Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 9 वैश्वीकरण

Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 9 वैश्वीकरण

→ ‘वैश्वीकरण’ शब्द का प्रयोग अधिकांशतया सटीक अर्थों में नहीं होता।

→ एक अवधारणा के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात है—प्रवाह।

→ वैश्वीकरण एक बहुआयामी अवधारणा है। इसके राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आयाम हैं।

→ वैश्वीकरण की प्रवृत्ति 20वीं सदी के अन्त में प्रबल हुई तथा 21वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इसने वास्तविक आकार ग्रहण किया।

→ वैश्वीकरण प्रत्येक अर्थ में सकारात्मक नहीं होता विश्व में इसके दुष्प्रभाव भी दिखाई देते हैं।

→ इसका एक दुष्प्रभाव यह है कि वैश्वीकरण से राज्य की क्षमता में कमी आती है।

→ कुछ अर्थों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की शक्ति में वृद्धि भी हुई है।

→ वैश्वीकरण के आर्थिक प्रवाह को ‘आर्थिक वैश्वीकरण’ के नाम से जाना जाता है।

→ वैश्वीकरण के कारण विश्व के अलग-अलग भागों में वहाँ की सरकारों ने एक जैसी आर्थिक नीतियों को अपनाया है, लेकिन विश्व के विभिन्न भागों में इसके अलग-अलग परिणाम सामने आए हैं।

→ कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व के पुनः उपनिवेशीकरण की संज्ञा दी है।

→ आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है, व्यापार में वृद्धि होती है जिनका सम्पूर्ण विश्व को लाभ मिलेगा।

→ वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का मत है कि वैश्वीकरण ने हमारे समक्ष चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं जिनका सजग होकर पूरी तरह बुद्धिमानी से सामना करना चाहिए।

→ वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता लाता है, लेकिन इस सांस्कृतिक समरूपता में विश्व संस्कृति के नाम पर शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव का सकारात्मक पक्ष यह है कि कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसन्द-नापसन्द का दायरा बढ़ता है तो कभी इनमें परम्परागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार भी होता है।

→ वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव के दो पहलू हैं-(1) सांस्कृतिक समरूपता, एवं (2) सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण।

→ भारत में सन् 1991 में वित्तीय संकट से उबरने एवं उच्च आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

→ भारत में वैश्वीकरण का विरोध अनेक क्षेत्रों में हो रहा है। इनमें वामपन्थी राजनीतिक दल, इण्डियन सोशल फोरम, औद्योगिक श्रमिक एवं किसान संगठन आदि शामिल हैं।

→ वैश्वीकरण-विचार, पूँजी, वस्तु.एवं सेवाओं का विश्वव्यापी प्रवाह वैश्वीकरण कहलाता है।

→ बहुराष्ट्रीय निगम-वह कम्पनी जो एक से अधिक देशों में एक-साथ अपनी आर्थिक गतिविधियाँ (पूँजी निवेश, उत्पादन, वितरण अथवा व्यापार इत्यादि) चलाती है।

→ सांस्कृतिक समरूपता-इसका तात्पर्य विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति थोपी जा रही है या शेष विश्व पर तीव्रता से अपना प्रभाव छोड़ रही है।

→ सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण-वैश्वीकरण से प्रत्येक संस्कृति अधिक अलग एवं विशिष्ट होती जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहते हैं।

→ मैकडोनाल्डीकरण-इसका तात्पर्य है कि संसार की विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने आप को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं।

→ संरक्षणवाद-वह विचारधारा जो उदारीकरण तथा वैश्वीकरण का विरोध करती है और देशी उद्योगों एवं उत्पादित वस्तुओं को विदेशी सामानों की प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए चुंगी तथा तटकर इत्यादि का पक्ष लेती है।

→ विश्व व्यापार संगठन—एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन जो विभिन्न देशों के मध्य व्यापार को प्रोन्नत करने हेतु गठित किया गया, जिसका उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के समान रूप से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना है।

→ व्यापार-उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक वस्तुओं का प्रवाह, व्यापार कहलाता है।

→ व्यापार सन्तुलन-किसी देश के कुल आयात तथा निर्यात मूल्यों का अन्तर व्यापार सन्तुलन है।

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