Bihar Board Class 10 Disaster Management Solutions Chapter 1 प्राकृतिक आपदा : एक परिचय

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Disaster Management आपदा प्रबन्धन Chapter 1 प्राकृतिक आपदा : एक परिचय Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Disaster Management Solutions Chapter 1 प्राकृतिक आपदा : एक परिचय

Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा : एक परिचय Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इनमें से कौन प्राकृतिक आपदा नहीं है ?
(क) सुनामी
(ख) बाढ़
(ग) आतंकवाद
(घ) भूकंप.
उत्तर-
(ग) प्रश्न

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प्रश्न 2.
इनमें से कौन मानव जनित आपदा है ?
(क) सांप्रदायिक दंगे
(ख) आतंकवाद
(ग) महामारी
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(क) सांप्रदायिक दंगे

प्रश्न 3.
सुनामी का प्रमुख कारण क्या है ?
(क) समुद्र में भूकंप का आना
(ख) स्थलीय क्षेत्र पर भूकंप का आना
(ग) द्वीप पर भूकंप का आना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) समुद्र में भूकंप का आना

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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आपदा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
प्राकृतिक व्यवस्था में जब कारणों से अकारण व्यवधान उत्पन्न होते हैं जो वे ही व्यवधान आपदा कहे जाते हैं।

प्रश्न 2.
आपदा कितने प्रकार का होता है?
उत्तर-
प्रकृति पर पड़नेवाले किसी भी प्रकार के विपत्ती को आपदा कहते हैं। परन्तु मुख्य रूप से आपदा दो तरह की होती हैं-
(i) प्राकृतिक आपदा तथा
(ii) मानवजनित आपदा।।

(i) प्राकृतिक आपदा- इसमें बाढ़, सुखाड़, भूकंप और सुनामी को लिया जाता है जो अति विनाशकारी हैं। इसके अतिरिक्त चक्रवात, ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन जैसी घटनाएँ भी प्राकृतिक आपदा के ही अंग हैं।
(ii) मानव-जनित आपदा- इसमें मुख्य रूप से आतंकवाद और सांप्रदायिक दंगे को लिया जाता है। आतंकवाद एक देश दूसरे पर आतंकवाद का सहारा लेकर दबाव बनाता है।

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जैसे-पाकिस्तान आतंकवाद के पूरे विश्व पर दबाव बनाए हुए है। दूसरा है साम्प्रदायिक दंगा जिसमें जातिगत आधार, धर्मगत आधार आते हैं। जैसे-देश में बराबर हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं जिसमें देश तबाह होता है।

प्रश्न 3.
आपदा प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
आपदा अपने आप में एक ऐसा शब्द है जो प्राणी जगत को दहला देता है। वह जब आती है तो प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाता है। इसलिए इसका प्रबंधन आवश्यक है।
आपदा से न केवल विकास कार्य अवरुद्ध हाते हैं बल्कि विकास कार्यों में कई व्यवधान उपस्थित होते हैं। यद्यपि राष्ट्रीय स्तर तथा राज्य पर आपदा प्रबंधन की व्यवस्था की गई लेकिन इससे कुद त्रुटियाँ भी हैं।
उत्तर बिहार के लोग कोशी की विनाश को अंगीकार कर लिया है और सामूहिक सहयोग से इससे बचते रहे हैं। सुखाड़ के प्रबंधन हेतु भी सामूहिक सहयोग से कुएँ की खुदाई, तालाब की खुदाई कर इससे बचने के उपाय खोजते रहे हैं। भूकंप और सुनामी के लिए भी प्रबंधन की आवश्यकता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदा एवं मानवजनित आपदा में अंतर उपयुक्त उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करें।
उत्तर- आपदा अपने आप में एक भयंकर शब्द है जिसको बोलचाल की भाषा में ‘आफत’ कहते हैं। यह दो तरह के होते हैं।-() प्राकृति आपदा और (ii) मानव-जनित आपदा।

(i) प्राकृतिक आपदा- प्राकृतिक आपदा में बाढ़, सुखाड़, सुनामी, चक्रवात, ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन इत्यादि के नाम लिए जा सकते हैं। इसमें पृथ्वी की गति रुक जाती है। – प्राणी जगत असहाय हो जाती है। जैसे-उत्तर बिहार में कोशी की भयानक लीला देश को दहला दिया, सुनामी 2004 ई. में आकर भारत के पूर्वी तट तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में जो धन-जन की बर्बादी हुई जिसकी सही आकलन संभव नहीं है। चक्रवात, ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन तो भारत के पर्वतीय क्षेत्र में आते ही रहते हैं।

(ii) मानव-जनित आपदा- मानव-जनित आपदा मनुष्य द्वारा रचा जाता है। इसमें आतंक और सांप्रदायिकता का सहारा लिया जाता है और असंख्य धन-जन की हानि होती है तथा लोग मारे जाते हैं।

मानव-जनित आपदा में सांप्रदायिक दंगे, अक्सर हो जाया करते हैं। इसमें एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों में नफरत पैदा कर दंगा रूप देते हैं। जैसे-1984 ई. में भागलपुर का सांप्रदायिक दंगा विश्वप्रसिद्ध हो गया। इसमें देश की जो क्षति हुई कहा नहीं जा सकता। मानव-जनित आपदा में दूसरा नाम आतंकवाद का आता है जिसमें आतंकी अवैध हथियारों का प्रयोग कर धन-जन को हानि पहुंचाते हैं। जैसे-पाकिस्तान, आतंकवाद का सहारा लेकर भारत को तबाह किए हुए है। कश्मीर में घुसपैठ कराकर मुम्बई में हमला और 26/11 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमला आतंकवाद का ही उदाहरण है।

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प्रश्न 2.
आपदा प्रबंधन की संकल्पना को स्पष्ट करते हुए आपदा प्रबंधन की आवश्यकता अनिवार्यता का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आपदा कोई भी हो उसका प्रबंधन अनिवार्य है। आपदा से न केवल विकास कार्य अवरुद्ध होते हैं बल्कि विकास कार्यों में कई व्यवधान उपस्थित होते हैं। कोई भी प्रबंधन कार्य तब तक सफल नहीं हो सकता है जबतक उसमें आमलोगों की सहभागिता नहीं होती है। आमलोगों की सहभागिता तथा पंचायत की मदद से ठोस प्रशासनिक निर्णय लिए जा सकते हैं और निर्णय ही दीर्घकाल में प्रबंधन हेतु आवश्यक होते हैं। पूर्वानुमान या पूर्व जानकारी से अपने आसपास घटनेवाली किसी भी संभावित विनाश से बचा जा सकता है। – उत्तर बिहार के लोग कोशी की विनाशलीला से बचने के लिए आपसी सहयोग से बाढ़ के अनुरूप जीवन-शैली बना ली है। सुखाड़ के लिए आपसी सहयोग कुएँ को खुदाई, तालाब की खुदाई करके आपदा से बचा जा सकता है। भूकंप और सुनामी से बचने के लिए प्रबंध की आवश्यकता है जिसमें भूकंपनिरोधी भवन वृत्ताकार या बहुभुजीय आकृति के बदले आयताकार बनाये जाने चाहिए। देश में केन्द्रीय स्तर तथा राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए कार्य किए जा रहे हैं लेकिन इसमें अफसरशाही के चलते यह पूर्ण नहीं हो पा रहा है।

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प्रश्न 3.
बिहार में बाढ़ की स्थिति की व्याख्या करें। बिहार सरकार ने इसका सामना करने के लिए कौन-कौन से प्रबंधन किए हैं ?
उत्तर-
मौनसून की अनिश्चितता के कारण बिहार के किसी-न-किसी भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ का आगमन होता है। बिहार की कोसी बाढ़ की विभीषिका के लिए बदनाम है। उत्तरी बिहार के मैदान बाढ़ से अधिक प्रभावित हैं। उत्तरी बिहार में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में सारण, गोपालगंज, वैशाली, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, सहरसा, खगड़िया, दरभंगा, मधुबनी इत्यादि हैं। इन क्षेत्रों में मुख्यत: घाघरा, गंडक, कमला, बागमती और कोसी नदियों से बाढ़ आती हैं। उत्तरी बिहार की नदियों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने के प्रमुख कारण हिमालय तराई के क्षेत्र में अधिक वर्षा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार के कुल बाढ़-क्षेत्र का लगभग 64 लाख हेक्टेयर है।

बाढ़ वे प्राकृतिक आपदाएं हैं, जिनका संबंध वर्षा से है। जब मौनसूनी वर्षा अत्यधिक होती है, तो नदियों के जल-स्तर में उफान आता है और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। मौनसून की अनिश्चितता के कारण भारत के किसी-न-किसी भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ का आगमन होता है। कुछ . नदियाँ तो बाढ़ की विभीषिका के लिए बदनाम हो चुकी हैं, जैसे कोसी। हाल के वर्षों में बाढ़ की स्थिति मानवीय स्थिति से भी उत्पन्न होने लगी हैं। बाढ़ को रोकने के लिए बाँध और तटबंध बनाये गये हैं, लेकिन नदी का बढ़ता जलस्तर जब इन्हें तोड़ देता है तो अनेक ऐसे क्षेत्र भी जल प्लावित हो जाते हैं। 2008 ई. में भारत-नेपाल की सीमा पर कुसहा के पास तटबंध के टूटने से आई भयंकर बाढ़ है।

सुरक्षा-संबंधी उपाय

  • नदियों के किनारे तटबंध बनाना।
  • बांध का निर्माण किया गया है।
  • वनीकरण को प्रोत्साहित किया गया है।
  • जलाशय का निर्माण किया गया है।
  • सूचना-तंत्र को सुदृढ़ किया गया है आदि।

Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा : एक परिचय Notes

धन-जन की व्यापक हानि पहुंचानेवाली आकस्मिक दुर्घटना को प्राकृतिक आपदा कहते हैं। . यदि आपका प्रभाव दीर्घकालिक हो, तो उसे संकट कहते हैं।
आपदाएँ प्राकृतिक भी होती हैं और मानवीय क्रियाकलापों का परिणाम भी।

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आजोनपरत का क्षरण, भूमंडलीय तापन का प्रभाव विस्तृत क्षेत्र पर पड़ता है, परन्तु अन्य आपदाओं का प्रभाव स्थानीय स्तर पर होता है।
बाढ़, सूखा, भूकंप, सूनामी और ज्वालामुखी, अधिक विनाशक आपदाएं हैं, जबिक चक्रवात, ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन, वज्रपात, मेघ-स्पोट आदि कम विनाशकारी है।। भारत ज्वालामुखी के प्रकोप से प्रायः वंचित हैं।

कुछ प्रमुख प्राकृतिक संकट और आपदाएँ-भारत प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं का देश है। इसकी विपुल जनसंख्या और विस्तृत क्षेत्र किसी-न-किसी आपदा से ग्रस्त होता रहता है। कोई क्षेत्र एक आपदा के लिए संवेदनशील है तो कोई दूसरी आपदा के लिए और कोई कई आपदाओं से एक साथ ग्रस्त हो सकता है।

अधिक विनाशकारी आपदाएँ-बाढ़, सूखा (सूखाड़), भूकम्प, सुनामी।

कुछ कम विनाशकारी आपदाएँ-चक्रवात, ओलावृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन, वज्रपात, मेघ-स्फोट, ज्वालामुखी।

बाढ़-जब नदियों का जल उसके तटों से बाहर निकलकर विस्तृत क्षेत्र में फैलकर फसलों को डुबा दें, सड़कों पर पानी के जमाव से आवागमन अवरुद्ध हो जाए, बस्तियों में जल-जमाव से कठिनाई हो और जहाँ-तहाँ मकान भी गिरने लगे तो इस स्थिति को बाढ़ कहते हैं मुंबई जेसे नगरों में तो लगातार तेज वर्षा से ही बाढ़ आ जाती है, अर्थात नदी के जल के अतिरिक्त भी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उत्तर का पूर्वी भाग सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है।

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सूखा (सुखाड़)-50 सेमी. से कम वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र तो स्वभावतः सूखे की स्थिति में होते हैं। परंतु, क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 25 प्रतिशत से भी कम हो तथा प्रायः 30 प्रतिशत फसलें सिंचाई के अभाव में सूखने लगे तो वहाँ सुखा की स्थिति मानी जाती है।

भूकम्प-पृथ्वी के भीतर भूगर्भीय हलचल के कारण जब समुद्र में कंपन उत्पन्न होता है तो इसे भूकंप कहते हैं। 1934 में बिहार में आई विनाशकारी भूकंप से धरती फट गई थी और सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई थी।

सुनामी-भूगर्भीय हलचल के कारण जब समुद्री लहरें तेजी से तटों के पास के भूभाग पर फैलकर जानमाल को हानि पहुंचाती हैं, तो इसे सुनामी कहते हैं, भारत का पूर्वी तट सुनामी से प्रभावित होता है, परंतु पश्चिमी तट प्रायः सुरक्षित है। सागर तट से दूर होने के कारण बिहार भी सुनामी के प्रकोप से बचा हुआ है।

चक्रवात-अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में प्रतिवर्ष चक्रवात आते हैं। मई-जून तथा अक्टूबर-नवंबर में अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी दोनों ओर से चक्रवात उठते हैं, परंतु बंगाल की खाड़ी का अक्टूबर-नवंबर का चक्रवात भयानक होता है। इससे झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग तो प्रभावित होते ही हैं, साथ-साथ पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे तटीय राज्यों में तूफान महोमि (storm surge) भी आते हैं जिनसे धन-जन की अत्यधिक हानि होती है, पेड़ और मकान ध्वस्त हो जाते हैं।

ओलावृष्टि-कभी-कभी वर्षा के समय पानी से अधिक बर्फ के टुकड़ों की बौछार होने लगती है। ओलावृष्टि तो कभी हो जाती है, परंतु खड़ी फसलों के समय की ओलावृष्टि से फसलों की इतनी बरबादी होती है कि किसानों की कमर ही टूट जाती है। सब्जियों और अनाज की फसल नष्ट होने से कभी-कभी उन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।

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हिमस्खलन-हिमालय की तराई के राज्य जम्मू-कश्मीर, हिमालय प्रदेश और उत्तराखंड में भारी वर्षा या बर्फबारी से बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें खिसककर नीचे गिरने लगती है इससे सीमित क्षेत्र में लोगों के दबने, भवनों के गिरने तथा सड़क मागों के अवरुद्ध हो जाने से कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इन तीन राज्यों में हिमस्खलन प्रायः सामान्य घटना है।

भूस्खलन-हिमस्खलन की भांति ही तराई ढालों पर प्रायः बहुत अधिक मिट्टी खिसककर नीचे गिरकर हानि पहुंचाती है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड उत्तर प्रदेश और बिहार के तराई के भाग, सिक्किम, दार्जिलिंग और अरुणाचल प्रदेश इससे प्रभावित होते हैं। इसमें भी जान-माल की हानि के साथ सड़कों के अवरुद्ध हो जाने से आवागमन में कठिनाई सम्पन्न हो जाती है।

वज्रपात-वर्षा के समय जब बादलों में अधिक हलचल होती है, तो प्रायः बिजली गिरती है, मकान टूट जाते हैं, पेड़ों की डालियाँ भी टूट जाती हैं। प्रायः सूखे स्थानों पर पशु या मनुष्य भी उसके शिकार हो जाते हैं।

मेघ-स्फोट-पहाड़ी स्थानों पर कभी-कभी अकस्मात कम समय में ही इतनी अधिक वर्षा हो जाती है कि उन स्थानों पर बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो जाता है। इससे भूस्खलन भी होने की संभावना हो जाती है।

ज्वालामुखी-पृथ्वी के भीतर से कहीं-कही भारी मात्रा में पिछली चयनों और गैसें निकलने लगती हैं, वस्तुत: कुछ ज्वालामुखी विस्फोट तो अत्यंत भयानक होते हैं, परंतु भारत में अंडमान के पूरब की ओर के एक टापू पर ही ज्वालामुखी का प्रकोप है, देश के शेष भाग इस विपदा से प्रायः सुरक्षित हैं।