Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 2 जीवन संदेश

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 2 जीवन संदेश

Bihar Board 12th Hindi Book 50 Marks Solutions पद्य Chapter 2 जीवन संदेश

अर्थ लेखन

(1) जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म-निरत हैं।
धुन है एक न एक सभी को सबके निश्चित व्रत हैं।
जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।

अर्थ-प्रस्तुत कवि का कहना है कि सचर अचर जितने भी प्राणी हैं सभी स्वकर्म में लीन हैं अर्थात् प्रकृति के विभिन्न रूप स्वकर्म में तत्लीन हैं। सभी का एक निश्चित संकल्प है, एक निश्चित धुन है। कवि उदाहरण स्वरूप पृथ्वी पर उगे तुच्छ वृक्षों के बारे में कहता है कि जीवन भर सूर्य की तीखी किरणों को सहन करते हुए भी वृक्ष पृथ्वी पर छाया फैलाता है। वह अपने कर्म से विमुख कभी नहीं होता है।

(2) सिंधु विहंग तरंग-पंख को फड़का कर प्रतिक्षण में।
है निमग्न नित भूमि खण्ड के सेवन में – रक्षण में।
कोमल मलय-पवन घर-घर में सुरभि बाँट आता है।
सत्य सींचने घन जीवन धारण कर नित जाता है।

अर्थ-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का कहना है कि पृथ्वी पर अनेक नदियाँ हैं जो पक्षियों के पंख की तरह अपनी तरंगों को फड़का कर प्रतिपल इस भूखंड की सेवा एवं रक्षा में प्रतिदिन तत्पर रहती है।

ठीक उसी प्रकार शुद्ध, सुंदर सुगन्धित पवन भी अपनी मधुर मादकता और सुंदरता को घर-घर बाँटता है। बादल भी सच्चे रूप में वर्षा करने के लिए अपना रूप धारण कर लालायित रहता है।

इस दोहे का मूल भाव यह है कि प्रकृति जिस प्रकार अपने अनेक रूपों से धारा एवं मनुष्य की सेवा-रक्षा में रत है, वैसे ही मनुष्य को भी प्रकृतिगत गुणों से संपन्न होना चाहिए।

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(3) रवि जग में शोभा सरसाता सोम सुधा बरसाता।।
सब है लगे कर्म में कोई निष्क्रिय दुष्ट न आता।
है उद्देश्य नितान्त तुच्छ तृण के. भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अन्त कर्ममय तन का।

अर्थ-सूर्य भी शोभा और ऊष्मा की वर्षा करता है। वह अपने कर्म से कभी भी विमुख नहीं होता। सभी स्वकर्म में लीन हैं तभी तो निष्क्रियता का दुष्ट नहीं आ पाता है। तृण, घास-फूस भी अपने काम में संलग्न रहते हैं। वह भी कर्ममय बना रहता है।

(4) तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-विकसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य रहित है जग में तुमने कभी विचारा?
बुरा न मानो, एक बार सोचो तुम अपने मन में।
क्या कर्त्तव्य समाप्त कर लिये तुमने निज जीवन में?

अर्थ-हम तो मनुष्य हैं, अमित बल-बुद्धि सम्पन्न। हममें जन्मना अमित बुद्धि-शक्ति, बल विकसित है। क्या हम उद्देश्य-हीन हैं? क्या हमने जीवन का आवंटित कर्त्तव्य समाप्त कर लिया है? अर्थात् मानव का जीवन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अतः हमें अपने कर्तव्य से विमुख कभी नहीं होना चाहिए।

(5) जिस पर गिरकर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है।
जिसका खाकर अन्न, सुधा सम तुमने नीर पिया है।
जिस पर खड़े हुए, खेले, घर बना बसे, सुख पाये।
जिसका रूप विलोक तुम्हारे दृग, मन, प्राण जुड़ाये॥

अर्थ-पृथ्वी पर हमने जन्म लिया है। सुधा समान अन्न खाकर और पानी पीकर हम बड़े हुए हैं। पृथ्वी के अन्न-जल से हम जीवित होकर खड़े हुए हैं। हम धरती पर विभिन्न प्रकार-की क्रियायें करते हैं। इसी धरती पर बने घर में हम रहते हैं। यहीं हमने सुख पाया है। इस धरती को देख, इसके संघर्ष और सुख को देख हमारी आँखें, मन और प्राण तृप्त हुए हैं।

(6) वह स्नेह की पूर्ति दयामयि माता-तुल्य मही है।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
हाथ पकड़कर प्रथम जिन्होंने चलना तुम्हें सिखाया।
भाषा सिखा हृदय का अद्भुत रूप स्वरूप दिखाया।

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अर्थ-यह धरती माता सदृश है। यह सतत् हम पर स्नेह की वर्षा करती रहती है। यह दया की साक्षात् प्रतिमूर्ति है। उसके प्रति हमारा भी कुछ कर्त्तव्य-कर्म बनता है। यहाँ हमने चलना सीखा है। यहीं समाज में हमने भाषा सीखी है। हमारा सर्वांगीण विकास भी यहीं हुआ है।

(7) जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर बड़े हुए हो।
दीर्घ देह ले बाधाओं में निर्भय खड़े हुए हो।
जिनके पैदा किये, बुने वस्त्रों से देह ढके हो।
आतप-वर्षा-शीत-काल में पीड़ित न हो सके हो॥

अर्थ-धरती की कमाई का फल खाकर ही हम बढ़े और बड़े हुए हैं। एक बड़ी काया लेकर निर्भय-निडर बने हैं। धरती पर उपजे रूई-वस्त्र से हमने अपना शरीर ढंका है। इससे जाड़ा-गर्मी-बरसात से हमारी रक्षा हुई है, हम सुखमय जीवन व्यतीत कर सके हैं।

(8) क्या उनका उपकार-भार तुम पर लवलेश नहीं है?
उनके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
सतत ज्वलित दुख-दावानल में जग के दारुण रन में।
छोड़ उन्हें कायर बनकर तुम भाग बसे निर्जन में।

अर्थ-हमें इस धरती का उपकार मानना चाहिए। हमें इस धरती के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। हमें इस धरती का ऋण धरती की सेवा करके चुकाना चाहिए। इस धरती के लोगों की सेवा करनी चाहिए। इस धरती के लोग दुख की ज्वाला में जलते रहते हैं। हमें उनका दु:ख दूर करना चाहिए। हमें कायर और डरपोक बनकर जंगल की ओर पलायन नहीं करना चाहिए।

जीवन संदेश अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम नरेश त्रिपाठी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर-
राम नरेश त्रिपाठी का जन्म 1946 ई. में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था।

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प्रश्न 2.
उत्तर भारतीय लोक साहित्य का सर्वप्रथम संकलन एवं सम्पादन किसने किया?
उत्तर-
राम नरेश त्रिपाठी ने।

प्रश्न 3.
जीवन संदेश’ कविता राम नरेश त्रिपाठी की किस रचना से उद्घृत है?
उत्तर-
पथिक से।

प्रश्न 4.
‘पथिक’ काव्य की रचना किस साहित्यिक विधा में की गई है?
उत्तर-
खण्ड काव्य।

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर सबों से अधिक बुद्धिमान, बलवान और विकसित प्राणी कौन है?
उत्तर-
मनुष्य।

प्रश्न 6.
त्रिपाठी जी ने कायर किसे कहा है?
उत्तर-
अपने समाज को संकट में छोड़कर अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाले को त्रिपाठी जी ने कायर कहा है।

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प्रश्न 7.
‘जीवन संदेश’ कविता का संदेश क्या है?
उत्तर-
‘जीवन संदेश’ कविता का मुख्य संदेश कर्मशील रहने का है।

प्रश्न 8.
श्री राम नरेश त्रिपाठी किस भाषा के कवि थे।
उत्तर-
खड़ी बोली।

प्रश्न 9.
‘कविता कोमुदी’ किसकी रचना है?
उत्तर-
श्री राम नरेश त्रिपाठी की।

प्रश्न 10.
पथिक, मिलन ओर स्वप्न किसकी रचना है।
उत्तर-
राम नरेश त्रिपाठी की।।

प्रश्न 11.
श्री त्रिपाठी ने उत्तर भारत के लिए कैसा साहित्य सर्वप्रथम संकलन एवं संगठन किया?
उत्तर-
लोक साहित्य।

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प्रश्न 12.
बुरा न मानो, एक बार सोचो तुम अपने मन में। क्या कर्त्तव्य समाप्त कर लिए तुमने निज जीवन में? इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर-
रामनरेश त्रिपाठी।

प्रश्न 13.
“जीवन संदेश” कविता किसकी रचना है?
उत्तर-
रामनरेश त्रिपाठी की।

प्रश्न 14.
वह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता तुल्य मही है। उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा
उत्तर-
मातृभूमि को।

जीवन संदेश लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“जीवन-संदेश” कविता का संदेश क्या है?
उत्तर-
श्री राम नरेश त्रिपाठी ने इस कविता के माध्यम से कर्मशील रहने का संदेश दिया है। कवि कहते हैं कि प्रकृति के सारे सचर और अचर जीव कर्मशील हैं। सभी एक निश्चित मार्ग पर जीवन में क्रियाशील होते हैं। वह कहते हैं कि जिस पृथ्वी और मानव समाज ने हमें एक सभ्य मनुष्य बनने में निरन्तर सहयोग किया है उस देश और समाज के प्रति भी हमारा कर्तव्य है कि उसके संकट को दूर करें।

प्रश्न 2.
जीवन का मूल रहस्य क्या है?
उत्तर-
कवि श्री राम नरेश त्रिपाठी कहते हैं कि प्रकृति के विभिन्न रूपों में क्रियाशीलता पायी जाती है। पशु, पक्षी और कोमल मलय पवन अपने कर्म में निरंतर लगे रहते हैं। इसी प्रकार सूर्य, चाँद और दूसरे सभी आकशीय पिंड अपने निश्चित कर्म और उद्देश्य की पूर्ति में कर्मशील हैं। उनसे लघु भूल-चूक नहीं होती है। लेकिन मनुष्य जो सबसे अधिक बुद्धिमान, बलवान और विकसित प्राणी है वह भूल क्यों करता है? उद्देश्य रहित और कर्तव्यहीन कैसे हो जाता है? यही जीवन का मूल रहस्य है जिसको समझना चाहिए और भूल-चूक से बचना चाहिए।

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प्रश्न 3.
एक देशभक्त व्यक्ति का क्या कर्त्तव्य होता है?
उत्तर-
कवि श्री राम नरेश त्रिपाठी राष्ट्रीयता और मानवता के पुजारी थे। राष्ट्रीय आंदोलन में आप जेल जा चुके थे। इसलिए वह देश प्रेम की शिक्षा देते हैं। वह कहते हैं कि एक देशभक्त व्यक्ति का कर्तव्य है कि माता तुल्य, मातृभूमि के संकट को दूर करना चाहिए। दासता, आर्थिक संकट, बाहरी आक्रमण, प्राकृतिक आपदा जैसी अवस्थाओं से मुक्ति दिलाना हमारा परम कर्त्तव्य होना चाहिए।

यदि हम अपने समाज को संकट में छोड़ कर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं तो हमें निश्चित रूप से कर्त्तव्यविमुख और कायर कहा जायगा।

प्रश्न 4.
‘तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल विकसित’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कविवर रामनरेश त्रिपाठी के जीवन-संदेश की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
‘तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-विकसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य रहित है जग में तुमने कभी विचारा?।
बुरा न मानो, एक वार सोचो तुम अपने मन में।
क्या कर्त्तव्य समाप्त कर लिये तुमने निज जीवन में?’

कवि का कहना है कि मनुष्य मनुष्यता के लिए जाना जाता है। उसमें अमृतमय-अनन्त बुद्धि, ज्ञान, शक्ति विकसित होती रहती है।

यह विचार करना चाहिए कि हम उद्देश्यरहित नहीं हैं। हमें इस संसार में आकर कोई-न-कोई श्रेष्ठ कार्य करना है।

हमें बिना बुरा माने यह सोचना है कि अपने जिम्में आवंटित कर्त्तव्य-कर्म क्या हमने पूरे कर लिये हैं? नहीं तो हमें संसार के लिए उन्हें पूरा करना होगा।

कर्त्तव्य विमुख पलायनवादी कहलाते हैं। यह देश ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ की महत्ता को जाननेवाला है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम नरेश त्रिपाठी के जीवन और व्यक्तित्व का एक सामान्य परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
श्री राम नरेश त्रिपाठी का जन्म संवत 1946 ई. में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। खड़ी बोली के कवियों में आपका महत्त्वपूर्ण स्थान था। आप हिन्दी के बहुत पुराने कवि हैं। आपके काव्य में भाषा का सौन्दर्य और शैली की सरलता रहती है। आप राष्ट्रीयता और मानवता के पुजारी थे। राष्ट्रीय आन्दोलन में आप जेल जा चुके थे। राष्ट्रपिता गाँधीजी का आप पर अधिक प्रभाव पड़ा था। अत: आपके खण्डकाव्यों में अहिंसक क्रांति का संदेश सामने आता है। त्रिपाठी जी ने प्रबन्ध काव्य और मुक्तक-काव्य दोनों प्रकार के काव्य सफलतापूर्वक लिखे हैं।

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उनकी कृति कविता-कौमुदी नाम से प्रकाशित हुई है। त्रिपाठी जी ने उत्तर भारतीय “लोक साहित्य” का सर्वप्रथम संकलन एवं संपादन किया और हिन्दी की बड़ी सेवा की है। बाल साहित्य के भी आप सिद्धहस्त लेखक थे। इस प्रकार त्रिपाठी जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार माने। जाते थे। अंत तक आप हिन्दी साहित्य की सेवा में लगे रहे।

आपकी प्रमुख रचनाएँ पथिक, मिलन, स्वप्न और कविता कौमुदी हैं।

प्रश्न 2.
“जीवन-संदेश” शीर्षक कविता का भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा,
“जीवन संदेश” कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
“जीवन संदेश” शीर्षक कविता, श्री राम नरेश त्रिपाठी की रचना है जो ‘पथिक’ खण्ड-काव्य से उद्धृत है। कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों.की क्रियाशीलता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, कर्मशील रहने का संदेश किया है। जिस पृथ्वी और मानव-समाज ने हमें एक साथ मनुष्य बनने में निरन्तर सहयोग किया है उस देश और समाज के प्रति भी तो हमारा कुछ कर्तव्य है। यदि उस समाज को संकट में छोड़ कर हम अपनी ही दुनिया में मस्त हैं तो हम निश्चित रूप से कर्तव्यविमुख और पलायनवादी कहलायेंगे।

जीवन के रहस्य को कवि ने समझाया है। वह कहते हैं कि इस जग में सचर एवं अचर दोनों कर्म के प्रति कर्मशील हैं। सभी एक निश्चित मार्ग में जीवन भर क्रियाशील होते हैं।

पशु, पक्षी, कोमल मलय पवन अपने कर्म में लगे रहते हैं। सूर्य चन्द्रमा और दूसरे सभी आकाशीय पिंड अपने निश्चित मार्ग और उद्देश्य की पूर्ति में कर्मशील होते हैं। उनसे लघु भूलचूक भी नहीं होती है।

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इस पृथ्वी पर सबों से बुद्धिमान, बलवान और विकसित प्राणी मनुष्य है। क्या ईश्वर ने मनुष्य को उद्देश्य रहित, कर्तव्यहीन बनाया है? नहीं, बल्कि मनुष्य के जीवन का एक उत्तम लक्ष्य सर्वश्रेष्ठ बन कर ईश्वर के आदेश का पालन करना है। अपने माता, पिता परिवार, देश, धर्म के लिए अच्छे कर्म करना है।

एक देश भक्त का कर्तव्य है कि माता तुल्य मातृ-भुमि के संकट को दूर करना चाहिए, दासता, आर्थिक संकट, बाहरी आक्रमण जैसी अवस्थाओं से मुक्ति दिलाना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए।

यदि हम अपने समाज को संकट में छोड़कर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं तो हमें निश्चित रूप से कर्तव्यविमुख और कायर कहा जायगा। अतः प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को, देश, समाज पृथ्वी इत्यादि सभी के प्रति समर्पण भाव को दिखाने का संकल्प व्यक्त किया है जिससे हम कर्तव्यविमुख नहीं कहलायें।

जीवन संदेश कवि-परिचय – राम नरेश त्रिपाठी

कविवर रामनरेश त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिला में 1946 ई. में हुआ था। उनकी रचनाएँ खड़ी बोली में पाई जाती है। उनके काव्य में भाषा का सौंदर्य परिलक्षित होता है। वे राष्ट्रीयता और मानवता के पुजारी थे। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। गाँधी के अहिंसक क्रान्ति का संदेश उनके काव्य में पाया जाता है। उन्होंने प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य की रचना की। उनकी रचनाएँ राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत है। त्रिपाठी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी प्रमुख रचना कविता-कौमुदी के नाम से प्रकाशित है। उन्होंने उत्तर भारतीय ‘लोक साहित्य’ का सर्वप्रथम संकलन और संपादन किया। वस्तुतः त्रिपाठी जी ने हिन्दी साहित्य के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  • पथिक
  • मिलन
  • स्वप्न
  • कविता-कौमूदी।

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