Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 2 कविता की परख (रामचंद्र शुक्ल)
कविता की परख पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
कविता के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर-
लेखक के अनुसार कविता का उद्देश्य पाठक के हृदय को प्रभावित करना होता है। इससे उसके भीतर दया, प्रेम, करुणा, आनंद, आश्चर्य आदि मानवीय भावों का संचार होता है। जिस रचना में प्रभावोत्पादकता न हो, वह और चाहे कुछ भी हो, कविता नहीं हो सकती।
प्रश्न 2.
कल्पना किसे कहते हैं? एक कवि के लिए कल्पना का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जिस मानसिक शक्ति के सहारे कवि कविता में भावोदपीन हेतु तत्संबंधी रूप एवं व्यापार का योजना करते हैं तथा पाठक उसे अपने मन में ग्रहण करते हैं, उसे’ कल्पना कहते हैं। एक कवि के लिए कल्पना का अत्याधिक महत्त्व है। बिना कल्पना शक्ति के कोई व्यक्ति कवि नहीं हो सकता। क्योंकि कल्पना के बल पर ही कवि रूप व्यापारादि की चित्रवत् योजना करता है। इसके अभाव में कविता में प्रभावोत्पादकता नहीं आ सकती, जो कवि का लक्ष्य होता है। अतएव, एक कवि के लिए कल्पना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 3.
उपमा क्या है? कविता में उपमा का प्रयोग क्यों किया जाता है। पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर-
उपमा का अर्थ होता है-उप अर्थात समीप और मा अर्थात् मापन। तात्पर्य यह कि दो भिन्न पदार्थों में समता दिखाना ही उपमा है। यह समता रूप, गुण अथवा प्रभाव के आधार पर दिखायी जाती है। जैसे-मुख चाँद के समान सुंदन है; शिवाजी शेर की तरह वीर थे इत्यादि।
काव्यशास्त्र में ‘उपमा’ एक अर्थालंकार है, जो अलंकारों में शिरोल माना जाता है।
कविता में उपमा का प्रयोग वर्ण्य-विषय से संबंधित भावना को तीव्र करने के लिए किया जाता है। जैसे-मुख सौदर्य की भावना उत्पन्न करने के लिए मुख के साथ एक अन्य सुंदर पदार्थ चाँद को रख देने से सौंदर्य की भावना उदीप्त, जागृत एवं अत्यधिक तीव्र हो जाती है।
प्रश्न 4.
आँख के लिए मीन, खंजन और कमल की उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें क्या-क्या समानताएँ हैं?
उत्तर-
आँख के लिए कवियों द्वारा प्राय: मीन, खंजन और कमल की उपमाएँ दी जाती हैं। इनमें परस्पर लघुता, सुंदरता, मोहकता, चंचलता, कोमलता, प्रभावोत्पादकता आदि की समानताएँ हैं।
प्रश्न 5.
‘मानों ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है’-इस उक्ति के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
‘कविता की परख’ शीर्षक निबंध में काव्यमर्मज्ञ आचार्य शुक्ल ने कविता में उपमा-नियोजन के औचित्य, महत्त्व तथा उसकी उपयुक्तता-अनुपयुक्ता पर बड़े सुविचारित रूप में प्रकाश डाला है। प्रश्नोद्धृत वाक्य इसी प्रसंग में उल्लिखित है।
लेखक के मतानुसार, उपमा की सार्थकता वर्ण्य-वस्तु के अनुरूप भावनाओं को तीव्रता प्रदान करने में है। इसके लिए कवियों को आकर-प्रकार की अपेक्षा प्रभाव-साम्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ऐसी उपमाएँ, जिनसे कवि-अभिप्रेत भावनाएँ उदीप्त एवं तीव्र नहीं होतीं, उपेक्षणीय हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने ‘उठे हुए बादलों के ऊपर होते हुए पूर्ण चंद्रमा’ जैसे रमणीय दृश्य के लिए ‘मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा है’ जैसे अनुचित उपमा का उदाहरण देकर इसकी व्यर्थता बताई है। अतः कवि को इस प्रकार की केवल कुतूहलवर्द्धक उपमा-योजना से बचते हुए वास्तव में भावनाओं की उद्दीप्ति में सहायक उपयुक्त उपमा देनी चाहिए।
प्रश्न 6.
“जो जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता वचन मनतेउँ नहिं ओहू।। -इस उदाहरण के द्वारा लेखक ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
हिन्दी के पृष्ठ समीक्षक आचार्य रामचंद्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि एक सच्चा कवि मानव-मन का पारखी होता है। उसे यह पूरा अनुभव रहा है कि स्थिति विशेष में मनुष्य कैसा कथन करता है। इसी संदर्भ में उन्होंने अपने आदर्श कवि गोस्वामी तुलसीदास की उपर्युक्त चौपाई को उदाहृत किया है। यह वस्तुतः लक्ष्मण को शक्तिबाण लगने पर राम के शोकसंतप्त हृदय का सहज उद्गार है, जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करनी चाहिए। इसके विपरीत पितृ-वचन के परिप्रेक्ष्य में राम के चरित्र में दोषारोपण करना दरअसल अपीन हृदयहीनता और भावनाशून्यता प्रदर्शित करना है।
प्रश्न 7.
‘वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो जाती है।’ इस कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपयुक्त कथन हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1 में संकलित ‘कविता की परख’ शीर्षक निबंध से उद्धृत है। इसके लेखक हिन्दी के महान् विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं।
लेखक के उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि वाणे ही वह साधन है, जिसके माध्यम से मनुष्य अपने हृदयगत भावों की पूर्णरूपेण व्यंजना करता है। वास्तव में वाणी की शक्ति के कारण मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न और विशिष्ट है। जिन भावों अथवा विचारों की अभिव्यक्ति में अन्य साधनं, तथा यथा-संकेत, आगिकभाषा आदि असमर्थ रहते हैं, वे भी वाणी के माध्यम से सहजतापूर्वक पूरी स्पष्टता के साथ व्यक्त हो जाते हैं। कदाचित् इसी से कविगण अपनी कविताओं में प्रत्यक्ष-कथन के अतिरिक्त पात्र-कथन का प्रयोग करते हैं। इस रूप में पात्र विशेष के हृदय गतं भावों अथवा विचारों के प्रकटीकरण में पूर्णता और स्पष्टता आ जाती है।
कविता की परख भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखति विशेष्यों के लिए उपयुक्त विशेषण दें:
उत्तर-
प्रश्न 2.
‘ता’ प्रत्यय से इस पाठ में कई शब्द हैं, जेसे-निपुणता, गंभीरता आदि। ऐसे शब्दों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
‘ता’ प्रत्यय युक्त शब्दों के उदाहरण-सुन्दरता, कोमलता, मधुरता, उग्रता, कठोरता, भीषणता, वीरता, समानता, मनोहरता, प्रफुल्लता, स्वच्छता इत्यादि।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाएँ
उत्तर-
प्रश्न 4.
पाठ से द्वंद्व समास के उदाहरण चुनें।
उत्तर-
द्वंद्व समास-जिस समास में दोनों पद प्रधान रहते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। जैसे राधाकृष्ण, माता-पिता, भाई-बहन, वस्तु-व्यापर, बड़ा-छोटा, लोटा-डोरी, रात-दिन सर्दी-गमी, नून-तेल, राजा-रानी इत्यादि।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ :
उत्तर-
प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें:
उत्तर-
प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दों के संज्ञा रूप लिखें:
उत्तर-
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
कविता की परख लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित निबंध ‘कविता की परख’ का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-
‘कविता की परख’ हिन्दी साहित्य के आलोचक, इतिहासकार, निबंधकार और लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक निबंध है। हिन्दी साहित्य चिंतक आचार्य शुक्ल ने कविता को परखने की बुनियादी शिक्षा देते हुए कहा है कि कविता वह साधना हे जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है।
कविता के द्वारा हम संसार के सुख-दु:ख, आनन्द और क्लेश आदि यथार्थ रूप से अनुभव करने में अभ्यस्त होते हैं जिससे हृदय की स्तब्धता हटती है और मनुष्यता आती है। कविता सृष्टि-सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं में अनुरक्त और कुत्सित वस्तुओं से विरक्त कराती है।
आचार्य शुक्ल का प्रस्तुत निबंध किताबों से उठकर हमारे जीवन में आश्रय और सहभागिता चाहता है। यह निबंध कविता के सम्बन्ध में लेखक के सारगर्भित ज्ञान का दुर्लभ ज्ञान का दुर्लभ उदाहरण है।
प्रश्न 2.
‘कविता की परख’ की कथावस्तु को संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
हिन्दी साहित्य चिंतक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता को परखने की बुनियादी शिक्षा देते हुए कहा है कि कविता वह साधना है जिसके द्वारा शेष सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है। कविता के द्वारा हम संसार के सुख-दुःख, आनन्द और क्लेश आदि का यथार्थ रूप से अनुभव करने में अभ्यस्त होते हैं जिससे हृदय की स्तब्ध ता हटती है और मनुष्यता आती है।
कविता-सृष्टि सौन्दर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुन्दर वस्तुओं के अनुरक्त और कुत्सित वस्तुओं से विरक्त कराती है। कविता वह साधना है जिसके भीतर प्रेम, हास्य सुख-दुःख, आनन्द और क्लेश आदि यथार्थ रूप में चित्रित होता है। जिस कविता में प्रेम, आनन्द, करुणा आदि भावों का समावेश न हो, वह कविता नहीं कहला सकती। कविता के लिए रूप और व्यापार हमारे मन में साक्षात करता है, जो योजना हम मन में धारण करते हैं, कल्पना कहलाती है। कल्पना शक्ति के बिना कविता अधूरी होती है। कविता में सौन्दर्य, शृंगार, दारूण दृश्य आदि भाव जगाना आवश्यक है। राम के वन-गमन का वर्णन अथवा श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग के वर्णन में करुणा और सौन्दर्य का भाव परिलक्षित होता है।
कविता के लिए कवि उपमा अलंकार का भी सहारा लिया करते हैं। जैसे-मुख को चन्द्रमा या कमल के समान, नेत्रों को मीन, खंजन, कमल आदि के समान प्रतापी या तेजस्वी की तुलना सूर्य के समान; कायर को श्रृगाल के समान, वीर और पराक्रमी की सिंह से तुलना करते हैं। वास्तव में इसका उद्देश्य वर्णित वस्तु की सुंदरता, कोमलता, मधुरता या उग्रता, कठोरता, भीषणता, वीरता, कायरता इत्यादि की भावना को तीव्र करना है न कि किसी वस्तु का परिज्ञान कराना। जैसे-जिसने हारमोनियम न देखा है। उसने कहना “वह सन्दूक के समान होता है।” ऐसी समानता उपमा के अन्तर्गत नहीं आती है। उपमा सुन्दर ओर सटीक हो इसके लिए यह आवश्यक है कि वर्णित वस्तु के सम्बन्ध में वही भावना अधिक परिमाण में हो। भद्दी उपमा से सौन्दर्य की भावना नही जगती। जैसे कोई कवि आँख की उपमा बादाम या आम की फाँक से करता है तो सौन्दर्य की भावना नहीं जगती, लेकिन ठीक इसके विलोम आँख की उपमा कमल-दल से करने पर मनोहरता, प्रफुल्लता, कोमलता आदि की भावना स्वतः परिलक्षित होती है।।
कविता, में प्रेम, शोक, करुण, आश्चर्य, भय, उत्साह इत्यादि भावों को कवि पात्रों के माध्यम से कहलवाते है ताकि भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो सके। वाणी द्वारा मनुष्य के क्रोध आश्चर्य और उत्साह के भावों की कवियों को गहरी परख होती है।
कवि की निपुणता पात्र के मुख से भाव की व्यंजना कराने से ही परिलक्षित होता है। रामचरित मानस में भी राम लक्ष्मण दोनों क्रोध प्रकट करते हैं। राम संयम और गंभीरता के भाव जबकि लक्ष्मण अधीरता और उग्रता के साथ। उत्साह आदि भावों में यही बात समाहित है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का प्रस्तुत निबंध पुस्तकों से उठकर हमारे जीवन में आश्रय और सहभागिता चाहता है।
कविता की परख अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कविता की परख किस प्रकार निबंध है?
उत्तर-
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित कविता की परख विचारात्मक निबंध है।
प्रश्न 2.
कविता की परख में किन बातों का विवेचन हुआ है?
उत्तर-
कविता की परख नामक निबंध में इन बातों का विवेचन हुआ है-
(क) कविता का उद्देश्य
(ख) कल्पना का महत्त्व
(ग) भाव की अभिव्यक्ति संबंधी तत्व इत्यादि।
प्रश्न 3.
उपयुक्त उपमान का प्रयोग करना क्यों अनिवार्य होता है?
उत्तर-
उपयुक्त उपमान का प्रयोग करना विभिन्न करणों से अनिवार्य होता है-
(क) कविता के उद्देश्य की अनुरूपता को दर्शाना
(ख) कविता के प्रभाव की समानता को दर्शाना इत्यादि।
प्रश्न 4.
उपमा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
किसी व्यक्ति या वस्तु जिसका वर्णन करना हो उसकी सुन्दरता, कोमलता, मधुरता, उग्रता, कठोरता, वीरता तथा कायरता इत्यादि की भावना की तुलना उस वस्तु के समान कुछ अन्य वस्तुओं से करना ही उपमा कहलाता है।
प्रश्न 5.
कल्पना क्या है?
उत्तर-
आनन्द, करुण, हास्य, आश्चर्य तथा प्रेम इत्यादि अनेक भावों का संचार करने वाले रूप और व्यवहार का सजीव चित्रण काल्पनिक रूप से करना ही कल्पना कहलाता है।
प्रश्न 6.
कविता की परख नामक निबंध के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
कविता की परख नामक निबंध के लेखक आचार्य रामचन्द्र शुल्क है।
कविता की परख वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग, या घ) लिखें।
प्रश्न 1.
‘कविता का परख’ के लेखक हैं
(क) रामचन्द्र शुक्ल
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) सत्यजीत राय
(घ) कुमार गन्धर्व
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
‘भ्रमरगीत सार’ किसकी रचना है?
(क) सत्यजीत राय
(ख) सूरदास
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) कृष्ण कुमार
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 3.
‘कविता की परख’ का सम्पादन किसने किया?
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) नामवर सिंह
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) इनमें से काई
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 4.
कविता का उद्देश्य क्या होता है?
(क) हृदय पर प्रभाव डालना
(ख) मन को उद्विग्न करना
(ग) घृणा उत्पन्न करना
(घ) इनमें से कोई
उत्तर-
(क)
प्रश्न 5.
‘उपमा’ क्या है?
(क) जिससे उपमा दी जाय
(ख) एक प्रकार की मिठाई
(ग) दो भिन्न पदार्थों में सादृश्य की स्थापना
(घ) इसमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 6.
‘कविता की परख’ किसके लिए लिखा गया है?
(क) प्रेमियों के लिए
(ख) कवियों के लिए
(ग) हाई स्कूल के छात्र के लिए
(घ) काव्यालोचकों के लिए।
उत्तर-
(ग)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
1……………. ने श्रीकृष्ण के अंग-प्रत्यंग का वर्णन किया।
2. किन्तु सुन्दर वस्तु को देखकर हम …………. हो जाते हैं
3. तुलसीदासजी की गीतावली में …………….. का सुन्दर वर्णन।
4. वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से …………….. हो जाती है।
5.शोक के वेग में मनुष्य थोड़ी देर के लिए ……… और …………… भूल जाता है।
उत्तर-
1. सूरदासजी
2. प्रफुल्ल
3. चित्रकूट
4. व्यंजना
5. बुद्धि, विवेक।
कविता की परख लेखक परिचय रामचन्द्र शुक्ल (1884-1941)
पं. रामचंद्र शुक्ल का जन्म 1884 ई. को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिलान्तर्गत ‘अगोना’ नामक ग्राम में हुआ था। 1888 ई. में वे अपने पिता पं. चंद्रबली शुक्ल के साथ राठ जिला हमीरपुर गये तथा वहीं पर विद्याध्ययन प्रारंभ किया। सन् 1892 ई. में उनके पिता की नियुक्ति मिर्जापुर में सदर कानूनगो के रूप में हुई और वे पिता के साथ मिर्जापुर आ गये। 1901 ई. में लंदन मिशन स्कूल, मिर्जापुर में स्कूल फाइनल की परीक्षोत्तीर्णता के पश्चात् कायस्थ पाठशाला, प्रयाग में इंटर में उनका नामांकन हुआ, पर पढ़ाई अधूरी रही। फिर भी उन्होंने स्वाध्याय द्वारा प्रभूत ज्ञान अर्जित किया, जिसका उपयोग वे आगे चलकर अपने लेखन में जमकर कर सके।
आरंभ में शुक्लजी मिर्जापुर के मिशन स्कूल में ड्राइंग टीचर रहें। फिर 1908 ई. में ‘काशी नगरी प्रचारिणी सभा’ की परियोजना-‘हिन्दी शब्द सागर’ के सहायक संपादक बने। कुछ दिनों तक ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन करने के बाद वे हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में हिन्दी के अध्यापक हुए। 1937 ई. में वे वहाँ के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए तथा उसी पद पर रहते हुए सन् 1941 में उनकी मृत्यु हो गयी।
आचार्य शुक्ल का रचना-संसार अत्यंत विस्तृत एवं व्यापक है। हिन्दी का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिस पर उन्होंने न लिखा हो। उनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-मधुस्रोत (कविता संग्रह), गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली की भूमिका, भ्रमरगीतसार, रसमीमांसा, त्रिवेणी (पाठालोचन और आलोचना), हिन्दी साहित्य का इतिहास (साहित्येतिहास), श्रीराधाकृष्णदास की जीवनी (जीवनी), चिन्तामणि, भाग 1, 2 एवं 3 (निबंध-संग्रह) का विश्वप्रपंच (लबी भूमिका के साथ अनुवाद) कल्पना का आनंद, शशांक, बुद्धचरित (अनुवाद) इत्यादि।
इन रचनाओं के आधार पर शुक्लजी एक श्रेष्ठ एवं समर्थ साहित्यकार के रूप में स्थापित होते हैं। उनकी भाषा-शैली सजीव, प्रौढ़ एवं भावनात्मक है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ-साथ अंग्रजी, अरबी, फारसी आदि के शब्दों के लोक-प्रचलित मुहावरों के प्रयोग से उनकी भाषा में विशेष प्रवाह और प्रभाव का संगम हुआ। वस्तुत: उनकी शैली में उनका समग्र व्यक्तित्व प्रतिविबित हुआ है।
स्पष्टतया आचार्य शुक्ल ने यद्यपि हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में, रचनाएँ की और उनमें अपनी विलक्षण प्रतिभा, मौलिक चिन्तन एवं नवीन उद्भावना शक्ति दिखायी है, तथापि उनका विशेष महत्त्व साहित्येतिहासकार, निबंधकार और आलोचक के रूप में है। वस्तुतः इन क्षेत्रों में उनका अवदान युगप्रवर्तक का है, अप्रतिम एवं अप्रतिस्पर्धी। अतएव देवीशंकर अवस्थी का यह कथन सर्वथा समीचीन है कि “साहित्यिक इतिहास लेखक के रूप में उनका स्थान हिन्दी में अत्यंत गौरवपूर्ण है, निबंधकार के रूप में वे किसी भी भाषा के लिए गर्व के विषय हो सकते हैं तथा समीक्षक के रूप में तो वे हिन्दी में अभी तक अप्रतिम हैं।”
कविता की परख पाठ का सारांश
हिन्दी के स्वनामधन्य समालोचक, सर्वश्रेष्ठ साहित्येतिहासकार एवं अप्रतिम निबधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल विरचित ‘कविता की परख’ एक उत्तम निबंध है। इसमें विद्वान लेखक के द्वारा कविता की परख अर्थात् पहचान अथवा जाँच से संबंधित प्रायः सभी प्रमुख साधनों की चर्चा अत्यंत परिष्कृत एवं परिमार्जित भाषा में की गई है। इस प्रकार यह एक विचारप्रधान निबंध है, जिससे कविता को देखने, समझने एवं परखने की एक नवीन दृष्टि विकसित होती है।
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने सर्वप्रथम कविता के उद्देश्य पर प्रकाश डालत हुए यह स्थापना की है कि उनका उद्देश्य मनुष्य के हृदय पर प्रभाव डालना होता है, ताकि उसके भीतर दया, करुणा, प्रेम, आनंद, आश्चर्य, वीरता आदि मानवीय भावों का संचार हो सके। इसी आधार पर ज्ञान के अन्य विषयों से कविता की पृथक् सत्ता प्रमाणित होती है। इसी क्रम में लेखक ने कहा है कि प्रभाव पैदा करने के लिए कविगण विभिन्न भावों से संबंधित रूप और व्यापार की योजना करते है। ऐसा योजना के कल्पना-शक्ति के सहारे करते हैं। अतः काव्य में कल्पना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
कवि जिस प्रकार का भाव पाठक के मन में जगाना चाहते है, उसी के रूप और व्यापार का वर्णन करते हैं। इस क्रम कवि लोग उपमादि अलंकारों की सहायता लेते हैं। उपमा में दो भिन्न पदार्थों के बीच रूप, गुण अथवा प्रभाव की समानता दिखाई जाती है, किन्तु इसमें प्रभाव-साम्य ही उत्तम होताहै। इसी से कवि की निरीक्षण-क्षमता का पता चलता है। पुनः कवि लोग अपने काव्यों में प्रेम, शोक, घृणा, उत्साह इत्यादि विविध भावों को पात्रों के कथन के माध्यम से भी प्रकट करते हैं। इसके लिए लेखक के अनुसार कवि में पात्रगत एवं पिरस्थितिगत निपुणता आवश्यक है।
इस प्रकार इस विचार-प्रधान निबंध में आचार्य शुक्ल ने कविता को परखने के आधारभूत साधनों का विवेचन किया है। इस गंभीर विवेचन को भी उन्होंने उदाहरणों के द्वारा सरल एवं सुबोध बना दिया है। उसके द्वारा व्यक्त विचार प्रायः सर्वस्वीकार्य हैं और इसी से उनका महत्त्व कभी भी न्यून होने वाला नहीं है।
कविता की परख कठिन शब्दों का अर्थ
उत्साह-खुशी, उमंग। आर्द्र-भीगा हुआ। करुणा-दया, वेदना। रमणीय-सुंदर। व्यापार-क्रिया, गतिविधि। समक्ष-सामने। दारुण-असहनीय। विकराल-भयानक। आह्लादित-प्रसन्न। शृगाल-सियार। प्रतापी-प्रभावशाली, पराक्रमी। कांति-चमक। निपुणता-दक्षता। व्यंजना-व्यक्त या प्रकट करना। उग्र-उत्तेजित। खंजन-चंचल आँखों वाला विशिष्ट पक्षी। अधीरत-बेचैनी। कुतूहल-अचरज, विस्मय। परिज्ञान-विशिष्ट ज्ञान। दूषण-दोष, कलंक। बोध-समझ। परिमाण-मात्रा। प्रफुल्ल-प्रसन्न।
महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या
1. किसी सुंदर वस्तु को देखकर हम प्रफुल्ल हो जाते हैं, किसी अद्भूत वस्तु को देखकर आश्चर्यमग्न हो जाते हैं, किसी दुख के दारुण दृश्य को देखकर करुण से भर जाते हैं। यही बात कविता में होती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा कविता की परख से ली गयी है। इन पंक्तियों में लेखक ने यह बतलाया है कि जब हम किसी सुंदर वस्तु को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और किसी अद्भूत वस्तु को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है तथा किसी दुख के दृश्य को देखकर करुणा से भर जाते हैं। ये सभी बाते कविता को पढ़ने में भी पाठक को आभास होती हैं। कविता में इन बातों का सुन्दर विवेचन किया जाता है।
2. वाणी के द्वारा मनुष्य के हृदय के भावों की पूर्ण रूप से व्यंजना हो सकती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्ति आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित कविता की परख नामक पाठ से ली गयी है.। इस पंक्ति में लेखक ने यह बतलाया है कि मनुष्य की बोली से उसके दिल के गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट भावों की जानकारी प्राप्त होती है। यही कारण है कि मनुष्य के मुँह से प्रेम करुणा में मधुर वचन निकलते है, जबकि क्रोध, शोक में अच्छे वचन नहीं निकलते हैं। कवि को मनुष्य की बोली का अनुभव पूर्ण रूप से रहता है। यही कारण है कि कवि जिस प्रकार की कविता की रचना करता है उसी से संबंधित शब्दों का सटीक प्रयोग करता है।