Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 8 क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष

Bihar Board Class 7 Social Science क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

  1. उर्दू एक ……….. भाषा है । (मिश्रित/एकल/मधुर)
  2. उर्दू की उत्पत्ति………. शताब्दी में हुयी । (ग्यारहवीं /चौदहवीं/बारहवीं)
  3. उर्दू का शाब्दिक अर्थ है ……….. । (घर/महल/शिविर/खेमा)
  4. इरानी लोग सिंधु को ……… कहने थे । (हिन्द/हिन्दू/हिन्दी)
  5. तुलसीदास ने……की रचना की । (महाभारत/मेघदूतम्/रामचरितमानस)
  6. पहाड़ी चित्रकला ……….. क्षेत्र में विकसित हुयी। (मध्य भारत/उत्तर पश्चिम हिमालय/राजस्थान)

उत्तर-

  1. मिश्रित
  2. ग्यारहवीं
  3. शिविर
  4. हिन्दू
  5. रामचरितमानस
  6. उत्तर-पश्चिम हिमालय ।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न (a)
उर्दू का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर-
उर्दू का विकास एक अपभ्रंश भाषा के रूप में हुआ। इसमें अनेक भाषाओं के शब्द मिले हैं, जैसे : अरबी, फारसी तथा तुर्की । इसी कारण उर्दू को एक मिश्रित भाषा कहते हैं । इसकी लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिन्दी-अंग्रेजी जैसा ही है।

प्रश्न (b)
लौकिक साहित्य के बारे में पाँच पंक्तियों में बताइए ।
उत्तर-
लौकिक साहित्य में ‘ढोला-मारुहा’ नामक काव्य लिखा गया । इसमें ढोला नामक राजकुमार और मारवाणी नामक राजकुमारी की प्रणय लीला का वर्णन है । इस काव्य में महिलाओं के कोमल भावों का मार्मिक वर्णन किया गया है । इसी काल के लौकिक साहित्य के रचनाकारों में अमीर खुसरो भी हैं । अमीर खुसरु ने पहेलियों से हिन्दी के भंडार को भरा ।।

प्रश्न (c)
रहीम कौन थे ? उनके द्वारा रचित किसी एक दोहा को लिखें।
उत्तर-
रहिम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था । ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक थे । इनकी अधिक पहचान कृष्ण भक्त कवि के रूप में है । इन्होंने हिन्दी में अनेक कविताओं की रचना की । इनकी एक प्रसिद्ध रचना का अंश निम्नलिखित है :

रहिमन विपदा तू भली. जो थोड़े दिन होई । हित अनहित या जगत में जान पड़े सब कोई

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प्रश्न (d)
‘हम्जानामा’ क्या है ?
उत्तर-
हम्जानामा’ मुगलकाल का बना चित्रों का एक अलबम है । मुगलों ने चित्रकला की जिस शैली की नींव डाली वह मुगल चित्रकला के नाम से प्रसिद्ध हुई । ‘हम्जानामा’ मुगल शैली की ही एक अद्भुत कृति है । यह ऐसी – पाण्डुलिपि है, जिसमें 1200 चित्र हैं । सभी चित्र स्थूल और नटकीन्ने गंगों में कपड़े पर बने हुए हैं।

प्रश्न (e)
पहाड़ी चिरकला में किन-किन विषयों पर चित्र बराये जाते थे ?
उत्तर-
पहाड़ी चित्रकला में विशेष रूप से सामाजिक विषय चुने गरे । चित्र सामाजिक विषयों पर ही बने । बच्चियों को गेंद खेलते, संगीत के साज बजाते, पक्षियों या पशुओं के साथ मनोरंजन करते हुए चित्र बनाये जाते थे । राजा-महाराजाओं का अंकेले या दरबारियों के साथ बैठे हुए चित्र बनाये जाते थे । प्राकृतिक दृश्यों के चित्र भी बने । पत्तों और फलों से लदे वृक्षों के चित्र सराहनीय हैं । पहाड़ी चित्रकला में इन्हीं विषयों पर चित्र बनाये जाते थे ।

प्रश्न (f)
गजल और कव्वाली में अंतर बताएँ।
उत्तर-
सल्तनत काल में दो प्रकार की गायन शैली का विकास हुआ-पहला था गजल और दूसरा कव्वाली । गजल को अरबी भाषा में स्त्रीलिंग माना जाता है, जबकि हिन्दी में इसे पुल्लिग मानते हैं । गजल का शाब्दिक अर्थ है अपने प्रेम पात्र से वार्ता । एक गजल में कम-से-कम पाँच और अधिक-से-अधि क ग्यारह शेर होते थे। इसके संग्रह को दीवान कहा जाता है । गजलें कि शृंगार रस में लिखी होती थी, जिस कारण इसका गायन संगीत प्रेमियों को अच्छा लगता था । सूफियों को भी गजल प्रिय रहा ।

कव्वाली का चलन विशेषतः सूफी गायकों में था । ‘कौल’ का अर्थ है कथन । इसको गाने वाला कव्वाल कहलाता था । यही शैली कौव्वाली कहलायी । कोदाली गाते हुए गायक भक्तिमय हो जाता था । उसके समक्ष लगता था कि अल्ला सामने आ गया हो । गाते-गाते वे झूमने और नाचने लगते

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चर्चा करें

प्रश्न 1.
क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सोलहवीं शतादी से क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन कार्य होने लगा था । सत्रहवीं शताब्दी के आते-आते इसमें काफी परिपक्वता आ गई । संगीतमय काव्य भी रचे गये । बंगला, उड़िया, हिन्दी, गजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के काव्य में राधाकृष्ण एवं गोपियों की लीला तथा भागवत की कहानियों का भरपूर उपयोग हुआ । इसी काल में मल्लिक महम्मद जायसी ने हिन्दी में ‘पद्मावत’ लिखा । इसका बंगला में भी अनुवाद हुआ । अब्दुर्रहीम खानखाना ने कृष्ण को सामने रख अनेक काव्यमय रचनाएँ की ।

तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी में की जिसमें भोजपुरी शब्दों का खुब उपयोग हुआ है । सूरदास ने ब्रज भाषा में कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया । यह इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था ।

दक्षिण भारत में मलयालम भाषा की साहित्यिक परम्परा का प्रारंभ मध्यकाल में ही हुआ। महाराष्ट्र में एकनाथ और तुकाराम ने मराठी भाषा में काफी कुछ लिखा ।

बिहार अनेक भाषाओं का क्षेत्र है । यहाँ की कुछ भाषाएँ पूरे देश में । बोली-समझी जाती हैं। बिहार के चन्द्रेश्वर मध्यकाल के नामी टीकाकार थे। इन्होंने सूफी संतों से प्रभावित होकर धर्म की व्याख्या की ।

खासकर बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र है । यहाँ हिन्दी की उत्पत्ति संस्कृत के अपभ्रंश के रूप में हुई । अन्य भाषाओं में, जिन्हें शुद्ध क्षेत्रीय कहा जा सकता है, वे हैं भोजपुरी, मगही, मैथिली और उर्दू आदि । मैथिली भाषा को कवि कोकिल विद्यापति ने बहुत ऊँचाई पर पहुंचा दिया । मंडन मिश्र तथा भारती मिथिला की ही देन थे। भोजपुरी का क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं।

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प्रश्न 2.
आपके घर में जो भाषा बोली जाती है ? उसका प्रयोग लिखने में कब से शुरू हुआ?
उत्तर-
में अपने घर में भोजपुरी भाषा बोलता हैं । लेखन में इसका आरम्भ कबीर के समय से हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक महाकाव्य भोजपुरी में रचे गए । बटोहिया, फिरंगिया और कुंवर सिंह महाकाव्य अधिक प्रशसित रहे हैं । महेन्द्र मिश्र तथा भिखारी ठाकुर भोजपुरी के महान गीतकार रह चुके हैं । आज तो भोजपुरी भाषा का काफी विकास हो चुका है।

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पाठ का सार संक्षेप

गुप्त साम्राज्य के विघटन के फलस्वरूप छठी शताब्दी में क्षेत्रीय शासकों को पनपने का मौका मिला। इनमें प्रमख थे पाल, गर्जर प्रतिहार, राष्ट्रकूट, पल्लव, चोल आदि । क्षेत्रीयता के साथ ही इस काल को साहित्य, चित्रकला, संगीत में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया । फलतः उत्तर भारत में जहाँ बंगला, असमिया, मैथिली, भोजपुरी, उड़िया तथा अवधि के साथ-साथ ब्रज भाषा का भी विकास हुआ । दक्षिण भारत में तमिल और मलयालम भाषाएँ विकसित हुई । आगे आने वाली शताब्दियों में हिन्दी और उर्दू भाषाओं के विकास के साथ-साथ इन भाषाओं के साहित्य का भी भंडार भरा । इस काल में भाषा के साथ चित्रकला और संगीत कलाएँ भी विकसित हुईं।

क्षेत्रीय भाषाओं की उत्पत्ति लगभग आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच हुई। कई राज्यों में संस्कृत के साथ-साथ तमिल, कन्नड़ एवं मराठी का प्रयोग प्रशासन में किया जाता था । विजयनगर राज्य में तेलुगु विकसित हुआ तो बहमनी राज्य में मराठी का विकास हुआ। इन भाषाओं के विकास में मुस्लिम शासकों ने भी सहयोग दिया । बंगाल के शासक नुशरतशाहा ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ का बंगला में अनुवाद कराया ।

दिल्ली के शासकों ने भी हिन्दी, उर्दू, बंगला जैसी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को पहचान दिलाने का काम किया । आम लोग अपने-अपने क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषाओं का व्यवहार करते रहे, जिन्हें अपभ्रंश कहते हैं । इसी अपभ्रंश से हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, बंगला आदि भाषाओं की उत्पत्ति हुई थी । उर्दू एक मिश्रित भाषा है, जिसमें अरबी, फारसी, तुर्की के शब्द शामिल हैं । उर्दू की लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिन्दी जैसा ही है।

उर्दू भाषा का विकास ग्यारहवीं शताब्दी से शरू हुआ । विभिन्न भाषा / बोलने वाले सैनिक आपसी बातचीत में जिस भाषा का प्रयोग करते थे वही भाषा उर्दू कहलाई । ‘उर्दू’ का शाब्दिक अर्थ है ‘शिविर’ या ‘खेमा’ । सूफी संतों ने धर्म प्रचार के क्रम में वहीं के लोगों जैसा बोलना चाहते थे, लेकिन अपनी अंतरंग भावना को व्यक्त करते हुए उन्हें अपनी मातृभाषा का व्यवहार करना पड़ता था । फलतः स्थानीय भाषाओं में फारसी, अरबी, तुर्की के शब्द प्रवेश करते गये। आज ही हिन्दी बिना इन शब्दों के व्यवहार के लिखी ही नहीं जा सकती । हिन्दी वाले भी इसके इतने निकट हो गए हैं कि उर्दू के शब्द भी उन्हें हिन्दी ही लगते हैं। केवल बंगला भाषा है. जिसमें विशद्ध संस्कृत

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शब्द का व्यवहार होता है, जिसे बंगलादेश के मुसलमान भी व्यवहार में लाते हैं। तात्पर्य कि सूफी संतों के कारण भी उर्दू एक भाषा के रूप में जानी जाने

लगी । चौदहवीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने इस भाषा को उर्दू न कहकर रेख्ता’ या ‘हिन्दवी’ नाम दिया । इसी भाषा में उन्होंने अपनी काव्य रचनाएँ । की थीं । उनके काव्य का एक नमूना है :

गोरी सोये सेजपर, मुख पर डाले केश । जल खुसरो घर आपनो, रैन भई चाहूँ देश ।

दक्षिण भारत में जिस उर्दू का विकास हआ वह ‘दक्कनी’ कहलाई । अठारहवीं शताब्दी के अंत तक उर्दू को ‘दक्कनी’, हिन्दवी, हिन्दुस्थानी कहा जाता रहा । मुगल काल में उर्दू मुगलों की मातभाषा बन गई।

‘हिन्दी’, ‘हिन्द’, ‘हिन्दवी’ और हिन्दुस्तान आदि शब्दों की उत्पत्ति का कारण उत्तर-पश्चिम में बनने वाली नदी ‘सिंध’ थी । समकालीन लौकिक हिन्दी साहित्य के अमर कति अमीर खुसरो हैं। इनकी पहेलियाँ बहुत प्रसिद्ध हुई । गद्य साहित्य में इतिहास की प्रमुखता रही । जियाउद्दीन बरनी, अधीक, इसानी आदि इस युग के प्रसिद्ध इतिहासकार थे । जिया नक्शवी ने ‘तुतीनामा’ लिखा, जिसमें एक तोता एक विरहिणी नायिका को कथा सुनाता है । यह कहानी मूलतः संस्कृत में थी, जिमका नक्शवी ने फारसी में अनुवाद किया।

अकबर के काल में साहित्यिक विकास शिखर पर था । अब्दुल रहीम खान खाना, जिन्हें ‘रहीम’ के नाम से जानते हैं, अकबरी दरबार के नवरत्नों में थे । ये कृष्ण भक्त थे और उन्हीं के गुणगान में रचना की । तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई आदि इसी काल के कवि थे । तुलसी दास ने अवधि में रामचरित मानस लिखा तो सूरदास ने ब्रजभाषा में सूरसागर लिखा । मीराबाई भी कृष्ण भक्त थीं जिन्होंने राजस्थानी में कृष्ण के गीत गाये ।

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मुगलों ने मानां भारत में चित्रकला की नींव ही रख दी । मुगल दरबार में चित्रकारों का बहुत मान था । इस काल का एक चित्र संग्रह है ‘हज्जानाम’, जिसमें 1200 चित्र हैं । जसवंत तथा दसावन गुगल दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे । औरंगजेब के काल में चित्रकला का पतन हो गया। चित्रकार अब छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजाओं के शरण में चले गये । वे दिल्ली से चलकर जौनपुर, लखनऊ, पटना और मुर्शिदाबाद तक फैल गये । वहाँ के नवाबों. सुबेदारों से उन्हें संरक्षण मिला। पटना में जो चित्रकला विकसित हुई उसे ‘पटना कलम’ कहा गया । सल्तनत काल से ही संगीत का विकास शुरू हो चुका था जो आज तक जारी है ।

अकबर के दरबार में एक-से-एक शास्त्रीय गायक थे। तानसेन अकबर के नवरत्नों में थे । दरगाहों में कव्वाली का विकास हुआ वहाँ अमीर-उमरा लोगों में गजल को प्रोत्साहित किरण । बिहार भी संगीत से अछूता नहीं था । यहाँ पटना, गया, आरा, छपरा आदि शहर संगीत के प्रमुख क्षेत्र थे। लखनऊ और बनारस के गायक पटना में आकर बस गये । गजल, दादरा, जरी, चैता, ख्याल, टुमरी आदि का विशेष विकास हुआ।