Bihar Board 12th Hindi 50 Marks पद्य खण्ड Important Questions Short Answer Type

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Bihar Board 12th Hindi 50 Marks पद्य खण्ड Important Questions Short Answer Type

निम्नलिखित उद्धरणों का भाव स्पष्ट करें :

प्रश्न 1.
रहिमन, पानी राखिये, बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरें, मोती मानुस, चून ।।
उत्तर:
महाकवि रहीम द्वारा रचित इस दोहे में उत्तम चरित्र की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। यहाँ पानी श्लिष्ट पद है, जिसका तीन अर्थ है- चमक, इज्जत और जल । मोती, मनुष्य और चूना-ये तीनों पानी के बिना व्यर्थ हैं। मोती से चमक समाप्त हो जाए तो यह व्यर्थ हो जाता है। चूना से चल समाप्त हो जाए तो वह किसी काम का नहीं रहता। इसी प्रकार मनुष्य चरित्र-हीन हो जाए तो व्यर्थ हो जाता है।

चारित्रिक पतन आधुनिक युग की सबसे गंभीर समस्या है। डॉ० बृजनन्दन प्रसाद का कथन . है कि मुगलकालीन कवि रहीम का यह दोहा आधुनिक संदर्भ में अत्यन्त प्रासंगिक हैं।

प्रश्न 2.
थनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत आधार ।
उपघि वड़ाई कौन है, जगत पियासो जाइ।
उत्तर:
महाकवि रहीम ने इस दोहे में महासागर की अपेक्षा लघु जलाशयों को अधिक उपभोगी घोषित किया है। कवि रहीम कहते हैं धन्य हैं वे लघु जलाशय जहाँ छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाते हैं। महासागर की बड़ाई क्यों की जाए, जो किसी जीव की प्यास नहीं बुझा सकता।

अभिप्रायः यह कि व्यक्ति के जीवन में छोटे-छोटे लोग ही उपयोगी और सहयोग होते हैं। बड़ी वस्तु और व्यक्ति देखने-सुनने के लिए होते हैं। फिर मात्र विशालता और विराटता के आधार किसी के महत्ता क्यों स्वीकारा जाए । रहीम ने एक अन्य दोहा में कहा है- रहिमन देखी बड़न को लघु न दीजिए डार।

प्रश्न 3.
रहिमन, राज सराहिये, ससि सम सुखद जो होइ।
कहा बापुरो भानु है, तपे तरैयनि सोइ ॥
उत्तर:
प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने अच्छे राज प्रशासन के मापदण्ड निर्धारित किया है। . वे स्वयं मुगल सम्राट अकबर के दरबारी थे। उसी राज-व्यवस्था की प्रशंसा होनी चाहिए जो चन्द्रमा की तरह शीतल प्रकाश देने वाला हो, सूर्य की तरह अपने ताप से जलाने वाला नहीं हो।
सूर्य अपनी तीखे प्रकाश से सभी को जलता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रकाश शीतल होता है। अभिप्राय यह कि राज कल्याणकारी होना चाहिए। राज व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि प्रजा सुख -चैन अनुभव करे।

प्रश्न 4.
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय ।
सुन अठिलै हैं लोग सब, बाँटिन लौहैं कोय ॥
उत्तर:
प्रस्तुत दोहे में महाकवि रहीम ने मन की व्यथा गोपनीय रखने का परामार्श दिया था। लोग दूसरों के दुःख सुनकर उपहास करते हैं, सच्ची सहानुभूति नहीं व्यक्त करते हैं। कोई किसी का दुःख में सहभागी नहीं होता। कुछ लोग तो ऐसे होते हैं। जो अपने सुख से नहीं, बल्कि दूसरों के दुःख से सुखी होते हैं और दूसरों के सुख से दुःखी होते है।

ऐसे समाज में निश्चय ही व्यक्ति को अपने दुःख का बखान हर जगह नहीं करना चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि दुःख मौखिक अभिव्यक्ति चाहता है। दुःख की अभिव्यक्ति से मन हल्का होता है। डॉ० बृजनन्दन प्रसाद का कथन है कि रहीम के इस दोहे में आशिक सत्यता है। यह दोहा किसी विशिष्ट परिस्थिति के लिए है। सदैव दु:ख-दर्द को गोपनीय रखना घातक भी हो सकता है।

प्रश्न 5.
रहिमन ये नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनसे पहले ये मरे जिन मुख निकसत नाहिं ।।
उत्तर:
इस नीति मूलक दोहे में कवि रहीम ने मांगने की प्रवृत्ति की घोर निन्दा की. है साथ ही असयोग की मनोवृत्ति और भी अधिक निन्दनीय माना है। जो व्यक्ति याचना हेतु कहीं गया तो वह मरा हुआ हो अर्थात् उसका आत्मसम्मान मर गया। उसका मान-सम्मान खत्म हो गया, लेकिन याचक से भी गये-बीते वे हैं जो मांगने वाले को निराश करते हैं। याचक को नहीं कहने वाला याचक से भी दीन-हीन है।

अभिप्राय यह कि महाकवि रहीम याचना को निकृष्ट कर्म माना है, लेकिन दान को उत्तम कर्म माना है। वे स्वयं महादानी थे। निश्चय ही याचक की सहायता श्रेयस्कर है। कृपणतावश असहयोग निकृष्ट कर्म है।

प्रश्न 6.
जो रहीम ओछौ बढ़े,…………………
उत्तर
प्रस्तुत दोहा कवि रहीम द्वारा रचित है। इसमें क्षुद्र बुद्धि के व्यक्तियों की चर्चा की गयी है, उनके स्वभाव पर प्रकाश डाला गया है। रहीम कवि कहते हैं कि यदि नीच व्यक्ति अवसर पाकर या किसी अन्य कारण से वैभवशाली-समृद्धिशाली हो जाता है तो उसके चित्त में अहंकार भयंकर रूप से फैल जाता है, वह अपने वैभव पर इतराने लगता है तथा जीवन की सहज, स्वाभाविकता भूलकर घमण्ड के मद में चूर होकर व्यवहार करना शुरू कर देता है। उदाहरण के रूप में, कवि ने शतरंज के एक मोहरे ‘प्यादा’ की चर्चा की है।

प्यादा शतरंज के मोहरों में सर्वाधिक दुर्बल और महत्त्वहीन होता है, पर रेंगते-रेंगते जब वह आखिरी घर में पहुंचता है तब वह ‘फरजी’ (शतरंज का बहत अधिक महत्त्वपर्ण मोहरा) बनकर महत्त्वपर्ण साबित होता है। तब उसकी चाल भी टेढ़ी हो जाती है-जबकि प्यादा बने रहने तक उसकी चाल सीधी रहती है। क्षुद्र नदी की तरह थोड़ा कुछ पाकर घमण्ड में चूर हो जाना नीच व्यक्तियों का लक्षण है। महान् तो विशाल सागर की तरह व्यापक और गंभीर बना रहता है। विनीतता, नम्रता, सुशीलता आदि उसके आभूषण है।

प्रश्न 7.
जग में सचर-अचर जितने हैं सारे कर्म-निरत हैं।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।
उत्तर:
‘जीवन संदेश’ की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मानव को उसके कर्त्तव्य के बारे में बता रहा है। अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को भूलकर, प्रकृति के सौंदर्य से डूबे हुए उदास मानव को सम्बोधित करते हुए कवि कहता है कि यह संसार हमारी कर्मस्थली है। यहां सभी को अपने कर्तव्य का निर्वाह करना पड़ता है। देखो, संसार में जितने जड़, चेतन और स्थावर पदार्थ हैं सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं। इस संसार के प्रत्येक प्राणी के जीवन का एक निश्चित उद्देश्य है, जिसकी पूर्ति के लिए वह जीवन भर प्रयत्न करता रहता है। उदाहरण के लिए किसी वृक्ष की तुच्छ पत्तियों को देखें तो ये पत्तियाँ छाते की भांति वृक्ष के चारों ओर छाई रहती है, जिन्दगी भर धूप सहती है और इस प्रकार कष्ट सहकर भी परोपकार के अपने उद्देश्य को पूरा करती रहती है।

प्रश्न 8.
भारत माता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल
उत्तर:
कवि श्री सुमित्रानंदन पंत कहते हैं कि भारत माता ग्रामवासिनी है अर्थात् भारत माता की आत्मा गाँव में निवास करती है। भारतीय किसान, खेतों में काम करते हैं। केवल किसान ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार खुले आकाश के नीचे प्रात:काल से संध्या तक, खेतों और मैदानों में खेती तथा पशु चरण कार्य में लगे होते हैं। फिर भी वे बहुत ही गरीब और पिछड़े हुए हैं। धूल-भरा मैला-सा आँचल उनकी गरीबी का चिह्न है। उनका उदास चेहरा, आँसू भरी आँखें दुःख की प्रतिमा है। कवि की कल्पना है कि भारत माता अपने संतानों को दुःखी देख कर आँसू बहाती है। गंगा-यमुना में भारत माता के आँसू का जल प्रवाह के रूप में बह रहे हैं।

प्रश्न 9.
जब गरजे मेघ, पपीहा बोलें-डोलें गुल जारो में
लेकिन काँटों की झाड़ी में बुलबुल का गानक ही सुन्दर
तेरी मुस्कान कहीं सुन्दर
उत्तर:
कवि श्रीमान गोपाल सिंह नेपाली जी कहते हैं कि प्रकृति का सौन्दर्य, मेघों के गरजने में, पपीहा की बोली में तथा बुलबुल के गानों में मिलते हैं। लेकिन मानव द्वारा लिखी गई कविताओं, गीतों और भजनों में जो कल्पनाएँ, स्वर, शब्द, संगीतमय मधुर आवाज और स्वाद मिलता है वह बहुत ही सुन्दर और महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 10.
रवि जग में शोभा सरसाता सोम सुधा बरसाता।
उसी पूर्ति में वह करता है अन्त कर्ममय तन का॥
उत्तर:
कवि कहता है कि सूर्य इस संसार को शोभा प्रदान करता है और चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है। सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं। कोई भी आलसी होकर बैठा हुआ नहीं रहता है। अत्यन्त तुच्छ घास के इस छोटे से जीवन का भी उद्देश्य दिखलाई पड़ता है और उसी ध्येय की पूर्ति में वह अपने कर्तव्यमय जीवन का अन्त कर देती है।

प्रश्न 11.
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-विकसित जन्म तुम्हारा। ……
क्या कर्तव्य समाप्त कर लिये तुमन निज जीवन में ?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘जीवन-संदेश’ शीर्षक कविता उद्धृत है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि व्यक्ति को निरन्तर कर्मशील रहने की प्रेरणा देते हैं। कवि चल-अचल और जड़ चेतन का उदाहरण देकर मनुष्य को कर्मशील होने की प्रेरणा देते हैं।
मनुष्य प्रकृति का सर्वाधिक विकसित और सभ्य प्राणी है। अन्य प्राणी जिनके पास बुद्धि और विवेक नहीं है, वे अपने-अपने कर्म में लगे रहते हैं। फिर मनुष्य बुद्धिमान और विवेकशील होकर अपने कर्तव्य से विमुख क्यों है? क्या यह जीवन उद्देश्य रहित है ? मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्य और कर्तव्य पर विचार क्यों नहीं करता ?

प्रश्न 12.
जिस पर गिरकर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है। ………….
जिसका रूप विलोक तुम्हारे दृग, मन, प्राण जुड़ाये।।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों में श्री रामनेरश त्रिपाठी कर्मण्यता का उपदेश दे रहे हैं। कवि कहता है कि जिस धरती पर पेट रूपी खोह से निकल कर तुमने जन्म लिया है, जिस धरती का अन्न खाकर तथा अमृत रूपी जल पीकर तुम बड़े हुए हो, जिस पर खेल-कूदे तथा घर बसाकर सुख प्राप्त किया है, जिसका रूप-सौंदर्य निहार कर तुमने अपने मन, आँखों तथा प्राणों को जुड़ाया है, क्या उस धरती माता के प्रति तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है ?

प्रश्न 13.
तीस कोटि संतान नग्न तन ……… तरु तल-निवासिनी।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारत के निवासियों की दुर्दशा का वर्णन किया है। भारतमाता की तीस करोड़ संतानें हैं, अर्थात् यहाँ की जनसंख्या तीस करोड़ है। विदेशियों के शोषण के कारण यहाँ के लोग अर्द्ध-नग्न हैं अर्थात् उनके पास तन ढंकने के लिए पूरा वस्त्र नहीं है। उन्हें भूख मिटाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिलता, वस्तुतः वे अर्द्ध-क्षुधित हैं, शोषित हैं और साधनहीन हैं। वे मूर्ख, असभ्य, अशिक्षित और निर्धन होकर वृक्ष के नीचे रहनेवाले आदिकालीन मनुष्यों की तरह नतमस्तक हैं, यानी दर्पहीन हैं। ___ यहाँ कवि ने परतंत्र भारत का चित्र अंकित किया है। आज देश स्वतंत्र है। यहाँ के शासक .
भारतीय हैं। पर, भारतमाता की संतान की दशा आज भी लगभग वही है जैसी पहले थी।

प्रश्न 14.
दुनिया देखी पर कुछ न मिला, तुझको देखा सब कुछ पाया
संसार ज्ञान की महिमा से, प्रिय की पहचान कहीं सुन्दर
तेरी मुस्कान कहीं सुन्दर
उत्तर:
श्री गोपाल सिंह ‘नेपाली’ कहते हैं कि मानव को ईश्वर ने ज्ञान, ध्यान, चेतना, साहस और सौन्दर्य प्रदान की है। वह कठिनाइयों में कभी पीछे नहीं हटता है। आगे बढ़ने और बढ़ते रहने का मार्ग खोज लेता है। जब वह कठिनाइयों और अंधकार पर विजय प्राप्त करता है तो उसके मुंह पर मुस्कान झलकती है जो बहुत ही सुन्दर होती है।

प्रश्न 15.
स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित ………, राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी।
उत्तर:
प्रस्तुत पक्तियों में कवि भारत की. दुर्दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि शस्य । श्यामला भारत-भूमि आज परतंत्र है। यहाँ का अन्न-धन दूसरों के पैरों द्वारा रौंदा जा रहा है, अर्थात् यहाँ का अन्न दूसरों के अधीन है (जिसे हम ले नहीं सकते)। इसलिए भारतमाता का मन पृथ्वी की तरह शान्त और सहनशील होकर विदेशियों के शोषण से कुण्ठित हो उठा है। भारतमाता के अघर (अनवरत रोते रहने के कारण) वेदना से कांपने लगे हैं। उसके अधरों की मुस्कुराहट गायब है, खामोश है। जिस तरह शरद की पूर्णिमा के अत्यन्त सुन्दर चांद को राह आस लेता है उसी प्रकार भारतमाता के मुख-चन्द्र की निर्मल हंसी को विदेशी शासक-रूपी राहु ने ग्रस लिया है।

प्रश्न 16.
वह स्नेह की पूर्ति दयामयि माता-तुल्य मही है।
उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री रामनरेश त्रिपाठी द्वारा लिखित ‘जीवन-संदेश’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।
विवेच्य पक्तियों में मातृभूमि की महिमा का उल्लेख किया गया है। धरती माता के समान ममतामयी और दयामयी होती है। पृथ्वी माता सदृश है। वह स्नेह की मूर्ति है। जिस प्रकार एक मां अपनी संतान की सारी जरूरतें पूरी करती हैं, उसी तरह यह धरती हमारी सारी जरूरतें पूरी करती हैं। यह धरती हमें खाने के लिए अन्न, पीने के लिए जल, पहनने के लिए वस्त्र और रहने के लिए घर प्रदान करती हैं। इसी लिए कवित धरती को माता-तुल्य कहते हैं। मातृभूमि के प्रति कर्तव्य बोध की प्रेरणा देते हुए कवित पूछते हैं कि उसके प्रति तुम्हारा कोई उत्तरदायित्व नहीं है ? अभिप्राय यह कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य जन्मभूमि के प्रति है। जन्मभूमि की सेवा प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।

प्रश्न 17.
यह जीवन क्या है? निर्झर है ………
उत्तर:
आरसी प्रसाद सिंह रचित ‘यह जीवन क्या है ? निर्झर है’ की चारों पक्तियाँ इस प्रकार हैं-
यह जीवन क्या है ? निर्झर है,
मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से
चल रहा राह मनमानी है।

मनुष्य का जीवन गतिशीलता का पर्याय है। गति ही जीवन है। यह निर्झर के समान गतिशील है। निर्झर में पानी बहता है। जीवन मस्ती-मौज में आगे बढ़ता है। जीवन प्रेम में आगे बढ़ता है।

मनुष्य के जीवन में सुख और दुख आते-जाते हैं। मानो जीवन के ये दो किनारे हैं। यह मनमानी सुख-दुख के मध्य गतिशील रहता है। निर्झर भी इसी तरह अपनी मंजिल की तरफ गतिशील रहता है।
‘जीवन का झरना’ में जीवन को झरने के समान गतिशील कवि ने माना है।

प्रश्न 18.
मानचित्र पर जो मिलता है, नहीं देश भारत है।
भू पर नहीं, मनों में हो, बस कहीं शेष भारत है।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘हिमालय का संदेश’ शीर्षक कविता से ली गयी है। दिनकर जी क्रांतिधर्मी कवि हैं।
विवेच्य पक्तियों में कवि ने भारत की अवधारणा व्यापक पृष्ठभूमि पर की है। भारत केवल भूमिखंड नहीं है। विश्व के मानचित्र पर जो भौगोलिक भूमि खंड दिखाई देता है, मात्र वही भारत नहीं है। भारत भूमि पर नहीं, बल्कि लोगों के मन में है। मन में अच्छे विचार और संस्कार होते हैं उन्हीं अच्छे विचारों और संस्कारों में भारत है। मन में भारत होने का तात्पर्य एक विशिष्ट संस्कृति और संस्कार से है। भारत एक विशिष्ट संस्कृति है। एक विशिष्ट जीवन-शैली है। मात्र भूमि भारत नहीं है।

प्रश्न 19.
ज्यों रहीम गति दीप की ……..
उत्तर:
प्रस्तुत दोहा रहीम द्वारा रचित है। कवि रहीम कहते हैं कि जो दशा दीपक की होती है वही दशा कुल के कपूत की भी होती है। कुल में यदि कोई लड़का पैदा होता है तो कुल वालों को प्रसन्नता होती है। वे सोचते हैं कि आगे चलकर यह कुल को प्रकाशित करेगा। किन्तु जब कपूत बढ़ता है तो वह कुल को अपने काले कारनामों से अंधकार में डाल देता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कोई दीपक यदि जलाया जाता है तो प्रकाश लाता है और जब वह बुझ जाता है तब कुल में अंधकार छा जाता है।

प्रश्न 20.
जहाँ कहीं एकता अखंडित
जहाँ प्रेम का स्वर है।
देश-देश में खड़ा वहाँ
भारत जीवित भास्वर है।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘हिमालय का संदेश’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके प्रणेता राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं।
विवेच्य पंक्तियों में कवि में राष्ट्र की एकता और अखंडता के महत्त्व का प्रतिपादन किया हैं जिस भूखण्ड में मिल-जुल कर रहने की प्रवृत्ति हो, जहाँ भ्रातृत्व भाव हो, जहाँ बन्धुत्व हो, वहाँ भारत है। जिस देश में जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर बैर भाव नहीं हो, . वहाँ भारत है। यहाँ भारत की कल्पना एक विशिष्ट संस्कृति के रूप में की गयी है।

प्रश्न 21.
जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर बड़े हुए हो। …………………..
‘ छोड़ उन्हें कायर बनकर तुम भाग बसे निर्जन में।।
उत्तर:
कवि कहता है-जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर तुम बड़े हुए हो और बाधाओं में भी इस विशाल शरीर के साथ निर्भय खड़े हो, जिनके बनाये हुए वस्त्रों से तुमने अपना शरीर ढंका है और सर्दी-गर्मी-वर्षा से अपने शरीर को पीड़ित होने से बचाया है, क्या उनका कुछ भी उपकार तुम पर नहीं है ? उनके प्रति क्या तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है.? तुम कायर के समान उन्हें दुःख की अग्नि में जलते हुए छोड़कर निर्जन वन में भाग आये हो। तुम उनके दुःखों को सुनकर केवल विचलित होते हो किन्तु उनके दुःखों को दूर करने का प्रयास नहीं करते-यह मनुष्य जाति के लिए घोर निन्दा तथा लज्जा का विषय है। तुम शुद्ध प्रेम के मर्म तथा उसकी महिमा से परिचित हो किन्तु प्रेम-पीड़ा से तुम्हारा चित्त क्या व्याकुल नहीं होता?

प्रश्न 22.
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन, ………. अपने घर में प्रवासिनी।
उत्तर:
‘भारतमाता ग्रामवासिनी’ की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने परतंत्र भारत की दुर्दशा का चित्र अंकित किया है। भारतमाता के मुख पर दीनता छायी हुई है। उसकी दृष्टि झुकी हुई है, परन्तु अपार बेबसी और विमूढ़ता के कारण खुली-की-खुली है। घोर निराशा से जैसे उसकी आँखें पथरा गयी हैं और असह्य दुख के भार से उसकी पलक जैसे जड़वत हो गयी हैं। उसके अंधरों में एक मूक कराह व्याप्त है। तात्पर्य यह है कि भारतमाता की वाणी में. सदैव एक वेदना गूंजती रहती है, अर्थात् विदेशी शासकों के भय से वह खुलकर अपने दुःख और अपनी वेदना को व्यक्त नहीं कर सकती। युग-युग से भारतमाता गुलामी के अंधेरे में पड़ी है इसलिए उसका मन अत्यन्त उदास एवं विपण्ण है। भारतमाता अपने घर में रहकर भी प्रवासिनी हो गयी है। यहाँ विदेशियों का आधिपत्य है, स्वदेशी विदेशी हो गये और उनके सब अधिकार जाते रहे।