Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 6 तुमुल कोलाहल कलह में

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 6 तुमुल कोलाहल कलह में

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तुमुल कोलाहल कलह में वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ था?
(क) 1889 ई. में
(ख) 1870 ई. में
(ग) 1880 ई. में
(घ) 1875 ई. में
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
‘कामायनी’ प्रसाद की कैसी कृति है?
(क) प्रबंध काव्य
(ख) गद्य काव्य
(ग) खण्ड काव्य
(घ) नाट्य कृतियाँ
उत्तर-
(क)

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प्रश्न 3.
‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) सूर्यकान्त त्रिपाटी ‘निराला’
(ख) जय शंकर प्रसाद
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) पंत
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 4.
जयशंकर प्रसाद जी किस काल के कवि हैं?
(क) छायावाद
(ख) रीतिकाल
(ग) आदिकाल
(घ) स्वातंत्र्योत्तर काल
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जन्म………… ई. में हुआ था।
उत्तर-
1889

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प्रश्न 2.
जयशंकर प्रसाद का जन्म……….. में हुआ था?
उत्तर-
वाराणसी

प्रश्न 3.
झरना, आँसू, लहर जयशंकर प्रसाद की प्रमुख……….. हैं।
उत्तर-
कृतियाँ

प्रश्न 4.
जयशंकर प्रसाद के पिता………. थे।
उत्तर-
देवीप्रसाद साहु

प्रश्न 5.
जयशंकर प्रसाद के पितामह शिवरत्न साहु उर्फ……….. थे।
उत्तर-
सुंघनी साहु

प्रश्न 6.
प्रसाद जी की प्रसिद्ध काव्य कृति………. प्रबंध काव्य है।
उत्तर-
कामाम की

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प्रश्न 7.
तुमुल कोलाहल कलह में मैं……… की बात रे मन।
उत्तर-
हृदय

तुमुल कोलाहल कलह में अति लघु उत्तरीय प्रश्न।

प्रश्न 1.
‘सजल जलजात’ में कौन–सा अलंकार है?
उत्तर-
रूपक।

प्रश्न 2.
‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
जयशंकर प्रसाद।

प्रश्न 3.
चातकी किसके लिए तरसती है?
उत्तर-
एक छोटी–सी बूँद के लिए।

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प्रश्न 4.
मनुष्य का शरीर क्यों थक जाता है?
उत्तर-
मन की चंचलता से।

प्रश्न 5.
जयशंकर प्रसाद किस वाद के कवि हैं?
उत्तर-
छायावाद के।

तुमुल कोलाहल कलह में पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है?
उत्तर-
इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में श्रद्धा, जो वस्तुतः कामायनी है, अपने हृदय का सच्चा मार्गदर्शक बनती है। कवि का हृदय कोलाहलपूर्ण वातावरण में जब थककर चंचल चेतनाशून्य अवस्था में पहुँचकर नींद की आगोश में समाना चाहती है, ऐसे विषादपूर्ण समय में श्रद्धा चंदन के सुगंध से सुवासित हवा बनकर चंचल मन को सांत्वना प्रदान करती है। इस प्रकार कवि को अवसाद एवं अशान्तिपूर्ण वातावरण में भी उज्ज्वल भविष्य सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 2.
कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है?
उत्तर-
छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है। उषाकाल होते हुए सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव–जन्तु अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। जगत् में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में की है।

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प्रश्न 3.
चातकी किसके लिए तरसती है?
उत्तर-
चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दु:खी व्यक्ति सुख प्राप्ति को आशा में चातकी के समान उम्मीद बाँधे रहते हैं। कवि के अनुसार एक–न–एक दिन उनके दुःखों का अंत होता है।

प्रश्न 4.
बरसात की ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बरसात जलों का राजा होता है। बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देते हैं। पेड़–पौधे हरे–भरे हो जाते हैं। लोग बरसात में आनन्द एवं सुख का अनुभव करते हैं। उनका जीवन सरस हो जाता है अर्थात् जीवन में खुशियाँ आ जाती हैं। खेतों में फसल लहराने लगते हैं। किसानों के लिए समय तो और भी खुशियाँ लानेवाला होता है। इसलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने बरसात को सरस कहा है।

प्रश्न 5.
काव्य–सौन्दर्य स्पष्ट करें
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक,
इस झुलसते विश्व–वन की,
मैं कुसुम ऋतु राज रे मन !
उत्तर-
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुन्दर आत्मगान है। इसकी भाषा उच्च स्तर की है। इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। यह गद्यांश सरल भाषा में न होकर सांकेतिक भाषा में प्रयुक्त है। प्रकृति का रोचक वर्णन इस पद्यांश में किया गया है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। जैसे–विश्व–वन (वनरूपी विश्व)। इसमें अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार के कारण पद्यांश में अद्भुत सौन्दर्य आ गया है। देखिए

पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जा रहा झुक।

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प्रश्न 6.
“सजल जलजात” का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘सजल जलजात’ का अर्थ जल भरे (रस भरे) कमल से है। मानव–जीवन आँसुओं का सराबोर है। उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।

प्रश्न 7.
कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन रहस्य को सरल और सांकेतिक भाषा में सहज ही अभिव्यक्त किया है।

कवि कहना चाहता है कि र मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कालाहलपूर्ण जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भीषण कोलाहल कलह विज्ञान है तथा शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी बात आशा है।

कवि कहता है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन क कार्य–व्यापार से) विकल होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन–सी होने लगती है, उस समय में नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द के रस की बरसात करता हूँ।

कवि के अनुसार जब मन चिर–विषाद में विलीन है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ है, तब मैं उसके लिए उषा–सी ज्योति रेखा हूँ, पुष्पं के समान खिला हुआ प्रात:काल हूँ अर्थात् कवि का दुःख में भी सुख की अरुण किरणें फूटती दिख पड़ती हैं।

कवि के अनुसार जीवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहाँ चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम, विषम और ज्वालामय जीवन में भी (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखानेवाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीव में मधु–रस की वर्षा होने लगती है।

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कवि को अभागा मानव–जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रूका हुआ–सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन–झुलस रहा हो ऐसे दुःख दग्ध लोगों को आशा वसन्त
की रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल–सा खिला देती है।

कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं जो मकरन्द से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।

प्रश्न 8.
कविता में विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है, वह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।
उत्तर-
प्रसाद लिखित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के द्वितीय पद में ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वर्तमान कोलाहलपूर्ण स्थिति से क्षुब्ध है। इससे मनुष्य का मन चिर–विषाद में विलीन हो जाता है। मन में घुटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकाररूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र विषाद एवं ‘व्यथा’ ही परिलक्षित होता है।

प्रश्न 9.
यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में पारियों की जो भमिका है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कविता में कही गई बातें उस पर घटित होती हैं? विचार कीजिए और गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान पर एक छोटा निबंध लिखिए।
उत्तर-
‘तुमुल कोलाहल कलह में छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित “कामायनी” काव्य का एक अंश है। इस अंश में महाकाव्य की नायिका श्रद्धा है, जो वस्तुतः स्वयं कामायनी है। इसमें श्रद्धा आत्मगान प्रस्तुत करती है। यह आत्मगीत नारीमात्र का गीत है। इस गान में श्रद्धा विनम्र स्वाभिमान भरे स्वर में अपना परिचय देती है। अपने सत्ता–सार का व्याख्यान करती है।

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इस गीत में कवि ने सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है उसे देखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कविता में कही गई बातें उन पर घटित होती हैं। कवि का यह सोच सही है। नारी वस्तुतः विश्वासपूर्ण आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है। नारी के जीवन से विकासगामी ज्ञान एवं आत्मबोध प्राप्त होता है।

गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान अतुलनीय है। गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब पुरुष का मन कोलाहलपूर्ण वातावरण में चेतनाशून्य हो जाता है और जब वह शान्ति की नींद चाहता है तब नारी मलय पर्वत से चलनेवाली सुगन्धित हवा बनकर पुरुष के चंचल मन को आनन्द प्रदान करती है। जब पुरुष जीवन के चिर–विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है एवं व्यथा के अंधकार में भटकने लगता है तब नारी सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ–प्रदर्शक बनकर पुष्प के समान जीवन को आनन्दित कर देती है।

जब पुरुष के मन में मरुभूमि की ज्वाला धधकती है तब नारी सरस बरसात बनकर पुरुष जीवन में रस की वर्षा करने लगती है। जब पुरुष सांसारिक जीवन में झुलसने लगती है तब नारी आशा रूपी वसंत की रात के समान सुख की आँचल बन जाती है। इतना ही नहीं, जब मानव, जीवन पुरातन निराशारूपी बादलों से घिर जाता है तब नारी चातकी सरोवर में श्रद्वारूपी एक ऐसा सजल कमल है जिसपर भौरे मँडराते हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका बहुआयामी है।

प्रश्न 10.
इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए।
उत्तर-
प्रसादजी के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है जब पुरुष सांसारिक उलझनों से उबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री–पुरुष की सहायता करती है।

तुमुल कोलाहल कलह में भाषा की बात

प्रश्न 1.
पठित कविता के संदर्भ में प्रसाद की काव्यभाषा पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं तथा उनके काव्य में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण है। पठित कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ की काव्यभाषा छायावादी है। प्रस्तुत कविता में मानव–जीवन में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण है। प्रकृति–सौन्दर्य का गुण भी इसमें मिलता है। नारी की गरिमा का वर्णन बड़ा ही सुन्दर ढंग से किया गया है। कविता में रस, छन्द, अलंकार आदि का प्रयोग हुआ है। इसमें रूपक अलंकार की प्रधानता है।

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प्रश्न 2.
कविता से रूपक अलंकार के उदाहरण चुनें।
उत्तर-
जहाँ गुण का अत्यन्त समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ–साथ विद्यमान रहते हैं, यथा चिर–विषाद विलीन मन की। यहाँ चिर (उपमेय) पर विषाद (उपमान) का आरोप है। उसी प्रकार निम्न पंक्तियों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है जहाँ मरु–ज्वाला, धधकती, इस झुलसते विश्व–वन की, चिर–निराशा नीरधर से, मैं सजल जलजात रे मन।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ कुसुम, हृदय, व्यथा, बरसात, विश्व, दिन, रेखा।
उत्तर-

  • शब्द – विशेषण
  • कुसुम – कुसुमित
  • हृदय – हृदयी
  • व्यथा – व्यथित
  • बरसात – बरसाती
  • विश्व – वैश्विक
  • दिन – दैनिक
  • रेखा – रैखिक

तुमुल कोलाहल कलह में कवि परिचय जयशंकर प्रसाद (1889–1937)

जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में वाराणसी में ‘सुंघनी साहू’ परिवार में हुआ। इनके पिता देवी प्रसाद साहू के यहाँ साहित्यकारों को बड़ा सम्मान मिलता था। प्रसाद ने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा क्वींस कॉलेज से प्राप्त की, परन्तु परिस्थितियों से मजबूर होकर उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा तथा घर पर ही संस्कृत, फारसी, उर्दू और हिन्दी का अध्ययन किया। किशोरावस्था में ही माता–पिता तथा बड़े भाई का देहान्त हो जाने के कारण परिवार व्यापार का उत्तरदायित्व इन्हें सम्हालना पड़ा, जिसे इन्होंने हँसते–मुस्कुराते हुए संभाला। उनका जीवन संघर्षों और कष्टों में बीता।

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पर साहित्य–सृजन और साहित्य–अध्ययन के प्रति वे सदैव जागरूक रहे। सन् 1937 में इनका देहावसान हुआ। जयशंकर प्रसाद हिन्दी के बहुमूखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। वे कवि, नाटककार, कहानीकार तथा उपन्यासकार के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्हें हिन्दी को रवीन्द्र कहा जाता है। चित्रधारा, काननकुसुम, प्रेमपथिक, महाराणा की महत्त्व, झरना, लहर, आँसू तथा कामायनी उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं।

‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद का महाकाव्य है। यह छायावाद की ही नहीं, आधुनिक हिन्दी काव्य की अमूल्य निधि है। प्रसाद के नाटक हैं–विशाख, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, चन्द्रगुप्त आदि। कंकाल, तिली, इरावती (अधूरा) इनके उपन्यास हैं। छाया, आँधी, प्रतिध्वनि, इन्द्रजाल तथा आकाशदीप इनके पाँच कहानी–संग्रह हैं।

जयशंकर प्रसाद के काव्य की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं। वे छायावादी कवि हैं तथा उनके काव्य में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण है। प्रकृति–सौन्दर्य के भी वे अद्भुत चितेरे हैं। नारी की गरिमा उनके काव्यों और नाटकों में अंकित है। रहस्य भावना भी कहीं–कहीं झलकती है। उनका महाकाव्य ‘कामायनी’ मानवता के विकास की कथा प्रस्तुत करता है। प्रसाद के काव्य के वस्तु–पक्ष (भाव पक्ष) की भाँति उनके काव्य का कला–पक्ष भी सशक्त है। खड़ीबोली को साहित्यिक सौष्ठव प्रदान करने में उनका योगदान प्रशंसनीय है। रस, छन्द, अलंकार आदि का रणमीयता में उनका काव्य है। समग्रतः प्रसाद आधुनिक काव्य का सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

तुमुल कोलाहल कलह में कविता का सारांश

प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में छायावाद के आधार कवि श्री जयशंकर प्रसाद के कोलाहलपूर्ण कलह के उच्च स्तर (शोर) से व्यथित मन की अभिव्यक्ति है। बिन्दु कवि निराश तथा हतोत्साहित नहीं है।. कवि संसार की वर्तमान स्थिति से क्षुब्ध अवश्य हैं किन्तु उन विषमताओं एवं समस्याओं में भी उन्हें आशा की किरण दृष्टिगोचर होती है। कवि की चेतना विकल होकर नींद के पूल को ढूँढ़ने लगती है उस समय वह थकी–सी प्रतीत होती है किन्तु चन्दन की सुगन्ध से सुवासित शीतल पवन उसे संबल के रूप में सांत्वना एवं स्फूर्ति प्रदान करती है।

दुःख में डूबा हुआ अंधकारपूर्ण मन जो निरन्तर विषाद से परिवेष्टित है, प्रात:कालीन खिले हुए पुष्पों के सम्मिलन (सम्पर्क) से उल्लसित हो उठा है। व्यथा का घोर अन्धकार समाप्त हो गया है। कवि जीवन की अनेक बाधाओं एवं विसंगतियों का भुक्तभोगी एवं साक्षी है। कवि अपने कथन की सम्पुष्टि के लिए अनेक प्रतीकों एवं प्रकृति का सहारा लेता है यथा–मरु–ज्वाला, चातकी, घाटियाँ, पवन को प्राचीर, झुलसावै विश्व दिन, कुसुम ऋतु–रत, नीरधर, अश्रु–सर, मधु, मरन्द–मुकलित आदि।

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इस प्रकार कवि ने जीवन के दोनों पक्षों का सूक्ष्म विवेचन किया है। वह अशान्ति, असफलता, अनुपयुक्तता तथा अराजकता से विचलित नहीं है।

पदों का भावार्थ 1.
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन !
विकल होकर नित्य चंचल,
चेतना थक सी रही तब,
खोजती जब नींद के पल;
मैं मलय की बात रे मन।

व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ छायावाद के आधारस्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहना चाहता है कि इस तूफानी कोलाहल पूर्ण वातावरण में मैं हृदय का सच्चा मार्गदर्शक हूँ। व्याकुल होकर मन जब थककर चंचल चेतनाशून्य अवस्था में पहुँचकर नींद की आगोश में समाना चाहता है, ऐसे विषादपूर्ण समय में मैं चन्दन के सुगन्ध में सुवासित हवा बनकर चंचल मन को सांत्वना तथा आनंद प्रदान करता हूँ। इस प्रकार कवि को अवसाद एवं अशान्तिपूर्ण वातावरण में भी उज्ज्वल भविष्य सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

2. चिर–विषाद विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर वन की;
मैं उषा सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन !

व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रणेता कवि शिरोमणि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है जब मनुष्य चिर–विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है, व्यथा रूपी अन्धकार में भटकने लगता है उस समय मैं श्रद्धा अर्थात् आशा उसके लिए सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ प्रदर्शक तथा प्रस्फुटित पुष्प के समान जीवन को आनन्दित करती हूँ।

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3. जहाँ मरु ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती;
उन्हीं जीवन घाटियों की,
मैं सरस बरसात रे मन !

व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ छायावाद के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जहाँ मरुभूमि की ज्वाला धधकती है और चातकी जल के कण को तरसती है उन्हीं जीवन की घाटियों में मैं (आशा) सरस बरसात बन जाती है। कवि का भाव है कि जिन लोगों का जीवन मरुस्थल की सूखी घाटी के समान दुर्गम, विषम और ज्वालामय हो गया है, जहाँ चित्त चातकी को एक कण भी सुख का जल नहीं मिला हो उन्हें आशा की एक किरण मात्र मिल जाने से जीवन में रस की वर्षा होने लगती है।

4. पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक;
इस झुलसते विश्व–वन की,
मैं कुसुम ऋतु राज रे मन !

व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ महाकवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जिन्हें इस अभागा मानव–जीवन ने झुलसा डाला है और जिन्हें सांसारिक अग्नि से भागने का भी कोई उपाय नहीं है, ऐसे दु:ख–दग्ध लोगों को मैं आशारूपी वसंत की रात के समान सुख की आँचल हूँ। उनके झुलसे मन को हरा–भरा बना कर फूल–सा खिला देती हूँ।

5. चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर में;
मधुप मुखर मरन्द–मुकुलित,
मैं सजल जलजात रे मन !

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व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ छायावाद के प्रवर्तक महाकवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में प्रेम, देश–प्रेम, मानवता, प्रकृति सौन्दर्य और करुणा के अद्भुत चितेरे कवि शिरोमणि जयशंकर प्रसाद कहना चाहते हैं कि मानव जीवन आँसुओं का सरोवर है। उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा सजल कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं और जो मकरन्द से परिपूर्ण हैं। कवि की इन पंक्तियों में हृदय की अनुभूति, संगीत मधुरिमा, कला की विद्ग्धता सहज ही दृष्टिगोचर होती है।