Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 15 भू-संसाधन तथा कृषि

Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 15 भू-संसाधन तथा कृषि

→ भूमि उपयोग

  • उपलब्ध भूमि का उपयोग हम कृषि, चरागाह, वन, भवनों, बाँधों एवं सड़कों के निर्माण, पार्क, खेल के मैदान आदि कार्यों के लिए करते हैं।
  • भूमि उपयोग सम्बन्धी अभिलेख ‘भूराजस्व विभाग रखता है।
  • भारत की प्रशासकीय इकाइयों के भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी भारतीय सर्वेक्षण विभाग देता है।

→ भू-उपयोग वर्गीकरण
भू-राजस्व अभिलेख द्वारा अपनाया गया भू-उपयोग वर्गीकरण निम्न प्रकार है

  1. वनों के अधीन क्षेत्र,
  2. गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि,
  3. बंजर व व्यर्थ भूमि,
  4. स्थायी चरागाह क्षेत्र,
  5. विविध तरु फसलों व उपवनों के अन्तर्गत क्षेत्र,
  6. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि,
  7. वर्तमान परती भूमि,
  8. पुरातन परती भूमि, एवं
  9. निवल बोया क्षेत्र।

→ भारत में भू-उपयोग परिवर्तन
भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के तीन परिवर्तन है –

  1. अर्थव्यवस्था का आकार,
  2. अर्थव्यवस्था की संरचना एवं
  3. भूमि पर कृषि का दबाव।

→ भू-उपयोग में वृद्धि वाले चार संवर्ग

  1. वन क्षेत्र,
  2. गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि,
  3. वर्तमान परती भूमि, एवं
  4. निवल बोया गया क्षेत्र।

→ भू-उपयोग में कमी वाले चार संवर्ग

  1. बंजर व व्यर्थ भूमि,
  2. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि,
  3. चरागाहों तथा तरु फसलों के अन्तर्गत क्षेत्र, एवं
  4. परती भूमि।

→ साझा सम्पत्ति संसाधन

  • साझा सम्पत्ति पर राज्यों का अधिकार होता है और इसे सामुदायिक उपयोग के लिए रखा जाता है।
  • साझा सम्पत्ति छोटे कृषकों, भूमिहीन किसानों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
  • साझा सम्पत्ति के प्रयोग पर सभी का अधिकार होता है, इस कारण इसे ‘सामुदायिक प्राकृतिक संसाधन’ भी कहा जाता है।
  • साझा सम्पत्ति के उदाहरण हैं-सामुदायिक वन, चरागाह, ग्रामीण जलीय क्षेत्र तथा अन्य सार्वजनिक स्थान आदि।

→ भारत में कृषि भूमि उपयोग
भू-संसाधनों का महत्त्व कृषकों के लिए होने के प्रमुख कारण हैं-

  1. कृषि पूर्णतया भूमि पर आधारित,
  2. भूमि की गुणवत्ता का कृषि उत्पादकता पर प्रभाव, एवं
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में इसका आर्थिक मूल्य के अलावा सामाजिक मूल्य भी।

→ शस्य गहनता

  • शस्य गहनता सकल फसलगत क्षेत्र तथा शुद्ध बोए गए क्षेत्र का अनुपात होता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
  • शस्य गहनता = Bihar Board Class 12th Geography Notes Chapter 15 भू-संसाधन तथा कृषि 1

→ भारत में फसल ऋतुएँ
भारत में तीन फसल ऋतुएँ पायी जाती हैं-

  1. खरीफ (जून से सितम्बर)–प्रमुख फसलें-चावल, कपास, बाजरा, मक्का, ज्वार, अरहर आदि।
  2. रबी ( अक्टूबर से मार्च)—प्रमुख फसलें-गेहूँ, चना, सरसों, जौ, चावल, मक्का, मूंगफली आदि।
  3. जायद ( अप्रैल से जून)-प्रमुख फसलें-वनस्पति, सब्जियाँ, फल, चारा फसलें आदि।

→ कृषि के प्रकार
(I) सिंचित कृषि, तथा (II) वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि।

सिंचित कृषि के दो प्रकार
(1) रक्षित सिंचाई कृषि, तथा (2) उत्पादक सिंचाई कृषि।

वर्षा निर्भर (बारानी) कृषि के दो प्रकार
(1) शुष्क भूमि कृषि, तथा (2) आर्द्रभूमि कृषि।

→ खाद्यान्न फसलें
भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसलें-चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का, दालें (चना, . अरहर आदि), तिलहन (मूंगफली, तोरई व सरसों) आदि हैं।

→ रेशेदार फसलें
भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख रेशेदार फसलें हैं-कपास, जूट आदि।

→ अन्य फसलें
भारत में उगाई जाने वाली अन्य प्रमुख फसलें गन्ना, चाय तथा कॉफी आदि हैं।

→ भारत में कृषि का विकास

  • 2001 में देश की लगभग 53 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी।
  • देश के 57 प्रतिशत भू-भाग पर कृषि की जाती है।
  • देश में प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का अनुपात केवल 0.31 हैक्टेयर है।

→ विकास की रणनीति
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सरकार द्वारा खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के निम्नलिखित उपाय किए गए-

  1. व्यापारिक फसलों की जगह खाद्यान्नों का उगाया जाना।
  2. कृषि गहनता को बढ़ाना।
  3. कृषि योग्य बंजर तथा परती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना।

→ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए किए गए प्रयास-

  • (1) गहन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP), तथा (2) गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम (IAAP)।
  • हरित क्रान्ति से कृषि ने प्रयुक्त कृषि निवेश; जैसे-उर्वरक, कीटनाशक, कृषि यन्त्र आदि, कृषि आधारित उद्योगों तथा छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित किया।
  • 1980 के दशक में भारतीय योजना आयोग ने वर्षा आधारित क्षेत्रों की कृषि समस्याओं पर ध्यान दिया।
  • योजना आयोग ने 1988 में कृषि विकास में प्रादेशिक असन्तुलन को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि जलवायु नियोजन प्रारम्भ किया।
  • 1990 के दशक की उदारीकरण नीति तथा उन्मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था ने भारतीय कृषि विकास को भी प्रभावित किया है।

→ कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा प्रौद्योगिकी का विकास

  1. खाद्यान्न व गैर-खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में वृद्धि,
  2. सिंचाई साधनों के प्रसार से कृषि उत्पादन में वृद्धि, तथा
  3. देश में आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी का प्रसार तेजी से।

→ भारतीय कृषि की समस्याएँ ।
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. अनियमित मानसून पर निर्भरता
  2. निम्न उत्पादकता
  3. वित्तीय साधनों की बाध्यताएँ एवं ऋणग्रस्तता
  4. भूमि सुधारों की कमी
  5. छोटे व विखण्डित खेत
  6. वाणिज्यीकरण का अभाव
  7. व्यापक अल्प रोजगार, तथा
  8. कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण आदि।

→ कृषि-भूमि पर जुताई करके फसलें उगाने, पशुपालन एवं वानिकी आदि प्राथमिक क्रियाकलाप कृषि में आते हैं।

→ कृषीय भूमि-उपजाऊ मृदायुक्त कृषि के लिए जोता गया शुद्ध क्षेत्र तथा परती भूमि कृषीय भूमि कहलाती है।

→ शुद्ध बोया गया क्षेत्र-देश के कुल क्षेत्रफल का वह भाग जो फसलें उगाने के लिए उपयोग किया जाता है।

→ सकल बोया गया क्षेत्र-शुद्ध बोये गए क्षेत्र में जोड़ा गया वह क्षेत्र जिसमें किसी कृषि वर्ष अवधि में एक से अधिक बार फसलें बोई जाती हैं।

→ बंजर भूमि-भूमि तल का वह ऊबड़-खाबड़ पथरीला भाग जो भौतिक दृष्टि से कृषि के अयोग्य है।

→ फव्वारा सिंचाई-सिंचाई की वह विधि जिसमें जल की फुआर बनाकर सिंचाई की जाती है।

→ टपकाव सिंचाई-सिंचाई की वह पद्धति जिसमें नलों में बने छिद्रों से पानी की बूंदें सीधे पौधों की जड़ों पर गिरती हैं।

→ औद्योगिक फसलें-ऐसी फसलें जो कुछ उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होती हैं; जैसे—गन्ना, तिलहन, कपास, पटसन आदि।

→ परती भूमि-कृषि योग्य भूमि जिस पर एक या एक से अधिक ऋतुओं में फसलें नहीं बोई जातीं और वह उर्वरा शक्ति के ह्रास को रोकने के लिए वैसे ही छोड़ दी जाती है।

→ बोया गया निवल क्षेत्र-वर्तमान फसली मौसम में कृषि के अधीन क्षेत्र।

→ शस्य गहनता-यह कुल बोये गए क्षेत्र का अनुपात होता है जिसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

→ जायद-जायद एक छोटी अवधि की ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु है।

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