-विक्रम, बाल-बच्चा, मान-सम्मान (मर्यादा), मोल-जोल, यश-अपयश, राम-रहीम, रहन-सहन, रोजी-रोटी, रात-दिन, राजा-रंक, राग-विराग, लँगड़ा-लूला, लेन-देन, लाम-काफ, रीति-नीति, वर-वध, साग-पात, रूखा-सूखा, संपद-विपद, सिर-पैर, साज-बाज, साधु-संत, शकल-सूरत, हँसी-खुशी, हानि-लाभ, हिसाब-किताब, आकार-प्रकार, सोच-विचार, मोह-माया, (माया-मोह), धन-दौलत, श्रद्धा-भक्ति, ऋषि-मुनि, सोच-समझ, हँसी-खुशी।
उपसर्ग
प्रश्न 1.
उपसर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
उपसर्ग वह शब्दांश है जो किसी ‘शब्द’ के पहले लगकर उसके अर्थ को बदल देता है।
उपसर्ग और उनसे बने शब्द
संस्कृत के उपसर्ग
हिन्दी के उपसर्ग
उर्दू के उपसर्ग
उपसर्ग की तरह प्रयुक्त संस्कृत अव्यय
प्रत्यय
प्रश्न 1.
प्रत्यय किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसे शब्दांशों को जो किसी शब्द के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता ला देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहा जाता है ।
प्रश्न 2.
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं।
1. कृत् प्रत्यय-जो ‘प्रत्यय’ क्रिया के मूलधातु में लगते हैं, उन्हें कृत् प्रत्यय कहा जाता है । कृत् प्रत्यय से बने शब्द को ‘कृदन्त’ कहा जाता है । जैसे- पढ़नेवाला, बढ़िया, घटिया, पका हुआ, सोया हुआ, चलनी, करनी, धीकनी, मारनहारा, गानेवाला इत्यादि ।
2. तद्धित प्रत्यय-जो प्रत्यय संज्ञा और विशेषण के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन’ ला देते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहा जाता है । जैसे-सामाजिक, शारीरिक, मानसिक, लकडहारा, मनिहारा, पनिहारा, वैज्ञानिक, राजनैतिक आदि ।
विशेषण में तद्धित प्रत्यय
विशेषण में तद्धित प्रत्यय जोड़ने से भाववाचक संज्ञा बनती है । जैसे –
बुद्धिमत् + ता = बुद्धिमत्ता गुरु + अ = गौरव
लघु + त्व = लघुत्व लघु + अ = लाघव आदि ।
संज्ञा में तद्धित प्रत्यय
संज्ञाओं के अन्त में तद्धित प्रत्यय जोडने से विशेषण बनते हैं। जैसे –
समास
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो या दो से अधिक पद अपने बीच की विभक्ति को छोड़कर आपस में मिल जाते हैं, उसे समास कहते हैं । जैसे-राजा का मंत्री = राजमंत्री। राज का पुत्र = राजपुत्र । .
प्रश्न 2.
समास के कितने भेद हैं ? सोदाहरण वर्णन करें।
उत्तर:
समास के छः भेद हैं।
1. तत्पुरुष समास-जिस सामासिक शब्द का अन्तिम खंड प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-राजमंत्री, राजकुमार, राजमिस्त्री, राजरानी, देशनिकाला, जन्मान्ध, तुलसीकृत इत्यादि ।
2. कर्मधारय समास-जिस सामासिक शब्द में विशेष्य-विशेषण और उपमान-उपमेय का मेल हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं । जैसे-चन्द्र के समान मुख = चन्द्रमुख, पीत है जो अम्बर = पीताम्बर आदि ।
3. द्विगु समास-जिस सामासिक शब्द का प्रथम खंड संख्याबोधक हो, उसे द्विगु समास कहते हैं । जैसे-दूसरा पहर = दोपहर, पाँच वटों का समाहार । – पंचवटी, तीन लोकों का समूह = त्रिलोक, तीन कालों का समूह – त्रिकाल आदि ।
4. द्वन्द्व समास-जिस सामाजिक शब्द के सभी खंड प्रधान हों, उसे द्वन्द्व समास कहा जाता है । ‘द्वन्द्व’ सामासिक शब्द = गौरी-शंकर । भात और दाल = भात-दाल । सीता और राम = सीता-राम । माता और पिता = माता-पिता इत्यादि ।
5. बहुव्रीहि समास-जो समस्त पद अपने सामान्य अर्थ को छोडकर विशेष अर्थ बतलाव, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-जिनके सिर पर चन्द्रमा हो = चन्द्रशेखर । लम्बा है उदर जिनका = लम्बोदर (गणेशजी), . त्रिशल है जिनके पाणि में = त्रिशूलपाणि (शंकर) आदि ।
6. अव्ययीभाव समास-जिस सामासिक शब्द का रूप कभी नहीं बदलता हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । जैसे-दिन-दिन = प्रतिदिन । शक्ति भर = यथाशक्ति । हर पल = प्रतिपल, जन्म भर = आजन्म । बिना अर्थ का = व्यर्थ आदि ।
स्मरणीय
नीचे दिए गए समस्त पदों का विग्रह करके समास बताइए ।
वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करना
विपरीतार्थक शब्द
“विलोम’ शब्द का अर्थ उल्टा है । अतः किसी शब्द का उल्टा अर्थ व्यक्त करने वाला शब्द विलोम शब्द कहलाता है । उदाहरणार्थ दिन-रात । यहाँ रात शब्द, दिन शब्द का ठीक उल्टा अर्थ व्यक्त कर रहा है, अतः यह विलोम शब्द है।
पर्यायवाची शब्द
पर्याय का अर्थ-समान । अंतः समान अर्थ व्यक्त करने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं । पर्यायवाची शब्दों से भाषा सशक्त बनती है । विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए पर्यायवाची शब्दों की सूची प्रस्तुत है ।
अग्नि – आग, अनल, पावक, जातवेद, कृशानु, वैश्वानर, हुताशन, रोहिताश्व, वायुसुख, हव्यवाहन ।
अटल-अडिग, स्थिर, पक्का, दृढ़, अचल, निश्चल ।
अर्जुन-भारत, गुडाकेश, पार्थ, श्वेत, कनेर, सहशास्त्रार्जन, धनञ्जय ।
अश्व – घोडा, तुरंग, हय, बाजि, सैन्धव, घोटक, बछेड़ा ।
अपमान-अनादर, निरादर, बेइज्जती ।
अप्सरा-परी, देवकन्या, अरुणाप्रिया, सुखवनिया, देवांगना, स्वर्वेश्या ।
अभिमान-गौरव, गर्व, नाज, घमंड, स्वाभिमान ।
अभियोग-दोषारोपण, कसूर, अपराध, गलती ।
अंधकार-तम, तिमिर, ध्वान्त ।
अपकार-अनिष्ट, अमंगल, अहित ।
अधिकार-सामर्थ्य, अर्हता, क्षमता, योग्यता ।
आदि-पहला, प्रथम, आरम्भिक, आदिम ।
आकाश-नभ, अम्बर, अन्तरिक्ष, आसमान, व्योम, गगन, दिव, द्यौ, पुष्कर, शून्य ।
आँगन-प्रागण, बगर, बाखर, अजिर, अंगना, सहन ।
आशीर्वाद-आशीष, दुआ, शुभाशीष ।
इंदिरा–लक्ष्मी, रमा, श्री, कमला ।
इन्द्रा-महेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरेश. पुरन्दर, देवराज, मधवा, पाकरिपु, पाकशासन, पुरहत ।
इन्द्रधनुष-सुरचाप, इन्द्रधनु, शक्रचाप, मप्तवर्णधन् ।
ईमानदार-सच्चा, निष्कपट, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण ।
ईर्ष्या-मत्सर, डाह, जलन, कुढ़न ।
उद्यत-तैयार, प्रस्तुत, तत्पर ।
उन्मूलन-निरसन, अंत, उत्सादन ।
उत्कृष्ट-उनम, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवर ।
उपमा-तुलना, मिलान, सादृश्य, समानता ।
ऊर्जा-ओज, स्फूर्ति, शक्ति ।
एकता-एका, सहमति, एकत्व ।
अहसान–आभार, कृतज्ञता, अनुग्रह ।
ऐश-विलास, ऐय्याशी, सुख-चैन ।
ऐश्वर्य-वैभव, सम्पन्नता, समृद्धि ।
ओज-दम, जोर, पराक्रम, बल ।
ओझल-अंतर्धान, तिरोहित, अदृश्य ।
औषध-दवा, दवाई, भेषज, औषधि ।
कंगाल-निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र ।
कल्याण-मंगल, योमक्षेम, शुभ, हित, भलाई ।
कठोर-कड़ा, कर्कश, पुरुष, निष्ठुर ।
कूल-किनारा, तट, तीर ।
कौशल-कला, हुनर, फन ।
किरण-रश्मि, केतु, अंशु, कर ।
कायरता- भीरूता, अपौरुष, पामरता, साहसहीनता ।
खग-पक्षी, चिड़िया, पखेरू, द्विज, पंछी, विहंग, शकुनि ।
खल-शठ, दुष्ट, धूर्त, दुर्जन, कुटिल, नालायक, अधम ।
खूबसूरत-सुन्दर, मनोज्ञ, रूपवान ।
खून-रुधिर, लह, रक्त, शोणित ।
गुरु-शिक्षक, आचार्य, अध्यापक ।
गम्भीर-गहरा, अथाह, अतल ।
घी-घृत, हवि, अमृत ।
घन-जलधर, वारिद, अंबुधर, बादल ।
चपलता-चंचलता, अधीरता, चुलबुलापन ।
चिंता-फिक्र, सोच, ऊहापोह ।
चोटी-श्रृंग, तुंग, शिखर, परकोटि ।
चक्र-पहिया, चाक, चक्का ।
छात्र-विद्यार्थी, शिक्षार्थी; शिष्य ।
छाया-साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव ।
जवान-युवा, युवक, किशोर, तरुण ।
जिद्दी-हठी, दुराग्रही, हठीला, दुर्दान्त ।
जिज्ञासा-उत्सुकता, उत्कंठा, कौतूहल ।
जोश-आवेश, साहस, उत्साह, उमंग, होसला ।
झंडा-ध्वज, केतु, पताका, निसान ।
झगड़ा-कलह, टंटा, करार, वितंडा ।
झुकाव-रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता ।
टीका-भाष्य, वृत्ति, विवृति, व्याख्या ।
टोल-समूह, मण्डली, जत्था, झण्ड, चटसाल, पाठशाला ।
ठंड-शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक ।
ठेस-आद्यात, चोट, टोकर, धक्का ।
ठौर-ठिकाना, स्थल, जगह ।
डाह-ईर्ष्या, कुढ़न, जलन ।
ढोंग-स्वाँग, पाखण्ड, कपट, छल ।
ढंग-पद्धति, विधि, तरीका, रीति, प्रणाली, करीना ।
ढेर-राशि, समूह, अम्बार, घौद, क्षुण्ड ।
तन-शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु ।
तपस्या-साधना, तप, योग, अनुष्ठान ।
तरकस-तृण, तूणीर, माथा, त्रोण. निपंग ।
तोता-सुवा, शुक, दाडिमप्रिय ।
तन्मय-मग्न, तल्लीन, लीन, ध्यानमग्न ।
तादात्म्य-तद्रूपता, अभिन्नता, सारूप्य, एकात्म्य ।
थकान-क्लान्ति, श्राति, थकावट, थकन ।
थोड़ा-कम, जरा, अल्प, स्वल्प, न्यून ।
थाह-अंत, छोर, सिरा, सीना ।
देवता-सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु ।
दासी-बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका ।
दमन-अवरोध, निग्रह, रोक, नियंत्रण, वश ।
दिव्य-अलौकिक, स्वर्गिक, लोकातीत, लोकोत्तर ।
धन्यवाद-कृतज्ञता, शुक्रिया, आभार, मेहरबानी ।
धुंध-कुहरा, नीहार, कुहासा ।
धूल-रज, खेह, मिट्टी, गर्द, धूलि ।
ध्यान-एकाग्रता, मनोयोग, तल्लीनता, तन्मयता ।
धंधा-रोजगार, व्यापार, कारोबार, व्यवसाय ।
नया-नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताजा ।
नाश-समाप्ति, अवसान, विनाश, संहार, ध्वंस, नष्ट-भ्रष्ट ।
पत्थर-पाहन, प्रस्तर, संग, अश्म, पापाण ।
पति-स्वामी, कांत, भर्तार, वल्लभ, भर्ता, ईश ।
पत्नी-दुलहिन, अर्धांगिनी, गृहिणी, त्रिया, दारा, जोरू, गृहलक्ष्मी, सहध मिणी, सहचरी ।
पंडित-विद्वान, सुधी, ज्ञानी, धीर, कोविद, प्राज्ञ ।
पाला-हिम, तुपार, नीहार, प्रालेय ।
परिवार-कुल, घराना, कुटुम्ब, कुनबा
फूल-सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून, पुष्प, पुहुप ।
बलराम-हलधर, बलवीर, रेवतीरमण, बलभद्र, हली, श्यामबन्धु ।
बंजर-ऊसर, परती, अनुपजाऊ, अनुर्वर ।
बड़प्पन-बड़ाई, महत्त्व, महता, गरिमा ।
बगावत-विप्लव, विद्रोह, गदर ।
भगवान-परमेश्वर, परमात्मा, सर्वेश्वर, प्रभु, ईश्वर ।
भगिनि-दीदी, जीजी, बहिन ।
भंग-नाश, ध्वंस, क्षय, विनाश ।
भाव-आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, अर्थ ।
भाल-ललाट, मस्तक, माथा, कपाल ।
मनोहर-मनहर, मनोरम, लुभावना, चित्ताकर्षक ।
मृत्यु-देहावसान, देहान्त, पंचतत्त्व, निधान ।
मोती-सीपिज, मौक्तिक, मुक्ता, शशिप्रभा ।
मेंढक-दादुर, दर्दुर, चातक, मण्डूक, वर्षाप्रिय, भेक ।
यात्रा-भ्रमण, देशाटन, पर्यटन, सफर, घूमना ।
रक्त-खून, लह, रुधिर, शोणित, लोहित, रोहित ।
राधा-ब्रजरानी, हरिप्रिया, राधिका, वृषभानुजा ।
राय-मत, सलाह, सम्मति, मंत्रणा, एरामर्श ।
रोचक-मनोहर, लुभावना, दिलचस्प ।
रक्षा-बचाव, संरक्षण, हिफाजत, देखरेख ।
लज्जा-शर्म, हया, लाज, ब्रीडा ।
लड़ाई-झगड़ा, खटपर, अनबन, मनमुटाव, युद्ध, रण, संग्राम, जंग ।
वन-अरण्य, अटवी, कानन, विपिन ।
विलास-आनन्द, भोग, संतुष्टि, वासना ।
वृक्ष-द्रम, पादप, तरु, विटप ।
विद्या-ज्ञान, शिक्षा, गुण, इल्म, सरस्वती ।
शिष्ट-शालीन, भद्र, संभ्रान्त, सौम्य ।
शुभ-मंगल, कल्याणकारी, शुभकर ।
श्वेत-सफेद, सित, धवल ।
संन्यासी-बैरागी, दंडी, विरत, परिव्राजक ।
समीक्षा-विवेचना, मीमांसा, आलोचना. निरूपण ।
सखी-सहली, सहचरी, सैरंध्री, सजनी ।
सज्जन-भद्र, साधु, पुंगव, सभ्य, कुलीन ।
सुरभि-इष्टगन्ध, सुघान्दी, तर्पण ।
सुन्दरी-ललित, सुनेत्रा, सुनयना, विलासिनी, कामिनी ।
स्वर्ग-सुरलोक, धुलोक, बैकुंठ, परलोक, दिव।
क्षेत्र-प्रदेश, इलाका, भूभाग, भूखण्ड ।
क्षणभंगुर-अस्थिर, अनित्य, नश्वर, क्षणिक ।
क्षय-तपेदिक, यक्ष्मा, राजरोग ।
क्षुब्ध-व्याकुल, विकल, उद्धिग्न ।
क्षीण-दुर्बल, कमजोर, बलहीन, कृश ।
अनेकार्थवाची शब्द
श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
मुहावरे
छुरी-कटारी चलाना (बड़ा बैर होना)-उनकी आपस में छुरी-कटारी चल रही है।
जी सन्न होना (अचानक घबरा जाना)-इस बात को सुनते ही मेरा जी सन्न हो गया।
आकाश-पाताल एक करना (बहुत प्रयत्न करना)-अपने खोये हुए लड़के की खोज में उसने आकाश-पाताल एक कर दिया ।
उलटे छुरे से मुड़ना (बेवकूफ बनाकर लूटना)-एक का तीन लेकर आज उसने उल्टे छुरे से मुड़ लिया ।
दाँत खट्टा करना (परास्त करना) -शिवाजी ने मुगलों के दाँत खट्टे कर दिये।
नाक काटना ( इज्जत लेना)-भरी सभा में उसने मेरी नाक काट ली।
नाकों चने चबाना (खूब तंग करना)-आज की बहस में आपने तो मुझे नाकों चने चबवा दिये।
अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारना (अपना नुकसान आप करना)-क्यों पढ़ाई करके अपने पाँव में कुल्हाड़ी मार रहे हो?
आस्तीन में साँप पालना (दुश्मन को पालना)-मुझे क्या मालूम था कि ” मैं आस्तीन में साँप पाल रहा हूँ।
आपे (पायजामा) से बाहर होना (होश खोना, घमंड करना)-क्यों . इतना आपे से बाहर हो रहे हैं, चुप रहिए ।
इधर की दुनिया उधर हो जाना (अनहोनी बात होना)-इधर की दुनिया उधर भले ही जाए, पर वह पथ से विपथ नहीं होगा।
उठ जाना (खत्म होना, मर जाना, हट जाना)-आज वह संसार से उठ गया ।
ओस का मोती (क्षण भंगुर)-शरीर तो ओस का मोती है ।
कलेजा मुँह को आना (दुःख से व्याकुल होना)-उसको दुःख की खबर सुनकर कलेजा मुँह को आ गया ।
काठ मार जाना (लज्जित होना)-भेद खुलते ही उसको काठ मार गया।
छाती पत्थर का करना (जी कड़ी करना)-अब मैंने उसके लिए अपनी छाती पत्थर की कर ली है।
छठी का दूध याद आना (घोर कठिनाई में पड़ना)-इस बार तो उसे छठी का दूध गाद आ जाएगा ।
आटे के साथ घुन पीसना (बड़े के साथ छोटे को हानि उठाना)-मैं इस मुकदमे में आटे के साथ घन की तरह पिस रहा हूँ।
आँखें चार होना (देखा-देखी होना, प्यार होना)-सर्वप्रथम पुष्पवाटिका में राम-सीता की आँखें चार हुई थीं।
आँखें भर आना (आँसू आना)-इंदिराजी की मृत्यु की खबर सुनते ही लोगों की आँखें भर आयीं।
आँखें चुराना (सामने न आना)-परीक्षा में असफल होने पर राम पिता से आँखें चुराता रहा।
अंक भर लेना (लिपटा लेना)-माँ ने बेटी को देखते ही अंक भर लिया।
अंगूठा चूमना (खुशामद करना)-जब तक उसका अंगूठा नहीं चूमोगे, नौकरी नहीं मिलेगी।
अंकश देना (दबाव डालना)-वह हर काम अंकश देकर करवाता है।
आड़े हाथों लेना (भला-बुरा कहना)-आज भरी सभा में उसने मुझे आड़े हाथों लिया।
आकाश चूमना (बहुत ऊँचा होना)-कोलकाता के प्रायः सभी सरकारी भवन आकाश को चूमते नजर आते हैं।
अंधेरा छाना (कोई उपाय न सूझना)-इकलौते पुत्र की अकाल मृत्यु का समाचार पाते ही उसके सामने अंधेरा छा गया ।
आसमान के तारे तोड़ना (असंभव को संभव कर दिखाना)-गुरु के आदेश पर में असमान के तारे भी तोड कर ला सकता हूँ ।
आँचल पसारना ( याचना करना)-माया ने अपने पति की रक्षा के लिए – भगवान के सामने आँचल पसार दिया ।
श्रीगणेश करना (आरंभ करना)-काम का श्रीगणेश कब होगा ?
अपने पाँव पर खड़ा होना (आत्म-निर्भर होगा)-जो व्यक्ति बीस वर्ष की अवधि में अपने पाँव पर खड़ा होने लायक नहीं हुआ, उससे बहुत आशा नहीं करनी चाहिए।
अंगार बनना (क्रोध में आना)-नौकर के हाथ से प्याला गिरा और मालकिन अंगार हो गयी।
आँख की किरकिरी (खटकने वाला)-राम मेरी आँखों की किरकिरी है, में उस निकाल कर ही दम लँगा ।
आँख की पुतली (अत्यंत प्यारी)-मैं अपनी माँ की आँखों की पुल्ली हूँ।
ईट-से-ईंट बजाना (ध्वंस करना.)-बड़े से लड़ोगे तो उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर वह तुम्हारी ईंट-से-ईंट बजा देगा ।
उज रखना (कसर न छोड़ना)- मैं तुम्हारी भलाई के लिए कुछ न उठा रमूंगा।
खेत आना (वीरगति प्राप्त होना)-पाकिस्तान के युद्ध में अनेक सैनिक खेत आये।
उल्टी गंगा बहाना (प्रतिकूल कार्य करना)-उसने इस अनुसंधान से उल्टी गंगा बहा दी । दुष्टों के सच्चरित्र बनाना उल्टी गंगा बहाना है।
उल्लू सीधा करना (काम बना लेना)-उसने रुपये के बल पर अपना उल्लू सीधा कर लिया। मतलबी लोग हमेशा अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं।
कागज काला करना (बेमतलब लिखे जाना)-आजकल कागज काला करने वाले ही अधिक हैं, मौलिक लेखक बहुत कम ।
आटे-दाल का भाव मालूम होना (सांसारिक कठिनाइयों का ज्ञान होना)- अभी मौज कर लो, जब परिवार का बोझ सिर पर पड़ेगा तब आटे दाल का भाव मालूम होगा। आठ-आठ आँस होना (विलाप करना)-अभिमन्यु की मृत्यु पर सभी पांडव आठ-आठ आँसू रोये ।
आँखें लड़ाना (नेह जोड़ना)-हर किसी से आँखें लड़ाना ठीक नहीं।
अक्ल पर पत्थर पड़ना (समय पर अक्ल चकराना)-मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गया था कि घर में बंदूक रहते भी उसका प्रयोग न कर सका ।
अंगारों पर पैर रखना (जान-बूझकर खतरा मोल लेना)-पाकिस्तान भारत से दुश्मनी मोल लेकर अंगारों पर पैर रख रहा है।
कागजी घोड़ा दौड़ाना (कार्यालयों की बेमतलब की लिखा-पढ़ी)-कागजी घोड़ा अधिक दौड़ाओ, काम करो, यही जमाना आ गया है।
कीचड़ उछालना (किसी की प्रतिष्ठा पर आघात करना)-बिना सोचे । किसी पर कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है।
कुआँ खोदना (किसी की बुराई करने का उपाय करना)-जो दूसरे के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं गड्ढे में गिरता है।
आँखों से पानी गिर जाना (निर्लज्ज हो जाना)-तम अपने बड़े भाई से सवाल-जवाब करते हो, क्या तुम्हारी आँखों से पानी गिर गया है ?
जबान हिलाना (बोलना)-और अधिक जबान हिली तो ठीक न होगा।’ ठोकर खाना (हानि होना)-ठोकर खाकर ही कोई सीखता है। दंग रह जाना (चकित होना)-मैं तो उसका खेल देखकर दंग रह गया । धौंस में आना (प्रभाव में आना)-तुम्हारी धौंस में हम आने वाले नहीं है।
धज्जियाँ उड़ाना (टुकड़े-टुकड़े कर डालना, खूब मरम्मत करना, किसी का भेद खोलना)-भरी सभा में उसकी धज्जियाँ उड़ गयीं ।
पत्थर की लकीर (अमित)-मेरी बात पत्थर की लकीर समझा । पानी फेरना (नष्ट करना)-उसने सब किये-धरे पर पानी फेर दिया । पीछे पड़ना (लगातार तंग करना)-क्यों मेरे पीछे पड़े हो भाई । गम खाना (दबाना)-बेचारा डर के मारे गम खाकर रहता है। . खाक छानना (भटकना)-वह नौकरी की खोज में खाक छानता रहा। रंग जमाना (धाक जमाना)-आपने अपना रंग जमा लिया । करवट बदलना (बेचैन रहना)-मैं सारी रात करवटें बदलता रहा ।
काम तमाम करना (खत्म करना)-मैंने आज अपने दुश्मन का काम तमाम कर दिया। . कचूमर निकालना (खूब पीटना)-पुलिस वालों ने चोरों को मारते- मारते उनके कचूमर निकाल दिये ।
न घर का न घाट का (किसी लायक नहीं)-नौकरी छुटने के बाद वह न घर का रहा न घाट का ।
खार खाना (डाह करना)-न मालूम वे मुझसे क्यों खार खाये बैठे हैं? . गोटी लाल होना (लाभ होना)-अब क्या है, तुम्हारी गोटी लाल है।
गड़े मुर्दे उखाड़ना (दबी बात को फिर से उभारना)-समझौता वार्ता में गड़े मुर्दे मत उखाड़िए।