Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Bihar Board Class 11 History आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Questions and Answers

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मेजी पुर्नस्थापना से पहले की वे अहम घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को सम्भव किया?
उत्तर:
मेजी पुर्नस्थापना 1867-68 में हुई। इससे पहले की निम्नलिखित मुख्य घटनाओं ने जापान के तीव्र .आधुनिकीकरण को सम्भव बनाया-

(i) किसानों से शस्त्र ले लिए गए। अब केवल समुराई ही तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में प्रायः लड़ाइयाँ होती रहती थीं। शान्ति एवं व्यवस्था को आधुनिकीकरण का मूल आधार माना जाता है।

(ii) दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानी में रहने के आदेश दिए गए। उन्हें काफी हद तक स्वायत्तता भी प्रदान की गई।

(iii) मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए भूमि का सर्वेक्षण किया गया और भूमि का वर्गीकरण उत्पादकता के आधार पर किया गया। इसका उद्देश्य राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

(iv) दैम्यों की राजधानियों का आकार लगातार बढ़ने लगा। अतः 17 वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो (आधुनिक तोक्यों) संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया। इसके अतिरिक्त ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे दुर्गों वाले कम-से-कम छः शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। इसकी तुलना में उस समय के अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक ही बड़ा शहर था। बड़े शहरों के परिणमस्वरूप जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त एवं ऋण की प्रणालियाँ स्थपित हुई।

(v) व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।

(vi) शहरों में जीवंत संस्कृति कर प्रसार होने लगा। बढ़ते हुए व्यापारी वर्ग ने नाटकों और कलाओं को संरक्षण प्रदान किया।

(vii) लोगों की पढ़ने में रुचि ने होनहार लेखकों को अपने लेखन द्वारा अपनी जीविका चलाने में सहायता पहुँचाई। कहते हैं कि एदो में लोग नूडल की कटोरी के मूल्य पर पुस्तक किराये पर ले सकते थे। इससे पता चलता है कि पुस्तकें पढ़ना अत्यधिक लोकप्रिय था और पुस्तकों की छपाई भी व्यापक स्तर पर होती थी।

(viii) मूल्यवान धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी गई।

(ix) रेशम के आयात पर रोक लगाने के लिए क्योतो में निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए पग उठाये गए। कुछ ही वर्षों में निशिजिन का रेशम विश्वभर में सबसे अच्छा रेशम माना जाने लगा।

(x) मुद्रा के बढ़ते हुए प्रयोग और चावल के शेयर बाजार के निर्माण से भी जापानी अर्थतंत्र का विकास नयी दिशाओं में हुआ।

प्रश्न 2.
जापान के एक आधुनिक समाज में रूपान्तरण की झलक दैनिक जीवन में कैसे दिखाई दी?
अथवा
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जापान में पहले पैतृक परिवार व्यवस्था प्रचलित थी, जिसमें कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियन्त्रण में रहती थी। परन्तु जैसे-जैसे लोग समृद्ध हुए पृथक परिवार प्रणाली अथवा नयी घर व्यवस्था अस्तित्व में आई । इसमें पति-पत्नी साथ रहकर कमाते थे और घर बसाते थे। बिजली से चलने वाले नए घरेलू उत्पादों तथा नए परिवारिक मनोरंजनों की मांग भी बढ़ने लगी।

प्रश्न 3.
पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग (क्विंग) राजवंश ने किया?
उत्तर:
चीन का छींग राजवंश पश्चिमी शक्तियों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना करने। में असफल रहा। (1839-42) में ब्रिटेन के साथ हुए पहले अफीम युद्ध ने इसे कमजोर बना दिया। देश में सुधारों एवं परिवर्तन की मांग उठने लगी । राजवंश इसमें भी असफल रहा और देश गृहयुद्ध की लपेट में आ गया।

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प्रश्न 4.
सन-यात-सेन के तीन सिद्धान्त थे ?
उत्तर:
सनयात सेन के तीन सिद्धान्त (सन मिन चुई) निम्नलिखित थे-

  • राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू राजवंश को सत्ता से हटाना, क्योंकि उसे विदेशी राजवंश माना जाता था।
  • गणतन्त्र-देश में गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।
  • समाजवाद-पुंजी का नियमन करना तथा भूमि के स्वामित्व में बराबरी लाना।।

प्रश्न 5.
क्या पड़ोसियों के साथ जापान कि युद्ध और पर्यावरण का विनाश तीव्र औधोगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?
उत्तर:
यह बात सत्य है कि जापान के तीव्र औद्योगीकरण के कारण ही जापान ने पर्यावरण के विनाश तथा युद्ध को जन्म दिया।

  • उद्योगों के अनियन्त्रित विकास से लकड़ी तथा अन्य संसाधनों की मांग बढ़ी। इसका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • कच्चा माल प्राप्त करने तथा तैयार माल की खपत के लिए जापान को उपनिवेशों की आवश्यकता पड़ी। इसके कारण जापान को पड़ोसियों के साथ युद्ध करने पड़े।

प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि माओ-त्से-तुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की नींब डालने में सफलता प्राप्त की?
उत्तर:
इसमें कोई सन्देह नहीं कि माओ-त्से-तुंग अथवा माओजेदांग और उसके साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की नींव डालने में सफलता प्राप्त की। यह बात नीचे दिए गए घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाएगी.

सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिनतांग की गतिविधियाँ – 1925 में सनयाप्त सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिंतांग का नेतृत्व च्यांग-काई-शेक के हाथों में आ गया। इससे पूर्व 1927 में चीन में साम्यवादी दल की स्थापना हुई थी। यद्यपि उसने कोमिंतांग के शासन को सुदृढ़ बनाया, ”तो भी उसने, सनयात सेन के तीन क्रान्तिकारी उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम न. उठाया। इसके विपरीत उसने कोमिंतांग में अपने विरोधियों तथा साम्यवादियों को कुचलने की नीति अपनाई। उसे सोवियत संघ का समर्थन भी प्राप्त था। इसके अतिरिक्त उसने जमींदारों के एक नये वर्ग को उभारने का प्रयास किया जो किसानों का शोषण करते थे। इसी बीच माओ-जेदांग नामक साम्यवादी नेता ने किसान आन्दोलन को मजबूत बनाने के लिए लाल सेना का निर्माण किया।

माओ जेदांग का उत्कर्ष – 1930 में माओ जेदांग किसानों तथा मजदूरों की सभा का सभापति बन गया और भूमिगत होकर काम करने लगा। उसके सिर पर 25 लाख डालर का इनाम था। उसने नए सिरे से लाल सेना का संगठन किया और च्यांग-काई-शेक की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरम्भ कर दिया। उसने च्यांग की सेना को चार बार भारी पराजय दी। परन्तु पाँचवें आक्रमण में उस पर इतना दबाव पड़ा कि उसने ‘महाप्रस्थान’ (Long March) की योजना बनाई और उसे कार्यान्वित किया। लाल सेना के इस प्रस्थान की गणना विश्व की अद्भुत घटनाओं में की जाती है। इस यात्रा में लगभग एक लाख साम्यवादियों ने भाग लिया। उन्होंने 268 दिनों में 6000 मील की दूरी तय की और देश के उत्तरी प्रान्तों शेंसी तथा कांसू (Shensi and Kansu) पहुँचे। यहाँ तक पहुँचने वालों की संख्या केवल 20,000 ही थी।

1935 में मांओ ने जापानियों के विरुद्ध साम्यवादी मोर्चा खड़ा किया। उसने अनुभव किया कि जापान के विरुद्ध संघर्ष उसे लोकप्रिय बना देगा और उसके जन-आन्दोलन को भी अधिक प्रभावशील बनाएगा। उसने यह भी. सुझाव दिया कि कोमिंतांग लाल सेना के साथ मिल कर कार्य करे और संयुक्त मोर्चे की स्थापना की जाए, परन्तु च्यांग ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस बात से च्यांग की प्रतिष्ठा को इतना अधिक आघात पहुँचा कि उसके अपने ही सैनिकों ने उसे बन्दी बना लिया। माओ ने तब तक जापान के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा, जब तक उसे सफलता नहीं मिली।

च्यांग के विरुद्ध संघर्ष-च्यांग माओ की बढ़ती हुई शक्ति से बहुत चिन्तित था। वह उसके साथ मिलकर काम नहीं करना चाहता था। बहुत कठिनाई के बाद वह जापान के विरुद्ध माओ का साथ देने के लिए तैयार हुआ। जब युद्ध समाप्त हुआ तो माओ ने च्यांग के सामने मिली-जुली सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा। परन्तु च्यांग ने इसे स्वीकार नहीं किया। माओ ने अपना संघर्ष जारी रखा। 1949 में च्यांग को चीन से भाग कर फारमोसा (वर्तमान ताइवान) में शरण लेनी पड़ी। माओ जेदांग को चीन की सरकार का अध्यक्ष (Chairman) चुना गया। अपनी मृत्यु तक वह इसी पद पर बना रहा।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अफीम युद्धों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अफीम युद्ध चीन में अफीम के ‘अवैध व्यापार के कारण हुए। अंग्रेज व्यापारी भारी . मात्रा में चीन अफीम ले जाते थे। इस प्रकार चीनी लोग पूरी तरह अफीम खाने के आदी हो गए, जिससे उनका शारीरिक और नैतिक पतन हुआ। इस व्यापार के कारण ही चीन को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ना पड़ा।’

प्रश्न 2.
चीन में बॉक्सर विद्रोह कब हुआ? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
चीन में बॉक्सर विद्रोह 1889-90 ई. में हुआ। इस विद्रोह को अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जापानी, जर्मन तथा अमेरिकी सेनाओं ने मिलकर दबाया। इस विद्रोह के कारण चीन विभाजित होने से बच गया।

प्रश्न 3.
चीन में गणराज्य की स्थापना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1911 में मंचू शासन के पतन के बाद गणराज्य की स्थापना हुई। इसकी घोषणा 1 जनवरी, 1912 ई. को की गई।
नानकिंग को इसकी राजधानी बनाया गया। डॉ. सनयात सेन इस गणराज्य के राष्ट्रपति बने।

प्रश्न 4.
चीन में आगे की ओर बड़ी छलांग (Great Leap Forward 1958-59) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आगे की ओर बड़ी छलांग से अभिप्राय चीन द्वारा आश्चर्यजनक उन्नति करने का प्रस्ताव था। परन्तु चीनी नेता इसमें विफल रहे। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  • चीन में कम्यूनों की स्थापना की गई और लोगों को इसमें शामिल होने के लिए बाध्य किया गया।
  • कृषि उत्पादन में गिरावट आई।
  • मूल्यवान् साधन बर्बाद किए गए। इन सबके परिणामस्वरूप 1960-62 के दौरान देश में गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया। आगे की ओर छलांग चीन को आगे ले जाने की बजाय पीछे ले गई।

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प्रश्न 5.
चीन की सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति क्या थी?
उत्तर:
सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति (Cultural Revolution) चीन में आरम्भ की गई। चीन आर्थिक क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाने में विफल रहा था। चीन के नेता यह दिखाना चाहते थे कि विफलता के लिए माओ-जेडांग तथा अन्य नेता जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि अन्य लोग जिम्मेदार थे। अतः क्रान्ति के नाम पर मनमाने ढंग से निर्दोष व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें बन्दी बनाया गया। परणिामस्वरूप पूरे देश में अव्यवस्था फैल गई और सारी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई।

प्रश्न 6.
चीन में प्रचलित कंफ्यूशियसवाद की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
कंफ्यूशियसवाद की विचारधारा कंफ्यूशियस (551-479 ई.पू.) और इनके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई थी। इसका सम्बन्ध अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी तथा उचित सामाजिक सम्बन्धों से था। इस विचारधारा ने सामाजिक मानक स्थापित किए और चीनी राजनीतिक सोंच तथा संगठनों को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 7.
1905 ई. में चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली को समाप्त क्यों कर दिया गया?
उत्तर:
चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली में केवल साहित्यिक कौशल की ही माँग होती है। यह क्लासिक चीनी सीखने की कला पर ही आधारित थी, जिसकी आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता नजर नहीं आती थी। दूसरे, यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में भी बाधक थी। इसलिए 1905 ई. में इस परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 8.
चियांग काइ शेक कौन थे? उन्होंने महिलाओं को कौन-से चार सद्गुण अपनाने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
चियांग काइ शेक (1887-1975) कुओमीनतांग के नेता थे। वह सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग के नेता बने। उन्होंने महिलाओं को ये चार सद्गुण अपनाने के लिए प्रेरित किया-सतीत्व, रंगरूप, वाणी और काम।

प्रश्न 9.
चीनी गणराज्य में महिला मजदूरों (शहरी) की क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:

  • महिला मजदूरों को बहुत कम वेतन मिलता था।
  • काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे।
  • काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थीं।

प्रश्न 10.
देश (चीन) को एकीकृत करने के प्रयासों के बावजूद कुओमीनतांग असफल रहा। क्यों?
उत्तर:

  • कुओमीनतांग का सामाजिक आधार संकीर्ण था और राजनीतिक दृष्टिकोण सीमित था।
  • सनयात सेन के कार्यक्रम में शामिल पूंजी के नियमन और भूमि-अधिकारों में समानता को लागू न किया जा सका।
  • पार्टी ने किसानों की अनदेशी की और लोगों की समस्याओं की ओर कोई ध्यान न दिया।

प्रश्न 11.
1945-49 के दौरान ग्राणीम चीन में कौन-से दो मुख्य संकट थे?
उत्तर:

  • पर्यावरण सम्बन्धी संकट-इसमें बंजर भूमि, वनों का विनाश तथा बाढ़ शामिल थे।
  • सामाजिक आर्थिक संकट-यह संकट विनाशकारी भूमि-प्रथा, ऋण, प्राचीन प्रौद्योगिकी तथा निम्न स्तरीय संचार के कारण था।

प्रश्न 12.
1930 ई. में माओत्सेतुंग ने किस बात का सर्वेक्षण किया? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
1930 ई. में माओत्सेतुंग ने जुनवू में एक सर्वेक्षण किया। इसमें नमक तथा सोयाबीन जैसी दैनिक उपयोग की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक मजबूतियों, धार्मिक संगठनों की मजबूतियों, दस्तकारों, लोहारों तथा वेश्याओं आदि का सर्वेक्षण किया। इसका उद्देश्य शोषण के स्तर की जानकारी प्राप्त करना था।

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प्रश्न 13.
लाँग मार्च (1934-35) क्या था? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
लाँग मार्च चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की शांग्सी तक 6000 मील की एक कठिन यात्रा थी। इस यात्रा के बाद येनान पार्टी का नया अड्डा बन गया। यहाँ माओत्सेतुंग ने वारलॉर्डिज्म को आगे बढ़ाया। इसमें उन्हें मजबूत सामाजिक आधार मिला।

प्रश्न 14.
चीन के लिए 4 मई का आन्दोलन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर:
4 मई का आन्दोलन 1919 में पीकिंग में हुआ। इस आन्दोलन में छात्रों की सक्रिय भूमिका थी। इसके परिणामस्वरूप चीन में साम्यवादी दल की स्थापना का मार्ग खुला और चीन के छात्रों और श्रमिकों में जागृति की भावनाएँ उत्पन्न हुईं।

प्रश्न 15.
कुओमितांग दल की स्थापना के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन ने 1919 में तुंग-हुई तथा कई अन्य दलों को मिलाकर चीन में एक राष्ट्रीय दल की स्थापना की। यह दल कुओमिनतांग दल के नाम से जाना गया। इसी दल ने 1920 में दक्षिणी चीन में कैन्टन सरकार की स्थापना थी।

प्रश्न 16.
1911 की चीनी क्रान्ति के दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • मन्चू सरकार अप्रिय हो रही थी और जनता का रोष उसके प्रति बढ़ रहा था।
  • मन्चू सरकार की रेल नीति 1911 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बनी। रेल नीति को केन्द्र के अधीन करने से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं और अन्ततः इसी ने 1911 की क्रान्ति को भड़काया।

प्रश्न 17.
1911 की चीनी क्रान्ति के दो परिणाम बताएँ।
उत्तर:

  • 1911 की चीनी क्रान्ति के परिणामस्वरूप चीन में मंचू राजवंश का शासन समाप्त हो गया।
  • चीन की जनता को नवीन संविधान प्राप्त हुआ और चीनी गणतन्त्र की स्थापना हुई।

प्रश्न 18.
1949 की चीनी क्रान्ति के क्या कारण थे?
उत्तर:

  • साम्यवादियों ने जेंसी में साम्यवादी शासन का गठन कर लिया था। यह समाजवादी राज्य पूरे चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना करना चाहता था।
  • चीन में गृह-युद्ध छिड़ गया। परन्तु साम्यवादी और राष्ट्रीय सरकार किसी साँझे संविधान पर राजी न हुए।

प्रश्न 19.
चीन में साम्यवादी राज्य का आरम्भ कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर, 1949 में साम्यवादियों ने राष्ट्रीय सरकार की राजधानी कैन्टन पर अधिकार कर लिया। च्यांग-काई-शेक भागकर फारमूसा चला गया। पहली अक्टूबर, 1949 को साम्यवादियों ने चीन की राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की और पीकिंग को चीन की राजधानी बना दिया।

प्रश्न 20.
कमोडोर पैरी की जापान यात्रा के बारे में दो तथ्य लिखो।
उत्तर:

  • पैरी मिशन 1854 में अमेरिका के राष्ट्रपति फिलमोर ने जापान भेजा था। उसका काम अमेरिका की सरकार का सन्देश जापार की सरकार तक पहुँचाना था।
  • वह युद्ध करके भी जापान से अपना उद्देश्य पूरा कर सकता था।

प्रश्न 21.
कमोडोर पैरी के दो मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  • यदि कोई अमेरिकन जहाज जापान के समुद्र तट पर टूट जाए, तो उसके नाविकों और यात्रियों को जापान मे आश्रय दिया जाए।
  • अमेरिकन जहाजों को यह अनुमति हो कि वे जापान के बन्दरगाहों से कोयला, जल खाद्य सामग्री आदि ले सकें।

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प्रश्न 22.
कंगावा की सन्धि किन दो देशों बीच हुई ? इसकी दो शर्ते कौन-सी थीं?
उत्तर:
कंगावा की सन्धि जापान और अमेरिका में होने वाली पहली सन्धि थी। दो शर्ते-

  • विदेशी जहाजों को जापान के कुछ बन्दरगाहों से कोयला भरने तथा खाद्यान एवं जल लेने का अधिकार होगा।
  • अमेरिका के किसी जहाज के टूटने पर उसके नाविकों और यात्रियों के साथ परम मित्रता का व्यवहार किया जाएगा।

प्रश्न 23.
पश्चिमी देशों से सन्धियाँ करने से जापान पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • पश्चिमी देशों के सम्पर्क में आकर जापान ने उनके ज्ञान को अपनाया और पचास वर्षों के भीतर ही उनके समान सबल हो गया।
  • विदेशी सम्पर्क के कारण गोकुगावा वंश के शोगुनों का प्रभाव समाप्त हुआ और देश में जापानी सम्राट ने फिर से शक्ति पकड़ ली।

प्रश्न 24.
जापान में मेजियों की पुर्नस्थापना के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
1867-1868 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश के शासन को समाप्त कर दिया गया। मेन्जियों की पुर्नस्थापना के पीछे कई कारण थे-

  • देश में विभिन्न क्षेत्रों में असन्तोष व्याप्त था।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा कूटनीतिक सम्बन्धों की मांग की जा रही थी।

प्रश्न 25.
मेजी युग में जापान ने कृषि क्षेत्र में क्या प्रगति की?
उत्तर:

  • कृषक कृषि करने वाली भूमि के स्वामी बन गए।
  • जापान ने पश्चिमी देशों से कृषि विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त की और कृषि क्रान्ति के बीज बोए।

प्रश्न 26.
मेजी युग के दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखें।
उत्तर:

  • जापान में संयुक्त राज्य अमेरिका की पद्धति पर एक राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की गई। इस बैंक को नोट छापने का अधिकार दिया गया।
  • जापान में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। छः साल के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।

प्रश्न 27.
रूस-जापान युद्ध की दो विशेष बातें बताएँ।
उत्तर:

  • रूस-जापान युद्ध 1904-05 में हुआ था।
  • इसमें छोटे से देश जापान ने रूस को पराजित किया।

प्रश्न 28.
‘सर्वहारा की तानाशाही’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘सर्वहारा की तानाशाही’ की अवधारणा कार्ल मार्क्स की देन है। इसमें इस बात पर बल दिया गया था कि धनी वर्ग की दमनकारी सरकार का स्थान श्रमिक वर्ग की क्रान्तिकारी सरकार लेगी। यह लोकतन्त्र वर्तमान अर्थ में अधिनायकतन्त्र नहीं होगा।

प्रश्न 29.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना कब हुई? यह सरकार रूस की सात्यवादी सरकार से किस प्रकार भिन्न थी?
उत्तर:
‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना 1949 में हुई। यह नये लोकतन्त्र को सिद्धान्तों पर आधारित थी, जो सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। इसके विपरित सरकार साम्यवादी सरकार का आधार ‘सर्वहारा की तानाशाही’ था।

प्रश्न 30.
चीन के पीपुल्स कम्यूंस क्या थे?
उत्तर:
पीपुल्स कम्यूंस चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में आरम्भ किए गए। इनमें लोग सामूहिक रूप से भूमि के स्वामी होते थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे। 1954 तक देश में 26,000 ऐसे समुदाय थे।

प्रश्न 31.
सांस्कृतिक क्रान्ति का चीन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • सांस्कृतिक क्रान्ति से देश में अव्यवस्था फैल गई जिससे पार्टी कमजोर हुई।
  • अर्थव्यवस्था तथा शिक्षा के प्रसार में भी बाधा पड़ी।

प्रश्न 32.
1976 में चीन में आधुनिकीकरण के लिए किस चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की गई?
उत्तर:
इस चार सूत्री लक्ष्य में ये चार बातें शामिल थीं-विज्ञान, उद्योग, कृषि तथा रक्षा का। विकास।

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प्रश्न 33.
चीन में 4 मई के आन्दोलन की 70वीं वर्षगांठ (1989 में) पर घठित घटना की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:

  • इस अवसर पर अनेक बुद्धिजीवियों ने अधिक खुलेपन की माँग की और कड़े सिद्धान्तों को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई।
  • बीजिंग के तियानमेन चौक पर लोकतन्त्र की मांग करने वाले छात्रों के प्रदर्शन का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया।

प्रश्न 34.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आज ताइवान की क्या स्थिति है?
उत्तर:
आज राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में ही हैं। परन्तु वे ताइवान में अपने दूतावास स्थापित नहीं कर सकते और न ही. वहाँ की सरकार के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि ताइवान को आज भी चीन का अंग माना जाता है।

प्रश्न 35.
चीन के साम्यवादी दल और उसके समर्थकों ने परम्परा को समाप्त करने का प्रयास क्यों किया?
उत्तर:
चीन के साम्यवादी दल तथा उसके समर्थकों ने निम्नलिखित कारणों से परम्परा को समाप्त करने का प्रयास किया-

  • उनका विचार था कि परम्परा लोगों को गरीबी में जकड़े हुए है।
  • उनका मानना था कि परम्परा महिलाओं को उनकी स्वतन्त्रता से वंचित रखती है और देश के विकास में बाधा डालती है।

प्रश्न 36.
19वीं शताब्दी के आरम्भ में चीन और जापान की राजनीतिक स्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के आरम्भ में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था। वहाँ छींग राजवंश की सत्ता बहुत ही सुरक्षित जान पड़ती थी। दूसरी ओर जापान एक छोटा-सा देश था, जो अलग-अलग जान पड़ता था।

प्रश्न 37.
चीन और जापान के भौतिक भूगोल में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  • चीन एक विशाल महाद्वीपीय देश है। इसमें कई तरह के जलवायु क्षेत्र हैं। इसके विपरीत जापान एक द्वीप श्रृंखला है। इसमें चार मुख्य द्वीप हैं। होश, क्यूश, शिकोक तथा होकाइदो।
  • चीन भूकम्प क्षेत्र में नहीं आता, जबकि जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में आता है।

प्रश्न 38.
चीन के प्रमुख जातीय समूह तथा प्रमुख भाषा का नाम बताएँ। यहाँ की अन्य राष्ट्रीयताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
चीन का प्रमुख जातीय समूह ‘हान’ तथा प्रमुख भाषा चीनी (पुतोंगहुआ) है। यहाँ की अन्य राष्ट्रीयताएँ हैं-उइघुर, हुई, मांचू तथा तिब्बती।

प्रश्न 39.
जापान की जनसंख्या में कौन-कौन लोग शामिल हैं?
उत्तर:
जापान की अधिकतर जनसंख्या जापानी है। इसके अतिरिक्त यहाँ कुछ आयनू अल्पसंख्यक तथा कुछ कोरिया के लोग भी रहते हैं। कोरिया के लोगों को यहाँ उस समय मजदूर के रूप में लाया गया था जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।

प्रश्न 40.
जापान के लोगों के भोजन.की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
जापान के लोगों का मुख्य भोजन चावल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ कच्ची मछली साशिमी या सूशी बहुत ही लोकप्रिय है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

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प्रश्न 41.
16वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में जापान में भविश्य के राजनीतिक विकास की भूमिका तैयार करने में किन परिवर्तनों का योगदान था?
उत्तर:

  • किसानों से शस्त्र ले लिए गए। अब केवल समुराई ही तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही।
  • दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानी में रहने के आदेश दिए गए। उन्हें काफी सीमा तक स्वायत्तता प्रदान की गई।
  • मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए भूमि का सर्वेक्षण किया गया और भूमि का वर्गीकरण उत्पादकता के आधार पर किया गया। इसका उद्देश्य राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

प्रश्न 42.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में होने वाले नगरों के विस्तार की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  • 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का एदो नगर संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया।
  • ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे।
  • दुर्गों वाले कम-से-कम 6 शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। इसकी तुलना में अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक-एक ही बड़ा शहर था।

प्रश्न 43.
जापानी लोग (16वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में) छपाई कैसे करते थे?
उत्तर:
जापानी लोगों को यूरोपीय छपाई पसन्द नहीं थी। वे लकड़ी के ब्लाकों से छपाई करते थे। पुस्तकों की लोकप्रियता से पता. चलता है कि पुस्तकों की छपाई व्यापक स्तर पर की जाती थी।

प्रश्न 44.
16वीं तथा 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश क्यों समझा जाता था?
उत्तर:
जापान चीन से रेशम जैसी विलास की वस्तुएँ तथा भारत से कपड़े का आयात करता था। जापान इसका मूल्य सोने में चुकाता था। इसी कारण जापान को एक धनी देश समझा जाता था।

प्रश्न 45.
जापान द्वारा अपने आयातों का मूल्य सोने में चुकाने से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े बोझ को कम करने के लिए उठाए गए कोई दो पग बताइए।
उत्तर:

  • बहुमूल्य धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी गई।
  • निशिजिन (क्योतो) में रेशम उद्योग का विकास किया गया, ताकि रेशम का आयात न करना पड़े। शीघ्र ही यह उद्योग संसार का सबसे बड़ा उद्योग बन गया।

प्रश्न 46.
कॉमोडोर पेरी (अमेरिका) जापान कब आया? उसके प्रयत्नों से अमेरिका तथा जापान के बीच हुई सन्धि की कोई दो शर्ते बताएँ।
उत्तर:
कॉमोडोर पेरी 1853 ई. में जापान आया। उसके प्रयत्नों से अमेरिका तथा जापान के बीच हुई सन्धि के अनुसार-

  • जापान के दो बन्दरगाह अमेरिकी जहाजों के लिए खोल दिए गए।
  • अमेरिका को जापान में थोड़ा-बहुत व्यापार करने की छूट भी मिल गई। इस घटन को ‘जापान का खुलना’ भी कहते हैं।

प्रश्न 47.
निशिजिन (क्योतो) में रेशम उद्योग के विकास के कोई तीन पहलू बताइए :
उत्तर:

  • 1713 से यहाँ केवल देशी रेशमी धागा प्रयोग किया जाने लगा, जिससे इस उद्योग को और अधिक प्रोत्साहन मिला।
  • निशिजिन में केवल विशिष्ट प्रकार के महंगे उत्पाद बनार जाते थे।
  • 1859 ई. में देश का व्यापार आरम्भ होने पर रेशम जापान की अर्थव्यवस्था व लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया।

प्रश्न 48.
मेजी पुर्नस्थापना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1867-68 ई. में जापान में शोगुन (तोकुगोवा वंश का) शासन समाप्त कर दिए गया और उसके स्थान पर नये अधिकारी तथा सलाहकार सामने आये। ये लोग जापानी सम्रा के नाम पर शासन चलाते थे। इस प्रकार देश में सम्राट फिर से सर्वेसर्वा बन गया। उसने मेज की उपाधि धारण की। जापान के इतिहास में इस घटना को मेजी पुर्नस्थापना कहा जाता है।

प्रश्न 49.
जापान में मेजी शासन के अधीन ‘फुकोकु क्योहे’ के नारे से क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
फुकोकु क्योहे के नारे से तात्पर्य था-समृद्ध देश, मजबूत सेना। वास्तव में सरकार ने यह जान लिया था कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था का विकास तथा मजबूत सेना का निर्माण करने की आवश्यकता है, वरना उन्हें भी भारत की तरह दास बना लिया जाएगा। इसीलिए फुकोकु क्योहे का नारा दिया गया।

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प्रश्न 50.
‘सम्राट व्यवस्था’ से जापानी विद्वानों का क्या अभिप्राय था?
उत्तर:
सम्राट व्यवस्था से जापानी विद्वानों का अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था, जिसमें सम्राट नौकरशाही और सेना मिलकर सत्ता चलाते थे। नौकरशाही तथा सेना सम्राट के प्रति उत्तरदायी होती थी।

प्रश्न 51.
जापान में नयी विद्यालय व्यवस्था क्या थी? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
1870 के दशक से जापान में नयी विद्यालय-व्यवस्था अपनाई गई। इसके अनुसार सभी लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य कर दिया गया। पढ़ाई की फीस बहुत कम थी। परिणाम यह हुआ कि 1910 तक ऐसी स्थिति आ गई कि कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित नहीं रहा।

प्रश्न 52.
मेजी शासन के अधीन किए गए कोई दो सैनिक परिवर्तन बताएँ।
उत्तर:
मेजी शासन के अधीन निम्नलिखित सैनिक परिवर्तन हुए-

  • 20 साल से अधिक आयु वाले प्रत्येक नवयुवक के लिए एक निश्चित समय के लिए सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी गई।
  • एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया।

प्रश्न 53.
जापान में लोकतान्त्रिक संविधान और आधुनिक सेना के दो अलग आदर्शों को महत्त्व देने के क्या परिणाम निकलें ?
उत्तर:

  • जापान आर्थिक रूप से विकास करता रहा।
  • सेना ने साम्राज्य विस्तार के लिए दृढ़ विदेश नीति अपनाने के लिए दबाव डाला। इस कारण चीन और रूस के साथ युद्ध हुए, जिनमें जापान विजयी रहा। शीघ्र ही उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया।

प्रश्न 54.
1902 की आंग्ल-जापान संधि पर ब्रिटेन ने हस्ताक्षर क्यों किए? जापान के लिए इस संधि का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
1902 की आंग्ल-जापान संधि पर ब्रिटेन ने इसलिए हस्ताक्षर किए क्योंकि वह चीन में रूसी प्रभाव को रोकना चाहता था। जापान के लिए इस संधि.का यह महत्त्व था कि इसके अनुसार उसे विश्व के अन्य उपनिवेशवादियों के बराबर का दर्जा मिल गया।

प्रश्न 55.
मेजी युग में अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए उठाए गए कोई तीन कदम बताइए।
उत्तर:

  • कृषि पर कर लगाकर धन एकत्रित किया गया।
  • 1870-1872 में तोक्यो (Tokyho) और योकोहामा बन्दरगाह के बीच जापान की पहली रेल लाइन बिछाई गई।
  • वस्तु उद्योग के विकास के लिए यूरोप में मशीनें आयात की गई।

प्रश्न 56.
जापान में 1920 के बाद जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
उत्तर:
जापान में जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को बढ़ावा दिया। पहले लोगों को उत्तरी द्वीप होकायदो की ओर भेजा गया। यह काफी हद तक एक स्वतन्त्र प्रदेश था और वहाँ आयनू कहे जाने वाले लोग रहते थे। इसके बाद उन्हें हवाई, ब्राजील और जापान का बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर भेजा गया।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चीनी कोमितांग पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें।
उत्तर:
कोमितांग की स्थापना 1912 ई. में चीन के राष्ट्रवादी नेता सनयात सेन ने की थी। उनके तीन मुख्य उद्देश्य थे-

  • चीन को विदेशी प्रभुत्व से मुक्त करवाना
  • चीन में आधुनिक लोकतन्त्र की स्थापना करना तथा
  • भूमि सुधारों द्वारा कृषकों को सामन्ती नियन्त्रण से मूक्त। करवाना।

सनयात सेन के अधीन कोमिनतांग की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैल गई। इस संस्था के उद्देश्य 1921 ई. में स्थापित साम्यवादी दल से मेल खाते थे। परन्तु शीघ्र ही दोनों दलों में मतभेद उत्पन्न हो गए। 1925 ई. में सनयात सेनं की मृत्यु हो गई और कोमिनतांग का नेतृत्व च्यांग-काई-शेक के हाथों में आ गया। उसने साम्यवादियों पर क्रूर अत्याचार करना आरम्भ कर दिए। विवश होकर साम्यवादी नेता माओ जेड़ांग ने महाप्रस्थान (600 मील की लम्बी यात्रा) का कार्यक्रम अपनाया और उत्तरी चीन में अपना प्रभाव बढ़ा लिया। अन्ततः 1949 ई. में उसने च्यांग-काई-शेक को फारमोसा (वर्तमान ताइवान) भाग जाने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार कोतिनतांग का पतन हो गया।

प्रश्न 2.
चीन की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति (1965) क्या थी? इसका क्या। परिणाम निकला?
उत्तर:
‘समाजवादी व्यक्ति’ की रचना के इच्छुक माओवादियों और माओ की साम्यवादी विचारधारा के आलोचकों के बीच संघर्ष छिड़ गया। 1965 की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति इसी संघर्ष का परिणाम थी। माओ ने यह क्रान्ति आलोचकों का सामना करने के लिए आरम्भ की थी पुरानी संस्कृति, पुराने रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान छेड़ने के लिए रेड गार्ड्स-मुख्यतः छात्रों और सेना का प्रयोग किया गया। छात्रों और पेशेवर लोगों को जनता से सीख लेने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में भेजा गया। साम्यवादी होने की विचारधारा पेशेवर ज्ञान से भी अधिक महत्त्वपुर्ण बन गई। तर्कसंगत वादविवाद का स्थान दोषरोपण और नारेबाजी ने ले लिया।

परिणाम – सांस्कृतिक क्रान्ति से देश में खलबली मच गई, जिससे पार्टी कमजोर हुई अर्थव्यवस्था और शिक्षा के प्रसार में भी भारी बाधा आई। परन्तु 1960 के उत्तरार्द्ध से स्थिति बदलने लगी। 1975 में पार्टी ने एक बार फिर कड़े सामाजिक अनुशासन और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के निर्माण पर बल दिया, ताकि देश बीसवीं शताब्दी के अन्त तक एक शक्तिशाली देश बन सके।

प्रश्न 3.
चीन में हुई सांस्कृतिक क्रान्ति की व्याख्या करें।
उत्तर:
चीन में सन् 1965 में माओ ने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की शुरूआत की। माओ समाजवादी व्यक्ति की रचना के इच्छुक थे तथा दक्षता के बजाय विचारधारा पर बल देते थे। इसके विपरीत चीन में कुछ लोग समाजवादी विचारधारा के स्थान पर पूँजीवाद पर बल दे रहे थे। माओ ने इसी द्वन्द की समाप्ति हेतु सांस्कृतिक क्रान्ति की शुरुआत की जिसके तहत प्राचीन संस्कृति और पुराने रिवाजों और पुरानी आदतों के खिलाफ रेड गार्डस का इस्तेमाल किया गया। रेड गार्डस में मुख्यत: सेना एवं छात्रों का प्रयोग होता था। नागरिकों के दोषरोपण ने तर्कसंगत बहस का स्थान ले लिया और चीन सांस्कृतिक परिवर्तन की करवट लेने लग गया।

प्रश्न 4.
माओ-त्से-तुंग ने पार्टी (साम्यवादी) द्वारा निर्धारित लक्ष्या की प्राप्ति के लिए क्या किया? क्या उनके तौर-तरीके पार्टी के सभी लोगों को पसंद थे?
उत्तर:
माओ-त्से-तुंग पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। उनकी चिन्ता ‘समाजवादी व्यक्ति’ बनाने की थी जिसे पांच चीजें प्रिय होनी थीं-पितृभूमि, जनतप, काम, विज्ञान और जन सम्पत्ति। किसानों, महिलाओं, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गईं। उदाहरण के लिए ‘ऑल चाइना डेमोक्रेटिक वीमेंस फेडरेशन’ के 760 लाख सदस्य थे। इसी प्रकार ‘ऑल चाइना स्टूडेंट्स फेडरेशन’ के 32 लाख 90 हजार सदस्य थे। परन्तु ये लक्ष्य और तरीके पार्टी के सभी लोगों को पसन्द नहीं थे। 1953-54 में कुछ लोग. औद्योगिक (1896-1969) तथा तंग शीयाओफी (1904-97) ने कम्यून प्रथा को बदलने की चेष्ठा को क्योंकि यह कुशलतापूर्वक काम नहीं कर रही थी। घरों के पिछवाड़े में बनाया गया स्टील औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी नहीं था।

प्रश्न 5.
चीन में भयंकर अकाल क्यों पड़ा? अथवा, माओ का ‘आगे की ओर महान छलांग’ कार्यक्रम क्यों असफल रहा?
उत्तर:
चीन का भयंकर अकाल ‘आगे की ओर महान छलांग’ कार्यक्रम की असफलता का परिणाम था। यह कार्यक्रम मुख्यतः तकनीकी कारणों से असफल रहा। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए त्रुटिपूर्ण कृषि तकनीकों का प्रयोग किया गया। उदाहरण के लिए-

  • भूमि में सामान्य मात्रा से दस गुणा अधिक बीज डाला गया। इससे पौधे बढ़ने से पहले ही मर गए।
  • गेहूँ और मक्का को एक साथ बोने का प्रयास किया गया। परन्तु यह प्रयास असफल रहा।
  • चिड़ियाँ खेत में बिखरे बीजों को खा जाती थी। इसलिए उन्हें बड़ी संख्या में मार दिया गया। दुर्भाग्य से इसके भी बुरे परिणाम निकले। जब फसलों पर कीड़े आए तो उन्हें खाने के लिए चिड़ियाँ न रहीं।

अतः फसलें नष्ट हो गई। इसके अतिरिक्त सिंचाई यन्त्रों को गलत स्थानों पर स्थापित किया गया, जिससे भूमि का बड़े पैमाने पर अपरदन हुआ। बोई जाने वाली फसलों के सम्बन्ध में कोई विशेष दिशा-निर्देश नहीं दिए गए थे। इसके परिणामस्वरूप सब्जियों तथा अन्य फसलों का उत्पादन शून्य हो गया। इस प्रकार देश में भयंकर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।

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प्रश्न 6.
चीन में भयंकर अकाल के दौरान सरकार द्वारा भ्रामक प्रचार तथा उसकी त्रुटिपूर्ण नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी नेता केवल आधिकारिक आंकड़ों में विश्वास रखने लगे थे। फसलों की रिकार्ड वृद्धि केवल मात्र दिखावा थी। वास्तव में उत्पादन आँकड़ों का मात्र एक तिहाई था। सरकार ने स्थिति को वश में रखने के लिए भ्रामक प्रचार की नीति अपनाई तथा नये-नये नारे गढ़ लिए। उदाहरण के लिए 1959 ई. में अकाल के समय लोगों को घास को उबालकर खाना पड़ रहा था उस समय पार्टी ने लोगों को सुझाव दिया कि “अधिक उत्पादन वाले वर्ष में भी कम खायें”। लोग इतने कमजोर हो गए कि वह काम भी नहीं कर सकते थे। वे सारा दिन घर पर रहने लगे। इस स्थिति में देश के रेडियो लोगों को आराम करने की सलाह देने लगे। देश के डॉक्टरों ने प्रचार किया कि चीन के लोगों को विटामिन तथा वसा की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनका शारीरिक गठन ही विशेष प्रकार का है। सरकार की इस त्रुटिपूर्ण नीति ने अकाल की स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(i) माओ की आगे की महान छलांग (Great Leap Forward) कार्यक्रम
(ii) पिंगपोंग (Ping Pong) कूटनीति
(iii) तियाननमेन स्क्वायर हत्याकांड।
उत्तर:
(i) माओ की आगे की ओर महान छलांग (Great Leap Forward) कार्यक्रम – ‘आगे की ओर महान् छलांग’ माओ का एक आर्थिक कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम 1959 ई. में आरम्भ किया गया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण सहकारी समितियों और सामूहिक खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े कम्यून बना दिए गए। ये कम्यून राष्ट्र के स्वामित्व के प्रतीक थे। इसका उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ औद्योगिकीरण को बढ़ावा देना था। परन्तु इसके विनाशकारी परिणाम निकले। इसका कारण यह था कि कम्युनिस्ट (साम्यवादी) पार्टी के अधिकारी इसे उस पैमाने पर लागू करने में सक्षम नहीं थे, जैसा माओ ने सोचा था। अत: एक बार फिर चीन को खाद्यान्न के अभाव तथा औद्योगिक मन्दी का सामना करना पड़ा।

(ii) पिंगपोंग (Ping Pong) कूटनीति – साम्यवादी चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण थे। इसके दो मुख्य कारण थे-एक तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था अलग-अलग थी। दूसरे अमेरिका ने अभी तक जनबादी चीन को मान्यता नहीं दी थी। वह ताइवान में स्थित च्यांग-काई-शेक को चीन की वास्तविक सरकार मानता था। संयुक्त राष्ट्र में भी ताइवान को ही सदस्यता प्राप्त थी। परन्तु 1972 ई. में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्यन ने एकाएक चीन की यात्रा करने का कार्यक्रम बना लिया।

यह कार्यक्रम दोनों देशों के अधिकारियों के बीच लगभग दस वर्षों से चल रही कूटनीतिक वार्ताओं का परिणाम था। इन्हीं गुप्त वार्ताओं को ही पिंगपोंग कूटनीति का नाम दिया जाता था। दोनों देशों के बीच सम्बन्ध में पाकिस्तान ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अन्ततः मार्च, 1972 ई. में निक्सन ने चीन की यात्रा की। उसने जनवादी चीन को ही वास्तविक चीन स्वीकार कर लिया और उसे मान्यता दे दी। इसके परिणामस्वरूप ताइवान का स्थान जनवादी चीन को मिल गया। इस प्रकार अमेरिका और चीन के बीच स्थायी रूप से राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित हो गए।

(iii) तियाननमेन स्क्वायर हत्याकांड – चीन में साम्यवादी पार्टी के कुछ नेता कठोर नीति में विश्वास रखते थे। उन्हें चीनी शासक डेंग के उदारवादी तरीके पसन्द नहीं थे। इसलिए वे डेंग पर कठोर नीति अपनाने के लिए दबाव डाल रहे थे। डेंग ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए विद्यार्थियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे पार्टी की कठोर नीतियों के समर्थकों की कमजोरियों का पता लगाएँ। परन्तु 1988-89 में उसके अपने आर्थिक सुधार ही असफल होते दिखाई देने लगे। वस्तुओं के दाम वेतनों की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गए। मई, 1989 ई. में बीजिंग के विद्यार्थी नगर के प्रसिद्ध तियाननमेन चौक में शान्तिपूर्वक इकट्ठे होने लगे। वे और अधिक राजनीतिक सुधारों, प्रजातन्त्र तथा पार्टी में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की मांग करने लगे।

अपनी मांग को पूरा करवाने के लिए उन्होंने संगीतमय रंगारंग प्रदर्शन भी किए। प्रजातन्त्र को अर्पित एक बुत भी बनाया गया, जिसके गाने में उत्साहपूर्वक मालाएं पहनाई गई। इन प्रदर्शनों की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए सरकार के कान खड़े हो गए। उसने इन्हें साम्यवादी पार्टी की सत्ता के लिए चुनौती माना। डेंग स्वयं कठोर नीतिः पर उतर आया। उसने अपने दो उदारवादी अधिकारियों को हय दिया। 3 जून, 1989 की रात को चौक में टैंकों सहित सेना भेज दी गई। चौक में एकत्रित 1500-3000 लोगों को गोलियों से उड़ा दिया गया। इस हत्याकांड की पूरे विश्व में भर्त्सना हुई। परन्तु चीन ने इसकी कोई परवाह न की।

प्रश्न 8.
1911 ई. की चीनी क्रान्ति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
कारण-1911 ई. की क्रान्ति का एक महत्त्वपूर्ण कारण उसकी बढ़ती हुई जनसंख्या थी। इससे भोजन की समस्या गम्भीर होती जा रही थी। इसके अतिरिक्त 1910-1911 ई. की भयंकर बाढ़ों के कारण लाखों लोगों की जानें गई तथा देश में भुखमरी फैल गई। इससे लोगों में असन्तोष बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह की आग भड़क उठी। क्रान्ति का दूसरा कारण ‘प्रवासी चीनियों का योगदान’ था। विदेशों में रहने वाले चीनी लोग काफी धनी हो गए थे। वे चीन में सत्ता परिवर्तन के पक्ष में थे।

अतः उन्होंने क्रान्तिकारी संस्थाओं की खूब सहायता की। मंचू सरकार के नए कर भी क्रान्ति लाने में सहायक सिद्ध हुए। इन करों के लगने से चीन के लोगों में क्रान्ति की भावनाएँ भड़क उठीं। जापान की उन्नति भी चीनी क्रान्ति एक कारण था। चीन के लोग मंचू सरकार को समाप्त करके जापान की भाँति उन्नति करना चाहते थे। चीन में यातायात के साधनों का सुधार होने के कारण चीनी क्रान्ति के विचारों के प्रसार को काफी बल मिला। अतः यह भी क्रान्ति का एक अन्य कारण था।

प्रश्न 9.
1911 की चीनी क्रान्ति के परिणामों तथा महत्त्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1911 ई. की क्रान्ति के दो मुख्य परिणाम निकले-मंचू राजवंश का अन्त तथा गणतन्त्र की स्थापना। परन्तु इस क्रान्ति का महत्त्व इन्हीं दो बातों तक ही सीमित नहीं था। वास्तव में यह क्रान्ति गणतन्त्र की राजतन्त्र पर विजय थी। इसकी एक विशेष बात यह भी थी कि वह विजय बिना किसी रक्तपात के प्राप्त की गई थी। इसके अतिरिक्त चीन की जनता को एक संविधान प्राप्त हुआ और देश में जनता की सम्प्रभुत्ता की घोषणा की गई। इस क्रान्ति की एक और विशेष बात यह रही कि क्रान्तिकारियों ने सम्राट के प्रतिनिधि युआन शिकाई को ही चीनी गणतन्त्र के राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके अतिरिक्त विदेशी शक्तियाँ भी इस क्रान्ति के प्रति पूर्णतया तटस्थ (Neutral) रहीं। देश में 1911 की क्रान्ति ने राष्ट्रीय भावना का संचार किया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इसने चीनियों को शोषण से मुक्ति दिलाई और उनके सम्मान को बढ़ाया।

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प्रश्न 10.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है? उनका तथा उनके सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
सन-यात-सेन (1866-1925) को आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। वह एक गरीब परिवार से थे। उन्होंने मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतन्त्र और ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने टास्टरी की पढ़ाई की। परन्तु वह चीन में भविष्य को लेकर चिन्तित थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धान्त (सन-मिन-चुई) के नाम से विख्यात है। ये तीन सिद्धान्त हैं-

  • राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू वंश, जिसे विदेशी राजवंश माना जाता था को सत्ता से हटाना।
  • गणतन्त्र-गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।
  • समाजवाद-पूँजी का नियमन करना और भूस्वामित्व में बराबरी लाना। सन-यात-सेन के विचार फुओयीनतांग के राजनीतिक दर्शन का. आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, घर और परिवहन-इन चार बड़ी आवश्यकताओं को रेखांकित किया।

प्रश्न 11.
चीन में 4 मई के आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
4 मई, 1919 को प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुए शान्ति सम्मेलन के निर्णयों के विरोध में बीजिंग में एक जोरदार प्रदर्शन हुआ। भले ही चीन ने ब्रिटेन के नेतृत्व में विजयी आन्दोलन का रूप ले लिया जिसने एक पूरी पीढ़ी को परम्परा से हटकर चीन को अधुनिक विज्ञान, लोकतन्त्र और राष्ट्रवाद द्वारा बचाने के लिए प्रेरित किया। क्रान्तिकारियों ने देश के संसाधनों को विदेशियों से मुक्त कराने, असमानताएँ समाप्त करने और गरीबी को कम करने का नारा लगाया। उन्होंने लेखन में सरल भाषा का प्रयोग करने, पैरों को बाँधने की प्रथा और औरतों की अधीनस्थता को समाप्त करने, विवाह में बराबरी लाने और गरीबी को समाप्त करने के लिए आर्थिक विकास की माँग की।

प्रश्न 12.
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने वाली परीक्षा प्रणाली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश अधिकतर परीक्षा द्वारा ही होता था। इसमें 8 भाग वाला निबन्ध निर्धारित प्रपत्र में (पा-कू-वेन) शास्त्रीय चीनी में लिखना होता था। यह परीक्षा विभिन्न स्तरों पर प्रत्येक 3 वर्ष में 2 बार आयोजित की जाती थी। पहले स्तर की परीक्षा में केवल 1-2 प्रतिशत लोग ही 24 साल की आयु तक पास हो पाते थे और वे ‘सुन्दर प्रतिभा’ बन जाते थे। इस डिग्री से उन्हें निचले कुलीन वर्ग में प्रवेश मिल जाता था। 1850 से पहले देश में 526869 सिविल और 212330 सैन्य प्रान्तीय (शेंग हुआन) डिग्री वाले लोग मौजूद थे।

क्योंकि देश में केवल 27000 राजकीय पद थे। इसलिए निचले दर्जे के कई डिग्रीधारकों को नौकरी नहीं मिल पाती थी। यह परीक्षा विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास में बाधक थी। इसका कारण यह था कि इसमें केवल साहित्यिक कौशल पर ही बल दिया जाता था। केवल क्लासिक चीनी सीखने की कला पर ही आधारित होने के कारण 1905 ई. में इस परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 13.
1930 ई. जुनवू (चीन) में क्या सर्वेक्षण किया गया? इसका क्या उद्देश्य और महत्त्व था?
उत्तर:
1930 में जुनवू में किए गए एक सर्वेक्षण में माओ-त्से-तुंग ने नमक और सोयाबीन जैसे दैनिक प्रयोग की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक मजबूतियों, छोटे व्यापारियों, दस्तकारों और लोहारों, वेश्याओं तथा धार्मिक संगठनों की मजबूतियों का परीक्षण किया। इसका उद्देश्य शोषण के अलग-अलग स्तरों को समझना था। उन्होंने ऐसे आँकड़े इकट्ठे किए कि कितने किसानों ने अपने बच्चों को बेचा है और इसके लिए उन्हें कितने पैसे मिले। लड़के 100-200 यूआन पर बिकते थे। परन्तु लड़कियों की बिक्री के कोई प्रमाण नहीं मिले, क्योंकि जरूरत मजदूरों की थी लैंगिक शोषण की नहीं। इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के तरीके पेश किए।

प्रश्न 14.
चीन की ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ सरकार की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार स्थापित हुई। यह ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्तों पर आधारित थी। नया लोकतन्त्र सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियन्त्रण में रखे गए। निजी कारखानों और भूस्वामित्व को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया। यह कार्यक्रम 1953 तक चला, जब सरकार ने समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम आरम्भ करने की घोषणा की। 1958 में ‘लम्बी छलांग वाले’ आन्दोलन द्वारा देश का तेजी से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया। लोगों को अपने घर के पिछवाड़े में इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ग्रामीण इलाकों में पीपुल्स कम्यूंस आरम्भ किए गए। इसमें लोग सामूहिक रूप से भूमि के स्वामी थे और मिल-जुल कर फसल उगाते थे।

प्रश्न 15.
चीन के भौतिक भूगोल, प्रमुख जातीय समूहों तथा भाषाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल – चीन एक विशालकाय महाद्वीपीय देश है। इसमें कई प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र शामिल हैं। इसके मुख्य क्षेत्र में 3 प्रमुख नदियाँ हैं-पीली नदी अथवा हुआंग हो, संसार की तीसरी सबसे लम्बी नदी यांग्त्सी और पर्ल नदी। देश का बहुत बड़ा भाग पहाड़ी है।

जातीय समूह तथा भाषाएँ – चीन का सबसे प्रमुख जातीय समूह हान है और यहाँ की प्रमुख भाषा है-चीनी । हाल के अतिरिक्त चीन में कई अन्य राष्ट्रीयताएं भी हैं; जैसे-उइघुर, हुई, मांचू और तिब्बती। इसी प्रकार कई अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं । जैस-कैंटनीज कैंटन (गुआंगजाओ) की बोली-उए और शंघाईनीज (शंघाई की बोली-वू)।

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प्रश्न 16.
चीनी भोजनों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चीनी भोजनों में क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है। इनमें मुख्य रूप से चार प्रकार के भोजन शामिल हैं।-

  • सबसे प्रसिद्ध पाक प्रणाली दक्षिणी या केंटोनी है। यह कैंटन तथा उसके आन्तरिक क्षेत्रों की पाक प्रणाली है। इसकी प्रसिद्धि इस बात के कारण है कि विदेशों में रहने वाले अधिकतर चीनी कैंटन प्रान्त से सम्बन्धित हैं। डिम सम (शाब्दिक अर्थ दिल को छूना) यहीं का जाना माना खाना है। यह गुंधे हुए आटे को सब्जी आदि भरकर उबाल कर बनाया गया व्यंजन है।
  • उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है।
  • शेचुओं में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाई गई मिर्च के कारण झालदार और तीखा खाना मिलता है।
  • पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ दोनों खाए जाते हैं।

प्रश्न 17.
जापान की भौतिक विशेषताओं की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
जापान की मुख्य भौतिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • जापान एक द्वीप शृंखला है । इनमें से चार सबसे बड़े द्वीप हैं-होंशू, क्यूशू, शिकोकू और होकाइदो। सबसे दक्षिण में ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला है। मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि पहाड़ी है।
  • जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में आता है।
  • जापान की भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।
  • देश की अधिकतर जनसंख्या जापानी है। परन्तु यहाँ कुछ आयनू अल्पसंख्यक और कुछ कोरिया के लोग भी रहते हैं। कोरिया के लोगों को यहाँ श्रमिकों के रूप में उस समय लाया गया था जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।
  • जापान में पशु नहीं पाले जाते हैं।
  • चावल यहाँ की मुख्य खाद्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ की कच्ची मछली साशिमी अथवा सूशी अब संसार भर में लोकप्रिय है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्द्धक माना जाता है।

प्रश्न 18.
जापान पर तोकुगावा वंश के शोगुनों ने कब से कब तक शासन किया? वे अपना शासन किस प्रकार चलाते थे?
उत्तर:
जापान.पर क्योतो में रहने वाले सम्राट का शासन हुआ करता था। परन्तु बारहवीं शताब्दी तक वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई। वे सैद्धान्तिक रूप से राजा के नाम पर शासन करते थे। 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुन पद पर आसीन थे। देश 250 भागों में विभाजित था, जिनका शासन दैम्यों लार्ड चलाते थे। शोगुन दैम्यो पर नियन्त्रण रखते थे। उन्होंने दैम्यो को लम्बे समय तक राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) में रहने का आदेश दिया, ताकि वे उनके लिए कोई खतरा न बन जाएँ। शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियन्त्रण रखते थे। जापान का योद्धा वर्ग सामुराई (शासन करने वाला) अभिजात था। वे शोगुन तथा दैम्यो की सेवा में थे।

प्रश्न 19.
जापान में नगरों का आकार कैसे बढ़ा ? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
जापान में दैम्यो की राजधानियों का आकार लगातार बढ़ने लगा। 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो (आधुनिक तोक्यो) संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया। इसके अतिरिक्त ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे। दुर्गों बाले कम-से-कम छ: शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से भी अधिक थी। इसकी तुलना में उस समय के अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक-एक ही बड़ा शहर था।
महत्तव-

  • बड़े शहरों के परिणामस्वरूप जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त एवं ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
  • व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।
  • शहरों में जीवंत संस्कृति का प्रसार होने लगा।
  • बढ़ते हुए व्यापारी वर्ग ने नाटकों और कलाओं को संरक्षण प्रदान किया।
  • लोगों की पढ़ने में रुचि ने होनहार लेखकों को अपने लेखन द्वारा अपनी जीविका चलाने में सहायता पहुँचाई।

प्रश्न 20.
ताकुगावा शासन के अधीन जापान की अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ताकुगावा शासन के अधीन जापान को बस धनी देश समझा जाता था। इसका कारण यह था कि वह चीन से रेशम जैसी विलासी वस्तुएँ, भारत से कपड़े का आयात करता था। इन आयतों का मूल्य चाँदी और सोने में चुकाया जाता था। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक भार पड़ा। अतः तामुगावा ने मूल्यवान् धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी। उन्होंने क्योतो में निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी पग उठाये, ताकि रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम विश्व भर में सबसे अच्छा. रेशम माना जाने लगा। मुद्रा के बढ़ते हुए प्रयोग और चावल के शेयर बाजार के निर्माण से पता चलता है कि अर्थतन्त्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।

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प्रश्न 21.
जापान में कामोडोर पेरी के आगमन और इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1853 में अमेरिका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान भेजा। उसने जापान सरकार से ए’ समझौते पर हस्ताक्षर करने की माँग। इसके अनुसार को अमेरिका के रराजनयिक और व्यापारिक सम्बन्ध बनाने थे। इस समझौते पर जापान ने अगले वर्ष हस्ताक्षर किए। वास्तव में जापान चीन के रास्ते में पड़ता था और अमेरिका के लिए चीन का विस्तृत बाजार बहुत ही महत्त्व रखता था। इसके अतिरिक्त अमेरिका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़ों के लिए ईंधन लेने के लिए स्थान चाहिए था। उस समय केवल एक ही पश्चिमी देश जापान के साथ व्यापार करता था और वह था-हालैंड।

महत्त्व – पेरी के आगमन ने जापान की राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। सम्राट का अचानक ही महत्त्व बढ़ गया। इससे पहले तक उसे बहुत ही कम राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे। 1864 में एक आन्दोलन द्वारा शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया और सम्राट मेजी को एदो में लाया गया। एदो को राजधनी बना दिया गया । इसका नया नाम तोक्यो रख गया जिसका अर्थ है पूर्वी राजधानी।

प्रश्न 22.
जापान को बाहरी संसार के लिए खोलने के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क दिया गए?
उत्तर:
जापान के अधिकारीगण और लोग यह जानते थे कि कुछ यूरोपीय देश भारत तथा कई अन्य स्थानों पर औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। अंग्रेजों के हाथों चीन की पराजय के समाचार फैल रहे थे और इन्हें लोकप्रिय नाटकों में भी दर्शाया जा रहा था। इससे लोगों में यह भय उत्त्पन्न हो गया कि बाहरी दुनिया के साथ सम्पर्क से जापान को भी उपनिवेश बनाया जा सकता है। फिर भी देश के बहुत से विद्वान और नेता युरोप के नए विचारों तथा तकनीकों से सीख लेना चाहते थे. जबकि कछ अन्य विद्वान यरोपीय लोगों को अपने से दूर रखना चाहते थे। कुछ लोगों ने देश को बाहरी संसार के लिए धीरे-धीरे और सीमित रूप से खोलने के लिए तर्क दिया।

अतः जापानी सरकार ने फुकोकु क्योहे (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नयी नीति की घोषणा की। उन्होंने यह समझ लिया कि उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था का विकास और मजबुत सेना का निर्माण करने की आवश्यकता है, अन्यथा उन्हें भी भारत की तरह दास बना दिया जाएगा। इस कार्य के लिए जनता में राष्ट्रीय भावना का विकास करने और प्रजा को नागरिक की श्रेणी में लाने की आवश्यकता थी।

प्रश्न 23.
जापान में ‘सम्राट व्यवस्था’ का पुनर्निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
जापान में मेजी सरकार ने ‘सम्राट-व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया। सम्राट व्यवस्था से जापानी विद्वानों का अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था जिसमें सम्राट नौकरशाही और सेना मिलकर सत्ता चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट से प्रति उत्तरदायी होती थी। राजतान्त्रिक व्यवस्था की पूरी जानकारी के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया। सम्राट को सीधे-सीधे सूर्य देवी का वंशज माना गया। वह पश्चिमी ढंग के सैनिक वस्त्र पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के लिए अधिनियम बनाए जाने लगे। 1890 की शिक्षा सम्बन्धी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने तथा जनता के सार्वजनिक एवं साँझे हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 24.
जापान में 1870 के दशक में अपनाई गई नयी विद्यालय-व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1870 के दशक से जापान में नयी विद्यालय-व्यवस्था अपनाई गई। इसके अनुसार सभी लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य कर दिया गया। 1910 तक ऐसी स्थिति आ गई कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वो नहीं रहा। पढ़ाई की फीस बहुत न थी। आरम्भ में पाठ्यक्रम पश्चिमी नमूनों पर आधारित था। परन्तु बाद में आधुनिक विचारों पर बल देने के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया जाने लगा। पाठ्यक्रम किताबों के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय नियन्त्रण रखता था। नैतिक संस्कृति का विषय पढ़ना प्रत्येक के लिए जरूरी था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति बफादारी और अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा विकसित की जाती थी।

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प्रश्न 25.
राष्ट्र के एकीकरण के लिए जापान की मेजी सरकार ने क्या पग उठाए?
उत्तर:
राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँव और क्षेत्रीय सीमाओं को बदल कर एक नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया। प्रत्येक प्रशासनिक इकाई के पास पर्याप्त राजस्व होना जरूरी था, ताकि स्थानीय स्कूल तथा स्वस्थ्य सुविधाएँ जारी रखी जा सकें। साथ ही ये इकाइयाँ सेना के लिए भर्ती केन्द्रों के रूप में भी कार्य कर सके 20 साल से अधिक आयु वाले प्रत्येक नवयुवक के लिए निश्चित अवधि के लिए सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी गई।

एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। राजनीतिक दलों के गठन को नियन्त्रित करने के लिए एक कानून-प्रणाली स्थापित की गई। सेंसर व्यवस्था को भी कठोर बनाया जाना था। ऐसे परिवर्तनों के कारण सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा। सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के अधीन रखा गया। इसका उद्देश्य यह था कि संविधान बनने के बाद भी सेना और नौकरशाही सरकारी नियन्त्रण से बाहर रहे।

प्रश्न 26.
जापान की लिपियों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जापानियों ने अपनी लिपि छठी शताब्दी में चीनियों से ली थी। परन्तु जापानी भाषा चीनी भाषा से बहुत अलग है। इसलिए उन्होंने दो ध्वन्यात्मक वर्णमालाओं का विकास भी किया-हीरागाना और काकाना। हीरागाना नारी सुलभ समझी जाती है, क्योंकि हेआन काल में बहुत-सी लेखिकाएँ इसका प्रयोग करती थीं। यह चीनी चित्रात्मक चिन्हों और ध्वन्यात्मक अक्षरों को मिलाकर लिखी जाती है। शब्द का प्रमुख भाग चीनी लिपि कांजी के चिह्न से लिया जाता है और शेष भाग हीरागाना से-

ध्वन्यात्मक अक्षरमाला द्वारा ज्ञान को पूरे समाज में फैलाने में सहायता मिली। 1880 के दशक में यह सुझाव दिया गया कि जापानी या तो पुरी तरह से ध्वन्यात्मक लिपि का विकास करें या कोई यूरोपीय भाषा अपना लें। परन्तु दोनों में कुछ भी नहीं किया जा सका।

प्रश्न 27.
1889 में जापान को जो नया संविधान मिला, उसकी कोई चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
1889 में जापान को जो नया सम्विधान मिला, उसकी चार मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-
(i) सम्राट कार्यकारिणी का प्रधान था। उसकी स्थिति काफी महत्त्वपुर्ण थी। सभी मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट ही करता था और वे सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। लोगों का विश्वास। था कि सम्राट पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और वह दैवी-गुणों से सम्पन्न है। इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए।

(ii) संविधान में एक संसद का प्रावधान था, जिसे डाएट (राजा की सभा) कहते थे। डाएट की शक्तियाँ काफी सीमित थीं। सेना के अधिकार इतने अधिक थे कि धीरे-धीरे डाएट पर सेना का प्रभुत्त्व स्थापित हो गया।

(iii) माताधिकार बहुत अधिक सीमित था। यह अधिकार देश की तीन प्रतिशत से भी कम जनता को प्राप्त था।

(iv) राजसत्ता पर कुलीनतन्त्र का नियन्त्रण बढ़ाने के लिए पुलिस को व्यापक अधिकार दिए गए। प्रेस को नियन्त्रित करने, जनसभाओं पर रोक लगाने तथा प्रदर्शनों को रोकने के लिए पुलिस को विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं।

प्रश्न 28.
प्रथम विश्व-युद्ध से पूर्व कोई दो घटानाओं को बताइए, जिन्होंने जापान का एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में अभ्युदय किया। कोई दो देश बताइए जिनके साथ जापान का इस काल में टकराव हुआ।
उत्तर:
1853 में अमेरिका का जल सेनानायक पैरी जापान के एक बन्दरगाह पर पहुँचा। उसने जापान में अनेक सुविधाएँ प्राप्त की, परन्तु जापान एशियाई देशों की तुलना में भाग्यशाली निकला। वहाँ मेजी शासन के बाद सैनिक तथा औद्योगिक उन्नति हुई। अतः जापान भी यूरोप के साम्राज्यवादी देशों की भाँति मंडियों की खोज में लग गया।
(i) जापान के निकट चीन था और चीन उसके लिए अच्छी मंडी सिद्ध हो सकता था। दोनों देश 1894 में कोरिया के प्रश्न पर एक-दूसरे से युद्ध कर चुके थे। इसके बाद जापान का चीन में प्रभाव काफी बढ़ गया था।

(ii) 1902 में इंग्लैंड तथा जापान का समझौता हुआ। इसके अनुसार जापान को अन्य यूरोपियन शक्तियों के समान दर्जा मिल गया।

(iii) 1904 में उसने रूस को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप उसे सखालिन का दक्षिणी भाग प्राप्त हुआ। जापान के लियोनतुंग प्रायद्वीप पर भी उसका अधिकार हो गया। उसने पोर्ट आर्थर पट्टे पर ले ली।

(iv) 1910 में कोरिया जापान का उपनिवेश बन गया। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय जापान एक महाशक्ति बन चुका था। अत: जापान की आकांक्षाएँ भी हर साम्राज्यवादी देश की भाँति आर्थिक तथा राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की थी। टकराव-जापान का प्रथम विश्व-युद्ध से पूर्व चीन तथा रूस से टकराव हुआ।

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प्रश्न 29.
जापान की उपनिवेशवादी (साम्राज्यवादी) नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जापान 1890 के दशक में औपनिवेशिक होड़ में सक्रिय हुआ। उसका पहला निशाना चीन था। वह चीन में अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करके पूर्वी एशिया पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था। बाद में उसने समस्त एशिया तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करना अपना लक्ष्य बना लिया। 1895 ई. में उसने चीन से युद्ध किया और उसे परास्त करके फारमोंसा को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। यह प्रदेश पहले चीन का भाग था। 1905 ई. में कोरिया को जापान का संरक्षित राज्य बना दिया गया और इसके पाँच वर्ष बाद कोरिया का जापान में विलय हो गया।

कोरिया भी पहले चीन के अन्तर्गत था। इससे पूर्व 1899 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों ने जापान को महाशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया था। 1902 ई. में आंग्ल-जापान सन्धि हुई। इसके अनुसार जापान को अन्य उपनिवेशवादियों के बराबर का स्थान दिया गया। 1904-1905 में रूस-जापान युद्ध में जापान विजयी रहा। परिणामस्वरूप पंचूरिया के दक्षिणी भाग को जापान का प्रभाव क्षेत्र मान लिया गया। इसके अतिरिक्त सखालिन द्वीप का आधा भाग तथा लियोनतुंग प्रायद्वीप भी उसके नियन्त्रण में आ गए। इस प्रकार जापान ने एक बहुत बड़े औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना कर ली।

प्रश्न 30.
फुफुजावा यूकिची कौन थे? उनकी सफलताओं तथा विचारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फुफुजावा यूकिची (1835-1901) का जन्म एक निर्धन सामुराई परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा नागासाका और ओसाका में हुई। उन्होंने डच और पश्चिमी विज्ञान पढ़ा और बाद में अंग्रेजी भी सीखी। 1860 में वह अमरीका में पहले जापानी दूतावास में अनुवादक के रूप में गए। इससे इन्हें पश्चिम पर पुस्तक लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री मिली। उन्होंने अपने विचार क्लासिकी में नहीं बल्कि बोल-चाल की भाषा में लिखे। यह पुस्तक बहुत ही लोकप्रिय हुई।

उन्होंने एक शिक्षा संस्थान स्थापित किया, जो आज केओ विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। वह मेरोकुश संस्था के मुख्य सदस्यों में से थे। यह संस्था पश्चिमी शिक्षा का प्रचार करती थी। . अपनी एक पुस्तक ‘ज्ञान को प्रोत्साहन’ में उन्होंने जापानी ज्ञान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने लिखा ‘जापान के पास प्राकृतिक दृश्यों के अतिरिक्त गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं है।’ इनका सिद्धान्त था, “स्वर्ग ने इंसान को इंसान के ऊपर नहीं बनाया न ही इंसान को इंसान के नीचे।”

प्रश्न 31.
जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
1930-40 में जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला। इस अवधि में जापान ने साम्राज्य विस्तार के लिए चीन और एशिया के अन्य भागों में युद्ध किए। जापान द्वारा अमेरिका के पर्ल हार्बर पर आक्रमण, दूसरे विश्व युद्ध का भाग बन गया। इसी आक्रमण के परिणामस्वरूप अमेरीका द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया।

इस दौर में जापान में सामाजिक नियन्त्रण में वृद्धि हुई। असहमति प्रकट करने वालों पर अत्याचार किए गए और उन्हें जल भेजा गया। देशभक्तों की ऐसी संस्थाएँ बनीं, जो बुद्ध का समर्थन करती थीं। इनमें महिलाओं के भी कई संगठन शामिल थे। 1943 में एक संगोष्ठी हुई ‘आधुनिकता पर विजय’ का आयोजन हुआ। इसमें इस विषय पर विचार किया गया कि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय पाई जाए। दर्शनशास्त्री निशिवानी केजी ने ‘आधुनिक को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया-पुर्नजागरण, प्रोटस्टेन्ट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास। उन्होंने कहा कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया। अब जापान को एक नई विश्व पद्धति अर्थात् एक विशाल पूर्वी एशिया का निर्माण करना चाहिए।

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प्रश्न 32.
चीन के आधुनिक इतिहास से सम्बन्धित विषयों के बारे में तीन अलग-अलग विचारधाराएँ कौन-सी थीं ?
उत्तर:
चीन के आधुनिक इतिहास का सम्बन्ध सम्प्रभुत्ता की पुनः प्राप्ति, विदेशी नियन्त्रण से हुए अपमान से मुक्ति तथा समानता एवं विकास को सम्भव बनाने से है। इस सम्बन्ध में तीन अलग-अलग विचारधाराएँ थीं-

  • कांग योवेल (1858-1927) तथा लियांग किचाउ (1873-1929) जैसे सुधारक पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारम्परिक विचारों के नए ढंग से प्रयोग करने के पक्ष में थे।
  • चीनी गणतन्त्र के पहले राष्ट्राध्यक्ष सन-यात-सेन जैसे गणतान्त्रिक क्रान्तिकारी जापान और पश्चिम के विचारों से प्रभावित थे।
  • चीन की कम्युनिष्ट पार्टी युगों-युगों की असमानताओं को समाप्त करना और देश से विदेशियों को खदेड़ना चाहती थी।

प्रश्न 33.
चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ कौन-से प्रसिद्ध युद्धों से हुआ? इन युद्ध के दो कारण तथा दो परिणाम व गएँ।
उत्तर:
चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ ‘अफीम के युद्धों’ से हुआ।
कारण-

  • अंग्रेज व्यापारी चीन में बड़े पैमाने पर चोरी-चोरी अफीम ला रहे थे, जिससे चीनियों का शारीरिक एवं नैतिक पतन हो रहा था।
  • 1839 ई. में चीन के एक सरकारी अफसर ने जहाजों पर लदी अफीम को पकड़ लिया और उसे नष्ट कर दिया। अतः ब्रिटेन ने चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

परिणाम-

  • इन युद्धों में चीन की पराजय हुई। चीनियों को हर्जाने के रूप में अत्यधिक धनराशि देनी पड़ी। उन्हें अपने पाँच बन्दरगाहों में व्यापार का अधिकार भी अंग्रेजों को देना पड़ा।
  • चीनी सरकार को इस बात के लिए सहमत होना पड़ा कि इन बन्दरगाहों में यदि कोई अंग्रेज अपराध करेगा तो उस पर मुकदमा चीन की नहीं बल्कि इंग्लैंड की अदालतों में चलाया जाएगा।

प्रश्न 34.
उन्नीसवीं शताब्दी में साम्राज्यवादियों ने चीन में अपना प्रभुत्व किस प्रकार स्थापित किया?
अथवा
‘चीनी खरबूजे का काटा जाना’ उक्ति की व्याख्या कीजिए।
अथवा
चीन पर साम्राज्यवाद के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन के विरुद्ध अफीम युद्धों में चीन पराजित हुआ था। परिणामस्वरूप उसे हांग-कांग का प्रदेश अंग्रेजों को देना पड़ा और अपने पाँच बन्दरगाह अंग्रेज व्यापारियों के लिए खोलने पड़े। शीघ्र ही फ्राँस ने भी ऐसी असमान संधियाँ चीन पर लाद दी और उससे अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर लीं। तत्पश्चात् चीन तथा जापान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें जापान विजयी रहा। इसके परिणामस्वरूप चीन ने फारमोसा तथा कुछ अन्य द्वीप जापान को सौंप दिए। चीन पर 15 करोड़ डालर का हर्जाना भी डाला गया।

चीन को यह राशि फ्राँस, रूस, ब्रिटेन तथा जर्मनी ने ऋण के रूप में दी और बदले में चीन को अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट लिया। संयुक्त राज्य अमेरिका भी पीछे न रहा। उसने ‘मुझे भी’ की नीति द्वारा चीन में पश्चिमी देशों के बराबर की सुविधाएँ प्राप्त कर लीं। इस प्रकार चीन पूरी तरह से भिन्न-भिन्न देशों के प्रभाव क्षेत्रों में बँट गया। इसी प्रक्रिया को ‘चीनी खरबूजे का काटा जाना’ कहते हैं।

प्रश्न 35.
‘खुले द्वार’ अथवा ‘मुझे भी’ नीति से क्या अभिप्राय था ? ब्रिटेन ने इस नीति का समर्थन क्यों किया?
उत्तर:
‘खुले द्वार’ अथवा ‘मुझे भी’ नीति का सुझाव संयुक्त राज्य अमेरिका ने दिया था। इस नीति का अर्थ यह था कि सभी देशों को चीन के प्रत्येक भाग में व्यापार करने के समान अवसर मिलने चाहिए। अमेरिका ने यह सुझाव इसलिए दिया था, क्योंकि उसे भय था कि अन्य देश चीन में पूर्ण रूप से अपने प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लेंगे और उसे वहाँ व्यापार करने का कोई अवसर नहीं मिलेगा। ब्रिटेन ने भी इस नीति का समर्थन किया, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि जापान और रूस चीन को हड़प जाएँ। दूसरे, संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह वह भी चीन में अपनी सेनाएँ आसानी से भेज सकता था।

प्रश्न 36.
संयुक्त राज्य अमरिका ने ‘खुले द्वार की नीति’ (Open Door Policy) क्यों और कैसे अपनाई?
उत्तर:
अमेरिका ने खुले द्वार की नीति चीन के सम्बन्ध में अपनाई। 1890 के दशक में यूरोपीय शक्तियाँ चीन को आपस में विभाजित कर लेने की योजना बना रही थीं। अमेरिका को इस बात का भय था कि कहीं उसे अलग-थलग न कर दिया जाए। वह चाहता था कि यूरोपीय शक्तियों की भाँति उसे भी चीन में सुविधाएँ प्राप्त हों। इसलिए उसने एक नई ति की घोषणा की जो इतिहास में ‘खुले द्वार की नीति’ के नाम से विख्यात है।

इसका अर्थ था कि चीन के मामले में किसी भी देश के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा, उन क्षेत्रों के सम्बन्ध में भी नहीं जिन्हें यूरोपीय देश अपना प्रभाव क्षेत्र बताते हैं। परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों की भाँति अमेरिका ने भी सन्धि द्वारा चीन से सुविधाएँ प्राप्त की। कुछ समय पश्चात् चीन में विदेशी शक्तियों के बढ़ते हुए प्रभाव के विरुद्ध बॉक्सर विद्रोह हुआ । इस विद्रोह को दबाने में अमेरीकी सेनाओं ने भी यूरोपीय सेनाओं का पूरा साथ दिया।

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प्रश्न 37.
प्रथम आंग्ल-चीन युद्ध अथवा अफीम युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
प्रथम आंग्ल-चीन युद्ध, अथवा अफीम युद्ध के अनेक कारण थे-

  • अंग्रेज व्यापारी चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहते थे। परन्तु चीनी शासक विदेशियों को असभ्य समझते थे और उनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते थे।
  • चीनी सरकार ने देश में चोरी छिपे अफीम का व्यापार करने वाले व्यापारियों को कैंटन से बाहर निकल जाने का आदेश दिया। इससे चीन और इंग्लैंड के बीच तनाव पैदा हुआ।
  • ब्रिटेन और चीन के बीच इस बात का भी झगड़ा था कि कैंटन के अंग्रेज निवासी कानून की दृष्टि से चीन की बजाय इंग्लैंड के अधीन थे।
  • अंग्रेज व्यापारी इस बात से चिढ़े हुए थे कि चीनी व्यापारियों पर उनका जो ऋण बकाया था, उसे वे दे नहीं पा रहे थे। अत: इंग्लैंड की सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह अंग्रेज व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए चीन में हस्तक्षेप करें।
  • अंग्रेज व्यापारियों ने अपनी सरकार पर दबाव डाला कि वह शक्ति प्रदर्शन अथवा युद्ध द्वारा चीनी सरकार को इस बात के लिए विवश करे कि वह अफीम व्यापार पर रोक न लगाए।

इसी बीच अंग्रेज तथा चीनी नाविकों की एक झड़प में एक चीनी नाविक मारा गया। परिणामस्वरूप चीनी सरकार अंग्रेज व्यापारियों के प्रति कठोर नीति अपनाने लगी। मामला गम्भीर होता गया। आखिर-इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री पामर्स्टन ने चीन के विरुद्ध युद्ध के आदेश जारी कर दिए।

प्रश्न 38.
प्रथम अफीम युद्ध के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
प्रथम अफीम युद्ध के परिणाम चीन के लिए बड़े हानिकारक सिद्ध हुए। इस युद्ध के परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-
(i) इस युद्ध के परिणामस्वरूप चीन का आर्थिक शोषण होना आरम्भ हो गया। अब अंग्रेज चीन में बिना किसी रोक-टोक के अफीम का व्यापार करने लगे। इससे चीन पर आर्थिक दबाव काफी बढ़ गया

(ii) नानकिंग की सन्धि के कारण चीन के सम्मान को भारी ठेस पहुंची। इसके साथ ही चीन की सैनिक शक्ति का महत्त्व भी घट गया। अतः अब वे विदेशी शक्तियाँ चीन पर दबाव डालकर सुविधाएँ प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगीं।

(iii) प्रथम अफीम युद्ध के पश्चात् चीन को विशेषाधिकार के सिद्धान्त को विवश होकर स्वीकार करना पड़ा। चीन ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि वह अपराध करने वाले विदेशियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करेगा। इसके परिणामस्वरूप चीन की सर्वोच्चता का अन्त हो गया।

(iv) चीन ने काफी लम्बे समय से अपने व्यापार के लिए बन्द द्वार की नीति अपना रखी थी। विदेशी व्यापारियों को कैंटन के अतिरिक्त कहीं और व्यापारिक केन्द्र स्थापित करने की आज्ञा नहीं थी। परन्तु प्रथम अफीम युद्ध के परिणामस्वरूप चीन सरकार को खुले द्वार की नीति अपनाने के लिए विवश होना पड़ा।

(v) कुछ ही समय पश्चात् यूरोपीय देशों ने चीन में अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना आरम्भ कर दिया। इसके परिणामकारूप साम्राज्यवादी युग आरम्भ हो गया और चीन अपनी स्वाधीनता खोने लगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आधुनिक चीन का आरम्भ कब से माना जाता है ? इसका उदय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
आधुनिक चीन का आरम्भ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में, पश्चिम के साथ उसका पहला सामना होने के समय से, माना जाता है। इस काल में जेसुइट मिशनरियों ने खगोलविद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को चीन पहुँचाया।
(i) अफीम युद्ध की भूमिका-आधुनिक चीन का उदय – 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने अपने अफीम के व्यापार को बढ़ाने के जिए चीन के विरुद्ध सैन्य बल का प्रयोग किया। इस प्रकार पहला युद्ध (1839-42) हुआ। इसने सत्ताधारी क्विंग (छांग) राजवंश को कमजोर किया और सुधार तथा बदलाव की मांगों को मजबुती दी।

वास्तव में चीनी उत्पादों जैसे चाय, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तनों की माँग ने ब्रिटिश व्यापार में भारी असन्तुलन पैदा कर दिया था। परन्तु पश्चिमी उत्पादों को चीन में बाजार नहीं मिला। इसलिए चीन से आयातित माल का भुगतान चाँदी में करना पड़ता था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने एक विकल्प ढुंढा-अफीम। यह भारत के कई भागों में उगाई जाती थी। चीन में अफीम की बिक्री द्वारा चाँदी कमाकर कैंटन में उधार पत्रों के बदले कम्पनी के प्रतिनिधियों को देने लगे।

कम्पनी इस चाँदी का प्रयोग ब्रिटेन के लिए चाय, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने के लिए करने लगी। ब्रिटेन, भारत और चीन के बीच यह उत्पादों का ‘त्रिकोणीय व्यापार’ था।

(ii) आधुनिक व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण-क्विंग सुधारकों कांग यूवेई और लियांग किचाउ ने व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया। इस उद्देश्य से उन्होंने एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नयी सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाइँ। संवैधानिक सरकार की स्थपना के लिए स्थानीय विधानपालिकाओं का गठन भी किया गया। उन्होंने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने पर विचार किया।

(iii) उपनिवेश बनाये गए देशों के नकारात्मक उदाहरण-उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने चीनी विचारकों पर गहरा प्रभाव डाला। 18वीं शताब्दी में पोलैंड का बँटवारा. इसका सर्वाधिक चर्चित उदाहरण था। यहाँ तक कि 1890 के दशक में पोलैंड का शब्द ‘बोलान ब’ नामक क्रिया (Verb) के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। क्रिया इसका अर्थ था-‘हमें पोलैंड करने के लिए’। चीन के सामने भारत का उदाहरण भी था। लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की भावना जागृत करके ही पश्चिम का विरोध किया जा सकता है।

1930 में उन्होंने लिखा कि भारत ऐसा देश है, जो किसी अन्य देश द्वारा नहीं, बल्कि एक कम्पनी अर्थात् ईस्ट इंडिया कम्पनी के हार्थों बर्बाद हो गया। ब्रिटेन की सेवा करने और अपने ही लोगों के प्रति क्रूर होने के लिए भारतीयों की आलोचना करते थे। उनके तर्कों से अधिकांश चीनी प्रभावित थे, क्योंकि ब्रिटेन ने चीन के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों का ही प्रयोग किया था।

(iv) चीनियों की परम्परागत सोंच में बदलाव-चीनियों की परम्परागत सोंच को बदलना भी आवश्यक था। कन्फयूशिसवाद चीन की प्रमुख विचारधारा कन्फयूशियस (551-479 ई.पू) और उसके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई थी। इसका सम्बन्ध अच्छे व्यवहार, समझदारी और उति। सामाजिक सम्बन्धों से था। इस वि रधारा ने चीनियों के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया और नये समाजिक मानक स्थापित किए। इसने चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को भी ठोस आधार प्रदान किया।

(v) नए विषय-लोगों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ्रांस में पढ़ने के लिए भेजा गया। 1890 के दशक में बहुत बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी पढ़ने लिए जापान गए। वे नये विचार लेकर वापस आए उन्होंने चीन में गणतन्त्र की स्थापना में भी अग्रणी भुमिका निभाई। चीन ने जापान से ‘न्याय’ ‘अधिकार’ और ‘क्रान्ति’ के शब्द ग्रहण किए। 1905 में रूस-जापान युद्ध हुआ। यह एक ऐसा युद्ध था, जो चीन की धरती पर और चीनी प्रदेशों पर प्रभुत्व के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई। यह परीक्षा प्रणाली प्रत्याशियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने का काम करती थी।

(vi) गणतन्त्र की स्थापना-1911 ई. में चीन में क्रान्ति हुई, जिसने मंचू शासन का अन्त कर दिया। इसके साथ ही चीन ने सच्चे अर्थों में आधुनिक युग में प्रवेश किया।

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प्रश्न 2.
सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओतिनतांग के अधीन देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विकास की समीक्षा किजिए।
उत्तर-सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग काइ शेक (1878-1975) कुओमिनतांग के नेता बनकर उभरे।
(i) उन्होंने सैन्य अभियान द्वारा वार-लार्डस (स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) को अपने नियन्त्रण में किया और साम्यवादियों की शक्ति नष्ट की। उन्होंने सेक्युलर और विवेकपुर्ण इहलौकिक, कन्फूशियसवाद का समर्थन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने राष्ट्र का सैन्यीकरण करने की भी चेष्टा की।

(ii) उन्होंने कहा कि लोगों को एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत का विकास करना चाहिए।

(iii) उन्होंने महिलाओं को चार सदगुण अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया-सतीत्व, रूप-रंग, वाणी और काम। महिलाओं की भूमिका को घरेलू स्तर पर ही रखने पर बल दिया गया। यहाँ तक कि उनके कपड़ों की लम्बाई निर्धारित करने का प्रस्ताव भी रखा गया।

(iv) कुओमितांग का सामाजिक आधार शहरी प्रदेश में थों। देश का औद्योगिक विकास धीमा था और गिने-चुने क्षेत्रों तक सीमित था। शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मजदूर वर्ग का विस्तार हो रहा था। इनकी संख्या लगभग 5 लाख थी। परन्तु इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मजदूर ही जहाज निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में लगे हुए थे। अधिकतर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओं शिमिन), व्यापारी और दुकानदार होते थे।

(v) शहरी मजदूरों, विशेषकर महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था। काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थीं। जैसे-जैसे व्यक्तिवाद बढ़ा, महिलाओं के अधिकारों, परिवार बनाने के तरीकों और प्रेम-प्यार आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।

(vi) समाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विस्तार से सहायता मिली। 1920 में पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पत्रकारिता फली-फूली जो कि सांच का प्रतिरूप थी। शाओ तोआफैन (1895-1944) द्वारा सम्पादित लोकप्रिय ‘लाइफ व: ली’ उसी नयी विचारधारा का प्रति त्व करती थी। इसने अपने पाठक को नए विचारों के साथ-साथ महात्मा गाँधी और तुर्की के आधुनिकतावादी नेता कमाल आतातुर्क से अवगत करवाया।

(vii) देश को एकीकृत करने के प्रयासों के बावजूद कुओमिनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण असफल रहा। सन-यात सेन के कार्यक्रम का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग “पुंजी नियमन और भूमि-अधिकारों में समानता” को कभी भी लागू न किया जा सका। इसका कारण यह था कि पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी की। इसने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय सैनिक व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।

(viii) 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया तो कुओमीनतांग पीछे हट गया। इस लम्बे और थका देने वाले युद्ध ने चीन की कमजोर बना दिया। 1945 और 1949 के दौरान कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की दर से बढ़ीं। इससे आम आदमी को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। ग्रामीण चीन में भी दो संकट थे। एक पर्यावरण सम्बन्धी था, जिससे बंजर भूमि, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे। दूसरा सामाजिक-आर्थिक था। यह संकट भूमि-प्रथा, ऋण, प्राचीन प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय सन्चार के कारण था।

प्रश्न 3.
चीन में साम्यवादी पार्टी की स्थापना कब और कैसे हुई ? 1949 माओत्सेतुंग के अधीन यह किस प्रकार शक्तिशाली बनी?
उत्तर:
चीन में साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में, रूस क्रान्ति के कुछ समय बाद हुई थी। रूसी क्रान्ति कि सफलता ने पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव डाला था। लेनिन और ट्राट्स्की जैसे नेताओं ने मार्च 1918 में कौमिंटर्न अथवा तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय (Third International) का गठन किया, ताकि विश्व स्तरीय सरकार बनाई जा सके जो शोषण को समाप्त करे। कौमिंटर्न और सोवियत संघ विश्व भर में साम्यवादी पार्टियों का समर्थन किया। मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित इन पार्टियों का मानना था कि शहरी क्षेत्रों में क्रान्ति मजदूर वर्गो द्वारा आयेगी। आरम्भ में विभिन्न देशों के लोग कौटिर्न के प्रति बहुत आकर्षित हुए। शीघ्र ही यह सोवियत संघ के स्वार्थों की पूर्ति का शस्त्र बन गया। 1943 में इसे समाप्त कर दिया गया।

माओत्सेतुंग (1893-1976) के अधीन साम्यवादी पार्टी सी.सी.पी. (साम्यवादी पार्टी)-माओ-त्से तुंग मार्क्सवादी पार्टी (सी.सी.पी.) के प्रमुख नेता के रूप में उभरे। उन्होंने क्रान्ति के कार्यक्रम को किसानों से जोड़ते हुए .एक अलग मार्ग अपनाया। उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बन गई, जिसने अन्ततः कुओमिनतांग पर विजय प्राप्त की।

माओत्सेतुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर तरीके-माओत्सेतुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीके जियांग्सी नामक स्थान पर दिखाई दिए। 1928-1934 के बीच उन्होंने यहाँ के पर्वतों में कुओमितांग के आक्रमणों से सुरक्षित शिविर लगाए। एक सशक्त किसान परिषद् (सोवियत) का गठन किया गया। भूमि पर नियन्त्रण और इसके पुनर्वितरण के साथ इसका एकीकरण हुआ। अन्य नेताओं से हटकर, माओने स्वतन्त्र सरकार और सेना पर बल दिया। माओत्सेतुंग महिलाओं की समस्याओं से भी अवगत थे। इसलिए उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने विवाह के नए कानून बनाए। आयोजित विवाहों और विवाह के समझौतों के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी गई। तलाक को आसान बनाया गया।

लाँग मार्च तथा साम्यवादियों का सत्ता में आना-कुओमितांग द्वारा कम्यनिस्टों की सोवियत का नाकेबन्दी ने पार्टी को कोई अन्य आधार ढूंढ़ने पर विवश किया। इसके च। उन्हें लाँग मार्च (1934-1935) पर जाना पड़ा, जो कि शांग्सी तक 6000 मील की कठिन यात्रा थी। अपने नये अड्डे येनान में उन्होंने वारलॉर्डिज्म को समाप्त करने, भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें मजबूत सामाजिक आधार मिला द्वितीय विश्व युद्ध के कठिन वर्षों में साम्यवादियों और कुओमीनतांग ने मिलकर काम किया। युद्ध समाप्त होने के बाद कुओमीनतांग की पराजय हुई और साम्यवादी सत्ता में आ गए।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्व युद्ध के तत्काल बाद के सालों में चीन के राष्ट्रवादी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं? सनयात सेन की मौत के बाद वहाँ जो घटनाएँ घटी, उनका वर्णन कीजिए और यह भी बताइए कि उनके क्या परिणाम निकले।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ तथा विशेषताएँ-प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के समय चीन में दो प्रमुख सरकारें थीं। इनमें से एक पर कोमिनतांग का अधिकार था। इस सरकार का मुख्यालय कैन्टन में था। दूसरे सरकार का शासनाध्यक्ष एक सैनिक जनरल था। उसका मुख्यालय बीजिंग में था। 1919 ई. में पेरिस शान्ति सम्मेलन ने शान्तुंग को जापान के हवाले करने का निर्णय दिया। इससे चीन में साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ हो गया इसका श्रीगणेश 4 मई, 1919 को बीजिंग विविद्यालय के छात्रों द्वारा साम्राज्यवाद विरोधी प्रदर्शन से हुआ। ‘यह आन्दोलन ‘चार मई आन्दोलन’ के नाम से विख्यात है।

आन्दोलन शीघ्र ही वीन के अन्य भागों में भी फैल गया। 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई जो शीघ्र ही देश की एक प्रमुख शक्ति बन गई। इस समय प्रसिद्ध चीनी नेता सनयात सेन भी चीन को एकीकृत करने के लिए प्रयत्नशील थे। वे पश्चिमी देशों की सहायता से अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहते थे। परन्तु जब उन्हें पश्चिम की ओर से कोई सहायता न मिली, तो उन्होंने सोवियत संघ से समर्थन माँगा। अन्ततः 1925 ई. में कोमिनतांग तथा कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग से एक राष्ट्रीय सरकार गठित करने का निर्णय लिया गया। इस सेना ने शीघ्र ही युद्ध सरदारों के विरुद्ध अपना अभियान आरम्भ कर दिया। परन्तु मार्च, 1925 ई. में डॉ. सनयात सेन का देहान्त हो गया, जिससे स्थिति बदल गई।।

डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् की घटनाएँ-
(i) डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिनतांग तथा कम्युनिस्ट का गठबन्धन हो गया और देश में गृह-युद्ध छिड़ गया। अब वहाँ किसान तथा मजदूर सक्रिय हो उठे। 1925 में शंघई में मजदूर की हत्या के विरोध में हड़तालें और. प्रदर्शन हुए। ये हत्याएँ जापानी उद्योगपतियों तथा ब्रिटिश पुलिस की कार्यवाही से हुई थीं। विद्रोही किसानों ने कई स्थानों पर अपने भू-स्वामियों से उनकी भूमि छीन ली।

(ii) 1927 ई. के मार्च मास में राष्ट्रीय क्रान्तिकारी सेना नानकिंग पहुँचा। वहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन के युद्ध पोतों ने गोलाबारी आरम्भ कर दी। इस गोलाबारी में सैकड़ों लोग मारे गए। परन्तु उसी समय कोविनतांग में फूट पड़ गई और राष्ट्रीय क्रान्तिकारी सेना के नेता च्यांग-काई शेक ने नानकिंग में अपनी सरकार स्थापित कर ली। कोतिनतांग में विद्यमान वामपन्थी तत्वों में कम्युनिस्ट दल (मजदूरों) की शक्ति का दमन करना चाहता था। उसकी सैनिक टुकड़ियों ने शंघाई में मजदूरों के घरों में छापे मार कर हजारों की संख्या में मजदूरों को मार डाला।

(iii) 1 दिसम्बर, 1927 को कैन्टन में कम्युनिस्टों में एक विद्रोह का नेतृत्व किया और सोवियत रूप की एक सरकार स्थापित की, परन्तु इस विद्रोह को कुचल दिया गया। इस घटना में लगभग 5000 मजदूर मारे गये। इससे चीन के राष्ट्रीय आन्दोलन में फूट पड़ गयी। सोवियत सलाहकारों को चीन से बाहर निकाल दिया गया तथा कगिनतांग के अनेक नेता देश छोड़कर चले गये। इनमें सनयात सेन की विधवा भी शामिल थी। परन्तु देश में कम्युनिस्टों की शक्ति का पूरी तरह पतन नहीं हुआ। कई कम्युनिस्ट देश के विभिन्न भागों में फैल गये और उन्होंने कुछ प्रदेशों को अपने नियन्त्रण में ले लिया। इस प्रकार चीन का गृह-युद्ध एक नये चरण में प्रवेश कर गया, जो कम्युनिस्टों तथा च्यांग-काई-शेक सरकार के बीच चला।

(iv) मंचूरिया पर जापानी अधिकार के कारण चीन में जापानी माल के बहिष्कार का भी एक आन्दोलन चला। परन्तु इस सम्बन्ध में कोमिनतांग के नेता च्यांग-काई-शेक तथा कम्युनिस्टों के बीच एकता स्थापित न हो सकी । कोमिनतांग ने जापान के विरुद्ध कार्यवाही करने की बजाय कम्युनिस्टों की शक्ति कुचलने की ओर ही अपना ध्यान लगाया। परन्तु ग्रामीण प्रदेशों में कम्युनिस्टों की शक्ति निरन्तर बढ़ती ही चली गई। इसी बीच माओ-त्से-तुंग एक प्रभावशाली कम्युनिस्ट नेता के रूप में उभर कर सामने आये। उन्होंने किसान शक्ति की सहायता से देश में समाजवादी क्रान्ति लाने की योजना बनाई। परन्तु 1934 ई. में च्यांग-काई-शेक ने एक विशाल सेना के साथ कम्युनिस्टों के प्रभाव क्षेत्रों पर आक्रमण कर दिया।

कम्युनिस्ट यह नहीं चाहते थे कि उनका पूरी तरह सफाया कर दिया जाये। अतः वे अपने प्रभाव क्षेत्रों को छोड़कर चले गये। उनमें से लगभग 1 लाख कम्युनिस्ट उत्तर-पश्चिम की ओर येनान क्षेत्र में पहुँचे। येनान पहुँचने में कम्युनिस्टों ने लगभग छः हजार मील की लम्बी यात्रा की। इसी कारण इतिहास में यह घटना ‘लम्बी यात्रा’ (Long March) के नाम से विख्यात है। इस घटना के कारण कम्युनिस्टों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान अनेक जमींदारों से भूमि छीन कर किसानों में बाँट दी थी। अतः लोगों के मन में यह बात पूरी तरह बैठ गई कि कम्युनिस्ट दल ही जन-साधारण का भला कर सकता है। लोग च्यांग-काई-शेक की सरकार को जमींदारों, सूदखोरों तथा सौदागरों की सरकार समझने लगे।

(v) 1937 में चीन पर एक भीषण जापानी आक्रमण हुआ। च्यांग-काई-शेक की सेना, जो केवल कम्युनिस्ट विरोधी कार्यवाही में ही व्यस्त थी, जापानी सेना के सामने न टिक सकी। परिणामस्वरूप उसे पीछे हटना पड़ा। उनकी सरकार का मुख्यालय मानकिंग से हटकर चंगकिंग में पहुंच गया। परन्तु इसी बीच जापानी आक्रमण को रोकने के लिए एक संयुक्त मोर्चे का गठन भी किया जा चुका था। यह सब एक महत्त्वपूर्ण घटना के कारण सम्भव हुआ था, जिसमें च्यांग-काई-शेक को बन्दी बना लिया गया था और उसे तब तक नहीं छोड़ा गया था, जब तक कि कोमिनतांग कम्युनिस्टों के साथ मिलकर जापान का विरोध करने के लिए तैयार न हो गये। परन्तु इस एकता के बावजुद भी दोनों दलों के लोग एक-दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते रहे।

परिणाम – डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् चीन में जो घटना. चक्र चला, उसका सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि कम्यूनिस्ट दल एक शक्शिाली दल के रूप में उभरकर सामने आया।

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प्रश्न 5.
मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात् जापान के आधुनिकीकरण हेतु कौन-कौन से कदम उठाये गये।
उत्तर:
मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात जापान ने शिक्षा, उद्योग, सैन्य, राजनीति, आधुनिकीकरण के पीछे यूरोपीय देशों द्वारा जापान को अपने अपने उपनिवेश बना लेने का डर उच्च करों को वसूलने में उठने वाले विद्रोहों को दबाने तथा विश्व के मान चित्र पर एक सशक्त देश के उभरने की महत्त्वकांक्षा थी। अतः इन्हीं बातों के आधार पर जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को सही हराया। अशिक्षा, सामन्ती व्यवस्था, ..र्थिक अव्यवस्था तथा विदेशी शक्ति द्वारा जापान की आन्तरिक व्यवस्था से लाभ उठाकर उपनिवेश बनाने की कोशिश ने 1867 में जापान के सम्राट मुत्सहितो को, जिसने ‘मेइजी’ की उपाधि धारण की, सत्ता सौंप दिया। इसे ही इतिहास में मेइजी पुर्नस्थापना कहते हैं।

उपर्युक्त समस्याओं के निराकरण हेतु आवश्यकता थी जापान के आधुनिकीकरण करने की, जिसे सम्राट ने धैर्य के साथ किया। इसी हेतु 1871 में सामन्तवादी व्यवस्था का वहाँ अन्त कर दिया गया। शासन में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये दो सदन वाली डायर की स्थापना की गई। नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का दर्जा दिया गया। – मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात् शिक्षा की अतीव उन्नति जापान में हुई। जापान में शिक्षा का आधार राष्ट्रीयता के प्रसार को बनाया गया।

प्रश्न 6.
जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को किस प्रकार सही ठहराया?
उत्तर:
जापान में मेजी पुर्नस्थापना के पश्चात जापान ने शिक्षा, उद्योग, सैन्य, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों का आधुनिकीकरण किया। सैन्य आधुनिकीकरण के पीछे यूरोपीय देशें द्वारा जापान को अपने-अपने उपनिवेश बना लेने का डर, उच्च करों को वसूलने में उठने वाले विद्रोहों को दबाने तथा विश्व के मानचित्र पर एक सशक्त देश के उभरने की महत्वाकांक्षा थी। अतः इन्हीं बातों के आधार पर जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को सही ठहराया।

प्रश्न 7.
चीन में साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना कैसे हुई? इस क्रान्ति के चीन पर पड़े प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
चीन में 1949 की क्रान्ति कैसे हुई। चीन पर इसके क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
चीन में साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना निम्नलिखित चरणों में हुई
(i) डॉ. सनयात-सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग-काई के नेतृत्व में कोमिंतांग और माओ जेदांग (माओ-त्ये-तुंग) के नेतृत्व में कम्युनिष्ट पार्टी के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया।

(ii) चीन पर जापानी आक्रमण के समय दोनों पार्टियों और उनकी सेनाओं ने जापानी आक्रमण का सामना करने के लिए कुछ समय तक आपस में सहयोग किया। परन्तु इनका आपसी टकराव फिर भी समाप्त न हुआ।

(iii) कोमिंतांग मुख्यतः पुंजीपतियों और जमींदारों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी थी। दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी मजदूरों और किसानों की पार्टी थी। कम्यूनिस्ट पार्टी के नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में जमींदारों की जागीरें जब्त करके जमीन को किसानों के बीच बाँट दिया गया। अपनी इन नीतियों से कम्युनिस्ट पार्टी ने धीरे-धीरे करोड़ों चीनी लोगों को अपना समर्थक बना लिया था। कम्युनिस्ट पार्टी ने जनमुक्ति सेना नाम से एक बड़ी सेना भी बना ली थी।

(iv) जापान की हार तथा चीन से जापानी सैनिकों के भागने के बाद गृहयुद्ध फिर से भड़क उठा। अमेरिकी सरकार ने च्यांग-काई-शेक को भारी सहायता दी। परन्तु उसकी सेनाएँ 1949 तक पूरी तरह नष्ट हो चुकी थीं। अपनी बची-खुची सेना के साथ च्यांग-काई-शेक ताइवान (फारमोसा) चला गया। अक्टूबर, 1949 को चीनी लोक गणराज्य की स्थापना की घोषणा की गई औरी माओ जंदांग के नेतृत्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई।

चीन पर क्रान्ति के प्रभाव –

  • 1949 की चीनी क्रान्ति ने चीनी समाज के स्वरूप को बदल डाला। परम्परागत चीनी समाज कन्फयूशियस के सिद्धान्तों और विचारों पर आधारित था। परन्तु क्रान्ति के बाद देश में नई विचारधारा उन्न हुई। अब श्रमिक वर्ग और चीनी गरिकों को उचित सम्मान दिया जाने लगा।
  • इस क्रान्ति से चीनी लोगों का दैनिक जीवन काफी सुखी हो गया। क्रान्ति के बाद साम्यवादी सरकार ने देश में राशन प्रणाली आरम्भ की और जीवन की आवश्यकताओं को लोगों तक पहुँचाया। बीमारियों, आगजनी और लूटमार के अपराधों पर भी नियन्त्रण करने का प्रयास किया गया।
  • इस क्रान्ति से भूमिहीन किसानों को भूमि मिली। इसके अतिरिक्त सरकार ने किसानों की सहायता के लिए सहकारी समितियाँ बनाई।
  • इस क्रान्ति से स्त्रियों की दशा में भी परिवर्तन आया। क्रान्तिकारी सरकार ने स्त्रियों के उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। उनके क्रय-विक्रय को अवैध घोषित कर दिया गया।
  • चीनी क्रान्ति से विश्व में समाजवादी विचारधारा को बल मिला।

प्रश्न 8.
जापान में मेजी शासन के अधीन अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण किस प्रकार हुआ ? उद्योगों के विकास का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण मेजी सुधारों की एक महत्त्वपर्ण विशेषता थी। इसके लिए निम्नलिखित पग उठाए गए-
(i) कृषि पर कर लगाकर धन एकत्रित किया गया।

(ii) 1870-1872 में तोक्यो (Tokyo) से योकोहामा बन्दरगाह के बीच जापान की पहली रेल लाइन बिछाई गई।

(iii) वस्त्र उद्योग के लिए यूरोप से मशीनें आयात की गईं। मजदूरों के प्रशिक्षण तथा देश के विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ाने के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया ।

(iv) कई जापानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा गया।

(v) 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना की गई।

(vi) मित्सुबिशी और सुमितोमो जैसी कम्पनियाँ सब्सिडी और करों में छूट के कारण प्रमुख जहाज निर्माता कम्पनियाँ बन गईं। अब जापान का व्यापार जापानी जहाजों द्वारा होने लगा। बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाओं ‘जायबात्सु’ का प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

(vii) 1874 में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी, जो 1920 में 5.5 करोड़ हो गई। जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को बढ़ावा दिया। पहले लोगों को उत्तरी द्वीप होकायदो की ओर भेजा गया। यह काफी सीमा तक एक स्वतन्त्र प्रदेश था और वहाँ आयनू कहे जाने वाले लोग रहते थे। इसके बाद उन्हें हवाई, ब्राजील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर भेजा गया। उद्योगों के विकास के साथ-साथ लोग शहरों की ओर आने लगे। 1925 तक 21 प्रतिशत जनता शहरों में रहती थी। 1935 तक यह बढ़ कर 32 प्रतिशत हो गई।

(viii) जापान में औद्योगिक मजदूरों की संख्या 1870 में 7 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गई। अधिकतर मजदूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे, जिनमें 5 से भी कम लोग थे और जिनमें मशीनों तथा विद्युत्त-ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता था। कारखानों में काम करने वाले मजदूरों में आधे से अधिक महिलाएँ थीं। 1900 के बाद कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी। परन्तु 1930 के दशक में ही आकर पुरुषों की संख्या महिलाओं में अधिक हुई। कारखानों में मजदूरों की संख भी बढ़ने लगी। फिर भी 1940 में 5 लाख 50 हजार कारखानों में पाँच-पाँच से भी कम मजदूर काम करते थे।

पर्यावरण पर प्रभाव – उद्योगों के तीव्र और अनियन्त्रित विकास तथा लकड़ी की अधिक माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ। संसद के निम्न सदन में सदस्य तनाको शोजो ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन छेड़ा। 800 गाँववासी जन विरोध में एकत्रित हुए और उन्होंने सरकार को कार्यवाही करने के लिए विवश किया।

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प्रश्न 9.
जापान के आक्रामक राष्ट्रवाद, पश्चिमीकरण तथा परम्परा की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आक्रामक राष्ट्रवाद-मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था। संविधान द्वारा बनाई गई डायट (संसद) के अधिकार सीमित थे। शाही पुनः स्थापना करने वाले नेता सत्ता में बने रहे और उन्होंने राजनीतिक पार्टियों का गठन किया। 1918-1931 के दौरान जनमत द्वारा चुने गए प्रधानमंत्रियों ने मंत्रिपरिषद् बनाई। इसके बाद उन्होंने पार्टियों का भेद भुला कर राष्ट्रीय मंत्रिपरिषद् बनाईं। सम्राट सैन्य बलों का कमांडर था और 1890 से यह माना जाने लगा कि थलसेना और नौसेना का नियन्त्रण स्वतन्त्र है। 1899 में प्रधानमंत्री ने आदेश दिया कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मंत्री बन सकते हैं। सेना को मजबूत बनाने का अभियान और जापान के उपनिवेशों की वृद्धि इस भय से एक-दूसरे से सम्बन्धित थी कि जापान पश्चिमी शक्तियों की दया पर निर्भर है। यह भय दिखा कर सैन्य-विस्तार के और सैन्यबलों को अधिक धन जुटाने के उद्देश्य से ऊँचे कर वसूले गए। इन करों के विरुद्ध आवाजें उठीं परन्तु उन्हें दबा दिया गया।

पश्चिमीकरण तथा परम्परा – अन्य देशों के साथ जापान के सम्बन्धों के बारे में जापानी बुद्धिजीवियों की आने वाली पीढ़ियों के विचार भिन्न-भिन्न थे। कुछ का विचार था कि अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देश सभ्यता की ऊँचाइयों पर हैं। जापान को भी उसी ऊँचाई पर पहुँचने की आकांक्षा रखनी चाहिए। फुकुजावा यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे। उनका कहना था कि जापान को ‘अपने में से एशिया को निकाल फेंकना’ चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय यह था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ कर पश्चिम का भाग बन जाना चाहिए।

अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से अपनाने पर आपत्ति की और कहा कि राष्ट्रीय गौरव का निर्माण देशी मूल्यों पर ही होना चाहिए। दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सरे (18601945) ने तर्क पेश किया कि विश्व सभ्यता के हित में प्रत्येक राष्ट्र को अपने विशेष गुणों का विकास करना चाहिए। स्वयं को अपने देश के लिए समर्पित करना स्वयं को विश्व के प्रति समर्पित करने के समान है। दूसरी ओर बहुत से बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की ओर आकर्षित थे। वे चाहते थे कि जापान अपना निर्माण सेना की बजाय लोकतन्त्र के आधार पर करे।

संवैधानिक सरकार की माँग करने वाले आन्दोलन के नेता उएको एमोरी (1857-1892) फ्रांसीसी क्रान्ति के मानव के प्राकृतिक अधिकारों और जन प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों के प्रशंसक थे। वह उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे, जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित कर सके। कुछ दूसरे लोगों ने तो महिलाओं के मताधिकार की भी सिफारिश की। इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर बाध्य किया।

प्रश्न 10.
दो विश्वयुद्धों के बीच में जापान में सैनिकवाद के उत्थान की विवेचना कीजिए। यह विकास जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
1918 ई. तक जापान आर्थिक दृष्टि से काफी समृद्ध था। परन्तु देश में राजनीतिक अस्थि॥ का वातावरण था। देश में लोकतन्त्र की स्थापना के प्रयास किए जा रहे थे। परन्तु सेना सता पर अपना प्रभाव बढ़ाने में व्यस्त थी। फलस्वरूप जापान पुनः सैनिकवाद की ओर बढ़ने
लगा।
माणन में सैनिकवाद के बढ़ते कदम – द्वितीय विश्व युद्ध तक जापान में सैनिकवाद के विकास र्णन इस प्रकार है-
(i) 1929 की महान् आर्थिक मन्दी-1929 ई. में विश्व तथा. विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका। महान् आर्थिक मन्दी का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप संयुक्त राज्य में वस्तुओं का उपभोग बहुत ही कम हो गया। इसका जापान की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसका कारण यह था कि अमेरिका जापान से निर्यात होने वाले कृषि उत्पादन का सबसे बड़ा बाजार था। देश का निर्यात कम होने से कृषकों को घोर निर्धनता का सामना करना पड़ा। तंग आकर वे सेना में भर्ती होने लगे। इस अवसर का लाभ उठा कर देश के सेनानायकों ने सैन्यवाद महिमा गान करना आरम्भ कर दिया । वे चाहते थे कि जापान चीन में चल रहे गृह युद्ध का लाभ उठा कर चीन को एक उपनिवेश के रूप में प्रयोग करे।

(ii) मंचूरिया संकट 1931-मंचूरिया चीन का एक प्रान्त था। यहाँ चीन की कम्पनियों का बहुत अधिक प्रभाव था। चीन की राष्ट्रवादी सरकार ने उसकी शक्ति को नियन्त्रित करने का प्रयास किया। अतः टोक्यो (जापान) के सैनिकवादियों ने देश के अनुसार राजनेताओं के सहयोग से मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया और वहाँ एक कठपुतली सरकार की स्थापना कर दी। इस सम्बन्ध में देश के प्रधानमंत्री इनुकई (Inukai) से पूछा तक नहीं गया। जब इनुकई ने इस घटना का विरोध किया, तो उसकी हत्या कर दी गई और देश का शासन सेना के अधीन कर दिया गया। फलस्वरूप जापान में सैनिकवाद की जड़ें और अधिक गहरी हो गईं।

(iii) सैनिक फासीवाद-उपरोक्त घटना के पश्चात् द्वितीय विश्व युद्ध तक जापान में सैनिक फासीवाद का बोलबाला रहा। वहाँ सेना सर्वेसर्वा बन गई और सम्राट नाममात्र का मुखिया बना रहा। सैनिक सत्ता का विरोध करने वाले लोगों के साथ सख्ती के साथ निपटा गया। ऐसे अधिकांश लोगों को साम्यवादी होने की आड़ में गोलियों से उड़ा दिया गया। विचारों की अभिव्यक्ति तथा शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जापान की विदेश नीति ने आक्रामक रूप धारण कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य एशिया में तेजी से औपनिवेशिक विस्तार करना था।

इस दिशा में ब्रिटेन तथा अमेरिका के हितों को चोट पहुँचाने का हर सम्भव प्रयास किया गया। जापान द्वारा 1937 में चीन पर आक्रमण के समय अनेक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस हत्याकांड का जापानी सम्राट भी विरोध करने का साहस न कर सका। इस प्रकार जापान में सैनिकवाद इतना अधिक हावी हो गया कि इसने जापान को द्वितीय विश्व युद्ध में धकेल दिया। उसने अन्य दो फासीवादी देशों इटली तथा जर्मनी का साथ दिया।

प्रश्न 11.
‘मेजी पुनःस्थापन’ का अर्थ क्या है? जापान के विकास पर इसके भावी परिणाम क्या थे?
उत्तर:
जापान में शताब्दियों तक ‘शोगुन’ शासक सत्ता के वास्तविक स्वामी बने रहे। परन्तु 1869 में ‘शोगुन’ गासन समाप्त कर दिया गया और उस स्थान पर नए शासक तथा सलाहकाः सामने आए। ये लोग जापानी सम्राट के नाम पर शासन चलाते थे। इस प्रकार देश में सम्राट फिर से सर्वेसर्वा बन गया। उसने ‘मेजी’ की उपाधि धारण की। इसलिए जापान के इतिहास में इस घटना को ‘मेजी पुनः स्थापना’ का नाम दिया गया।

महत्त्व – ‘मेजी पुनःस्थापना’ का जापान की भावी प्रगति पर गहरा प्रभाव पड़ा जिसका वर्णन इस प्रकार है-
(i) औद्योगिक प्रगति-मेजी युग में जापान ने औद्योगिक क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की। देश की सरकार ने उद्योगों में व्यापक पूंजी निवेश किया। बाद में उद्योग पूंजीपतियों को बेच दिए गए। इस प्रकार ब नए उद्योग आरम्भ करने के लिए सरकारी सहायता की कोई आवश्यकता न रही। किसानों की दरिद्रता का भी उद्योगों को लाभ पहुँचा। अनेक निर्धन किसान गाँवों को छोड़कर नगरों में बसे। परिणमस्वरूप उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध होने लगे। 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक जापान उद्योगों में इतना अधिक शक्तिशाली हो गया कि वह अन्तराष्ट्रीय बाजार में यूरोप के औद्योगिक देशों के साथ टक्कर लेने लगा।

(ii) नवीन संविधान-सन् 1889 में जापान को एक नया संविधान मिला। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
1. सम्राट को कार्यकारिणी के प्रधान के रूप में विशेष शक्तियाँ दी गईं थीं। सभी मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट द्वारा होती थी और वे अपने कार्यों के लिए सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। वास्तव में सम्राट को दैवी शक्तियाँ प्राप्त थीं उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था। अतः उसे पवित्र एवं श्रेष्ठतम मानकर उसकी पूजा की जाती थी।
2. संविधान में एक संसद का प्रावधान था, जिसे डायट कहते थे। परन्तु डायट की शक्तियाँ काफी सीमित थीं। उस पर सेना का नियन्त्रण स्थापित किया गया था ।
3. पुलिस को व्यापक अधिकार दिए गए थे। वह राजतन्त्र विरोधी गतिविधियों पर आसानी से रोक लगा सकती थी।

(iii) औपनिवेशिक विस्तार-1890 के दशक में जापान यूरोपीय देशों के साथ औपनिवेशिक होड़ में शमिल हो गया। इसने 1895 ई. में चीन से युद्ध किया और उसे परास्त करके फारमोसा पर अपना अधिकार कर लिया। फिर 1905 ई. में कोरिया उसका संरक्षित राज्य बन गया और इसके पाँच वर्ष पश्चात् यह प्रदेश जापानी सम्राज्य का अंग बन गया।
इस प्रकार मेजी पुनः स्थापना के बाद जापान एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरने लगा। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों ने 1899 में ही उसे एक महाशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया था। कुछ देरों ने उसके साथ समानता के आधार पर संधियाँ भी की थीं।

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प्रश्न 12.
19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों से लेकर प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति तक एक विश्व शक्ति के रूप में जापान के विकास क्रम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जापान एशिया का एकमात्र साम्राज्यवादी शक्ति था। उसने अपना साम्राज्यवादी प्रसार 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में किया। इससे पूर्व जापान स्वयं साम्राज्यवाद का शिकार होते-होते बचा था। 1853 ई. में कमोडोर पेरी के नेतृत्व में जंगी जहाज जापान के तट पर पहुँचे थे। पेरी ने बल प्रयोग द्वारा जापान को अमेरिकी जहाजरानी तथा व्यापार की छूट देने के लिए बाध्य किया। जापान के साथ ब्रिटेन, हालैंड तथा रूस ने भी समझौते किए। फिर भी जापान अन्य एशियाई देशों के कटु अनुभव से बचा रहा।

जापान का शक्तिशाली बनना – 1876 ई. में जापान में महत्त्वपूर्ण सत्ता-परिवर्तन हुआ, जिसे मेजी पुर्नस्थापना कहा जाता है मेजी काल में जापान ने बहुत उन्नति की। उसने अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाना आरम्भ कर दिया और कुछ ही दशकों में वह विश्व का एक प्रमुख औद्योगिक देश बन गया। इसके अतिरिक्त वे शक्तियाँ जिन्होंने पश्चिमी देशों को साम्राज्यवादी बनया था, जापान में भी सक्रिय थीं पश्चिमी देशों की भांति जापान के पास भी अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल बहुत कम था। उसे अपने माल की खपत के लिए नए बाजार नी चाहिए थे। अतः उसकी नजर ऐसे देश पर पड़ी जो उसकी इन दोनों आवश्यक्ताओं की ते कर सकते थे। इस प्रकार वह भी साम्राज्यवाद की होड़ में सम्मिलित हो गया।

साम्राज्यवाद विस्तार – जापान के साम्राज्यवादी विस्तार प वर्णन इस प्रकार है-

  • जापान के निकट चीन था और चीन में उसके साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पर्याप्त अवसर थे। दोनों देश 1894 में कोरिया के प्रश्न पर एक-दूसरे से युद्ध कर चुके थे। इसके बाद जापान का चीन में प्रभाव काफी बढ़ गया था।
  • 1902 में इंग्लैंड तथा जापान का समझौता हुआ। इसके अनुसार जापान को अन्य यूरोपीय शक्तियों के समान दर्जा मिल गया।
  • 1940-05 में उसने रूस को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप उसे सखालिन का दक्षिणी भाग प्राप्त हुआ । जापान का लियाओतुंग प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर भी अधिकार हो गया। उसने पोर्ट आर्थर पट्टे (किराये)पर ले ली।
  • 1910 में कारिया जापान का उपनिवेश बन गया।

इस प्रकार प्रथम विश्व-युद्ध के समय तक जापान एक महाशक्ति बन चुका था। यदि पश्चिमी शक्तियाँ उसके मार्ग में बाधा न बनतीं, तो वह चीन में अपना और अधिक प्रसार कर सकता था। परन्तु यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमी देशों की तुलना में जापान के साम्राज्यवादी कारनामे काफी बदतर थे।

प्रश्न 13.
द्वितीय विश्वयुद्ध में पराजय के पश्चात् जापान का विश्व की आर्थिक शक्ति। के रूप में उत्थान किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
युद्ध के बाद की स्थिति-द्वितीय विश्व युद्ध में पराजय के बाद जापान के औपनिवेशिक साम्राज्य के प्रयास थम गए। यह तर्क दिया गया था कि युद्ध को जल्दी समाप्त करने के लिए जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये गये थे। परन्तु बहुत से लोगों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाली विनाशलीला पूरी तरह से अनावश्यक थी। अमेरिका नियन्त्रण (1945-47) के दौरान जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया।

एक नया संविधान भी लागू हुआ। इसके अनुच्छेद 9 के ‘युद्ध न करने’ की तथाकथित धारा के अनुसार जापान युद्ध को राष्ट्रीय नीति नहीं बना सकता । कृषि सुधार, व्यापारिक संगठनों के पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में जायबात्सु अर्थात् बड़ी एकाधिकार कम्पनियों को पकड़ को समाप्त करने का प्रयास किया गया । राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित किया गया और युद्ध के पश्चात् 1946 में पहले चुनाव हुए । इन चुनावों में पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।

आर्थिक शक्ति के रूप में उत्थान – युद्ध में भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का बड़ी तेजी से पुनर्निर्माण हुआ। संविधान को औपचारिक रूप से लोकतान्त्रिक बनाया गया। परन्तु जापान में जनवादी आन्दोलन और राजनीतिक भागीदार का आधार बढ़ाने की ऐतिहासिक परम्परा रही थी। अतः युद्ध से पहले के काल की सामाजिक सम्बद्धता को सुदृढ़ किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार नौकरशाही और उद्योग के बीच एक निकट सम्बन्ध स्थापित हुआ।

अमेरीकी समर्थन और कोरिया तथा वयतनाम में युद्ध से उत्पन्न माँग ने जापानी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहायता की। 1964 में हुए ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की परिपक्वता। के प्रतीक थे। तेज गति वाली शिकाँसेन अर्थात् बुलेट ट्रेन का जाल भी 1964 में आरम्भ हुआ। ये गाड़ियाँ 200 मील प्रति घंटे की गति से चलती थीं। अब वे 300 मील प्रति घंटे की गति से चलती हैं। यह बात भी जापानियों की सक्षमता को दर्शाती है कि उन्होंने नयी प्रौद्योगिकी द्वारा बेहतर और सस्ते उत्पाद बाजार में उतारे।

1960 के दशक में ‘नागरिक समाज आन्दोलन’ का उदय हुआ। इस आन्दोलन द्वारा बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की पुरी तरह से उपेक्षा कर देने का विरोध किया गया। कैडमियम का विष, जिसके कारण एक बहुत ही कष्टप्रद बीमारी होती थी, औद्योगिक दुष्प्रभाव का आरम्भिक सूचक था। इसके बाद 1960 के दशक में वायु प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुई। दबाव गुटों ने इन समस्याओं को पहचानने और भृतकों के लिए मुआवजा देने की माँग की।

सक्रियता से नए कानूनों से स्थिति में सुधार आने लगा। 1980 के दशक के मध्य से पर्यावरण सम्बन्धी विषयों में लोगों की रुचि में कमी आई है, क्योंकि जापान ने विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण नियन्त्रण कानून बनाए हैं। आज जापान एक विकसित देश है। वह अपनी राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का प्रयोग करके स्वयं को एक विश्व शक्ति बनाए रखने का प्रयास रहा है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
रेड गार्डस में कौन शामिल थे?
(क) किसान और मजदूर
(ख) सामन्त
(ग) छात्र और सेना
(घ) गाँवों के लोग
उत्तर:
(ग) छात्र और सेना

प्रश्न 2.
कोमिंतांग पार्टी का निम्नलिखित में कौन-सा कार्य नहीं होता?
(क) एक दमनकारी सरकार की स्थापना की।
(ख) सत्ता में स्थनीय आबादी को शामिल नहीं किया गया।
(ग) भूमि सुधार का कार्यक्रम चलाया।
(घ) बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगा दी।
उत्तर:
(घ) बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगा दी।

प्रश्न 3.
ताइवान में मार्शल-लॉ कब हटाया गया?
(क) 1687
(ख) 1787
(ग) 1887
(घ) 1987
उत्तर:
(ग) 1887

प्रश्न 4.
जापान के आधुनिकीकरण का एक दुष्परिणाम था?
(क) सैनिकवाद
(ख) शैक्षणिक विकास
(ग) औद्योगिक विकास
(घ) सांस्कृतिक पतन
उत्तर:
(क) सैनिकवाद

प्रश्न 5.
जापानी सैन्यबलों का सर्वोच्च कमांडर निम्न में से कौन है?
(क) सम्राट
(ख) जनरल
(ग) एडमिरल
(घ) ब्रिगेडियर
उत्तर:
(क) सम्राट

प्रश्न 6.
जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ कब हुआ?
(क) 1772
(ख 1815
(ग) 1852
(घ) 1872
उत्तर:
(घ) 1872

प्रश्न 7.
कोमिंतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) का संस्थापक कौन था?
(क) सनयात-सेन
(ख) चियांग काई शेक
(ग) माओ जेदोंग
(घ) देंग जियोपिंग
उत्तर:
(क) सनयात-सेन

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन-सी समस्या कारखानों के मजदूनरों की समसया नहीं थी?
(क) काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे।
(ख) शहर में कार बहुत चलती थी।
(ग) मजदूरों को कम वेतन मिलता था।
(घ) काम करने की परिस्थितियाँ खराब होती थीं।
उत्तर:
(ख) शहर में कार बहुत चलती थी।

प्रश्न 9.
चीन में पीकिंग विश्वविद्यालय कब स्थापित हुआ?
(क) 1802
(ख) 1812
(ग) 1902
(घ) 2002
उत्तर:
(ग) 1902

प्रश्न 10.
कौंमिटर्न का अन्य नाम क्या है?
(क) प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय
(ख) द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय
(ग) तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय
(घ) चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय
उत्तर:
(ग) तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय

प्रश्न 11.
लाँग मार्च (1934-35) के यात्रा की दूरी क्या थी?
(क) 3000 मील
(ख) 4000 मील
(ग) 5000 मील
(घ) 6000 मील
उत्तर:
(घ) 6000 मील

प्रश्न 12.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना कब हुई?
(क) 1948
(ख) 1949
(ग) 1950
(घ) 1951
उत्तर:
(ख) 1949

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प्रश्न 13.
पीपुल्स कम्यून्स क्या थे?
(क) जहाँ लोग एकत्र जमीन के मालिक थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे।
(ख) जहाँ एकत्र होकर लोग युद्ध करते थे।
(ग) जहाँ राजा के साथ मनोरंजन किया जाता था।
(घ) जहाँ सामन्तों की महत्त्वपुर्ण बैठकें होती थीं।
उत्तर:
(क) जहाँ लोग एकत्र जमीन के मालिक थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे।