Bihar Board 12th Physics Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Physics Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
What are α – β – γ rays? Describe its properties? (α – β – γ किरणें क्या हैं? इसके गुणों का वर्णन करें।)
उत्तर:
α – β – γ किरणें (α – β – γ) 1896 ई० में बैकुरेल (Becquerel) ने अपने प्रयोग में देखा कि यूरेनियम से एक विशेष प्रकार की किरणें निकलती है। ये किरणें कुछ पदार्थों को भेद सकती है तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित कर सकती हैं। इन किरणों को “बैकुरेल किरणें” (Bacquerel rays) तथा “रेडियो एक्टिव किरणें (Radioactive rays)” कहा गया।

इस खोज पर बैकुरेल को 1903 ई० में Nobel Prize दिया गया।
बाद में मैडम क्यूरी तथा मिस्टर क्यूरी (Curie) ने पता लगाया कि रेडियम (Radium), थोरियम (Thorium), पोलिनियम (Polinium) इत्यादि पदार्थों में भी ये किरणें निकलती है। इन पदार्थों को “रेडियो ऐक्टिव पदार्थ (Radio active substance)” कहते हैं। किरणों के उत्सर्जित होने के गुण को “रेडियो एक्टिविटी (Radioactivity)” कहते हैं।

फिर रदरफोर्ड (Rutherford), विलार्ड (Villard) ने अपने अनेक प्रयोगों से यह दिखलाया कि इन तत्त्वों से तीन किरणें निकलती है। इसके लिए रदरफोर्ड ने एक सीसे का गुटिका (Block) A लिया इसके गड्ढ़ा में Radioactive पदार्थ रखा। इसके चारों ओर चुंबकीय तथा वैद्युत क्षेत्र लगाया।, पदार्थ से निकलने वाले किरणें तीन भागों में बँट जाती हैं। कुछ किरणें (-ve) प्लेट की ओर मुड़ती है। अतः इसपर अवश्य ही धन-आवेश होगा। इसे “α – किरणें” कहा गया है।
कुछ किरणें धन प्लेट (+ve plate) की ओर मुड़ जाती है। अतः इन किरणों में (-ve) आवेश है।, इसे;”β – किरणें” कहा गया।
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कुछ किरणें बिना मुड़े हुए. उदग्र दिशा में चली जाती है। अतः इस पर कोई आवेश नहीं है। इसे “γ – किरणें” कहा गया।

α – किरण का गुण (Prop. of α rays)-

  1. α -किरणें चुम्बकीय तथा विद्युत यंत्रों से विक्षेपित होते हैं। इससे पता चलता है कि यह धन आवेशित कणों से बनी हैं। इस पर आवेश लगभग 1.604 ×10-10 e.s.u. है।
  2. α – किरणों का विक्षेप, β – किरणों से कम है। अतः α – कण, β – कण से भारी है।
  3. α – कण की मात्रा 6.643 × 1024 ग्राम होता है। यह हीलियम परमाणु के मात्रा के बराबर तथा हाइड्रोजन के परमाणु के मात्रा से चार गुना अधिक होती है।
  4. इसका वेग लगभग 1.4 × 109 से d1.7 × 109 से०मी०/से० होता है।
  5. ये किरणें जब गैस से गुजरती है तो उसे आयनीकृत कर देती है। यह शक्ति β – किरणों से 100 गुना तथा γ – किरणों से 10,000 गुना अधिक होती है।
  6. ये किरणे पदार्थ में घुस जाती है। इसके घुसने की शक्ति (Penetrating power),
    β – किरणों से \(\frac{1}{100}\) गुना तथा α – किरणों से \(\frac{1}{10,000}\) गुना होती है।
  7. सोना, अबरख इत्यादि पतले चादरों से गुजरने पर α – कण प्रकीर्ण (Scatter) हो जाता है।
  8. ये किरणें बेरियम प्लेटीसाइनाइड तथा जिंक सल्फाइड आदि पदार्थ पर पड़ने से प्रतिदिप्त (Flowerscence) उत्पन्न करता है। पर्दे से यह अलग-अलग चमक देती है।
  9. ये किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती है।
  10. यह शरीर को झुलसा देती है।
  11. इसे रोकने पर तापीय प्रभाव (Thermal effect) को दिखलाती है।

β – किरण का गुण (Prop. of β – ray)-

  1. ये किरणें भी चुंबकीय गुण तथा विद्युत यंत्रों से विक्षेपित होती है। इसके विक्षेप से होती है। इसके विक्षेप से पता चलता है कि इस पर (-ve) Charged कण है।
  2. α – कण से इसका विक्षेप अधिक होता है। अतः यह -कण से हल्का है।
  3. इसके प्रत्येक कण की मात्रा Electron की मात्रा के बराबर होता है।
  4. β – कण की मात्रा इसके वेग पर निर्भर करता है। इसके लिए निम्न सूत्र है-
    m = \(\frac{m_{0}}{\sqrt{1-\frac{v^{2}}{c^{2}}}}\)
    जहाँ m0 → शून्य वेग में मात्रा
    V → β कण का वेग
    c → प्रकाश का वेग
  5. β – कण का वेग α – कण से अधिक होता है, परन्तु प्रकाश के वेग से कम होता है।
  6. ये किरणें गैस को आयनीकृत करती है, परन्तु इसकी आयनीकरण क्षमता, α – कण से कम तथा y-किरणों से 100 गुना अधिक होती है।
  7. इसकी भेदन शक्ति, α – किरणों से 100 गुना अधिक तथा γ – किरणों से 100 गुना कम होती है।
  8. सोना, अबरख इत्यादि से गुजरने पर ये किरणें शीघ्र ही प्रकीर्ण (Scatter) हो जाती है।
  9. ये बेरियम प्लेटीसाइनाइड तथा जिंक सल्फाइड पर प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं।
  10. ये किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को α – किरणों की अपेक्षा अधिक प्रभावित करती हैं।

γ – किरण का गुण (Prop.of γ – rays)-

  1. ये किरणें विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों से विक्षेपित नहीं होते हैं। इससे यह स्पष्ट होता । है कि इस पर कोई आवेश नहीं है।
  2. यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह होती है। परन्तु इसकी तरंग की लम्बाई बहुत छोटी होती है।
  3. इसका वेग प्रकाश के वेग के बराबर होता है।
  4. ये किरणें गैस को आयनीकृत करती है। परन्तु यह क्षमता β – किरणों से \(\frac{1}{100}\) गुना तथा α – किरणों से 10,000 गुना अधिक होती है।
  5. इसकी भेदन शक्ति बहुत अधिक होती है। यह शक्ति β – किरणों से 100 गुना तथा α – किरणों से 10,000 गुना अधिक होती है।
  6. ये किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को α – किरण तथा β – किरण से अधिक प्रभावित करती है।
  7. ये किरणें भी पदार्थ में प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती है।

प्रश्न 2.
(i) Establish relation between mass and energy.
(द्रव्यमान तथा ऊर्जा के बीच सम्बन्ध स्थापित करें।)
(ii) How P-nJn. is used as lode ?
(डायोड के रूप में P-n Jn. का व्यवहार किस प्रकार किया जाता है?)
उत्तर:
द्रव्यमान उर्जा तुल्यांक(Mass energy equivalence)-हमलोग जानते हैं कि किसी वस्तु की मात्रा स्थिर रहती है। यह वस्तु के वेग पर निर्भर नहीं करता है। परन्तु आइंस्टीन (Einstein) ने आपेक्षिकता सिद्धान्त (Theory of Relativity) के आधार पर बतलाया कि
वस्तु की मात्रा, वेग के साथ बदलती है। वेग अधिक रहने पर मात्रा भी अधिक होती है। इसके साथ-ही-साथ Einstein ने कहा कि मात्रा तथा ऊर्जा एक-दूसरे के समतुल्य हैं। अतः मात्रा की कमी होने पर ऊर्जा में वृद्धि होती है।

Einstein ने अपने सिद्धान्त में मात्रा तथा वेग के बीच निम्न समीकरण दिये-
किसी गतिशील वस्तु की मात्रा = (m) \(\frac{m_{0}}{\sqrt{1-\frac{v^{2}}{c^{2}}}}\)
जहाँ m0 = स्थिर अवस्था में वस्तु की मात्रा
ν = वस्तु का वेग
c = प्रकाश का वेग
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[∵ \(\frac{V}{c}\) का मान बहुत कम है। अतः इसके बड़े powers और भी छोटे होंगे जिसे छोड़ा जा सकता है]
= m0 + \(\frac{1}{2} \cdot \frac{m_{0} v^{2}}{c^{2}}\)
या, m – m0 \(\frac{1}{2} \cdot \frac{m_{0} v^{2}}{c^{2}}\)
या, m – (m0)c2 = \(\frac{1}{2}\)m0ν2
या, Ek = δmc2
जहाँ \(\frac{1}{2}\)m0ν2 = Ek = वस्तु की गतिज ऊर्जा
तथा m = m0 = δm = मात्रा में अन्तर

अर्थात् वस्तु की गतिज ऊर्जा, उसके मात्रा में वृद्धि की c2 गुनी होती है। यदि वस्तु का वेग प्रकाश के वेग के बराबर हो जाय तो वस्तु की मात्रा अनन्त हो जाती है।
ऊपर के समीकरण को साधारण रूप में लिखने पर,
E = mc2 …(1)
समी० (1) में मात्रा, ऊर्जा सम्बन्ध प्राप्त होता है। इसे मात्रा, ऊर्जा तुल्यता का समीकरण (equation of mass-energy equivalance) भी कहते हैं।

(ii) डायोड के रूप में (P-n) Jn. [(P-n) Jn. as adiode)]-इसके लिए एक अर्द्ध-चालक (Semiconductor) की कल्पना करते हैं। इसके एक भाग को p-type तथा दूसरे भाग को ntype का बना देते हैं। AB रेखा इन दोनों को अलग करती है। इसे “P-n Junction (p-n जंक्शन)” कहते हैं।
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n-type में electron की संख्या अधिक होती. है। अतः electron विसर्जित होकर Junction के दूसरी ओर चला जाता है। यह P के धनात्मक hole को भरता है।

p-type से कुछ धनात्मक Hole की Junction को पार करके n की ओर जाते हैं। वहाँ वे electron के साथ संयोग करते हैं।

इन सब कारणों से p-type में electron अधिक तथा धन-आवेश कम हो जाता है। साथ ही साथ n-type में electron कम तथा धन आवेश अधिक हो जाता है। इसके फलस्वरूप जोड़ पर आवेशों की एक पतली परत बन जाती है। इसके बीच एक विभवान्तर उत्पन्न होता है। यह electron तथा धन आवेश को पार करने से रोकता है। इसे “अवरोध विभव” (Barrier potential) कहते हैं।-
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यदि P-nJ n के p-type को सेल के धन ध्रुव से तथा n-type को सेल के ऋण ध्रुव से जोड़ते हैं तो इसे “अग्रबायस संयोजन (Forward bias connection)” कहते हैं।

यदि n-type को सेल के धन ध्रुव से P तथा P-type को सेल के ऋण ध्रुव से जोड़ते हैं तो “उत्क्रम बायस संयोजन (Reverse bias connection)” कहते हैं। इसमें बायस का विभव बढ़ने से धारा अधिक बढ़ा दिया जाय तो Jn की उत्पत्ति होती है। इसे “विघटन बिन्दु” (Break down point) कहते हैं।

इसके द्वारा A.C. को D.C. में बदला जा सकता है। इसके लिए इसे “अग्रबायस संयोजन (Forward bias connection)” में जोड़ते हैं।
चित्र के परिपथ में.A.C. दिया जाता है तब आधे चक्र में यह “अग्रबायस संयोजन” में कार्य करेगा। इससे प्रतिरोध (R) के बीच Direct potl. difference प्राप्त होता है। दूसरे आधे चक्र में Reverse bias connection में रहेगा। इससे R के छोरों के बीच विभवांतर नगण्य होगा। इसे ग्राफ से दिखलाया गया है। इस प्रकार P-n Jn. एक Half wave rectifier की तरह काम करता है।
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Full wave rectifire के लिए दो P-n Jn. लेते हैं। इसे इस तरह से जोड़ा जाता है कि . : एक Jn. आधे चक्र में recitify करे तथा दूसरा, दूसरे आधे चक्र में rectify करे। इस प्रकार पूरा-का-पूरा A.C. rectify होकर D.C. में बदल जाता है।
इस प्रकार Semiconductor, rectification की तरह काम करता है।

प्रश्न 3.
What do you understand by radio active and radio active constant? Explain the terms half life period and mean or average life.
(रेडियो ऐक्टिव विघटन तथा रेडियो ऐक्टिव स्थिरांक से आप क्या समझते हैं? अर्द्ध. आयु तथा औसत आयु का वर्णन करें।)
उत्तर:
रोडयो ऐक्टिव विघटन (Radio active disintegration) :

रदरफोर्ड ने देखा कि Radio active पदार्थ से α, β तथा γ किरणें निकलती हैं। ये किरणें परमाणुओं से निकलती है। इससे पदार्थ का परमाणु भार (Atomic weight) तथा परमाणु संख्या (Atomic number) बदल जाते हैं। इस प्रकार परमाणु का विघटन होता है और एक नये पदार्थ का जन्म हो जाता है। इस घटना को रेडियो ऐक्टिव विघटन (Radio active disintegration or radio active decay) कहते हैं।

नये परमाणु के radio active रहने पर इसका भी विघटन होता है और फिर तीसरा परमाणु जन्म लेता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जबतक कि परमाणु एक स्थायी रूप नहीं ले लेता है। यूरेनियम के परमाणु का विघटन होने पर अन्त में सीसा का परमाणु बनता है।
इस विघटम के लिए एक सामान्य नियम होता है जिसे “radioactive विघटन सिद्धान्त” या “radio active विघटन नियम” कहते हैं।

रेडियो ऐक्टिव विघटन का सिद्धान्त (Theory of radio active disintegration) :

  • Radio active पदार्थ का विघटन अपने आप होता है। इससे α, β तथा γ के कण निकलते हैं। इससे नये.पदार्थों का जन्म होता है।
  • प्रत्येक परमाणु के विघटित होने की संभावना समान रहती है। अतः यह पता लगाना असंभव है कि कौन पहले विघटित होगा।
  • इकाई समय में जितने परमाणुओं का विघटन होता है, वह अपरिवर्तित अणुओं की संख्या के समानुपाती होता है।

मानलिया कि किसी radio active पदार्थ में t समय पर उपस्थित परमाणुओं की संख्या N है। dt समय में dN परमाणु विघटित हो जाते हैं।
∴ विघटन का दर = \(\frac{d N}{d t}\)
यह परमाणुओं की संख्या N के समानुपाती होता है।
अर्थात् \(\frac{d N}{d t}\)α N
या,\(\frac{d N}{d t}\) = -λ .N

जहाँ (-ve) चिह्न यह दिखलाता है कि t बढ़ने पर N का मान घटता है। यह λ एक स्थिर राशि है जिसे “विघटन स्थिरांक (Disintegration constant)” या “अपक्षरण स्थिरांक” कहते हैं।
या, \(\frac{d N}{N}\) =-λdt
दोनों sides को integrate करने पर,
logeN = -λt + C …(1)
जहाँ C. constant of Integration है।
मानलिया कि शुरू में अर्थात विघटन के पूर्व t = 0 रहने पर N = N0
∴ loge N0 = C
समी० (1) में C का मान देने पर,
loge N = -λt + loge N0
या, loge N – loge N0 = -λt
या, loge\(\frac{N}{N_{0}}\) = -λt
या, \(\frac{N}{N_{0}}\) = e-λt
या, N = N0e-λt ….(2)
समी० (2) को “विघटन का नियम” कहते हैं। इसे “exponential का नियम” भी कहा जाता है।
समी० (2) में t =\(\frac{1}{\lambda}\) रखने पर,
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अतः किसी पदार्थ का विघटन स्थिरांक (disintegration constant) या अपक्षय स्थिरांक (decay constant) λ उस समय के तुल्य होता है जिसमें किसी पदार्थ के परमाणुओं की संख्या
घटकर अपनी प्रारंभिक संख्या का \(\frac{1}{e}\) गुणन रह जाती है।

अर्द्ध आयु (Half life)-किसी Radio active पदार्थ का half life उस समय के तुल्य होता है जिससे पदार्थ के अणुओं की संख्या घटकर अपने प्रारंभिक संख्या की आधी हो जाती है।
अर्थात् N = \(\frac{N_{0}}{2}\) रहने पर t = T (Half life)
सभी० (2) में N तथा t का मान देने पर,
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समी० (4) से Half life तथा विघटन स्थिरांक के बीच संबंध भी प्राप्त होता है। Half life, विघटन स्थिरांक के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
औसत आयु.(Mean or Average life)-किसी Radioactive पदार्थ के परमाणुओं की आयुयों के योग को उन परमाणुओं की कुल संख्या से भाग देने पर उस पदार्थ का औसत आयु (Mean life or Average life) मिलता है।
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= \(\frac{1}{\lambda}\)
अतः औसत आयु (Mean life); विघटन स्थिरांक (λ) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

प्रश्न 4.
Explain Davisson – Germer experiment to verify De-Broglie hypothesis.
(De-Broglic hypothesis की जाँच के लिए डेविसन-गरमर प्रयोग का वर्णन करें।)
उत्तर:
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डेविसन-गरमर प्रयोग (Davission-Germer experiment)-
De-Broglie द्वारा कहे गये द्रव्य तरंगों (matter waves) में यदि ये वास्तव में तरंग की तरह काम करते हैं तो इससे व्यतिकरण तथा विवर्तन की घटना होनी चाहिए। इसको दिखलाने के लिए Davission-Germer ने प्रयोग किया। प्रयोग में F एक फिलामेन्ट है।
इसे बैटरी B से गर्म करते हैं। इससे electron निकलता है। यह electron gun G के समानान्तर छिद्रों से होकर बाहर निकलता है।

के बीच आरोपित विभव V से electron को त्वरित (accelerated) किया जाता है। फिर इसे निकिल Crystal C पर पड़ने दिया जाता है। C से टकराने पर यह electron सभी दिशाओं में परावर्तित या विवर्तित होता है। इसकी धारा को electron detector D द्वारा मापा जाता है। यह क्रिया C को घुमाकर भिन्न-2 कोणों के साथ की जाती है। D को भी एक वृत्तीय पैमाने S पर घुमाया जाता है।
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ऊपर के प्रयोग को विभव (v) के 44 volt, 48 volt, 54 वोल्ट इत्यादि के लिए दुहराया जाता है। फिर धारा की तीव्रता तथा Φ के बीच ग्राफ खीचते हैं।

ग्राफ से हम पाते हैं कि 44 वोल्ट विभव पर curvle में एक उभार (bump) दिखलाई पड़ता है। विभव बढ़ाने पर यह भी बढ़ता है। 54 वोल्ट विभव के लिए Φ = 50° रहने पर यह उभार सबसे अधिक होता है। विभव और बढ़ाने पर यह उभार घटना शुरु हो जाता है।

यहाँ पर Electron एक तरंग के समान है। तथा.crystal एक विवर्तन ग्रेटिंग (diffraction .. grating) का काम करता है। साथ ही साथ यह भी देखा गया कि इसका तरंग लम्बाई, DeBroglie के समीकरण से दी गयी तरंग लम्बाई के बहुत समीप है।
हम जानते हैं कि तरंग लम्बाई (λ) = \(\frac{h}{m v}=\frac{h}{\sqrt{2 m e v}}\) …(1)
जहाँ h → Planck’s constant m→ द्रव्यमान
e → Electron पर आवेश V→ दिया गया वोल्टेज
इस प्रयोग में V= 54 वोल्ट के लिए सभी राशि का मान देने पर,
λ = 1. 67 A° … (2)
चूँकि crystal C एक विवर्तन ग्रेटिंग का काम करता है। अत: x- किरण के लिए grating के समीकरण के आधार पर यह पाया जाता है कि λ = 1. 65 A° … (3)
Eq (3) के λ का मान.De – Broglie के समीकरण (2) से प्राप्त λ के बहुत समीप है। इससे यह सावित होता है कि electron की प्रकृति एक तरंग के जैसा है।

प्रश्न 5.
What is Logic gate? Discuss its different kinds. (तांत्रिक द्वार क्या है? इसके भिन्न-भिन्न प्रकारों का वर्णन करें।)
उत्तर:
Logic gate – Binary सूचना का Manipulation (प्रबन्ध), Logic circuit द्वारा होता है जिसे gates कहते हैं। Logic gate या Logic circuit वह परिपथ है, जो Switch की क्रिया में व्यवहार होता है तथा Input और Output के बीच Logic संबंध बतलाता है।

इसमें बन्द Switch को संख्या एक
(1) तथा खुला Switch को 0 (शून्य) से दिखलाया जाता है। Logic gate निम्न प्रकार के होते हैं-
(1) OR gate (OR द्वार) – इसमें दो या अधिक Input मिलकर एक Output उत्पन्न करते हैं।
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table

Input Output
A B C
0 0 0
0 1 1
1 0 1
1 1 1

चित्र में A और B दो Switch है। जो समानान्तर क्रम में जुड़े हैं। इससे बल्ब C तथा सेल जुड़ा है। A और B Input तथा C output का काम करता है। A और B के खुला रहने पर C बल्ब प्रकाश नहीं देता है। A और B के बन्द रहने पर C से प्रकाश मिलता है। A और B दोनों को एक साथ बन्द करने पर भी प्रकाश मिलता है। इस gate का Truth table दिखलाया गया है। इस gate का बूलियन (Boolean) समीकरण निम्न है।
A+ B = C अर्थात् C बराबर A or B

(2) AND gate ( AND द्वार )- इसमें भी दो या अधिक Input मिलकर एक Output उत्पन्न करते हैं।
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Table

Input Output
A B C
0 0 0
1 0 0
0 1 0
1 1 1

चित्र में A और B दो Switch है जो श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। इससे बल्ब C तथा सेल जुड़ा है। A और B Input तथा C Output का काम करता है।
यहाँ पर A या B दोनों के खुला रहने पर बल्ब C नहीं जलता है। परन्तु A और B दोनों बन्द रहने पर भी बल्ब C जलता है। इस gate का Truth table दिखलाया गया है। इसका बुलियन समीकरण नियम है।
A . B =C

(3) NOT gate (NOT द्वार) – इसमें एक Input तथा एक Output रहता है। इस gate में Input A नहीं देने पर Output B मिलता है तथा Input देने पर Output नहीं । मिलता है।
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table

A B
0 1
1 0

अर्थात् A = 0 हो तो B = 1
तथा A = 1 हो तो B = 0
इसे Table से दिखलाया गया है। इस gate को दिखलाने के लिए Output पर एक वृत्त बनाते हैं। इसे “इनवर्ट बुलबुला” (Invert bubble) कहते हैं। इसका बूलियन समीकरण
B = \(\bar{A}\)

यहाँ \(\bar{A}\) का अर्थ होता है A नहीं।

(4) NOR gate ( NOR GT.) – NOT gate तथा gat का संयोग NOT-OR परिपथ की तरह काम करता है। इन दोनों का संयोग ही “NOR gate” कहलाता है। इसे OR gate के Output में NOT gate को जोड़कर बनाया जाता है।
table

Input Output
A B C
0 0 1
0 1 0
1 0 0
1 1 0

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इसकी क्रिया OR gate के ठीक विपरीत या पूरक (Complimentary) है। इसमें दोनों InputA और B के शून्य होने पर Output C1 (एक) होता है। परन्तु दोनों Input में किसी एक के 0 होने पर तथा दोनों के 1 होने पर Output O होता है। इसे Truth table में दिखलाया गया है।

इसका बुलियन समीकरण निम्न है-
\(\overline{A+B}=C .\)

(5) NAND gate (NAND द्वार )- NOT gate तथा AND gate का संयोग NOT-AND परिपथ की तरह काम करता है। इन दोनों का संयोग ही “NAND gate” कहलाता है।

इसे AND gate के output में NOT gate को जोड़कर बनाया जाता है। इसकी क्रिया AND gate के ठीक विपरीत या पूरक Complimentary है। इस gate में A या B या दोनों के शून्य होने पर Output 1 होता है।
table

Input Output
A B C
0 0 1
0 1 1
1 0 1
1 1 0

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एपरन्तु A और B दोनों के 1 होने पर Output शून्य (0) होता है।
इसका बूलियन समीकरण निम्न है- \(\overline{A+B}=C .\)

प्रश्न 6.
What is Laser? Give its basic principle. Describe Ruby Laser. Give main uses of laser. Name some important types of laser.
(लेसर क्या है? इसके आधारभूत सिद्धान्त को लिखें। रूबी लेसर का वर्णन करें। लेसर के मुख्य उपयोग को लिखें। कुछ मुख्य प्रकार के लेसर के नाम लिखें।)
उत्तर:
Laser – लेसर अंग्रेजी में Laser अक्षरों से बना है। इसके प्रत्येक अक्षर का अर्थ है-
L – Light (प्रकाश)
A – Amplification (प्रवर्द्धन)
SE – Stimulated emission (उद्दीपित उत्सर्जन)
तथा R – Radiation (विकिरण) _

1958 ई० में Towns तथा Schawlow ने Laser के सिद्धान्त पर काम किया। Laser के पदार्थ के लिए विशेष उच्च ऊर्जा की अवस्था वाले परमाणु को विकिरण उत्सर्जन करने को प्रेरित करते हैं। इस विकिरण की आवृत्ति और कला लगभग वही होती है जो पदार्थ में भेजे जाने वाले विकिरण की होती है और यह विकिरण उसी दिशा में संचारित होती है, जिस दिशा में विकिरण को पदार्थ में भेजा जाता है।

Maser का modified रूप Laser है। Maser का अर्थ होता है-“Microwave .. Amplification by stimulated Emission of Radiation”. इस कारण से Laser को “Optical maser” भी कहा जाता है।

लेसर का आधारभूत सिद्धान्त ( Basic principle of laser)-
सन् 1917 ई० में आइन्सटीन ने बतलाया कि उद्दीपित परमाणु उच्च ऊर्जा से निम्न ऊर्जा की स्थिति में आने में दो प्रकार से विकिरण उत्सर्जित कर सकता है-
(i) किसी बाह्य विकिरण प्रभाव के बिना सहज ढंग से (स्वतः उत्सर्जन)।
(ii) किसी विशेष आवृत्ति के विद्युत चुम्बकीय विकिरण के उपस्थिति में (उद्दीपित उत्सर्जन)।

पदार्थ में किसी भी ताप पर निम्न ऊर्जा-स्थिति एवं उच्च ऊर्जा-स्थिति वाले दोनों प्रकार के परमाणु होते हैं।
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मान लिया कि ऊर्जा-स्थिति 1 या 2 में प्रति इकाई आयतन में इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्रमशः N1 तथा N2 हैं। ऊर्जा-स्थिति 2 का स्तर ऊर्जा-स्थिति 1 के स्तर से ऊपर है। परमाणु की ऊर्जा का संक्रमण (ransition) स्तर 1 से 2 पर होने पर फोटॉन (photon) का अवशोषण एवं संक्रमण स्तर 2 से 1 पर होने पर फोटॉन का उत्सर्जन (emission) होता है। फोटॉन के अवशोषण के बाद ऊर्जा का स्वतः उत्सर्जन या उद्दीपित उत्सर्जन दोनों ही की संभावना हो सकती है। उद्दीपित उत्सर्जन किसी प्रकार की प्रक्रिया से संभव होता है। इसे समझने के लिए रूबी क्रिस्टल (Ruby crystal) के क्रोमियन परमाणु की ऊर्जा-स्थितियों पर विचार करते हैं।

परमाणु की E1 तथा E2 ऊर्जा -अवस्थाओं की आयु 10-5 सेकेण्ड से कम होती है और M-energy level की आयु लगभग 3 x 10-3S होती है। अपेक्षाकृत अधिक आयु होने के कारण M-level को मितस्थायी (Metastable) स्थिति कहते हैं। अनुद्दीपित क्रोमियम ground level में होती है।
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लगभग 6600Å का फोटॉन अवशोषित कर यह E1 स्थिति में और लगभग 4000Å का फोटॉन अवशोषित कर E2 स्थिति में आता है। यह E1 एवं E2 level से संक्रमित होने पर मितस्थायी स्थिति में आता है। ऐसे संक्रमण से प्राप्त ऊर्जान्तर को क्रिस्टल का जालक (lattice) अवशोषित कर लेता है। अतः इन संक्रमणों से विकिरण उत्सर्जित नहीं होते। Metastable state M # ground state 0 में जब परमाणु का संक्रमण होता है तब लगभग 6900Å के तरंगदैर्घ्य के विकिरण का उत्सर्जन होता है। यही उद्दीपित उत्सर्जन है जो लगभग 6600Å के तरंगदैर्घ्य के विकिरण की उपस्थिति के कारण संभव होता है। इस उत्सर्जन से पदार्थ में भेजे गये विकिरण की शक्ति का प्रवर्द्धन होता है।

स्पष्ट है कि उद्दीपित उत्सर्जन के लिए यह आवश्यक है कि परमाणु को उद्दीपित अवस्था में लाया जाय तथा पदार्थ में भेजे गये विकिरण की शक्ति काफी प्रवर्द्धित हो। इसके लिये आवश्यक है कि energy level M से निम्न स्थिति को प्राप्त करने वाले परमाणुओं की आबादी बहुत अधिक हो। अतः अधिक ऊर्जा वाले परमाणुओं का आबादी का बढ़ना आवश्यक है।

प्रकाश-प्रवर्द्धन. के पक्ष में उच्च ऊर्जा वाले परमाणुओं की आबादी निम्न ऊर्जा वाले परमाणुओं से बढ़ने को आबादी का प्रतिलोमन (Population Inversion) कहा जाता है।

जिस पदार्थ के परमाणुओं में उद्दीपित उत्सर्जन और आबादी का प्रतिलोमन होता है उसे सक्रिय माध्यम कहते हैं। इस माध्यम को दो समतल दर्पणों के बीच रख दिया जाता है। इन दर्पणों के बीच प्रकाश की किरणावलि बार-बार आगे-पीछे परावर्तित होती है और इस क्रिया में प्रकाश की शक्ति उत्तरोत्तर प्रवर्द्धित होती है।
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समतल दर्पणों की ऐसी व्यवस्था अनुनादी कोटर (Resonant cavity) कहलाती है। किरणावलि को सक्रिय माध्यम के बाहर प्राप्त करने के लिए अनुनादी कोटर के एक दर्पण को partially reflecting बनाया जाता है।

लेसर के प्रकार (Type of Laser)-

  1. ठोस लेसर (रूबी लेसर),
  2. द्रव लेसर,
  3. गैस लेसर (हीलियम-न्यूयान लेसर),
  4. अर्द्धचालक लेसर,
  5. रासायनिक सर,
  6. क्लम लेसर।

रूबी लेसर (Ruby Laser)-रूबी लेसर में रूबी का बेलनाकार क्रिस्टल होता है जिसका एक समतल छोर पूर्णत: रजतित (fully silvered) एवं दूसरा छोर अंशतः रजतित (partially silvered) होता है। इस क्रिस्टल को Xenon gas के flash lamp के अक्ष पर काँच की नली
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में व्यवस्थित किया जाता है। एक Condenser को कुछ किलोवोल्ट तक आवेशित कर क्षणदीप (flash lamp) होकर अनावेशित किया जाता है। इससे फ्लैश लैम्प के गैस होकर विद्युतविसर्जन से जो प्रकाश प्राप्त होता है वह माध्यम के क्रोमियम परमाणुओं से उद्दीपित उत्सर्जन देता है और क्रिस्टल के अंशत: रजतित समतल छोर से लेसर किरणावलि प्राप्त होता है।

रूबी लेसर से विकिरण स्पन्दों में प्राप्त होते हैं। इससे लगभग 10 किलोवाट की शीर्षशक्ति प्राप्त हो सकती है।
लेसर के उपयोग (Uses of laser) :
इसके अनेकों महत्त्वपूर्ण उपयोग है-

  1. यह Sharp knife के जैसा काम करता है। इसके द्वारा Bloodless surgery किया जाता है।
  2. कड़े पदार्थ जैसे-हीरा इत्यादि में छेद करने के काम में आता है।
  3. उच्च गति फोटोग्राफी में इसका प्रयोग घूमते हुए वस्तु का अच्छा प्रतिबिम्ब प्राप्त करने में किया जाता है।
  4. Research में इसका उपयोग Raman spectroscopy रासायनिक प्रतिक्रिया का nature प्रकाश के वेग को शुद्ध मापन इत्यादि में किया जाता है।
  5. इसका उपयोग रॉकेट तथा उपग्रह के automatic control तथा guidance में किया जाता है।
  6. हवाई जहाज, मिसाइल तथा टैंकों को नष्ट करने में इसका उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
हाइड्रोजन के समान परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या के लिए बोर के मान्यताओं को बताएं तथा किसी परमाणु की n वीं स्थाई कक्षा में घूमनेवाले इलेक्ट्रॉन की। कुल ऊर्जा का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
बोर के अनुसार, हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षा में एक इलेक्ट्रॉन घूमता है।
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माना कि इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान me एवं आवेश -e हैं। नाभिक पर धन आवेश का परिमाण +e है। यदि इलेक्ट्रॉन v वेग से त्रिज्या के वृत्ताकार. कक्षा में परिभ्रमण करता हो तो
अभिकेन्द्र बल = \(\frac{m_{e} v^{2}}{r}\) …(i)
नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के बीच क्रियाशील बल
आकर्षक बल = \(\frac{1}{4 \pi \in_{0}} \frac{e x e}{r^{2}}\)
\(=\frac{1}{4 \pi \in_{0}} \frac{e^{2}}{r^{2}}\) …(ii)
समी० (i) एवं (ii) से,
\(\frac{m_{e} v^{2}}{r}=\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0}}=\frac{e^{2}}{r^{2}}\)
∴ meν2 = \(\frac{e^{2}}{4 \pi \epsilon_{0} r}\) ….(iii)
बोर के सिद्धांत के अनुसार इलेक्ट्रॉन उन्हीं कक्षाओं में घूम सकता है जिसमें उसका कोणीय संवेग \(\frac{h}{2 \pi}\) का पूर्णांक गुणज हो
अर्थात् meνr = n\(\frac{h}{2 \pi}\) ….(iv)
जहाँ n = 1, 2, 3,……..
समी० (iv) को वर्ग करके समी० (iii) से भाग देने पर
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अतः कक्षा की त्रिज्या n2 का समानुपाती होता है।

हाइड्रोजन के परमाणु की कुल ऊर्जा इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा और परमाणु की स्थितिज ऊर्जा के योग के बराबर होता है।
इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा

Ek = \(\frac{1}{2}\) me ν2
समी० (iii) से,
Ek = \(\frac{1}{2}\left(\frac{e^{2}}{4 \pi \epsilon_{0} r}\right)\) ….(vi)
जब दो बिन्दु आवेश q1 एवं q2 एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित हों तो निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा
Ep = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0}}\left(\frac{q_{1} q_{2}}{r}\right)\)
अतः परमाणु की स्थितिज ऊर्जा
Ep = \(\frac{1}{4 \pi \epsilon_{0}} \frac{(+e)(-e)}{r}\)
∴ Ep = \(-\frac{e^{2}}{4 \pi \in_{0} r}\) …(vii)
अतः परमाणु की कुल ऊर्जा
E = Ek +Ep
∴ E = \(\frac{1}{2}\left(\frac{e^{2}}{4 \pi \epsilon_{0} r}\right)-\frac{e^{2}}{4 \pi \in_{0} r}\)
∴ E = \(-\frac{e^{2}}{8 \pi \epsilon_{0} r}\) …(viii)
समी० (v) एवं (viii) से,
E = \(-\frac{m_{e} e^{4}}{8 \epsilon_{0}^{2} n^{2} h^{2}}\) …(ix )
समी० (ix)n वें कक्षा में परिभ्रमण करने वाले इलेक्ट्रॉन के कुल ऊों का व्यंजक है।

प्रश्न 8.
रदरफोर्ड और बोर के अनुसार परमाणु का मॉडल किस प्रकार का है? बोर के परमाणु-मॉडल की खामियों का भी उल्लेख करें।
उत्तर:
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रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल-रदरफोर्ड ने परमाणु-मॉडल को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया-

  • परमाणु का कुल द्रव्यमान (इलेक्ट्रॉनों के द्रव्यमान को छोड़कर) तथा कुल धन आवेश परमाणु के केन्द्र पर 10-15m की कोटि की त्रिज्या के नाभिक में केंद्रित रहता है।
  • नाभिक के चारों ओर 10-10m की (e) कोटि की त्रिज्या के खोखले गोले में इलेक्ट्रॉन विभिन्न वृत्तीय कक्षाओं के घूमते रहते हैं।
  • वृत्तीय कक्षाओं में इलेक्ट्रॉनों को घूमने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल, इलेक्ट्रॉन . तथा नाभिक के बीच क्रियाशील स्थिर विद्युत आकर्षण बल द्वारा प्राप्त होता है।

बोर का परमाणु मॉडल:-
बोर ने रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में प्लॉक के क्वांटम सिद्धांत के सहायता से हाइड्रोजन-परमाणु के स्पेक्ट्रम की सफल व्याख्या करते हुए परमाण का एक नया मॉडल दिया जिसे बोर का परमाणु-मॉडल कहा जाता है जिसे निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है।

(i) परमाणु के केन्द्र पर धनावेशित नाभिक होता है जिसका आवेश Ze के बराबर होता है। जहाँ z परामणु संख्या एवं e इलेक्ट्रॉन के आवेश के परिमाण का धन आवेश है।

(ii) इलेक्ट्रॉन, नाभिक के चारों ओर वृत्तीय कक्षाओं में घूमता रहता है। इन कक्षाओं में घूमनेवाली इलेक्टॉन विकिरण नहीं उत्पन्न करते हैं। इन कक्षाओं को स्थायी कक्षाएं कहा जाता है।

(iii) किसी भी. स्थायी कक्षा के लिए इलेक्ट्रॉन और नाभिक के बीच क्रियाशील आकर्षक बल आवश्यक अभिकेन्द्र बल प्रदान करता है।

(iv) इलेक्ट्रॉन की सभी कक्षाएं संभव नहीं होती हैं। इलेक्ट्रॉन केवल उन्हीं कक्षाओं में घूम सकते हैं जिनमें उनका कोणीय संवेग h/2π का पूर्णांक गुणज होता है। जहाँ h प्लाँक का नियतांक है।

(v) जब परमाणु के किसी इलेक्ट्रॉन को बाह्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त होती है। वह अपनी स्थायी कक्षा को छोड़कर ऊँची स्थाई कक्षा में चला जाता है और जब एक इलेक्ट्रॉन किसी ऊंची स्थायी कक्षा से नीचे की स्थाई कक्षा में आता है तो ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। अर्थात् उत्सर्जित ऊर्जा इलेक्ट्रॉन की दोनों कक्षाओं से ऊर्जा के अंतर के बराबर होता है जो क्वांटम के फोटॉन के रूप में होता है।
अतः E2 – E1 = hυ

बोर सिद्धांत की खामियाँ-

  • यह सिद्धांत परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के वितरण का सफलतापूर्वक व्याख्या नहीं करता है।
  • इस सिद्धांत द्वारा किसी तत्व की विभिन्न स्पेक्ट्रमी रेखाओं की तीव्रता में अंतर होने का कारण नहीं समझा जा सकता है।
  • इस सिद्धांत के द्वारा स्पेक्ट्रमी रेखाओं की सूक्ष्म संरचना को नहीं समझा जा सकता है।
  • यह सिद्धांत केवल एक इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की ही व्याख्या कर सका। इसके द्वारा जटिल परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकी।

प्रश्न 9.
नाभिकीय रिऐक्टर की संरचना का व्याख्या करें।
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टर वह व्याख्या होता है जिसमें नाभिकीय विखंडन की नियंत्रित श्रृंखला प्रतिक्रिया के द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।

नाभिकीय रिऐक्टर के संरचना को निम्न भागों में बाँटा जाता है-
(i) ईंधन- यह रिऐक्टर का मुख्य भाग है। यही वह पदार्थ है जिसमें विखंडन किया जाता -235(U235) या प्लूटोनियम -239 (Pu239) का प्रयोग होता है।

(ii) मंदक (Moderator)- इसका कार्य न्यूट्रॉनों की गति को मंद करना है। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट इत्यादि का प्रयोग किया जाता है।

(iii) शीतलक (coolant)-विखंडन होने पर प्रचुर मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसको CO2 को रिऐक्टर में प्रवाहित किया जाता है। विखंडन में उत्पन्न ऊष्मा को भाप बनाकर इससे टरबाइन चलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है।

(iv) परिरक्षक (Shield)- नाभिकीय रिऐक्टर से नाभिकीय विखंडन के कारण कई प्रकार की तीव्र किरणें निकलती है जिनसे रिऐक्टर के समीप काम करने वाले को हानि हो सकती है। इन तीव्र किरणों से रक्षा करने के लिए रिऐक्टर के चारों तरफ कंकरीट की मोटी-मोटी दीवारें बना दी जाती है।

(v) नियंत्रक (Controller)- नाभिकीय रिऐक्टर में विखंडन की गति पर नियंत्रण करना आवश्यक है। इसके लिए कैडमियम की छड़े प्रयुक्त की जाती हैं। कैडमियम न्यूट्रॉनों का बहुत उत्तम अवशोषक होता है। नाभिकीय रिऐक्टर में इन छड़ों को रखकर आवश्यकतानुसार अंदर या बाहर खिसकाकर विखंडन की गति को कम अथवा अधिक किया जा सकता है।

नाभिकीय रिऐक्टर को चलाने के लिए किसी बाह्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है। रिऐक्टर में सदैव ही कुछ न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं। अतः रिऐक्टर को चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को रिऐक्टर से बाहर खींचना पड़ता है।

नाभिकीय रिऐक्टर के उपयोग-

  1. नाभिकीय रिऐक्टर द्वारा विद्युत शक्ति उत्पन्न की जाती है।
  2. इससे प्लूटोनियम का उत्पादन किया जाता है जो परमाणु बम बनाने में काम आता है।
  3. इसमें अनेक तत्वों के रेडियो-आइसोटोप बनाए जाते हैं जिनका उपयोग चिकित्सा, कृषि, जीवविज्ञान तथा वैज्ञानिक खोजों में किया जाता है।

प्रश्न 10.
ऊर्जा पट्टी के आधार चालक (धातु), अचालक एवं अर्द्ध चालक के बीच अन्तर स्पष्ट करें।-
उत्तर:
धातुयें प्रायः विद्युत के अच्छे चालक होते हैं अचालक के से विद्युत प्रवाहित नहीं होते . हैं। जबकि अर्द्ध-चालकों की चालकता चालक और अचालकों के मध्य होती है।

ठोसों में ऊर्जा पट्टी के आधार पर चालक (धातु), अचालक और अर्द्धचालकों के
ठोस अणु एवं परमाणुओं के एक बड़ा संग्रह होता है। किसी परमाणु के ऊर्जा तल में अन्य परमाणु की उपस्थिति में पुर्न संशोधित होती हैं और प्रत्येक परमाणु के वाह्य कक्षाओं के ऊर्जा तल, ऊर्जा पट्टी में बदल जाता है जिसमें लगभग समान ऊर्जा मान के असंख्य ऊर्जा तल होता है। ये ऊर्जा पट्टी चालन पट्टी (CB) या संयोगी पट्टी (VB) कहलाती है। जो निषिद्ध ऊर्जा क्षेत्र (Forbidden energy gap) द्वारा अलग होती है।
संयोजी पट्टी (VB) : संयोजी इलक्ट्रॉनों के ऊर्जा तलों से बनी ऊर्जा पट्टी संयोजी पट्टी (Valence band) कहलाती है।

OK ताप पर निम्न ऊर्जा तल से इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरना प्रारम्भ होता है। महत्तम ऊर्जा तल जो इलेक्ट्रॉन द्वारा संयोजी-पट्टी में OK ताप पर भरे जा सकते हैं। फर्मी तल (Fermi level) कहलाती है। निम्न ऊर्जा पट्टी जो इलेक्ट्रॉन से नहीं भरे होते हैं और संयोजी पट्टी के ठीक उपर होता है, चालन पट्टी (Conduction band) कहलाती है।

OK पर सभी निम्न ऊर्जा पट्टी की ऊर्जा तल के साथ-साथ फर्मी ऊर्जा तल electrons . से पूर्णतः भरे होते हैं। ताप बढ़ने के साथ ये इलेक्ट्रॉन ऊर्जा प्राप्त कर उत्तेजित होती है और ऊँच ऊर्जा तल में पहुँच जाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन ऊंच ऊर्जा तल में नाभीक से अधिक दूरी पर होते हैं और अधिक स्वतंत्र होते हैं। निशिद्ध ऊर्जा क्षेत्र (Eg) की चौड़ाई के आधार पर पदार्थों का आचारण चालक, अचालक या अर्द्ध चालकों के जैसा होती है। जिसकी व्याख्या निम्न रूप में की जाती है।

(a) चालक (धातुयें) : धातुओं (ठोसों) में ऊर्जा संरचना की निम्नलिखित दो संभावनायें हो सकती है-
(i) संयोजी पट्टी पूर्णतः इलेक्ट्रॉनों से भरी हो तथा चालन पट्टी (CB) आंशिक रूप से भरी हो तथा इनके बीच E, का मान भी बहुत कम हो जैसा कि चित्र (i) में उदाहरण के लिए Na जैसे धातुओं के वाह्यतम कक्षाओं में मात्र एक इलेक्ट्रॉन होती है जब भी इसमें 2 इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं अतः इनके conduction band आंशिक रूप से भरे होते हैं।
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(ii) संयोजी पट्टी पूर्णतः भरा एवं चालन पट्टी पूर्णतः खाली हो लेकिन पट्टी निर्माण के क्रम में ये दोनों आंशिक रूप से अच्छादित (overlap) होती है। इनके बीच कोई निषिद्ध क्षेत्र (Eg) नहीं होता है। जैसा कि चित्र (2) में दिखलाया गया है।
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जिंक (Zn) बाह्यतम कक्षा में मात्र दो इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं जो पूर्णतः इलेक्ट्रॉन से भरा है . लेकिन पट्टी-निर्माण के क्रम में इनके कुछ भाग एक-दूसरे पर आ जाते हैं।
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उपरोक्त दोनों स्थिति में CB में इलेक्ट्रॉन उपलब्ध रहते हैं। अत: निम्न विद्युत क्षेत्र आरोपित करने पर भी ये CB में घुमने के लिए उपलब्ध है और विद्युत के चालक हो जाते हैं।
(b) विद्युत रोधी ( अचालक) : विद्युत रोधी में निषिद्ध क्षेत्र (Eg) बहुत अधिक होते हैं। इस चौड़ाई को ऊष्मीय ऊर्जा द्वारा प्राप्त करना संभव नहीं है। जैसा B चित्र (3) में दिखलाया गया है।

उदाहरण के लिए डायमंड के लिए (Eg ≅ 6ev) होते हैं जिसका अर्थ होता है कि electron को VB से CB में जाने के लिए 6eV की ऊर्जा की आवश्यकता है।

(c) अर्द्धचालक : अर्द्ध चालकों की ऊर्जा पट्टी संरचना विद्युत रोधी के जैसा ही होता है अन्तर सिर्फ इतना होते हैं कि इनमें चालन पट्टी और संयोजी पट्टियों के बीच निषिद्ध क्षेत्र (Eg) की चौड़ाई कम होती है जिसे ऊष्मीय ऊर्जा द्वारा प्राप्त की जा सकती है। अतः ऐसे पदार्थ OK पर तो अचालक के होता है तथा कमरे के ताप पर कुछ electron चालन पट्टी CB में पहुच जाते हैं। जिससे इनकी चालकता कुछ हद तक बढ़ जाती है साथ ही ताप बढ़ने पर इनकी चालकता में वृद्धि होती है जब धातु में (चालकों) का ताप बढ़ने पर चालकता घटती है। उदाहरण के लिए Si (सिलिकॉन) के लिए Eg ≅ 1.1eV होता है जिसे ऊष्मीय ऊर्जा द्वारा आसानी से प्राप्त कर लिया जाता है। अतः इसे पदार्थों को अर्द्ध-चालक कहा जाता है।
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