BSEB Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 3 are the best resource for students which helps in revision.
Bihar Board 12th Music Important Questions Short Answer Type Part 3
प्रश्न 1.
राग यमन में 16 मात्राओं के दो तान लिखें।
उत्तर:
राग यमन में 16 मात्राओं के दो तान इस प्रकार है-
- नीरे, गमे, पध, पमे, गमे, पमे, तारे, सासा
- नीरे, गमे, रेम, गमे, पध, पमे, गमें
प्रश्न 2.
सप्तक क्या है ? इसकी व्याख्या करें।
उत्तर:
सात स्वरों अर्थात् सा, रे, ग, म, प, ध, नि के समूह को सप्तक कहा जाता है। सप्तक तीन है जिन्हें स्थान भी कहा जाता है-
(i) मंद्र सप्तक,
(ii) मध्य सप्तक,
(iii) तार सप्तक।
(i) मंद्र सप्तक – साधारण या औसत आवाज से नीचे के स्वरों वाले सप्तक को ‘मंद्र सप्तक’ कहा जाता है। भातखंडे स्वर लिपि पद्धति के अंतर्गत मंद्र सप्तक के लिए स्वरों के नीचे बिन्दु लगाते हैं जैसे-ध नि तथा विष्णु दिगम्बर स्वर लिपि पद्धति के ऊपर बिन्दु लगाते हैं जैसे-धं, नि।
(ii) मध्य सप्तक – साधारण या औसत आवाज वाले सप्तक को मध्य सप्तक’ कहते हैं जिसकी आवाज न अधिक नीचे हो और न अधिक ऊँची। लिपिबद्ध करने के क्रम में इस सप्तक के स्वरों में कहीं भी बिन्दु नहीं लगाया जाता है।
(iii) तार सप्तक – मध्य सप्तक से ऊँचे स्वरों वाली आवाज के सप्तक को तार सप्तक कहा जाता है। लिपिबद्ध करने के क्रम में भातखंडे पद्धति के अनुसार स्वरों के ऊपर (गं, मं) बिन्दु देकर तार सप्तक दर्शाया जाता है तथा विष्णु दिगम्बर पद्धति के अनुसार स्वरों के ऊपर खड़ा लकीर लगायी जाती है (जैसे-गे, में)।
प्रश्न 3.
राग के साथ थाट का सम्बन्ध कया है ? तुलना करें।
उत्तर:
राग के साथ थाट का सम्बन्ध है इन दोनों के सम्बन्ध को दोनों में तुलना कर देख सकते हैं-
- सप्तक से थाट की रचना हुई और थाट से राग की अतः थाट को राग का पिता कहते हैं।
- थाट सदैव सम्पूर्ण अर्थात् सप्तक स्वर मुक्त होता है किन्तु राग की 9 जातियाँ होती है।
- थाट गाया नहीं जाता है किन्तु राग गया जाता है।
- थाट में रंजकता आवश्यक नहीं है किन्तु राग में आवश्यक है कारण यह है कि थाट गाया नहीं जाता है और राग गाया जाता है।
- थाट में आरोह-अवरोह का होना जरूरी नहीं है। थाट में आरोह-अवरोह दोनों समान होता है जबकि राग में ऐसा होना आवश्यक नहीं है।
- थाट में वादी-सम्वादी, गायन समय, पकड़ न्यास के स्वर आदि की आवश्यकता नहीं है। राग में इसका होना आवश्यक है।
- थाट में सातों स्वर क्रमानुसार होना चाहिए किन्तु राग में यह आवश्यक नहीं है। थाट में सा के बाद रे, रे के बाद ग, ग के बाद म, म के बाद प, प के बाद ध, ध के बाद नहीं इस तरह क्रम में रहना चाहिए। लेकिन रागों में ऐसा कोई बन्धन है। कभी क्रमानुसार स्वर होते हैं कभी नहीं होते हैं।
- थाटों का नामकरण उनसे उत्पन्न माने गए हैं। प्रसिद्ध रामों के आधार पर हुआ है। किन्तु रागों का नामकरण स्वतन्त्र रूप से हुआ है।
प्रश्न 4.
तोड़ा और झाला से आप क्या समझते हैं ? समझाएं।
उत्तर:
तोड़ा – तोड़ा को तान भी कहा जाता है। तान का अर्थ है तानना या फैलाना-अर्थात् गायन या वादन के क्रम में राग में लगने वाले स्वरों तथा स्वरों का विस्तार करना तोड़ा या तान कहलाता है। अधिकांशत: यह ताल बद्ध ही होता है। परन्तु कुछ गायक-वादकों के ही समान अनिबद्ध गान के क्रम में भी तोड़ा का प्रयोग बड़ी सुन्दरता से करते हैं। तन्त्रवादन के क्रम में कुछ कलाकार तान को तोड़ा कहते हैं। तान अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-सपाट ताना, वक्र या कूट तान, अलंकृत तान, गमक की तान, हलक की तान, जबड़े की तान, बोल तान मिश्र तान आ ओद।
झाला – कुछ शास्त्रकारों ने झाला को केवल सितार एवं सरोद को बाज कहा है परन्तु व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो आज यह प्रत्येक तार यन्त्र पर व्यवहत है। झाला बजाने के क्रम में वादक राग में लगने वाले स्वरों को क्रमशः प्रत्येक स्वर को कई बार उत्पन्न करते हुए सा सा सा सा, रे रे रे रे, अवरोहित करते हैं। हम यह कह सकते हैं कि झाला में स्थायी वर्ण का समुचित प्रयोग होता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी भले ही विभिन्न बाह्य यन्त्रों पर उनके बजाने की प्रक्रिया अलग-अलग हो।
प्रश्न 5.
सुषिर वाद्य की परिभाषा उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
सुषिर वाद्य यंत्रों के अंतर्गत हवा से बजने वाले वाद्य आते हैं जैसे-शहनाई, बांसुरी, हारमोनियम इत्यादि।
वायु के झोंके के प्रहार द्वारा पैनी धार की लकड़ी अथवा धातु से निकलती ध्वनि को धार स्वर कहते हैं। यदि पतले छिद्र से वायु की तीव्र धारा निकलकर धार पर पड़े तभी स्वर उत्पन्न होंगे जिसका कारण छिद्र तथा धार के बीच के स्थान पर बनी श्रमिले भंवर है। धार या पत्ते के ऊपर तथा नीचे दोनों ओर भंवरे पैदा होती है परन्तु उनका स्वभाव विपरीत है। एक में कणों की गति प्रदक्षिण तथा दूसरे में प्रवाह है। दोनों प्रकार के भंवरों के बीच की दूरी बराबर है और दोनों समुदायों में इस दूरी के आधे को अन्तर रहता है।
वायु के प्रवाह के साथ-साथ इन भंवरों का समूह आगे बढ़ता जाता है। कुछ दूर चलकर आगे के भंवर समाप्त हो जाते हैं तथा पीछे नये उत्पन्न होते हैं। जब भंवर धार के पास आती है तब वायु को अपनी ओर चूसकर माध्यम में संघनन उत्पन्न करती है। इस प्रकार धार के एक ओर संघनन तथा दूसरी ओर विरलन उत्पन्न होता है। इसका प्रभाव हमें ध्वनि के रूप में सुनाई पड़ता है।
धार स्वरों को बदलने के लिए बजाने वाले को मुँह की ऊँचाई कम या अधिक करनी पड़ती है। बांसुरी तथा शहनाई इत्यादि वाद्यों में जैसे-जैसे फूंक या वायु का दबाव बढ़ता जाता है तो ध्वनि का तारत्व भी बढ़ता जाता है। अधिक दाब बढ़ने पर कम्पनों की आवृत्ति एक सप्तक बढ़कर मूल स्वर के तार सप्तकीय स्वर को प्रस्तुत करने लगती है।
प्रश्न 6.
राग बागेश्री की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
काफी थाट से उत्पन्न इस राग में कोमल ग नि लगत है। अधिकांश लोग इसे औड़व सम्पूर्ण जाति का राग मानते हैं जबकि कुछ लोग इसे षाडव-सम्पूर्ण तथा कुछ के सम्पूर्ण-सम्पूर्ण इस राग में पंचम का प्रयोग “नि ध – म प ध ग” या “म प ध म ग ग रे सा” इस प्रकार वक्र रूप से करते हैं। यह गंभीर प्रकृति का राग है जिसमें विलंबित तथा मध्यलय रचना (बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल) ध्रुपद, धमार, तराना आदि गाया जाता है।
इसे गाने का रात्रि का द्वितीय प्रहर, इसमें वादी म संवादी सा थाट काफी जाति औड़व-संपूर्ण वर्जित आरोह में रे, प
आरोह सा नि ध नि सा म, ग म ध नि सां।
अवरोह सां नि ध म, ग म ग रे सा इत्यादि।
पकड़ ध नि सा म, म ध नि ध, ग, रे सा आदि।
आलाप
सा …………… नी ध नी सा म …………. ग म ध …….. म …….., म म ग रे सा …….. .., ग म ध नी सां …….., नी ध म …….. प ध ग …….. रे सा ………… नी ध नी सा म …………….. ।
प्रश्न 7.
अपकर्ष प्रहार क्या है ?
उत्तर:
जब सितार के तार पर अन्दर से बाहर की ओर आकर्ष प्रहार के ठीक विपरीत आघात किया जाता है तो उसे अपकर्ष प्रहार कहा जाता है। इसे उलट प्रहार भी कहा जाता है। इसमें ‘रा’ की उत्पति का होना बताया जाता है।
प्रश्न 8.
तिलक कामोद की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
तिलक कामोद (Tilak Kamod)-तिलक कामोद खमाज थाट से उत्पन्न होता है। इसमें सोर स्वर शुद्ध लगते हैं। इस राग में गांधार धैवत वक्र है। अतः इसकी जाति कोई औडव-संपूर्ण और कोई वक्र सम्पूर्ण मानते हैं। ग स, रे प, प सं, संप, ध म स्वर संगतियाँ इस राग में आती है। वादी स्वर ऋषभ व संवादी पंचम है। गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। इस राग में प नि सं का प्रयोग तो हो सकता है परन्तु अधिकांश लोग म प सं का प्रयोग सं प र जाने के लिए करते हैं। इसका आरोह-अवरोह इस प्रकार है-से रे ग स, रे म प ध म सां।
सां प, ध म ग, सां रे ग सा नि।
स्वरूप – प नि सा, रे ग सा, रे व मग, सारेग नि। इसमें तिलक और कामोद दो रागों का मिश्रण है। ‘कामोद’ का अंग रेप है और शेष अंग ‘तिलक’ का है।
प्रश्न 9.
लक्षण गीत के बारे में उदाहरणों के साथ लिखें।
उत्तर:
जिस गीत में अपने राग का पूरा लक्षण हो, लक्षणगीतं कहलाता है। इसका उद्देश्य यह है कि प्रारंभिक विद्यार्थियों को गीत के सहारे राग का पूरा परिचय हो जाए। लक्षण गीत में भी ख्याल के समान दो भाग होते हैं-स्थायी और अन्तर। इसकी गायन शैली ख्याल की तरह होती है। ये अधिकतर उन्हीं तालों में होते हैं जिनमें छोटे ख्याल गाए जाते हैं कुछ लक्षण गीत ध्रुपद के भी पाये जाते हैं। लक्षण जीत केवल प्रारंभिक विद्यार्थियों के लिए होते हैं महफिल अथवा संगीत समा में लक्षण गीत सुनने को नहीं मिलता है। ‘संगीत राग दर्शन’ पुस्तक से खमाज राग में निबद्ध एक लक्षण गीत नीचे देखा जा सकता है-
सोहत मधुर खमाज, सुध सुरचुत दोऊ निषाद।
समय द्वितीय प्रहर रात, षाडव सम्पूर्ण जाति।।
आरोहन रिषम छुटत, सब सूर अवरोह करता।
गनी नृप मंत्री संमत, सुरधक की लसत।।
प्रश्न 10.
स्वर के बारे में उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
ध्वनियों में हम प्राय: दो भेद रखते हैं, जिनमें एक को स्वर और दूसरे को ‘कोलाहल’ या ‘ख’ कहते हैं।
साधारणतः जब कोई ध्वनि नियमित और आवर्त्त-कंपनों से मिलकर उत्पन्न होती है तो उसे ‘स्वर’ कहते हैं। बोलचाल की भाषा में ध्वनि को स्वर और कोलाहल के बीच की श्रेणी में रखा जाता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नियमित आन्दोलन संख्यावली ध्वनि ‘स्वर’ कहलाती है। जो संगीत के काम में आती है जो कानों की मधुर लगती है तथा चित्र को प्रसन्न करती है।
भारतीय संगीतज्ञों ने एक स्वर से उससे दुगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र में ऐसे संगीतपयोगी नाद बाइस माने जाते हैं जिन्हें ‘श्रुतियां’ कहा गया है। ध्वनि की प्रारंभिक अवस्था श्रुति और उसका का अनुरणात्मक स्वरूप ही स्वर कहलाता है।
जब सा, रे, ग, म, प, ध, नि स्वरों में श्रुतियां का क्रम 4, 3, 4, 4, 3, 2 रहता है तो उन स्वरों के शुद्ध स्वर कहते हैं। इन शुद्ध स्वरों के नाम क्रमशः इस प्रकार है-षडज, ऋषभ, गांधार, · माध्यम, पंचम, धैवत निषाद आदि है।
‘सात स्वर’ को शुद्ध स्वर कहते हैं। इसमें ‘सा’ और ‘प’ तो ‘अचल स्वर माने गए है, क्योंकि ये अपनी जगह कायम रहते हैं। बाकि पांच स्वरों के दो-दो रूप कर दिए है क्योंकि ये अपनी जगह से रहते हैं, इसलिए उन्हें ‘कोमल’ वे ‘तीव्र’ नामों से पुकारा जाता है। इन्हें विकृत स्वर भी कहा जाता है।
किसी स्वर की नियमित आवाज को नीचे उतारने पर वह कोमल स्वर कहलाता है, और कोई स्वर अपनी नियत आवाज से ऊँचा जाने पर तीव्र स्वर कहलाता है।
प्रश्न 11.
अपने बाह्य क्रम में से किसी एक ध्रुपद के स्थायी की स्वरलिपि लिखें। अथवा, राग अल्हैया बिलावल का ध्रुपद के स्थायी की स्वरलिपि लिखें।
उत्तर:
ध्रुपद (चार ताल)
स्थायी – गुरु सम दाता न कोई। ध्यावत ही द्रवित होई।।
अन्तरा- चरण कम ध्यावत जो सकल सिद्धी पावे सोई।।
प्रश्न 12.
आरोह-अवरोह क्या है ? किसी भी एक राग का आरोह-अवरोह लिखिए।
उत्तर:
गायक या वादक गाते बजाते समय एक स्वर पर बहुत देर तक नहीं ठहरता वरन वह सदा ऊपर-नीचे आता जाता रहता है। इसी को संगीत में आरोह-अवरोह कहते हैं। स्वरों के चढ़ते हुये क्रम को आरोह और स्वरों के उतरते हुए क्रम को अवरोह कहते हैं। केदार, गौड़, सारंग जैसे रागों में स्वरों का उतार-चढ़ाव समान न होकर तक होता है।
राग केदार :
समय-रात्रि का दूसरा प्रहर – थाट-कल्याण
वादी-म – संवादी-सा
जाति-ओडव-षाडव – आरोह-साम, मेप, धप, निधसा
अवरोह-सानि, धप, मेप, धपम, रेसा
प्रश्न 13.
गायक के गुण कौन – कौन से है ? प्रकाश डालें।
उत्तर:
गायक का गुण (Merits)-
- जिसकी आवाज मधुर हो एवं प्रिय हो।
- जिसकी आवाज में राग-स्वरूप व्यक्ति करने का सहज धर्म हो।
- ग्रह और न्यास का ज्ञाता हो।
- गायक के प्रवंकों को जानने वाला हो।
- जिसका चित एकांग्र हो तथा जिसे गाने में विशेष श्रम न पड़े।
- जिसके गाने में कोई दोष नहीं हो।
- गाते समय श्रोताओं को मन मोह को हरने वाला है।
- गाते समय असंख्य ताने रचनेवाला हो।
प्रश्न 14.
गायक के अवगुण कौन-कौन से हैं ? प्रकाश डालें।
उत्तर:
गायक के अवगुण (Demerits)-
- दाँत पीसकर गाने वाला हो।
- गाते समय चित्कार करनेवाला व डरकर गानेवाला।
- निरर्थक शीघ्रता के साथ गानेवाला।
- जिसकी आवाज में कम्पन्न हो ध्वनि स्वर हिलता है।
- मंय मुँह फाड़कर तथा बेताला गानेवाला।
- जिसके गाने में कम या अधिक श्रुतियाँ लग जाती है।
- काँवे के समान कर्क सी आवाज में गानेवाला।
- गले और मुँह की नर्से फुलाकर गानेवाला।
- जिसके गाने में वर्जित स्वर आ जाता है।
प्रश्न 15.
विवादी स्वर क्या है ? उदाहरण सहित विस्तार पूर्वक लिखें।
उत्तर-विवादी स्वर (Vivadi Swar) – कुछ ऐसी भी स्वर होते हैं। जिनकै लगने से राग की शुद्धता नष्ट हो जाती है। ऐसे स्वरों को विवादी स्वर कहा जाता है। परन्तु अपवाद स्वरूप कुछ ऐसे भी राग है । जिनमें इनका प्रयोग गुणिजन राग की सुन्दरता को बढ़ाने के लिये बड़ी सरलता से करते हैं। जैसे-राग बिहाग में तीव्र मध्यम तथा राग भैरवी में शुद्ध रे आदि प्रयोग होता है।
प्रश्न 16.
राग पहचानिये।
उत्तर:
- नि रे ग, रे नि रे सा-राग यमन कल्याण (Raga yaman Kalyan)
- सां नि ध प, मे प ध प, ग म, प य ग म रे सा-राग कामोद (Raga Kamod)
- सा रे सा, गम नि ध, में प गम नि ध इत्यादि-राग हमीर (Raga Hamir)
- ध नि सा म , म ध, नि ध ग रे सा, इत्यादि-राग बागेश्री (Raga Bagheshree)
- सा रे नि सा म, गम प नि ध, प म इत्यादि-भीम पलासी (Raga Bhimpalasi)
- नि सा ग म ग, रे सा, ग म प नि ध प-राग विहाग (Raga Vihag)
- सा रे म प ध सां, सां नी ध प म ग रे सा-राग आसावरी (Raga Ashwari)
- सा म ग रे, ग नी सां, रे म प नी ध प म नी नी सां-राग देश (Rage Desh)
- सां नि ध प, ध नी ध; प म ग रे सा-राग अल्हैया विलावल (Raga Allavilawal)
- नि सा र ग, म प म ग, म ग रे सा-राग पूर्वी (Raga Purvi)।
प्रश्न 17.
क्या ध्रुपद को धुवपद भी कहा जाता है ? अथवा, ध्रुपद किसे कहते हैं ? इसके कितने भाग होते हैं ?
उत्तर:
ध्रुपद को ध्रुवपद भी कहा जाता है। कतिपय विद्वानों ने इसे मध्यकालीन शैली भी .. कहा है। हमारे पूर्वजों को इससे मोक्ष की प्राप्ति होती थी। यह गंभीर प्रकृति की गायन शैली है। ध्रुपद के चार भाग हैं जिन्हें स्थायी, अन्तरा, संचारी एवं आभोग कहा जाता है।
ध्रुपद की रचनाएँ हिन्दी एवं ब्रजभाषा में उपलब्ध होती है। यह सूलताल मत्तलाल आदि कई तालों में गाया जाता है। इसमें स्वर विस्तार ऊँ, हरि ॐ, नारायण से किया जाता था पर बाद में उसकी जगह पर नोभ-तोभ आदि निरर्थक शब्द जोड़ दिया गया। इसमें ताने नहीं ली जाती है।
प्रश्न 18.
धमार क्या है ?
उत्तर:
यह गीत एक प्राचीन प्रकार है। यह धमार ताल में होता तथा इसमें अधिकतर राधा-कृष्ण और गोपियों की होली का वर्णन मिलता है। कुछ लोग इसे हीरो भी कहते हैं। इसमें ध्रुपद के समान नोभ-तोभ का आलाप तथा लयकारी दिखाते हैं। दुगुन, तिगुन, चौगुनआड़ आदि लायकारियाँ अधिकतर गीत शब्दों द्वारा दिखाते हैं और गमक का खूब प्रयोग करते हैं। इसमें खटकें अथवा तीन के समान स्वर-समूह वयं है। संगीतज्ञ इसमें सरगम भी बोलते हैं किन्तु यह ख्याल के सरगमों से भिन्न रहता है। ध्रुपद अथवा धमार के प्रत्येक अंग में गंभीरता की रक्षा आवश्यक है। कुछ लोग तो इसे होरी कहते हैं किन्तु यह उचित नहीं हैं क्योंकि गीत का एक दूसरा प्रकार भी है जिसे होली कहते हैं। होली और होरी में केवल सा और र का अन्तर है। अतः लेखक का यह सुझाव है कि गीत के इस प्रकार को धमार भी कहा जाय और दसरे प्रकार को होली अथवा होरी। धमार के साथ पखावाज बजाने की परम्परा है। कभी-कभी पखावाज के न रहने पर तबले का भी प्रयोग किया जाता है। धमार का एक उदाहरण द्वारा देखा जा सकता है-
लाल मोरी चूनर भी भिंगेगी।
अबीर गुलाल जिन छाडों मोह पे।
जिनही पै डारो जेहि रहत तो रे संग।
प्रश्न 19.
मुर्की क्या है ?
उत्तर:
यह भी एक प्रकार का कण है। इसमें तीन स्वरों के द्रुत प्रयोग द्वारा अर्द्धवृत्ति बनाते हैं, जैसे-रेनिसा, अथवा धमप आदि। इसे लिखने के लिए मूल स्वर के ऊपर बाईं ओर दो स्वरों का कण लगाया जाता है धमप।
प्रश्न 20.
ताली एवं खाली क्या होता है ?
उत्तर:
किसी ताल के अन्तर्गत विभाजन रेखाओं को जिन दो ढंगों से दिखलाया जाता है उन्हीं दोनों ढंगों को ताली एवं खाली कहते हैं।
ताली के अंतर्गत हाथ से ताल दिया जाता है जबकि खाली के लिए केवल हाथ को फैला दिया जाता है। लिपिबद्ध करने के क्रम में 2, 3, 4 एवं (।) के माध्यम से ताली एवं खाली को दर्शाया जाता है।
प्रश्न 21.
अल्पत्व तथा बहुत्व क्या है ?
उत्तर:
राग में प्रयोग किये जाने वाले स्वरों की मात्रा शास्त्रकारों ने मुख्य दो शब्दों में व्यक्त किया है-अल्पत्व और बहुत्व।
जिस स्वर का प्रयोग कम हो उसे अल्पत्व और जिस स्वर का प्रयोग अधिक हो उसे बहुत्व कहा जाता है। संगीत रत्नाकर में प्रत्येक के दो-दो प्रकार माने गए हैं-
(a) लंघन अल्पत्व और अंनाभ्यास अल्पत्व
(b) अलंघन बहुत्व और अभ्यास बहुत्व।
बर्ज्य स्वर को स्थान लंघन अल्पत्व और कम मात्रा में प्रयोग किया जाने वाला स्वर जिस पर न्यास न किया जाता हो अनाभ्यास अलपत्व कहा जाता है। उदाहरण के लिए मुलतानी के आरोह में रिषभ तथा धैवत लंघन मूलक अल्पत्व है तथा हिंडोल और छायानट का निषाद अनाभ्यास अल्पत्व है। इसी प्रकार तीव्र व मुल्तानी में अलंघन मूलक बहुत्व और ग, प, नि, स्वर अभ्यास मूलक बहुत्व है। बहुत्व स्वर का अभ्यास मूलक बहुत्व होना आवश्यक नहीं है, किन्तु अभ्यास मूलक बहुत्व का अलंघन मूलक बहुत्व होना आवश्यक है। अतः मुलतानी में ग, प और नि स्वर अभ्यास मूलक बहुत्व तो है ही, साथ ही साथ अलंघन मूलक भी है।
प्रश्न 22.
झपताल के बारे में लिखें।
उत्तर:
झपताल उस ताल को कहा जाता है जिसमें 10 मात्राएँ, 4 विभाग, तीन तालियाँ तथा एक खाली है।
झपताल को इस प्रकार देखा जा सकता है-
प्रश्न 23.
धमार ताल के बारे में लिखें।
उत्तर:
धमार ताल उस ताल को कहते हैं जिसमें 14 मात्राएँ, 4 विभाग एवं तीन तालियाँ तथा एक खाली प्रयुक्त होती है। इसे इस प्रकार देखा जा सकता है-
प्रश्न 24.
कहरवा ताल को लिखें।
उत्तर:
कहरवा (मात्राएँ 8, भाग 2)
प्रश्न 25.
राग कल्याण क्या है?
उत्तर:
राग कल्याण कल्याण थाट जनित सम्पूर्ण जाति का राग है। इसमें वादी स्वर ग तथा संवादी स्वर नि का प्रयोग होता है। यह राग रात्रि के प्रथम प्रहर में गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह में नि रे ग मे प ध नि सा तथा अवरोह में सां नि ध प मे ग रे सा के प्रयोग होते हैं। यह एक शांत प्रकृति का राग है। इसका आलाप निम्न प्रकार है-
प्रश्न 26.
राग यमन में 16 मात्राओं के दो तान लिखें।
उत्तर:
1. नीरे, गग, रेग, मे मे, । गमे, पप, मेप, धध।
पध, नीनी, धनी, सां सा, । सा नी, धप, मे ग, रेसा
2. मेप, धनी, सांऽ, सांऽ । नीरे, गरे, सांनी, धप
मेप, धनी, सांनी, धप, सांनी, धप, मेग, रेसा
3. नीरे, गमे, गरे, सासा । गमे, · धध, पमे, गमे
पध, नीरे, सांनी, धप, । सांनी, धप, धप, मेग, रेसा
प्रश्न 27.
चारताल को लिखें।
उत्तर:
चार ताल (मात्राएँ 12, भाग 6)
प्रश्न 28.
मत्त ताल को लिखें।
उत्तर:
मत्त (मात्राएँ 18, भाग 9)
प्रश्न 29.
तिलवाड़ा ताल को लिखें।
उत्तर:
तिलवाड़ा ताल (मात्राएँ 16, भाग 4)
प्रश्न 30.
रूपक ताल के बारे में लिखें।
उत्तर:
रूपक ताल (मात्राएँ 7, भाग 3)
प्रश्न 31.
राग कामोद क्या है ?
उत्तर:
इसे राग कल्याण थाट से उत्पन्न माना गया है। इसमें दोनों माध्यमों के अतिरिक्त अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इसकी जाति वक्र सम्पूर्ण, वादी स्वर पंचम और सम्वादी स्वर ऋषभ है। गायन-समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
आरोह – सा, ग म रे सा, म रे 5 प, मे प,
ध प नि ध सां।
अवरोह – सां नि ध प, मे प ध प,
ग म प, ग म रे सा।
पकड़ – म रे प, मे प, ध प, ग म प ग
रे सा
प्राचीन ग्रन्थकारों के आधार पर कुछ गायक इसे बिलावल थाट का राग मानते हैं।
अपवाद-हमीर राग के समान कामोद राग का वादी-संवादी राग और समय नियम की दृष्टि से सच्चा नहीं उतरता। राग का यह नियम है कि जो राग दिन के पूर्व अंक में गाए जाते हैं, उनका वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंक में होना चाहिए। कामोद को इस नियम का अपवाद माना गया है क्योंकि यह रात्रि के प्रथम प्रहर में गाया जाता है और इसका वादी स्वर पंचम है।