Bihar Board Class 12 Psychology Solutions Chapter 8 मनोविज्ञान एवं जीवन

Bihar Board Class 12 Psychology Solutions Chapter 8 मनोविज्ञान एवं जीवन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Psychology Solutions Chapter 8 मनोविज्ञान एवं जीवन

Bihar Board Class 12 Psychology मनोविज्ञान एवं जीवन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आप ‘पर्यावरण’ पद से क्या समझते हैं? मानव-पर्यावरण संबंध को समझने। के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण (Environment) शब्द, हमारे चारों ओर जो कुछ है उसे संदर्भित करता है, शाब्दिक रूप से हमारे चारों ओर भौतिक, सामाजिक कार्य तथा सांस्कृतिक पर्यावरण में जो कुछ है वह इसमें निहित है। व्यापक रूप से, व्यक्ति के बाहर जो शक्तियाँ हैं, जिनके प्रति व्यक्ति अनुक्रिया करता है, वे सब इसमें निहित हैं। मानव-पर्यावरण संबंध को समझने के लिए विभिन्न परिप्रेक्ष्य निम्नलिखित हैं –

1. अल्पमतवादी परिप्रेक्ष्य (Minimalist perspective) का यह अभिग्रह है कि भौतिक पर्यावरण मानव व्यवहार, स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम (कल्याण) पर न्यूनतम या नगण्य प्रभाव डालता है। भौतिक पर्यावरण तथा मनुष्य का अस्तित्व समांतर घटक के रूप में होता है।

2. नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य (Instrumental perspective) प्रस्तावित करता है कि भौतिक पर्यावरण का अस्तित्व ही प्रमुखतया मनुष्य के सुख एवं कल्याण के लिए है। पर्यावरण के ऊपर मनुष्य के अधिकांश प्रभाव इसी नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य को प्रतिबिंबित करते हैं।

3. आध्यात्मिक परिप्रक्ष्य (Spiritual perspective) पर्यावरण को एक सम्मान योग्य और मूल्यवान वस्तु के रूप में संदर्भित करता है न कि एक समुपयोग करने योग्य वस्तु के रूप में। इसमें मान्यता है कि मनुष्य अपने तथा पर्यावरण के मध्य परस्पर-निर्भर संबंध को पहचानते हैं, अर्थात् मनुष्य का भी तभी अस्तित्व रहेगा और वे प्रसन्न रहेंगे जब पर्यावरण को स्वस्थ तथा प्राकृतिक रखा जाएगा।

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प्रश्न 2.
भीड़ के प्रमुख लक्षण क्या हैं? भीड़ के प्रमुख मनोवैज्ञानिक परिणामों की व्याख्या करते हैं।
उत्तर:
भीड़, के संदर्भ उस असुस्थता की भावना से है जिसका कारण यह है कि हमारे आस – पास बहुत अधिक व्यक्ति या वस्तुएँ होती हैं जिससे हमें भौतिक बंधन की अनुभूति होती है तथा कभी-कभी वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनतम का अनुभव होता है। एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही भीड़ कहलाती है। जब यह संख्या एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है तब इसके कारण वह व्यक्ति जो इस स्थिति में फंस गया है, दबाव का अनुभव करता है। दबाव का अनुभव करता है। इस अर्थ में भीड़ भी एक पर्यायवाची दाबवकारक का उदाहरण है।

भीड़ के अनुभव के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –

  1. असुरक्षा की भावना
  2. वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी
  3. व्यक्ति का अपने आस-पास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण, तथा
  4. सामाजिक अंत:क्रिया पर नियंत्रण के अभाव की भावना।

भीड़ क प्रमुख मनोवैज्ञानिक परिणाम –

1. भीड़ तथा अधिक घनत्व के परिणामस्वरूप अपसामान्य व्यवहार तथा आक्रामकता उत्पन्न हो सकते हैं। अनेक वर्षों पूर्व चूहों पर किए गए शोध में यह परिलक्षित हुआ था। इन प्राणियों को एक बाड़े में रखा गया, प्रारंभ में यह कम संख्या में आक्रामक तथा विचित्र व्यवहार प्रकट होने लगे, जैसे-दूसरे चूहों की पूँछ काट लेना। यह आक्रामक व्यवहार इस सीमा तक बढ़ा कि अंततः ये प्राणी बड़ी संख्या में मर गए जिससे बाड़े में उनकी जनसंख्या फिर कम हो गई। मनुष्य में भी जनसंख्या वृद्धि के साथ कभी-कभी हिंसात्मक अपराधों में वृद्धि पाई गई है।

2. भीड़ के फलस्वरूप उन कठिन कार्यों का जिनमें संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ निहित होती निष्पादन निम्न स्तर का हो जाता है तथा स्मृति और संवेगात्मक दशा पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये निषेधात्मक प्रभाव उन व्यक्तियों में अल्प मात्र में परिलक्षित होते हैं जो भीड़ वाले परिवेश के आदी होते हैं।

3. वे बच्चे जो अत्यधिक भीड़ वाले घरों में बड़े होते हैं, वे निचले स्तर के शैक्षिक निष्पादन प्रदर्शित करते हैं। यदि वे किसी कार्य पर असफल होते हैं तो उन बच्चों की तुलना वे जो कम भीड़ वाले घरों में बढ़ते हैं, उस कार्य पर निरंतर काम करते रहने की प्रवृत्ति भी उनमें दुर्बल होती है। अपने माता-पिता के साथ अधिक द्वंद्व के अनुभव करते हैं तथा उन्हें अपने परिवार से भी कम सहायता प्राप्त होती है।

4. सामाजिक अंत: क्रिया की प्रकृति भी यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति भीड़ के प्रति किसी सीमा तक प्रतिक्रिया करेगा। उदाहरण के लिए यदि अंत:क्रिया किसी आनंददायक सामाजिक अवसर पर होती है; जैसे – किसी प्रीतिभोज अथवा सार्वजनिक समारोह में; तब संभव है कि उसे भौतिक स्थान में बड़ी संख्या में अनेक लोगों की उपस्थिति कोई भी दबाव उत्पन्न करे। बल्कि, इसके फलस्वरूप सकारात्मक सांवेगिक प्रतिक्रियाएँ हो सकती है। इसके साथ ही, भीड़ भी सामाजिक अंत:क्रिया की प्रकृति को प्रभावित करती है।

5. व्यक्ति भीड़ के प्रति जो निषेधात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं; उसकी मात्रा में व्यक्तिगत भिन्नताएँ होती हैं तथा उनकी प्रतिक्रियाओं की प्रकृति में भी भेद होता है।

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प्रश्न 3.
शोर क्या है? मनुष्य के व्यवहार पर शोर के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कोई भी ध्वनि जो खीझ या चिड़चिड़ाहट उत्पन्न करे और अप्रिय हो, उसे शोर कहते हैं। मनुष्य के व्यवहार पर शोर के प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  1. शोर चाहे तीव्र हो या धीमा हो, वह समग्र निष्पादन को तब तक प्रभावित नहीं करता है जब तक कि संपादित किए जाने वाला कार्य सरल हो; जैसे-संख्याओं का योग। ऐसी स्थितियों में व्यक्ति अनुकूलन कर लेता है या शोर का ‘आदी’ हो जाता है।
  2. जिस कार्य का निष्पादन किया जा रहा है यदि वह अत्यंत रुचिकर होता है, तब भी शोर की उपस्थिति में निष्पादन प्रभावित नहीं होता है।
  3. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कार्य की प्रकृति व्यक्ति को पूरा ध्यान उसी में लगाने तथा शोर को अनसुना करने में सहायता करती है। यह भी एक प्रकार अनुकूलन हो सकता है।
  4. जब शोर कुछ अंतराल के बाद आता है तथा उसके संबंध में भविष्यकथन नहीं किया जा सकता, तब वह निरंतर होनेवाले शोर की अपेक्षा अधिक बाधाकारी प्रतीत होता है।
  5. जिस कार्य का निष्पादन किया जा रहा है, जब वह कठिन होता है यह उसपर पूर्ण एकाग्रता की आवश्यकता होती है, तब तीव्र, भविष्यकथन न करने योग्य तथा नियंत्रण न किया जा सकने वाला शोर निष्पादन स्तर को घटाता है।
  6. जब शोर को सहन करना या बंद कर देना व्यक्ति के नियंत्रण में होता है तब कार्य निष्पादन में त्रुटियों में कमी आती है।
  7. संवेगात्मक प्रभावों के संदर्भ में, शोर यदि एक विशेष स्तर से अधिक हो तो उसके कारण चिड़चिड़ापन आता है तथा इससे नींद में गड़बड़ी भी उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 4.
“मानव पर्यावरण को प्रभावित करते हैं तथा उससे प्रभावित होते हैं।” इस कथन की व्याख्या उदाहरणों की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण पर मानव प्रभाव-मनुष्य भी अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यों से भी प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं। निर्मित पर्यावरण के सारे उदाहरण पर्यावरण के ऊपर मानव प्रभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये मानव ने जिसे हम ‘घर’ कहते हैं, उसका निर्माण प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके ही किया जिससे कि उन्हें एक आश्रय मिल सके। मनुष्यों के इस प्रकर के कुछ कार्य पर्यावरण को क्षति भी पहुंचा सकते हैं और अंततः स्वयं उन्हें भी अनेकानेक प्रकार से क्षति पहुंचा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, मनुष्य उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे-रेफ्रीरजेटर तथा वातानुकूलन यंत्र जो रासायनकि द्रव्य (जैसे-सी.एफ.सी. या क्लोरो-फ्लोरो कार्बन) उत्पादित करते हैं, जो वायु को प्रदूषित करते हैं तथा अंतत: ऐसे शारीरिक रोगों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं, जैसे-कैंसर के कुछ प्रकार। धूम्रपान के द्वारा हमारे आस-पास की वायु प्रदूषित होती है तथा प्लास्टिक एवं धातु से बनी वस्तुओं को जलाने से पर्यावरण पर घोर विपदाकारी प्रदूषण फैलानेवाला प्रभाव होता है।

वृक्षों के कटान या निर्वनीकरण के द्वारा कार्बन चक्र एवं जल चक्र में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। इससे अंतत: उस क्षेत्र विशेष में वर्षा के स्वरूप पर प्रभाव पड़ सकता है और भू-क्षरण तथा मरुस्थलीकरण में वृद्धि हो सकती है। वे उद्योग जो निस्सारी का बहिर्वाह करते हैं तथा इस असंशोधित गंदे पानी को नदियों में प्रवाहित करते हैं, इस प्रदूषण के भयावह भौतिक (शारीरिक) तथा मनोवैज्ञानिक परिणामों से तनिक भी चिंतित प्रतीत नहीं होते हैं।

मानव व्यवहार पर पर्यावरणी प्रभाव –

1. प्रत्यक्ष पर पर्यावरणी प्रभाव-पर्यावरण के कुछ पक्ष मानव प्रत्यक्षण को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीका की एक जनजाति समाज गोल कुटियों (झोपड़ियों) में रहती है अर्थात् ऐसे घरों में जिनमें कोणीय दीवारें नहीं हैं। वे ज्यामितिक भ्रम (मूलर-लायर भ्रम) में कम त्रुटि प्रदर्शित करते हैं, उन व्यक्तियों की अपेक्षा जो नगरों में रहते हैं और जिनके मकानों में कोणीय दीवारें होती हैं।

2. संवेगों पर पर्यावरणीय प्रभाव-पर्यावरण का प्रभाव हमारी सांवेगिक प्रतिक्रियाओं पर भी पड़ता है। प्रकृति के प्रत्येक रूप का दर्शन चाहे वह शांत नदी का प्रवाह हो, एक मुस्कुराता हुआ फूल हो, या एक शांत पवर्त की चोटी हो, मन को एक ऐसी प्रसन्नता से भर देता है जिसकी तुलना किसी अन्य अनुभव से नहीं की जा सकती।

प्राकृतिक विपदाएँ; जैसे-बाढ़, सूखा, भू-स्खलन, भूकंप चाहे पृथ्वी के ऊपर हो या समुद्र के नीचे हो, वह व्यक्ति के संवेगों पर इस सीमा तक प्रभाव डाल सकते हैं कि वे गहन अवसाद और दुःख तथा पूर्ण असहायता की भावना और अपने जीवन पर नियंत्रण के अभाव का अनुभव करते हैं। मानव संवेगों पर ऐसा प्रभाव एक अभिघातज अनुभव है जो व्यक्तियों के जीवन को सदा के लिए परिवर्तित कर देता है तथा घटना के बीत जाने के बहुत समय बाद तक भी अभिघातज उत्तर दबाव विकार (Post-traumatic stress disorder, PTDS) के रूप में बना रहता है।

3. व्यवसाय, जीवन शैली तथा अभिवृतियों पर पारिस्थितिक का प्रभाव-किसी क्षेत्र का प्राकृतिक पर्यावरण या निर्धारित करता है कि उस क्षेत्र के उस क्षेत्र के निवासी कृषि पर (जैसे-मैदानों में) या अन्य व्यवसायों, जैसे-शिकार तथा संग्रहण पर (जैसे-वनों, पहाड़ों या रेगिस्तानी क्षेत्रों में) या उद्योगों पर (जैसे-उन क्षेत्रों में जो कृषि के लिए उपजाऊ नहीं है) निर्भर रहते हैं परन्तु किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों के व्यवसाय भी उनकी जीवन शैली और अभिवृत्तियों का निर्धारण करते हैं।

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प्रश्न 5.
मानस के लिए-व्यक्तिगत स्थान’ का संप्रत्यय क्यों महत्त्वपूर्ण है? अपने उत्तर को एक उदाहरण की सहायता से उचित सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
व्यक्गित स्थान (Personal space) या वह सुविधाजनक भौतिक स्थान जिसे व्यक्ति अपने आस – पास बनाए रखना चाहता है, अधिक घनत्व वाले पर्यावरण से प्रभावित होता है। भीड़ में व्यक्तिगत स्थान प्रतिबंधित है। व्यक्तिगत स्थान का संप्रत्यय निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है –

1. यह भीड़ के निषेधात्मक प्रभावों को एक पर्यावरणी दबाव कारक के रूप में समझता है।

2. यह हमें सामाजिक संबंधों के बारे में बताता है। उदाहरण के लिए, दो व्यक्ति यदि एक-दूसरे. से काफी निकट खड़े या बैठे हों तो उनका प्रत्यक्ष मित्र या संबंधी के रूप में होता है। जब एक छात्र विद्यालय पुस्तकालय में जाता है और यदि उसका मित्र जिस मेज पर बैठा है उसके निकट का स्थान खाली है तो वह उसके निकट के स्थान पर ही बैठता है। किन्तु यदि उस मेज पर कोई अपरिचित बैठा है और उसके निकट स्थान खाली है तो इस बात की संभावना कम है कि वह उस व्यक्ति के निकट के स्थान पर बैठेगा।

3. हमें कुछ सीमा तक यह ज्ञात होता है कि भौतिक स्थान को किस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है जिससे कि सामाजिक स्थितियों में दबाव अथवा असुविधा में कमी की जा सके अथवा सामाजिक अंत:क्रिया को अधिक आनंददायक तथा उपयोगी बनाया जा सके।

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प्रश्न 6.
‘विपदा’ पद से आप क्या समझते हैं? अभिघातज उत्तर दबाव विकार के लक्षणों को सूचीबद्ध कीजिए। उसका उपचार कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
प्राकृतिक विपदाएँ ऐसे दबावपूर्ण अनुभव हैं जो कि प्रकृति के प्रकोप के परिणाम हैं अर्थात् जो प्राकृतिक पर्यावरण में अस्त-व्यस्तता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। प्राकृतिक विपदाओं के भी उदाहरण भूकंप, सूनामी, बाढ़, तूफान तथा ज्वालामुखीय उद्गार हैं। अन्य विपदाओं के भी उदाहरण मिलते हैं, जैसे-युद्ध, औद्योगिक दुर्घटनाओं (जैसे-औद्योगिक कारखानों में विषैली गैस अथवा रेडियो सक्रिय तत्त्वों का रिसाव) अथवा महामारी (उदाहरण के लिये, प्लेग जिसने 1994 में हमारे देश के अनेक क्षेत्रों में तबाही मची थी)।

किन्तु, युद्ध तथा महा मानव द्वारा रचित घटनाएँ हैं, यद्यपि उनके प्रभाव भी उतने ही गंभीर हो सकते हैं जैसे कि प्राकृतिक विपदाओं के। इन घटनाओं को ‘विपदा’ इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें रोका नहीं जा सकता, प्रायः ये बिना किसी चेतावनी के आती हैं और मानव जीवन एवं संपत्ति को इनसे अत्यधिक क्षति पहुँचाती है।

अभिधातज उत्तर दबाव विकास (पी.टी.एस.डी) एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है जो अभिघातज घटनाओं, जैसे-प्राकृतिक विपदाओं के कारण उत्पन्न होती है। इस विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

1. किसी विपदा के प्रति तात्कालिक प्रतिक्रिया सामान्यत: अनभिविन्यास (आत्म-विस्मृति) की होती है। सामान्य जन को यह समझने में कुछ समय लगता है कि इस विपदा का पूरा अर्थ क्या है तथा इसने उनके जीवन में क्या कर दिया है। कभी-कभी वे स्वयं अपने से यह स्वीकार। नहीं करते कि उनके साथ कोई भयंकर घटना घटी है। इन तात्कालिक प्रतिक्रियाओं के पश्चात् शारीरिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं।

2. शारीरिक प्रतिक्रियाएँ-जैसे बिना कार्य किए भी शारीरिक परिश्रति, निद्रा में कठिनाई, भोजन के स्वरूप में परिवर्तन, हृदयगति और रक्तचाप में वृद्धि तथा एकाएक चौंक पड़ना पीड़ित व्यक्तियों में सरलता से दृष्टिगत होती हैं।

3. सामाजिक प्रतिक्रियाएँ, जैसे-शोक एवं भय, चिड़चिड़ापन क्रोध (“यह मेरे ही साथ क्यों घटित हुआ”) सहायता की भावना, निराशा (“इस घटना का निवारण करने के लिए मैं कुछ कर सका/सकी”) अवसाद, कभी-कभी पूर्ण संवेग-शून्यता अपराध भावना कि व्यक्ति स्वयं जीवित है जबकि परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो गई, स्वयं अपने को दोष देना तथा जीवन के नेमी क्रियाकलापों (Routine activities) में भी अभिरुचि का अभाव।

4. संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएँ, जैसे-आकुलता, एकाग्रता में कठिनाई, अवधान विस्तृति में कमी, संभ्रम, स्मृतिलोप या ऐसी सुस्पष्ट स्मृतियाँ जो वांछित हैं (अथवा, घटना का दुःस्वप्न)।

5. सामाजिक प्रतिक्रियाएँ, जैसे-दूसरों से विननिवर्तन (Withdra), दूसरों के साथ द्वंद्व, प्रियजनों के साथ भी अक्सर विवाद और अस्वीकृति महसूस करना या अलग-अलग पड़ जाना।

6. यह आश्चर्यजनक है कि अक्सर कुछ उत्तरजीवी, दबाव के प्रति प्रबल सांवेगिक प्रतिक्रियाओं के मध्य में भी, वास्तव में स्वस्थ होने की प्रक्रिया में दूसरों के लिए सहायक होते हैं। इन अनुभवों को सामना करने के बाद भी जीवित बच जाने तथा अपना अस्तित्व बचाए रखने से व्यक्ति जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर लेते हैं तद्नुभूति के द्वारा इस अभिवृत्ति को दूसरे उत्तरजीवियों में विकसित कराने में समर्थ हो जाते हैं।

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प्रश्न 7.
पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार क्या है? प्रदूषण के पर्यावरण का संरक्षण कैसे किया जा सकता है? कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार (Pro-environmental behaviour) के अनतर्गत वे दोनों प्रकार के व्यवहार आते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरण की समस्याओं से संरक्षण करना है तथा स्वस्थ पर्यावरण को उन्नत करना है। प्रदूषण से पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए कुछ प्रोत्साहन क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:

1. वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है, वाहनों को अच्छी हालत में रखने से अथवा ईंधन रहित वाहन चलाने से और धूम्रपान की आदत छोड़ने से।

2. शोर के प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है, यह सुनिश्चित करके कि शोर का प्रबलता स्तर मद्धिम हो। उदाहरण के लिए सड़क पर अनावश्यक हॉर्न बजाने का कम कर अथवा ऐसे नियमों का निर्माण कर जो शोर वाले संगीत को कुछ विशेष समय पर प्रतिबंधित कर सकें।

3. कूड़ा-करकट से निपटने का उपयुक्त प्रबंधन, उदाहरण के लिए जैविक रूप से नष्ट होने वाले तथा जैविक से नष्ट नहीं होने वाले अवशिष्ट कूड़े का पृथक कर या रसोईघर की अवशिष्ट सामग्री से खाद बनाकर। इस प्रकार के उपायों का उपयोग घर तथा सार्वजनिक स्थानों पर किया जाना चाहिए। औद्योगिक तथा अस्पताल की अवशिष्ट सामग्रियों के प्रबंधन के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

4. वृक्षारोपण करना तथा उनकी देखभाल की व्यवस्था, यह ध्यान में रखकर करने की आवश्यकता है कि ऐसे पौधे और वृक्ष नहीं लगाने चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हों।

5. प्लास्टिक के उपयोग का किसी भी रूप में निषेध करना, इस प्रकार ऐसी विषैली अवशिष्ट सामग्रियों को कम करना जिनसे जल, वायु तथा मृदा का प्रदूषण होता है।

6. उपभोक्ता वस्तुओं का वेष्टन या पैकेज जैविक रूप से नष्ट होने वाले पदार्थों में कम बनाना। ऐसे निर्माण नियमों का बनाना (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) जो इष्टतम पर्यावरणी अभिकल्प का उल्लंघन न करने दें।

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प्रश्न 8.
“निर्धनता’ ‘भेदभाव से कैसे संबंधित है? निर्धनता तथा वंचन के मुख्य मनोवैज्ञानिक, प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता की सर्वसामान्य परिभाषा है कि यह एक ऐसी दशा है जिसमें जीवन में आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है तथा इसका संदर्भ समाज में धन अथवा संपत्ति का असमान विवरण होता है। जाति तथा निर्धनता के कारण सामाजिक असुविधा द्वारा सामाजिक भेदभाव या विभेदन (Social discrimination) की समस्या उत्पन्न हुई है। भेदभाव प्रायः पूर्वाग्रह से संबंधित होते हैं। निर्धनता के संदर्भ में भेदभाव का अर्थ उन व्यवहारों से है जिनके द्वारा निर्धन तथा धनी के बीच विभेद किया जाता है जिससे धनी तथा सुविधासंपन्न व्यक्तियों का निर्धन का निर्धन तथा सुविधावचित व्यक्तियों में क्षमता होते हुए भी उन्हें उन अवसरों से दूर रखा जाता है जो समाज के बाकी लोगों को उपलब्ध होते हैं।

निर्धनों के बच्चों को अच्छे विद्यालयों में अध्ययन करने या अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करने तथा रोजगार के अवसर नहीं मिलते हैं। सामाजिक असुविधा तथा भेदभाव के कारण निर्धन अपनी सामाजिक-आर्थिक दशा को अपने प्रयासों से उन्नत करने में बाधित हो जाते हैं और इस प्रकार निर्धन और भी निर्धन हो जाते हैं। संक्षेप में, निर्धनता तथा भेदभाव इस प्रकार के संबद्ध है कि भेदभाव निर्धनता का कारण तथा परिणाम दोनों ही हो जाता है। यह सुस्पष्ट है कि निर्धनता या जाति के आधार पर भेदभाव सामाजिक रूप से अन्यायपूर्ण है तथा उसे घटना ही होगा।

निर्धनता तथा वंचन की मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ तथा उनके प्रभाव-निर्धनता तथा वंचन हमारे समाज की सुस्पष्ट समस्याओं में से है। भारतीय समाज-विज्ञानियों ने जिनमें समाजशात्री, मनोवैज्ञानिक तथा अर्थशास्त्री सभी शामिल हैं, समाज के निर्धन एवं वंचित वर्गों के ऊपर सुव्यवस्थित शोधकार्य किए हैं। उनके निष्कर्ष तथा प्रेक्षण यह प्रदर्शित करते हैं कि निर्धनता तथा वंचन के प्रतिकूल प्रभाव अभिप्रेरणा, व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार, संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा मानसिक स्वास्थ्य पर परिलक्षित होते हैं।

1. अभिप्रेरणा के संबंध में पाया गया है कि निर्धन व्यक्तियों में निम्न आकांक्षा स्तर और दुर्बल उपलब्धि अभिप्रेरणा तथा निर्धनता की प्रबल आवश्यकता परिलक्षित होती हैं। वे अपने सफलताओं की व्याख्या भाग्य के आधार पर करते हैं न कि योग्यता कठिन पश्रिम के आधार पर। सामान्यतः उनका यह विश्वास होता है कि उनके बाहर जो घटक हैं वे उनके जीवन की घटनाओं की नियंत्रित करते हैं, उनके भीतर के घटक नहीं।

2. जहाँ तक व्यक्तित्व का संबंध हे निर्धन एवं वंचित व्यक्तियों में आत्म-सम्मान का निम्न स्तर और दुश्चिंता तथा अंतर्मुखता में खोए रहते हैं। वे बड़े किन्तु सुदूर पुरस्कारों की तुलना में छोटे किन्तु तात्कालिक पुरस्कारों को अधिक वरीयता देते हैं क्योंकि उनके प्रत्यक्षण के अनुसार भविष्य बहुत ही अनिश्चित है। वे निराशा, व्यक्तिहीनता और अनुभूत अन्याय के बोध के साथ जीते हैं तथा अपनी अपन्यता के खो जाने का अनुभव करते हैं।

3. सामाजिक व्यवहार के संदर्भ में निर्धन तथा वंचित वर्ग समाज के शेष वर्गों के प्रति अमर्ष या विद्वेष की अभिवृत्ति रखते हैं।

4. संज्ञानात्मक प्रकार्यों पर दीर्घकालीन वंचन के प्रभाव के संबंध में यह पाया गया है कि निम्न की अपेक्षा उच्च वंचन स्तर के पीड़ित व्यक्तियों में ऐसे कृत्यों (जैसे-वर्गीकरण, शाब्दिक तर्क, काल प्रत्यक्ष तथा चित्र गहनात प्रत्यक्षण) पर बौद्धिक क्रियाएँ तथा निपष्पादन निम्न स्तर के होते हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि वंचन का प्रभाव इसलिए होता है क्यों कि जिस परिवेश में बच्चे पलकर बड़े होते हैं चाहे वह साधन संपन्न हों या कंगाल, वह उनके संज्ञानात्मक विकास की प्रभावित करता है तथा या उनके संज्ञानात्मक कृत्य निष्पादन में परिलक्षित होता है।

5. जहाँ तक मानसिक स्वास्थ्य का संबंध है, मानसिक विकारों तथा निर्धनता या वंचन में ऐसा संबंध है जिस पर प्रश्नचिह्न भी नहीं लगाया जा सकता है। निर्धन व्यक्तयों में कुछ विशिष्ट मानसिक रोगों से पीड़ित होने की संभावना, धनी व्यक्तियों की अपेक्षा, संभवतः इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि वे मूल आवश्यकताओं के विषय में निरंतर चिंतित रहते हैं, असुरक्षा की भावना अथवा चिकित्सा-सुविधाओं, विशेष रूप से मानसिक रोगों के लिए, की अनुपलब्धता से ग्रस्त रहते हैं।

वस्तुत: यह सुझाव भी दिया गया है कि अवसाद प्रमुखतया निर्धन व्यक्तियों का ही मानसिक विकास है। इनके अतिरिक्त, निर्धन निराशा-भावना तथा अन्नयता के खो जाने का भी ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कि वे समाज के अंग ही नहीं है। इसके परिणामस्वरूप वे संवेगात्मक तथा समायोजन संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित होते हैं।

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प्रश्न 9.
‘नैमत्तिक आक्रमण’ तथा शत्रुतापूर्ण आक्रमण’ में अंतर कीजिए। आक्रात्मक तथा हिंसा को कम करने हेतु कुछ युक्तियों का सुझाव दीजिए।
उत्तर:
‘नैमित्तिक आक्रमण’ तथा ‘शत्रुतापूण आक्रमण’ में अंतरः
नैमित्तिक आक्रमण (Instrumental aggression) तथा शत्रुतापूर्ण आक्रमण (Hostile aggression) में भी भेद किया जाता है। जब किसी लक्ष्य या वस्तु को प्राप्त करने के लिए आक्रमण किया जाता है तो उसे नैमित्तिक आक्रमण कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक दबंग छात्र विद्यालय में नए विद्यार्थी को इसलिए चपत लगाता है जिससे कि वह उसकी चॉकलेट ले सके।

शत्रुतापूर्ण आक्रमण वह कहलाता है जिसमें लक्ष्य (पीड़ित) के प्रति क्रोध की अभिव्यक्ति होती है या उसे हानि पहुँचाने के आशय से किया जाता है, जबकि हो सकता है कि आक्रमण का आशय पीड़ित व्यक्ति से कुछ भी प्राप्त करना न हो। उदाहरण के लिए, समुदाय के किसी व्यक्ति की एक अपराधी इसलिए पिटाई कर देता है क्योंकि उसने पुलिस के समक्ष अपराधी का नाम लिया।

आक्रामकता तथा हिंसा को कम करने की युक्तियाँ –

1. माता-पिता तथा शिक्षकों को विशेष रूप से सतर्क करने की आवश्यकता है कि वे आक्रामकता को किसी भी रूप में प्रोत्साहित या पुरस्कृत न करें, अनुशासित करने के लिए दंड के उपयोग को भी परिवर्तित करना होगा।

2. आक्रामक मॉडलों के व्यवहारों को प्रेक्षपण करने तथा उनका अनुकरण करने के लिए अवसरों को कम करने की आवश्यकता है। आक्रमण को वीरोचित व्यवहार के रूप में प्रस्तुत करने को विशेष रूप में परिहार की आवश्यकता है क्योंकि इससे प्रेक्षण द्वारा अधिगम करने के लिए उपयुक्त परिस्थिति का निर्माण होता है।

3. निर्धनता तथा सामाजिक अन्याय आक्रमण के प्रमुख कारण हो सकते हैं क्योंकि वह समाज के कुछ वर्गों में कुंठा उत्पन्न कर सकते हैं। सामाजिक न्याय तथा समानता को समाज में परिपालन करने से कुंठा के स्तर को कम करने तथा उसके द्वारा आक्रामक प्रवृतित्तयों को नियंत्रित करने में कम-से-कम कुछ सीमा तक सफलता मिल सकती है।

4. इन उक्तियों के अतिरिक्त सामाजिक या सामुदायिक स्तर पर यह आवश्यक है कि शांति के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति का विकास किया जाए। हमें न केवल आक्रामकता को कम करने की आवश्यकता है बल्कि इसकी भी आवश्यकता है कि हम सक्रिय रूप से शांति विकसित करें एवं उसे बनाए रखें। हमारे अपने संस्कृति मूल्य सदा शांतिपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को अधिक महत्त्व देते हैं। हमारे राष्ट्रीय महात्मा गाँधी ने विश्व की शांति कार एक नया दृष्टिकोण दिया जबकि आक्रमण का अभाव नहीं था, यह अहिंसा (Non-violence less) का विचार था, जिस पर उन्होंने स्वयं जीवन भर अभ्यास किया।

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प्रश्न 10.
मानव व्यहार पर टेलीविजन देखने के मनोवैज्ञानिक समाघात का विवेचन कीजिए। उसके प्रतिकूल परिणामों को कैसे कम किया जा सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव व्यवहार पर टेलीविजन देखने का मनोवैज्ञानिक समाघात-इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेलीविजन प्रौद्योगिक प्रगति कार एक उपयोगी उत्पाद है, किन्तु उसके मानव पर मनोवैज्ञानिक समाघात के संबंध में दोनों सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पाए गए हैं। अनेक शोध अध्ययनों में टेलीविजन देखने की संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा सामाजिक व्यवहारों पर प्रभाव का अध्ययन किया गया, है विशेष रूप से पाश्चात्य संस्कृतियों में उनके निष्कर्ष मिश्रित (मिले-जुले) प्रभाव दिखाते हैं। अधिकांश अध्ययन बच्चों पर किए गए हैं क्योंकि ऐसा समझा जाता है कि वे वयस्कों की अपेक्षा टेलीविजन के समाघात के प्रति अधिक संवेदनशील या असुरक्षित हैं।

1. टेलीविजन बड़ी मात्र में सूचनाएँ और मनोरंजन को आकर्षक रूप से प्रस्तुत करता है तथा यह दृश्य माध्यम है, अतः यह अनुदेश देने का एक प्रभावी माध्यम बन गया। इसके साथ ही क्योंकि कार्यक्रम आकर्षक होते हैं, इसलिए बच्चे उन्हें देखने में बहुत अधिक समय व्यतीत करते हैं। इसके कारण उनके पठन-लेखन (पढ़ने-लिखने) की आदत तथा घर के बाहर की गतिविधि यों जैसे-खेलने में कम आती है।

2. टेलीविजन देखने से बच्चों की एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की योग्यता, उनकी सर्जनात्मकता तथा समझने की क्षमता तथा उनकी सामाजिक अंतः क्रियाएँ भी प्रभावित हो सकता है। एक ओर, कुछ श्रेष्ठ कार्यक्रम सकारात्मक अंतर्वैयक्तिक अभिवृत्तियों पर बल देते हैं तथा उपयोगी तथ्यात्मक सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं जो बच्चों को कुछ वस्तुओं को अभिकल्पित तथा निर्मित करने में सहायता करते हैं। दूसरी ओर, ये कार्यक्रम कम उम्र के दर्शकों का विकर्षण या चित्त-अस्थिर कर एक लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की उनकी योग्यता में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं।

3. लगभग चालीस वर्ष पूर्व अमेरिका तथा कनाडा में एक गंभीर वाद-विवाद इस विषय पर उठा कि टेलीविजन देखने का दर्शकों, विशेषकर बच्चों की आक्रामकता तथा हिंसात्मक प्रवृत्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है। जैसा कि पहले आक्रामक व्यवहारों के संदर्भ में बताया जा चुका है, शोध के परिणामों ने यह प्रदर्शित किया कि टेलीविजन पर हिंसा को देखना वस्तुतः दर्शकों में अधिक आक्रामकता से संबद्ध था।

यदि दर्शक बच्चे थे तो जो कुछ वे देखते थे उसका अनुकरण करने की उनमें प्रवृत्ति थी किन्तु उनमें ऐसे व्यवहारों के परिणामों को समझने की परिपक्वता नहीं थी। तथापि, कुछ अन्य शोध-निष्कर्ष यह भी प्रदर्शित करते हैं कि हिंसा को देखने से दर्शकों में वस्तुतः सहज आक्रामक प्रवृत्तियों में कमी आ सकती है-जो कुछ भीतर रुका हुआ है उसे निकास या निर्गम का मार्ग मिल जाता है, इस प्रकार तंत्र साफ हो जाता है, जैसे कि एक बंद निकास-नल की सफाई हो रही है। यह प्रक्रिया केथार्सिस (Catharisis) कहलाती है।

4. वयस्कों तथा बच्चों के संबंध में यह कहा जात है कि एक उपभोक्तावादी अभिवृत्ति (प्रवृत्ति) विकसित हो रही है और यह टेलीविजन देखने के कारण है। बहुत से उत्पादों के विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं तथा किसी दर्शक के लिए उनके प्रभाव में आ जाना काफी स्वाभाविक प्रक्रिया है। इन परिणामों की चाहे कैसे भी व्याख्या की जाए इस बात के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं जो असीमित टेलीविजन देखने के प्रति चेतावनी देते हैं।

Bihar Board Class 12 Psychology मनोविज्ञान एवं जीवन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्राकृतिक पर्यावरण क्या है?
उत्तर:
प्रकृति वह अंश जिसे मानव ने नहीं छुआ है, वह प्राकृतिक पर्यावरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
निर्मित पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण में जो कुछ भी मानव द्वारा सर्जित है, वह निर्मित पर्यावरण है। उदाहरण-मकन, पुल, सड़कें बाँध आदि।

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प्रश्न 3.
किस मनोवैज्ञानिक ने मानव-पर्यावरण संबंधी का विवरण प्रस्तुत करने के लिए तीन उपागमों का वर्णन किया है?
उत्तर:
स्टोकोल्स ने मानव-पर्यावरण संबंधी का विवरण प्रस्तुत करने के लिए तीन उपागमों का वर्णनन किया है।

प्रश्न 4.
स्टोकोल्स नामक मनोवैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत तीन उपागमों का नाम बताइए।
उत्तर:
स्टोकोल्स द्वारा मानव-पर्यावरण संबंधी का विवरण प्रस्तुत करने के वर्णित तीन उपागम –

  1. अल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य
  2. नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य
  3. आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न 5.
नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य का मानव-पर्यावरण संबंध के बारे में क्या मानना है?
उत्तर:
अल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य का यह अभिग्रह है कि भौतिक पर्यावरण मानव व्यवहार, स्वास्थ्य तथा कुशल क्षेम पर न्यूनतम या नगण्य प्रभाव डालता है।

प्रश्न 6.
नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य क्या प्रस्तावित करता है?
उत्तर:
नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तावित करता है कि भौतिक पर्यावरण की अस्तित्व ही प्रमुखतया मनुष्य के सुख एवं कल्याण के लिए है। पर्यावरण के ऊपर मनुष्य के अधिकांश प्रभाव इसी नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य का प्रतिबिंबित करते हैं।

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प्रश्न 7.
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य मानव-पर्यावरण संबंध का किस रूप में विवरण प्रस्तुत करता है।
उत्तर:
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य पर्यावरण को एक सम्मान योग्य और मूल्यवान वस्तु के रूप में संदर्भित करता है अर्थात् इसका मानना है कि मनुष्य तभी स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे जब पर्यावरण का स्वस्थ तथा प्राकृतिक रखा जायेगा।

प्रश्न 8.
पर्यावरण के विषय में भारतीय दृष्टिकोण किस परिप्रेक्ष्य को मान्यता देता है?
उत्तर:
पर्यावरण के विषय में पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य को मान्यता देता है।

प्रश्न 9.
पर्यावरणी मनोविज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर:
मनोविज्ञान की एक शाखा जो अनेक ऐसे मनोवैज्ञानिक मुद्दों का अध्ययन करता है जिनका संबंध व्यापक अर्थ में मानव-पर्यावरण अंतः क्रियाओं से होता है, पर्यावरणी मनोविज्ञान कहलाता है।

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प्रश्न 10.
आजकल किन पर्यावरणी समस्याओं के प्रति जागरुकता बढ़ रही है?
उत्तर:
आजकल पर्यावरणी समस्याएँ-शोर वायु, जल तथा प्रदूषण और कूड़े को निपटाने के असंतोषजनक उपायों का शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़नेवाले क्षतिकर प्रभाव के प्रति जागरुकता बढ़ रही है।

प्रश्न 11.
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण शब्द हमारे चारों ओर जो कुछ है उसे संदर्भित है। व्यक्ति के बाहर जो शक्तियाँ है जिनके प्रति व्यक्ति अनुक्रिया करता है वे सब पर्यावरण में निहित हैं।

प्रश्न 12.
पारिस्थितिकी क्या है?
उत्तर:
पारिस्थितिकी जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन है।

प्रश्न 13.
दबाव क्या है?
उत्तर:
दबाव एक अप्रिय मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो व्यक्ति में तनाव तथा दुश्चिंता उत्पन्न करती है।

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प्रश्न 14.
शोर क्या है?
उत्तर:
कोई भी ध्वनि जो खीझ या चिड़चिड़ाहट उत्पन्न करे और अप्रिय हो, उसे शोर कहते हैं।

प्रश्न 15.
कार्य निष्पादन पर शोर के प्रभाव को उसकी कौन-सी विशेषताएँ निर्धारित करती हैं?
उत्तर:
शोर की तीन विशेषताएँ शोर की तीव्रता, भविष्यकथनीयता तथा नियंत्रणीयता कार्य निष्पादन पर शोर के प्रभाव को निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 16.
शोर का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
शोर हमारे चिंतन, स्मृति तथा अधिगम पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। शोर से हमारी सुनने की क्षमता में कमी आ सकती है तथा मानसिक क्रियाओं पर निषेधात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे एकाग्रता कम हो जाती है।

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प्रश्न 17.
पर्यावरणी प्रदूषण कितने रूपों में हो सकता है?
उत्तर:
पर्यावरणी प्रदूषण वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के रूपों में हो सकता है।

प्रश्न 18.
प्रदूषण क्या होता है?
उत्तर:
प्रदूषण किसी प्राकृतिक संसाधन की गुणवत्ता में अनचाहा परिवर्तन है जो जीने वालों के लिए हानिकारक हो सकता है।

प्रश्न 19.
कुछ ऐसे अवशिष्ट पदार्थों के उदाहरण दें जो जैविक रूप से क्षरणशील नहीं होते।
उत्तर:
प्लास्टिक, टीन तथा धातु से बने पात्र ऐसे अवशिष्ट पदार्थ हैं जो जैविक रूप से झरणशील नहीं होते।

प्रश्न 20.
हमारे देश के संदर्भ में आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हमारे देश में अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य के दो उदाहरण हैं-राजस्थान के विश्नोई समुदाय के रीति-रिवाज तथा उत्तराखण्ड क्षेत्र के चिपको आंदोलन।

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प्रश्न 21.
अभिघातज उत्तर दबाव विकास क्या है?
उत्तर:
अभिघाज उत्तर दबाव विकास एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जो अभिघातज घटनाओं जैसे-प्राकृतिक विपदाओं के कारण उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 22.
रेफ्रीजरेटर तथा वातानुकूलन यंत्र किस रासायनिक द्रव्य को उत्पादित करते हैं?
उत्तर:
रेफ्रीजरेटर तथा वातानुकूल यंत्र सी.एफ.सी. या क्लोरो-फ्लोरो रासायनिक द्रव्य को उत्पादित करते हैं।

प्रश्न 23.
वृक्षों का कटान किस प्रकार का व्यवधान उत्पन्न करता है?
उत्तर:
वृक्षों का कटान कार्बन चक्र एवं जल चक्र में व्यवधान उत्पन्न करता है।

प्रश्न 24.
पर्यावरणी दबावकरकों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
शोर, प्रदूषण, भीड़ तथा प्राकृतिक विपदाएँ ये सब पर्यावरणी दबाव कारकों को उदाहरण हैं।

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प्रश्न 25.
अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरी किसे कहते हैं?
उत्तर:
सामाजिक स्थितियों में मनुष्य जिन व्यक्तियों के साथ अंत:क्रिया कर रहा होता है उनके साथ एक विशेष भौतिक (शारीरिक) दूरी बनाए रखना चाहता है। इसे अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरी कहते हैं।

प्रश्न 26.
प्राकृतिक विपदाएँ क्या हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक विपदाएँ ऐसे दबावपूर्ण अनुभव है जो कि प्रकृति प्रकोप के परिणाम हैं अर्थात् जो प्राकृतिक पर्यावरण में अस्तव्यस्तता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। उदाहरण-भूकंप, सुनानी, बाढ़, तूफान आदि।

प्रश्न 27.
प्राकृतिक घटनाओं को विपदा क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भूकंप, बाढ़, तूफान तथा ज्वालामुखीय उद्गार आदि प्राकृतिक घटनाओं को विपदा इसलिए कहते हैं क्योंकि इन्हें रोका नहीं जा सकता, प्रायः ये बिना किसी चेतावनी के आती तथा मानव जीवन एवं संपत्ति को इनसे अत्यधिक क्षति पहुँचती है।

प्रश्न 28.
प्राकृतिक विपदाओं के एक प्रभाव को लिखिए।
उत्तर:
प्राकृतिक विपदाओं के पश्चात् सामान्य जन निर्धनता की चपेट में आ जाते हैं बेघर तथा संसाधन रहित हो जाते हैं और उनका सब कुछ क्षतिग्रस्त और नष्ट हो जाता है।

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प्रश्न 29.
प्राकृतिक विपदाओं के विध्वंसक परिणामों को कम करने हेतु किस प्रकार की तैयार की जा सकती है?
उत्तर:
प्राकृतिक विपदाओं के विध्वंसक परिणामों को कम करने हेतु अग्र तैयारी की जा सकती है –

  1. चेतावनी
  2. सुरक्षा उपायों के द्वारा और
  3. मनोवैज्ञानिक विकारों के उपचार द्वारा

प्रश्न 30.
वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अवशिष्ट पदार्थ या कूड़ा-करकट जो घरों या उद्योगों से निकलते हैं, वाहनों से निकलनेवाले विषैला धुआँ, चिमनियों से निकलनेवाले धुआँ, औद्योगिक धूल, तम्बाकू, पाल आदि वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं।

प्रश्न 31.
भीड़ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही भीड़ कहलाती है।

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प्रश्न 32.
भीड़ के अनुभव के किन्हीं दो लक्षणों को बताइए।
उत्तर:
भीड़ के अनुभव के दो लक्षण निम्नलिखित है –

  1. असुस्थता की भावना
  2. वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी

प्रश्न 33.
भीड़ सहिष्णुता क्या है?
उत्तर:
भीड़ सहिष्णुता, अधिक घनत्व या भीड़वाले पर्यावरण के साथ मानसिक रूप से संयोजन करने की योग्यता की संदर्भित करती है। जैसे-घर के भीतर भीड़।

प्रश्न 34.
प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता वह योग्यता है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति उस स्थिति को भी सह लेता है जिसमें उसे माल संसाधनों यहाँ तक कि भौतिक स्थान के लिए भी अनेक व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती हैं।

प्रश्न 35.
भारतीय समाज में सामाजिक असुविधा का एक प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
भारतीय समाज में सामाजिक असुविधा का एक प्रमुख कारण जाति व्यवस्था रही है।

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प्रश्न 36.
सामाजिक असुविधा किस स्थिति को कहते हैं?
उत्तर:
वह स्थिति जिसके कारण समाज के कुछ वर्गों को उन असुविधाओं का उपयोग नहीं करने दिया जाता है जो कि समाज के शेष वर्ग के व्यक्ति करते हैं।

प्रश्न 37.
भेदभाव का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भेदभाव का अर्थ उन व्यवहारों से है जिनके द्वारा धनी तथा निर्धन के बीच विभेद किया जाता है जिससे धनी और सुविधासंपन्न व्यक्तियों का निर्धन तथा सुविधावंचित व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पक्षपात किया जाता है।

प्रश्न 38.
निर्धनता तथा वंचन के प्रभव किन बातों पर परिलक्षित होते हैं?
उत्तर:
निर्धनता तथा वंचन के प्रतिकूल प्रभाव अभिप्रेरणा, व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार, संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा मानसिक स्वास्थ्य पर परिलक्षित होते हैं।

प्रश्न 39.
सामाजिक व्यवहार के संदर्भ में निर्धन तथा वंचित वर्ग शेष वर्गों के प्रति किस प्रकार की अभिवृत्ति रखते हैं।
उत्तर:
सामाजिक व्यवहार के संदर्भ में निर्धन तथा वंचित वर्ग समाज के शेष वर्गों के प्रति उमर्ष या विद्वैष की अभिवृत्ति रखते हैं।

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प्रश्न 40.
मनोवैज्ञानिक विकारों का उपचार करने के लिए किस प्रमुख अभिवृत्ति को विकसित करने की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
मनोविज्ञानिक विकारों का उपचार करने के लिए एक प्रमुख अभिवृत्ति जिसे उत्तरजीवियों में विकसित करने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 41.
पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार के अंतर्गत वे दोनों प्रकार के व्यवहार होते हैं जिनका उद्देश्य पर्यावरण का समस्याओं से संरक्षण करना है तथा ईंधनरहित वाहन चलाने से।

प्रश्न 42.
वायु प्रदुषण को कम करने का कोई एक उपाय बताइए।
उत्तर:
वाहनों को अच्छी हालत में रखने अथवा ईंधनरहित वाहन चलाने से।

प्रश्न 43.
आर्थिक अर्थ में निर्धनता की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आर्थिक अर्थ में निर्धनता का मापन आय, पोषण तथा जीवन की मूल आवश्यकताओं, जैसे-भोजन, वस्तु तथा मकान पर कितनी धनराशि व्यय की जा रही हैं, के आधार पर ही करते हैं।

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प्रश्न 44.
वंचन किस दशा को संदर्भित करता है?
उत्तर:
वंचन उस दशा को संदर्भित करता है जिसमें व्यक्ति यह अनुभव करता है कि उसने कोई मूल्यवान वस्तु खो दी है तथा उसे वह प्राप्त नहीं हो रही है जिसके लिए वह योग्य है।

प्रश्न 45.
सामाजिक असुविधा या विभेदन की समस्या के उत्पन्न होने के कारण बताइए।
उत्तर:
जाति और निर्धनता के कारण सामाजिक असुविधा द्वारा सामाजिक भेदभाव या विभेदन की समस्या उत्पन्न हुई है।

प्रश्न 46.
हिंसा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दूसरे व्यक्ति या वस्तु के प्रति बलपूर्वक ध्वंसात्मक या विनाशकारी व्यवहार को हिंसा कहते हैं।

प्रश्न 47.
किस प्रकार के आक्रमण को नैमित्तिक आक्रमण की संज्ञा दी जाती है?
उत्तर:
जब किसी लक्ष्य या वस्तु को प्राप्त करने के लिए आक्रमण किया जाता है तो इसे नैमित्तिक आक्रमण कहते हैं।

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प्रश्न 48.
शत्रुतापूर्ण आक्रमण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शत्रुतापूर्ण आक्रमण वह कहलाता है जिसमें लक्ष्य के प्रति क्रोध की अभिव्यक्ति होती है या उसे हानि पहुँचाने के आशय से किया जाता है जबकि हो सकता है कि आक्रामक का आशय पीड़ित व्यक्ति से कुछ भी प्राप्त करना न हो।

प्रश्न 49.
आक्रमण के किन्हीं दो कारणों को लिखें।
उत्तर:
आक्रमण के दो कारण हैं –

  1. आक्रामकता की सहज प्रवृत्ति का होना और
  2. कुंठा

प्रश्न 50.
निर्धनता की संस्कृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक विश्वास व्यवस्था, जीवन शैली तथा वे मूल्य जिनके साथ निर्धन व्यक्ति पलकर बड़ा हुआ है तथा व्यक्ति को यह मनवा या स्वीकार करवा देती है कि वह तो निर्धन ही रहेगा या रहेगी, निर्धनता की संस्कृति कहलाती है।

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प्रश्न 51.
अन्त्योदय के कार्यक्रमों में किन बातों का प्रावधान किया गया है?
उत्तर:
अन्त्योदय के कार्यक्रम में स्वास्थ्य सुविधाओं, पोषण शिक्षा तथा रोजगार के लिए प्रशिक्षण उन सभी क्षेत्रों जिनमें निर्धन व्यक्तियों को सहायता की आवश्यकता होती है, का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 52.
उस अंतर्राष्ट्रीय समूह का नाम लिखें जो निर्धनों के हित के लिए समर्पित या प्रतिबद्ध है।
उत्तर:
एकॉन एड् ‘एक अंतर्राष्ट्रीय समूह है, जो निर्धनों के हित के लिए समर्पित या प्रतिबद्ध है।

प्रश्न 53.
एक्शन एड् का लक्ष्य क्या है?
उत्तर:
एकॉन एड् का लक्ष्य निर्धनों को उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना, समानता तथा न्याय के प्रति जागरूक करना तथा उसके लिए पर्याप्त पोषण, स्वास्थ्य तथा शिक्षा एवं रोजगार की सुविधाओं को सुनिश्चित करना है।

प्रश्न 54.
आक्रमण पद का उपयोग मनोवैज्ञानिक किस प्रकार के व्यवहार के लिए करते हैं?
उत्तर:
आक्रमण पद का उपयोग मनोवैज्ञानिक ऐसे किसी भी व्यवहार को इंगित करने के लिए करते हैं जो किसी व्यक्तियों के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति/व्यक्तियों के हानि पहुँचाने के आशय से किया जाता है।

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प्रश्न 55.
कुछ संक्रामक या संचारी रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
एच. आई. वी./एड्स, तपेदिक, मलेरिया, श्वसन-संक्रामक या संचारी रोग हैं।

प्रश्न 56.
कुंठा-आक्रामकता सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
कुठां-आक्रामकता सिद्धांत के अनुसार, कुंठा के कारण आक्रामक व्यवहार उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 57.
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डोलार्ड ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर किस सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए शोध अध्ययन किया?
उत्तर:
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन डोलॉर्ड ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कुंठा-आक्रामकता सिद्धांत का परीक्षण करने के लिए विशेष रूप से शोध अध्ययन किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी को परिभाषित कीजिए। ‘अभिकल्प’ में होने वाले कुछ लक्षणों को लिखिए।
उत्तर:
पारिस्थितिकी जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच के संबंधी का अध्ययन है। मनोविज्ञान में पर्यावरण तथा मनुष्यों की परस्पर निर्भरता पर फोकस है क्योंकि पर्यावरण का अर्थ उन मनुष्यों के आधार पर ही निकलता है जो उसमें रहते हैं। निर्मित पर्यावरण के अंतर्गत साधारणतया पर्यावरणी अभिकल्प (Environmental design) का संप्रत्यय भी आता है। ‘अभिकल्प’ में कुछ मनोवैज्ञानिक लक्षण होते हैं; जैसे –

  1. मानव मस्तिष्क की सर्जनात्मकता, जैसा कि वास्तुविदों, नगर योजनाओं और सिविल अभियंताओं के कार्यों में अभिव्यक्त होता है।
  2. प्राकृतिक पर्यावरण पर नियंत्रण के अर्थ में, जैसा कि नदी के प्राकृतिक बहाव को बाँध कर बनाकर नियमित करने से प्रदर्शित होता है।
  3. निर्मित पर्यावरण में सामाजिक अंत:क्रिया के प्रकार पर प्रभाव। यह विशिष्टता उदाहरण के लिये, कॉलोनी में घरों की बीच कली दूरी, एक घर से कक्षों की अवस्थिति या किसी दफ्तर में औपचारिक तथा औपचारिक सभा के लिए कार्य करने की मेजों और कुर्सियों की व्यवस्था में प्रतिबिंबित होता है।

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प्रश्न 2.
स्थिति पर निर्भरता के आधार पर चार प्रकार की अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थिति पर निर्भरता के आधार पर चार प्रकार की अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरियों को एडवर्ड हॉल (Edward Hall) नामक मानव विज्ञानी ने बताया है –

  1. अंतरंग दूरी (18 इंच तक)-यह वह दूरी है जो हम तब बनाकर रखते हैं जब हम किसी निजी बातचीत करते हैं या किसी घनिष्ट मित्र या संबंधी के साथ अंत:क्रिया करते हैं।
  2. व्यक्तिगत दूरी (18 इंच से 4 फुट)-यह वह दूरी है जो हम तब बनाकर रखते हैं जब किसी घनिष्ठ मित्र या संबंधी के साथ एकेक अंतः क्रिया करते या फिर कार्य स्थान अथवा दूसरे सामाजिक स्थिति में किसी ऐसे व्यक्ति से अकेले में बात करते हैं जो हमारा बहुत अंतरंग नहीं हैं।
  3. सामाजिक दूरी (8 इंच से 10 फुट)-यह वह दूरी है जो हम उन अंत:क्रियाओं में बनाते हैं जो औचापरिक होते हैं, अंतरंग नहीं।
  4. सार्वजनिक दूरी (10 फीट से अनंत तक)-यह वह दूरी है जो हम औपचारिक स्थिति में, जहाँ बड़ी संख्या में लोग उपस्थिति हों बनाकर रखते हैं। उदाहरण के लिए किसी सार्वजनिक वक्ता से श्रोताओं की या कक्षा में अध्यापक की दूरी होती है।

प्रश्न 3.
प्रतिक्रिया की तीव्रता किन तत्त्वों से प्रभावित होती हैं?
उत्तर:
सामान्यतः प्रतिक्रिया की तीव्रता निम्नलिखित तत्त्वों से प्रभावित होती है –

  1. विपदा की तीव्रता तथा उसके द्वारा की गई क्षति (संपत्ति एवं जीवन), दोनों के संबंध में।
  2. व्यक्ति की सामना करने की सामान्य योग्यता।
  3. विपदा के पूर्व अन्य दबावपूर्ण अनुभव। उदाहरण के लिए जिन व्यक्तियों ने पहले भी दबावपूर्ण स्थितियों का अनुभव किया है उन्हें फिर एक और कठिन और दबावपूर्ण स्थिति में निपटने में अधिक कठिनाई हो सकती है।

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प्रश्न 4.
भीड़ सहिष्णुता तथा प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता में क्या अंतर है?
उत्तर:
भीड़ सहिष्णुता, अधिक घनत्व या भीड़ वाले पर्यावरण के साथ मानसिक रूप से संयोजन करने की योग्यता को संदर्भित करती है; जैसे-घर के भीतर भीड़ (एक छोटे कमरे में बड़ी संख्या में लोग) जो लोग ऐसे पर्यावरण के आदी होते हैं जिसमें अनेक व्यक्ति उनके चारों ओर रहते ही हैं – उदाहरण के लिये वे व्यक्ति जो एक बड़े परिवार में पलकर बड़े होते हैं तथा परिवार एक छोटे मकान में रहता है), वे उन लोगों की अपेक्षा जिन्हें अपने आस-पास केवल कुछ ही व्यक्तियों के रहने की आदत होती, भीड़ सहिष्णुता अधिक विकसित कर लेते हैं। हमारे देश की जनसंख्या विशाल है तथा अनेक व्यक्ति बड़े परिवारों में परंतु छोटे मकानों में रहते हैं।

इसके कारण यह प्रत्याशा होती है कि सामान्यतः भारतीयों में भीड़ सहिष्णुता कम जनसंख्या वाले देशों के वासियों की अपेक्षा अधिक होगी। प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता, वह योग्यता है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति उस स्थिति को भी संह लेता है जिसमें उसे मूल संसाधनों यहाँ तक कि भौतिक स्थान के लिए भी अनेक व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) करनी पड़ती है। चूंकि भीड़ की स्थिति में संसाधनों के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा की संभावना होती है इसलिए इस स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया भी संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा सहिष्णुता से प्रभावित होगी।

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प्रश्न 5.
वायु-प्रदूषण क्या है और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
आधुनिकीकरण तथा औद्योगिकरण के कारण हमारे पर्यावरण की हवा की गुणवत्ता अत्यधिक प्रभावित हुई है। हवा हमारे तथा सभी जीव-जंतुओं के जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वाहनों तथा उद्योगों से निकलनेवाला धुआँ, धूम्रपान आदि से हवा में खतरनाक जहर घुल जाते हैं। इसे हम वायु-प्रदूषण के नाम से जानते हैं। हम इस समस्या के प्रति अपनी सजगता बढ़ाकर इस पर नियंत्रण कर सकते हैं – वाहनों को अच्छी हालत में रखने से या ईंधनरहित वाहन का उपयोग कर तथा धूम्रपान की आदत छोड़कर हम वायु-प्रदूषण को कम कर सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निर्धनता के मुख्य कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –
1. निर्धन स्वयं अपनी निर्धनता के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस मत के अनुसार, निर्धन व्यक्तियों में योग्यता तथा अभिप्रेरणा दोनों की कमी होती है जिसके कारण वे प्रयास करके उपलब्ध अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते। सामान्यतः निर्धन व्यक्तियों के विषय में यह मत निषेधात्मक है तथा उनकी स्थिति को उत्तम बनाने में तनिक भी सहायता नहीं करता है।

2. निर्धनता का कारण कोई व्यक्ति नहीं अपितु एक विश्वास व्यवस्था, जीवन शैली तथा वे मूल्य हैं जिनके साथ वह पलकर बड़ा हुआ है। यह विश्वास व्यवस्था, जिसे निर्धनता की संस्कृति’ (Culture of poverty) कहा जाता है, व्यक्ति को यह मनवा या स्वीकार करवा देती है कि वह तो निर्धन ही रहेगा/रहेगी तथा यह विश्वास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहता है।

3. आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक कारक मिलकर निर्धनता का कारण बनते हैं। भेदभाव के कारण समाज के कुछ वर्गों को जीविका की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने के अवसर भी दिए जाते। आर्थिक व्यवस्था को सामाजिक तथा राजनीतिक शोषण के द्वारा वैषम्यपूर्ण (असंगत) तरह से विकसित किया जाता है जिससे कि निर्धन इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं। ये सारे कारक सामाजिक असुविधा के संप्रत्यय में समाहित किए जा सकते हैं जिसका निर्धन सामाजिक अन्याय, वंचन, भेदभाव तथा अपवर्जन का अनुभव करते हैं।

4. वह भौगोलिक क्षेत्र, व्यक्ति जिसके निवासी हों, उसे निर्धनता का एक महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है। उदाहरण के लिए, वे व्यक्ति जो ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जिनमें प्राकृतिक संसाधनों का अभाव होता है। (जैसे-मरुस्थल) तथा जहाँ की जलवायु भीषण होती है (जैसे-अत्यधिक सर्दी या गर्मी) प्रायः निर्धनता के शिकार हो जाते हैं यह कास्क मानव द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। फिर भी इन क्षेत्रों के निवासियों की सहायता के लिए प्रयास अवश्य किए जा सकते हैं ताकि वे जीविका के वैकल्पिक उपाय खोज सकें तथा उन्हें उनकी शिक्षा एवं रोजगार हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकें।

5. निर्धनता चक्र (Poverty cycle) भी निर्धनता का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण है जो यह व्याख्या करता है कि निर्धनता उन्हीं वर्गों में ही क्यों निरंतर बनी रहती है। निर्धनता की निर्धनता की जननी भी है। निम्न आय और संसाधनों के अभाव से प्रारंभ कर निर्धन व्यक्ति निम्न स्तर के पोषण तथा स्वास्थ्य, शिक्षा के अभाव तथा कौशलों के अभाव से पीड़ित होते हैं। इनके कारण उनके रोजगार पाने के अवसर भी कम हो जाते हैं जो पुनः उनकी निम्न आय स्थिति तथा निम्न स्तर के स्वास्थ्य एवं पोषण स्थिति को सतत् रूप से बनाए रखते हैं।

इनके परिणामस्वरूप निम्न अभिप्रेरणा स्तर स्थिति को और भी खराब कर देता है, यह चक्र पुनः प्रारंभ होता है और चलता रहता है। इस प्रकार निर्धनता चक्र में उपर्युक्त विभिन्न कारकों की अंतः क्रियाएँ सन्निहित होती हैं तथा इसके परिणामस्वरूप वैयक्तिक अभिप्ररेणा, अभिप्रेरणा, आशा तथा नियंत्रण-भावना में न्यूनता आती है।

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प्रश्न 2.
निर्धनता उपशमन के उपयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता उपशमन के उपाय निर्धनता एवं उसके निषेधात्मक परिणामों को उपशमित अथवा कम करने के लिए सरकार तथा अन्य समुहों द्वारा अनेक कार्य किए जा रहे हैं। यह कार्य निम्नलिखित है –
1. निर्धनता चक्र को तोड़ना तथा निर्धन व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहायता करना-प्रारंभ में निर्धन व्यक्तियों को वित्तीय सहायता, चिकित्सापरक एवं अन्य सुविधाएँ उपलबध कराना आवश्यक हो सकता है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता होती है कि निर्धन व्यक्ति इस वित्तीय एवं अन्य प्रकार की सहायताओं और स्रोतों पर अपनी जीविका के लिए निर्भर न हो जाएँ।

2. ऐसे संदर्भो का निर्माण जो निर्धन व्यक्तियों को उनकी निर्धनता के लिए दोषी ठहराने की बजाय उन्हें उत्तरदायित्व सिखाए-इस उपाय के द्वारा उन्हें आशा, नियंत्रण एवं अनन्यता की भावनाओं को दोबारा अनुभव करने में सहायता मिलेगी।

3. सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए शैक्षिक एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना-इस उपाय के द्वारा निर्धन व्यक्तियों को अपनी योग्यताओं तथा कौशलों को पहचानने में सहायता मिलेगी जिससे वे समाज के अन्य वर्गों के समकक्ष अपने में समर्थ हो सकें। यह कुंठा को कम करके अपराध एवं हिंसा को भी कम करने में सहायक होगा तथा निर्धन व्यक्तियों को अवैध साधनों के बजाय, वैध साधनों से जीविकोपार्जन करने हेतु प्रोत्साहित करेगा।

4. उन्नत मानसिक स्वास्थ्य हेतु उपाय-निर्धनता न्यूनीकरण के अनेक उपाय उनके – शारीरिक स्वास्थ्य को तो सुधारने में सहायता करते हैं किन्तु उनके मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का समाधान प्रभावी ढंग से करना फिर भी आवश्यक होता है। यह आशा की जा सकती है कि इस समस्या के प्रति जागरूकता के द्वारा निर्धनता के इस पक्ष पर अधिक ध्यान देना संभव हो सकेगा।

5. निर्धन व्यक्तियों को सशक्त करने के उपाय-उपर्युक्त उपायों के द्वारा निर्धन व्यक्तियों को अधिक सशक्त बनाना चाहिए जिससे वे स्वतंत्र रूप से गरिमा के साथ अपना जीवन-निर्वाह करने में समर्थ हो सकें तथा सरकार अथवा अन्य समूहों की सहायता पर निर्भर नहीं रहें।

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प्रश्न 3.
आक्रमण के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आक्रमण के निम्नलिखित कारण हैं –
1. सहज प्रवृत्ति-आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है) सहज (अंतर्जात) होती है। जैविक रूप से यह सहज प्रवृत्ति आत्मरक्ष हेतु हो सकती है।

2. शारीरिक क्रियात्मक तंत्र-शरीर क्रियात्मक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामतकता जनिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती हैं शरीरक्रियात्मक भाव प्रबोधन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्रायः आक्रमण के रूप में अभिव्यक्ति हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आई मौसम में।

3. बाल-पोषण-किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्रायः उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वे बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंढ का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा जिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते हैं। ऐसा संभवतः इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अप्रसन्न बना दे और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

4. कुंठा-आक्रमण कुंठा की अभिव्यक्ति तथा परिणाम हो सकते हैं, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु जिसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यक्ति किसी लक्ष्य के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से वंचित रह सकता है। यह पाया गया है कि कुठित स्थितियों में जो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों की अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो कुठित नहीं होते।

5. कुंठा के प्रभाव की जाँच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बच्चों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पर्दे (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप ये बच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन्हें खिलौने उपलब्ध थे, खेल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।

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प्रश्न 4.
कुछ स्थितिपरक कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कुछ स्थितिपरक कारक निम्नलिखित हैं –
1. अधिगम-मनुष्यों में आक्रमक प्रमुखतया अधिगम का परिणाम होता है, न कि केवल सहज प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति। आक्रामकता का अधिगम एक से अधिक तरीकों द्वारा घटित हो सकता है। कुछ व्यक्ति आक्रामकता इसलिए सीख सकते हैं क्योंकि उन्होंने पाया है कि ऐसा करना एक प्रकर का पुरस्कार है (उदाहरण के लिए, शत्रुतापूर्ण आक्रमण के द्वारा आक्रामक व्यक्ति को वह प्राप्त हो जाता है जो वह चाहता है)। यह प्रत्यक्ष प्रबलन द्वारा अधिगम का एक उदाहरण है। व्यक्ति दूसरों के आक्रामण व्यवहार का प्रेक्षण करते हुए भी आक्रामण करना सीखता है। यह मॉडलिंग या प्रतिरूपण (Modelling) के द्वारा अधिगम का एक उदाहरण है।

2. आक्रामक मॉडल का प्रेक्षण-एलबर्ट बंदूरा (Albert Bandura) एवं उनके सहयोगियों तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनेक शोध अध्ययन आक्रामकता के अधि गम में मॉडल की भूमिका को प्रदर्शित करते हैं। यदि कोई बच्चा टेलीविजन पर आक्रमण तथा हिंसा देखता है तो वह उस व्यवहार का अनुकरण करना प्रारंभ कर सकता है।

इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि टेलीविजन तथा सिनेमा के माध्यम से दिखाई जानेवाली हिंसा एवं आक्रामकता का दर्शकों, विशेष रूप से बच्चों पर, प्रबल प्रभाव पड़ता है, किन्तु प्रश्न यह है कि क्या केवल टेलीविजन पर हिंसा देखने मात्र से व्यक्ति आक्रामक व्यवहार को प्रकट करने में सहायक होते हैं? या कुछ अन्य स्थितिपरक कारक हैं जो उसके आक्रामक व्यवहार को प्रकट करने में सहायक होते हैं? इस प्रश्न का उत्तर स्थितिपरक कारकों के संबंध में प्राप्त करके दिया जा सकता है।

3. दूसरों द्वारा क्रोध-उत्तेजनक क्रियाएँ-यदि कोई व्यक्ति एक हिंसा प्रदर्शित करनेवाला सिनेमा देखता है तथा इसके पश्चात् उसे किसी अन्य व्यक्ति द्वारा क्रोध दिलाया जाता है (उदाहरण के लिए उसका अपमान कर या उसे धमकी देकर, शारीरिक आक्रमण द्वारा या बेईमानी द्वारा) तो उस व्यक्ति में आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करने की संभावना बढ़ जाते है, इसकी तुलना में कि यदि उसे क्रोधित नहीं किया गया हो। जिन अध्ययनों द्वारा कुंठा-आक्रामकता सिद्धांत का परीक्षण किया गया था उनमें व्यक्ति को उत्तेजित कर क्रोध दिला कुंठा उत्पन्न करने का तरीका था।

4. आक्रमण के शास्त्रों (हथियारों) की उपलब्धता- यह पाया है कि हिंसा को देखने के पश्चात् प्रेक्षक में आक्रामकता की संभावना उसी दशा में तब बढ़ती है जब वह आक्रमण के शस्त्र जैसे-डंडा, पिस्तौल या चाकू आसानी से उपलब्ध हों।

5. व्यक्तित्व-कारक-व्यक्तियों से अंतः क्रिया करते समय हम देखते हैं कि उनमें से कुछ स्वाभाविक रूप से ही अधिक ‘क्रोधी (गर्म-मिजाज)’ होते हैं तथा अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक आक्रामकता प्रदर्शित करते हैं। अतः, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आक्रमकता एक वैयक्तिक गुण है। यह पाया गया है कि वे व्यक्ति जिनमें निम्नस्तरीय आत्म-सम्मान होता है तथा जो असुरक्षित महसूस करते हैं, वे अपने अहं को प्रबल दिखाने के लिए आक्रामक व्यवहार कर सकते हैं। इसी प्रकार वे व्यक्ति जिन्हें अत्यंत उच्चस्तरीय आत्म-सम्मान होता है वे भी आक्रामकता इसलिए प्रदर्शित कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दूसरे लोग उन्हें उस उच्च स्तर’ पर नहीं रखते जिस पर उन्होंने स्वयं को रखा हुआ है।

6. सांस्कृतिक कारक-जिस संस्कृति में व्यक्ति पल कर बड़ा होता है वह अपने सदस्यों को आक्रामक व्यवहार सिखा सकती है अथवा नहीं। ऐसा वह आक्रामक व्यवहारों की प्रशंसा द्वारा तथा उन्हें प्रोत्साहन कर सकती है अथवा ऐसे व्यवहारों को हतोत्साहित करके उनकी आलोचना कर सकती है। कुछ जनजातीय समुदाय रूप से शांतिप्रिय हैं जबकि कुछ अन्य आक्रामकता को अपनी उत्तरजीविता के लिए आवश्यक समझते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
दबाव एक स्थिति हैं –
(A) मनोवैज्ञानिक
(B) सामाजिक
(C) आर्थिक
(D) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(A) मनोवैज्ञानिक

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प्रश्न 2.
सी.एफ.सी. या क्लोरो-फ्लोरो कार्बन किसे प्रदूषित करते हैं?
(A) मृदा
(B) जल
(C) वायु
(D) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर:
(C) वायु

प्रश्न 3.
कार्य निष्पादन पर शोर के प्रभाव को शोर की कौन-सी विशेषता निर्धारित करती है?
(A) शोर की तीव्रता
(B) भविष्यकथनीयता
(C) नियंत्रणीयता
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 4.
भोपाल गैस त्रासदी कब हुई थी?
(A) दिसंबर 1984
(B) दिसंबर, 1986
(C) मई 1984
(D) जनवरी, 1984
उत्तर:
(A) दिसंबर 1984

प्रश्न 5.
अवशिष्ट पदार्थ जो जैविक रूप से क्षरणशील नहीं होते
(A) प्लास्टिक
(B) धातु से बने पात्र
(C) टीन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 6.
निम्न में किन कारणों से अभिघातज उत्तर दबाव विकार उत्पन्न होते हैं।
(A) शोर
(B) प्राकृतिक विपदाएँ
(C) प्रदूषण
(D) भीड़
उत्तर:
(B) प्राकृतिक विपदाएँ

प्रश्न 7.
अंतर्वैयक्तिक भौतिक दूरी में व्यक्ति किसी प्रकार की दूरी बनाए रखता है?
(A) भौतिक (शारीरिक)
(B) आर्थिक
(C) मानसिक
(D) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(A) भौतिक (शारीरिक)

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प्रश्न 8.
किस मनोवैज्ञानिक ने स्थिति पर निर्भरता के आधार पर चार प्रकार के अंतर्वैयक्तिक दूरी को बताया है –
(A) जॉन डोलार्ड
(B) स्टोकोल्स
(C) एडवर्ड हॉल
(D) एलबर्ट बंदूरा
उत्तर:
(C) एडवर्ड हॉल

प्रश्न 9.
अंतरंग दूरी में एक व्यक्ति कितनी दूर की दूरी बनाए रखता है?
(A) 18 इंच तक
(B) 4 इंच से 10 फुट तक
(C) 4 इंच से 8 फुट तक
(D) 18 इंच से 4 फुट तक
उत्तर:
(A) 18 इंच तक

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प्रश्न 10.
पर्यावरण-उन्मुख व्यवहार नहीं है –
(A) पर्यावरण की समस्याओं से संरक्षण करना
(B) पर्यावरण को नष्ट करना
(C) स्वस्थ पर्यावरण को उन्नत करना
(D) पर्यावरण-मित्र वस्तुओं का उपयोग करना
उत्तर:
(B) पर्यावरण को नष्ट करना

प्रश्न 11.
निम्न में किस पर निर्धनता तथा वचन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
(A) अभिप्रेरणा
(B) संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं
(C) व्यक्तित्व
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 12.
निम्न में कौन पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए प्रोत्साहन क्रियाएँ हैं?
(A) वाहनों को अच्छी हालत में रखना
(B) वृक्षारोपण करना एवं उनकी देखभाल करना
(C) कूड़ा-करकट से निपटने का उपर्युक्त प्रबंधन करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक किन माध्यमों द्वारा पर्यावरण संरक्षण पर बल देते हैं?
(A) पर्यावरणीय शिक्षा
(B) पूर्व व्यवहार अनुबोधक
(C) पश्च व्यवहार पुनर्बलन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) पर्यावरणीय शिक्षा

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प्रश्न 14.
ग्रिफिट का योगदान निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में है?
(A) प्रकाश
(B) शोरगुल
(C) वायु-प्रदूषण
(D) तापमान
उत्तर:
(D) तापमान

प्रश्न 15.
विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है –
(A) 5 अप्रैल
(B) 5 मई
(C) 5 जून
(D) 5 जूलाई
उत्तर:
(C) 5 जून

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प्रश्न 16.
भूकंप एक संकट है –
(A) प्राकृतिक
(B) राजनैतिक
(C) सामाजिक
(D) धार्मिक
उत्तर:
(A) प्राकृतिक

प्रश्न 17.
शोर या ध्वनि को मानने के लिए किस पैमाने का प्रयोग किया जाता है?
(A) सिरदर्द रहना
(B) श्रवण-शक्ति का कम होना
(C) चक्कर आना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) श्रवण-शक्ति का कम होना

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प्रश्न 18.
आक्रमण के कारणों के संबंध में निम्नलिखित में कौन-सा मत नहीं है?
(A) शरीरक्रियात्मक तंत्र
(B) सहज प्रवृत्ति
(C) दादात्मीकरण
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(A) शरीरक्रियात्मक तंत्र

प्रश्न 19.
भारतीय परिपेक्ष्य में निर्धन किसे कहेंगे?
(A) आमदनी इतनी कम हो कि व्यक्ति अपर्याप्त जीवन व्यतीत करें
(B) आमदनी अधिक हो पर आवश्यकताएँ दोनों अधिक हो
(C) आमदनी और आवश्यकताएँ दोनों अधिक हो
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(A) आमदनी इतनी कम हो कि व्यक्ति अपर्याप्त जीवन व्यतीत करें

प्रश्न 20.
शुद्ध वायु कहलाती हैं –
(A) 78.98% N2, 20.44% O2, तथा 0.03% CO2
(B) 20.44% N2, 78.98% O2, तथा 0.03% CO2
(C) 60.30% N2, 39.20% O2, तथा 0.03% CO2
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(A) 78.98% N2, 20.44% O2, तथा 0.03% CO2

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प्रश्न 21.
मानव-पर्यावरण संबं को समझने के लिए कितने संदर्भ विकसित किए गए हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

प्रश्न 22.
जिन प्रक्रिया द्वारा व्यक्ति अपने वातावरण के सतत् आवाज के साथ सामंजस्य स्थापित कर लेता है। उसे कहा जाता है –
(A) अभ्यसन
(B) सीखना
(C) आदत बनाना
(D) इनमें कुछ भी नहीं
उत्तर:
(A) अभ्यसन

प्रश्न 23.
प्लास्टिक थैलों का उपयोग पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या है, क्योंकि प्लास्टिक थैले –
(A) जैविक झरणशील होते हैं
(B) जैविक अक्षरशील होते हैं
(C) ज्वलनशील होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी होते हैं
उत्तर:
(B) जैविक अक्षरशील होते हैं

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प्रश्न 24.
भूकंप, सुनामी, बाढ़, तूफान ये सब विपदाएँ हैं?
(A) प्राकृतिक
(B) राजनैतिक
(C) सामाजिक
(D) धार्मिक
उत्तर:
(A) प्राकृतिक

प्रश्न 25.
निम्न में कौन प्राकृति विपदा नहीं है –
(A) भूकंप
(B) सुनामी
(C) विषैली गैसें का कारखाने मे रिसाव
(D) बाढ़
उत्तर:
(C) विषैली गैसें का कारखाने मे रिसाव

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित में कौन-से निर्मित पर्यावरण उदाहरण है?
(A) नगर
(B) बाँध
(C)पुल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 27.
मानव-निर्मित विपदा के उदाहरण नहीं हैं –
(A) युद्ध
(B) तूफान
(C) महामारी
(D) कारखानों में विषैली गैसों का रिसाव
उत्तर:
(B) तूफान

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प्रश्न 28.
मानव-पर्यावरण सम्बन्ध का विवरण प्रस्तुत करने के लिए निम्न में किस मनोवैज्ञानिक ने तीन उपागमों का वर्णन किया?
(A) स्टोकोल्स
(B) जॉन डोलार्ड
(C) एलबर्ट बंदूरा
(D) एडवडं हॉल
उत्तर:
(A) स्टोकोल्स

प्रश्न 29.
र्यावरण के विषय में पारंपरिक भारतीय दृष्टिकोण किस परिप्रेक्ष्य का मान्यता देता है?
(A) अल्पतमावादी परिप्रेक्ष्य
(B) नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य
(C) अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

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प्रश्न 30.
‘उत्तराखंड क्षेत्र’ के ‘पिचको आंदोलन’ मानव-पर्यावरण संबंधों में किस परिप्रक्ष्य का उदाहरण है?
(A) आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
(B) नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य
(C) अल्ल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(A) आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न 31.
निम्न में कौन पर्यावरणी दबाव कारकों के उदाहरण हैं?
(A) शोर
(B) भीड़
(C) प्राकृतिक विपदाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 32.
पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करना’ मानव पर्यावरण संबंध के किस परिप्रेक्ष्य को दर्शाता है –
(A) अल्पतमवादी परिप्रेक्ष्य
(B) आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य
(C) नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(C) नैमित्तिक परिप्रेक्ष्य