Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 1 शीत युद्ध का दौर
→ विश्व की दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का वर्चस्व शीतयुद्ध के केन्द्र में था।
→ अमेरिका के तट से लगे छोटे-से देश क्यूबा का लगाव तत्कालीन सोवियत संघ से था।
→ सोवियत संघ द्वारा क्यूबा में सैनिक अड्डा स्थापित करने से अमेरिका चिन्तित हो गया। भविष्य में संघर्ष की सम्भावना प्रबल हो गई पर दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का निर्णय लिया।
→ सन् 1939 से 1954 तक द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर रहा।
→ 1945 में अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। इसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध का अन्त हुआ।
→ द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई।
→ द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के फलस्वरूप विश्व में दो महाशक्तियों का उदय हुआ। ये महाशक्तियाँ थीं—संयुक्त राज्य अमेरिका व समाजवादी सोवियत गणराज्य।
→ प्रथम महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका तथा द्वितीय महाशक्ति सोवियत संघ ने विश्व के देशों को क्रमशः पूँजीवादी तथा साम्यवादी विचारधाराओं में विभक्त कर दिया।
→ शीतयुद्ध का प्रमुख कारण संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में परस्पर एक-दूसरे के सम्मुख प्रतिस्पर्धा में खड़े होना था।
→ पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्षधर थे, जबकि पूर्वी यूरोपीय देश सोवियत संघ के गुट में शामिल थे।
→ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अप्रैल 1949 में उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) की स्थापना की गयी जिसमें 12 सदस्य देश शामिल थे।
→ ‘नाटो’ में सम्मिलित देशों से मुकाबले के लिए सोवियत संघ के नेतृत्व में सन् 1955 में ‘वारसा सन्धि’ की स्थापना की गई।
→ संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया में गठबन्धन का तरीका अपनाया।
→ इन गठबन्धनों को दक्षिण-पूर्व एशियाई सन्धि संगठन ‘सिएटो’ (SEATO) व केन्द्रीय सन्धि ‘सेन्टो’ (CENTO) के नाम से जाना जाता है।
→ सन् 1962 में क्यूबा पर अमेरिकी आक्रमण की आशंका के कारण सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात करवायीं।
→ ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था।
→ शीतयुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ एवं उनके साथी देशों के . मध्य प्रतिद्वन्द्विता, तनाव तथा संघर्ष की एक श्रृंखला के रूप में जारी रहा।
→ अस्त्र परिसीमन हेतु दोनों महाशक्तियों के मध्य अनेक दौर की वार्ताओं में हथियारों पर अंकुश लगाने हेतु विभिन्न समझौते किए गए।
→ भारत जैसे विकासशील देशों ने दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना की।
→ जोसेफ ब्रॉज टीटो (यूगोस्लाविया), पं० जवाहरलाल नेहरू (भारत) तथा गमाल अब्दुल नासिर (मिस्र) ने सन् 1956 में एक बैठक के दौरान गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की आधारशिला रखी।
→ इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो एवं घाना के प्रधानमन्त्री वामे एनक्रमा ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जोरदार समर्थन किया।
→ प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित हुआ जिसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए।
→ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित अधिकांश देश विकासशील थे जिनके समक्ष प्रमुख चुनौती अपने देश का आर्थिक विकास करना था।
→ विकासशील देशों ने दोनों गुटों से अलग रहने के लिए नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पर बल दिया।
→ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन एवं नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था ने दो-ध्रुवीय विश्व को सशक्त ढंग से चुनौती दी।
→ भारत ने जहाँ गुटनिरपेक्षता का मार्ग चुना वहीं शीतयुद्ध की समयावधि में विकासशील देशों को दोनों गुटों (महाशक्तियों) से अलग रहने हेतु प्रेरित भी किया।
→ 1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में शीतयद्ध का अन्त एवं सोवियत संघ का विखण्डन हआ।
→ गटनिरपेक्ष आन्दोलन की आज भी प्रासंगिकता है। यह आन्दोलन वर्तमान समय की असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतन्त्रधर्मी बनाने के संकल्प पर टिका हुआ है।
→ नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा निजीकरण की पक्षधर है।
→ शीतयुद्ध-इसका अभिप्राय ऐसी अवस्था से है जिसमें दो या दो से अधिक देशों के मध्य वातावरण उत्तेजित एवं तनावपूर्ण हो लेकिन वास्तविक रूप से युद्ध न लड़ा जाए।
→ शीतयुद्ध काल-सन् 1945 से सन् 1990 तक की समयावधि को शीतयुद्ध काल के रूप में जाना
जाता है।
→ मित्र राष्ट्र-द्वितीय विश्वयुद्ध में ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस तथा सोवियत संघ को मित्र राष्ट्र कहकर सम्बोधित किया गया।
→ धुरी राष्ट्र-द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी, इटली तथा जापान को धुरी राष्ट्र कहा गया।
→ गटनिरपेक्ष आन्दोलन-गटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने वाले देशों द्वारा दोनों महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने तथा अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाते हुए विश्व राजनीति में शान्ति और स्थिरता के लिए सक्रिय रहने का आन्दोलन ‘गुटनिरपेक्ष आन्दोलन’ कहलाता है।
→ निःशस्त्रीकरण-इसका अर्थ सभी प्रकार के हथियारों को न बनाना तथा परमाणु अस्त्र-शस्त्रों को कम करने अथवा इन पर नियन्त्रण करने पर बल देना है।
→ जवाहरलाल नेहरू (1889-1964)-ये स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री रहे। इन्होंने एशिया महाद्वीप में एकता स्थापित करने, अनौपनिवेशीकरण एवं निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रयास किए। इसके अलावा विश्व शान्ति के लिए शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया। ये गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक सदस्य रहे।
→ जोसेफ ब्रॉज टीटो (1892-1980)-ये यूगोस्लाविया के शासक रहे।
→ गमाल अब्दुल नासिर (1918-1970)–ये मिस्र के शासक रहे। इन्होंने साम्राज्यवादी ताकतों का
विरोध किया तथा गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को शक्ति प्रदान की। इन्होंने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण किया।
→ सुकर्णो (1901-1970)-ये इण्डोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति रहे। इन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का समर्थन किया।
→ वामे एनक्रमा (1909-1972)—ये घाना के प्रथम प्रधानमन्त्री रहे। ये अफ्रीकी एकता तथा समाजवाद व गुटनिरपेक्षता के पक्षधर रहे। इन्होंने नव-उपनिवेशवाद का विरोध किया।