Bihar Board 12th Hindi 50 Marks गद्य खण्ड Important Questions Long Answer Type

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Bihar Board 12th Hindi 50 Marks गद्य खण्ड Important Questions Long Answer Type

प्रश्न 1.
गौरा कौन थी ? महादेवी वर्मा ने उसकी रेखाचित्र किस प्रकार प्रस्तुत की है? व्याख्या करें।
अथवा, गौरा के संबंध में महादेवी वर्मा के विचारों की समीक्षा करें।
उत्तर:
गौरा महादेवी वर्मा की गाय है जो उनको छोटी बहन ने उपहार के रूप में दिया था। यह मार्मिक रेखाचित्र उसी गाय से संबंधित है। उनकी दृष्टि में यह एक विलक्षण प्राणी है। “गौरा” अपने सुन्दर शरीर, आकर्षक चाल और साहचर्य जनित लगाव तथा दुग्ध-आपूर्ति जैसी उपयोगिता के कारण वह प्रेम और मानवीय स्नेह पाने की हकदार थी। महादेवी वर्मा ने “गौरा” की निर्मम मृत्यु के पीछे मनुष्य की अंध स्वार्थलिप्सा को उजागर किया है। व्यक्ति स्वार्थ में इतना अंधा हो गया है कि दूध देने वाला निश्छल और प्रेम करने योग्य प्राणी ‘गौरा’ को सूई खिला देता है ताकि वह मर जाये, और महादेवी वर्मा पुनः उससे दूध लेने लगे। गौरा की यातनापूर्ण मृत्यु जैसे मानवीय संवेदनशीलता की ही मृत्यु है।

महादेवी वर्मा के रेखाचित्र में कम-से-कम शब्दों में कलात्मक दृश्य मिलता है। गौरा इसका एक सुन्दर प्रमाण है।

महादेवी वर्मा को पशु-पक्षी, बकरी, कुक्कुट, मछली इत्यादि पालने का शौक, खाद्य समस्या के समाधान के लिए न था बल्कि जीवों के प्रति स्नेह और दुलार की भावना थी। जब उनकी छोटी बहन श्यामा ने उपयोगिता के आधार पर पशु पालन की ओर ध्यान आकर्षित कराया तो उन्होंने अपनी बहन को उसकी कर्मनिष्ठा और व्यवहार कुशलता की बहुत प्रशंसा की और उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

गौरा, एक सफेद, चमकदार अभ्रक जैसी रोमो वाली बाछी थी। उसका स्वागत एक अच्छे और सम्मानित अतिथि के रूप में टीका लगाकर और आरती उतार कर किया गया था। उसका नामकरण भी हुआ, “गौरागिनी” या गौरा से वह प्रसिद्ध हो गई।

गौरा केवल देखने में सुन्दर न थी बल्कि उसका विचार, आचरण बहुत अच्छे थे। अन्य पालतू पशु-पक्षी, कुत्ते-बिल्लियाँ उसके मित्र बनकर उसके पेट के नीचे खेलने लगे थे।

वह घर के सभी लोगों को उनके पैर की आहट से पहचानती थी। उनसे कुछ पाने की प्रतीक्षा करती थी। एक वर्ष के बाद जब वह माता बनी और लाल रंग के बच्चे को जन्म दिया तो उसका महत्त्व और बढ़ गया था। वह प्रतिदिन बारह सेर दूध देती थी, उसका बच्चा लाला मणि (लालू) के अतिरिक्त उसका दूध घर के कुत्ते, बिल्लियाँ और बाल गोपाल पीते थे।

जब से गौरा, आवश्यकता से अधिक दूध देने लगी थी, ग्वाले से दूध लेना बन्द कर दिया गया था। केवल वह दूध दुहने के लिए दोनों समय आता था। वह गौरा का दुश्मन हो गया था। उसके दिल में यह भावना पैदा हो गई थी कि गौरा के कारण ही उसके दूध के घंधा बन्द हो गए हैं। इसलिए किसी दिन मौका पाकर उसने सुई गुड़ के साथ गौरा को खिला दिया था जो उसके हृदय में जाकर चूभं गई थी। यह रहस्य चिकित्सकों के निरीक्षण परीक्षण, एक्स-रे आदि द्वारा उद्घाटित हुआ था। कानूनी कार्यवाही के लिए आवश्यक प्रमाण तो नहीं थे। लेकिन ग्वाले के भाग जाने से यह विश्वास हो गया था कि एक गोपाल देश का ग्वाले गौरा का हत्यारा था। गौरा मृत्यु के साथ संघर्ष करते हुए एक दिन मर गई। उसकी मृत्यु का दुःख सहना महादेवी वर्मा के लिए बहुत कठिन सिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
”अपने उत्तरदायित्व का झान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है”- “पंच परमेश्वर-कहानी के आधार पर सिद्ध करें।
अथवा, पंच की जुबान से खुदा बोलता है।’-पंच परमेश्वर कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए।
अथवा, “पंच परमेश्वर’–कहानी का सारांश लिखिए।
उत्तर:
“पंच परमेश्वर”-कहानी के प्रणेता कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द है। ये ग्रामीण परिवेश के जीवन शैली को अभिव्यजना देनेवाले हिन्दी के सबसे बड़े और सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार हैं। इन्होंने पराधीन भारत के किसानों की समस्या और मध्यवर्गीय परिवार के कुप्रवृत्तियों, मनोवृत्तियों और विसंगतियों का यथार्थ वर्णन किया है।

‘पंच परमेश्वर’-शीर्षक कहानी में लेखक ने गांव की पंचायत व्यवस्था पर प्रकार डाला है। पंच परमेश्वर होते हैं। गांव की पंचायत की निष्पक्ष फैसला का रोचक उल्लेख किया गया है। जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गहरी दोस्ती है। जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला थी। खाला के पास तीन बीघा भूमि है। जुम्मन और उसकी पत्नी खाला को आजीवन परवरिश का आश्वासन देकर जमीन अपने नाम रजिस्ट्री करवा लेता है जमीन की रजिस्ट्री के कुछ ही दिन बाद खाला की घोर उपेक्षा होने लगता है। उसे खाने और कपड़े के लिए परेशान किया जाता है। वह जुम्मन के खिलाफ पंचायत बैठाती है।

अलगू चौधरी दोनों पक्ष के पंच चुने जाते हैं। यदि अलगू चौधरी जुम्मन के बचपन के मित्र थे तथापि पंच बनकर उन्होंने सही फैसला दिया। अलगू के फैसले से खाला को तो अपनी भूमि मिल गयी, लेकिन जुम्मन अलगू के शत्रु बन गये। दोनों में बिगाड़ हो गया। जुम्मन बदला लेने के लिए तैयार हो गये। कुछ ही दिनों के उपरान्त उन्हें बदला लेने का अवसर मिल गया। अलगू चौधरी और समझ साहु के बीच बैल के दाम के लिए विवाद हुआ। अलगू चौधरी अपना एक बैल समझू साहु को उधार में बेचा था। एक महीने के उपरान्त अलगू का बैल समझू के यहाँ मर गया। समझ साहु बैल का दाम नहीं देना चाहता था। दूसरी बार के पंचायत में जुम्मन शेख पंच चुने गये।

यद्यपि वे अलगू चौधरी से बदला लेने के घात में थे तथापि पंच के आसन पर बैठकर उन्हें अपने उत्तरदायित्व का बोध हुआ और उन्होंने बैल का पैसा देने का फैसला सुनाया। उन्होंने कहा जिस समय बैल खरीदा गया था। उस समय बैल को कोई बीमारी नहीं थी। अगर उसी समय बैल के दाम दे दिये जाते तो आज रुपये वापस लेने की बात नहीं होती। बैल की मृत्यु इस कारण हुई क्योंकि उससे कठोर काम लिया गया और उसके खाने-पीने का अच्छा प्रबंध नहीं किया गया। बैल के साथ समझू साहु ने बड़ी क्रूरता की। इस फैसले से सभी प्रसन्न हुए। अलगू चौधरी जोर से बाले-पंच परमेश्वर की जय ! जुम्मन ने अलगू से कहा कि आज मुझे ज्ञात हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है और न दुश्मन। पंच की जुवान से खुदा बोलता है।

‘पंच परमेश्वर’ एक आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी से न्याय करने की प्रेरणा मिलती है। अपने मित्रों के विरुद्ध भी ईमान की बात कहने की शिक्षा मिलती हैं। यह कहानी आज भी अत्यन्त । प्रासंगिक है। अनाथ की चल अचल सम्पत्ति हड़ने की प्रवृत्ति समाज में है। किसी लाचार के ध। न-दौलत, भूमि, आभूषण इत्यादि ठगने या अपने नाम करा लेने की कुप्रवृत्ति आज भी मौजूद है। किसी परिजन को पूरा विश्वास दिलाकर आजीवन परवरिश का वाद कर उसके हक की सम्पत्ति अपने नाम कराके उसे दर-दर की ठोकर खाने के लिए आज भी मजबूर किया जाता है। खाला एक ऐसी ही वृद्ध महिला का प्रतीक है, जो अपने हक के लिए संघर्ष करती है। खाला का पंचों पर विश्वास और पंच का फैसला कहानी का मुख्य प्रतिपाद्य है। यह कहानी पंच के उत्तरदायित्व बोधं और राग-द्वेष से परे निष्पक्ष न्याय पर आधारित एक आदर्शवादी कहानी है।

प्रश्न 3.
महादेवी वर्मा लिखित ‘गौरा’ शीर्षक रेखाचित्र का सारांश प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ लेखिका महादेवी वर्मा को अपनी छोटी बहन के द्वारा स्नेह और दुलार से पालकर भेंट की गयी एक गाय है जो लेखिका के यहाँ आकर विशिष्ट पहचान रखती है और वह इसलिए नहीं कि वह केवल देखने में प्रियदर्शिनी है अपितु वह लेखिका के यहाँ आकर सबसे हिल-मिल गयी है। यहाँ तक की उसकी विशालता को देखते हुए भी अन्य पशु-पक्षी अपनी लघुता से अन्तर करना जैसे भूल गये हैं। यह स्थिति वहाँ के कुत्ते-बिल्लियों के साथ भी है जो उसके पेट के नीचे और पैरों के बीच में प्रायः खेलते रहते हैं, जिनका सम्पर्क-सुख पाकर वह अपनी आँखें मूंदे खड़ी रहती है।

वह जब लेखिका के यहाँ आयी तब उसे देखकर उनके परिचितों और परिचारकों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। उसे लाल-सफेद गुलाबों की माला पहनाकर उसके माथे पर केशर-रोली का टीका लगाया गया। तत्पश्चात् घी का चौमुखा दिया जलाकर उसकी आरती उतारते हुए उसे दही-पेड़ा खिलाकर उसका नाम गौरा रख दिया गया तबसे वह गौसंगिनी अपने इसी गौरा नाम से लेखिका के यहाँ सम्बोधित की जाने लगी।

सचमुच गौरा प्रियदर्शिनी थी। उसकी कागजी बिल्लोड़ी आँखों का सौन्दर्य देखनेवालों को अपनी ओर विशेष रूप से आकर्षित करनेवाला था। उसके नेत्र हिरण के नेत्रों जैसे चकित विस्मय नहीं, आत्मविश्वास से भरे दिखायी देते थे, किन्तु उसकी अलस मंथर गति का एक अलग ही सौन्दर्य था।

लेखिका के यहाँ रहते-रहते गौरा धीरे-धीरे सबको इस तरह पहचान गयी थी कि पैर की आहट से ही वह सबको पहचानने लगी थी। फाटक में मोटर के प्रवेश करते ही बॉ-बॉ की ध्वनि करती हुई वह लेखिका को पुकारने लगती थी। यहाँ तक कि उसे चाय, नाश्ता और भोजन के समय का भी पता चल गया है। जरा भी विलम्ब होता तो वह रम्भाने लगती। वह अपने पास खड़े व्यक्ति के आगे अपनी गर्दन सहलाने के लिए बढ़ा देती फिर अपनी आँखें मूंद लेती।

गौरा ने एक वर्ष बाद एक बछड़े को जन्म दिया जिसका नाम लालमणि रखा गया। अब तो लेखिका के यहाँ दुग्ध महोत्सव ही आरम्भ हो गया।
सुबह-शाम वह लगभग बारह सेर दूध देने लगी थी। लालमणि के लिए कई सेर छोड़कर जो दूध होता उससे आस-पास के बाल-गोपाल से लेकर कुत्ते-बिल्ली सभी तृप्त होते। जब दुग्ध-दोहन किया जाता तब कुत्ते-बिल्ली सभी पंक्ति में बैठे दिखायी देते और तब तक वे प्रतीक्षा करते जब तक कि सबके पात्रों में दूध डाल नहीं दिया जाता। दूध पी लेने के बाद वे गौरा के चारों ओर उछलते-कूदते हुए अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन करते। गौरा भी इतनी अभ्यस्त हो गयी थी कि विलम्ब होने पर वह रम्भाने लगती थी।

जब गौरा के दुग्ध-दोहन की समस्या खड़ी हुई तब उसके लिए उस ग्वाले को ही नियुक्त कर लिया गया जो पूर्व में दूध दे जाता था।
किन्तु गौरा ने दो-तीन महीने बाद दाना-चारा खाना ही बन्द कर दिया, परिणामस्वरूप वह लगातार कमजोर होती चली गयी। चिकित्सकों के द्वारा उसे दिखलाया भी गया। एक्सरे से यह पता चला कि उसे सूई खिला दी गयी है जिस कारण उसका रक्त संचार रूकने की स्थिति में पहुंच गया है।

आखिरकार एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में चार बजे गौरा का मुख पत्थर की तरह भारी हो गया। गंगा में समर्पित करने के लिए उसके पार्थिव अवशेष को ले जाते समय जैसे करुणा का समुद्र उमड़ आया।

प्रश्न 4.
मंगर का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
‘मंगर’ बेनीपुरीजी का एक बड़ा ही विश्वासी हलवाहा था। वह था तो दरिद्र, पर दीन नहीं था। स्वाभिमान उसकी नस-नस में भरा था। वह इतना विश्वासी था और इतना डटकर काम करता था कि कहानीकार के बाबा उसे बहुत मानते थे। जहाँ दूसरे जनों को एक-एक रोटी मिलती थी वहां मंगर को डेढ़ रोटी मिलती थी। बिना कहे सुने वह खेता का काम बड़ी चौकसी से करता था।

‘मंगर’ को ‘बेनीपुरीजी’ के परिवार से बड़ा स्नेह था। उसे बच्चों से बड़ा प्रेम था। वह स्वयं ‘बेनीपुरीजी’ को कंधों पर ढोता था।
मंगर में लोभ छू न गया था। कहानीकार का उतना काम करता था, उनके सामानों की रखवाली करता था, पर कभी कुछ छूता न था। इसलिए वह न केवल कहानीकार के परिवार का विश्वासपात्र था, बल्कि सबों का विश्वासपात्र था।

मंगर देखने में तो काला-कलूटा था, पर था खूबसूरत। खूबसूरत इस अर्थ में कि उसके शरीर का गठन बहुत सुन्दर था-उसका स्वास्थ्य अच्छा था। और सच्चा सौन्दर्य तो अच्छे स्वास्थ्य में ही निवास करता है।

‘मंगर’ की मानवता महान थी। वह मनुष्यों को तो प्यार करता ही था, पशुओं को भी प्यार करता था। अपनी रोटी में से आधी रोटी वह बैल को खिला देता था। बैल को वह साक्षात महादेव समझता था। कहने को तो और लोग भी बैल को महादेव कहते थे, पर मंगर उसे महादेव मानता था।

मंगर हलवाहा में हमें एक सच्चरित्र मजदूर की झांकी मिलती है। यह सही है कि वह विद्वान नहीं है, आधुनिक सभ्यता का रंग उस पर नहीं चढ़ पाया है, पर उसमें जो गुण हैं. वे हमारे भारतीय ग्रामों के गुण हैं-हमारी मानवता के गुण हैं। अतः मजदूर होने के कारण मंगर भले ही छोट दीख पड़ता हो, पर मानवता के नाते वह महान है।

प्रश्न 5.
मंगर शीर्षक कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर:
रामवृक्ष बेनीपुरी जन-मानस के कलाकार थे। उनका विश्वास था कि भारत का जीवन गांवों में बसता है। अगर साहित्य जीवन का चित्रण है तो उसमें सम्पूर्ण जीवन का चित्र उपस्थित होना चाहिए। अब तक के कलाकार केवल महलों की ओर देखते आये थे। बेनीपुरी जी ने झोपड़ियों की ओर भी ध्यान दिया। अबतक जिन पात्रों की अवहेलना की गयी थी बेनीपुरी जी ने उनका उद्धार किया। ऐसे पात्रों में ‘मंगर’ भी एक है। वह एक साधारण हलवाहा है। उसे कौन जानता है? पर क्या हलवाहा एक आदमी नहीं है? उसके जीवन में रंगीनी है, सपने हैं, चढ़ाव-उतार हैं, आशा-निराशा है, हर्ष-विषाद है, व्यथा है, बेकली है, त्याग है, तपस्या है, संवेदना है। साहित्य इन भावों की अवहेलना कैसे कर सकता है।

‘मंगर’ के बहाने लेखक ने उस श्रेणी के सभी मजदूरों का चित्रण किया है। ऐसे मजदूरों के जीवन में अभाव रहता है। वे इतने दरिद्र हैं कि उनकी कमर में धोती भी नहीं रहती। जीवन भर ‘भगवा ही पहनकर रह जाते हैं। ऐसे दरिद्र जब बीमार पड़ते हैं तो उनके लिए दवा का भी प्रबन्ध नहीं होता है। बेचारे जीवन का भार ढोये जाते हैं।

मंगर एक देहाती हलवाहा है। उसका चित्रण भी बेमीपुरीजी ने बड़े ही स्वाभाविक वातावरण में किया है। अपनी अभिव्यक्ति के लिए लेखक ने देहाती शब्दों को भी लिया है। कुल मिलाकर मंगर कहानी में कहानीकार को अच्छी सफलता मिली है।

मंगर बेनीपुरी जी का हलवाहा था। वह कमर में वस्त्र के नाम पर केवल भगवा भर पहनता था। वह अपने काम में बड़ा दक्ष था। लेखक के बाबा और चाचा उसे बहुत मानते थे। मंगल था अभाव-ग्रस्त पर उसमें स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा था। क्या मजाल की कोई उसे खरी-खोटी सुना दे।

मंगर अपने काम में डटा रहता, इसलिए उसे अन्य मजदूरों से विशेष और अच्छी रोजा मिलती। वह लेखक को बहुत मानता था। कई बार लेखक उसके कन्धे पर चढ़ा था। वह बाहर से तो बेलौस मालूम पड़ता था, पर भीतर से बहुत कोमल एवं भावप्रवण था। ‘ पर्व त्योहार के अवसर पर मंगर के प्रति विशेष सहानुभूति दिखायी जाती थी। कभी-कभी उसे घोती भी मिलती। वह पहनता! पर भगवा पहनने के बाद भी वह सुन्दर लगता था। उसके । शरीर का गठन बड़ा ही सुव्यवस्थित और सुन्दर था। अतः लेखक को वह उसी रूप में अच्छा लगता था।

एक बार मंगर के सिर में दर्द हुआ। उसकी स्त्री भकोलिया जो कि एक आदर्श पत्नी थी कहीं से दालचीनी ले आयी और उसके सर पर उसका लेप लगा दिया। सर दर्द तो जाता रहा, पर साथ ही उनकी एक आँख भी जाती रही।

एक बार जाड़े के महीने में लेखक अपने गाँव गया। वह आराम से सोया था। जागने पर उसने एक आदमी को लड़खड़ाकर चलते देखा। वह ठीक से नहीं पहचान सका कि वह कौन है। बाद में मालूम हुआ कि वह तो मंगर है। वह एकदम जर्जर हो गया था। उसे देखकर लेखक के हृदय में करुणा उमड़ आयी।

प्रश्न 6.
भकोलिया का चरित्र चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
भकोलिया मंगर की पत्नी है। जैसा सीधा मंगर है, वैसी ही सीधी भकोलिया है। वह रंग में साँवली है। वह मंगर से विशेष स्वस्थ्य है। वह कर्मठ स्त्री है। वह इधर-उधर फुटकर काम करती है और कुछ कमा लाती है। पहले भकोलिया भी मंगर की तरह तमकती थी, झिझकती थी। उसका भी स्वभाव मंगर के स्वभाव के समान ही था। पर बाद में उसने अपने आपमें सुधार लाने का प्रयास किया। मंगर तो ज्यों का त्यों रहा, पर उसने अपने को परिस्थिति के अनुकूल बना लिया। वह घर-घर जाकर कुटान-पिसान का कार्य करती थी, गोबर पाथती थी, पानी भरती थी। इस प्रकार उसके स्वभाव में कोमलता आ गयी थी।

भकोलिया सेवा भाव से भरी थी। जब मंगर को अधकपारी उठी तो उसने बड़ी सेवा-भाव . की। इस प्रकार हम देखते हैं कि भकोलिया सामान्य देहाती औरतों से विशेषकर मजदूरों की औरतों से ऊपर उठी हुई थी।

प्रश्न 7.
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जीवन और व्यक्तित्व का जो परिचय प्रस्तुत किया है इस निबंध की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर शीर्षक निबन्ध में विश्वकवि के व्यक्तित्व के उन पक्षों पर दृष्टिपात किया है जो सामान्य लोगों की दृष्टि से ओझल हो जाते हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की महानता का आधार समर्पित भाव से सरस्वती की साधना है। उनकी साधना का एक मात्र उद्देश्य मनुष्यता की सेवा है। यही कारण है कि बिना किसी शैक्षणिक डिग्री के होते हुए भी वह अपने स्वाध्याय, अथक परिश्रम और व्यापक मानवीय दृष्टि के बल पर विश्व कवि के गौरव से विभूषित हुए।

उनका जन्म सन् 1861 ई० में हुआ था। उनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर थे। इस परिवार में अनेकों धार्मिक, दार्शनिक, साहित्य सेवी और शिल्पकार पुरुषों ने जन्म लिया है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर बचपन में ही माता के देहान्त के बाद महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर की निगरानी में आ गये।

स्कूल की साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद, घर पर ही रह कर शिक्षा प्राप्त करने लगे। बचपन से ही वह विचित्र बुद्धिमान होने का परिचय देना आरंभ कर दिया। 16 वर्ष की आयु में गद्य और पद्य दोनों में बहुत अच्छी योग्यता दिखाई। वह संगीत के प्रेमी थे।

पिता को वह गीत गाकर सुनाते थे। उनके गाने से प्रसन्न होकर पिता ने उनको “बंग देश की बुलबुल” की उपाधि दी थी।
संगीत विद्या के वह पूरे ज्ञाता थे। वह गीतों के बनाने और गाने में नये-नये सुरों का प्रयोग करते थे।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर बड़े देशभक्त कवि थे। उन्होंने मातृभूमि, देशप्रेम, देशभक्ति पर आधारित बहुत-सी कविताएँ लिखी हैं।

उनकी कविताओं में “गीतांजलि” विश्व प्रसिद्ध है। वह साहित्य में प्रथम भारतीय नोबल पुरस्कार पाने वाले कवि थे।
ज्ञान-वृद्धि के लिए उन्होंने केवल सम्पूर्ण भारत में ही भ्रमण नहीं किया, अपितु यूरोप, अमेरिका, जापान भी घूम आये। “शांति निकेतन” रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक उत्तम यादगार है जो आज विश्व भारती, विश्वविद्यालय बन गया है।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने सैकड़ों पुस्तकें बंगला में लिखा है। वह अंग्रेजी भाषा में लिखने की अच्छी योग्यता रखने पर भी वह देशी भाषा में लिखना अच्छा समझते थे। वह वास्तव में मानव सेवा, प्रीति, कल्याणकारी, उपकार और सरस्वती की सेवा करने की भावना से काम कर रहे थे।

प्रश्न 8.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने साहित्य सेवियों के कर्त्तव्य पर क्या विचार प्रकट किया है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जब यह देखा कि साहित्य सेवियों में पारस्परिक प्रीति का अभाव है जिसको उन्होंने अच्छा नहीं समझा। इस अभाव को दूर करने के लिए अपनी सम्मति इस प्रकार प्रकट की है।

“इसमें संदेह नहीं कि साधारणतः मनुष्यों में पारस्परिक प्रीति का होना कल्याणकारी है। साहित्य सेवियों में प्रीति विस्तार विशेष फल की प्राप्ति हो सकती है। यदि लेखक लोग एक-दूसरे को प्यार करते हैं तो उनकी रचनाओं में भी विद्या, बुद्धि के अमृत फल मिलेगा और सरस्वती की सेवा तो होगी।
साहित्य सेवियों में साम्प्रदायिकता नहीं होना चाहिए। ईर्ष्या और कलह की भावना भी हानिकारक होती है।

प्रश्न 9.
हरिशंकर परसाई के “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” शीर्षक निबंध की समीक्षा प्रस्तुत करें।
अथवा, मठित निबंध “ठिठुरता हुआ गणतंत्र” में हरिशंकर परसाई के विचारों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
“ठिठुरता हुआ गणतंत्र” में हरिशंकर परसाईजी की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर व्यंग्य है। वह इस दावे पर व्यंग्य करते कि देश के सभी राज्य हर क्षेत्र में तीव्र गति से विकास कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की राजधानी दिल्ली में हर राज्य की ओर से दिखाई जानेवाली झांकियां अपने आप में एक बड़ा परिहास होती हैं। पिछले वर्ष राज्य अपने जिन काले कारनामे के लिए प्रसिद्ध हुए थे। राज्यों को उन्हीं की झाँकी दिखलानी चाहिए, लेकिन वे तो अपने विकास और श्रेष्ठता प्रदर्शित करने वाली झांकियां दिखलाते हैं।

हरिशंकर परसाईजी लिखते हैं कि हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र समारोह के अवसर पर मौसम खराब रहता है। शीत लहर आती है। बादल छा जाते हैं। बूंदा-बांदी वर्षा होती है और सूर्य छिपा रहता है। हर गणतंत्र दिवस पर मौसम ऐसा ही धूपहीन ठिठुरने वाला होता है। इस रहस्य की खोज करने पर हरिशंकर परसाईजी को उनके एक मित्र कांग्रेसी मंत्री ने बताया कि गणतंत्र दिवस को सूर्य की किरणों को मनाने की कोशिश हो रही है। इतने बड़े सूर्य को बाहर लाना या उसके सामने से बादलों को हटाना आसान नहीं है, हमें सत्ता में रहने के लिए कम-से-कम सौ. वर्ष तो दीजिए।

इस पर हरिशंकर परसाईजी कहते हैं कि हाँ ! सौ वर्ष दिए, मगर हर साल उसका कोई छोटा कोना निकलता तो दिखना चाहिए। सूर्य कोई बच्चा तो है नहीं जो अंतरिक्ष की कोख में अटका है। जिसे एक दिन आपरेशन करके निकाला जा सकता है।

हरिशंकर परसाईजी कहते हैं कि कांग्रेस का दो भागों में विभाजन हो गया है। सूर्य को गणतंत्र दिवस पर बाहर निकालने का दावा कुछ कमजोर होने लगा। जब फिर एक काँग्रेसी से पूछा गया तो उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हम हर बार सूर्य को बादलों से बाहर निकालने की कोशिश करते थे, पर हर बार सिंडिकेट वाले अडंगा डाल देते थे। अब हम वादा करते हैं कि अगले गणतंत्र दिवस पर सूर्य को निकाल कर दिखाएंगे।”

काँग्रेसी नेता की ये बातें सुनकर एक सिंडिकेटी मित्र बोल पड़े “ये लेडी प्रधानमंत्री कम्युनिस्टों के चक्कर में आ गई है वही उसे उकसा रहे हैं कि सूर्य को निकालो उन्हें उम्मीद है कि बादलों के पीछे से उनका प्यारा “लाल सूरज निकलेगा” ! वास्तव में सूर्य निकालने की क्या जरूरत है ? क्या बादलों को हटाने से काम नहीं चल सकता है ?

इस बात को सुनते ही एक जनसंघी भाई जो अब भारतीय जनता पार्टी में हैं, कहने लगे कि “सूर्य गैर काँग्रेसवाद पर अमल कर रहा है। यदि सूर्य सेक्युलर होता है तो इस सरकार की परेड · में निकल आता। इस सरकार से आशा मत करो केवल हमारे राज्य में ही सूर्य निकलेगा”। इस प्रकार अनेकों दृष्टिकोण से बातें आती रहीं। एक साम्यवादी ने कहा “यह सब सी० आइ० ए० का षड्यंत्र है। सातवें बेड़े से बादल दिल्ली भेजे जाते हैं।”

यह भी कैसी आश्चर्य की बात है कि स्वतंत्रता दिवस पर भारी बरसात होती है। स्वतंत्रता दिवस भीगता है और गणतंत्र दिवस ठिठुरता है। ठिठुरते गणतंत्र दिवस के अवसर पर ओवर कोट से हाथ बाहर निकालना बहुत कठिन होता है लेकिन रेडियो से प्रसारित समाचार में यह कहा जाता है कि करतल (तालियों) की ध्वनि के साथ प्रधानमंत्री और विदेशी मेहमान का स्वागत हो रहा है। ठिठुरते गणतंत्र दिवस पर तालियों की ध्वनि अर्थहीन होती है। परन्तु भारत तो “सत्यमेव जयते” का प्रचारक है। यहां झूठ बोलना पाप है। इसी प्रकार राज्यों की झांकियां भी विकास की झूठी प्रचार करती दिखाई देती हैं। भारत में केवल गणतंत्र दिवस ही ठिठुरण का शिकार नहीं है बल्कि समाजवाद, धर्म निरपेक्षता, सहकारिता इत्यादि भी ठिठुर रहे हैं। यहाँ छीना-झपटी और अफसरशाही का राज है।

प्रश्न 10.
“पंच की जुबान से खुदा बोलता है।”-पंच परमेश्वर कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘पंच परमेश्वर’ नामक बहुचर्चित कहानी के लेखन कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचन्द है। इस कहानी में गाँव की पंचायत व्यवस्था का आदर्श रूप प्रस्तुत किया गया है। जुम्मनशेख और अलगू चौधरी गहरे मित्र हैं। दोनों में बचपन की दोस्ती है।

जुम्मन की खाला जुम्मन के खिलाफ पंचायत बैठाती है, तब वह अपना पंच अलगू चौधरी को चुनती है। अलगू जुम्मन के घनिष्ठ मित्र होते हुए भी न्याय का पक्ष लेता है और खाला के हक में फैसला सुनाता है।

गाँव में दूसरी बार अलगू चौधरी समझू साहु के विरुद्ध पंचायत बुलाता है। इस बार जुम्मन शेख दोनों तरफ के पंच चुने जाते हैं। यद्यपि जुम्मन प्रतिशोध की आग में जल रहा था। वह अलगू से बदला लेना चाहता था। तथापि अवसर मिलने पर भी वह न्याय का पक्ष लेता है और अलगू के पक्ष में फैसला सुनाता है।

इन दो घटनाओं से सिद्ध होता है कि पंच न किसी का दोस्त होता है और न दुश्मन। वह न्याय का पक्ष लेता है। पंच की जुबान से खुदा बोलता है। पंच परमेश्वर होता है। ‘पंच परमेश्वर’ एक आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी से न्याय करने की प्रेरणा मिलती है। अपने मित्रों या शत्रुओं के विरुद्ध भी ईमान की बात कहने की शिक्षा मिलती है। यह कहानी आज भी अत्यन्त प्रासंगिक है।

प्रश्न 11.
“दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंच के दिल में खुदा बसता है।” – पंच परमेश्वर कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘पंच परमेश्वर’ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित एक आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी में पंच की ईमानदारी को प्रतिष्ठापित किया गया है। पंच न किसी का दोस्त होता है और न दुश्मन। अलगू चौधरी और जुम्मन शेख में गहरी दोस्ती है। दोनों में दाँत काटी रोटी का संबंध है। लेकिन जब जुम्मन शेख की खाला पंचायत में अपना पंच अलगू चौधरी को चुनती है तो उसे विश्वास है कि पंच के दिल में खुदा बसता है। जब खाला पंचायत में आने के लिए अलगू को बुलाने जाती है तो यह कहता है कि वह तो जुम्मन का दोस्त है।

यह कुछ बोलेगा तो दोस्ती में बिगाड़ हो जाएगा। प्रायः लोग दोस्त से बिगाड़ के डर से सत्य बात नहीं कहते हैं। खाला अलगू से कहती है कि बेटा क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहोगे। खाला के जाने के बाद अलगू की आत्मा जाग जाती है। वह पंचायत में जाता है। पंच चुने जाने पर वह न्याय का पक्ष लेता है। यद्यपि वह जुम्मन का दोस्त है तथापि वह दोस्ती के लिए अपना ईमान नहीं बेचता है। वह बिगाड़ के डर से चुप नहीं रहता है। वह अपने मित्र के विरुद्ध खाला को न्याय दिलाता है।

निश्चय ही दोस्ती बड़ी चीज है लेकिन सत्य उससे भी बड़ी चीज है। जाति, धर्म, क्षेत्र, मित्र, परिजन का जीवन में विशेष महत्त्व है, लेकिन ईमान सर्वोपरि है। ईमान बेचकर मित्र या परिजन को मदद करना उचित नहीं है। प्रायः लोग मित्र या परिजन का प्रत्येक परिस्थिति में पक्ष लेते हैं। मित्र के हित में ईमान को दबा देते हैं। मित्र से बिगाड़ के डर से सदैव मित्र के पक्ष में बोलते हैं। लेकिन यह कहानी मैत्री की पृष्ठभूमि पर ईमान पर दृढ़ रहने की प्रेरणा देता है। अलगू चौधरी मित्र होकर भी जुम्मन के अन्याय के विरुद्ध बोलता है और जुम्मन बदले की आग जलते हुए भी अलगू के पक्ष में बोलता है। अभिप्राय यह कि न्याय या ईमान दोस्ती या दुश्मनी से परे होता है।