Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 8 मंत्र

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 8 मंत्र Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 8 मंत्र

Bihar Board Class 6 Hindi मंत्र Text Book Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
डाक्टर के लड़के कैलाश ने साँप को पाल रखा था फिर . भी साँप ने उसे क्यों काटा?
उत्तर:
साँप को लगा कि कैलाश उसपर आक्रमण करना चाहता है। अतः आत्मरक्षा में उतरे कैलाश पर आक्रमण कर अंगुली को काट खाया। साँप की – यह प्रकृति होती है कि वह तबतक आक्रमण नहीं करता जबतक उसे यह न लगे कि यह व्यक्ति उसे मारना या चोट पहुँचाना चाहता है।

प्रश्न 2.
डा. चड्ढा बूढ़े व्यक्ति को क्यों खोज रहा था?
उत्तर:
डा. चड्ढा उस बूढ़े व्यक्ति के उपकार का बदला चुकाना चाहता । था तथा पूर्व में अपने व्यवहार के लिये उस बूढ़े से क्षमा मांगना चाहता था।

प्रश्न 3.
डाक्टर के लड़के कैलाश को साँघ ने काट लिया। इस खबर को सुनकर बूढ़े व्यक्ति को नींद क्यों नहीं आ रही थी?
उत्तर:
मानवता का तकाजा और कर्त्तव्य की पुकार के कारण बुड्ढा चाहकर भी नहीं सो पा रहा था। अस्सी वर्ष के उसके जीवन में यह पहला अवसर था कि ऐसा समाचार पाकर भी वह दौड़कर न गया हो। इसका अन्तर्मन उसे अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक कर रहा था।

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पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
डाक्टर द्वारा बूढ़े के लड़के को देखने से इन्कार करने पर । बूढ़ा व्यक्ति कैसा महसूस कर रहा होगा? अपने शब्दों में लिखिये।
उत्तर:
बूढ़ा डाक्टर के इन्कार करने पर हतप्रभ हो गया। उसके मन को . ठेस लगी। वह मन ही मन समझ गया कि उसके जीवन की आखिरी निशानी थी अब नहीं बचेगी। वह अन्दर से टूट गया पर कोई उपाय नहीं देख डोली उठवा ली और अपने घर को लौट गया।

प्रश्न 2.
समाज में गरीबों का जीवन-स्तर सुधारने के लिये आप क्या करना चाहेंगे?
उत्तर:
उसके लिये समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार आवश्यक है।’ शिक्षा से जागरूकता आयेगी -समाज में सबको आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।

प्रश्न 3.
इस पाठ में आपको किसका चरित्र सबसे अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर:
इस पाठ में सबसे अच्छा चरित्र उस बूढ़े का है जिसने मानव-मूल्यों की रक्षा की और डाक्टर चड्ढा के बेटे की जान बचाने के लिये आधी रात .. को उसके घर पहुँच गया। डाक्टर चडढा से बदला लेने की भावना उसके मन में आयी पर बूढ़े ने उस पर नियन्त्रण करते हुये डाक्टर चड्ढा के यहाँ जाने का निर्णय लिया। डाक्टर चड्ढा से इनाम या पारिश्रमिक पाने की अपेक्षा किये बिना वह घर वापस आ गया। इस प्रकार बूढ़े ने इन्सानियत का उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 4.
इस पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
यह कहानी हमें शिक्षा देती है कि मानव मूल्य सर्वोपरि है –
जो तोको काँटा बोये, ताही बोउते तुम फूल
तोहे फूल का फूल है, ताको है त्रिशूल।।
मानवता की रक्षा के लिये ही ईश्वर ने मानव को इस धरती पर जन्म दिया है।

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व्याकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –

(क) चैन न आना
उत्तर:
चिंता के कारण बूढ़े को चैन नहीं आ रहा था।

(ख) हवा देना
उत्तर:
राम ने आंदोलन को और हवा दी।

(ग) पगड़ी उतारकर रखना
उत्तर:
निर्धन पिता ने दहेज नहीं देने के कारण अपनी पगड़ी उतार कर पैर पर रख दी।

(घ) भूत सवार होना
उत्तर:
उसे पैसा कमाने का भूत सवार है।

(ङ) कलेजा ठण्डा होना
उत्तर:
पाकिस्तान की हार से भारत का कलेजा ठंडा हो गया।

(च) सीधा मुँह बात न करना
उत्तर:
वह इतना घमंडी है कि सीधा मुँह बात भी नहीं करता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में अ उपसर्ग लगाकर विलोम बनाइए।
उत्तर:
(क) धर्म = अधर्म ।
(ख) ज्ञान = अज्ञान ।
(ग) भाव = अभाव
(घ) सहमत = असहमत
(ङ) सावधानी = असावधानी ।

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मंत्र Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द लिखित अनेक कहानियों से चुनी गयी यह कहानी मानव-मूल्यों की स्थापना.का सन्देश देती है। मनुष्य अहंकार भाव को प्रधानता देते हुये किस प्रकार इन्सानियत की अपेक्षा करता है और फिर. मानव-मूल्यों की बलि देता है, इसकी स्थापना इस कहानी का मूल उद्देश्य है। इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं – एक डाक्टर चड्ढा और दूसरा एक बूढ़ा जो सांप के विष को झाड़ने का मन्त्र जानता है और पास के एक गाँव में अपनी पत्नी के साथ रहता है।

बूढे के सात बच्चों में से छ: की मौत एक -एक कर हो चुकी है। यह सातवाँ भी गम्भीर रूप से बीमार हो गया है और अपने बीमार बेटे को डोली में सुलाकर वह बूढ़ा डाक्टर चड्ढा की डिस्पेन्सरी (औषधालय) पर पहुँचता है। उस समय सन्ध्या हो चुकी थी और डाक्टर चड्ढा नित्य की तरह टेनिस खेलने के लिये जाने की तैयारों में लगे थे। बूढ़ा घर के सामने डोली पर बीमार – बच्चे को छोड़कर, डॉक्टर साहब के घर के दरवाजे पर लगी चिक (परदा) उठाकर झांकता है।

उसको अन्दर प्रवेश करने की हिम्मत नहीं होती है- कहीं कोई डाँट न दे? अन्दर से डॉक्टर साहब की कड़क आवाज आती है- कौन . है? क्या चाहता है? बूढ़ा गिड़गिड़ाता हुआ विनती करता है “हूजूर! बड़ा गरीब आदमी हूँ, मेरा लड़का कई दिन से बीमार है।” डॉक्टर साहब घर के अन्दर ” से उत्तर देते हैं “कल सवेरे आओ, कल सवेरे। हम इस वक्त मरीजों को नहीं -देखते।”

बूढ़ा कहता है – “दुहाई है सरकार की, लड़का मर जायेगा, हुजूर! चार दिन से आँखें नहीं खोली हैं।”

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डाक्टर साहब घड़ी देखते हैं-कुल दस मिनट का समय बाकी है। उन्होंने फिर कहा – “कल सवेरे आओ। यह हमारे खेलने का समय है।”

बूढ़ा ने अपनी पगड़ी उतारकर चौखट पर रख दी और रोते हुये कहा-“हुजूर एक निगाह देख लें। बस, एक निगाह! लड़का मर जायेगा, हुजूर! सात – लड़कों में से यही एक बच रहा है। हम रो-रोकर ही मर जायेंगे।”

डाक्टर साहब ने बूढ़े की बात अनसुनी कर दी। उन्होंने चिक उठायी और बाहर निकलकर अपनी मोटर की ओर बढ़ गये। बढे ने अन्तिम प्रयास किया दया कीजिये हुजूर, इस लड़के को छोड़कर इस संसार में मेरा कोई नहीं है।” डाक्टर साहब ने मुँह फेर लिया और अपनी गाड़ी पर बैठकर बोले – “कल आना”

डोली जिधर से आयी थी. उधर चली गयी और फिर उसी रात उसका हँसता-खेलता लड़का, इस संसार से विदा हो गया।

कई साल बीत गये। डाक्टर चड्ढा की प्रैक्टिस दिन दुनी रात चौगनी बढ़ती गयी। उन्होंने यश भी कमाया और धन भी। डाक्टर चड्ढा की दो संतान थी – एक लड़का और एक लड़की। लड़की का विवाह डाक्टर साहब ने कर दिया था। लड़का अभी कॉलेज में पढ़ता था। उसका नाम था कैलाश। कैलाश को सांप पालने-खिलाने और नचाने का शौक था। आज कैलाश की बीसवीं सालगिरह का समारोह डाक्टर चड्ढा मना रहे थे। इस समारोह में कैलाश के सहपाठी और खास मित्र बुलाये गये थे, जिनमें मृणालिनी भी थी। मृणालिनी, कैलाश से प्यार करती थी। मृणालिनी आज जिद कर बैठी कि वह सांप देखेगी। -कैलाश इस भीड़ में सांपों को नहीं निकालने का बहाना करता रहा, पर मृणालिनी की जिद् के आगे झुकना ही पड़ा। वह मृणालिनी और अन्य मित्रों को लेकर सांपों के रखने की जगह पर गया और बीन बजाने लगा। वह – एक-एक सांप निकालता और उनके करतब दिखाता। उन्हें अपने गले में डाल लेता था फिर बीन बजाकर उन्हें नचाता। एक मित्र ने व्यंग्य किया – इन सांपों के दाँत नहीं होंगे अन्यथा ये अभी तक काट लिये होते। (कैलाश ने हँसकर – कहा – दाँत तोड़ना तो मदारियों का काम है। इनके दाँत सही सलामत हैं –

कहो तो दिखा दूँ। इनके काटे की कोई दवा नहीं है। यह अत्यन्त जहरीला है। कैलाश को जोश आ गया। उसने उस सांप की गर्दन दबायी और मुँह खोलकर . उसके दाँत सबको दिखा दिये। सांप को उसके पालने वालों का आज का

व्यवहार ठीक नहीं लगा क्योंकि सांप क्षणभर में क्रोध से पागल हो गया। – कैलाश ने उसकी गर्दन ढीली कर दी। सांप ने आत्मरक्षा में अपने फन फैला दिये और कैलाश की अंगुली में अपने दाँत गड़ा दिये। कैलाश की अंगुली से खून टपकने लगा। सांप छुटते ही वहाँ से भाग निकला। कैलाश ने अंगुली . दबा ली। एक जड़ी पीसकर लगायी गयी पर उसका कोई फायदा नहीं निकला। कैलाश की आँखें झपकने लगीं और होठों पर नीलापन दौड़ने लगा। कैलाश की हालत खराब होने लगी। मेहमान कमरे में इकट्ठा हो गये। एक सपेरे को बुलाया गया जो विप झाड़ने का काम करता था। वह आया पर कैलाश की सूरत देख कर बोला-“अब क्या हो सकता है सरकार! जो कुछ होना था सो हो चुका।” घर में कोहराम मच गया। सभी रोने लगे।।

शहर से कुछ दूर एक झोपड़ी में एक बूढा और एक बढिया अंगीठी के सामने बैठे जाड़े की रात काट रहे थे। घर में न चारपाई थी और न कोई विछावन। एक छोटी-सी ढिवरी ताक पर जल रही थी। किसी ने द्वार पर आकर आवाज दी “भगत, भगत! क्या सो गये? जरा किवाड़ खोलो।” भगत ने दरवाजा खोल दिया। एक आदमी अन्दर आकर बोला – “कुछ सुना. डाक्टर चड्ढा के लड़के को सांप काट लिया। तुम चले जाओ, आदमी बन जाओगे। खूब पैसा मिलेगा।

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बूढ़े न इन्कार करते हुये कहा – “मैं नहीं जाता। मेरी बला से मरे। मेरा लड़का अन्तिम सांसें गिन रहा था। मैं बेटा को लेकर उन्हीं के पास गया था। मैं पैरों पर गिर पड़ा कि एक नजर देख लीजिये। मगर उसने सीधे मुँह बात तक नहीं की। अब पता चलेगा कि बेटे का गम क्या होता है। उन्हें तनिक भी – दया नहीं आयी थी।”

भगत अपनी बातों पर अटल रहा और वह आदमी लौट गया। भगत ने किवाड़ बन्द कर लिया और चिलम पीने लगा। बुढ़िया ने कहा- “इतनी रात गये जाड़े में कौन जायेगा?”

“अरे, दोपहर ही होती तो भी मैं नहीं जाता। सवारी दरवाजे पर लेने आती तो भी न जाता। भूला थोड़े ही हूँ। मेरे बेटे को निर्दयी ने एक नजर देखा भी न था” – बूढ़े ने कहा। बूढ़े के जीवन में यह पहला अवसर था कि सांप काटे की खबर पाकर भी वह नहीं गया। मौसम कैसा भी हो, लेन-देन का विचार कभी मन में आया ही नहीं।

बुढ़िया सो गयी थी। बूढ़े का मन भारी हो रहा था। उसके मन को चैन नहीं आ रहा था। उसने अपनी लकड़ी उठायी और धीरे से किवाड़ खोले। बुढ़िया की नींद टूट गयी – पृछा “कहाँ जाते हो?” बूढ़े ने बहाना कर दिया-देख रहा था कि कितनी रात है? बुढ़िया ने कहा – ” अभी बहुत रात है, सो जाओ।” “नींद नहीं आती” – बूढ़े ने उत्तर दिया। ” नींद काहे को आयेगी? मन तो चड्ढा के घर लगा हुआ है। बुढ़िया ने व्यंग्य-वाण छोड़े।” चड्ढा ने हमारे साथ कौन-सी नेकी कर दी है, जो वहाँ जाऊँ” बूढ़े ने कहा। बुढ़िया फिर सो गयी। भगत ने धीरे से किवाड़ खोला ताकि बुढ़िया जग न जाय। उसके पैर अपने आप आगे बढ़ गये। वह लपका चला जा रहा था। उसके मन ने उसे कई बार पीछे खींचा। पर उसका अंतर्मन उसे आगे की ओर ठेलता गया।

इसने में दो आदमी आता दिखायी दिया। वे आपस में बातें करते चले आ रहे थे। -“चड्ढा बाबू का घर उजड़ गया। वही तो एक लड़का था।” भगत के कानों में ये शब्द पड़े और उसकी चाल तेज हो गयी। अपनी उम्र में इतना तेज वह कभी नहीं चला था। चड्ढ़ा साहब के घर बूढ़ा पहुँच गया। रात के दो बज चुके थे। मेहमान सांत्वना देकर विदा हो गये थे। भगत ने द्वार पर पहुँचकर आवाज दी। डाक्टर साहब बाहर आये। देखा, एक बूढ़ा आदमी खड़ा है- कमर झुकी हुयी, पोपला मुँह, भौंहे तक सफेद हो गयी हैं। लकड़ी के सहारे कांप रहा है।

बूढ़ा ने कहा- “भैया कहाँ है? जरा मुझे दिखा दीजिये” चड्ढा ने कहा “चलो, देख लो, मगर तीन-चार घंटे हो गये – जो कुछ होना था सो हो चुका। बहुतेरे झाड़ने-फूंकने वाले देखकर चले गये।”

डाक्टर चड्ढा, भगत को अन्दर ले गये। उसने कैलाश की हालत एक मिनट तक देखी, फिर मुस्कुरा कर कहा – “अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, बाबूजी! आप पानी का इन्तजाम करवाइये।”

लोगों ने कैलाश को नहलाना शुरू किया और बूढ़ा भगत खड़ा मुस्कुराकर मंत्र पढ़ता जाता। मंत्र की समाप्ति पर एक जड़ी कैलाश को सुंघा देता। यह क्रम सुबह तक चलता रहा। सुबह होते-होते कैलाश ने लाल-लाल आँखें खाली, अंगडाई ली और पीने को पानी मांगा। भगत का काम पूरा हो चुका था। वह घर की तरफ भागा। भगत बढिया के जागने के पहले अपने घर पहुँच जाना चाहता था। यहाँ चारो तरफ भगत की खोज होने लगी।

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जब सब चले गये तो डाक्टर साहब ने अपनी पत्नी से कहा – “बुड्ढा न जाने कहाँ चला गया? एक चिलम, तम्बाकू का भी हकदार नहीं हुआ।” पत्नी (नारायणी) ने कृतज्ञतापूर्वक कहा – “मैंने तो सोचा था इसे कोई बड़ी रकम दूँगी।

चड्ढा ने कहा – “रात को तो मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ होने पर गहचान गया। एक बार यह एक मरीज को लेकर आया था। मैं खेलने के लिये जा रहा था। मैंने मरीज को देखने से इन्कार कर दिया था। आज मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं अब उसे खोज निकालूँगा और उसके पैरों पर गिरकर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा। वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ। उसका जन्म यश की वर्षा ही के लिये हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है जो अब से जोवनपर्यन्त मेरे सामने रहेगा।”