Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्त्व Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 7 p-ब्लॉक के तत्त्व
Bihar Board Class 12 Chemistry p-ब्लॉक के तत्त्व Text Book Questions and Answers
पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 7.1
P, As, Sb तथा Bi ट्राइहैलाइडों से पेन्टाहैलाइड अधिक सह-संयोजी क्यों होते हैं?
उत्तर:
चूँकि पेन्टाहैलाइडों में केन्द्रीय परमाणु +5 ऑक्सीकरण अवस्था में होता है, जबकि ट्राइहैलाइडों में यह +3 ऑक्सीकरण अवस्था में होता है; अत: ट्राइहैलाइडों से पेन्टहैलाइड अधिक सहसंयोजी होते हैं।
प्रश्न 7.2
वर्ग 15 के तत्त्वों के हाइड्राइडों में BiHg सबसे प्रबल अपचायक क्यों है?
उत्तर:
वर्ग 15 के तत्त्वों के हाइड्राइडों में BiH3 के प्रबल अपचायक है क्योंकि इस वर्ग के हाइड्राइडों में BiH3 सबसे कम स्थायी होता है।
प्रश्न 7.3
N2 कमरे के ताप पर कम क्रियाशील क्यों है?
उत्तर:
चूँकि प्रबल pπ – pπ अतिव्यापन के फलस्वरूप बनता है, अत: N2 कमरे के ताप पर कम क्रियाशील है।
प्रश्न 7.4
अमोनिया की लब्धि को बढ़ाने के लिए आवश्यक स्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इसकी लब्धि बढ़ाने के लिए, ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार, आवश्यक स्थितियाँ निम्न प्रकार हैं –
- तापमान = 700 K,
- 200 × 105 Pa (लगभग 200 वायुमण्डलीय उच्च दाब)
- K2O तथा Al2O3 मिश्रित आयरन ऑक्साइड उत्प्रेरक हैं।
प्रश्न 7.5
Cu2+ विलयन के साथ अमोनिया कैसे क्रिया करती है?
उत्तर:
Cu2+ आयन अमोनिया से क्रिया करके गहरे नीले रंग का संकुचन बनाता है।
प्रश्न 7.6
N2O5 में नाइट्रोजन की सहसंयोजकता क्या है?
उत्तर:
N2O5 में, प्रत्येक नाइट्रोजन परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों के चार सहभाजित युग्म हैं जैसा कि निम्न चित्र में दर्शाया गया हैं:
अत: N2O5 में N की संयोजकता 4 है।
प्रश्न 7.7
PH3 से PH+4 का आबन्ध कोण अधिक है। क्यों?
उत्तर:
PH3 से आबन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म तथा P – H बन्ध युग्म के बीच प्रतिकर्षण बल के कारण H – P – H कोण कम हो जाता है जबकि PH+4 में आबन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म H+ के साथ बन्ध बनाने में भाग लेता है। इस के कारण चारों P – H बन्ध तुल्य हो जाते हैं। चूँकि PH+4 अणुओं में sp3 संकरित हैं, अतः इसकी आकृति चतुष्फलकीय होती है तथा H – P – H कोण 1099.5° होता है, अत: PH3 से PH+4 का आबन्ध कोण अधिक होता है।
प्रश्न 7.8
क्या होता है जब श्वेत फॉस्फोरस को CO2 के अक्रिय वातावरण में सान्द्र कॉस्टिक सोडा विलयन के साथ गर्म करते हैं?
उत्तर:
श्वेत फॉस्फोरस को CO2 के अक्रिय वातावरण में सान्द्र कॉस्टिक सोडा विलयन के साथ गर्म करने पर फॉस्फीन बनती है।
प्रश्न 7.9
क्या होता है जब PCl5 को गर्म करते हैं?
उत्तर:
गर्म करने पर यह ऊर्ध्वपातित होता है परन्तु अधिक गर्म करने पर वियोजित हो फॉस्फोरस ट्राइ क्लोराइड तथा क्लोरीन बनाते हैं।
प्रश्न 7.10
PCl5 की भारी पानी में जल अपघटन अभिक्रिया का संतुलित समीकरण लिखिए।
उत्तर:
फॉस्फोरस ऑक्सी-क्लोराइड तथा ड्यूटेरियम क्लोराइड बनते हैं।
प्रश्न 7.11
H3PO4 की क्षारकता क्या है?
उत्तर:
चूंकि H3PO4 अणु में तीन -OH समूह उपस्थित होते हैं, अत: इसकी क्षारकता 3 है।
प्रश्न 7.12
क्या होता है जब H3PO4 को गर्म करते हैं।
उत्तर:
H3PO4 के गर्म करने पर असमानुपातित होकर फॉस्फोरिक अम्ल तथा फॉस्फीन बनते हैं।
प्रश्न 7.13
सल्फर के महत्त्वपूर्ण स्रोतों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त अवस्था में सल्फर निम्नलिखित में मिलती हैं –
1. सल्फाइड, जैसे:
जिंक ब्लैंड (ZnS), गैलेना (PbS), कॉपर पाइराइटीज (CuFeS2)
2. सल्फेट, जैसे:
जिप्सम (CaSO4.2H2O), बेराइटस (BaSO4) तथा एप्सम लवण (MgSO4.7H2O)
प्रश्न 7.14
वर्ग 16 तत्त्वों के हाइड्राइडों का तापीय स्थायित्व का क्रम लिखिए।
उत्तर:
चूँकि तत्त्वों के आकार वर्ग में नीचे जाने पर बढ़ते हैं, अत: E – H बन्ध वियोजन ऊर्जा घटती है और यह बन्ध सरलता से टूट जाते हैं। अतः वर्ग 16 तत्त्वों के हाइड्राइडों का तापीय स्थायित्व वर्ग में नीचे जाने पर घटता है। अतः हाइड्राइडों के तापीय स्थायित्व का क्रम निम्न प्रकार है –
H2O > H2S > H2Se > H2 Te > H2Po
प्रश्न 7.15
H2O द्रव तथा H2S गैस है क्यों?
उत्तर:
H2O अणुओं के मध्य अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध होने के कारण उन का संगुणन हो जाता है, अत: H2O द्रव है जबकि H2S के अणुओं के मध्य अन्तराअणुक हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनता। अतः इनका संगुणन नहीं होता और H2S गैस है।
प्रश्न 7.16
निम्न में से कौन-सा तत्त्व ऑक्सीजन के साथ सीधा अभिक्रिया नहीं करता?
Zn, Ti, Pt, Fe
उत्तर:
चूँकि प्लेटिनम एक उत्कृष्ट धातु है; अत: यह ऑक्सीजन से सीधे से संयोग नहीं करती है। दूसरी ओर, Zn, Ti तथा Fe सक्रिय धातुएँ हैं अतः ये ऑक्सीजन से सीधे संयोग करके अपने-अपने ऑक्साइड बनाती हैं।
प्रश्न 7.17
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को पूर्ण कीजिए।
- C2H4 + O2 →
- 4Al + 3O2 →
उत्तर:
प्रश्न 7.18
O3 एक प्रबल ऑक्सीकारक की तरह क्यों क्रिया करती है?
उत्तर:
चूँकि O3 नवजात ऑक्सीजन देता है, अतः यह प्रबल ऑक्सीकारक की तरह क्रिया करती है।
प्रश्न 7.19
O3 का मात्रात्मक आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
जब ओजोन पोटैशियम आयोडाइड के आधिक्य से जिसे बोरेट बफर (pH 9.2) के साथ बफरीकृत करने पर अभिक्रिया करती है तो आयोडीन उत्पन्न होती है। इसे सोडियम थायोसल्फेट के मानक विलयन के साथ अनुमापित करते हैं। इस प्रकार O3 का मात्रात्मक आकलन किया जाता है।
प्रश्न 7.20
तब क्या होता है जब सल्फर डाइआक्साइड को Fe(III) लवण के जलीय विलयन में प्रवाहित करते हैं?
उत्तर:
चूँकि SO2 अपचायक की भाँति कार्य करती है, अतः यह आयन (III) लवण को आयरन (II) में अपचयित कर देती है।
2Fe3 + SO2 + 2H2O → 2Fe2+ + SO42- + 4H+
प्रश्न 7.21
S – O आबन्धों की प्रकृति पर टिप्पणी कीजिए जो SO2 अणु बनाते हैं। क्या SO2 अणु के ये दोनों S – O आबन्ध समतुल्य हैं?
उत्तर:
चूँकि SO2 में बनने वाली S – O आबन्ध सहसंयोजक हैं; अतः अनुनादी संरचनाओं के कारण ये दोनों समान रूप से प्रबल हैं।
प्रश्न 7.22
SO2 की उपस्थिति का पता कैसे लगाया जाता है?
उत्तर:
SO2 की उपस्थिति निम्न दो परीक्षणों से की जाती
1. यह गुलाबी-बैंगनी रंग के अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट (VII) विलयन को MnO4– के Mn2+ आयन में अपचयन के कारण रंगहीन कर देती है।
2. यह अम्लीय K2Cr2O7 को \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) के Cr3+ आयनों में अपचयन से हरा कर देती है।
प्रश्न 7.23
उन तीन क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए जिनमें H2SO4 महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उत्तर:
- प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में
- पेट्रोलियम के शोधन में।
- अपमार्जक उद्योग में।
प्रश्न 7.24
संस्पर्श प्रक्रम द्वारा H2SO4 की मात्रा में वृद्धि करने के लिए आवश्यक परिस्थितियों को लिखिए।
उत्तर:
H2SO4 के उत्पादन में SO2 का O2 के साथ उत्पादन V2O5 उत्प्रेरक की उपस्थिति में SO3 प्राप्त होती है।
2SO2 (g) + O2 (g) ⇄ 2SO3 (g); ∆fH– = -19.6 kJ mol-1 यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी तथा उत्पक्रमणीय है। अग्रगामी अभिक्रिया में आयतन में कमी आती है। अतः ताप तथा उच्च दाब मात्रा में वृद्धि करने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ हैं। परन्तु ताप अत्यधिक कम नहीं होना चाहिए अन्यथा अभिक्रिया की दर कम हो जाएगी।
प्रश्न 7.25
जल में H2SO4 के लिए \(K_{a_{2}}<<K_{a_{1}}\) क्यों है?
उत्तर:
H2SO4 एक द्विक्षारकीय अम्ल है, यह दो पदों में आयनित होता है, इसलिए इसके दो वियोजन स्थिरांक होते हैं।
- H2SO4 (aq) + H2O → H3O+ (aq) + HSO4– (aq); Ka1 >10
- HSO4– (aq) + H2O (l) → H3O+ (aq) + SO42- (aq); Ka2 = 1.2 × 10-2
Ka1 (>10) के अधिक मान से तात्पर्य यह है कि H2SO4– H3O+ तथा HSO4– में अधिक वियोजित होता है। मुख्यत: H3O+ और HSO4– में प्रथम आयनन के कारण H2SO4 जल में प्रबल अम्ल है। HSO4– का H3O+ तथा SO42- आयनन नगण्य है; अत: Ka2 << Ka1।
प्रश्न 7.26
आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी, इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी तथा जलयोजन एन्थैल्पी जैसे प्राचलों को महत्त्व देते हुए F2 तथा Cl2 की आक्सीकारक क्षमता की तुलना कीजिए।
उत्तर:
आक्सीकारक क्षमता F2 से Cl2 तक घटती है। जलयी विलयन में हैलोजनों की आक्सीकारक क्षमता वर्ग में नीचे की ओर घटती है (F से Cl तक)। फ्लु ओरीन का इलेक्ट्रोड विभव (+ 2.87 V) क्लोरीन = 1.36 V) की तुलना में उच्च होता है, इसलिए F2 क्लोरीन की तुलना में प्रबल आक्सीकारक है। अब इलेक्ट्रोड विभव निम्नलिखित प्राचलों पर निर्भर करता है –
फ्लु ओरीन 158.8 kJ mol-1 -333 kJ mol-1 515 kJmol-1
क्लोरीन 242.6 kJ mol-1 – 349 kJ mol-1 381 kJmol-1
अतः F2 प्रबल ऑक्सीकारक है।
प्रश्न 7.27
दो उदाहरणों द्वारा फ्लु ओरीन के असामान्य व्यवहार को दर्शाइए।
उत्तर:
फ्लु ओरीन का असामान्य व्यवहार:
लघु आकार, उच्च विद्युत ऋणात्मकता, निम्न F – F आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी तथा इसके संयोजी कोश में d – कक्षकों की अनुपलब्धता के कारण होता है।
उदाहरण:
- यह एक ऑक्सीअम्ल बनती है जबकि दूसरे हैलोजेन कई में ऑक्सो-अम्लों का निर्माण करते हैं।
- हाइड्रोजन फ्लुओराइड प्रबल हाइड्रोजन बन्धों के कारण द्रव होता है जबकि अन्य हाइड्रोजन हैलाइड गैसीय होते हैं।
प्रश्न 7.28
समुद्र कुछ हैलोजनों का मुख्य स्रोत है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
समुद्री जल में मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम तथा पोटैशियम के क्लोराइड, ब्रोमाइड तथा आयोडाइड होते हैं। जिनमें सोडियम क्लोराइड (द्रव्यमान अनुसार 2.5%) हैं। समुद्री निक्षेपों में सोडियम क्लोराइड तथा कार्नेलाइट KCI.MgCl2.6H2O प्रमुख हैं। कुछ समुद्री जीवों के तन्त्र में आयोडीन होती है। कुछ समुद्री पादपों में 0.5% आयोडीन तथा चिली साल्टपीटर 0.2% सोडियम आयोडेट होता है।
प्रश्न 7.29
Cl2 की विरंजक क्रिया का कारण बताइए।
उत्तर:
Cl2 की विरंजक क्रिया आक्सीकरण के कारण होती है। नमी या जलीय विलयन की उपस्थिति Cl2 नवजात आक्सीजन देती है।
यह नवजात आक्सीजन नमी की उपस्थिति में वनस्पतियों अथवा कार्बनिक यौगिक का विरंजन करती है। Cl2 की विरंजन क्रिया स्थाई होती है।
प्रश्न 7.30
उन दो विषैली गैसों के नाम बताइए जो क्लोरीन गैस से बनाई जाती है।
उत्तर:
फॉस्जीन (COCl2) तथा मस्टर्ड गैस (ClCH2SCH2CH2Cl)।
प्रश्न 7.31
I2 से ICI अधिक क्रियाशील क्यों हैं?
उत्तर:
चूँकि I – I आबन्ध से I – Cl आबन्ध दुर्बल होता है। ICl सरलता से टूटकर हैलोजेन परमाणु बनाता है जो तीव्रता से अभिक्रिया करते हैं। अतः I से ICl अधिक क्रियाशील होता है।
प्रश्न 7.32
हीलियम को गोताखोरी के उपकरणों में उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
आधुनिक गोताखोरी के उपकरणों में हीलियम आक्सीजन के तनुकारी के रूप में प्रयुक्त होता है, क्योंकि रक्त में इसकी विलेयता बहुत कम है।
प्रश्न 7.33
निम्नलिखित समीकरण को सन्तुलित कीजिए:
XeF6 + H2O → XeO2F2 + HF
उत्तर:
XeF6 + 2H2O → XeO2F2 + 4HF
प्रश्न 7.34
रेडॉन के रसायन का अध्ययन करना कठिन क्यों था?
उत्तर:
चूँकि रेडॉन अत्यन्त कम अर्द्धआयु वाला रेडियोएक्टिव तत्त्व है; अत: रेडॉन के रसायन का अध्ययन करना कठिन था।
Bihar Board Class 12 Chemistry p-ब्लॉक के तत्त्व Additional Important Questions and Answers
अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 7.1
वर्ग 15 के तत्त्वों के सामान्य गुणधर्मों की उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, ऑक्सीकरण अवस्था, परमाण्विक आकार, आयनन एन्थैल्पी तथा विद्युत – ऋणात्मकता के सन्दर्भ में विवचेना कीजिए।
उत्तर:
1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-इन तत्त्वों के संयोजी कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2, np3 होता है। इनमें s – कक्षक पूर्णतया भरे हुए तथा p – कक्षक अर्द्धपूरित होते हैं, जो इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को अधिक स्थायी बनाते हैं।
2. ऑक्सीकरण अवस्थाएँ-इन तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ -3, +3 तथा +5 हैं। तत्वों द्वारा -3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति वर्ग में नीचे जाने पर परमाणु आकार तथा धात्विक गुण बढ़ने के कारण घटती है। वस्तुतः अन्तिम तत्व बिस्मथ कठिनता से -3 ऑक्सीकरण अवस्था में यौगिक बनाता है।
ऑक्सीकरण अवस्था +5 का स्थायित्व वर्ग में नीचे जाने पर घटता है। इस अवस्था में केवल Bi(V) का यौगिक BiF5 ज्ञात है। ऑक्सीकरण अवस्था +5 तथा ऑक्सीकरण अवस्था +3 का स्थायित्व वर्ग में नीचे जाने पर क्रमशः घटता तथा बढ़ता है (अक्रिय युग्म प्रभाव)। नाइट्रोजन ऑक्सीकरण अवस्थाएँ +1, +2 +4 प्रदर्शित करता है, जबकि यह ऑक्सीजन के साथ अभिकृत होता है। फॉस्फोरस कुछ ऑक्सोअम्लों में +1 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करता है।
3. परमाणु आकार-समूह में नीचे जाने पर सहसंयोजी तथा आयनिक त्रिज्याएँ बढ़ती हैं। N से P तक सहसंयोजी त्रिज्याओं में पर्याप्त वृद्धि होती है, जबकि As से Bi तक सहसंयोजी त्रिज्याओं में सूक्ष्म वृद्धि प्रेक्षित होती है। यह भारी सदस्यों में पूर्णतया भरे हुए d तथा f – कक्षकों की उपस्थिति के कारण होता है।
4. आयनन एन्थैल्पी-वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर आयनन एन्थैल्पी में परमाणु आकार में क्रमिक वृद्धि के कारण कमी आती है। इस प्रकार अधिक स्थायी अर्द्धपूरित p – कक्षक के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास तथा छोटे आकार के कारण वर्ग 15 के तत्वों की आयनन एन्थैल्पी के मान वर्ग 14 के तत्वों से सम्बन्धित आवों में अधिक होते हैं। आयनन एन्थैल्पी का उत्तरोत्तर बढ़ता क्रम निम्नवत् है:
∆iH1 < ∆iH2 < ∆iH3
5. विद्युतऋणात्मकता-किसी समूह में नीचे जाने पर परमाणु आकार बढ़ने के साथ विद्युतऋणात्मकता सामान्यतः घटती है। यद्यपि भारी तत्वों में इस प्रकार का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न 7.2
नाइट्रोजन की क्रियाशीलता फॉस्फोरस से भिन्न क्यों है?
उत्तर:
नाइट्रोजन अणु द्विपरमाणुक होता है, जिसमें नाइट्रोजन परमाणु त्रिबन्ध द्वारा (N = N) जुड़े रहते हैं। इनकी बन्ध वियोजन ऊर्जा अत्यधिक (941.4 kJ mol-1) होती है। अत: नाइट्रोजन तात्विक अवस्था में अक्रिय अथवा अक्रियाशील होता है। दूसरी ओर श्वेत अथवा पीला फॉस्फोरस चतुःपरमाण्विक अणु (P4) के रूप में पाया जाता है। चूंकि N = N त्रिबन्ध (941.4 kJ mol-1) से एकल P – P बन्ध (213 kJ mol-1) अत्यधिक दुर्बल होता है, इसलिए फॉस्फोरस नाइट्रोजन से बहुत अधिक क्रियाशील होता है।
प्रश्न 7.3
वर्ग 15 के तत्वों की रासायनिक क्रियाशीलता की प्रवृत्ति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(i) हाइड्राइड (Hydrides):
वर्ग 15 के सभी तत्व MH3 तथा M2H4 प्रकार के हाइड्राइड बनाते हैं।
(M = N, P, As, Sb, Bi)।
(क) क्षारीय गुण:
हाइड्राइडों के क्षारीय गुण उनके आकार बढ़ने अर्थात् इलेक्ट्रॉन घनत्व घटने के साथ घटते हैं। इनकी क्षारीय सामर्थ्य के घटने का क्रम निम्नवत् है।
NH3 > PH3 > ASH3 > SbH3 > BiH3
(ख) ऊष्मीय स्थायित्व:
हाइड्राइडों का तापीय स्थायित्व NH3 से BiH3 तक घटता है; क्योंकि परमाणु आकार बढ़ता है जिससे बन्ध लम्बाई (MH) बढ़ती है।
(ग) अपचायक गुण:
हाइड्राइडों का अपचायक प्रवृत्ति NH3 से BiH3 तक बढ़ती है। अत: NH3 सबसे कमजोर अपचायक है जब BiH3 सबसे प्रबल अपचायक है।
(घ) क्वथनांक:
वर्ग में नीचे जाने पर हाइड्राइडों के क्वथनांक बढ़ते हैं। NH3 का क्वथनांक हाइड्रोजन आबन्ध के कारण PH3 से अधिक होता है। क्वथनांक PH3 से आगे जाने पर बढ़ते हैं; क्योंकि आण्क्कि द्रव्यमान बढ़ने के कारण वाण्डर-वाल्स बलों में वृद्धि होती है।
(ii) हैलोजन के प्रति क्रियाशीलता:
ये तत्व ट्राइहैलाइड तथा पेंटा हैलाइड बनाते हैं।
(क) ट्राइहैलाइड:
ये सभी प्रकार के हैलोजेनों से सीधे संयोग करके MX3 प्रकार के ट्राइहैलाइड बनाते हैं। NHr3 तथा NI3 को छोड़कर सभी ट्राइहैलाइड स्थायी तथा पिरैमिडी संरचना के होते हैं। BiF3 के अतिरिक्त सभी ट्राइहैलाइड सहसंयोजी प्रकृति के होते हैं। ट्राइहैलाइडों की सहसंयोजी प्रकृति तत्व के आकार के बढ़ने पर घटती है।
NI3 > PF3 > AsF3 > SbF3 > BiF3
(ख) फॉस्फोरस के ऑक्साइड:
फॉस्फोरस के दो महत्त्वपूर्ण ऑक्साइड P4O10 (P3O3 का द्विलक) तथा (P4O10 (P2O5 का द्विलक) हैं।
(ग) अन्य तत्वों के ऑक्साइड:
अन्य तत्वों के ऑक्साइड AS4O6, AS2O5, Sb4O6, Sb2O5, Bi2O3 तथा Bi2O5 हैं।
N, P तथा As के ट्राइऑक्साइड अम्लीय होते हैं। Sb का ऑक्साइड उभयधर्मी होता है, जबकि Bi का ऑक्साइड क्षारीय होता है। सभी पेन्टाऑक्साइड अम्लीय होते हैं।
(iv) ऑक्सी – अम्ल (Oxy-acids):
Br को छोड़कर अन्य सभी तत्व ऑक्सी-अम्ल (जैसे – HNO3, H3PO4, H3ASO4 तथा S3SbO4) का निर्माण करते हैं। ऑक्सी-अम्लों की सामर्थ्य तथा स्थायित्व वर्ग में नीचे जाने पर घटता है।
HNO3 > H3PO4 > H3ASO4 > H3SbO4
(ख) पेन्टा हैलाइड:
P, As तथा Sb सूत्र MX5 के पेन्टाहैलाइड बनाते हैं। नाइट्रोजन के संयोजकता कोश में d कक्षकों की अनुपस्थिति के कारण यह पेंटा हैलाइड नहीं बनता है। पेंटा हैलाइड ट्राइहैलाइडों की अपेक्षा अधिक सहसंयोजी होते हैं। Bi अक्रिय युग्म प्रभाव के कारण पेंटा हैलाइड नहीं बनाता है। पेंटा हैलाइडों में sps – संकरण होता है और इन की संरचना त्रिकोणीय द्विपिरैमिडी होती है।
(iii) ऑक्साइड:
ये ऑक्सीजन से संयुक्त होकर विभिन्न प्रकार के ऑक्साइड बनाते हैं।
(क) नाइट्रोजन के ऑक्साइड:
नाइट्रोजन विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं के अनेक ऑक्साइड बनाती है। इन का संक्षिप्त वर्णन निम्न तालिका में दिया गया है।
प्रश्न 7.4
NH3 हाइड्रोजन बन्ध बनाती है परन्तु PH3 नहीं बनाती क्यों?
उत्तर:
चूँकि नाइट्रोजन की विद्युतऋणात्मकता (3.0) हाइड्रोजन (2.1) से अधिक होती है तथा NH ध्रुवीय होता है। अत: NH3 में अन्तराआण्विक हाइड्रोजन आबन्ध होते हैं। चूँकि P तथा दोनों की विद्युतऋणात्मकता 2.1 होती है तथा P – H बन्ध ध्रुवीय नहीं होता; अत: PH3 में हाइड्रोजन बन्ध नहीं होता है।
प्रश्न 7.5
प्रयोगशाला में नाइट्रोजन कैसे बनाते हैं? सम्पन्न होने वाली अभिक्रिया के रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर:
प्रयोगशाला में डाइनाइट्रोजन बनाने के लिए अमोनियम क्लोराइड के जलीय विलयन की सोडियम नाइट्राइट के साथ अभिक्रिया कराई जाती है।
प्रश्न 7.6
अमोनिया का औद्योगिक उत्पादन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
अमोनिया को औद्योगिक उत्पादन हैबर प्रक्रम द्वारा किया जाता है।
N2 (g) + 3H2 (g) = 2NH3 (g) ∆fHΘ = -46.1 kJ mol-1
शुष्क नाइट्रोजन 1 : 3 से लेकर उच्च दाब (200 से 300 वायुमण्डल) तथा ताप (723 K2O से 773 K) पर K2O, Al2O3 मिश्रित आयरन ऑक्साइड उत्प्रेरक पर प्रवाहित करने पर NH3 प्राप्त होती है।
प्रश्न 7.7
उदाहरण देकर समझाइए कि कॉपर धातु HNO3 के साथ अभिक्रिया करके किस प्रकार भिन्न उत्पाद दे सकती है?
उत्तर:
1. तनु HNO3 कॉपर के साथ अभिक्रिया करके कॉपर नाइट्रेट तथा नाइट्रिक ऑक्साइड बनाता है।
2. सान्द्र HNO3 कॉपर के साथ अभिक्रिया करके कॉपर नाइट्रेट तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड बनाता है।
प्रश्न 7.8
NO2 तथा N2O5 की अनुनादी संरचनाओं को लिखिए।
उत्तर:
1. NO2 की अनुनादी संरचनाएँ –
X = नाइट्रोजन का अप्रयुक्त इलेक्ट्रान
2. N2O5 की अनुनादी संरचनाएँ –
प्रश्न 7.9
HNH कोण का मान, HPH, HASH तथा HSbH कोणों की अपेक्षा अधिक क्यों हैं?
उत्तर:
वर्ग 15 के तत्त्वों के सभी हाइड्राइडों में, केन्द्रीय परमाणु sp3 – संकरित होता है। चार sp3 संकरित कक्षकों में से तीन कक्षक तीन E – Hσ बन्ध बनाते हैं, जबकि चौथे कक्षक में इलेक्ट्रॉनों का एकाकी युग्म होता है।
चूँकि बन्ध युग्म-बन्ध युग्म प्रतिकर्षण से एकाकी युग्म-बन्ध युग्म प्रतिकर्षण अधिक होते हैं, इसलिए NH3 में, बन्ध कोण 109°28 से घटकर 107.8° रह जाता है। N से P तक, P से As तक तथा As से Sb तक जाने पर केन्द्रीय विद्युत-ऋणात्मकता घटती है। इससे बन्ध युग्मों के इलेक्ट्रॉन परस्पर तथा केन्द्रीय परमाणु से दूर हो जाते हैं। फलतः समीपवर्ती बन्ध युग्मों के मध्य प्रतिकर्षण बल घटता जाता है जिससे बन्ध कोण NH3 से SbH3 तक घटते जाते हैं। अतः HNH बन्ध कोण सबसे अधिक होता है।
प्रश्न 7.10.
R3P = 0 पाया जाता है जबकि R3N = 0 नहीं क्यों (R = ऐल्किल समूह)?
उत्तर:
नाइट्रोजन के बाह्य कोश में d – कक्षक नहीं होता है जिससे dπ – pπ बन्ध नहीं बन सकता है। और R3N = O नहीं बन पाता है। दूसरी ओर फास्फोरस के बाह्य कोश में d – कक्षों की उपस्थिति के कारण pπ – dπ बन्ध बनाता है। अतः फास्फोरस R3P = O यौगिक बनाता है।
प्रश्न 7.11
समझाइए कि क्यों NH3 क्षारकीय है जबकि BiH3 केवल दुर्बल क्षारक है?
उत्तर:
चूँकि नाइट्रोजन का परमाणु आकार सबसे छोटा होता है, इसलिए N – परमाणु पर इलेक्ट्रॉन घनत्व Bi – परमाणु से बहुत अधिक होता है। फलस्वरूप NH3 में N की अपने इलेक्ट्रॉन-युग्म को दान देने की प्रवृत्ति BiH3 में Bi की तुलना में उच्च होती है। अत: NH3 क्षारकीय है जबकि BiH3 केवल दुर्बल क्षारक है।
प्रश्न 7.12
नाइट्रोजन द्विपरमाणुक अणु के रूप में पाया जाता है तथा फॉस्फोरस P4 के रूप में। क्यों?
उत्तर:
नाइट्रोजन का लघु आकार तथा उच्च विद्युत-ऋणात्मकता होती है और pπ – pπ बहुत बन्ध बनाता है। अतः यह द्विपरमाणुक अणु के रूप में पाया जाता है जिसमें दो N – परमाणुओं के मध्य त्रिबन्ध होता है। फॉस्फोरस का विशाल आकार तथा अल्प विद्युत-ऋणात्मकता होती है जिससे यह pπ – pπ बहुल बन्ध नहीं बनाता है। किन्तु p – p एकल बन्ध बनाता है। अतः यह चतुष्फलकीय P4 अणु के रूप में पाया जाता है।
प्रश्न 7.13
श्वेत फॉस्फोरस तथा लाल फॉस्फोरस के गुणों की मुख्य भिन्नताओं को लिखिए।
उत्तर:
श्वेत फॉस्फोरस तथा लाल फॉस्फोरस के गुणों की मुख्य भिन्नताएँ निम्नलिखित हैं –
प्रश्न 7.14
फॉस्फोरस की तुलना में नाइट्रोजन श्रृंखलन गुणों को कम प्रदर्शित करती है, क्यों?
उत्तर:
शृंखलन का गुण तत्व की बन्ध प्रबलता पर निर्भर करता है। चूँकि N – N बन्ध की प्रबलता (159 kJ mol-1), P – P बन्ध की प्रबलता (212 kJ mol-1) से कम होती है, इसलिए नाइट्रोजन फॉस्फोरस की तुलना में कम शृंखलन गुणों को दर्शाती है।
प्रश्न 7.15
H3PO3 की असमानुपातन अभिक्रिया दीजिए।
उत्तर:
H3PO4 को गर्म करने पर यह असमानुपातित होकर PH3, H3PO4 देता है।
प्रश्न 7.16
क्या PCl5 ऑक्सीकारक और अपचायक दोनों कार्य कर सकता है? तर्क दीजिए।
उत्तर:
चूँकि फॉस्फोरस के संयोजी कोश में पाँच इलेक्ट्रॉन होते हैं; इसलिए यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को इलेक्ट्रॉन दान करके +5 से अधिक नहीं कर सकता है अतः PCl5 अपचायक का कार्य नहीं कर सकता। यद्यपि यह अपनी ऑक्सीकरण अवस्था को +5 से +3 तक या इससे कम मान तक घटा सकता है इसलिए PCl5 ऑक्सीकारक का कार्य कर सकता है जिसमें आ० सं० घटती है। उदाहरण के लिए –
चूँकि अभिक्रियाओं में, P की ऑक्सीकरण संख्या +5 से +3 तक घटती है तथा Ag की ऑक्सीकरण संख्या 0 से +1 तक बढ़ती है तथा Sn की 0 से +4 तक बढ़ती है। इसलिए PCl5 ऑक्सीकारक की भाँति भी कार्य कर सकता है।
प्रश्न 7.17
O, S, Se, Te तथा PO को इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ऑक्सीकरण अथवा तथा हाइड्राइड निर्माण के सन्दर्भ में आवर्त सारणी के एक ही वर्ग में रखने का तर्क दीजिए।
उत्तर:
1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:
इन सभी तत्त्वों के बाहरी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं जिनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np4 होता है।
8O = [He] 2s2 2p4
16S = [Ne] 3s2 3p4
34 Se = [Ar] 3d10 4s2 4p4
52Te = [Kr] 4d105d10 6s2 6p4
84Po =[Xe] 4f14 5d10 6s2 6p4
2. आक्सीकरण अवस्था:
इन्हें समीपवर्ती अक्रिय गैस विन्यास प्राप्त करने के लिए अर्थात् द्विऋणात्मक आयन बनाने के लिए दो अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए इन तत्वों की न्यूनतम आक्सीकरण अवस्था -2 होनी चाहिए। आक्सीजन विशिष्ट रूप से तथा सल्फर कुछ मात्रा में विद्युतऋणात्मक होने के कारण -2 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।
इस वर्ग के अन्य तत्व, O तथा S से अधिक विद्युत ऋणात्मक होने के कारण ऋणात्मक आक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित नहीं करते हैं। चूँकि इन तत्वों के संयोजी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिए ये तत्व अधिकतम +6 आक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित कर सकते हैं।
इन तत्वों द्वारा प्रदर्शित अन्य धनात्मक ऑक्सीकरण अवस्थाएँ +2 तथा +4 हैं। यद्यपि ऑक्सीजन d – कक्षकों की अनुपस्थिति के कारण +4 तथा +6 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित नहीं करता; अतः न्यूनतम तथा अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आधार पर इन तत्वों की समान वर्ग अर्थात् वर्ग 16 में रखा जाना पूर्णतया न्यायोचित है।
3. हाइड्राइडों का निर्माण:
सभी तत्व अपने संयोजी इलेक्ट्रॉनों में दो इलेक्ट्रॉनों की हाइड्रोजन के 1s – कक्षक के साथ सहभागिता करके अपने-अपने अष्टक पूर्ण कर लेते हैं तथा सामान्य सूत्र EH2 के हाइड्राइड बनाते हैं; जैसे – H2O, H2S, H2Se, H2Te तथा H2Po, अतः इन तत्वों को समान वर्ग अर्थात् वर्ग 16 में रखा जाना पूर्णतया न्यायसंगत है।
प्रश्न 7.18
क्यों डाइऑक्सीजन एक गैस है, जबकि सल्फर एक ठोस है?
उत्तर:
ऑक्सीजन pπ – pπ बहुल बन्ध बनाता है। छोटे आकार तथा उच्च विद्युतऋणात्मकता के कारण ऑक्सीजन द्विपरमाणुक अणु (O2) के रूप में पाया जाता है। ये अणु परस्पर दुर्बल वाण्डरवाल्स आकर्षण बलों द्वारा जुड़े रहते हैं जो कमरे के ताप पर अणुओं के संघट्टों द्वारा सरलता से हट जाते हैं। अतः O2 कमरे के ताप पर एक गैस होती है।
सल्फर अपने विशाल आकार तथा कम विद्युत ऋणात्मकता के कारण pπ – pπ बहुल बन्ध नहीं बनाता है। अपितु यह S – S एकल बन्ध बनाते हैं। पुन: O – O एकल बन्धों से अधिक प्रबल S – S बन्धों के कारण सल्फर में श्रृंखलन का गुण ऑक्सीजन से अधिक होता है।
अतः सल्फर श्रृंखलन की उच्च प्रवृत्ति तथा pπ – pπ बहुल बन्ध बनाने की अल्प प्रवृत्ति के कारण अष्टपरमाणुक अणु (S8) बनाता है, जिसकी संकुचित वलय संरचना (puckered ring structure) होती है। विशाल आकार के कारण S अणुओं को परस्पर बाँधे रखने वाले आकर्षण बल पर्याप्त प्रबल होते हैं जिन्हें कमरे के ताप पर अणुओं के संघट्टों द्वारा नहीं हटाया जा सकता है। अतः सल्फर कमरे के ताप पर एक ठोस होता है।
प्रश्न 7.19
यदि O → O– तथा O → O2- के इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी मान पता हो, जो क्रमशः 141 तथा 702 kJ mol-1 हैं तो आप कैसे स्पष्ट कर सकते हैं कि O2- स्पीशीज वाले आक्साइड अधिक बनते हैं न कि O– वाले?
उत्तर:
हम आक्सीजन की किसी द्विसंयोजी धातु के साथ अभिक्रिया पर विचार करते हैं। MO तथा M2O के निर्माण में निम्नलिखित पद सम्मिलित होते हैं –
यद्यपि ∆iH1 की तुलना में ∆iH2 बहुत अधिक होती है तथा ∆eg H1 से ∆eg H2 अत्यन्त उच्च होती है, फिर भी उच्च आवेश के कारण M2O (s) की चालक ऊर्जा MO (s) से अधिक होती है। अत: ऊष्मीय रूप से MO का निर्माण M2O से अधिक अनुकूल होता है। इस कारण आक्सीजन O2+ स्पीशीज वाले ऑक्साइड अधिक बनाता है न कि O– वाले।
प्रश्न 7.20
कौन-से ऐरोसॉल्स ओजोन को कम करते हैं?
उत्तर:
ऐरोसॉल्स; जैसे- क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFCs) अर्थात् फ्रीआन Cl मुक्त मूलकों की आपूर्ति से ओजोन परत को अवक्षयित कर देते हैं। ये मुक्त मूलक O3 को O2 में परिवर्तित कर देते हैं।
प्रश्न 7.21
संस्पर्श प्रक्रम द्वारा H2SO4 के उत्पादन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संस्पर्श द्वारा H2SO4 का उत्पादन (Production of H2SO4 by Contact Process):
सल्फ्यूरिक अम्ल का उत्पादन संस्पर्श प्रक्रम द्वारा तीन चरणों में सम्पन्न होता है।
चित्र – सल्फयूरिक अम्ल के उत्पादन का प्रवाह चित्र
- सल्फर तथा सल्फाइड अयस्कों को वायु में जलाकर सल्फर डाइऑक्साइड का उत्पादन करना।
- उत्प्रेरक (V2O5) की उपस्थिति में ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कराकर SO2 का SO3 में परिवर्तन करना।
- SO3 को सल्फ्यूरिक अम्ल में अवशोषित करके ओलियम (H2S2O7) प्राप्त करना।
सल्फ्यूरिक अम्ल के उत्पादन का प्रवाह चित्र, चित्र में दिया गया है। प्राप्त सल्फरडाइऑक्साइड को धूल के कणों एवं आर्सेनिक यौगिकों जैसी अन्य अशुद्धियों से मुक्त कर शुद्ध कर लिया जाता हैं।
सल्फ्यूरिक अम्ल के उत्पादन में आक्सीजन द्वारा SO2 गैस का V2O5 उत्प्रेरक की उपस्थिति में SO3 प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरकी आक्सीकरण मूल पद है।
यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी तथा उत्क्रमणीय है एवं अग्र अभिक्रिया में आयतन में कमी आती है। अत: कम ताप और उच्च दाब उच्च लब्धि (yield) के लिए उपयुक्त स्थितियाँ हैं, परन्तु तापक्रम बहुत कम नहीं होना चाहिए अन्यथा अभिक्रिया की गति धीमी हो जाएगी। सल्फ्यूरिक अम्ल के उत्पादन में प्रयुक्त संयन्त्र का संचालन 2 bar दाब तथा 720 K ताप पर किया जाता है।
उत्प्रेरकी परिवर्तक से प्राप्त SO3 गैस, सान्द्र सल्फूरिक अम्ल में अवशोषित होकर ओलियम (H2S2O7) देती है। जल द्वारा ओलियम का तनुकरण करके वांछित सान्द्रता वाला सल्फ्यूरिक अम्ल प्राप्त कर लिया जाता है। प्रक्रम के सतत संचालन तथा लागत में भी कमी लाने के लिए उद्योग में उपर्युक्त दोनों प्रक्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न की जाती हैं।
सम्पर्क विधि द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल की शुद्धता सामान्यतः 96.98% होती है।
प्रश्न 7.22
SO2 किस प्रकार से एक वायु प्रदूषक है?
उत्तरः
सल्फर डाइआक्साइड का प्रमुख प्रभाव श्वास-तन्त्र पर पड़ता है। इससे जलन उत्पन्न होती है तथा वायु-मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। प्राय: 5 ppm So, स्तर पर हमें जलन अनुभव होने लगती है। SO2 के कारण अत्यन्त विषम परिस्थिति तब उत्पन्न होती है, जबकि इसे धुएँ के साथ श्वसित कर लिया आता है।
SO2 पौधों के लिए भी हानिकारक है। SO2 गैस के अल्प स्तर (0.03 ppm) में रहने पर भी पत्तियों के ऊतक नष्ट हो जाते हैं तथा पत्तियों के किनारों को क्षति पहुँचाती है। SO2 के कारण अम्ल वर्षा होती है जो पौधों के साथ-साथ नदियों, तालाबों में रहने वाले जलचरों तथा इमारतों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होती है।
प्रश्न 7.23
हैलोजन प्रबल ऑक्सीकारक क्यों होते हैं?
उत्तर:
चूँकि हैलोजनों में, अल्प बन्ध वियोजन एन्थैल्पी, उच्च विद्युतऋणात्मकता तथा अधिक ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी होती है जिससे इनमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके अपचयित होने की प्रबल प्रवृत्ति होती है।
X + e– → X–
अत: हैलोजेन प्रबल ऑक्सीकरण कर्मक होते हैं।
प्रश्न 7.24
स्पष्ट कीजिए कि फ्लु ओरीन केवल एक ही ऑक्सोअम्ल, HOF क्यों बनाता है।
उत्तर:
उच्च विद्युत ऋणात्मक तथा छोटे आकार के कारण F2 एक हीऑक्सो अम्ल HOF बनाती है जो फ्लूओरिक अम्ल या हाइपो फ्लूओरस अम्ल कहलाता है।
प्रश्न 7.25
व्याख्या कीजिए कि क्यों लगभग एक समान विद्युतऋणात्मकता होने के पश्चात् भी नाइट्रोजन हाइड्रोजन आबन्ध निर्मित करता है, जबकि क्लोरीन नहीं।
उत्तर:
चूँकि O तथा Cl की विद्युतऋणात्मकता समान है तथा इनके परमाणु आकार में बहुत अधिक अन्तर है। अतः ऑक्सीजन के प्रति इकाई आयतन पर इलेक्ट्रॉन घनत्व क्लोरीन परमाणु की तुलना में अधिक होता है। इसलिए ऑक्सीजन हाइड्रोजन आबन्ध निर्मित करता है जबकि क्लोरीन नहीं।
प्रश्न 7.26
ClO2 के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर:
- ClO2 का अत्यधिक मात्रा का प्रयोग वुडपल्प तथा सेलुलोस के विरंजन और पीने के जल के शोधन में किया जाता है।
- यह एक उत्कृष्ट विरंजक है। चूँकि विरंजक चूर्ण क्लोरीन से 30 गुना शक्तिशाली होता है। अत: इसे उत्कृष्ट विरंजक के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
प्रश्न 7.27
हैलोजेन रंगीन क्यों होते हैं?
उत्तर:
सभी हैलोजेन रंगीन होते हैं। इसका कारण यह है कि दृश्य क्षेत्र में विकिरणों का अवशोषण होता है जिससे इनके इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तरों में चले जाते हैं। हैलोजेनों का रंग वास्तव में इस उत्सर्जित प्रकाश का रंग होता है। उत्तेजन के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा परमाणु आकार के अनुसार F से I तक लगातार घटती है, अत: उत्सर्जित प्रकाश की ऊर्जा F से I तक बढ़ती है।
हैलोजेन का रंग F2 से I2 तक गहरा होता जाता है। उदाहरणार्थ – F2 बैंगनी प्रकाश अवशोषित करके हल्का पीला दिखाई देता है जबकि आयोडीन पीला तथा हरा प्रकाश अवशोषित करके गहरा बैंगनी रंग का प्रतीत होता है। इसी प्रकार हम Cl2 के हरे-पीले तथा ब्रोमीन के नारंगी-लाल रंग की व्याख्या कर सकते हैं।
प्रश्न 7.28
जल के साथ F2 तथा Cl2 की अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
F2 जल से अभिक्रिया O2 या O3 में ऑक्सीकृत कर देती है।
2F2 (g) + 2H2O → 4H+ (aq) + 4F– (aq) + O2 (g)
3F2 (g) + 3H2O (l) → 6H+ (aq) + 6F– (aq) + O3 (g)
Cl2 जल से अभिक्रिया करके हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा हाइपोक्लोरस अम्ल बनाती है।
प्रश्न 7.29
आप HCl से Cl2 तथा Cl2 से HCI को कैसे प्राप्त करेंगे? केवल अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
HCl से Cl2 के अनेक ऑक्सीकारकों; जैसे –
MnO2, KMnO4, तथा K2Cr2O7 द्वारा प्राप्त किया जा सकता हैं।
Cl2 से HCl को अपचयन द्वारा सूर्य के मन्द प्रकाश में H2 की अभिक्रिया से प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 7.30
एन-बार्टलेट Xe तथा PtF6 के बीच अभिक्रिया कराने के लिए कैसे प्रेरित हुए?
उत्तर:
एन बार्टलेट ने प्रेक्षित किया कि PtF6 की अभिक्रिया O2 से होने पर एक आयनिक ठोस, \(\mathrm{O}_{2}^{+} \mathrm{PtF}_{6}^{-}\) प्राप्त होता है।
O2 (g) + PtF(g) → \(\mathrm{O}_{2}^{+} \mathrm{PtF}_{6}^{-}\)
चूँकि Xe की प्रथम आयनन एन्थैल्पी (1170 kJ mol-1) O2 अणुओं की प्रथम आयन एन्थैल्पी (1175 kJ mol-1) के समान है, इसलिए Xe को जब PtF6 के बीच Xe में ऑक्सीकृत करना चाहिए। इससे वे Xe तथा PtF6 के बीच अभिक्रिया कराने के लिए प्रेरित हुए। Xe तथा PtF6 के बीच एक तीव्र अभिक्रिया हुई तथा सूत्र Xe+Pt–6 का एक लाल ठोस पदार्थ प्राप्त हुआ।
प्रश्न 7.31
निम्न यौगिकों में फॉस्फोरस की ऑक्सीकरण अवस्थाएँ क्या हैं?
- H2PO3
- PCl3
- Ca3P2
- Na2PO4
- POF3
गणना:
माना निम्नलिखित में फॉस्फोरस की ऑक्सीकरण अवस्था x है।
प्रश्न 7.32
निम्नलिखित के लिए सन्तुलित समीकरण लिखिए।
- जब NaCl को MnO2 की उपस्थिति में सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किया जाता है।
- जब क्लोरीन गैस को NaI के जलीय विलयन में से प्रवाहित किया जाता है।
उत्तर:
1. Cl2 मुक्त होती है।
4NaCl + MnO2 + 4H2SO4 → MnCl2 + 4NaHSO4 + Cl2 ↑ + 2H2O
2. Cl2,NaI को I2 में ऑक्सीकृत कर देती है।
Cl2 (g) + 2Nal(aq) → 2NaCl(aq) + I2 (s)
प्रश्न 7.33
जीनॉन फ्लु ओराइड, XeF2, XeF4 तथा XeF6 कैसे बनाए जाते हैं?
उत्तर:
जीनॉन फ्लुओराइडों को Xe तथा F2 के मध्य विभिन्न परिस्थितियों में सीधे अभिक्रिया करके XeF2, XeF4 तथा XeF6 बनाती हैं।
प्रश्न 7.34
किस उदासीन अणु के साथ ClO– समइलेक्ट्रॉनी है? क्या यह गुण लुइस क्षारक है?
उत्तर:
ClO– में 26 इलेक्ट्रॉन है। 26 इलेक्ट्रॉनों वाला उदासीन अणु OF2 है। अत: ClO– OF2 के साथ समइलेक्ट्रॉनी
विकल्पत:
ClO– में O– को F से प्रतिस्थापित करने पर, परिणामी उदासीन अणु CIF है। चूंकि CIF फ्लुओरीन से पुनः संयोग करके CIF बना सकता है इसलिए CIF एक लुइस क्षारक है।
प्रश्न 7.35
निम्नलिखित प्रत्येक समुच्चय को सामने लिखे गुणों के अनुसार सही क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
- F2, Cl2, Br2, I2 आबन्ध वियोजन एन्थैलपी बढ़ते क्रम में।
- HF, HCl, HBr, HI अम्ल सामर्थ्य बढ़ते क्रम में।
- NH3, PH3, AsH3, SbH3, BiH3 सामर्थ्य बढ़ते क्रम में।
उत्तर:
1. हैलोजन अणुओं में बन्ध लम्बाई बढ़ने से बन्ध वियोजन ऐन्थैल्पी के मान घटते हैं। इसका कारण यह है चूँकि F परमाणु अत्यधिक छोटा होता है तथा प्रत्येक F परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों के तीन एकाकी युग्म F2 अणु में F परमाणुओं को बाँधे रखने वाले आबन्ध युग्मों को प्रतिकर्षित करते हैं। अत: आबन्ध वियोजन एन्थैल्पी का बढ़ता क्रम इस प्रकार होता है –
I2 < F2 < Br2 < Cl2
2. चूँकि गैसीय अवस्था में हाइड्रोजन हैलाइड्स सहसंयोजी हो जाते हैं तथा प्रकृति के होते हैं तथा जलीय विलयन में आयनिक प्रकृति का क्रम निम्न है-अम्लों की भाँति कार्य करते हैं। अतः इन की अम्लीय सामर्थ्य HF < HQ < HB < HI
3. केन्द्रीय परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों के एकाकी युग्म उपस्थित होने के कारण ये लूइस क्षारों की भाँति कार्य करते हैं। अतः इनकी क्षारक सामर्थ्य का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार से है –
BiH3 < SbH3 < AsH3 < PH3 < NH3
प्रश्न 7.36
निम्नलिखित में से कौन-सा एक अस्तित्व में नहीं है?
- XeOF4
- NeF2
- XeF2
- XeF6
उत्तर:
चूँकि Ne की प्रथम द्वितीय आयतन एन्थैल्पियों का योग Xe की तुलना में अधिक है। अत: F2 Xe को Xe2+ में ऑक्सीकृत कर सकता है और Ne को Ne2+ में ऑक्सीकृत नहीं कर सकती। अत: NeF2 का अस्तित्व नहीं है जबकि (XeOF4) का अस्तित्व है।
प्रश्न 7.37
उस उत्कृष्ट गैस स्पीशीज का सूत्र देकर संरचना की व्याख्या कीजिए जो कि इनके साथ समसंरचनीय है –
- ICI–4
- IBr–2
- BrO–3
उत्तर:
1. ICI– में 36 संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं। अतः 36 इलेक्ट्रॉनों वाली उत्कृष्ट गैस XeF4 है।
XeF4 की संरचना:
इसमें दो 5d – कक्षक, एक 5s कक्षक तथा हीन 5p कक्षकों के संयोजन में छ: sp3 d2 संकर कक्षक बनाता है।
इस प्रकार 6sp3d2 संकरित कक्षकों में 12 इलेक्ट्रॉन चार सहसंयोजक आबन्धों तथा दो असहभाजित युग्मों के रूप में वितरित रहते हैं। इसमें चारों फ्लुओरीन परमाणु एक ही तल में होते हैं। तथा इससे वर्ग समतली अण्ड प्राप्त हाता है जिसमें दो अन आबन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
2. IBr–2 में 22 संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं। 22 इलेक्ट्रॉनों वाली उत्कृष्ट गैस स्पीशीज XeF2 होगी।
XeF2 की संरचना:
इसमें एक 5d – कक्षक, एक 5s – कक्षक तथा तीन 5p – कक्षकों के साथ संकरित होकर पाँच sp3d संकरित कक्षक देता है।
पाँच sp3d संकरित कक्षकों में दस इलेक्ट्रॉन, दो साधारण सहसंयोजक आबन्ध तथा तीन असहभाजित युग्म देते हैं। यदि दोनों F परमाणु अधिकतम सम्भव दूरी पर हों तो हमें एक समद्विबाहु त्रिभुज के बिन्दुओं पर तीन अनआबन्धित इलेक्ट्रॉन-युग्मों का रेखीय अणु प्राप्त होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
3. BrO–3 में 26 संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं। 26 इलेक्ट्रॉनों वाली उत्कृष्ट गैस स्पीशीज XeO3 होगी।
XeO3 की संरचना:
इसमें Xe sp3 संकरण अवस्था में होता है जिसमें चार sp3 संकर कक्षक हैं। इनमें एक कक्षक में इलेक्ट्रॉन O युग्म हैं जो इलेक्ट्रॉनों का एकाकी युग्म प्रदर्शित करते हैं और शेष तीन संकर कक्षक ऑक्सीजन परमाणुओं के साथ तीन σ बनाते हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों के तीन d – कक्षक तीन ऑक्सीजन परमाणुओं के साथ तीन π – बन्ध बनाते हैं। XeO3 अण्ड की ज्यामिति त्रिकोणीय पिरैमिड होती है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 7.38
उत्कृष्ट गैसों के परमाण्विक आकार तुलनातमक रूप से बड़े क्यों होते हैं?
उत्तर:
उत्कृष्ट गैसों की परमाण्विक त्रिज्या अपने सम्बन्धित आवों में सर्वाधिक होती है। इस कारण उत्कृष्ट गैसों की केवल वाण्डरवाल्स त्रिज्या होती है (क्योंकि ये अणु नहीं बनाती है), जबकि अन्यों में सहसंयोजक त्रिज्याएँ होती हैं। वाण्डरवाल्स त्रिज्या सहसंयोजक त्रिज्या से अधिक होती है; अतः उत्कृष्ट गैसों परमाण्विक आकार तुलनात्मक रूप से बड़े होते हैं।
प्रश्न 7.39
निऑन तथा ऑर्गन गैसों के उपयोग लिखिए।
उत्तरः
निऑन के उपयोग (Uses of Neon):
- निऑन का उपयोग विसर्जन ट्यूब तथा प्रदीप्त बल्बों में विज्ञापन प्रदर्शन हेतु किया जाता है।
- निऑन बल्बों का उपयोग वनस्पति उद्यान तथा ग्रीनहाउस में किया जाता है।
ऑर्गन के उपयोग (Uses of Argon):
- ऑर्गन का उपयोग उच्चताप धातु कर्मीय प्रक्रमों में अक्रिय वातावरण उत्पन्न करने के लिए किया जाता है (धातुओं तथा उपधातुओं के आर्क वेल्डिंग में)।
- इसका उपयोग विद्युत-बल्ब को भरने के लिए किया जाता है।
- प्रयोगशाला में इसका उपयोग वायु सुग्राही पदार्थों के प्रबन्धन में भी किया जाता है।