Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन-आन्दोलन का उदय

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन-आन्दोलन का उदय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन-आन्दोलन का उदय

Bihar Board Class 12 Political Science जन-आन्दोलन का उदय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
चिपको आन्दोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से कथन गलत हैं?
(क) यह पड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आन्दोलन था।
(ख) इस आन्दोलन ने परिस्थितियों और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।
(घ) इस आन्दोलन की माँग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों का नियन्त्रण होना चाहिए।
उत्तर:
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आन्दोलन था।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे कुछ गलत हैं। इसकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखे (Some of the statements below are incorrect, identify the incorrect statements and rewrite those with necessary correction)
(अ) सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।
(ब) सामाजिक आंदोलन की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(स) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक ‘आंदोलन का उदय हुआ।

ठीक वाक्य नीचे दिए गए हैं –

(क) यह कथन गलत है क्योंकि-सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।
(ब) यह कथन ठीक है क्योंकि-सामाजिक आंदोलन की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(स) यह कथन गलत है क्योंकि-भारत के राजनीतिक दलों ने कई सामाजिक, आर्थिक मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलन का उदय हुआ।
उत्तर:
(क) यह कथन गलत है क्योंकि-सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुँचा रहे हैं।

प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उत्तराखंड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आन्दोलन का जन्म हुआ? इस आन्दोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन के उदय की कहानी एक ग्राम की एक छोटी-सी उस घटना से है, जिसमें ग्राम वालों ने अपनी खेती बाड़ी के औजार बनाने के लिए वन विभाग से कुछ लकड़ी काटने की अनुमति माँगी जिसको वन विभाग के अधिकारियों ने मना कर दिया परन्तु खेल का सामान बनाने वाली कम्पनी के ठेकेदार को जमीन का टुकड़ा व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आबंटित कर दिया। जिससे ग्राम वालों में रोष पैदा हो गया व इसके खिलाफ रोष व्यक्त करने के लिए आन्दोलन छेड़ दिया जो जल्द ही पूरे उत्तराखंड में फैल गया।

इस आन्दोलन में आन्दोलनकारियों ने पारिस्थितिकी व आर्थिक शोषण के कई सवाल खड़े कर दिए। इसमें आन्दोलनकारियों ने मांग की कि जंगल की कटाई का कोई भी ठेका बाहरी व्यक्ति को ना दिया जाए व स्थानीय लोगों का जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर कारगर नियन्त्रण होना चाहिए। यहाँ के लागों ने मांग की कि इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकार लघु उद्योगों के लिए कम कीमत की सामग्री उपलब्ध कराए व इस क्षेत्र को पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान पहुँचाएँ बगैर यहाँ का विकास सुनिश्चित करें।

इस आन्दोलन की प्रमुख विशेषता यह रही कि इसमें महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। सुन्दर लाल बहुगुणा का नाम इस आन्दोलन के साथ प्रमुख रूप से जुड़ा हुआ है। महिलाओं का इस आन्दोलन के साथ जुड़ने का एक प्रमुख कारण यह था कि जंगल के ठेकेदार ग्रामों के पुरुषों को शराब की आपूर्ति करते थे जिससे यहाँ के पुरुषों में नशे की लत लग जाने से परिवार आर्थिक रूप से सामाजिक रूप से व मानसिक रूप से बरबाद हो रहे थे। अतः इस सबसे छुटकारा पाने के लिए महिलाओं ने ही इस आन्दोलन के जरिए इसे दूर करने का बीड़ा उठाया। चिपको आन्दोलन को सुन्दर लाल बहुगुणा के नाम से ज्यादा जाना जाता है।

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प्रश्न 4.
भारतीय किसान यूनियन, किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर:
किसान वर्ग भारत के सभी व्यावसायिक वर्गों की अपेक्षा बद्दतर हालत में है। देश की 80% जनसंख्या व्यवसाय की दृष्टि से कृषि पर निर्भर करती है। कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। भारत सरकार ने व राज्य सरकारों ने कृषि के विकास की ओर तो कुछ ध्यान दिया है परन्तु किसान के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। किसान की स्वतंत्रता के 60 वर्षों के बाद भी स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ। अगर कृषि की पैदावार में वृद्धि हुई तो कृषि पर होने वाले खर्च में भी उससे कहीं अधिक अनुपात में वृद्धि हुई इससे किसान के जीवन स्तर में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया।

1960 के दशक में हरित क्रांति आयी। इससे पैदावार भी बढ़ी। मशीन व तकनीकी का भी खेती में प्रयोग हुआ परन्तु कुल लाभ किसानों को अधिक नहीं हुआ अगर इसका कुछ लाभ हुआ भी तो वह केवल पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े किसानों को हुआ। कृषि की आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने के कारण व बैंकों से कर्ज मिलने की सुविधा के कारण भी किसान कों में डूब गए। कई राज्यों में किसानों ने आत्म हत्यायें भी की।

किसान लम्बे समय से असंगठित रहे जिससे इनकी आवाज व इनकी मांगों को सरकार तक ठीक प्रकार से नहीं ले जाया जा सका। 1988 के जनवरी में उत्तर प्रदेश के एक शहर मेरठ में देश भर के लगभग 20 हजार किसान जमा हुए जिसमें किसानों ने बिजली की बढ़ी हुई दरों के अलावा किसानों के हितों से जुड़े अनेक मुद्दों को उठाया। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश में चौधरी महेन्द्र सिंह टिकेत के नेतृत्व में किसान आन्दोलन एक आकार ले चुका था। छोटे-छोटे आन्दोलन अन्य कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा व पंजाब में संगठित हो रहे थे।

भारतीय किसान यूनियन एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है जिसका व्यापक जनाधार व प्रभाव है। किसान यूनियन ने महेन्द्र सिंह टिकेत के नेतृत्व देहली के लाल किले पर भी हजारों किसानों की संख्या के साथ धरना देकर संसद का ध्यान किसानों की माँगो की ओर खींचा था। किसान यूनियन की इन गतिविधियों का प्रभाव यह है कि ये विभिन्न स्तर पर किसानों के हितों के लिए लोबीइंग करने में सफल रहे हैं। संसद में किसानों की आवाज उठती है। किसानों के प्रतिनिधि के रूप में अनेक सांसद व विधान सभा सदस्य हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल की किसान शाखा है जो किसानों के हितों का ध्यान रखती है। किसान यूनियन की प्रमुख माँगे निम्न हैं –

  1. गन्ने व गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी करने।
  2. कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियों को हटाने।
  3. समुचित दल पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने।
  4. किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने।
  5. सस्ती दरों पर किसानों को बैंको से कर्ज दिलाने की व्यवस्था करने।
  6. मूल्यों के निर्धारण में किसानों का प्रतिनिधित्व करने आदि।

इस प्रकार से आज किसान पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हुआ है। सरकार ने भी ग्रामीण विकास की ओर अधिक ध्यान दिया है जिससे ग्रामों के चेहरे व किसानों के चेहरे में चमक आयी है। ग्रामों में शिक्षा स्वास्थ्य व सिंचाई की सुविधाएँ पहुँचाई गई हैं।

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प्रश्न 5.
आंध्र प्रदेश में चले शराब-विरोधी आन्दोलन ने देश का ध्यान कुछ गम्भीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के कलिनारीमंडल स्थित गुंडलुर गाँव की महिला से अपने गाँव में ताड़ी बिक्री पर पाबंदी लगाने के लिए एकजुट हुई व बड़ी बहादुरी के साथ ताड़ी विक्रेताओं व उनके गुंडों का मुकाबला किया।

अन्ततः ताड़ी विक्रेताओं को हार माननी पड़ी। महिलाओं ने ना केवल ताड़ी बेचने का विरोध किया बल्कि ताड़ी के साथ शराब के धन्धे का भी विरोध किया। महिलाओं के इस अभियान की खबर प्रेस के माध्यम से सभी जगह फैल गई। महिला प्रौढ़ शिक्षा प्रोग्राम जो 1990 के प्रारम्भ में महिलाओं के लिए चलाया गया था, इस कार्यक्रम को अर्थात् महिलाओं के शराब बन्दी के आन्दोलन के प्रचार करने में प्रभावकारी सिद्ध हुआ। इस आन्दोलन ने समाज के निम्न प्रमुख मुद्दों को प्रभावित किया –

  1. महिलाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण
  2. शराब के नशे का पुरुषों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव
  3. आर्थिक संकट की स्थिति
  4. महिलाओं की अशिक्षा
  5. बेरोजगारी
  6. राजनीतिक व अपराध के बीच का सम्बन्ध
  7. प्रशासन व अपराध के बीच का सम्बन्ध
  8. घरेलू हिंसा
  9. महिलाओं की शिक्षा की आवश्यकता
  10. दहेज प्रथा
  11. महिलाओं का शारीरिक शोषण
  12. लैंगिक समानता

प्रश्न 6.
क्या आप शराब विरोधी आन्दोलन को महिला-आन्दोलन का दर्जा देंगे?
उत्तर:
वास्तव में शराब विरोधी आन्दोलन को महिला आन्दोलन कहा जा सकता है क्योंकि इन आन्दोलनों को महिलाओं का ही अधिकांशत: समर्थन है व इनका नेतृत्व भी महिला ही कर रही थी। इसको इस नजरिए से भी महिला आन्दोलन कहा जा सकता है क्योंकि शराब के नशे का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं को ही झेलना पड़ता है। इनके ऊपर शारीरिक मानसिक अत्याचार होते हैं, परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। परिवार के बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ जाता है।

परिवार बेरोजगारी का शिकार हो जाता है। परिवार कर्जवान हो जाता है। इसके साथ-साथ शराब के नशे के कारण समाज में महिलाओं को प्रभावित करने वाली अनेक कुरीतियाँ जन्म ले लेती हैं जैसे दहेज, भ्रूण हत्या व सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का शोषण। इस प्रकार शराब बन्दी के लिए सबसे ज्यादा समर्थन महिलाओं का ही समर्थन मिलता है। हरियाणा आंध्र प्रदेश व गुजरात में चले नशाबन्दी के आन्दोलनों में भी महिलाओं की अग्रिम भूमिकाओं के उदाहरण हमारे सामने हैं। इस प्रकार से हम शराब के खिलाफ आन्दोलनों को हम महिला आन्दोलन कह सकते हैं।

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प्रश्न 7.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजनाओं का विरोध क्यों किया?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन प्रारम्भ से ही सरदार सरोवर परियोजना को विकास परियोजनाओं के साथ जुड़े कई अन्य मुद्दों के साथ जोड़ कर देखता रहा है। इस आन्दोलन के समर्थकों ने विकास के मॉडल और उसके सार्वजनिक औचित्य पर “सवाल उठाया।” आन्दोलनकारियों का यह कहना था कि इन परियोजनाओं पर अत्यधिक खर्च होता है व इन परियोजनाओं का समाज के गरीब वर्गों को विस्थापन, बेरोजगारी व पर्यावरण प्रदुषण के रूप में खमियाजा उठाना पड़ता है।

आन्दोलनकारियों ने अपने आन्दोलन के माध्यम से निम्न प्रमुख प्रश्न उठाएँ –

  1. परियोजनाओं की औचित्यता पर।
  2. परियोजनाओं पर होने वाले खर्चों पर।
  3. परियोजनाओं के सम्बन्ध में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर। इनका कहना है कि जब इस प्रकार की परियोजनाओं के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाए तो स्थानीय लोगों को भी इसमें शामिल होना चाहिए व इनकी सहमति भी आवश्यक होनी चाहिए।
  4. विस्थापित लोगों का पुनः स्थापित किया जाना चाहिए।
  5. पर्यावरण की सुरक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  6. संस्कृति पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
  7. इस औचित्य को भी इस आन्दोलन में उठाया गया कि केवल कुछ लोगों के लाभ के लिए शेष लोगों को बलि का बकरा नहीं बनाना चाहिए।

प्रश्न 8.
क्या आन्दोलन और विरोध की कार्यवाइयों से देश का लोकतन्त्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रजातन्त्र को प्रजा की, प्रजा के लिए व प्रजा के द्वारा सरकार माना जाता है। प्रजातन्त्र में अन्तिम शक्ति जनता के पास निहित होती है प्रजातन्त्रीय सरकार विचार विमर्श, संवाद, सहमति पर आधारित होती है। प्रजातंत्रीय सरकार में मतभेद, विनय की गुंजाइस होती है। प्रजातन्त्रीय सरकार में लोगों के अपने अधिकार व जिम्मेवारियाँ होती हैं व उनको अपनी बात अपने तरीके से कहने का अधिकार होता है। अपनी मांगों को सरकार के सम्मुख रखने का अधिकार होता है।

ये सभी बात प्रजातन्त्रीय वातावरण व संस्कृति में समा सकती है अतः विरोध, मतभेद व आन्दोलन से प्रजातन्त्र कमजोर नहीं होता बल्कि इन प्रक्रियाओं से प्रजातन्त्र मजबूत होता है। इन आन्दोलनों से सरकार पर अंकुश लगता है वह प्रजातन्त्र में गतिशीलता आती है। आन्दोलनों व विरोध से सरकार की क्षमता में विकास होता है। भारत एक प्रजातन्त्रीय देश है जिसमें विभिन्न आधारों पर (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, भाषीय, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व वैचारिक) अनेक हित समूह व दबाव समूह सक्रिय रूप से भारतीय राजनीति को प्रभावित करते हैं।

अनेक बार ये अपने हितों को प्राप्त करने पर आन्दोलन भी करते हैं। किसान आन्दोलन, मजदूर आन्दोलन, महिला आन्दोलन, जातिय आन्दोलन (हाल ही में राजस्थान में आरक्षण के लिए गुर्जर आन्दोलन आदि) कई बार ये आन्दोलन हिंसक भी हो जाते हैं। कई बार ऐसा देखा गया कि राज्य भी अपनी किसी माँग को लेकर केन्द्र सरकार के विरूद्ध आन्दोलन करते हैं। इन सभी गतिविधियों से वास्तव में प्रजातन्त्र मजबूत होता है। सरकार की मनमानी पर अंकुश लगता है व नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा भी प्राप्त होते हैं व नागरिकों के हित मजबूत होते हैं। परन्तु यदि इन आन्दोलनों का प्रयोग व आयोजन सही माँग के लिए जिम्मेवारी से नहीं किया जाता है तो इन आन्दोलन से समाज, राष्ट व प्रजातन्त्र को खतरा व नुकसान भी होता है।

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प्रश्न 9.
दलित पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए?
उत्तर:
यह एक ऐतिहासिक सच है कि हमारे समाज में दलित वर्ग सबसे अधिक शोषित रहा है इस वर्ग को सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक स्तर व अन्याय, असमानता व शोषण झेलना पड़ा है। आजादी के बाद प्रजातन्त्रीय वातावरण में दलितों को शिक्षा के अवसर मिले व इनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ जिससे इनमें राजनीतिक जागरूकता का भी विकास हुआ । इन्हें अपने अधिकारों का भी अहसास हुआ। इन सबके फलस्वरूप इन्होंने अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बनाने प्रारम्भ किए जिसमें दलित पैंथर्स भी एक प्रमुख दलित संगठन है दलित पैंथर्स का गठन महाराष्ट्र से दलित युवकों ने 1972 में किया दलित पैंथर्स के सम्मुख निम्न प्रमुख मुद्दे थे –

  1. जातिवाद का विरोध करना।
  2. संवैधानिक प्रावधानों को लागू करना।
  3. दलित महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकना।
  4. सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना।
  5. दलितों पर हो रहे अत्याचारों का विरोध करना।
  6. भूमिहीन गरीब किसानों के हितों की रक्षा करना।
  7. शहरी औद्योगिक मजदूर व अन्य कमजोर वर्गों का एक मजबूत संगठन बनाना।
  8. दलितों में जागरूकता लाना।
  9. राजनीतिक दलों को दलितों के साथ जोड़ना।
  10. आरक्षण की नीतियाँ व सामाजिक न्याय से सम्बन्धित कानूनों को लागू करना।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।
उत्तर:
“लगभग सभी नए सामाजिक आन्दोलन नई समस्याओं जैसे-पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानव अधिकारों का उल्लंघन ……. के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपने आप में समाज व्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आन्दोलन अतीत की क्रांतिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग है।

लेकिन ये आन्दोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है ……… सामाजिक आन्दोलन का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथ्य एक जुट जनआन्दोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही चितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है। ये आन्दोलन बिखरे-बिखरे हैं। प्रतिक्रियाओं के तत्वों से भरे हैं, अनियत है और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। ‘इस’ या ‘उस” के विरोध (पश्चिमी विरोधी, विकास विरोधी, पूंजीवाद विरोधी आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती है अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए से प्रासंगिक हो पाते हैं-ऐसी बात नहीं”

रजनी कोठारी –
(क) नए सामाजिक आन्दोलन क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अन्तर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलनों की सीमाएं क्या-क्या है?
(ग) यदि सामाजिक आन्दोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें बिखरा हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं ज्यादा केन्द्रित है। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।

उत्तर:
(क) आज के जागरूक उदारवादी आन्दोलन व क्रान्तिकारी विचारधाराओं में यह अन्तर है कि प्रजातन्त्रीय वातावरण व उदारवादी सामाजिक आन्दोलन शान्तिपूर्ण होते हैं व धीरे-धीरे व्यवस्था परिवर्तन करने का प्रयास करते हैं जबकि क्रान्तिकारी विचारधारा पर आधारित आन्दोलन हिंसात्मक होते हैं व व्यवस्था को जल्द से जल्द बदलने का प्रयास करते हैं।

(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आन्दोलन की एक बड़ी सीमा यह है कि एक ठोस तथा एक जुट जन आन्दोलन का रूप नहीं ले पाता व ना ही गरीब वर्ग के लोगों के लिए अधिक उपयोगी व प्रासांगिक नहीं हो पाता। ये आन्दोलन बिखरे हुए होते हैं, अनियत होते हैं व समाज की बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए इनके पास कोई ठोस उपाय नहीं होता।

(ग) प्राय:
सभी आन्दोलन निश्चित मुद्दों को लेकर प्रारम्भ होते हैं परन्तु ये अपने आन्दोलन के सफर में समाज में जुड़े अथवा उस विशेष वर्ग से जुड़ी समस्याओं को भी अपने आन्दोलन के ऐजन्डे में शामिल कर लेते हैं। हालाकि अगर कोई आन्दोलन किसी एक ही विशिष्ट मुद्दे को उठाते हैं तो उसको कहेंगे कि वह अपने ही मुद्दे पर कहीं ज्यादा केन्द्रित है। अगर किसान आन्दोलन है तो जाहिर है कि वह किसानों के हितों की ही बात करेंगे। इसी प्रकार से महिला आन्दोलन महिलाओं के हित की बात करेंगे। परन्तु कुछ ऐसे भी आन्दोलन होते हैं जो विशिष्ट व सार्वजनिक अथवा कई मुद्दों को लेकर चलते हैं।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जन आन्दोलनों का प्रजातन्त्र में क्या महत्व है?
उत्तर:
प्रजातन्त्र में जन आन्दोलनों का अस्तित्व में आना व विभिन्न आधारों पर इनका उदय होना स्वाभाविक है। प्रजान्त्रीय प्रक्रिया के दौरान व प्रजातन्त्रीय वातावरण में जनता अपने हितों को समझाना प्रारम्भ करती है तथा उनको प्राप्त करने व विकसित करने के संगठन बनाते हैं व आवश्यकता पड़ने पर आन्दोलन भी करते हैं इस प्रकार से कह सकते हैं कि जन आन्दोलन का उदय होना प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया का ही एक भाग है। इस प्रकार के आन्दोलन का प्रजातन्त्रीय प्रणालियों में अपना अलग महत्त्व है। इन आन्दोलनों से प्रजातन्त्रीय प्रक्रिया में एक नई गतिशीलता को जन्म मिलता है। प्रजातन्त्र इस प्रकार के आन्दोलनों से मजबूत होता है व इन आन्दोलनों के माध्यम से नागरिकों के हितों की रक्षा भी होती है।

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प्रश्न 2.
चिपको आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
उत्तराखंड में प्रारम्भ हुआ चिपको आन्दोलन एक अत्यन्त चर्चित जन आन्दोलन रहा है। सुन्दर लाल बहुगुणा इस आन्दोलन से प्रमुख रूप से जुड़े हुए हैं। इनका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा के लिए पारिस्थितिकी सन्तुलन के पेड़ों की रक्षा करना अति आवश्यक रूप से प्राप्त करना है। इस आन्दोलन का प्रारम्भ छोटी-सी घटना से हुआ था जब जंगल के अधिकारियों ने ग्रामीणों को कृषि के यन्त्र बनाने के लिए लकड़ी काटने की अनुमति नहीं दी बल्कि खेल का सामान बनाने वाली कम्पनी के ठेकेदारों को लकड़ी काटने की अनुमति दे दी। इसके खिलाफ आन्दोलन प्रारम्भ किया गया जिसमें अन्य और कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठ गये।

प्रश्न 3.
चिपको आन्दोलनकारियों की मुख्य माँगें क्या थी?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन मुख्य रूप से जंगल के अधिकारियों के पक्षपाती व्यवहार के खिलाफ था। इसके साथ जंगल के ठेकेदारों द्वारा ग्रामवासियों को नशे की लत डालने के खिलाफ भी यह आन्दोलन था। इन आन्दोलनकारियों का उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों की रक्षा करना भी था। इसके साथ अन्य कई और मुद्दे भी इस आन्दोलन के कार्य क्षेत्र में आ गए जैसे कि स्थानीय लोगों के अधिकार व स्थानीय प्राकृतिक श्रोतों की सुरक्षा।

प्रश्न 4.
चिपको आन्दोलन महिलाओं का आन्दोलन क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन को महिला आन्दोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस आन्दोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया व पर्यावरण की सुरक्षा व पेड़ों की सुरक्षा के मुद्दों के साथ-साथ महिलाओं से जुड़े अनेक मुद्दों को भी उठाया। चिपको आन्दोलन में महिलाओं ने शराब, ताड़ी, दहेज, महिलाओं पर पुरुषों के द्वारा किए गए शारीरिक व मानसिक शोषण जैसे मुद्दे भी उठाए। इस आन्दोलन से महिलाओं ने वन अधिकारियों व ठेके द्वारा किए गए गलत कार्यों को भी उजागर किया तथा उनके परिवार के पुरुषों को नशे की लत डालकर किस प्रकार से उनके परिवारों को आर्थिक संकट में डाल रहे थे। अतः ये सभी प्रश्न महिलाओं को प्रभावित कर रहे थे जिससे महिलाओं ने इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका अदा की। इसलिए ही इसको महिला आन्दोलन भी कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
गैर दलीय आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
प्रजातन्त्रीय प्रणाली में राजनीतिक दलों की प्रमुख भूमिका होती है कि वे जनता के हितों को सरकार तक ले जाए व जनता के विभिन्न प्रकार के हितों पर जनमत तैयार करें। परन्तु आजकल राजनीतिक दल अपने इन भूमिकाओं में विफल रहे हैं जिससे स्वयं जनता को ही अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बनाकर अपने हितों की रक्षा करनी पड़ती है। इस प्रकार के संगठनों के आन्दोलनों को गैर राजनीतिक आन्दोलन कहते हैं। भारत में 1970 के दशक बाद विभिन्न राज्यों में विभिन्न आधारों पर अनेक गैर राजनीतिक आन्दोलन विकसित हुए। उदाहरण के तौर पर किसान यूनियन, चिपको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन आदि।

प्रश्न 6.
गैर राजनीतिक दलों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं।
उत्तर:
गैर राजनीतिक दलों की प्रमुख भूमिकाएँ निम्न हैं –

  1. गैर राजनीतिक संगठन ऐच्छिक है।
  2. ये संगठन गैर राजनीतिक होते हैं व चुनाव में हिस्सा नहीं लेते।
  3. ये चुनावी प्रक्रिया व निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
  4. विभिन्न सामूहिक विषय पर संगठित होते हैं।
  5. इनका प्रभाव अक्सर क्षेत्रीय होता है।

प्रश्न 7.
दलित पैंथर्स को एक जन आन्दोलन के रूप में समझाइए।
उत्तर:
दलित समाज को इतिहास में अनेक प्रकार के कष्टों से गुजरना पड़ा है। इनके साथ सामाजिक, आर्थिक मानसिक व शारीरिक अन्याय होता रहा है। प्रजातन्त्र के विकास का दलितों पर भी प्रभाव पड़ा। विशेषकर दलित युवाओं में अपने हितों, गरिमा व मान सम्मान के प्रति जागरूकता जागी व इसको विकसित करने के लिए व अपने ऊपर होने वाले विभिन्न प्रकार के अन्याय व शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए एक युवा संगठन बनाया। इसका प्रारम्भ महाराष्ट्र से हुआ इस संगठन का नाम दलित पैंथर्स था। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य था जातिवाद, छुआछुत व इन आधारों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ना व भारतीय संविधान में इन कुरीतियों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रावधानों, सरकारी नीतियों व कानूनों को लागू कराना था।

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प्रश्न 8.
दलित संगठन की प्रमुख गतिविधियाँ क्या थी?
उत्तर:
दलित समाज के हितों की रक्षा करना दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य था। इसमें अधिकांशतः युवा वर्ग शामिल था जिनमें उत्साह, जोश व संकल्प था। इस संगठन ने निम्न गतिविधियाँ आरम्भ की –

  1. उच्च जातियों द्वारा दलितों पर किए गए अत्याचार व अन्याय के खिलाफ दलितों को इकट्ठा करना।
  2. दलितों को उनके हित अधिकार व सरकार की नीतियों के बारे में जागरूक करना।
  3. सरकार के ऊपर विभिन्न कार्यक्रमों व गतिविधियों के द्वारा दलितों के पक्ष में नीतियों के बनवाने व लागू करने के लिए दबाव डलवाना।
  4. छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ना।
  5. दलित पैंथर्स ने राजनीति को भी अपने उद्देश्य के लिए प्रयोग किया।

प्रश्न 9.
भारतीय किसान यूनियन के बारे में आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसान लम्बे समय से शोषित व असंगठित रहा है। गरीब किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर रही है क्योंकि वह हर चीज अर्थात् अच्छे बीज, खाद, पानी, बिजली व उसके द्वारा पैदा किए गए कृषि पदार्थों की कीमतों के लिए सरकार पर निर्भर रहा है। 1980 के बाद किसानों में भी जागरूकता आयी व इन्होंने भी राजनीतिज्ञों पर भरोसा किए बिना अपना अलग-अलग संगठन बनाया जिसका नाम भारतीय किसान यूनियन है। यह संगठन विभिन्न तरीकों से समय-समय पर सरकार को प्रभावित करता रहा है।

प्रश्न 10.
भारतीय किसान यूनियन की सफलताएँ समझाइए।
उत्तर:
एक लम्बे समय तक भारत का किसान असंगठित रहा है जिससे उसके हितों की ठीक से सुरक्षा नहीं हो पायी किसान अपनी पैदावार की कीमतों के लिए सरकार पर भी निर्भर करती रही व पैदावार के लिए प्रकृति पर निर्भर रही जिससे किसान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रही। 1980 के दशक में भारत के किसानों ने संगठित होना प्रारम्भ किया। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकेत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया जिसने कई स्थानों यहाँ तक कि लालकिला व भारतीय संसद पर भी धरना दिया जिससे सरकार भारत के किसानों के हितों के प्रति सजग हुई। आज भारतीय किसानों के प्रभाव के कारण किसानों को कृषि के क्षेत्र में अनेक सुविधाएँ मिल रही हैं बैंकों से अनेक सुविधाएँ मिल रही है वे इनका अपनी कीमतों से अच्छी कीमतें भी मिल रही है। यही भारतीय किसान यूनियन की सफलता है।

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 7 जन-आन्दोलन का उदय

प्रश्न 11.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
ताड़ी एक प्रकार का नशीला पेय पदार्थ होता है जिसका प्रयोग आन्ध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के ग्रामों के पुरुषों के द्वारा बड़ी मात्रा में हो रहा था जिससे परिवारों का आर्थिक संकट बढ़ रहा था व जिसकी सबसे अधिक मार महिलाओं पर पड़ रही थी इसलिए ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने ताड़ी की पूर्ति व बेच के खिलाफ एक संगठन बनाया व आन्दोलन चलाया जिसको ताड़ी विरोधी आन्दोलन कहते हैं। महिलाओं के इस आन्दोलन व जागरूकता को दबाने के लिए ताड़ी के विक्रेताओं व ठेकेदारों ने हर प्रकार के प्रयास किए परन्तु वे महिलाओं के साहस को कम ना कर सके। अन्त में ताड़ी के विक्रेताओं को हार माननी पड़ी। इस आन्दोलन ने शराब के नशे के प्रयोग का भी विरोध किया।

प्रश्न 12.
ताड़ी आन्दोलन किस प्रकार से फैला?
उत्तर:
ताड़ी की पूर्ति व बेचने के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ नैलोर में इकट्ठी हुई व सभी महिलाओं से इस आन्दोलन में शामिल होने की अपील की जिसका पूरे क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा व महिलाओं का यह आन्दोलन एक विशाल आन्दोलन बन गया व लगभग 5000 ग्रामों में फैल गया। जगह-जगह सभाएँ हुई व ताड़ी के नशे व शराब के नशे के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए। इस आन्दोलन ने माफिया, अधिकारियों व राजनीतिज्ञों के सम्बन्धों को नंगा कर दिया।

प्रश्न 13.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन में अन्य किन-किन मुद्दों को उठाया गया?
उत्तर:
ताड़ी विरोधी आन्दोलन ताड़ी व शराब के नशे के खिलाफ आन्दोलन प्रारम्भ किया परन्तु जिस प्रकार से इसको सफलता मिली, सामूहिक महत्त्व में निम्न मुद्दे भी इसमें शामिल कर लिए गए –

  1. नारी व पुरुषों में भेदभाव।
  2. महिलाओं की शारीरिक व मानसिक यातनाएँ।
  3. दहेज प्रथा।
  4. महिलाओं की सुरक्षा के लिए सम्पत्ति कानूनों में महिलाओं के पक्ष में परिवर्तन।
  5. महिला शिक्षा व रोजगार का विषय।

प्रश्न 14.
ताड़ी बचाओ आन्दोलन का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
ताड़ी बचाओ आन्दोलन ग्रामीण क्षेत्र की कुछ महिलाओं ने प्रारम्भ किया था जिनके प्रयास से यह एक जन-आन्दोलन बन गया जिससे ना केवल नशे के खिलाफ जनमत तैयार हुआ बल्कि अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने का संकल्प इस आन्दोलन के कारण लिया जा सका। इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता इस बात में है कि महिलाओं के अधिकारों के बारे में बहुत जागरूकता आयी व महिलाओं की स्थिति में एक बड़ा परिवर्तन आया। सरकार की नीतियों व कानूनों में भी परिवर्तन आ गया। इस आन्दोलन का एक और मायने में प्रभाव व महत्त्व रहा कि यह आन्दोलन माफियाओं, ठेकेदारों, सरकारी अधिकारियों व राजनीति के बीच के सम्बन्धों को तोड़ा गया।

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प्रश्न 15.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन गुजरात में चलाया गया जिसका प्रभाव देश के अनेक क्षेत्रों में हुआ। इसका उद्देश्य सरदार सरोवर परियोजना के तहत होने वाले बाँध के निर्माण का विरोध करना था। इस आन्दोलन में विकास के नाम पर सरदार सरोवर परियोजना जैसी योजनाओं के औचित्य पर सवाल उठाए। अनेक पर्यावरण से जुड़े लोग व समाज सेवी जैसे प्रमुख रूप से मेधा पाटेकर व अरणघाटी राय इस आन्दोलन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। इनकी यह मांग भी है इस प्रकार की परियोजनाओं की कीमत का सही विश्लेषण किया जाना चाहिए। इस कीमत स्थानीय लोगों द्वारा सही जाने वाली कीमत को भी ध्यान में रखना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र में गैर राजनीतिक आन्दोलनों का महत्त्व व प्रासांगिकता समझाइए।
उत्तर:
प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों का अत्यन्त महत्त्व होता है। यह उम्मीद की जाती है कि राजनीतिक दल सरकार व जनता के बीच एक कड़ी का कार्य करती है व जनता की मांगों को व हितो को सरकार तक ले जाती है व सरकार की नीतियों व निर्णयों को जनता तक ले जाकर स्वस्थ जनमत निर्माण का कार्य करती है। प्रजातन्त्र में राजनीतिक दल ही एक प्रकार के राजनीतिक आन्दोलनों के ऐजेन्ट होते हैं परन्तु आज के भौतिकवादी व अवसरवादी युग में राजनीतिक दल के बल, सत्ता की राजनीतिक ही करने में लगे रहते हैं व जनहित से अनभिज्ञ रहते हैं। इस कारण से राजनीतिक दल जनता में अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं।

इस कारण से जनता स्वयं अपने हितों की रक्षा के लिए स्वयं ही संगठित होकर अपने हितों की रक्षा करते हैं। सरकार व समाज का ध्यान अपनी मांगों की ओर दिलाते हैं आवश्यकता पड़ने पर ये आन्दोलन करते हैं धरना देते हैं व प्रस्ताव पारित करते हैं। प्रजातन्त्रीय प्रणाली के कारण जैसे-जैसे जागरूकता का विकास होता है गैर राजनीतिक आन्दोलनों की संख्या बढ़ती जा रही है। अपने-अपने हितों के लिए समूह व दबाव समूह के रूप में सम्बन्धित लोग इकट्ठे होते हैं व अपने विषयों पर विचार विमर्श करते हैं व योजनाएँ बनते हैं व सफलता भी प्राप्त करते हैं। अतः इन गैर राजनीतिक आन्दोलनों की प्रासांगिकता भी है व महत्व भी है।

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प्रश्न 2.
चिपको आन्दोलन का प्रारम्भ किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
चिपको आन्दोलन उत्तराखंड में जंगल के अधिकारियों के पक्षपाती व्यवहार के कारण से प्रारम्भ हुआ। जंगल के अधिकारियों ने ग्राम के लोगों को कृषि के यन्त्र बनाने के लिए लकड़ी काटने की अनुमति नहीं दी जबकि उन्होंने खेल की सामग्री बनाने वाले ठेकेदारों को भूमिखंड ही दे दिया। इसके विरुद्ध ग्राम की महिलाओं ने अधिकारियों व ठेकेदारों के खिलाफ आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया यह आन्दोलन मात्र कुछ लकड़ी की अनुमति न मिलने से ही नहीं था वास्तव में इसमें कई प्रकार के मुद्दे उठाए गए थे। इसमें ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के साथ अन्याय का विषय था। ग्रामीणों को पूर्ति की जाने वाली शराब के विरुद्ध था व जंगल के अधिकारियों व ठेकेदारों के खिलाफ था। इसमें वह भी माँग थी कि स्थानीय श्रोतों पर स्थानीय लोगों का ही अधिकार हो।

प्रश्न 3.
चिपको आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन को सफल बनाने में महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। महिलाओं ने संगठित होकर जंगल के अधिकारियों, राजनीतिज्ञों व ठेकेदारों के बीच के सम्बन्धों को उजागर किया। इस आन्दोलन के माध्यम से ना केवल पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ अभियान चलाया बल्कि शराब की आपूर्ति, महिलाओं पर शारीरिक व मानसिक अत्याचार परिवार की आर्थिक संकट, दहेज व बेरोजगारी जैसे विषयों को भे उठाया। महिलाओं ने इस आन्दोलन को इतना अधिक प्रभावकारी बनाया कि सरकार को पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए आदेश दिया व इस सम्बन्ध में प्रभावकारी कानून भी बनाया। इस प्रकार चिपको आन्दोलन केवल एक विषय तक ही सीमित ना रहकर ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े अनेक विषयों को भी इस आन्दोलन के साथ जोड़ दिया गया। महिलाओं ने इस आन्दोलन के माध्यम से ना केवल सरकार को इस सम्बन्ध में नीति बनाने के लिए मजबूत किया बल्कि ग्रामीण क्षेत्र का विकास व सुधार भी किया।

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प्रश्न 4.
गैर राजनीतक आन्दोलनों के उदय के कारण व इनके प्रमुख समझाइए।
उत्तर:
भारतीय प्रजातन्त्र एक उदारवादी प्रजातन्त्र है जिसमें सभी वर्गों, धर्मों, संस्कृतियों व व्यवसायों को फलने-फूलने के अवसर हैं तथा अपनी हितों के लिए संगठन बनाने के अधिकार हैं पिछले कुछ वर्षों में अनेक गैर राजनीतिक संगठनों के उदय के कारण निम्न हैं –

  1. राजनीतिक दलों से निराशा
  2. राजनीतिक दलों द्वारा केवल सत्ता की राजनीतिक करना
  3. लोगों की बढ़ती हुई विभिन्न प्रकार की समस्याएँ
  4. राजनीतिक दलों व अन्य राजनीतिक संस्थाओं में विश्वास की कमी। भारतीय प्रजातन्त्र में पिछले वर्षों में अनेक गैर राजनीतक आन्दोलनों का विकास हुआ है जिनके फलस्वरूप लोग अपने हितों की रक्षा करने व इन मुद्दों पर आमराय व स्वस्थ जनमत बनाने में सफल हुए हैं।
  5. इन आन्दोलनों के माध्यम से सरकारों पर भी नियन्त्रण करने में सफलता मिली है।

प्रश्न 5.
दलित पँथर्स का गठन व उद्देश्य समझाइए।
उत्तर:
दलित समाज लम्बे समय से शोषित व उपेक्षित रहा है। यह एक ऐतिहासिक सच है। देश की आजादी के बाद भी स्थिति में परिवर्तन आने में काफी समय लगा यद्यपि संविधान में दलितों के सामाजिक व आर्थिक विकास के अनेक प्रावधान किए गए। प्रजातन्त्रीय वातावरण बनने से युवा दलितों में जागरूकता आयी। गाँधी जी व डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रेरणा से भी दलितों में एक चेतना का विकास हुआ। दलित युवा एक जगह संगठित होकर पूरे देश में दलितों के अन्दर जागरूकता पैदा करने के लिए अभियान चलाया। युवा दलितों के इस संगठन को दलित पैंथर्स का नाम दिया गया। इसका गठन महाराष्ट्र से प्रारम्भ हुआ। दलित पैंथर्स के निम्न प्रमुख उद्देश्य थे –

  1. दलितों की सामाजिक व आर्थिक दशा को सुधारना।
  2. जाति के आधार पर पक्षपात व अन्याय को समाप्त करना।
  3. दलितों में अपने अधिकारों व सम्मान के प्रति जागरूकता का विकास करना।
  4. संविधान में दलितों के विकास सम्बन्धी प्रावधानों को लागू करना।
  5. दलितों की शिक्षा में प्रसार करना।
  6. सरकारी नौकरियों में व शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था करना।

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प्रश्न 6.
दलितों के विकास में दलित पैंथर्स की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
दलित पैंथर्स 1972 में महाराष्ट्र के युवकों द्वारा गठित युवा संगठन था। इसकी प्रेरणा दलित युवाओं ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर से ली थी। दलित पैंथर्स का मुख्य उद्देश्य दलितों पर उच्च जातियों के द्वारा किया गया शोषण व शारीरिक मानसिक अत्याचार को रोकना था। युवा पैंथर्स अर्थात् दलित पैंथर्स से जुड़े युवाओं का मुख्य निशाना छुआछूत व लम्बे समय से चली आ रही ऊँच-नीच की भावना को समाप्त करना था।

दलित पैंथर्स ने देश के सभी दलितों को संगठित कर उनमें आत्मसम्मान की भावना विकसित करने व शोषण के विरूद्ध आवाज उठाने का साहस पैदा किया। दलित पैंथर्स का इस सम्बन्ध में सहनीय योगदान है कि इन्होंने दलित समाज में जागरूकता पैदा की। – दलित समाज के प्रयासों से सरकारों ने दलित विकास के लिए अनेक नीतियाँ व कार्यक्रम तैयार किए।

प्रश्न 7.
भारतीय किसान यूनियन को भारतीय राजनीति में एक दबाव समूह के रूप में समझाइए।
उत्तर:
भारत के किसानों के हितों पर जनमत तैयार करने व किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए 1980 के दशक में भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया। भारत के किसानों का कोई प्रभावशाली संगठन ना होने के कारण इनकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं रही। किसान अपनी पैदावार के लिए प्रकृति पर निर्भर करते रहे हैं व कृषि की पैदावार की कीमतों के लिए सरकार पर निर्भर करते हैं किसान को अपनी उपज की कीमत को तय करने का भी अधिकार नहीं रहा है।

आज किसान यूनियन एक प्रभावकारी दबाव समूह के रूप में कार्य कर रहा है जो न केवल किसानों को संगठित करने में सफल रहा बल्कि किसानों में अपने हितों के प्रति जागरूक करने में भी सफल रहा है। आज स्थानीय स्तर, क्षेत्रिय स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर यहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर (डब्लू. टी. ओ.) पर नीति निर्णय व कार्यक्रमों को किसान यूनियन प्रभावित करने में सफल रहा है। विधान सभाओं, संसद व मंत्रीमंडल में किसानों के हितों से सम्बन्धित लोग प्रतिनिधि के रूप में मौजूद हैं। कृषि पदार्थों की कीमत को तय करने वाली संस्था में भी किसानों का प्रतिनिधित्व है।

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प्रश्न 8.
भारतीय किसान यूनियन की मुख्य माँगे क्या हैं?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन एक प्रभावकारी संस्था है जिसका प्रभाव विभिन्न राज्यों में है। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकेत के नेतृत्व में यह संगठन काफी मजबूत हुआ है व विभिन्न स्तर पर किसानों की मांगों को भी उठाया है। भारतीय किसान यूनियन की प्रमुख माँगे निम्न हैं –

  1. कृषि पैदावार जैसे गेहूँ, चावल, गन्ना, दालों की कीमतों को इन पर आने वाले खर्चों के अनुपात में कीमतों में वृद्धि।
  2. उत्तम किस्म के बीज व खाद (रासायनिक) में सरकार की ओर से कीमतों में रियायत।
  3. अन्तर्राजीय स्तर पर कृषि पैदावार पर आने-जाने की रोक को हटाना।
  4. बिजली व पानी की सही कीमतों पर निरन्तर आपूर्ति।
  5. सरकारी कर्ज की माफी।
  6. किसानों के लिए पेंशन की व्यवस्था।

प्रश्न 9.
भारतीय किसान यूनियन के द्वारा की गई विभिन्न गतिविधियों को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व प्रभावकारी दबाव समूह है जिसने किसानों को संगठित करने व उनमें अपने हितों को प्रापत करने के लिए महत्त्वपूर्ण निभाई है। किसान यूनियन की प्रमुख गतिविधियाँ निम्न प्रकार की हैं –

  1. रैली का आयोजन करना।
  2. प्रदर्शन करना।
  3. धरनों के रूप में सरकारी नीतियों व निर्णयों का विरोध करना।
  4. जेल भरो आन्दोलनों का आयोजन करना।
  5. संसद में अपने हितों के लिए भावी बनाना।
  6. राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पल में अपने मुद्दों को शामिल कराना।
  7. मुकदमों के जरिए अपने हितों को प्राप्त करना।
  8. निर्णय लेने वाले प्रमुख संस्थाओं में किसानों के प्रतिनिधित्व की माँग करना।
  9. किसान समुदाय में अपने हितों के प्रति जागरूकता बढ़ना।
  10. एक शक्तिशाली व प्रभावकारी दबाव समूह के रूप में कार्य करना।

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प्रश्न 10.
ताड़ी विरोधी आन्दोलन के उदय के कारण व प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
आन्ध्र प्रदेश में नौवे दशक में महिलाओं ने शराब माफियाओं के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। शराब माफिया ग्राम के पुरुषों को ताड़ी की आपूर्ति करके उनको नशे की आदत डाल रहे थे जिसका सीधा प्रभाव परिवार पर विशेषकर महिलाओं पर पड़ता था। ताड़ी की आपूर्ति के साथ शराब माफिया शराब की भी आपूर्ति करते थे।

ताड़ी भी एक पेय पदार्थ होता है जिसमें शराब की तरह ही नशा होता है। महिलाओं ने इन माफियाओं व माफियाओं के गुंडों के खिलाफ मजबूती से व हिम्मत से आन्दोलन चलाया। यहाँ तक सरकार भी इस विषय को ले गयी व अन्त में सभी को महिलाओं की मांगों के आगे झुकना पड़ा। महिलाओं के इस आन्दोलन को ताड़ी आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य ताड़ी व शराब की आपूर्ति को रोकने व शराब के माफिया व अधिकारियों की मिली भगत को तोड़ना था।

प्रश्न 11.
ताड़ी आन्दोलन का महिलाओं की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
ताड़ी आन्दोलन का प्रारम्भ आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के कलिनारी मंडल स्थित ग्राम गुडलुर की महिलाओं ने ग्राम के पुरुषों में ताड़ी के नशे की बढ़ती लत के खिलाफ किया। इस आन्दोलन ने ताड़ी के नशे व शराब के नशे के पुरुषों व परिवारों पर बुरे प्रभाव के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया। ग्राम की महिलाओं ने इकट्ठे होकर पहले अपनी आवाज ताड़ी व शराब की बेचने वालों तक पहुँचाई व बाद में अपनी मांगों को व अपनी दशा को पुलिस प्रशासन व सरकार तक पहुँचाया जिसके परिणामस्वरूप सरकार को इस दिशा में सख्त कदम उठाने पड़े।

इन आन्दोलनकारियों की मुख्य माँग ताड़ी व शराब की बिक्री पर पूर्ण पाबन्दी लगाना था। प्रेस के माध्यम से भी इस आन्दोलन का काफी प्रचार हुआ। यह आन्दोलन केवल महिलाओं से जुड़े इन मुद्दों तक ही सीमित ना रहा बल्कि इस आन्दोलन में समाज की अन्य सभी समस्याओं को भी शामिल किया गया। परिणाम स्वरूप इस आन्दोलन से लोगों में सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता भी बढ़ी। इससे लिंगसमानता महिलाओं का आर्थिक सामाजिक व मनोवैज्ञानिक शोषण महिलाओं के प्रति हिंसा जैसे मुद्दों को सरकार की ओर से प्राथमिकता का स्थान मिला।

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प्रश्न 12.
सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अस्सी के दशक के प्रारम्भ में भारत के मध्य भाग में स्थित नर्मदा घाटी में विकास परियोजना के तहत मध्यप्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र से गुजरने वाली नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 बीच की आकार के व 300 छोटे बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। गुजरात के सरदार सरोवर व मध्य प्रदेश के नर्मदा सागर बाँध के रूप में दो सबसे बड़ी बहु-उद्देशीय परियोजना का निर्धारण किया। इस परियोजना के निम्न उद्देश्य थे –

  1. पानी का पीने के लिए व सिंचाई के लिए निश्चित करना
  2. बिजली उत्पादन के उद्देश्य से
  3. कृषि विकास को बढ़ाने व कृषि की पैदावार को बढ़ाने के लिए।

प्रश्न 13.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन का प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आन्दोलन अपने गठन के बाद से ही इस प्रकार की परियोजनाओं का विरोध करता रहा है जिसके कारण स्थानीय लोगों के पर्यावास, आजीविका, संस्कृति तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता हो। प्रारम्भ में आन्दोलनकारियों ने यह माँग रखी थी कि इन परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को समुचित पुनर्वास किया जाए। नर्मदा बचाओ आन्दोलनकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी परियोजनाओं के बारे में निर्णय लेने की प्रक्रिया से स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी होनी चाहिए व जल जंगल जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय लोगों का प्रभावी नियन्त्रण होना चाहिए।

इस आन्दोलन का प्रभाव महत्त्वपूर्ण उपलब्धि इस बात में देखी जा सकती है कि गुजरात जैसे राज्यों में इस आन्दोलन का विरोध होने के बावजूद न्यायपालिका व सरकार ने यह स्वीकार किया कि लोगों को पुनर्वास मिलना चाहिए। सरकार द्वारा 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आन्दोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। इस आन्दोलन के आलोचकों का यह कहना है कि यह आन्दोलन विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता व आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है। मेधा पाटेकर, व अन्य कई पर्यावरण से जुड़े लोग इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

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प्रश्न 14.
सूचना के अधिकार के सम्बन्ध में आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सूचना का अधिकार का अर्थ है जानने का अधिकार जो प्रजातन्त्र के विकास में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सूचना के अधिकार को प्राप्त करने के लिए आन्दोलन का प्रारम्भ 1990 में हुआ व इसका नेतृत्व किया मजदूर किसान शक्ति संगठन ने। राजस्थान में काम कर रहे इस संगठन ने सरकार के सामने यह मांग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकार्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाए। धीरे-धीरे यह आन्दोलन मजबूत हुआ व सरकार को इस आन्दोलन की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करनी पड़ी। 2004 में सूचना के अधिकार के विधेयक को सदन में रखा गया। जून 2005 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल हुई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ताड़ी आन्दोलन में आन्ध्र प्रदेश के कई सामाजिक विषयों को शामिल किया गया। समझाइए।
उत्तर:
ताड़ी आन्दोलन आन्दोलन आन्ध्र प्रदेश का बहुत चर्चित आन्दोलन रहा है जिसमें चितूर जिले के ग्राम गुंडलुर गाँव की महिलाओं ने अपने ग्राम में ताड़ी की बिक्री पर पाबंदी लगाने की माँग करते हुए एक जुट हो गई तथा ग्राम में ताड़ी की बिक्री का विरोध किया जिसकी सूचना मिलने पर ताड़ी के ठेकेदारों ने महिलाओं पर शारीरिक आक्रमण किया परन्तु इस पर भी महिलाओं का साहस कम नहीं हुआ। जिसके आगे ठेकेदारों व उनके गुंडों को हार माननी पड़ी।

इस आन्दोलन में महिला संगठनों के आन्दोलन केवल ताड़ी व शराब की बिक्री के खिलाफ ही नहीं लड़ रहे थे बल्कि उनके सामने अन्य सामाजिक मुद्दे भी थे। महिलाओं ने बड़े ही साहस के साथ शराब के ठेकेदारों व माफिया समूह के बीच के सम्बन्धों को नंगा किया व राजनीतिज्ञों के सम्बन्धों को भी उजागर किया जो एक बड़ा समूह था जिसके माध्यम से ग्राम के पुरुष वर्ग का शोषण हो रहा था जिसका सबसे बुरा प्रभाव महिलाओं पर पड़ रहा था। नेलौर जिले की महिलाओं का यह आन्दोलन जल्द ही बड़े भाग में फैल गया। ताड़ी-विरोधी आन्दोलन का नारा बहुत साधारण था ‘ताड़ी की बिक्री बंद करो’ लेकिन इस साधारण नारे के पीछे क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरे से प्रभावित किया। ताड़ी विरोधी आन्दोलन महिला आन्दोलन बन गया। इस आन्दोलन में मुख्य मुद्दे निम्न थे –

  1. नशा बन्दी
  2. ठेकेदारों व प्रशासन के बीच के सम्बन्ध
  3. महिलाओं पर हिंसा
  4. महिलाओं का शारीरिक शोषण
  5. आर्थिक संकट
  6. दहेज प्रथा

इस आन्दोलन के कारण महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा हो गई व महिलाओं की विभिन्न समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए एक मंच प्राप्त हुआ। महिला आन्दोलन ने महिलाओं की राजनीति में भागीदारी को भी विकसित किया। 73 वें व 74 वें संविधान संशोधन के द्वारा महिलाओं की स्थानीय समस्याओं में 33% भागीदारी निश्चित करना इस आन्दोलन का ही परिणाम है।

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प्रश्न 2.
राजनीतिक व गैर राजनीतिक आन्दोलनों का महत्त्व व प्रासांगिक समझाइए।
उत्तर:
प्रजातन्त्र सरकार वह रूप है जिसमे व्यक्ति अधिकतम स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। व्यक्ति अपने विचार को व्यक्त कर सकता है। अपने विचार अपनी माँग रख सकता है व अपने हितों की रक्षा के लिए संगठित भी हो सकता है। प्रजातंत्र में व्यक्ति अपने हितों का प्रसार करने के लिए संगठन भी बनाते हैं। ये संगठन दो प्रकार के होते हैं राजनीतिक संगठन व गैर राजनीति संगठन। राजनीतिक संगठनों के माध्यमों से विभिन्न हित समूह राजनीति में हिस्सा लेते हैं व चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं, जबकि गैर राजनीतिक संगठन उन व्यक्तियों का समूह होता है जो अपने हितों को प्राप्त करने के लिए सीधे राजनीति में भाग नहीं लेते बल्कि राजनीतिक दलों व राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करते हैं।

आजादी के बाद से भारत में संसदीय लोकतन्त्र काम कर रहा है व चुनावी प्रक्रिया का दौर चल रहा है। विभिन्न प्रकार के दबाव समूह इस बीच अस्तित्व में आए हैं जो अपने हितों की रक्षा के लिए कार्य कर रहे अनेक हित समूहों ने अपने संगठनात्मक आन्दोलन से चुनावी राजनीति में हिस्सा लेकर अपने हितों को प्राप्त करने का प्रयास किया है इन्हें राजनीतिक आन्दोलन कहते हैं। इसके आलावा किसान यूनियन, महिला संगठन, विद्यार्थी संगठन व अन्य अनेक प्रकार के संगठन हैं जो हित समूह व दबाव समूह के रूप में ही कार्य कर रहे हैं।

इनको गैर राजनीतिक संगठन कहते हैं वर्तमान अध्ययन में अनेक गैर राजनीतिक आन्दोलनों का वर्णन किया गया है जिनके अध्याय से ना केवल विभिन्न प्रकार के मुद्दों का ज्ञान होता है। चिपको आन्दोलन व ताड़ी आन्दोलन व नर्मदा बचाओ आन्दोलनो ने समाज के ना केवल निश्चित मुद्दे उठाए हैं बल्कि समाज व प्रशासन से जुड़े अन्य मुद्दे भी उठाए गए हैं जिससे समाज को एक नई दिशा मिली है। इस प्रकार ना केवल राजनीतिक संगठनों का आज के प्रजातंत्र में महत्त्व है बल्कि विभिन्न गैर राजनीतिक संगठनों का भी महत्व है व इनका अध्ययन व विश्लेषण प्रासांगिक भी है जिससे भारतीय प्रजातंत्र मजबूत होगा ना केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि स्थानीय स्तर पर भी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
निम्न में से चिपको आन्दोलन से किसका सम्बन्ध है?
(अ) सुन्दर लाल बहुगुणा
(ब) मेघा पाटेकर
(स) मोहिन्दर सिंह टिकेत
(द) विमल जोशी
उत्तर:
(अ) सुन्दर लाल बहुगुणा

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प्रश्न 2.
चिपको आन्दोलन निम्न में से किस राज्य में हुआ?
(अ) महाराष्ट्र
(ब) आन्ध्र प्रदेश
(स) उत्तराखंड
(द) गुजरात
उत्तर:
(स) उत्तराखंड

प्रश्न 3.
निम्न में से किस नदी पर सरदार सरोवर बांध बना?
(अ) यमुना
(ब) ब्रह्मपुत्रा
(स) नर्मदा
(द) झेलम
उत्तर:
(स) नर्मदा

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प्रश्न 4.
मेघा पाटेकर किस आन्दोलन से जुड़ी हैं?
(अ) किसान आन्दोलन
(ब) ताड़ी आन्दोलन
(स) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(द) सूचना के अधिकार का आन्दोलन
उत्तर:
(स) नर्मदा बचाओ आन्दोलन

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों के सामने गलत तथा सही लिखिए –
(अ) अधिकांश विद्वान् मानते हैं कि जन आंदोलन लोकतंत्र में व्यर्थ है और यह समय, धन और जनशक्ति की बर्बादी है।
(ब) जन आंदोलन को भारतीय समाज के सर्वाधिक धनी, पूँजीपतियों, पुराने जमींदारों, जागीरदारों और स्वतंत्रता के समय देशी रजवाड़ों के शासकों ने लामबद्ध किया।
(स) हमारे लोकतांत्रिक ढाँचे और जनमत की अभिव्यक्ति और निर्माण में जन आंदोलन महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
(द) चिपको आंदोलन में अनेक पुरुषों और महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर उन्हें कटने से बचाकर स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण निर्माण में प्रशंसनीय योगदान किया।
उत्तर:
(अ) गलत
(ब) गलत
(स) सही
(द) सही

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प्रश्न 6.
‘भारतीय किसान यूनियन’ किस प्रदेश के किसानों का संगठन था?
(अ) उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के किसानों का
(ब) बिहार तथा झारखंड के किसानों का
(स) गुजरात के किसानों का
(द) दक्षिण भारत के किसानों का
उत्तर:
(द) दक्षिण भारत के किसानों का

प्रश्न 7.
ई. वी. रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ ने किस आंदोलन का नेतृत्व किया?
(अ) द्रविड़ आंदोलन का
(ब) ताड़ी-विरोधी आंदोलन का
(स) बिहार आंदोलन का
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) द्रविड़ आंदोलन का

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प्रश्न 8.
चिपको आन्दोलन के संस्थापन थे –
(अ) चंडी प्रसाद भट्ट
(ब) सुंदरलाल बहुगुणा
(स) देवी लाल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) सुंदरलाल बहुगुणा

प्रश्न 9.
‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा किसने दिया?
(अ) जयप्रकाश नारायण ने
(ब) इंदिरा गाँधी ने
(स) जगजीवन राम ने
(द) राजनारायण
उत्तर:
(अ) जयप्रकाश नारायण ने

प्रश्न 10.
1974 का छात्र-आंदोलन कहाँ हुआ?
(अ) बिहार में
(ब) उत्तर प्रदेश में
(स) बंगाल में
(द) मद्रास में
उत्तर:
(अ) बिहार में

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प्रश्न 11.
बिहार आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
(अ) कर्पूरी ठाकुर ने
(ब) जय प्रकाश नारायण ने
(स) सत्येन्द्र नारायण सिंह
(द) विश्वनाथ प्रताप सिंह ने
उत्तर:
(ब) जय प्रकाश नारायण ने

प्रश्न 12.
‘सूचना का अधिकार’ कब अधिनियम बना?
(अ) 2003 में
(ब) 2004 में
(स) 2005 में
(द) 2006 में
उत्तर:
(स) 2005 में

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प्रश्न 13.
मेधा पाटेकर का नाम किस आंदोलन से जुड़ा है?
(अ) नर्मदा बचाओ आंदोलन
(ब) चिपको आंदोलन
(स) टेहरी बाँध रोको आंदोलन
(द) पर्यावरण प्रदूषण रोको आंदोलन
उत्तर:
(अ) नर्मदा बचाओ आंदोलन

प्रश्न 14.
जनता दल का गठन कब हुआ?
(अ) 11 अक्टूबर, 1988
(ब) मई, 1977
(स) 31 अक्टूबर, 1984
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 11 अक्टूबर, 1988

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प्रश्न 15.
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना किस राजनीतिक दल के चुनाव घोषणा-पत्र (1991) में था?
(अ) जनता दल
(ब) भाजपा
(स) समाजवादी पार्टी
(द) कांग्रेस
उत्तर:
(अ) जनता दल

प्रश्न 16.
जल, जंगल और जमीन के नारे से संबंधित आंदोलन कौन-सा है?
(अ) नर्मदा बचाओ आंदोलन
(ब) चिपको आंदोलन
(स) नक्सल आंदोलन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) चिपको आंदोलन

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प्रश्न 17.
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय किस प्रधानमंत्री के काल में हुआ?
(अ) चौधरी चरण सिंह
(ब) वी. पी. सिंह
(स) एच. डी. देवगौड़ा
(द) चन्द्रशेखर
उत्तर:
(ब) वी. पी. सिंह

प्रश्न 18.
पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण के संदर्भ में न्यायपालिका का निर्देश क्या है?
(अ) आरक्षण नहीं दिया जाए
(ब) प्रआरक्षण को समय सीमा में बाँधा जाए
(स) क्रीमी लेयर से ऊपर वाले को आरक्षण न दिया जाए
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) क्रीमी लेयर से ऊपर वाले को आरक्षण न दिया जाए

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प्रश्न 19.
राष्ट्रीय महिला आयोग के गठन का निर्णय कब लिया गया?
(अ) 1975
(ब) 1990
(स) 1985
(द) 2005
उत्तर:
(ब) 1990

प्रश्न 20.
आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय तथा गरीबी के उन्मूलन के साथ ही आर्थिक विकास रूपी उद्देश्य केवल निम्न के भीतर ही संभव है –
(अ) तानाशाही
(ब) राजतंत्र
(स) अराजकता
(द) लोकतंत्रात्मक ढाँचा
उत्तर:
(द) लोकतंत्रात्मक ढाँचा

प्रश्न 21.
‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ का सूत्र किस पंचवर्षीय योजना में अपनाया गया?
(अ) तीसरी पंचवर्षीय योजना
(ब) चौथी पंचवर्षीय योजना
(स) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना
(द) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(ब) चौथी पंचवर्षीय योजना

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प्रश्न 22.
अखिल भारतीय किसान कांग्रेस की स्थापना किसने की?
(अ) जवाहरलाल नेहरू
(ब) राजेन्द्र प्रसाद
(स) सरदार बल्लभ भाई पटेल
(द) चौधरी चरण सिंह
उत्तर:
(ब) राजेन्द्र प्रसाद

प्रश्न 23.
यह किस आंदोलन का नारा है “निजी सार्वजनिक है सार्वजनिक निजी है” –
(अ) किसानों का आंदोलन
(ब) महिलाओं के आंदोलन
(स) मजदूरों के आंदोलन
(द) पर्यावरण की सुरक्षा के आंदोलन
उत्तर:
(द) पर्यावरण की सुरक्षा के आंदोलन

II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 7 जन-आन्दोलन का उदय Part - 2 img 1
उत्तर:
(1) – (य)
(2) – (स)
(3) – (द)
(4) – (ब)
(5) – (अ)