Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 6 गंगा स्तृति

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 6 गंगा स्तृति Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 6 गंगा स्तृति

Bihar Board Class 7 Hindi गंगा स्तृति Text Book Questions and Answers

पाठ से –

प्रश्न 1.
‘गंगा स्तुति’ कविता के कवि कौन हैं?
उत्तर:
मैथिल कोकिल कवि विद्यापति ।

प्रश्न 2.
गंगा के किनारे को छोड़ते समय कवि के आँखों से आँसू क्यों बह रहे.थे?
उत्तर:
गंगा के किनारे पर रहकर कवि विद्यापति को जो अध्यात्मिक सुख की अनुमति हुई वह अब कवि के लिए वास्तविक सुख था। अब कवि जब गंगा की निकटता को छोड़ रहा है तो उसके आँखों में आँस आ गये।

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प्रश्न 3.
कवि गंगा से किस अपराध की क्षमा माँगता है?
उत्तर:
कवि स्नान काल में जो अपना पैर गंगा जल में रखा उसे वह अपराध मानता है तथा इसके लिए क्षमा माँगता है।

प्रश्न 4.
कविता की निम्नलिखित पंक्तियों को पूरा कीजिए –
उत्तर:
(क) कि करब जप-तप जोग धेयाने।
जनम कृतारथ एकहि सनाने ।

(ख) भनई विद्यापति समदओं तोही।
अन्तकाल जनु विसरहु मोही ॥

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पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
इस पाट’ शीर्षक “मंगा स्तुति” रखा गया है। क्या आप इस शीर्षक से सहमत है? यदि हाँ तो क्यों और नहीं तो क्यों ?
उत्तर:
इस पाठ का शीर्षक “गंगा स्तुति” रखा गया है। इस शीर्षक से हम पूर्णत: सहमत हैं। क्योंकि कवि विद्यापति अपने इष्ट देवी गंगा से सम्पूर्ण कविता में मात्र प्रार्थना की है।

प्रश्न 2.
गंगा के अतिरिक्त अन्य नदियाँ भी हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं। इन नदियों का हमारे दैनिक जीवन में क्या महत्व है, उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गंगा के अतिरिक्त अन्य नदियाँ भी हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं क्योंकि इन नदियों का हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व है।
जैसे – नदियों में हम स्नान करते हैं। नदियों का पानी पीने के काम में भी आता है। नदियों के जल से सिंचाई होती है। नदियों के पानी से बिजली उत्पादन होता है। नदियों के रास्ते से व्यापार भी होता है। नदियों के रास्ते से हम यात्रा भी करते हैं।

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व्याकरण –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का पर्याय लिखिए
उत्तर:
(क) पाओल – प्राप्त किया; पाया।
(ख) छोड़इत – छोड़ते, त्यागते।
(ग) समदओं – मनाऊँ, विनमऊ
(घ) सननि – स्नान, नहाना।
(ङ) पाय – पाद, चरण, पैर

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
गंगा के उद्गम स्थल से उसके समुद्र में मिलने तक की यात्रा के प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
गंगा का उद्गम स्थान हिमालय का गोमुख (गंगोत्री) है वहाँ से चलकर गंगा अनेक ऊँची पर्वतीय एवं वन प्रदेश से गुजरते हुए हरिद्वार में आकर समतल भूमि पर बहने लगती है। रास्ते में वह अनेक नदियों को अपने साथ लेकर तीन रास्ते से चलकर गंगा सागर तक पहुँच जाती है जो गंगा-सागर कहलाता है।

प्रश्न 2.
गंगा के किनारे बसे शहरों की सूची बनाइए। इन शहरों में स्थित कल-कारखानों से गंगा नदी पर किस प्रकार का दुष्प्रभाव पड़ता है। इस पर अपने सहपाठियों से चर्चा कीजिए एवं लिखिए।
उत्तर:
गंगा के दोनों तटों पर अनेक शहर बसे हैं –

जैसे – हरिद्वार, काशी, मुगलसराय, बक्सर, पटना, बरौनी, मुंगेर भागलपुर, कलकत्ता इत्यादि।

इन सभी शहरों में कल-कारखाने हैं जिसके रासायनिक पदार्थ युक्त गंदे जल गंगा में गिर रहे हैं जिससे गंगा में स्थित जलीय जीव पर दुष्प्रभाव तो पड़ ही रहा है साथ-साथ हमारे जीवन पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। हमलोग मलयुक्त विषाक्त गंगा जल का दैनिक जीवन में उपयोग कर रहे हैं जिससे अनेक रोगों का आक्रमण हमारे ऊपर हो रहा है। गन्दगी से गंगा पट रही है परिणामतः गंगा दिन-प्रतिदिन दूषित कमजोर हो रही है। ऐसा भी दिन आ सकता है जब गंगा कूड़े-कर्कटों से भर जायेगी तथा गंगा के जल का दर्शन भी नहीं होगा।

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गंगा स्तृति Summary in Hindi

बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे॥
छोड़इत निकट नयन बह नीरे।

भावार्थ – हे माता गंगे ! आपके तट पर रहकर मैंने अद्वितीय श्रेष्ठ सुख को प्राप्त किया है। आपकी निकटता को छोड़ते हुए मेरे आँखों से आँसू बह रहे है।

कर जोरी विनमऔं विमल तरंगें,
पुन दरसन होए, पुन मति गंगे।

भावार्थ – हे पवित्र तरंग वाली ! आपको मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि हे पुण्यमयी गंगे! आपका पुनः दर्शन हो।

एक अपराध छेमब मोर जानी।
परसल माय पाय तुअ पानी॥

भावार्थ-हे मातु गंगे-मेरा एक अपराध समझकर क्षमा कर दें। क्योंकि हे माता, आपके पवित्र जल को मैंने अपने पैर से स्पर्श कर दिया है।

कि करब जप-तप जोग द्येयानि ।
जनम कृतारथ एकहि सनाने ॥

भावार्थ-हे मातु गंगे! जब आपके जल में मात्र एक बार स्नान करने – से जन्म सफल हो जाता है तो जप-तप-योग-ध्यान करने की क्या आवश्यकता है।

भनई विद्यापति समदओं तोही।
अन्तकाल जनु विसरहु मोही॥
भावार्थ – हे मातु गंगे ! कवि विद्यापति आपसे प्रार्थना करता है किआप हमें अन्त समय (मृत्युकाल) में नहीं भूलियेगा।
अर्थात् अवश्य दर्शन दीजियेगा।